Sunday, September 27, 2015

Tuesday, September 22, 2015

Tuesday, September 15, 2015

बदळतो बगत अर दीठावां रै बिचाळै सूं दौड़ती-भागती सदी

(27-09-2015 साहित्य अकादेमी, नवी दिल्ली अर मुक्ति बीकानेर रै भेळप मांय आयोजित कहाणी केंद्रित कार्यक्रम में पठित पचरो : च्यार कहाणीकार - भंवरलाल ‘भ्रमर’, मीठेस निरमोही, अरविन्द सिंह आशिया, मदन गोपाल लढ़ा, )

बदळतो बगत अर दीठावां रै बिचाळै दौड़ती-भागती सदी
नीरज दइया
भंवरलाल ‘भ्रमर’ (1946), मीठेस निरमोही (1951), अरविंद सिंह आशिया (1964) अर मदन गोपाल लढ़ा (1977) री कहाणियां बाबत बात करण री भोळावण म्हारै जिम्मै राखीजी अर म्हैं विचार करण लाग्यो कै आं च्यारूं कहाणीकारां बाबत एकठ बात कियां करी जावै। आगूंच म्हैं म्हारी टीप आलेख रूप कहाणी पत्रिका ‘कथेसर’ अर उण पछै म्हारी पोथी ‘बिना हासलपाई’ (2014) में कहाणीकार भंवरलाल ‘भ्रमर’ माथै तो जग-जाहिर करी। मीठेस निरमोही, अरविंद सिंह आशिया अर मदन गोपाल लढ़ा राजस्थानी रा चावा-ठावा कहाणीकार मानीजै। अठै ओ पण कैवणो लाजमी लखावै कै ऐ म्हारै दाय पड़ता कहाणीकार मानो। आं री कहाणी-कला माथै बात करण री चावना साहित्य अकादेमी पूरी करी इण खातर मोकळो आभार। म्हारै साम्हीं सगळा सूं मोटी अबखायी आ कै अठै बगत री एक सींव बांध्योड़ी है। आं च्यारूं कहाणीकारां माथै निरी ताळ तांई न्यारी-न्यारी बातां कैयी जाय सकै पण म्हैं बंधी सींव री काण राखता थका बगत रो माण राखूंला।
 हिंदी कहाणी-कविता रै जोड़ मांय दसकवार बात करण रो चलस रैयो है। जलम री दीठ सूं देखां तद भंवरलाल ‘भ्रमर’ आजादी सूं एक बरस पैली जलमिया। इण सीगै नै फळावां तो आं च्यारूं कहाणीकारां नै दसक रै हिसाब सूं एक ऊपर एक पगोथियो मांडता राख सकां। दोय बीसी रै इण बगत नै साठोत्तरी रै सीगै देखां तो दोय कहाणीकार मांय अर दोय आगै ऊभा दीसै। असल में कहाणीकार रै जलम री ठौड़ बात कहाणी का कहाणी-संग्रै रै जलम सूं करी जावणी चाइजै। भंवरलाल ‘भ्रमर’ रा तीन कहाणी संग्रै- तगादो (1972), अमूजो कद तांई (1976) अर सातूं सुख (1995) ; मीठेस निरमोही रो एक कहाणी संग्रै- अमावस, एकम अर चांद (2002) ; अरविंद सिंह आशिया रा दोय कहाणी संग्रै- कथा एक (2001) अर कथा दोय (2009) अर मदन गोपाल लढ़ा रो एक कहाणी संग्रै- च्यानण पख (2014) म्हारै साम्हीं है। ऐ सात कहाणी-संग्रै राजस्थानी कहाणी रै आभै रूपाळो इंदर-धनुस मान सका। आ ओळी कविता मांय तो रूपळी लाग सकै पण आलोचना रै सीगै इण ढाळै री ओळ्यां रो बगत गयो समझो।
