पुस्तक समीक्षा-
सुपरिचित कहानीकार रजनी मोरवाल अपने पहले उपन्यास "गली हसनपुरा" में हमें अमर प्रेम की एक दर्द भरी दास्तान से रू-ब-रू कराती है । उपन्यास की नायिका मीरकी और उन जैसी अनेक नायिकाओं के सच्चे किंतु त्रासद प्रेम और संघर्ष को किसी इतिहास में दर्ज नहीं किया है । यह उपन्यास एक ऐसी गली का दृश्यावलोकन और दस्तावेज है जो अनेक मार्गों और पड़ावों से होते हुए हमें एक हसनपुरा को समग्रता में देखने की दृष्टि देता है । उपन्यास का मूल सूत्र है- जीवन कितना भी बेढ़ब, विषम और विद्रूप क्यों ना हो, किंतु वह अपनी असीम संभावनाओं और संरचना में सौंदर्य, प्रेम और संघर्ष का सदैव वाहक होता है।
उपन्यासकार रजनी मोरवाल ने ‘अपनी बात’ में स्पष्ट किया है कि यह उपन्यास मीरकी के वास्तविक जीवन पर आधारित है । लेखिका ने मीरकी के माध्यम से एक ऐसे पूरे जीवन को सत्रह अध्यायों में बटोरते हुए स्त्री आत्मसंघर्ष, प्रेम और सपनों को अनेक सूत्रों के साथ कलात्मक रूप में संजोया है । भाषा-शिल्प द्वारा यहां कल्पनाएं भी वास्तविकताओं के रूप में प्रस्तुत हुई है । कहना होगा, यह उपन्यास स्त्री गौरव की एक अद्वितीय गाथा है । हमारे आस-पास हसनपुरा जैसे अनेक हसनपुरा हैं, जो सत्ता और उसके पक्षकारों से सवाल पूछ रहे हैं कि आजादी के बाद विकासित होते समाज में ऐसे वर्ग दबे-कुचले और अधिकारों से वंचित लोग क्यों है? यह एक प्रतीकात्मक कथा है, जो स्थितियों के लिए जिम्मेदार पक्ष को तलाशती है।
आजादी के बाद बदलते समय और समाज की पृष्ठभूमि से जुड़े इस उपन्यास में मीरकी के पिता का परिवार पाकिस्तान से भारत आया था । जिसमें कुल जमा दो सदस्य थे- उसके पिता और उसकी दादी । जिसने दंगों में अपनी और अपने बेटे यानी मीरकी के पिता की जैसे-तैसे जान बचाई और यहां आकर शहर के बाहर आज के गली हसनपुरा की नींव रखी । ऐसे गंदे इलाके में इस बस्ती का यह सिलसिला आरंभ हुआ कि फिर थमा ही नहीं, और वहां ऐसे ही दबे-कुचले अपना घर छोड़ आए लोगों ने आसरा लिया । शहर का विकास होता गया लेकिन गली हसनपुरा का विकास नहीं हुआ और फिर भी यह इलाका शहर के बीच आ गया ।
उपन्यास में मुख्य कथा के समानांतर अनेक उपकथाएं हैं, जिनमें विविध व्यंजनाओं के साथ मुख्य कथा पोषित होती है । एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी और उसके बाद अगली पीढ़ी को जोड़ते हुए उपन्यास के फलक को विस्तार दिया गया है । जीवन-संघर्ष मूलतः रोटी का है । पेट भरने की और जीवन जीने की ऐसी कोई गली भले वह हसनपुरा हो अथवा कोई दूसरी, लेखिका का मानना है कि कोठरता के बीच जीवन की कोमल और सूक्ष्म भावनाएं नष्ट नहीं होती हैं । इस समाज में जहां झाला चौधरी जैसे दानव हैं तो वहीं बनवारी जैसे देवता मनुष्य भी । ऐसा तो समाज में होता ही रहा है फिर यह प्रतिप्रश्न किया जा सकता है कि इस उपन्यास में नया क्या है? नया है इस हसनपुरा का भाषा-सौंदर्य और ऐसे शिल्प से प्रेम का विस्तारित रूप हमारे समक्ष प्रस्तुत करने का कौशल जो हमारे भीतर नई स्थापनाएं करते हुए प्रेम के उद्दात रूप को प्रतिस्थापित करता है। उपन्यास अपनी आंचलिक भाषा-शैली और संवादों से पठनीय बन पड़ा है । मीरकी-बनवारी का प्रेम राजस्थान की प्रसिद्ध प्रेमकथा महेंद्र-मूमल के प्रसंग से पोषित और उसी के समानांतर अधूरा और अविस्मरणीय चित्रित हुआ है।
- डॉ. नीरज दइया
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उपन्यास : ‘गली हसनपुरा’
उपन्यासकार : रजनी मोरवाल
प्रकाशक : आधार प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, एस.सी.एफ. 267, सेक्टर-16, पंचकूला (हरियाणा)
पृष्ठ : 128 ;
मूल्य : 120/- (पेपर बैक)
संस्करण : 2020
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