होमीजती जूण रै मिस कीं सवाल / नीरज दइया
चौबीस कड़ियां मांय रचीज्यो ‘होम’ एक सांवठो उपन्यास है। जिण रै मारफत उपन्यासकार कथानायक सांवतै रै मिस किसानां री होमीजती जूण रो आखो इतिहास बतावै। किणी पण उपन्यास मांय जथारथ दोय ढाळा मांय अंगेज सकां। पैलो- जिण री विगत म्हैं आगूंच मांडी जिकी भावभोम माथै ‘होम’ साम्हीं आयो है अर दूजी गोड़ै घड़ी किणी कथा रो पसराव साच दांई करणो। देस अर दुनिया नै देखता-विचारता खुद उपन्यास मांय नूंवो संसार लेखक रचै। संजोग सूं उपन्यास ‘होम’ री कथा उणी जमीन सूं जुड़ियोड़ी है, जिकी खुद उपन्यासकार रै नजीक सूं देखी-परखी जमीन है। अठै खतरो ओ हुया करै कै किणी खबर अर सूचना नै जद किणी रचना मांय राखां तद बा फगत खबर अर सूचना रै रूप मांय नीं रैय’र विगतवार घटना अर बगत रै रूप मांय राखीजै। घड़साणा रो किसान आंदोलन इक्कीसवीं सदी री खास घटनावां रै रूप मांय आपां खबरां मांय देख सकां पण उण नै उपन्यास मांय ऊभो करणो हरेक रै बस री बात कोनी। पूर्ण शर्मा ‘पूरण’ इण घटना रै इतिहास सूं ‘होम’ उपन्यास रै नायक ‘सांवतौ’ नै एक प्रतीक रूप रचै कै बो आखी दुनिया रो सांवतो वण जवै। उण रै उणियारै मांय आखै देस रै किसानां रो उणियारो आपां देख सकां। आं ओळ्यां नै कीं बधावां तो फगत किसान ई क्यूं मोटै रूप मांय ओ बो उणियारो है जिको राज-काज, सत्ता-समाज री घाणी मांय लगोलग पीसजतो जाय रैयो है। ‘होम’ मांय बात मिनख रै हक री है। उण रै हक री कोई लांबी-चौड़ी विगत नीं है। बो फगत दोय टैम री बाजरी चावै। जे आ बात ई किणी नै बेजा लखावै तो ‘होम’ री इण लपटां सूं कोई नीं बचैला।
सांवतै नै आखै मुलक रै पीसीजतै किरसाणा रो प्रतिनिधि मानणौ चाहिजै। आपरी बात उपन्यासकार माटी सूं चालू करै अर मिनख रै माटी हुवण माथै पूरी करै। ‘चक 12 एनटीआर। चौगड़दै पसरेड़ी ढाणियां। केई-एक बीघै-बीघै रै आंतरै अर केई-एक मुरब्बै-दो-मुरब्बा दूर तांई... छिटकेड़ी-सी। चक रै उतरादै पासै बगै एनटीआर नैहर। साठेक साल पैलां अठै नैहर कोनी ही। उण बखत ना कठैई ढाणी ही अर ना कठैई खेत। बणी हुंवती। कोसां पसरेड़ी। थोड़ौ कीं और चाल्यां, दिखणादी अर अगूणी कूंट मांय हुंवती गोगामेड़ी, जकी अबार एक ठाड़ै धाम मांय बदळीजरी है। गुगामेड़ी मिंदर रै चौफेर कोसां तांई पसरेड़ी ही आ बणी, जकी छात बाजती। गूगै री छात।’ (पेज- 11) ‘आज बैठक मांय फैसलौ हुवंती बरियां पांचूं जणां री आंख्यां साम्हीं सांवतै री लास आयगी। माटी देवण सारू उडीकती लास। अर... अर देवणियै नै जकौ कीं देवणो हो वो ई दियौ।’ (पेज-150) बियां ‘होम’ दुखांत उपन्यास है पण लेखक आस री किरण इण ढाळै दरसावै- ‘एक आंख अजैई उमेद करै ही- ....सांवत री पाड़ेडी आ डांडी कदेई मारग बणसी.... आम मारग।’ होमीजती सांवतै री जूण रै मिस उपन्यास मोटो सवाल करै कै इण देस मांय इण ढाळै री केई-केई डांडियां साम्हीं आवै पण आं नै खास अर पुखता मारग क्यूं नीं मिल रैयो है।
होम रै सांवतै अर फौजी दादै रै मारफत आपां जाणां कै मिनखाजूण मांय बदळाव खातर कठैई कोई चिणखी किणी ढाळै अंवेरीजै कै उण सूं चेतना री अगन चौफेर पसरै। लोगां नै खुद रै हकां खातर जोड़णा अर बोलण खातर तैयार करणा सौखो काम कोनी, इण दीठ सूं ‘होम’ एक उपन्यास नीं होय’र किसनां रै जन जागरण रो एक लूंठो गीत है। इण मांय केई मारम रा प्रसंगां मांय रोवती मिनखाजूण नै देख’र बांचणियां नै रोवणो आवै। जियां- पाणी किसानां नै पोखै पण जद उण रो विकराळ रूप देखां तो काळजो जागा छोड़ देवै, इणी ढाळै विमला रो सांवतै री मौत रो सपनो अर असल मांय सांवतै रो मरण बांचणियां रै हियै नै परस लेवै। किणी लेखक री सफलता इण बात सूं मानीजै कै बो आपरै सबदां सूं सुख-दुख रो कित्तो लखावै आपरै बांचणियां नै करा सकै।
