Sunday, January 05, 2020

कविताओं में बच्चों की दुनिया / नीरज दइया

बाल साहित्य संवर्द्धन योजना के अंतर्गत चित्रा प्रकाशन द्वारा अनेक पुस्तकों का प्रकाशन किया गया है। इनमें से तीन संग्रह मेरे सामने हैं और संयोग से तीनों ही बाल कविताओं के हैं। बाल साहित्य में सुपरिचित हस्ताक्षर अब्दुल समद राही का संग्रह ‘चुनचुन-चुनमुन’ के साथ बाल साहित्य में बाल कविता संग्रह के माध्यम से प्रथम किंतु सशक्त प्रयास करने वाले प्रहलादसिंह झोरड़ा का ‘चाँद खिलौना’ और ईंजी. आशा शर्मा का ‘अंकल प्याज’ अपनी रचनात्मकता के बल पर बच्चों को प्रभावित करने वाले कहें जाएंगे।
    तीनों ही संग्रहों की विभिन्न कविताओं में बच्चों की दुनिया को उकेरा गया है। बच्चों की कविताएं को लेकर जो कुछ आधारभूत बातें कही जाती है, जैसे- कविताएं आकार में छोटी होनी चाहिए, कविताओं में एक लय का निर्माण होना चाहिए, सरल सहज तुकांत शब्दावली में प्रयुक्त बिम्ब बाल बोधगम्य एवं मन को छूने वाले होने चाहिए आदि सभी बातों से ये रचनाकार परिचित हैं। इसका एक कारण संभवतः यह भी है कि इनका प्रकाशन चित्रा प्रकाशन द्वारा किया गया है और संपादक-प्रकाशक-लेखक राजकुमार जैन राजन की देख रेख और अनुभव का लाभ भी इन कृतियों को मिला है। कविताओं के चयन से लेकर उनकी साज-सज्जा और प्रस्तुतिकरण में राजन की भूमिका प्रकाशक के रूप में मुह बोलती है।
कवि अब्दुल समद राही के संग्रह ‘चुनमुन-चुनमुन’ में 17 कविताएं हैं, जिनमें फूल, तितली, मोर, भालू, आलु-भिंडी, चांद और राजस्थान आदि के साथ सांस्कृतिक रंगों को कविताओं में पिरोया गया है। शीर्षक कविता ‘चुनमुन-चुनमुन’ में सब का दिल बहलाने वाली सयानी गुड़िया के ठुमक-ठुमक नाच और चुनमुन-चुनमुन गान को सुंदर ढंग से कवि ने प्रस्तुत किया है। इन कविताओं की खूबी यही है कि इनमें सहजता-सरलता के साथ वचपन को विविध रंगों के साथ प्रस्तुत किया गया है। राही का लेखन विविध विधाओं में है और उनका प्रौढ़ कवि मन भी कहीं कहीं इन कविताओं में देखा जा सकता है। जैसे- ‘फूल हमेशा हंसते रहते/ कांटों का वह दर्द सहते।’ जैसी पंक्तियों में बाल मन के लिए यह समझना कठिन है कि कांटों का वह दर्द कैसे सहते हैं? कविताओं में किसी उपदेश को आरोपित किए जाने से उनकी सहजता लुप्त होती है। जैसे- फूल कविता में ‘तिलती रानी आती है/ डाल डाल पर जाती है।’ बेहद सुंदर और सरल-सहज पंक्तियां हैं किंतु इससे आगे की पंक्तियां देखें- ‘बच्चों जब तुम बाग में जाओ/ फूलों के मत हाथ लगाओ।’ यह संदेश और अंत में ‘फूलों की तुम खुशबू पाना, जीवन को अपने महकाना।’ में फूलों को हाथ हाथ नहीं लगाने को अभिधा में कहने से आनंद कम हो जाता है। इससे पूर्व में ‘कलियां भी इठलाती है, भंवरों संग बतियाती हैं।’ और ‘गुन-गुन भंवरे गाते हैं, मन ही मन इठलाते हैं।’ में जो बाल मन को पुलकित करने की क्षमता है वह अनुकरणीय है। संग्रह की कुछ कविताओं में नवीनता बोध भी उल्लेखनीय है, जैसे- ‘अरे ओ कंप्यूटर भाया/ गजब की तेरी माया।/ हार्डवेयर, साफ्टवेयर से,/ बनी है जो तेरी काया।’ अब्दुल समद राही से बाल साहित्य को बहुत आशाएं और उम्मीदें हैं जिसे वे लगातार पूरा करते के लिए लंबे समय से सक्रिय हैं।  
कवि प्रहलादसिंह झोरड़ा के संग्रह ‘चाँद खिलौना’ में 23 कविताएं हैं, जिनमें बच्चों के जन्मदिन से लेकर उनके पढ़ने-लिखने और आगे बढ़ने के प्रसंगों के साथ उनकी अपनी हंसती-गाती गुनगुनाती रंगीन दुनिया और उनके सुनहरे सपने है। कविताओं में परियां हैं तो विभिन्न त्यौहारों के सांस्कृतिक रंगों के बीच घर-परिवार की खुशियों के अनेक छोटे-बड़े ब्यौरे मनभावन विवरण बिंबों में आए हैं। सबसे पहले शीर्षक कविता ‘चाँद खिलौना’ की बात की जाए। सियाराम शरण गुप्त कि बहुत प्रसिद्ध कविता है- 'मैं तो वही खिलौना लूँगा' मचल गया दीना का लाल जैसी भावभूमि पर झोरड़ा की कविता है। चाँद सदा से ही बच्चों को लुभाता रहा है। कभी मामा के रूप में तो कभी खिलौने के रूप में इसे कवियों ने कविताओं में पिराया है। हर कवि का किसी बिम्ब और भाव-भूमि को देखने समझने और अभिव्यक्त करने का अपना दृष्टिकोण होता है और यहीं कवि कौशल से अपनी परंपरा का विकास भी होता है। संग्रह की इस कविता में बच्चा अपनी माँ से कह रहा है- ‘पत्थर फैंक गिराओ मम्मी।/ चाँद खिलौना लाओ मम्मी।’ संग्रह की कविताओं में बाल मनोभावों के साथ-साथ उनकी क्रीड़ाओं में उमंग और उत्साह भी भरपूर है।
