Wednesday, September 24, 2014

शिक्षा और साहित्य को समर्पित एक उल्लेखनीय नाम डॉ. नीरज दइया


शिक्षा और साहित्य को समर्पित एक उल्लेखनीय नाम डॉ. नीरज दइया

राजेंद्र जोशी

          राजस्थानी साहित्य में नीरज दइया ने अपना वह मुकाम हासिल किया है कि वे किसी परिचत के मोहताज नहीं है, बस नाम ही काफी है। आरंभ में बहुत से मित्र नीरज दइया को उनके पिता प्रख्यात साहित्यकार श्री सांवर दइया के नाम से पहचानते थे किंतु नीरज ने साहित्य-जगत में सक्रिय रहते हुए एक इतिहास बनाया है कि अब ऐसा दौर आ गया है कि सांवर दइया का स्मरण उनके पुत्र के नाम से किया जाने लगा है। डॉ. नीरज का जन्म 22 सितम्बर, 1968 को रतनगढ़ (चूरू) में हुआ और प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा भी कीर्ति-शेष कवि श्री किशोर कल्पनाकांत की पावन भूमि पर हुई। साहित्यिक वातावरण में पले बढ़े नीरज ने अपना आरंभिक लेखन राजस्थानी में किया।  उनका मानना रहा है कि लेखन में भाषा नहीं वरन लेखन ही महत्वपूर्ण होता है ।
          नोखा और बीकानेर में शिक्षा के समय उनके योग्य शिक्षकों में पिता श्री सांवर दइया के अतिरिक्त कान्ह महर्षि, मो. सद्दीक, ए. वी. कमल, अजीज आजाद, पेंटर के राज, सन्नू हर्ष आदि अनेक नाम रहे जो कला और साहित्य जगत के जीवंत हस्ताक्षरों के रूप में पहचाने जाते हैं। स्कूली शिक्षा के समय श्री रावत सारस्वत और श्री श्रीलाल नथमल जोशी द्वारा संचालित राजस्थानी की विविध परीक्षाओं को उत्तीर्ण किया और जनकवि श्री कन्हैयालाल सेठिया से उनका गहरा जुड़ाव पत्र संपर्क के रूप में रहा। महाविद्यालय तक पहुंचते पहुंचते डॉ. नीरज दइया ने कहानीकार और कवि के रूप में माणक और मरवण जैसी पत्रिकाओं के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज की तथा राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर का भत्तमाल जोशी महाविद्यालय पुरस्कार से भी आप सम्मानित किए गए।
          पिता के विछोह का गहरा आधात झेलने वाले डॉ. नीरज दइया ने जहां अपने पिता के अप्रकाशित साहित्य के प्रकाशन में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया वहीं नेगचार जैसी पत्रिका का संपादन कर अपनी योग्यता को प्रमाणित किया। कवि, कहानीकार और व्यंग्यकार श्री सांवर के हिंदी में कविता संग्रह- उस दुनिया की सैर के बाद, राजस्थानी में कविता संग्रह- हुवै रंग हजार, आ सदी मिजळी मर, कहानी संग्रह- पोथी जिसी पोथी, व्यंग्य संग्रह- इक्यावन व्यंग्य और अनुवाद- स्टेच्यू जैसी सात कृतियों का प्रकाशन अपने आप में नीरज दइया के अपने पिता और साहित्य के प्रति निष्ठा और प्रेम को प्रकट करता है। इसी क्रम में यदि हम कुछ जोड़ना चाहे तो मोहन आलोक री कहाणियां और कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां जैसी कृतियों के संपादन को जोड़ते हुए कह सकते हैं कि डॉ. नीरज दइया एक आत्मीय और भावुक अपने संबंधों के निभाने वाले रचनाकर है।
