Sunday, October 12, 2014

राजस्थानी उपन्यास "अवधूत"



अवधूत : मिनख नै मिनख सूं जोड़ण रो जतन
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गद्य साहित्य री आधुनिक विधावां मांय ‘उपन्यास’ सिरै विधा मानीजै। राजस्थानी साहित्य री बात करां तो इण विधा रा ऐनाण आजादी सूं पैली देख्या जाय सकै। इण विधा रा बडेरा शिवचंद्र भरतिया रो ‘कनक-सुंदर’ बरस 1903 नै राजस्थानी रो पैलो उपन्यास मानण पेटै एक राय कोनी। इण पछै श्रीनारायण अग्रवाल रो ‘चम्पा’ बरस 1925 में छप्यो। आं दोनूं उपन्यासां रा प्रवासी राजस्थानी लेखकां पछै राजस्थान मांय उपन्यास लेखन रो जस बीकानेर रा लूंठा साहित्यकार श्री श्रीलाल नथमलजी जोशी नै जावै। आपरो उपन्यास ‘आभै पटकी’ बरस 1956 मांय साम्हीं आयो। असल मांय आ उपन्या-जातरा री विधिवत सरुआत ही।
केई विद्वानां रो ओ पण मानणो है कै आपां नै उपन्यास विधा री बात आपां री जूनी लांबी लोककथावां सूं जोड़ करणी चाइजै। मनोहर शर्मा रै कुंवरसी सांखलै नै उपन्यास नै इणी दीठ सूं देख्यो जावै। मरुवाणी पत्रिका रा संपादक कवि- आलोचक श्री रावत सारस्वत मुजब राजस्थानी मांय आधुनिक उपन्यास री असल सरुआत बीकानेर रा चावा-ठावा कथाकार यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ करी। आपां जाणा कै कथाकार श्री अन्नाराम ‘सुदामा’ उपन्यास-विधा रै लेखै सदीव चेतै रैवणियो नांव बीकानेर रै खातै। सुदामा जी री रचनावां मांय लोक संवेदना अर ग्रामीण जन जीवण रा लूंठा चितराम देख्या जा सकै। उपन्यास विधा री थरपण अर विगसाव मांय रै लेखै घणो घणो जस बीकानेर री धरती नै जावै।
उपन्यास विधा रै सिरजण अर विगसाव मांय बीकानेर सदा सूं आगीवाण रैयो है। श्री भूरसिंह राठौड़ रो ऐतिहासिक उपन्यास ‘राती धाटी’ अर श्री भंवरलाल ‘भ्रमर’ रै बाल उपन्यास ‘भोर रा पगलिया’ नै मेहताऊ मान्या जावै। बीकानेर रो जस कै उपन्यास विधा मांय अठै रा साहित्यकार सर्वश्री रामनिवास शर्मा, अब्दुल वहीद ‘कमल’, देवकिशन राजपुरोहित अर देवदास राकांवत आद घणा सक्रिय रैया। श्री बी. एल. माली री उपन्यास-सिरजण बीकानेर मांय रैवतां थका करियो। इणी पूरी ओळ मांय एक नांव कथाकार श्री मधु आचार्य ‘आशावादी’ रो उपन्यास ‘गवाड़’ रै मारफत जुड़ियो। घणै गीरबै सूं कैयो जावणो चाइजै कै उपन्यास विधा मांय बाराना सिरजण रो जस बीकानेर रै साहित्यकारां अर इण धरा नै।
उपन्यास विधा मांय समूळ बदळाव लावणिया श्री मधु आचार्य आपरै उपन्यास गवाड़ सूं उत्तर आधुनिकता रो सांवठो दीठाव रचियो। गवाड़ उपन्यास नै इक्कीसवी सदी रै टाळवै भारतीय उपन्यासां री जोड़ मांय राख सकां। आ बात इण मंच माथै साम्हीं देख’र कैयोड़ी बात नीं मानी जावै। असल मांय गवाड़ रै जोड़ रो राजस्थानी मांय दूजो उपन्यास है ई कोनी। राजस्थानी भाषा मांय आज तांई लगैटगै सौ रै करीब उपन्यास प्रकाशित हुयोड़ा पण अजेस कीं सांवठो काम करण री दरकार लखावै।
