कहानियां ऐसी जो बाल मन को छू जाए / नीरज दइया
बालकों की पुस्तक में किसी रचनाकार द्वारा यह चर्चा कि बाल साहित्य कैसा हो? शायद अनावश्यक है। बाल साहित्य की पुस्तकें बाल पाठकों के लिए होती है। निसंदेह लेखक ने बाल साहित्य के स्वरूप और स्वभाव को लेकर जो चिंताएं प्रस्तुत की है वे सभी उचित भी है किंतु देखना यह है कि वे स्वयं उन बातों का अपने लेखन में पालन कर पाते हैं अथवा नहीं। कथानक, कथोपकथन, देशकाल और वातावरण, सरल भाषा-शैली, प्रेरक पात्र एवं सटीक उद्देश्य को ध्यान में रखकर कहानी की रचना करना आवश्यक होता है किंतु इन सब को ध्यान में रखते हुए कहानी किसी सूत्र से बनी हुई सायास रचना भी नहीं होती है। सृजक निसंदेह किसी फूल का निर्माण नहीं करता है किंतु वह जिस कागज के फूलों की सृजना से प्राकृतिक फूलों जैसा अहसास देता है वही उसकी सृजना होती है। कहानी के संदर्भ में कहानी में घटना को लेखक ही शब्दबद्ध करता है किंतु वह पृष्ठ पर शब्द-दर-शब्द ऐसे रची जाए कि ऐसा नहीं लगे कि उसके पात्र कठपुलतियों की भांति संचालित हो रहे हैं। जीवन का चित्रण घटना में जिस स्वाभाविकता, सहजता और सरलता की मांग करता है, उसे संग्रह की कुछ कहानियों में जानना-समझना जरूरी है। अच्छी बात यह है कि संग्रह की सभी कहानियां बच्चों की दुनिया और उनकी गतिविधियों-क्रियाकलापों से एकत्रित की गई है।
शीर्षक कहानी की भांति ‘सुधा की जीत’ कहानी में भी बाल सभा का आयोजन है। जो विद्यार्थी स्वयं में कुछ कर गुजरने का हौसला और हिम्मत लेकर आगे बढ़ते हैं वही सफल होते हैं। कहानी में सुधा का कविता बोलना और अपनी प्रतिभा पर विश्वास रखना ही उसकी जीत का कारण बनता है। कहानी ‘घमंडी रीता’ में रीता का घमंड मीना दूर करती है तो ‘अनूठी दोस्ती’ में रमेश और महेश के सहयोग-सद्भाकव से दोस्ती का अनुपम संदेश दिया गया है। इसी भांति कहानी ‘बहुमूल्य उपहार’ में पापा ने पीयूष को जन्मदिन पर साधारण पेन दिया और कहानी के अंत में ध्रुव तारे के माध्यम से संदेश। यहां यह सवाल उठता है कि क्या बच्चे सीधे साधे होते हैं और वे कोई संदेश सीधा ले लेते हैं। फिर हमारी कहानी में उन्हें यंत्र की भांति क्यों अंत में संदेश दे दिया जाता है।
‘चाय वाला भग्गू’ कहानी में एक शिक्षक का किसी बच्चे को शिक्षा से जोड़ना बेहतर उदाहरण है। बालकों में किसी चाय वाले बच्चे को छेड़ना भी स्वभाविक है किंतु क्या उन्हें सीधे सीधे रोकने से वे मानने वाले हैं इस सवाल पर विचार होना चाहिए। कहानी ‘भूल का अहसास’ में दीपक और सुयश की दोस्ती-दुश्मनी या कहें आपसी ईर्ष्या अध्यापक के कथन का इंतजार कर रही थी। भूल का अहसास जैसी बात ‘बचत की सीख’ कहानी में भी देख सकते हैं। बचत की सीख देना अच्छी बात है। सभी इस बात का स्वागत और समर्थन करते हैं किंतु जमीनी सच्चाई और धरातल पर उतर कर देखेंगे कि बच्चे बहुत कुछ पहले से जानते हैं और पढ़े हुए को पढ़ाना जरा कठिन है।
‘लगन का फल’ में शुद्ध शब्द का प्रयोग करना कहानी के केंद्र में है और अध्यापक द्वारा बच्चों को अभ्यास द्वारा सीखने के लिए प्रेरित करना प्रभावशाली है। स्वयं सीखना बहुत अच्छी बात है। बच्चों में अखूट ऊर्जा का भंडार है। आवश्यकता है उस ऊर्जा को पहचानने की। जैसे कहानी ‘भय का भूत’ में अपनी ऊर्जा पहचान भले ही एक झूठ के माध्यम से होती है किंतु संदेश यह कि बच्चे अगर किसी काम को करने की ठान ले तो वे कर सकते हैं। कहानियों में कथानक के मूर्त होने में जिस धैर्य की आवश्यकता होती है वह लेखक का धैर्य ‘रवि की सूझबूझ’ कहानी में देखा जा सकता है। कहानी के अंत का यह अनुच्छेद देखें- ‘‘फोटो खींचने और वीडियो बनाने वालों के चेहरे शर्म से झुके हुए थे। रविन्दर से रहा नहीं गया और वह फट पड़ा- अरे, क्या हो गया? जब हमारे साथी की जान बचा रहे थे तब फोटो खींचते और वीडियो बनाते ना! बड़े बहादुर बनते हो....। जो किसी की रक्षा नहीं कर सकते उन्हें इंसान कहलाने का कोई हक नहीं है।” पगड़ी के माध्यम से किसी बच्चे को पंद्रह बीस फीट गहरी खाई से निकलना एक युक्ति है किंतु इसका समाजिक सच लोगों का संवेदनहीन होना और अपडेट में लगे रहना आज की सच्चाई है जिसे बच्चों के समुख समय रहते प्रस्तुत कर दिया जाना चाहिए।
हमारे बाल साहित्यकारों की त्रासदी यह है कि वे बच्चों को बच्चा ही समझते हैं उन्हें समझना चाहिए कि वे अब बड़े हो गए हैं नवीन तकनीक और आधुनिकता के रहते वे समय से पहले बड़े बन चुके हैं तो बाल साहित्य में सांकेतिकता और सूक्ष्मता को सामाहित कर लेना चाहिए। यहां इतना सब कुछ लिखने की आवश्यकता इसलिए भी है कि यह लेखक का सातवां बाल कथा संग्रह है। अंत में एक बहुत जरूरी बात यह कि कहानियों में प्रयुक्त चित्र गूगल से साभार लिए गए हैं। कहानियों में यथा स्थान चित्र प्रयुक्त भी हुए हैं किंतु इन सब से इन कहानियों की मार्मिकता और प्रभाव में कहीं कमी महसूस होती है। बेहतर होता है कि संग्रह में प्रकाशक द्वारा रचना के अनुसार किसी चित्रकार से अच्छे और उपयुक्त चित्र बनवाने का श्रम किया जाए। जैसे आवरण पृष्ठ का चित्र Raj Bijarnia से बनवाया भी गया है, वह पुस्तक के अनुकूल और प्रभाव को द्विगुणित करने वाला है।
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पुस्तक : 56 रोटियां (बाल कथा-संग्रह) लेखक : तरुण कुमार दाधीच
प्रकाशक : अनुविंद पब्लिकेशन, ए-112, हिरणमगरी, सेक्टर नंबर- 14, उदयपुर / संस्करण : 2018 / पृष्ठ : 56 / मूल्य : 90/-
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बाल वाटिका : जनवरी, 2020 अंक में प्रकाशित
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