Sunday, September 28, 2014
Wednesday, September 24, 2014
शिक्षा और साहित्य को समर्पित एक उल्लेखनीय नाम डॉ. नीरज दइया
9/24/2014 | No comments |
बिना हासलपाई रो लोकार्पण समारोह
9/24/2014 | No comments |
आलोचना कभी किसी रचना को उठाने या गिराने का काम नहीं करती, वरन रचना में अंतर्निहित संभावन को उजागर कर पाठक और रचना के मध्य सेतु-निर्माण का कार्य करती है। उक्त उद्गार केंद्रीय साहित्य अकादेमी नई दिल्ली की राजस्थानी भाषा परामर्श मंडल समिति के संयोजक एवं प्रख्यात कवि-आलोचक-नाटककार डॉ. अर्जुनदेव चारण ने डॉ. नीरज दइया की कहानी-आलोचना की पुस्तक “बिना हासलपाई” के लोकार्पण अवसर के मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए व्यक्त किए। मुक्ति संस्था द्वारा स्थानीय महारानी सुदर्शना कला दीर्घा, नागरी में आयोजित लोकार्पण-समारोह में उन्होने कहा कि डॉ. नीरज दइया बधाई के पात्र हैं जिन्होंने इस पुस्तक के माध्यम से एक मुश्किल काम को हाथ में लेकर पूरा कर दिखाया है। आलोचना की गहन अंतर्दष्टि और प्रक्रिया पर विस्तार से बोलते हुए डॉ. चारण ने कहा कि कहानी की सूक्ष्म से पड़ताल ही उसके भीतर निहित सत्य को स्पष्ट देखने का जरिया हो सकती है और किसी भी विधा की यात्रा को उसकी पूरी परंपरा के रूप में देखा जाना चाहिए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार कवि-आलोचक श्री भवानी शंकर व्यास ‘विनोद’ ने कहा कि डॉ. नीरज दइया ने बिना हासलपाई संग्रह में पच्चीस कहानीकारो के पचपन संग्रहों की लगभग एक सौ पचास कहानियों पर अपने विमर्श में पूरी तार्किता के साथ विविधा रखते हुए विभिन्न पीढियों के आधुनिक रचनाकारों को समझने का महत्वपूर्ण प्रयास किया है। परंपरा से आधुनिकता तक की इस यात्रा में रामचंद्र शुक्ल और हजारी प्रसाद द्विवेदी सरीखी दृष्टियों का समन्वय उल्लेखनीय है। नीरज दइया ने आलोचना की संतुलित दृष्टि रखते हुए जिस कहानी मूल्यों को विकसित होते दिखाने का आलोचनात्मक सहास दिखाया है वह वरेण्य और प्रशंसनीय है। बिना हासलपाई में वरिष्ट कहानीकार श्रीलाल नथमल जोशी से लेकर एकदम युवा कहानीकार उम्मेद धानिया तक की कहानी-यात्रा के अनेक मुकाम सोदाहरण तार्किता के साथ स्पष्ट किए गए मिलते हैं।
विशिष्ट अतिथि व्यंगकार-कहानीकार श्री बुलाकी शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि पुस्तक में चयनित कहानीकारों की कहानियों में डॉ दइया ने गहरे उतरने का सुंदर प्रयास किया गया है। किसी कहानीकार के प्रति पूरे सम्मान और आस्था के साथ बात करने के इस उपक्रम को अपनी कहानी आलोचना के संदर्भ में बताते हुए बुलाकी शर्मा ने कहा कि जिस तकनीकी भूल को वे अपनी कहानी में पकड़ नहीं सके उसे इस पुस्तक में संकेतिक किया जाना प्रमाण है कि आलोचना द्वारा रचनाकार की रचना की दृष्टि को संवरने का संबल मिलता है।
वरिष्ठ रंगकर्मी व पत्रकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने अपने स्वागत भाषण में आए हुए अतिथियों का स्वागत करते हुए डॉ. नीरज दइया के सजृनात्मक अवदान को रेखांकित किया और बताया कि बिना हासलपाई पुस्तक में डॉ. दइया ने आलोचना के कार्य को पूरी गंभीरता और निष्ठा के साथ अंगीकार किया है। कृति पर पत्रवाचन करते हुए पत्रवाचन युवा कथाकार डॉ. मदन गोपाल लढ़ा ने संग्रह की रचनाओं पर विस्तार से बोलते हुए कहा कि डॉ. नीरज दइया ने कहानी आलोचना का मूल अभिप्राय ग्रहण करते हुए समकालीन भारतीय साहित्य पृथक-पृथक परंपराओं और इतिहास के बीच राजस्थानी कहानी की अपनी सुदीर्ध परंपरा और विकास को रेखांकित किया है। आज राजस्थानी कहानी ने उंचाइयां हासिल कर ली है तो उनको रेखांकित करती यह पुस्तक कमियों और त्रुटियों की तरफ भी संकेत करना नहीं भूलती।
