आती है बिन बुलाए / / नीरज दइया
या कह कर
कब आती है
आती है बिन बुलाए याद....
बरसती है बूंद सरीखी एक-एक कर
भीगता है कोना-कोना मेरा
निकाल कर कहां-कहां से
आते हैं पुराने दिन...
उमड़ता है सैलाब
बतियाता है समय
और मैं निकलता हूं-
हर बार एक यात्रा पर
कहीं पहुंच कर भी
कहीं नहीं पहुंचता मैं
यहीं यहीं रहता हूं...
तुम्हारे इंतजार में।
००००
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