‘गवाड़’ जिसै उपन्यास पछै श्री मधु आचार्य ‘आशावादी’ रै नुंवै उपन्यास ‘अवधूत’ सूं आपां री उम्मीदां कीं बेसी हुवणी लाजमी लखावै क्यूं कै वै ‘गवाड़’ रै मारफ इण विधा मांय प्रयोग करता थका इण विधा री एकरसता नै बदळण रो काम करियो। ‘गवाड़’ उपन्यास आपारी भाषा, बुणगट अर कथ्य रै हिसाब सूं आपरी लारली पूरी धारा सूं साव अलायदो इण रूप मनीजै कै इण मांय उपन्यास विधा रा सगळा मूळ मंतर बदळियोड़ा है। आप जाणो कै गवाड़ नै राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी सूं मुरलीधर व्यास राजस्थानी कथा पुरस्कार ई मिल्यो।
‘अवधूत’ उपन्यास माथै बात करण सूं पैली अठै ओ उल्लेख जरूरी है कै श्री मधु आचार्य ‘आशावादी’ राजस्थानी अर हिंदी दोनूं भाषावां मांय लगोलग लिख रैया है। उपन्यास, कहाणी, कविता अर निंबध आद विधावां मांय आपरी केई पोथ्यां प्रकाशित हुयी। देस रा नामी साहित्यकारां आलोचकां वां रै रचना-कर्म री सरावना करी। लारलै बरसां रो लेखो-जोखो लगवां तो जित्ती मात्रा अर जित्ती सक्रियता सूं साहित्य रै सीगै मधु भाई साहब रो काम साम्हीं आयो है, बो देख्यां अचरज अर हरख हुवै। मंगळकामना कै आपरी कलम सदा हरी नै सवायी रैवै।
म्हारो मानणो है कै कोई पण रचनाकार आपरै चौफेर सूं किणी रचना रा बीज टाळै अर सिरजण-जातरा मांय बगत आयां बै बीज पांगरै। उपन्यास ‘अवधूत’ रो बीज-सबद इण रै सिरैनांव सूं उजागर हुवै। सवाल है कै अवधूत कुण अर कियां हुवै? कोई अवधूत क्यूं हुवै? अवधूत रो मायनो कांई? इण सूं जुड़्योड़ा सगळा सवाल अर बातां राजस्थानी रै सीगै नुंवी लखावै। जूण सूं जुड़्योड़ा केई-केई सवाल घणा अबखा अर ‘अवधूत’ खुदो-खुद मांय अेक अबखो सवाल।
अवधूत पेटै सामाजिक अवधारणावां न्यारी-न्यारी देखण-सुणण नै मिलै। दुनिया रै सार-असार री बातां विचारतां केई बातां सांम्ही आवै। कोई मिनखजूण नै जुध ज्यूं परोटै, तो कोई जियां-तियां आपरो गाड़ो गुड़कावै। कोई इण जूण सूं अळधो भागण मांय सार जाणै, तो कोई अटकळ रै आंटै अटक्यो काम साधै। दुनिया सबद रै मायनै मांय आखी दुनिया आवै। हरेक मानवी री आपरी न्यारी दुनिया हुवै, पण न्यारी-न्यारी दुनिया जद रळै तद अेक दुनिया बणै। आज आपां सांम्ही संकट ओ है कै न्यारी-न्यारी दुनिया आपसरी मांय रळै क्यूं नीं, अर रळै तो उण रो बो अेकठ सरूप क्यूं नीं दीसै? उपन्यासकार श्री मधु आचार्य ‘आशावादी’ आपरै नुंवै उपन्यास ‘अवधूत’ रै मारफत जाणै अेक सुपनो रचै कै आखी दुनिया आपसरी मांय रळ परी किणी इकाई रूप अेक हुवणी चाइजै। जद आपां आधुनिकता, उत्तर-आधुनिकता अर ग्लोबल-क्रांति रै जुग मांय पूगग्या हां, तद इण ढाळै रो सवाल जरूरी लखावै।