          पिता के नहीं रहने के बाद अपने सृजन के साथ-साथ शिक्षा के क्षेत्र में एम. ए. हिंदी और राजस्थानी साहित्य में करने के पश्चात डॉ. उमाकांत के निर्देशन में निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोधविषय पर शोध कार्य किया । आप शिक्षा और साक्षरता से गहरा जुड़ाव रखते हैं। जिले के साक्षरता आंदोलन में आखर उजास मासिक बुलेटिन और साक्षरता प्रवेशिकाएं आखर गंगा में अपाका महत्त्वपूरण अवदान रहा। शिक्षा विभाग के विभागीय प्रकाशनों में अपकी भूमिका रही। शिक्षा और साक्षारता में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों में डॉ. नीरज दइया का उल्लेखनीय सतत सहयोग रहा। शिक्षा के क्षेत्र में प्रारंभ में राजस्थान शिक्षा विभाग में कार्यरत रहे डॉ. दइया आजकल केंद्रीय विद्यालय संगठन में हिंदी विभागाध्यक्षा के रूप में सेवारत है।
          राजस्थानी में मौलिक कविता संग्रह के रूप में साखतथा देसूंटोआलोचना-संग्रह 'आलोचना रै आंगणैतथा “बिना हासलपाई” लघुकथा संग्रह- भोर सूं आथण तांईं जैसी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं । इसी वर्ष आपको “जादू रो पेन” (बाल कहानियां) पर साहित्य अकादेमी का बाल साहित्य पुरस्कार घोषित हुआ है। इससे पूर्व राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी द्वारा आपको अनुवाद पुरस्कार निर्मल वर्मा के कथा संग्रह "कव्वै और काला पानी" के राजस्थानी अनुवाद “कागला अर काळो पाणी” पर मिल चुका है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारतीय ज्ञानपीठ से पुरस्कृत अमृता प्रीतम के कविता संग्रह "कागद ते कनवास" का राजस्थानी अनुवाद भी आपने किया, जो अनुवाद के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण माना गया है। यह क्रम जारी रखते हुए डॉ. नीरज दइया ने “देवां री घाटी” (डॉ. भोला भाई पटेल की गुजराती यात्रा वृत्त का राजस्थानी अनुवाद) तथा “सबद नाद” (भारतीय भाषाओं के कवियों की कविताएं का प्रतिनिधि संचयन) को प्रस्तुत कर अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है। आपकी रचनाएं अनेक सग्रहों में सहभागी रचनाकार के रूप में प्रकाशित हुईं और राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति अकादमी, बीकानेर की मासिक पत्रिका जागती जोतका संपादन भी एक वर्ष से अधिक समय के लिए आपने किया । अकादमी के उल्लेखनीय प्रकाशन के रूप में “मंडाण” युवा कवियों की कविताओं का संपादन भी डॉ. नीरज दइया की महत्त्वपूर्ण उपलब्धि कही जा सकती है।
आपको नगर विकास न्यास सम्मान, पीथळ पुरस्कार और राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में अनेक मान-सम्मान और पुरस्कार भी मिले हैं । राष्ट्रभाषा हिंदी के क्षेत्र में मौलिक कविता संग्रह के रूप में “उचटी हुई नींद” (2013) प्रकाशित तथा साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के लिए ग-गीत” (काव्य संग्रह कवि मोहन आलोक) का राजस्थानी से हिंदी अनुवाद किया जो अकादेमी द्वारा 2004 में छपा ।
अंतरजाल पर आपकी सक्रियता उल्लेखनीय है अनेक ब्लोग और बेब दुनिया के महासागर में कविता कोश के भीतर राजस्थानी की स्थापना और निरंतरता का यश भी हम नीरज को देना होगा। डॉ. नीरज दइया की सृजन यात्रा के इस सुदीर्ध यात्रा में अब “बिना हासलपाई” समकालीन राजस्थानी कहानी के परिदृश्य को समझने समझाने में आलोचना के क्षेत्र में एक महत्त्चपूर्ण उपलब्धि के रूप में देखा-स्वीकारा जाएगा और आशा की जानी चाहिए कि वे इस यात्रा में आगे एक नया इतिहास भी लिखेंगे।
सहायक परियोजना अधिकारी (वरिष्ठ)
आवास - तपसी भवन, नत्थूसर बास,
बीकानेर- 334004
मोबाईल: 9414029687


