पुस्तक समीक्षा / डॉ. नीरज दइया
ईश्वर : हां, ना... नहीं’ : अतिसंवेदनशीलता में कविता का प्रवेश
ईश्वर : हां, ना... नहीं’ : अतिसंवेदनशीलता में कविता का प्रवेश
राजस्थान पत्रिका में 06-12-2020
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पुस्तक समीक्षा
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डॉ. नीरज दइया
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पुस्तक का नाम - जब भी देह होती हूँ (कविता संग्रह)
कवि - नवनीत पाण्डे
प्रकाशक - सर्जना, शिवबाड़ी रोड, बीकानेर
पृष्ठ- 80
संस्करण - 2020
मूल्य- 100/-
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स्त्री देह के अनेक रूपों पर केंद्रित कविताएं
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राजस्थान की समकालीन हिंदी कविता में एक प्रमुख नाम है- नवनीत पाण्डे। हाल ही में आपका पांचवां कविता-संग्रह ‘जब भी देह होती हूँ’ प्रकाशित हुआ है, इससे पूर्व ‘सच के आसपास’, ‘छूटे हुए संदर्भ’, ‘जैसे जिनके धनुष’ तथा ‘सुनो मुक्तिबोध एवं अन्य कविताएँ’ संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इस संग्रह की कविताओं में जीवन के अनेक चित्र-घटना-प्रसंग स्त्री केंद्रित अनुभूतियों का बड़ा कोलाज है। समकालीन कविता के विषयों में स्त्री-पुरुष संबंध, परस्पर मनःस्थितियों पर तरल अनुभूतियों की अनेक कविताएं पहले से मौजूद हैं, किंतु नवनीत पाण्डे के यहां स्त्री देह के अनेक रूपों में केंद्रित किए कविताओं के इस समुच्चय में संजोते हुए उसे देह से इतर देखने-समझने-समझाने के सघन प्रयास हुए हैं।
पुरुष समाज में स्त्री को केवल देह और उसके भोग के रूप में देखने और बरतने की बात नई नहीं है किंतु उसे बहुत कम शब्दों में कह देना कवि की विशेषता है- ‘काम चाहिए/ जरूर मिलेगा/ भरपूर मिलेगा/ पर!/ पर!/ इतना भी नहीं समझती/ जब भी बुलाऊँ/ आना होगा/ काम कराना होगा.... (काम चाहिए : पृष्ठ-56) कवि नवनीत पाण्डे एक जगह लिखते हैं- ‘सवाल करने का हक/ सिर्फ हमें है/ और तुम्हें हमारे/ हर सवाल का जवाब देना होगा/ समझी!/ या अपनी तरह समझाएँ....’ (पृष्ठ-57) इन कविताओं में पुरुष समाज का स्त्री और उसकी देह को अपने ढंग से समझने और समझाने का भरपूर अहम् भयावह रूप में मौजूद है। कवि स्त्री-पुरुष संबंधों में व्याप्त अव्यवस्थाओं को बहुत सहजता से खोलते हुए अपने पाठकों को सोचने पर मजबूर कर देता है कि यह क्या हो रहा है?