     ‘जन्मदिन’ कविता की अंतिम पंक्तियां देखें- मुझको जो अच्छे लगते हैं/ मम्मी वो पकवान बनाती/ मुझको लंबी उम्र दिलाने/ जग के सारे देव मनाती/ मेहमानों के पगफेरे से/ आँगन को मिलता परिवार/ मम्मी, पापा, भाई बहन/ सखा सभी देते उपहार।’ यहां आँगन को परिवार मिलने की महत्त्वपूर्ण सीख प्रकारांतर से विभिन्न रूपों में इन कविताओं की उपलब्धि है। सभी कविताओं में गेयता और सरलता-सहजता मनमोहक है। ‘दादी का चश्मा’ में दादी अम्मा अपने ही सर पर चश्मा लगाए चश्मा ढूंढ़ रही है तो एक अन्य कविता में बच्चे को कोई समझा नहीं रहा वह खुद ही कह रहा है कि ‘पढ़ लिखकर होशियार बनूंगा/ मैं भी थानेदार बनूंगा।’ कहा जा सकता है कि कवि प्रहलादसिंह झोरड़ा निश्चय ही अपनी रचनात्मकता से कीर्तिमान स्थापित करेंगे।           कवयित्री ईंजी. आशा शर्मा के संग्रह ‘अंकल प्याज’ में 24 कविताएं हैं। संग्रह की प्रथम कविता ‘अंकल प्याज’ में कवयित्री लिखती हैं- ‘गोलू-मोलू अंकल प्याज/ सिर पर रखते लंबा ताज/ बड़ी तोंद में छिपा रखें हैं/ क्या तुमने सेहत के राज।’ प्याज में सेहत के राज हैं यहां तक तो बात बाल मनोभावों के अनुकूल कही जा सकती है किंतु आगे की पंक्तियों में ‘बात हमें बतलाओ आज/ क्या तुमको है काम न काज/ भाव बढ़ा सरकार हिलाते/ तुम हो पक्के ड्रामे बाज।’ में निहित अर्थ बहुत भारी है और यह बच्चों की सेहत के लिए ठीक भी नहीं है। सब्जी मंडी पर राज और रसोई के सरताज से बात सीधी सरकार हिलाने तक ले जाने में साम्य नहीं है। बाल कविताओं की दुनिया में रचनाकार को बच्चों के संग बच्चा बनना होता है और अपनी समझदारी से परे उन्हीं की दुनिया से गुड़िया, गुब्बारे, चिड़िया, चूहे, रेल आदि बटोरने में तुक की यांत्रिका से दूर बाल मनोविज्ञान को समझना जरूरी है। कवयित्री आशा शर्मा अपनी बाल कविताओं के माध्यम से अनेक प्रेरक संदेश बच्चों को देना अनिवार्य समझती हैं। जैसे उनकी ‘चिड़िया’ कविता की बात करें तो इन पंक्तियों को देखें- ‘खिड़की पर आ जाती चिड़िया/ मीठा गीत सुनाती चिड़िया/ आलस त्यागो - बिस्तर छोड़ो/ चीं-चीं शोर मचाती चिड़िया।’ यहां खिड़की पर चिड़िया के आने और मीठा गीत सुनाने पर कोई आपत्ति नहीं है किंतु यह मीठे गीत में आलस त्यागो - विस्तर छोड़ो सीधे-शीधे चीं-चीं शोर मचाते हुए क्यों कहती है? गीत में यह शोर कविता की अंतिम पंक्तियों में इस रूप में है- ‘दिन भर उड़ती - फिरती चिड़िया/ फिर भी तनिक न थकती चिड़िया/ जल्दी सोना जल्दी उठना/ आदत तेरी लगती चिड़िया।’
    प्रौढ़ लेखन की तुलना में बाल साहित्य लेखन कठिन इसलिए मान गया है कि इसमें बाल सुलभता और सहजता प्राप्त करना आसान नहीं होता है। किसी विचार को शिक्षा केंद्रित करते हुए कविताएं बच्चों के लिए लिखना एक बात है और उन कविताओं में बाल मन की अनुभूतियों की अनुगूंज होना दूसरी बात है। आशा है कि आशा शर्मा अपने पहले कदम को दूसरे कदम तक विस्तारित करते हुए अपनी अनुभूतियों को आगे साझा करेंगी।
    तीनों संग्रह हमें बच्चों की रूपहली दुनिया से परिचित कराते हैं। अब तक अनेक कवियों ने अनेक बाल कविताएं लिखी हैं। एक ही विषय पर अलग अलग ढंग से लिखी अनेक कवियों की रचनाएं उदाहरण के तौर पर देखी जा सकती है। नई कविताओं को लिखने से पहले हमारा पहला दायित्व हमारी आवश्यकताओं के आकलन और पूर्ववर्ती रचनाओं से परिचित होना होता है।
--------------------------------
बाल कविताओं के तीन संग्रह- चुनमुन-चुनमुन / अब्दुल समद राही ; चाँद खिलौना / प्रहलादसिंह झोरड़ा ; अंकल प्याज / ईंजी. आशा शर्मा    
---------------------
तीनों संग्रहों के प्रकाशक- चित्रा प्रकाशन, आकोला (राज.) ; प्रथम संस्करण- 2017 ; पृष्ठ- 32  मूल्य- 60/-