बिना हासलपाई रो लोकार्पण समारोह




आलोचना कभी किसी रचना को उठाने या गिराने का काम नहीं करती, वरन रचना में अंतर्निहित संभावन को उजागर कर पाठक और रचना के मध्य सेतु-निर्माण का कार्य करती है। उक्त उद्गार केंद्रीय साहित्य अकादेमी नई दिल्ली की राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल समिति के संयोजक एवं प्रख्यात कवि-आलोचक-नाटककार डॉ. अर्जुनदेव चारण ने डॉ. नीरज दइया की कहानी-आलोचना की पुस्तक “बिना हासलपाई” के लोकार्पण अवसर के मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए व्यक्त किए। मुक्ति संस्था द्वारा स्थानीय महारानी सुदर्शना कला दीर्घा, नागरी में आयोजित लोकार्पण-समारोह में उन्होने कहा कि डॉ. नीरज दइया बधाई के पात्र हैं जिन्होंने इस पुस्तक के माध्यम से एक मुश्किल काम को हाथ में लेकर पूरा कर दिखाया है। आलोचना की गहन अंतर्दष्टि और प्रक्रिया पर विस्तार से बोलते हुए डॉ. चारण ने कहा कि कहानी की सूक्ष्म से पड़ताल ही उसके भीतर निहित सत्य को स्पष्ट देखने का जरिया हो सकती है और किसी भी विधा की यात्रा को उसकी पूरी परंपरा के रूप में देखा जाना चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार कवि-आलोचक श्री भवानी शंकर व्यास ‘विनोद’ ने कहा कि डॉ. नीरज दइया ने बिना हासलपाई संग्रह में पच्चीस कहानीकारो के पचपन संग्रहों की लगभग एक सौ पचास कहानियों पर अपने विमर्श में पूरी तार्किता के साथ विविधा रखते हुए विभिन्न पीढियों के आधुनिक रचनाकारों को समझने का महत्वपूर्ण प्रयास किया है। परंपरा से आधुनिकता तक की इस यात्रा में रामचंद्र शुक्ल और हजारी प्रसाद द्विवेदी सरीखी दृष्टियों का समन्वय उल्लेखनीय है। नीरज दइया ने आलोचना की संतुलित दृष्टि रखते हुए जिस कहानी मूल्यों को विकसित होते दिखाने का आलोचनात्मक सहास दिखाया है वह वरेण्य और प्रशंसनीय है। बिना हासलपाई में वरिष्ट कहानीकार श्रीलाल नथमल जोशी से लेकर एकदम युवा कहानीकार उम्मेद धानिया तक की कहानी-यात्रा के अनेक मुकाम सोदाहरण तार्किता के साथ स्पष्ट किए गए मिलते हैं।
विशिष्ट अतिथि व्यंगकार-कहानीकार श्री बुलाकी शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि पुस्तक में चयनित कहानीकारों की कहानियों में डॉ दइया ने गहरे उतरने का सुंदर प्रयास किया गया है। किसी कहानीकार के प्रति पूरे सम्मान और आस्था के साथ बात करने के इस उपक्रम को अपनी कहानी आलोचना के संदर्भ में बताते हुए बुलाकी शर्मा ने कहा कि जिस तकनीकी भूल को वे अपनी कहानी में पकड़ नहीं सके उसे इस पुस्तक में संकेतिक किया जाना प्रमाण है कि आलोचना द्वारा रचनाकार की रचना की दृष्टि को संवरने का संबल मिलता है।
 वरिष्ठ रंगकर्मी व पत्रकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने अपने स्वागत भाषण में आए हुए अतिथियों का स्वागत करते हुए डॉ. नीरज दइया के सजृनात्मक अवदान को रेखांकित किया और बताया कि बिना हासलपाई पुस्तक में डॉ. दइया ने आलोचना के कार्य को पूरी गंभीरता और निष्ठा के साथ अंगीकार किया है। कृति पर पत्रवाचन करते हुए पत्रवाचन युवा कथाकार डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ने संग्रह की रचनाओं पर विस्तार से बोलते हुए कहा कि डॉ. नीरज दइया ने कहानी आलोचना का मूल अभिप्राय ग्रहण करते हुए समकालीन भारतीय साहित्य पृथक-पृथक परंपराओं और इतिहास के बीच राजस्थानी कहानी की अपनी सुदीर्ध परंपरा और विकास को रेखांकित किया है। आज राजस्थानी कहानी ने उंचाइयां हासिल कर ली है तो उनको रेखांकित करती यह पुस्तक कमियों और त्रुटियों की तरफ भी संकेत करना नहीं भूलती।
डॉ. नीरज दइया की अपनी बात रखते हुए लोकार्पण समारोह में कहा कि किसी भी पुस्तक के रचनाकार को अपनी कृति में कही गई बातों के विषय में बोलने की बजाय कृति के जन्म, रूपाकार और विकास के विषय में बोलना बेहतर होता है। उन्होंने बिना हासलपाई के विषय में लिखी जाने से पूर्व की बातों का उल्लेख करते हुए आलोचना विधा में अधिक गहराई से अधिक रचनाकारों के काम किए जाने की आवश्यकता को स्वीकारा। इस अवसर पर नवयुग कला मंडल द्वारा कृतिकार का सम्मान शॉल, स्मृति चिन्ह एवं अभिनंदन पत्र भेंट कर किया गया। वहीं कार्यक्रम में मंचासीन अतिथियों का भी शॉल, श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह से अभिनंदन किया गया।
आलोचक डॉ. नीरज दइया ने संग्रह के लोकार्पण के बाद कृति अपने पिता के परम मित्र व वरिष्ठ कहानीकार भंवरलाल ‘भ्रमर’ को भेंट की, तथा इसी क्रम में पुस्त्क-भेंट बिना हासलपाई के समर्पण पृष्ट पर उल्लेखित कहानीकारों डॉ. मदन सैनी और नवनीत पाण्डे को भी कृति-भेंट की गई। 
कार्यक्रम का संचालन करते हुए युवा कवि-नाटककार हरीश बी.शर्मा ने डॉ. दइया के रचनाकर्म पर प्रकाश डाला तथा कार्यक्रम में श्रीलाल मोहता, श्री हर्ष, सरल विसारद, कमल रंगा, इकबाल हुसैन, सुरेश हिंदुसानी, रामसहाय हर्ष, संजय पुरोहित, इरशाद अजीज, रमेश भोजक समीर, संजय आचार्य वरुण, आत्माराम भाटी, पी. आर. लील, ओ. पी. शर्मा, सरदार अली परिहार, मोहम्मद अय्यूब, विद्यासागर आचार्य, असद अली असद, प्रदीप भाटी, सुनील गज्जाणी, राजाराम स्वर्णकार डॉ. नंदलाल वर्मा आदि कवि लेखक साहित्यकार और सामाजिक उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में मुक्ति के सचिव राजेन्द्र जोशी ने आभार व्यक्त किया।