डॉ. नीरज दइया की अपनी बात रखते हुए लोकार्पण समारोह में कहा कि किसी भी पुस्तक के रचनाकार को अपनी कृति में कही गई बातों के विषय में बोलने की बजाय कृति के जन्म, रूपाकार और विकास के विषय में बोलना बेहतर होता है। उन्होंने बिना हासलपाई के विषय में लिखी जाने से पूर्व की बातों का उल्लेख करते हुए आलोचना विधा में अधिक गहराई से अधिक रचनाकारों के काम किए जाने की आवश्यकता को स्वीकारा। इस अवसर पर नवयुग कला मंडल द्वारा कृतिकार का सम्मान शॉल, स्मृति चिन्ह एवं अभिनंदन पत्र भेंट कर किया गया। वहीं कार्यक्रम में मंचासीन अतिथियों का भी शॉल, श्रीफल एवं स्मृति चिन्ह से अभिनंदन किया गया।
आलोचक डॉ. नीरज दइया ने संग्रह के लोकार्पण के बाद कृति अपने पिता के परम मित्र व वरिष्ठ कहानीकार भंवरलाल ‘भ्रमर’ को भेंट की, तथा इसी क्रम में पुस्त्क-भेंट बिना हासलपाई के समर्पण पृष्ट पर उल्लेखित कहानीकारों डॉ. मदन सैनी और नवनीत पाण्डे को भी कृति-भेंट की गई।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए युवा कवि-नाटककार हरीश बी.शर्मा ने डॉ. दइया के रचनाकर्म पर प्रकाश डाला तथा कार्यक्रम में श्रीलाल मोहता, श्री हर्ष, सरल विसारद, कमल रंगा, इकबाल हुसैन, सुरेश हिंदुसानी, रामसहाय हर्ष, संजय पुरोहित, इरशाद अजीज, रमेश भोजक समीर, संजय आचार्य वरुण, आत्माराम भाटी, पी. आर. लील, ओ. पी. शर्मा, सरदार अली परिहार, मोहम्मद अय्यूब, विद्यासागर आचार्य, असद अली असद, प्रदीप भाटी, सुनील गज्जाणी, राजाराम स्वर्णकार डॉ. नंदलाल वर्मा आदि कवि लेखक साहित्यकार और सामाजिक उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में मुक्ति के सचिव राजेन्द्र जोशी ने आभार व्यक्त किया।
Tuesday, September 23, 2014
Monday, September 22, 2014
Saturday, September 20, 2014
Sunday, September 14, 2014
पुरस्कृत पोथी : जादू रो पेन बाल कहाणियां रो संगै
9/14/2014 | No comments |
वडै सरोकारां री बाल-कहांणियां : जादू रौ पेन / मीठेस निरमोही
नीरज दइया राजस्थांनी रै मोट्यार लिखारां में अेक मौजू ओळख अर हैसियत राखणिया लेखक है। इतरौ ई नीं उळथणहार (अनुवादक) अर संपादक रै रूप में ई वांरी गैरी पेठ मांनीजै।Saturday, September 13, 2014
मोरिशस के साहित्यकार श्री राज हीरामन की दो पुस्तकों का विमोचन मुक्ति संस्था द्वारा
9/13/2014 | No comments |
डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :
हिंदी में-
कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018
राजस्थानी में-
कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)
नेगचार ई-पत्रिका : लारला अंक
आंगळी-सीध
आलोचना रै आंगणै
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September
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- शंकरसिंह राजपुरोहित अर रवि पुरोहित
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- हीरामन जी की किताबों का लोकार्पण
- जादू रो पेन री डॉ. नमामीशंकर आचार्य लिखी समीक्षा य...
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