संग्रह की भूमिका में प्रख्यात कवयित्री सुमन केसरी ने लिखा है- ‘नवनीत पाण्डे के इस संग्रह की कविताएँ स्त्री को समर्पित हैं, किंतु वे अनेक सवाल उठाती हैं- वे स्त्री समाज द्वारा प्रदत्त कर्तव्यों को ही अंतिम सत्य मान लेने से इनकार करती कविताएँ हैं।’ संग्रह की कविताओं में स्त्री को उसकी अलग अलग अवस्थाओं में लक्षित कर देखने-परखने अथवा मुखरित करने के अनेक बिंब मौजूद हैं, जिनसे इनकी केंद्रीय चेतना किसी भी अंतस को प्रकाशवान बनने में अपनी भूमिका रखती है। शिल्प के स्तर पर अपनी लय को साधती इन कविताओं का कैनवास इक्कीसवीं शताब्दी के पूरे परिदृश्य को प्रस्तुत करते हुए हमारे विकास और सभ्यता के संदर्भों पर एक बड़ा प्रश्नचिह्न भी अंकित करती हैं। यही नहीं इन कविताओं को गुजरने के बाद हमारे भीतर संवेदनाओं की लहरें उठती हैं जो बड़े परिवर्तन की मांग है। संभवतः किसी रचना का यही बड़ा उद्देश्य होना चाहिए।
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डॉ. नीरज दइया
डॉ. नीरज दइया
बीकानेर स्थित राजस्थान राज्य अभिलेखागार देश और दुनिया का अद्वितीय अभिलेखागार है। वर्तमान समय की मांग को समझते हुए इसे डिजिटल कर दिया गया है कि हम घर बैठे सवा करोड़ से अधिक नायाब ऐतिहासिक-प्रशासनिक दस्तावेजों से रू-ब-रू हो सकते हैं। यहां ना केवल इतिहास की धरोहर को संजोए दस्तावेज ऑनलाइन किए गए हैं वरन पुस्तकालय की करीब 50 हजार से अधिक पुस्तकों को भी हम अंतराजल पर देख सकते हैं। इन दिनों सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण बात इस अभिलेखागार का अभिलेख म्यूजियम है, जिसे देख कर हर कोई अभिभूत हो जाता है। ‘अभिभूत’ शिष्ट शब्द है, इसके स्थान पर सामान्य भाषा में कहें तो कहें तो यह ‘पागल’ बना देने वाला संग्रहालय है। यहां सब कुछ इतने करीने से प्रस्तुत किया गया है कि यकीन करना कठिन है। यह सब धोरों की धरती राजस्थान के बीकानेर में स्थिति राजस्थान राज्य अभिलेखागार ने संभव कर दिखाया है। इस संग्राहल में प्रवेश करते ही जैसे यह अपनी जुबान खुद बोलता हुआ हमसे बतियाता है। इसकी बेहतरीन कार्य-योजनाओं व्यवस्थाओं को देखकर अच्छे-भले पढ़े-लिखे चकित होकर हर एक स्थल पर बस निहारने की मुद्रा में मूक मंत्र-मुग्ध रह जाते हैं। ऐसा ही कुछ हुआ मेरे साथ। अपने शहर में इतना विशाल अभिलेख संग्राहलय जिसे आश्चर्यलोक कहा जा सकता है को निर्मित किया गया है कि हैरत होती है।
मैं अपने पुराने दिनों में लौटता हूं तो मुझे अनेक दिनों-अवसरों का स्मरण होता है। जब मैं यहां आया और अभिलेखागार के निदेशक डॉ. महेन्द्र खड़गावत जी से मिला। वे बातों-बातों में उनके यहां हो रहे कार्यों की चर्चा अकसर किया करते थे। मैं कल्पना करता था कि यह बंदा इस ठंडे ऐतिहासिक विभाग में आराम से क्यों नहीं बैठ जाता है। कभी कुछ और कभी कुछ में लगा ही रहता है। जैसे खाली नहीं बैठने की सौगंध उठा रखी हो। कभी कोई योजना पर काम चल रहा है, तो कभी कोई कार्य पूर्ण होने को है। क्या यह एक सपना नहीं है कि अभिलेखागार की वेबसाइट पर अब एक क्लिक के साथ 55 लाख से अधिक रियासतकालीन ऐतिहासिक दस्तावेज देखे जा सकते हैं। रियासतकालीन ऐतिहासिक और प्रशासनिक दस्तावेजों को ऑनलाइन करना और मुगलकालीन फरमानों को हिंदी में अनुवाद कर पुस्तकाकार करवाना कोई सरल काम नहीं है।
