राजस्थानी कहानी का पूरा परिदृश्य / सत्यदेव सवितेंद्र
आजादी के साथ ही राजस्थानी कहानी में भी आधुनिक काल के बदलाव दृष्टिगोचर होने लगे। वैसे तो पहली कहानी का श्रेय शिवचंद भरतिया को दिया जाता है पर असल यात्रा मुरलीधर व्यास से आरंभ होती है। सांवर दइया की राजस्थानी कहानी को आधुनिक कहानी का प्रस्थान बिंदु माना जाता है। राजस्थानी के विद्वान आलोचक डॉ. नीरज दइया के संपादन में आए नए संग्रह ‘101 राजस्थानी कहानियां’ में राजस्थानी कहानी के इतिहास और विकास यात्रा को एक स्थान पर संकलित करने का पुरजोर प्रयास है। इसमें राजस्थानी के नए पुराने 101 कहानीकारों की राजस्थानी कहानियों के हिंदी अनुवाद सामिल हैं। इस संग्रह में रानी लक्ष्मी कुमारी चूंडावत, अन्नाराम सुदामा, नृसिंह राजपुरोहित, रामेश्वर दयाल श्रीमाली आदि जैसे पुराने कहानीकार हैं तो इक्कीसवीं शताब्दी के युवा कहानीकार दुलाराम साहरण, कुमार अजय, अरविंद सिंह आशिया, वाजिद हसन काजी, रीना मेनारिया, किरण राजपुरोहित ‘नितिला’, हरीश बी. शर्मा आदि भी है।
इन कहानियों के माध्यम से न केवल राजस्थानी कहानी के विकास को समझा जा सकता है बल्कि राजस्थानी समाज की सामाजिक स्थिति को, उसकी विडरूपताओं को भी अंगीकार किया जा सकता है। स्त्री चेतना की नंद भारद्वाज की ‘आसान नहीं है रास्ता’, बुलाकी शर्मा की कहानी ‘हिलौर; है तो बाजारवाद के इस दौर की संवेदनाओं के क्षरण को दरसाने वाली रामस्वरूप किसान की कहानी ‘तार तार संवेदना’, ओमप्रकाश भाटिया की कहानी ‘हाथ से निकला सुख’, मधु आचार्य ‘आशावादी’ की ‘प्रेम का कांटा’ है। उम्मेद धानिया की ‘नीची जात’ दलित चेतना की प्रतिनिधि कहानी है।
नीरज दइया ने 101 कहानीकारों की प्रतिनिधि कहानियों को संकलित कर महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। इसकी भूमिका में कहानीकारों और उनके प्रकाशित संग्रहों के संदर्भअ दिए गए हैं, वे शोधार्थियों के लिए बहुत उपयोगी हैं। यह संकलन राजस्थानी कहानी का एक ऐसा परिदृश्य प्रस्तुत करता है जिससे एक नजर में राजस्थानी कहानी का हर पहलू समझा जा सकता है। यह संग्रह एक दस्तावेज और संदर्भ ग्रंथ है। बहुत धैर्यपूर्वक अपनी विद्वता और निर्पेक्ष दृष्टि से इसे तैयार कर हिंदी जगत के समक्ष राजस्थानी कहानी का पूरा परिदृश्य लाने के लिए भाई नीरज दइया को बहुत बधाई और शुभकामनाएं।
-सत्यदेव सवितेंद्र
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