राजेन्द्र जोशी
सचिव- मुक्ति


     दिनांक: 24 सितम्बर, 2014

Sunday, September 14, 2014

पुरस्कृत पोथी : जादू रो पेन बाल कहाणियां रो संगै

वडै सरोकारां री बाल-कहांणियां : जादू रौ पेन / मीठेस निरमोही

नीरज दइया राजस्थांनी रै मोट्यार लिखारां में अेक मौजू ओळख अर हैसियत राखणिया लेखक है। इतरौ ई नीं उळथणहार (अनुवादक) अर संपादक रै रूप में ई वांरी गैरी पेठ मांनीजै।
           “जादू रौ पेन” वां रौ पैलौ बाळ कहांणी संग्रै व्हैता थकां ईं केई खूबियां रै पेटै रचनाऊ ओप अर आब लियोड़ौ है। इण सूं पैली वां रौ अेक लघुकथा संग्रै- “भोर सूं आथण तांईं”,दो कविता संग्रै- “साख” अर “देसूंटो”, अेक आलोचना पोथी “आलोचना रै आंगणै”पांच भारतीय भासा-साहित्य अनुवाद री अर दो संपादित पोथियां ई छपियोड़ी है। 
          “जादू रौ पेन” में जुदा-जुदा रोचक अर प्रेरक कथानकां सूं गूंथीजियोड़ी ग्यारा बाळ कहांणियां चित्रांमां रै सैजोड़ै छपियोड़ी है। बाळकां रै घर-परिवार-समाज अर स्कूली जीवण सूं जुड़ी नैनी-मोटी बातां अर घटणा-प्रसंगां नै लेयर लिखीजी अै कहांणियां बेसक ई बाळमन री संवेदणा नै गैराई में जायर परस करै। आं कहांणियां रौ परिवेस अेकदम नुंवौ अर आधुनिक है। इण सूं ई वडी बात आ है के इण कहांणियां री धूरी में बाळक है। खासकर स्कूली बाळक। कहांणीकार डॉ. नीरज दइया खुद आप मास्टर हैसो वै बाळकां रै मनोविग्यांन नै कोरौ-मोरौ जांणै ई नींछतापण उणरी सबळी अर सांवठी ओळखांण ई राखै। अर इणरौ बखूबी प्रयोग आं कहांणियां में होयौ है। 
          “जादू रौ पेन” संग्रै री कहांणियां में बाळजीवण रै परिवेस अर उणसूं जुड़ियोड़ै जुदा-जुदा पखां अर क्लास, सहपाठी, मास्टर, स्कूल, खेल, मां-बाप, नातै-रिस्तैदारबाळक अर उणरी भूमिका इत्याद विसयां, सवालां अर आं माथै असर करणियै ततबां नै वडै मनोयोग सूं माळा रै मणियां री गळाई तार-तार पोया है। अर उतरी ई गैराई में जायर बाळकां रै मन री कंवळास, निछळता अर संवेदना रौ ई सैंपूरणता सूं चित्रण करियौ है। तौ कथा पात्रां रै मन री घाण-मथांण नै ई न्यारै-न्यारै रूपां में सांम्ही लायर कथाकार    बाळजीवण री परिस्थितिजन अबखायां रौ मनोवैग्यांनिक स्तर माथै समाधान ई करियौ है । अै कथा-पात्र वडा ई विस्वासू हैजांणै अैड़ौ लागै जिकौ कहांणी में हौ रैयौ है वौ जीवन में भेरूं ई कठैई घट रैयौ है । अै कहांणियां अेकण कांनी बाळकां रै मन-मगज नै मथती थकी वांनै चारित्रिक बदळाव सारू प्रेरित करै तौ दूजै ई कांनी वां रै मनां री पड़ता नै उघाड़ती  थकी वां रै तूटतै आतम-विसास अर विवेक नै बणायौ राखण रा जतन ई करै । साथै ई ओ सोच, आ चेतणा अर चिंतण के वां रौ हित किण में है अर किण में नीं है जगायर ई महताऊ भूमिका निभावै।