मैंने 4.12 करोड़ की राशि से निर्मित अभिलेख म्यूजियम के बारे में अब तक सुना-सुना ही था और उसे देखने के बाद अहसास हुआ कि इसके निदेशक डॉ. महेंद्र खड़गावत के पास एक अभिनव दृष्टि है, जिससे वे भूत और भविष्य को एक साथ देख सकते हैं। वे इतिहास की इन धरोहरों को जिस दूरदर्शिता से सहेज कर हमें उपलब्ध करवाने के उपक्रम में वर्षों से लगे रहे हैं। ‘अभिलेख संग्रहालय’ देखकर तो ऐसा ही लगता है कि यदि अभिलेखागार के डॉ. खड़गावत को राजस्थान की सहृदय टाइम मशीन कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। वे ऐसे अधिकारी हैं जो अभिलेखागार में पहुंचने वाले हर आगंतुक का भरपूर स्वागत करते हैं और साथ ही अनेक विशिष्ट जनों को बहुत उत्साह के साथ आमंत्रित भी करते रहते हैं। बीकानेर में कोई बाहर से विशिष्ट आगंतुक आए तो उसकी खबर हमें अगले दिन पता चलती है कि अमुख श्रीमान ने अभिलेखागार देखा। उन्हें मशीन कहना भी शायद बेमानी होगा, क्यों कि जिस उत्साह और गर्म जोशी से हमें प्रभावित करते हैं ऐसा प्रभाव और कर्य-निष्ठा तो किसी मशीन में मिलना नामुमकिन ही हैं, इसलिए ‘सहृदय’ टाइम मशीन विशेषण अनुकूल है। वे सरल, सहज, मिलनसार और विलक्ष्ण व्यक्तित्व के धनी हैं। अपने अध्ययन-चिंतन-ममन से वे अपना अमिट प्रभाव बनाने में सक्षम हैं। बहुत बार तो मैंने देखा है कि वे स्वयं अभिलेखागार के कोने-कोने में अवलोकन कराते हुए इतनी सूक्ष्मताओं से ऐतिहासिक तथ्यों को व्याख्यायित करते हमें मोहित करते हैं।
इतिहास में मानव जाति का मूक वजूद घड़कता है। इसकी धड़कनों को सुनना इतना सहज-सरल और हर किसी के वश की बात नहीं है। मुगलकालीन इन साक्ष्यों की भाषा फारसी होना एक बड़ा भारी प्रतिरोध हो सकता है। इसको ध्यान में रखते हुए 327 फरमानों को फारसी से हिंदी में अनुवाद करवा ‘मुगलकालीन भारत एवं राजपूत शासक’ जैसी महत्त्वपूर्ण पुस्तक को चार खंड़ों से यहां से प्रकाशित करवाया गया है। इतना ही नहीं 65 लाख अभिलेखों की माइक्रोफिल्मिंग और 240 से अधिक स्वतंत्रता सेनानियों के दर्लभ ऑडियो संग्रह का अनुपम कार्य भी ऑनलाइन किया जा चुका है। राजस्थानी भाषा की तत्कालीन बोलियों में अनेक दस्तावेज ई-अभिलेखागार में रखें हुए हैं जो निसंदेह विस्मयकारी दस्तावेज और धरोहर है। फरमान, निशान, मंशूर, बही, पट्टा-परवाना की धरोहर सहेजने वाले इस अभिलेखागार की बसावट की बात करें तो यह 1934 में बीकानेर के महाराजा गंगासिंह द्वारा बनाया गया था। उनकी रुचि के रहते इस इमारत में तत्कालीन समय में अनेक नवाचार किए गए हैं।
अभिलेख संग्राहलय में हमारे विस्मय की सीमा नहीं रहती जब हम मुगल साम्राज्य के सेनापति राजपूत शासक जयसिंह प्रथम और मराठा छत्रपति शिवाजी महाराज के बीच 11 जून, 1665 को हुई पुरन्दर की संधि का 22 फीट (670.56 सेंटीमीटर) लंबे विशालकाय लिखित प्रारूप को सुसज्जित देखते हैं। हमारे अतीत के अवलोकन का यह राजकीय उपक्रम राज्य अभिलेखागार 1955 में राजस्थान के जयपुर में स्थापित हुआ और इसे 1963 में बीकानेर में स्थानांतरित किया गया था। तब से इसका क्रमिक विकास हुआ और इस शताब्दी में यह विकास चरम पर है। यहां बीकानेर, जयपुर, जोधपुर, सिरोही आदि रियासतों के समृद्ध इतिहास श्रोतों का प्रबंधन व्यक्तिगत रुचि लेकर किया गया है। हम 17 वीं शताब्दी से आरंभ हुए भारत की अनेक ऐतिहासिक धरोहरों और खासकर राजपूताना की धरोहरों को इतनी बड़ी संख्या में विविध आयामों के साथ केवल यहीं पाते हैं।