पूर्ण शर्मा ‘पूरण’ रै इण उपन्यास मांय राजस्थान री धरती रा केई-केई रंग देखण नै मिलै। हनुमानगढ-गंगानगर रै नहरी इलाकै रो नहर आवण पछै जिको बदळाव हुयो उण रो सांगोपाग बखाण ‘होम’ करै। उपन्यासकार जमीन सूं जुड़’र जमीन री बात करै अर जमीन नै ई स्सौ कीं समझणआळां री खुल’र बात करै। सांवतो-विमला रै घर परिवार नै केंद्र मांय राखतो उपन्यास इक्कीसबीं सदी री अबखयां रो विगतवार खुलासो करै। पैंताळीस बरसां रै इण माणस कथानायक रै मारफत घणी-लुगाई, घर-परिवार-समाज, यारी-दोस्ती, खेती-बाड़ी, बदळतै बगत रो ढंग-ढाळो स्सौ कीं न्यारी न्यारी कथावां रै मारफत जुड़तो जावै। इण मांय घर-परिवारां रा फंटवाड़ा, रिस्तैदारी, गांवां मांय टाबरां री भणाई, बां रा सुपनां, जमीन नै संभाळण रो धरम, काळ अर करज सूं बाथेड़ा, नुंवी हवा अर आंदोलन आद केई रंगां-बदरंगां मांय सुळती-घुखती मिनखाजूण सेवट ‘होम’ री लपटां मांय बदळीज जावै। सांवतो होम री आहूति है पण लेखक उण नै घणै नेठाव अर धीरज आळै मिनख रूप होळै-होळै पुड़त-दर-पुड़त खोलै- ‘सांवतौ इसी बातां आपरी जोड़ायत सागै घट ई बतळावै। उणनै ठाह तो है कै विमला सूं छानौ कोनी पण फेर ई वो अपारै मांय बधतै करजै रै दुख नै बारै कोनी ढुळण देवै। घणी ई ख्यांत राखै कै दुख री इण जेवड़ी रो दूजौ नुग्गौ कठैई उणरी जोड़ायत विमला रै हाथ नीं लग जावै। नुग्गौ विमला रै हाथ लाग्यां खुद उणरै भीतर तालामेली बध जावै।’ (पेज-17)
सांवतै रा माडा दिनां बिचाळै केई बार लखावै कै अबै आछा दिन आवणआळा है पण बै आंवता-आंवता पाछा हुय जावै। बैंकआळै लोन सूं ट्यूबवैल लगावण री मनस्या ही पण मिनख सोचै कीं अर हुवै कीं। सोची आपां री कद हुवै! जूण मांय दरड़ा इत्ता कै एक बूरीजै कोनी दूजो तैयार मिलै। बैंकआळा ई कमती कोनी हुवै, सगळी जागावां जाण-पिछाण चाइजै। सांवतै नै फौजी दादै री सिफारस सूं लोन तो मिल्यो पण कट-कुटा’र। ‘होम’ किसानी जूण रै हियै जलती आस-निरास भेळै सुख-दुख रा केई केई प्रपंच रचै। उपन्यास मांय हनुमानढ़ रा कलैक्टर साब वी. रंगनाथन रो बेली जयंत जिको ‘ऐग्रीकल्चर सर्वे ऑफ इंडिया’ रो नुंमाइंदौ है जिको खळाखळ राजस्थानी बोलै-समझै, इण नै लेखक रो भासा खातर प्रेम कैय सकां। जयंत नै राजस्थानी रो इत्तो हेताळु बणा दियो कै बो रपट बाबत ई सावळ राजस्थानी मांय बात करै, जिकी मानणै में कोनी आवै। ‘जयंत आपरी इण रपट नै बांच-बांचनै ओजू बांची है। वो अठै री लोकल भासा तो कोनी जाणै पण फेर ई उणरै इत्ती समझ मांय तो आयगी कै अठै सैंग रो काळजौ चालणीबेज हुयरियौ है।' (पेज-75) लोग जद दारू सूं भरीज जावै बै अंग्रेजी बोलै, भादर जी रै फर्म हाउस री छात माथै जयंत माथै जद रंग चढै वो राजस्थानी मांय बोलै- ‘म्हैं थानै किसान कोनी मानूं भा...दर.. जी।’ (पेज-71) इत्तो ई नीं बो इण मिसन रै ओळावै मौकौ मिल्यां राजस्थानी मांय भासण झाड़ै- ‘थे कांई मानौ, असल समस्या कांई पाणै पांती रो पाणी ना मिलणौ है? म्हारी जाण स्यात ओ समस्या नै सावळ सूं ना समझणौ है। चांद नै एक पासै सूं देखणै बरगौ। क्यूंकै थारै हंस्सै रो पूरौ पाणी थानै ना मिलणौ समस्या रो एक पख तो हुय सकै पण समची समस्या फगत इत्ती-सी कोनी। जे आ ई बात हुंवती तो पंजाब रो करसो सप्रे पीयनै क्यूं मरतौ? पंजाब री नैहर मांय कूदतौ करसौ आपणै अठै रै पाणी खातर कूकतै करसै सूं अळगौ है ना? जे आ समस्या फगत पाणी री हुंवती तो थारी पांती रो पाणी पीवणिया दूजै सूबै रा करसा इयां बेदमाल कोनी हुंवता।’ (पेज-85)
छतापण पूर्ण शर्मा ‘पूरण’ री भासा, बुणगट अर भावबोध नै असरदार मठार’र कैवण रो अंदाज राखै। कथा रै पसारै मांय गांवां रो संस्कृतिक जीवण, रीत-रिवाज राग-रंग रै अलावा बखाण मांय चावा-ठावा कथाकार निर्मल वर्मा री ओळ रो लखाव ई प्रभावित करै। किसानां री होमीजती जूण रै मिस पूरण जिका सवाल उठावै-अरथावै बै आज रै वगत री जरूरत मान सकां।
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