समीक्षक : डॉ. नीरज दइया, बीकानेर (राज.)   बाल वाटिका मई 2018
 


0 टिप्पणियाँ:

Post a Comment

डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
© Dr. Neeraj Daiya. Powered by Blogger.

आंगळी-सीध

आलोचना रै आंगणै

Labels

101 राजस्थानी कहानियां 2011 2020 JIPL 2021 अकादमी पुरस्कार अगनसिनान अंग्रेजी अनुवाद अतिथि संपादक अतुल कनक अनिरुद्ध उमट अनुवाद अनुवाद पुरस्कार अनुश्री राठौड़ अन्नाराम सुदामा अपरंच अब्दुल वहीद 'कमल' अम्बिकादत्त अरविन्द सिंह आशिया अर्जुनदेव चारण आईदान सिंह भाटी आईदानसिंह भाटी आकाशवाणी बीकानेर आत्मकथ्य आपणी भाषा आलेख आलोचना आलोचना रै आंगणै उचटी हुई नींद उचटी हुई नींद. नीरज दइया उड़िया लघुकथा उपन्यास ऊंडै अंधारै कठैई ओम एक्सप्रेस ओम पुरोहित 'कागद' ओळूं री अंवेर कथारंग कन्हैयालाल भाटी कन्हैयालाल भाटी कहाणियां कविता कविता कोश योगदानकर्ता सम्मान 2011 कविता पोस्टर कविता महोत्सव कविता-पाठ कविताएं कहाणी-जातरा कहाणीकार कहानी काव्य-पाठ किताब भेंट कुँअर रवीन्द्र कुंदन माली कुंवर रवीन्द्र कृति ओर कृति-भेंट खारा पानी गणतंत्रता दिवस गद्य कविता गली हसनपुरा गवाड़ गोपाल राजगोपाल घिर घिर चेतै आवूंला म्हैं घोषणा चित्र चीनी कहाणी चेखव की बंदूक छगनलाल व्यास जागती जोत जादू रो पेन जितेन्द्र निर्मोही जै जै राजस्थान डा. नीरज दइया डायरी डेली न्यूज डॉ. अजय जोशी डॉ. तैस्सितोरी जयंती डॉ. नीरज दइया डॉ. राजेश व्यास डॉ. लालित्य ललित डॉ. संजीव कुमार तहलका तेजसिंह जोधा तैस्सीतोरी अवार्ड 2015 थार-सप्तक दिल्ली दिवाली दीनदयाल शर्मा दुनिया इन दिनों दुलाराम सहारण दुलाराम सारण दुष्यंत जोशी दूरदर्शन दूरदर्शन जयपुर देवकिशन राजपुरोहित देवदास रांकावत देशनोक करणी मंदिर दैनिक भास्कर दैनिक हाईलाईन सूरतगढ़ नगर निगम बीकानेर नगर विरासत सम्मान नंद भारद्वाज नन्‍द भारद्वाज नमामीशंकर आचार्य नवनीत पाण्डे नवलेखन नागराज शर्मा नानूराम संस्कर्ता निर्मल वर्मा निवेदिता भावसार निशांत नीरज दइया नेगचार नेगचार पत्रिका पठक पीठ पत्र वाचन पत्र-वाचन पत्रकारिता पुरस्कार पद्मजा शर्मा परख पाछो कुण आसी पाठक पीठ पारस अरोड़ा पुण्यतिथि पुरस्कार पुस्तक समीक्षा पुस्तक-समीक्षा पूरन सरमा पूर्ण शर्मा ‘पूरण’ पोथी परख प्रज्ञालय संस्थान प्रमोद कुमार शर्मा फोटो फ्लैप