संग्रै री अै कहांणियां कोरी-मोरी उत्सुकता (बेचैनी) बधावण वाळी इज नीं हैछतापण आं रा सरोकार ई बौत वडा लागै। कहांणियां बाळकां नै मेणत अर लगन सूं पढण सारू प्रेरित करै तौ कुसंगत अर दुराचरण सूं मुगती दिरायर वांनै रचनात्मकता सूं जोड़ै । रोज रौ काम रोज करण री सीख देवै तौ गैस पेपरां रै छळावां सूं मुगती दिरायर नकल करण अर करावण रे पाप सूं बचावती थकी बाळकां नै आपरी समझ रै बूतै स्कूली कांम नै टेमसर पूरौ करण री प्रेरणा ई देवै। तौ उण मास्टरां रै सांतरा  भचीड़ मारै जिका तनख्वाह रै रूप में मोटी रकम हासिल करियां उपरांत ई बाळकां नै पढावण में कोताई बरते अर परीक्सा रै दिनां में गैस पेपर बांटर आपरै दायित्वां री इतिस्री कर लेवै। अेडै़ उण तमांम बाळकां नै जिकौ नांव अर इनांम रै खातिर स्कूली मैग्जीनां में दूजां री के चोरी री रचनावां आपरै नांव सूं छपावै के इण री चावना राखै, वां नै मनोवैग्यांनिक रूप सूं प्रोत्साहित अर प्रेरित कर मौलिक सिरजण करण सीख ई देवै। अेडै़ सगळा ई बालकां नै जिका आपरै मां-बाप रै डर सूं भली-भूंडी बातां लुकायनै आगै होयर खतरां नै न्यूंतै, वां नै आपातकाळ में वडी हुंसियारी रै साथै भूमिका निभावण री अर खेल ई खेल में अकारण ई ठोकीजण अर बदळै री भावना पालण वाळै बाळकां नै खेल री भावना सूं  खेल खेलर आपसरी में मिंतराई अर सदभाव सूं रैवण री सीख देवै। इण सूं ई वडी बात आ है के अै सगळी ई कहांणियां बाळकां नै आपरी गळतियां रौ अैसास करायर वांनै कोरा चिंतन अर मनन सारू ई प्रेरित नीं करै, छतापण वां नै सुधरण रौ गेलौ ई बतावै । 
इण तरै चरित्र निरमांण में ई खास भूमिका निभावती अै कहांणियां बाळकां में विवेक, आतम-बळआतम-विसास अर संकळप-सगती नै जगायर वां नै मैणतलगनईमांनदारी,नैतिकतासदाचारनरमाई, सच्चाई, सदभावमिंतराई अर मेळ-मिळाप जैड़ा जीवण मोलां सू जोड़ै। तौ वां नै संवेदणसीळसतगुणी अनै मांनवी ई बणावै। इतरौ ई नीं हिम्मत अर हूंस बधायर वां नै आपरै मकसदां नै पूरण सारू तैयार ई करै।
  कहांणियां रै कथ, भासा, सिल्प अर सैली री बात करां तौ सैज ई कह्यौ जा सकै के डॉ. नीरज दइया कनै अनुभवां रौ कथ रूपी अखूट खजांनौ है तौ कहांणियां सिरजण री आंट अर गत गसक ई गजब री है। भासा माथै ई वां रौ अद्भुत धणियाप है। कहांणियां री भासा रळ्यावणी अर बाळकां रै ठेठ हीयै ढूकै जैड़ी है। आपरै रचाव में कथ्य री आधुनिकता अर मौलिकताभासाई रळकाव रै सागै कविता री सघनता अर मितव्यता अनै चित्रोपमता री ओप अर आब लियां “जादू रौ पेन” री अै कहांणियां निस्चै ई राजस्थांनी बाल-साहित्य री साख नै सवाई करै ।
अेक भेर खासियत-
इण संग्रै री सिरजणा में राजस्थांनी भासा री अेकरूपता पकायत ई थूथकौ न्हाकै जैड़ी है।    