किणी रचना रै पाठ सूं ई आलोचना रो जलम हुवै। किणी रचना री परख पाठक अर आलोचक दोनूं ई करै, पण आं दोनूं मांय घणो आंतरो हुवै। पाठक किणी पण रचना नै बांचै अर नीं बांचै का अधबिचाळै छोड़ सकै। जद कै आलोचना री जबाबदेही अर जिम्मेदारी दोनूं हुवै, तद पूरी पठनीय-अपठनीय रचना रो पाठ जरूरी हुय जावै। केई बार ओ पाठ बारंबार करणो पड़ै। म्हैं कैवणी चावूं कै फोरी तौर माथै कैवणियां कीं पण कैय सकै। मंच माथै मानीता कवि मोहन आलोक बिराजै अर म्हनै चेतै आवै आप सूं सुणियो एक प्रसंग- गालिब टू गेटै। म्हैं जद कहाणीकार भ्रमर टू लढ़ा बात करणी स्वीकारी तद सूं ई आं सातूं पोथ्यां नै दूसर-दूसर बांचतो केई-केई बातां विचारतो रैयो। आं कहाणीकारां री केई कहाणियां मांय रमतो रैयो अर केई कहाणियां म्हनै रमावती रैयी। जद कहाणी रा पात्र आपां रै अंतस आपरी कहाणी खुद कैवण लागै तद समझूं कै कहाणी पूरी बैठगी है। हरेक भाषा री आपरी लकब हुवै, अठै म्हैं कहाणी बैठण री बात करूं तद उण रो अरथाव कै बा कहाणी आपरै जस नै थापित करती बगत री लांबी सींव सदा ऊभी दीसैला। 
कहाणी कोई चोखी का भूड़ी कोनी हुवै, चोखो अर भूड़ो हुवै उण रो रचाव। कहाणी लिखणी एक कला है अर हरेक आपरी कला रै प्रताप न्यारै-न्यारै ढंग सूं कहाणी नै बैठावण रा जतन करै। अर्जुनदेव चारण एकर शिक्षा विभाग री पोथी ‘आहूतियां’ रो संपादन करतां लिख्यो- कला में पूरणता अर प्रफेक्सन जैड़ी कोई चीज नीं हुवै, अठै तो मछली री आंख खातर हरेक रो आपरो तीर अर निसाणो हुवै। सो कैवणो चावूं कै च्यारू कहाणीकारां मांय कोई किणी सूं कमती का बेसी कोनी, छता पण आ कैय सकां कै आं च्यारूं कहाणीकारां री कहाणी-कला रा ग्राफ एकसार कोनी। खुद भंवरलाल भ्रमर अर बां री कहाणी-जातरा माथै विचार करतां म्हारो मानणो रैयो कै बगतसर आलोचना आपरो काम नीं करियो इण वजै सूं राजस्थानी रो एक बोजोड़ कहाणीकार आपरो बो मुकाम नीं हासल कर सक्यो जिण रो बो हकदार हो।
प्रतिनिधि कहाणी-संकलन उकरास’ (1991) में संपादक कवि-कहाणीकार सांवर दइया जद भ्रमरजी री बातांकहाणी रो चयन करियो तो जाणै इण कहाणी री कोई गुमियोड़ी चाबी लाधगी। मूळ कहाणी रै प्रकाशन पछै लगैटगै बीस बरसां रो मून रैयो। इण नैं जोधपुर रै कथा समारोह (1995) मांय वाजिब मान मिल्यो, जिको 1972 पछै मिलणो चाइजतो हो। कहाणी-आलोचना री गफलत रा केई कारण रैया। चावा-ठावा लोककथाकार विजयदान देथा तो उण टैम भुंवाळी खायग्या- बां संयोजक कवि-कहाणीकार मीठेस निरमोही नैं म्हारै साम्हीं घणै अचरज सूं बूझ्यो- भंवर! आ कहाणी कद लिखी?’ बिज्जी घणो अळोच कीनो कै इण सांतरी कहाणी री पैली गिनार क्यूं कोनी हुई। इणी ढाळै सवाल रूप आपां विचार कर सकां कै मीठेस निरमोही जिसै कहाणीकार री साव कमती कहाणियां आवण रै लारै कांई कारण रैया। बगत री जरूरत समझा अर कहाणी रै विकास अर विगसाव खातर आपां इक्कीसवी सदी रा चावा-ठावा कहाणीकारां मांय अरविंद सिंह आशिया अर मदन गोपाल लढ़ा जिसा कहाणीकारां री कहाणियां री बगतसर ओळख-अंवेर करां-करावां।  
जिण च्यार कहाणीकारां री बात म्हैं कर रैयो हूं बै राजस्थानी रा सिरै कहाणीकारां बिचाळै हरावळ राख्या जाय सकै। जद आलोचना पेटै इण ढाळै री कोई बात कैयी जावै तद उण रा प्रमाण ई चाइजै। इण ओळी री साख मांय आं च्यार कहाणीकारां री कहाणियां सूं म्हैं बदळतो बगत अर दीठावां रै बिचाळै दौड़ती-भागती सदी रा केई चितराम आपरै साम्हीं राखणा चावूं। कहाणी असल मांय बदळतै बगत नै अंवेरै। आज जिका दीठावां सूं आपां धिरियोड़ा हां का कैवां कै जिका दीठाव आपां रै ओळै-दौळै रैवै बां दीठावां रै बिचाळै दौड़ती-भागती सदी री पिछाण आज री कहाणी करावै। बगत री बारखड़ी आ कै बगत भागतो जाय रैयो है अर इण दौड़तै-भागतै बगत नै कोई थाम नीं सकै। फगत कहाणी मांय बगत नै राख सकां, कै उण री साख आवण वाळी पीढियां खातर अंवेर दां। कहाणी जद आ साख अंवेरै तद बगतसर आलोचना नै इण साख रा गीत गावणा चाइजै।
कथेसर रा संपादक कहाणीकार-कवि रामस्वरूप किसान कहाणी-विकास जातर बाबत बात करता भंवरलाल ‘भ्रमर’ बाबत लिखै- “राजस्थानी रा लांठा कहाणीकार भंवरलाल ‘भ्रमर’ सायना में सै सूं सिरै, झीणी संवेदना रा कहाणीकार है।” (कथेसर-7 अक्टूबर-दिसम्बर, 2013) भ्रमर जी बरस 1970 सूं पैली रा कहाणीकार है। अै कहाणियां अर ओ बगत कहाणी-इतिहास में इण खातर महतावू है कै इणी बगत रै आसै-पासै नवी कहाणी आपरा पग मांड्या। भ्रमर जी रै साथै वां रा समकालीन कहाणीकार सांवर दइया, मोहन आलोक अर नंद भारद्वाज आद वां दिनां मरुवाणी, हेलो, हरावळ जिसी पत्रिकावां सूं नवी कहाणी नै मजबूत कर रैया हा। आलोचना में हासलपाई लगावणिया घणा है, इणी खातर म्हैं कहाणी आलोचना पोथी रो नांव ‘बिना हासलपाई’ राख्यो अर इण नांव री साख इण ओळी सूं करावूं- कीरत में नवी कहाणी रा हरावळ कहाणीकार सांवर दइया मानीजै, पण अठै ओ उल्लेख जरूरी लखावै कै भंवरलाल ‘भ्रमर’ राजस्थानी में घणो पैली लिखणो चालू करियो।