मैटर बंतळ बलाकी शर्मा बसंती पंवार बातचीत बाल कहानी बाल साहित्य बाल साहित्य पुरस्कार बाल साहित्य समीक्षा बाल साहित्य सम्मेलन बिणजारो बिना हासलपाई बीकानेर अंक बीकानेर उत्सव बीकानेर कला एवं साहित्य उत्सव बुलाकी शर्मा बुलाकीदास "बावरा" भंवरलाल ‘भ्रमर’ भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’ भारत स्काउट व गाइड भारतीय कविता प्रसंग भाषण भूमिका मंगत बादल मंडाण मदन गोपाल लढ़ा मदन सैनी मधु आचार्य मधु आचार्य ‘आशावादी’ मनोज कुमार स्वामी मराठी में कविताएं महेन्द्र खड़गावत माणक माणक : जून मीठेस निरमोही मुकेश पोपली मुक्ति मुक्ति संस्था मुरलीधर व्यास ‘राजस्थानी’ मुलाकात मोनिका गौड़ मोहन आलोक मौन से बतकही युगपक्ष युवा कविता रक्त में घुली हुई भाषा रजनी छाबड़ा रजनी मोरवाल रतन जांगिड़ रमेसर गोदारा रवि पुरोहित रवींद्र कुमार यादव राज हीरामन राजकोट राजस्थली राजस्थान पत्रिका राजस्थान सम्राट राजस्थानी राजस्थानी अकादमी बीकनेर राजस्थानी कविता राजस्थानी कविता में लोक राजस्थानी कविताएं राजस्थानी कवितावां राजस्थानी कहाणी राजस्थानी कहानी राजस्थानी भाषा राजस्थानी भाषा का सवाल राजस्थानी युवा लेखक संघ राजस्थानी साहित्यकार राजेंद्र जोशी राजेन्द्र जोशी राजेन्द्र शर्मा रामपालसिंह राजपुरोहित रीना मेनारिया रेत में नहाया है मन लघुकथा लघुकथा-पाठ लालित्य ललित लोक विरासत लोकार्पण लोकार्पण समारोह विचार-विमर्श विजय शंकर आचार्य वेद व्यास व्यंग्य व्यंग्य-यात्रा शंकरसिंह राजपुरोहित शतदल शिक्षक दिवस प्रकाशन श्याम जांगिड़ श्रद्धांजलि-सभा श्रीलाल नथमल जोशी श्रीलाल नथमलजी जोशी संजय पुरोहित संजू श्रीमाली सतीश छिम्पा संतोष अलेक्स संतोष चौधरी सत्यदेव सवितेंद्र सत्यनारायण सत्यनारायण सोनी समाचार समापन समारोह सम्मान सम्मान-पुरस्कार सम्मान-समारोह सरदार अली पडि़हार संवाद सवालों में जिंदगी साक्षात्कार साख अर सीख सांझी विरासत सावण बीकानेर सांवर दइया सांवर दइया जयंति सांवर दइया जयंती सांवर दइया पुण्यतिथि सांवर दैया साहित्य अकादेमी साहित्य अकादेमी पुरस्कार साहित्य सम्मान सीताराम महर्षि सुधीर सक्सेना सूरतगढ़ सृजन कुंज सृजन संवाद सृजन साक्षात्कार हम लोग हरदर्शन सहगल हरिचरण अहरवाल हरीश बी. शर्मा हिंदी अनुवाद हिंदी कविताएं हिंदी कार्यशाला होकर भी नहीं है जो