-मीठेस निरमोही
राजोला हाउस, भंवराणी हवेली परिसरउम्मेद चौकजोधपुर (राज.)

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पुस्तक : जादू रो पेन, लेखक : डॉ.नीरज दइया, विधा : बाल कहानियां, भासा : राजस्थानी, प्रथम संस्कण : 2012, मूल्य : 50 रुपए, पृष्ठ : 56, प्रकाशक : शशि प्रकाशन मन्दिर, सादाणियों की गली, मोहता चौक, बीकानेर-334005
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Saturday, September 13, 2014

मोरिशस के साहित्यकार श्री राज हीरामन की दो पुस्तकों का विमोचन मुक्ति संस्था द्वारा





बीकानेर | मॉरीशस के लेखक राज हीरामन की रचनाएं पाठक से आत्मीय रिश्ता बनाती नजर आती है। हीरामन संवेदन मन के रचनाकारों में से एक है। इनकी कहानियां वास्तविक चरित्रों को लेकर सृजित की गई है। यह बात व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने कही। 
अवसर था मॉरीशस के लेखक राज हीरामन की पुस्तक 'नमि मेरी आंखें' और 'बर्फ सी गर्मी' के लोकार्पण समारोह का। मुक्ति संस्थान की ओर से शुक्रवार को होटल ढोला मारू में हीरामन की दोनों पुस्तकों का लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया। मुख्य अतिथि बुलाकी शर्मा ने कहा कि 'नमि मेरी आंखें' पुस्तक में लेखक ने पत्नी वियोग की पीड़ा और अपने एकांत को इतनी मार्मिकता से अभिव्यक्त किया है कि पाठक उस पीड़ा काे स्वयं भोक्ता अनुभव करने लगता है। 
अध्यक्ष डॉ.नीरज दइया ने कहा कि मॉरीशस के हिंदी रचनाकार की कृतियों का मरुनगरी में लोकार्पण अपने आप में एक सुखद अहसास है। 
मुक्ति के सचिव कवि राजेंद्र जोशी ने लेखक का परिचय देते हुए कहा कि आज लोकार्पित कविता संग्रह रचनाकार हीरामन का दसवां कविता संग्रह है। 
कार्यक्रम में भारतीय सेवा समाज के प्रांतीय मंत्री भंवर पृथ्वीराज रतनू, कृष्णानंद फाउंडेशन के अध्यक्ष हिंगलाजदान रतनू, कमल रंगा, मुरली मनोहर के.माथुर, जेठमल मारू, नवनीत पांडे, डॉ.बसंती हर्ष, रमेश भोजक 'समीर', आनंद वि.आचार्य, मोइनुद्दीन कोहरी, विष्णुदत्त शर्मा, आत्माराम भाटी आदि शामिल हुए। 


डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
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आंगळी-सीध

आलोचना रै आंगणै

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