उपन्यास अवधूत री सरलता, सहजता अर पठनीयता रो मूळ कारण भाषा अर संवाद मान सका। छोटी-छोटी ओळ्यां मांय उपन्यासकार जाणै जीवण नै आपां साम्हीं खोल’र राख देवै। असल मांय गवाड़ रै मोटै फलक पछै जाणै उपन्यासकार साव नजीक सूं इण गवाड़ मांय सूं किणी अवधूत री कथा आपां साम्हीं रचै। ओ रचणो फगत उण बीमारी नै प्रगट करणो कोनी कै आज इण दौड़ती दुनिया मांय विकास री मोटी-मोटी अर लंबी-चौड़ी बातां पछै ई समाज रो असली चैरो ओ है। उपन्यासकार श्री मधु आचार्य ‘आशावादी’ आपरी कथा मांय सूं आं सगळी बातां मांय सूं ई मारग निकाळै। लूंठा लिखारा प्रेमचंद आपरी पोथी कुछ विचार मांय जिण मशाल री बात साहित्यकारां रै हाथ देवण री बात करै बा बात असल मांय उजास री है। अवधूत असल मांय अंधारै सूं उजाळै री कथा है। किणी मेळ मिलाप अर जोड़ खातर उजास री दरकार हुया करै। आज चौफेर उजास नै भखणियो अंधारो डाकी हुयोड़ो दीसै इण बगत मांय आ उजास देवती कथा घणी रूपाळी लखावै। उपन्यास री मूळ भावना एक ओळी मांय कैयी जावै तो कैय सकां कै अंतस उजास खातर दीवो चसावण री जरूरत कोनी। सार री बात आ है कै आपसी प्रेम, सहयोग अर सद्भाकव अगाड़ी सगळा जंतर-मंतर फेल हुय जावै।
कोई पण रचनाकार आपरी रचना मांय समाज नै जोड़ण रो काम करै अर आ सावचेती ई रचना री सारथकता सिध करै। कैयो जावणो चाइजै कै ‘अवधूत’ उपन्यास आपारै सामाजिक साम्हीं जूण रै मूळ मंतर नै घणै नेठाव सूं रचै। मंतर ओ कै दुनिया मांय सगळा सुख-दुख आपां मांय मिलै। खुद री दुनिया नै आखी दुनिया मांय रळ्यां-रळायां मिलै। मिनख-मिनख मांय किणी ढाळै रो कोई भेद कोनी। हरेक भेद नै भांगण रो मारग हुया करै। इण मारग माथै किणी रचना नै लेय’र जावणो असल मांय मिनख नै मिनख सूं जोड़ण रो जतन कैयो जावणो चाइजै। ‘अवधूत’ उपन्यास केई भेद भांगतो मिनख नै मिनख सूं जोड़ण-जुड़ण री बात करै।
ओ सवाल करियो जाय सकै कै गवाड़ पछै अवधूत बांचण रो सुख किसो’क? आप गवाड़ बांच्यो है अर अवधूत बांचोला। अपानै लागैला कै जीमण मांय घापण अर रंजण री बात पछै ई लालसा हुया करै। अवधूत मांय धापण अर रंजण रो सुख है, पण ललसा ई भेळै जागै कै आगै कद किसो उपन्यास आसी। किणी रचना नै बांच्या पछै रचनाकार सूं आगली रचना री उम्मीद करणी बेजा बात कोनी। आ किणी रै लेखन री सफलता मानीजै। आपां री आ उम्मीद मधु जी पूरी करैला।
सेवट मांय कैवणो चावूं कै विषयगत नवीनता लियोड़ै इण उपन्यास ‘अवधूत’ मांय जीवंत अर सहज नाटकीयता भेळै आपां रै आसै-पासै री आपां री दुनिया मिलै। मन नै परस करती इण कथा मांय सहज, सरल अर प्रांजल भाषा साथै गजब री पठनीयता रो गुण देख्यो जाय सकै। कथाकार श्री मधु आचार्य ‘आशावादी’ री कलम नै रंग। मंगळकामनावां अर बधाई कै बै लगोलग जसजोग सिरजण रै मारग आगै बधता जावै।
~ डॉ. नीरज दइया