भंवर लाल भ्रमररी कहाणी-जातरा माथै विगतवार विचार करां तो तगादोसूं  सातू सुखतांई  सैंतीस कहाणियां रो दरसाव आपां साम्हीं बणै। ‘उपरलो पासो’ नांव सूं कहाणी-संग्रै आवणवाळो है। कहाणीकार भ्रमर जी री च्यार व्हाली कहाणियां- बातां’, ‘उड़दो’, ‘तगादोअर ढोंगरी बात करां। अमूजो कद तांईं री भूमिका सूं इयां पण कैयो जाय सकै कै कहाणीकार मुजब अै व्हाली अर टाळवीं कहाणियां है। आं कहाणियां सूं कहाणीकार रो मोह रैयो है, तद ई आं नैं दूजै संग्रै में दूसर सामिल करीजी ही। खरैखरी अै कहाणियां खुद मोह करै जैड़ी है। राजस्थानी कहाणी इतिहास में आं रै मुकाबलै री आं जिसी दूजी कहाणियां कोनी मिलै। आं कहाणियां नैं भ्रमर जी री प्रतिनिधि कहाणियां मानी जाय सकै। 
भ्रमर जी री कहाणियां में बदळतै बगत में अरथ री मार सूं दूर-नैड़ै रा सगा-संबंधी, अठै तांई कै घरू-खून रा रिस्ता ई तर-तर ठंडा पड़ता जाय रैया है। कहाणी बातां अर तगादो में घर-परिवार में पसरतै मून री बानगी देखण नैं मिलै। घर-घर ओ मून कियां-कठै पसरतो जावै इण रो ठीमर बखाण ई आपां आं कहाणियां में देख सकां। उड़दो बाल-मनोविग्यान री कहाणी में नाटकीय भाषा-पख ई सरावणजोग है। अै कहाणियां नवी कहाणी री थरपणा री जमीन कमावणवाळी मानी जाय सकै। बरसां पछै आज जद बजारवाद हावी हुवण सूं बजार-भाव भलांई बदळग्या हुवै पण मूळ संवेदना मांय रत्ती भर ई फरक कोनी आयो। कहाणियां में बरतीज्या आंक रिपिया-टका बदळ दिया जावै तो आं नैं आपां आज री सिरजण भेळै समकालीन साच नैं उजागर करणवाळी कहाणियां कैय सकां।
‘सातूं सुख’ नांव घणो सांकेतिक है, इण नांव में भ्रमर जी री पूरी कहाणी-जातरा रो सूत्र जोयो जाय सकै। कहाणियां में दुख-दरद है, बिखो है, बुढापो है, बगत री मार है, संस्कारहीणता है अर खरोखरी जिण नैं सुख कैवां उण री धापर कमी आं कहाणियां में कहाणीकार दरसावै। नांव में व्यंजना सुख री है, अर बो अरथ री मार सूं आधुनिक जीवण में सब सूं बेसी पछाड़ खा रैयो है। सुख री उडीक है। सुख सपनो हुयग्यो है। संबंधां मांय खारास आवतो जाय रैयो है। मिनख मसीन बणतो जाय रैयो है। मिनख नैं होस कोनी रैयो कै वो आपरी परंपरावां सूं कीं सीखै। कठै तो बडेरा सात सुखां में सगळै सुख री बात परोटता अर कठै गिणती रा कोई सात सुख ई हाथ कोनी रैया। लांबै बगत उपरांत ई आज आं कहाणियां रो असरदार लखावणो ई आं कहाणियां री सफलता है।
      मीठेश निरमोही अर अरविंद सिंह आशिया रो कहाणी-संग्रै इक्कीसवी सदी लागता साम्हीं आवै। ’अमावस, एकम अर चांद’ 2002 अर `कथा एक 2001 रै मारफत परख करणियां नै जाण लेवणो चाइजै कै मीठेस निरमोही घणा पैली कहाणियां लिखणी चालू करी। घणखरा कहाणीकार आपरै कहाणी संग्रै मांय बां कहाणियां रै कठै कद किसी छपी बाबत जाणकारी नीं राखै, इण सूं बां नै घणै बगत