कविताओं में बच्चों की दुनिया / नीरज दइया
तीनों ही संग्रहों की विभिन्न कविताओं में बच्चों की दुनिया को उकेरा गया है। बच्चों की कविताएं को लेकर जो कुछ आधारभूत बातें कही जाती है, जैसे- कविताएं आकार में छोटी होनी चाहिए, कविताओं में एक लय का निर्माण होना चाहिए, सरल सहज तुकांत शब्दावली में प्रयुक्त बिम्ब बाल बोधगम्य एवं मन को छूने वाले होने चाहिए आदि सभी बातों से ये रचनाकार परिचित हैं। इसका एक कारण संभवतः यह भी है कि इनका प्रकाशन चित्रा प्रकाशन द्वारा किया गया है और संपादक-प्रकाशक-लेखक राजकुमार जैन राजन की देख रेख और अनुभव का लाभ भी इन कृतियों को मिला है। कविताओं के चयन से लेकर उनकी साज-सज्जा और प्रस्तुतिकरण में राजन की भूमिका प्रकाशक के रूप में मुह बोलती है।
कवि अब्दुल समद राही के संग्रह ‘चुनमुन-चुनमुन’ में 17 कविताएं हैं, जिनमें फूल, तितली, मोर, भालू, आलु-भिंडी, चांद और राजस्थान आदि के साथ सांस्कृतिक रंगों को कविताओं में पिरोया गया है। शीर्षक कविता ‘चुनमुन-चुनमुन’ में सब का दिल बहलाने वाली सयानी गुड़िया के ठुमक-ठुमक नाच और चुनमुन-चुनमुन गान को सुंदर ढंग से कवि ने प्रस्तुत किया है। इन कविताओं की खूबी यही है कि इनमें सहजता-सरलता के साथ वचपन को विविध रंगों के साथ प्रस्तुत किया गया है। राही का लेखन विविध विधाओं में है और उनका प्रौढ़ कवि मन भी कहीं कहीं इन कविताओं में देखा जा सकता है। जैसे- ‘फूल हमेशा हंसते रहते/ कांटों का वह दर्द सहते।’ जैसी पंक्तियों में बाल मन के लिए यह समझना कठिन है कि कांटों का वह दर्द कैसे सहते हैं? कविताओं में किसी उपदेश को आरोपित किए जाने से उनकी सहजता लुप्त होती है। जैसे- फूल कविता में ‘तिलती रानी आती है/ डाल डाल पर जाती है।’ बेहद सुंदर और सरल-सहज पंक्तियां हैं किंतु इससे आगे की पंक्तियां देखें- ‘बच्चों जब तुम बाग में जाओ/ फूलों के मत हाथ लगाओ।’ यह संदेश और अंत में ‘फूलों की तुम खुशबू पाना, जीवन को अपने महकाना।’ में फूलों को हाथ हाथ नहीं लगाने को अभिधा में कहने से आनंद कम हो जाता है। इससे पूर्व में ‘कलियां भी इठलाती है, भंवरों संग बतियाती हैं।’ और ‘गुन-गुन भंवरे गाते हैं, मन ही मन इठलाते हैं।’ में जो बाल मन को पुलकित करने की क्षमता है वह अनुकरणीय है। संग्रह की कुछ कविताओं में नवीनता बोध भी उल्लेखनीय है, जैसे- ‘अरे ओ कंप्यूटर भाया/ गजब की तेरी माया।/ हार्डवेयर, साफ्टवेयर से,/ बनी है जो तेरी काया।’ अब्दुल समद राही से बाल साहित्य को बहुत आशाएं और उम्मीदें हैं जिसे वे लगातार पूरा करते के लिए लंबे समय से सक्रिय हैं।
‘जन्मदिन’ कविता की अंतिम पंक्तियां देखें- मुझको जो अच्छे लगते हैं/ मम्मी वो पकवान बनाती/ मुझको लंबी उम्र दिलाने/ जग के सारे देव मनाती/ मेहमानों के पगफेरे से/ आँगन को मिलता परिवार/ मम्मी, पापा, भाई बहन/ सखा सभी देते उपहार।’ यहां आँगन को परिवार मिलने की महत्त्वपूर्ण सीख प्रकारांतर से विभिन्न रूपों में इन कविताओं की उपलब्धि है। सभी कविताओं में गेयता और सरलता-सहजता मनमोहक है। ‘दादी का चश्मा’ में दादी अम्मा अपने ही सर पर चश्मा लगाए चश्मा ढूंढ़ रही है तो एक अन्य कविता में बच्चे को कोई समझा नहीं रहा वह खुद ही कह रहा है कि ‘पढ़ लिखकर होशियार बनूंगा/ मैं भी थानेदार बनूंगा।’ कहा जा सकता है कि कवि प्रहलादसिंह झोरड़ा निश्चय ही अपनी रचनात्मकता से कीर्तिमान स्थापित करेंगे। कवयित्री ईंजी. आशा शर्मा के संग्रह ‘अंकल प्याज’ में 24 कविताएं हैं। संग्रह की प्रथम कविता ‘अंकल प्याज’ में कवयित्री लिखती हैं- ‘गोलू-मोलू अंकल प्याज/ सिर पर रखते लंबा ताज/ बड़ी तोंद में छिपा रखें हैं/ क्या तुमने सेहत के राज।’ प्याज में सेहत के राज हैं यहां तक तो बात बाल मनोभावों के अनुकूल कही जा सकती है किंतु आगे की पंक्तियों में ‘बात हमें बतलाओ आज/ क्या तुमको है काम न काज/ भाव बढ़ा सरकार हिलाते/ तुम हो पक्के ड्रामे बाज।’ में निहित अर्थ बहुत भारी है और यह बच्चों की सेहत के लिए ठीक भी नहीं है। सब्जी मंडी पर राज और रसोई के सरताज से बात सीधी सरकार हिलाने तक ले जाने में साम्य नहीं है। बाल कविताओं की दुनिया में रचनाकार को बच्चों के संग बच्चा बनना होता है और अपनी समझदारी से परे उन्हीं की दुनिया से गुड़िया, गुब्बारे, चिड़िया, चूहे, रेल आदि बटोरने में तुक की यांत्रिका से दूर बाल मनोविज्ञान को समझना जरूरी है। कवयित्री आशा शर्मा अपनी बाल कविताओं के माध्यम से अनेक प्रेरक संदेश बच्चों को देना अनिवार्य समझती हैं। जैसे उनकी ‘चिड़िया’ कविता की बात करें तो इन पंक्तियों को देखें- ‘खिड़की पर आ जाती चिड़िया/ मीठा गीत सुनाती चिड़िया/ आलस त्यागो - बिस्तर छोड़ो/ चीं-चीं शोर मचाती चिड़िया।’ यहां खिड़की पर चिड़िया के आने और मीठा गीत सुनाने पर कोई आपत्ति नहीं है किंतु यह मीठे गीत में आलस त्यागो - विस्तर छोड़ो सीधे-शीधे चीं-चीं शोर मचाते हुए क्यों कहती है? गीत में यह शोर कविता की अंतिम पंक्तियों में इस रूप में है- ‘दिन भर उड़ती - फिरती चिड़िया/ फिर भी तनिक न थकती चिड़िया/ जल्दी सोना जल्दी उठना/ आदत तेरी लगती चिड़िया।’
प्रौढ़ लेखन की तुलना में बाल साहित्य लेखन कठिन इसलिए मान गया है कि इसमें बाल सुलभता और सहजता प्राप्त करना आसान नहीं होता है। किसी विचार को शिक्षा केंद्रित करते हुए कविताएं बच्चों के लिए लिखना एक बात है और उन कविताओं में बाल मन की अनुभूतियों की अनुगूंज होना दूसरी बात है। आशा है कि आशा शर्मा अपने पहले कदम को दूसरे कदम तक विस्तारित करते हुए अपनी अनुभूतियों को आगे साझा करेंगी।
तीनों संग्रह हमें बच्चों की रूपहली दुनिया से परिचित कराते हैं। अब तक अनेक कवियों ने अनेक बाल कविताएं लिखी हैं। एक ही विषय पर अलग अलग ढंग से लिखी अनेक कवियों की रचनाएं उदाहरण के तौर पर देखी जा सकती है। नई कविताओं को लिखने से पहले हमारा पहला दायित्व हमारी आवश्यकताओं के आकलन और पूर्ववर्ती रचनाओं से परिचित होना होता है।
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बाल कविताओं के तीन संग्रह- चुनमुन-चुनमुन / अब्दुल समद राही ; चाँद खिलौना / प्रहलादसिंह झोरड़ा ; अंकल प्याज / ईंजी. आशा शर्मा
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तीनों संग्रहों के प्रकाशक- चित्रा प्रकाशन, आकोला (राज.) ; प्रथम संस्करण- 2017 ; पृष्ठ- 32 मूल्य- 60/-
समीक्षक : डॉ. नीरज दइया, बीकानेर (राज.) बाल वाटिका मई 2018
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