(आभार- दैनिक युगपक्ष) 

Friday, October 10, 2014

मुक्ति संस्था द्वारा सांवर दइया जयंति का आयोजन





बीकानेर/ 10 अक्टूबर/ मुक्ति संस्था द्वार प्रख्यात साहित्यकार सांवर दइया की 66 वीं जयंती स्मृति-सभा के रूप में स्थानीय नत्थूसर बास स्थित ब्रह्म बगेचा परिसर में आयोजित की गई। कार्यक्रम में अध्यक्ष के रूप में प्रख्यात कहानीकार और संपादक भंवर लाल ‘भ्रमर’ ने कहा कि राजस्थानी का आधुनिक साहित्य और मेरे मित्र स्वर्गीय सांवर दइया दोनों इस रूप में अभिन्न है कि बिना उनके अवदान की कोई भी चर्चा अधूरी कही जाएगी। विविध विधाओं में दइया का योगदान अविस्मरणीय है। उन्होंने कहा कि सांवर दइया की पहचान एक कवि, कहानीकार, व्यंग्यकार, अनुवाद और संपादक के साथ-साथ भाषा के प्रबल पैरोकार के रूप में निर्विवादित रूप से उल्लेखनीय है। मुझे इस बात का गर्व है कि मैंने राजस्थानी को लेखक के रूप में एक कोहीनूर हीरे जैसा लेखक दिया। उन जैसे सरल, सहज और महान लेखक को डॉ. नीरज दइया जैसा पुत्र भगवान ने दिया जिससे उनका अप्रकाशित साहित्य प्रकाश में आया किंतु मूलचंद प्राणेश जैसे अनेक लेखक ऐसे भी हैं जिनके जाते ही उनका साहित्य धीरे-धीरे लुप्त सा हो गया।
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि व्यंग्यकार कहानीकार बुलाकी शर्मा ने कहा कि आज की स्मृति सभा कार्यक्रम की सार्थकता इस रूप में होगी कि हम भी सांवर दइया के बारे में एक एक संस्मरण लिखें और वह प्रकाशित हो। शर्मा ने दइया के कहानी लेखन के साथ उनके द्वारा किए संपादन को रेखांकित करते हुए कहा कि राजस्थानी की अब तक की कहानी संपादन की यात्रा में रावत सारस्वत और सांवर दइया की दृष्टि वर्षों तक उल्लेखनीय और प्रेरणास्पद मानी जाती रहेगी। मुक्ति के सचिव कवि एवं संस्कृतिकर्मी राजेंद्र जोशी ने कहा कि बाजारवाद के इस दौर में आज जहां स्वयं को स्थापित करने का संघर्ष हमारे मूल्यों को बदल रहा है वही कुछ लेखकों की रचनाओं की विशेषताएं किसी एक-दो रचना विशेष के संदर्भ में ही महत्त्वपूर्ण आंकी जाने से उनका समग्र मूल्यांनक नहीं हो पाता। जोशी ने आवश्यकता जताई की बीकानेर के इतिहास में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने वाले कलाकारों का स्मरण और उनके कार्यों का प्रचार प्रसार निरंतर होना आवश्यक है जिससे कि युवा और नए लोग इस सब से जुड़ कर विरासत को संभाल सके।
कार्यक्रम में सांवर दइया को पिता और साहित्यकार के रूप में याद करते हुए उनके पुत्र कवि आलोचक डॉ. नीरज दइया ने अनेक प्रसंग साझा किए वहीं अपने पिता की राजस्थानी और हिंदी कविताओं का पाठ प्रस्तुत किया।  आगंतुकों का स्वागत करते हुए कहानीकार श्रीलाल जोशी ने कहा कि सांवर दइया को निराले और अनूठे साहित्यकार के रूप में याद करते हुए अपने संस्मरण साझा करते हुए कहा कि सांवर दइया की भाषा शैली और शिल्प से नए रचनाकारों को प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए। कवि कहानीकार कमल रंगा ने कहा कि सांवर दइया बहुआयामी रचनाकार थे और उनकी अंतरंगता के अनेक प्रसंगों में अपनापन और एक लेखक की जीवटता के साथ अपनी भाषा के रचनाकारों से जुड़ाव को रेखांकित किया।
युवा शायर मो. इरशाद ने उनको साहित्य का नक्षत्र बताते हुए कहा कि सांवर दइया सरीखे लेखक से हम खामोशी के साथ बिना किसी शोर-शराबे के साहित्य में बुनियादी और उम्दा लेखन का हुनर हासिल कर सकते हैं। कवि कहानीकार नवनीत पाण्डे कहा कि बीकानेर को अपनी परंपरा के अनुरूप पुरोधाओं का स्मरण करते रहना चाहिए जिससे कि नई पीढी का जुड़ाव बना रहे। कार्यक्रम में अनुवाद डॉ. सत्यनारायण स्वामी ने विगत दिनों का स्मरण करते हुए कहा उन्होंने कि वे मेरे लिए इस लिए भी यादगार लेखक है कि मुझे किसी साहित्यिक कार्यक्रम में बोलने का अवसर देने वाले वे थे। सांवर दइया के अभिन्न मित्र सत्यनारायाण शर्मा ने वर्ष 1977 में पूना के डेकन कॉलेज के दिनों के बारे में लिखे संस्मरण का पाठ किया जिसमें दइया की गुजराती भाषा के अध्येयता के रूप में गहरी रुचि देखी जा सकती है। कार्यक्रम में डॉ. नमामी शंकर आचार्य ने धन्यवाद दिया एवं वरिष्ट कवि सरल विशारद, प्रमोद कुमार शर्मा, हरीश बी. शर्मा, रमेश भोजक ‘समीर’, सुनील गज्जाणी, विष्णु शर्मा, कासिम बीकानेरी, महेंद्र जैन, बृजेंद्र गोस्वामी,  आदि उपस्थित थे।   




















डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
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आंगळी-सीध

आलोचना रै आंगणै

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