पछै देखां तद इण ढाळै री चूक ई हुय सकै। इण खातर म्हैं आगूंच कैयो कै कहाणी विकास जातरा मांय म्हैं जिण च्यार कहाणीकारां बाबत बंतळ करूं बै च्यार पगोथिया इण रूप मांय मानो कै आं सूं कहाणी तर-तर डीगी हुवती जावै। अठै अखरार कैबणी चावूं कै अरविंद सिंह आसिया अर मदन गोपाल लढ़ा जिसै कहाणीकारां री अंवेर आलोचना करैला तो आं दीवां रो उजास घणो आगो पूगैला अर आपरी परंपरा मांय आं रो उल्लेखजोग मुकाम ओळख सकालां।
      मीठेस निरमोही री कहाणियां जनचेतना री अलख लियोड़ी बगत नै अरथावती कहाणियां इण खातर मानी जावैला कै संग्रै ’अमावस, एकम अर चांद’ रै मारफत कहाणीकार फगत आपरै पात्रां नै ई नीं, बांचणियां नै ई हूंस सूंपै। ‘अमूझता आखर’ अर ‘हवा भांग भिळी’ दोनूं कहाणियां जठै पूरी हुवै उण बगत कहाणीकार गांधी बाबै नै बिचाळै लावै अर जिण हक खातर जूझ मांडै उण मांय गांधीवाद नै पोखै। इण सूं पैली री पूरी कहाणी मांय आजादी पछै रो बदळतो बगत देख सकां अर सगळा दीठावां रै बिचाळै दौड़ती-भागती सदी थकां ई जूना रंग अर ठसका निजर आवै। इणी ढाळै ‘गवाही’ कहाणी सूं कहाणीकार मदियै जिसै लोगां री जूझ नै बिड़दावै। अठै राज रै बदळाव पछै ई उण बदळाव री चावना पण देखी जाय सकै कै जिको आजादी पैली सुपनो हो अर बो सुपनो फगत सुपनो ई रैयग्यो।
संग्रै री सिरैनांव कहाणी री छेहली ओळी- ‘क्यूं डेडी अबै तौ आप म्हांरै दादी-दादौसा नै ई घरां लेय आसौ नीं?’ पूरी कहाणी रा नवा अरथ उघाड़ै। मिनख अर लुगाई सूं चालणियै परिवार मांय च्यार-माइतां री दुरगत नै बखाणती आ कहाणी बदळतै बगत अर दीठावां रै बिचाळै दौड़ती-भागती आखी सदी रो सांच साम्हीं राखै। एक बेटी आपरै मा-बाप अर सासु-सुसरा मांय जिको भेद करै उण पेटै नवी बुणगट मांय रचीजी आ एक उल्लेखजोग कहाणी है। ‘बंधण’ कहाणी आपां री संस्कृति नै पोखणवाळी कहाणी है तो कहाणियां मांय गाळ्यां सूं आज रो बदळ्यो बगत अर बदळती संस्कृति ई दीसै। ‘हीरा महाराज’ बदळतै बगत मांय ठस्योड़ै बगत रो दीठाव राखै कै इण सदी मांय ग्यान-विग्यान अर संचार क्रांति रै उपरांय ई अजेस गांवां मांय झाड़-फूंक अर ठगी रा गोरखधंधा चाल रैया है। गांव अर पटवारी नै साम्हीं राखै कहाणी ‘हलकै रो हाकम’ है, इण कहाणी में पटवारी रै अन्याव नै कहाणीकार दरसावै पण कहाणी रो मरम भींवलै री छोरी सूं संवेट लेवणो हो, जिण सूं कहाणी अणूती लंबी नीं लगाती। जिसी करणी विसी भरणी रो पाठ पढावती आ कहाणी पटवारी सूं बेसी भींवलै री छोरी री कहाणी बणती तो बेसी असरदारा कैयी जावती।
