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Saturday, February 08, 2020

स्त्री के गौरव की अद्वितीय गाथा : गली हसनपुरा

पुस्तक समीक्षा- 
    सुपरिचित कहानीकार रजनी मोरवाल अपने पहले उपन्यास "गली हसनपुरा" में हमें अमर प्रेम की एक दर्द भरी दास्तान से रू-ब-रू कराती है । उपन्यास की नायिका मीरकी और उन जैसी अनेक नायिकाओं के सच्चे किंतु त्रासद प्रेम और संघर्ष को किसी इतिहास में दर्ज नहीं किया है । यह उपन्यास एक ऐसी गली का दृश्यावलोकन और दस्तावेज है जो अनेक मार्गों और पड़ावों से होते हुए हमें एक हसनपुरा को समग्रता में देखने की दृष्टि देता है । उपन्यास का मूल सूत्र है- जीवन कितना भी बेढ़ब, विषम  और विद्रूप क्यों ना हो, किंतु वह अपनी असीम संभावनाओं और संरचना में सौंदर्य, प्रेम और संघर्ष का सदैव वाहक होता है।
    उपन्यासकार रजनी मोरवाल ने ‘अपनी बात’ में स्पष्ट किया है कि यह उपन्यास मीरकी के वास्तविक जीवन पर आधारित है । लेखिका ने मीरकी के माध्यम से एक ऐसे पूरे जीवन को सत्रह अध्यायों में बटोरते हुए स्त्री आत्मसंघर्ष, प्रेम और सपनों को अनेक सूत्रों के साथ कलात्मक रूप में संजोया है । भाषा-शिल्प द्वारा यहां कल्पनाएं भी वास्तविकताओं के रूप में प्रस्तुत हुई है । कहना होगा, यह उपन्यास स्त्री गौरव की एक अद्वितीय गाथा है । हमारे आस-पास हसनपुरा जैसे अनेक हसनपुरा हैं, जो सत्ता और उसके पक्षकारों से सवाल पूछ रहे हैं कि आजादी के बाद विकासित होते समाज में ऐसे वर्ग दबे-कुचले और अधिकारों से वंचित लोग क्यों है? यह एक प्रतीकात्मक कथा है, जो स्थितियों के लिए जिम्मेदार पक्ष को तलाशती है।
    आजादी के बाद बदलते समय और समाज की पृष्ठभूमि से जुड़े इस उपन्यास में मीरकी के पिता का परिवार पाकिस्तान से भारत आया था । जिसमें कुल जमा दो सदस्य थे- उसके पिता और उसकी दादी । जिसने दंगों में अपनी और अपने बेटे यानी मीरकी के पिता की जैसे-तैसे जान बचाई और यहां आकर शहर के बाहर आज के गली हसनपुरा की नींव रखी । ऐसे गंदे इलाके में इस बस्ती का यह सिलसिला आरंभ हुआ कि फिर थमा ही नहीं, और वहां ऐसे ही दबे-कुचले अपना घर छोड़ आए लोगों ने आसरा लिया । शहर का विकास होता गया लेकिन गली हसनपुरा का विकास नहीं हुआ और फिर भी यह इलाका शहर के बीच आ गया ।
    उपन्यास में मुख्य कथा के समानांतर अनेक उपकथाएं हैं, जिनमें विविध व्यंजनाओं के साथ मुख्य कथा पोषित होती है । एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी और उसके बाद अगली पीढ़ी को जोड़ते हुए उपन्यास के फलक को विस्तार दिया गया है । जीवन-संघर्ष मूलतः रोटी का है । पेट भरने की और जीवन जीने की ऐसी कोई गली भले वह हसनपुरा हो अथवा कोई दूसरी, लेखिका का मानना है कि कोठरता के बीच जीवन की कोमल और सूक्ष्म भावनाएं नष्ट नहीं होती हैं । इस समाज में जहां झाला चौधरी जैसे दानव हैं तो वहीं बनवारी जैसे देवता मनुष्य भी । ऐसा तो समाज में होता ही रहा है फिर यह प्रतिप्रश्न किया जा सकता है कि इस उपन्यास में नया क्या है? नया है इस हसनपुरा का भाषा-सौंदर्य और ऐसे शिल्प से प्रेम का विस्तारित रूप हमारे समक्ष प्रस्तुत करने का कौशल जो हमारे भीतर नई स्थापनाएं करते हुए प्रेम के उद्दात रूप को प्रतिस्थापित करता है। उपन्यास अपनी आंचलिक भाषा-शैली और संवादों से पठनीय बन पड़ा है । मीरकी-बनवारी का प्रेम राजस्थान की प्रसिद्ध प्रेमकथा महेंद्र-मूमल के प्रसंग से पोषित और उसी के समानांतर अधूरा और अविस्मरणीय चित्रित हुआ है। 
- डॉ. नीरज दइया
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उपन्यास : ‘गली हसनपुरा’  
उपन्यासकार : रजनी मोरवाल
प्रकाशक : आधार प्रकाशन प्राइवेट लिमिटेड, एस.सी.एफ. 267, सेक्टर-16, पंचकूला (हरियाणा) 
पृष्ठ : 128 ; 
मूल्य : 120/- (पेपर बैक) 
संस्करण : 2020
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संपर्क : डॉ. नीरज दइया, सी-107, वल्लभ गार्डन, पवनपुरी, बीकानेर- 334003 
E-mail : drneerajdaiya@gmail.com / Mob. 9461375668

डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

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अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

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