यहां शिवाजी, महाराणा प्रताप और टेस्सीटोरी जैसे अनेक स्थल अभिलेखागार की महती धरोहर हैं। यहां विपुल मात्रा में अनेक दस्तावेजों को न केवल ऑनलाइन कर दुनिया भर के लिए सुलभ कर दिया गया है, वरन मुगलकालीन बादशाहों के मूल पत्रों, विभिन्न दस्तावेजों, प्रमाणों को भी अत्याधुनिक तकनीकों द्वारा सहेजा का उपक्रम हुआ है। अभिलेख म्यूजियम निसंदेह एक नवाचार है। विश्व के शीर्ष डिजिटल अभिलेखगार की श्रेणी में स्थान पाने का अभिप्राय यहां दूर दूर से अनेक शोधार्थी विशद शोध के लिए आएंगे। इतालवी भाषाविद एल.पी. टेस्सीटोरी दीर्घा इस बात का प्रमाण है कि एक शोधार्थी अपने कार्यों से स्वयं कितना महान बन सकता है। दस्तावेज दीर्घा, टेस्सीटोरी दीर्घा, ताम्रपत्र दीर्घा, प्रदर्शनी दीर्घा और संरक्षण प्रयोगशाला यहां के प्रमुख आकर्षण हैं। जैसे यहां हर दीर्घा में हमें मुग्ध और मोहित करने का कोई मंत्र सिद्ध किया गया है कि जब हम एक से दूसरी में प्रवेश करते हैं तो यह फैसला करना कठिन हो जाता है कि कौनसी अधिक महत्त्वपूर्ण है।
जिस कार्य को करने में पहले बहुत समय लगता था उसे अब जल्द से जल्द किए जाने में सक्षमता प्राप्त हो चुकी है। प्रदेश के स्वतंत्रता संग्राम और प्रजा मंडल के अभिलेख के साथ ही आम जन को अपनी जमीन के पट्टे, नक्सा, बही आदि खोजने में सुगमता हुई है। यहां अभिलेखों को निशुल्क देखने की आम जन को सुविधा दी गई है। यहां हमें हमारे वर्तमान से इतिहास में जाने का, उसे देखने-समझने-परखने का सुगम और मनभावन मार्ग मिल रहा है।
डॉ. नीरज दइया
9/27/2020 | No comments |
9/12/2020 | No comments |
"सृजन-संवाद" नाम से केंद्रित पुस्तक उन रचनाकारों पर केंद्रित है जिन्हें
केंद्रीय साहित्य अकादेमी,दिल्ली से सम्मान मिल चुका है,ऐसे ही साहित्य के
प्रति समर्पित और आशावान लेखक भाई डॉ नीरज दइया का एक साक्षात्कार पिछले
दिनों अपने बीकानेर प्रवास के दौरान लिया था, वह इस पुस्तक में प्रकाशित
हुआ है।
बेहद विन्रम और सौम्य नीरज दइया जी पेशे से शिक्षक है मैंने
उन्हें स्कूल में भी बच्चों को उन्मुक्त भाव से पढ़ाते हुए देखा है कि किस
कदर वे अपना सौ प्रतिशत अपने स्कूल के स्टूडेंट्स को देते है,उतने ही
चिर-परिचित वे साहित्यिक गलियारे में भी सक्रिय है।
पुस्तक का प्रकाशन,
किताबगंज ,गंगापुर सिटी ने किया है,जिन्होंने दो वर्ष पहले मेरा भी
व्यंग्य संग्रह लालित्य ललित के श्रेष्ठ व्यंग्य प्रकाशित किया था।बहरहाल
यह पुस्तक मात्र 300/-में उपलब्ध है।पुस्तक के संपादक डॉ नीरज दइया है।
इस पुस्तक में अधिकांश लेखक अपने मित्र है।
डॉ. लालित्य ललित
8/09/2020 | No comments |
7/25/2020 | No comments |
7/15/2020 | No comments |
कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018
कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)