मीठेस निरमोही री कहाणियां री खासियत वां रा संवाद अर संवादां भेळै साम्हीं आवतो जूण-जथारथ मान सकां। ‘छुटकारो’ कहाणी मांय पुलिस अर पत्रकार री बदळती भाषा बिचाळै मसीन हुवतै मिनख री पीड़ ई परतख परख सकां। इण बदळतै बगत अर दीठावां रै बिचाळै दौड़ती-भागती सदी रो एक सांच आपां री बदळती भाषा है। अरविंद सिंह आसिया रै कहाणी संग्रै कथा एक अर दोय छप्या। आं मांय कुल 31 कहाणियां मिलै। आप री कहाणियां में अंग्रेजी-हिंदी रो प्रयोग आज रै बगत नै साम्हीं राखण पेटै हुयो है। समाज में भाषा रै जटिल स्वरूप सूं आपां आयै दिन आम्हीं-साम्हीं हुवां। राजस्थानी कहाणी में भाषा रै मारफत असल राजस्थान नै साकार करणो कोई अरविंद सिंह सूं सीखै। कथा एक सूं कथा दोय में आवतां आवतां कहाणी कला रो विकास दीसै अर जिण कहाणियां में साव कमती सबदां मांय सांवटण री खथावळ लागै बा कथा दोय में पूगतां घणी ठीमर निगै आवै। कहाणियां मांय प्रयोग है तो साथै ई साथै घिस्यै-पिट्यै विसय माथै कहाणी नीं लिख’र नवा विसयां नै बपरावण री समझदारी ई अठै देखी जाय सकै।
अरविंद सिंह आशिया री कहाणियां बेजोड़ इण खातर मानी जावैला कै चरित्रां अर पात्रां री दीठ सूं इण ढाळै री कहाणियां राजस्थानी में कमती मिलै। कहाणी आपरै मरम सूं अंतस मांय सदा सदा खातर जाणै कोई ठावी ठौड़ बणा लेवै। दाखलै रूप कहाणी ‘हुंसरडाई’ री बात करूं तो इण कहाणी नै बांचता बिचाळै अमर कहाणीकार प्रेमचंद री कहाणी ‘ठाकुर का कुआं’ याद आवण लागै। सागण बो ई दीठाव है अर लागै बावड़ी बाबड़ी नीं, बो ई सागी कूवो है। अबकी हलकू झोंपड़ै में कोनी बो कूवै में है। बिज्जी री लोककथा ई आंख्यां साम्हीं आवै जिण में कूवै माथै धनगैलो माणस खुद रै बेटै रो ई भख लेय लेवै। आशिया री कहाणी रो अंस आपरी निजर करूं- “जितरे तो लारै गांम रै चौकीदार रो फटकारो सुणीज्यो- “कुण है रे ओ बावड़ी कनै?” अर बिण रै हाथ सूं बंधणो छूटग्यो। जतना झूंपड़ा कनी दौड़ी। ठेठ झूंपड़ा में वड’र जक खायो। बारै कुत्तां रो कुरळावणो वत्तो व्है गियो हो।” (कथा एक पेज 16)      
   कहाणी ‘हुंसरडाई’ में बीछूड़ी री जोड़ी नै पूरी करण रो जिको कळाप है उण सूं बेसी घणी-लुगाई रो प्रेम अर जीवण री अबखायां रो चितराम, जिण नै कहाणी बिना कीं कैयां बांचणियां साम्हीं जाणै खोल’र धर देवै। हीमतो नीं रैयो तद जतना दूजी बिछूड़ी रो कांई करै? बां दोनूं बिछूड्यां सेवट पाछी बावड़ी में बगा आवै। अठै अंग्रेजी फिल्म ‘द मास्क’ याद आवै। किणी रचना नै बांच्यां उपरांत उण रो ओळूं में थिर हुय जावणो रचना री सफलता मानीजै अर एक रचना में किणी बीजी जगचावी रचना री ओळूं आवणी ई, जियां अरविंद सिंह री कहाणी में प्रेमचंद री कहाणी-कला री ओळूं रो लखाव हुवणो ई कहाणीकार री सफलता है। इणी दीठ सूं म्हैं कैवणी चावूं कै नवा कहाणीकरां मांय पूर्ण शर्मा पूरण अर अरविंद सिंह आशिया बेजोड़ कहाणीकार मानीजैला। कथा दोय में कहाणी ‘1947 लंबी कहाणी है जिकी देस री आजादी सूं जुड़ी हिंदु-मुसळमानां रै दंगा अर अंतस री प्रीत नै उजागर करै। कहाणी ‘बांझ’ में संवाद शैली रो प्रयोग है तो लुगाई-आदमी रै भेद अर सामाजिक खामियां नै घणै मरम सूं कहाणी साम्हीं राखै। बगत री सींव सूं फगत इत्तो ई’ज कै कहाणीकार आशिया एक भरोसैमंद कहाणीकार है अर आप सूं राजस्थानी कहाणी नै घणी घणी उम्मीद राखणी चाइजै।    
आज री कहाणियां मांय युवा कहाणीकार खुद री खरो-खरी जूण-जातरा नै, अंतस रै सुख-दुख साथै रचण री खेचळ कर रैया है। इणी ओळ मांय मदन गोपाल लढ़ा  रै कहाणी संग्रै ‘च्यानण पख’ री 17 कहाणियां नै प्रमाण स्वरूप देख सकां। कहाणी ‘आफळ’ मांय एक कहाणी मांडण री आफळ दिखावतै इण कहाणीकार नै कहाणी-रचाव री रचना-प्रक्रिया री कहाणी कैयी जा सकै। आ कहाणी खुलासो करै कै किणी रचना सूं पैला किण भांत री सोचा-विचारी करणी पड़ै। लिखणो अंत-पंत वैचारिक हुवै अर कहाणी ‘दोलड़ी जूण’ दांई कोई पण रचनाकार एकठ दोय जूण जीवै, आं दोनूं बिचाळै आपसरी मांय रस्सा-कस्सी ई चालै। किणी रचना पेटै उण रै आगै री विगत सोच’र चिंतन करणो लाजमी लखावै तो पाठक रूप घर-परिवार रा सदस्यां अर बीजा री ई आपरी केई केई चावनावां अर बात-विचार हुया करै। पोथी रै सिरै नांव कहाणी ‘च्यानण पख’ में डायरी शैलो रो प्रयोग है बठै ई युवा सोच अर संबंधां में लुगाई जात री ओळखाण अर आपै रो सवाल ई मेहतावू बण जावै। अठै बात करां कथेसर में छपी कहाणी "आरती अग्रवाल री गळी" री। उण कहाणी रो नांव बदळ’र संग्रै में अग्रवाल री ठौड़ प्रियदर्शिनी कर दियो है। कहाणी आकाशावाणी में हुयै किणी अजोगै कारनामै नै उजागर करै, तो हेत रा ई केई रंगां नै राखै। इणी ढाळै री एक दूजी उल्लेखजोग कहाणी ‘उदासी रो कोई रंग कोनी हुवै’ मानी जावैला। बदळतो बगत एक साच है अर आपां रै आसै-पासै रा दीठावां बिचाळै दौड़ती-भागती कहाणी नै कागद माथै थिर करणी एक कला है। किणी जथारथ सूं खवर बणै अर कहाणी ई बण सकै। किणी जीवतै-जागतै मिनख-लुगाई का विभाग सूं जुड़ी घटना सूं कहाणी लिखणो विवाद रो विषय बण सकै, आ विचारतां ई कहाणीकार व्यक्तिगत सींव सूं पात्र नै बारै काढ’र आरती अग्रवाल नै आरती प्रियदर्शिनी लिखण रो मतो करियो हुवैला। “तिरस’ जिसी कहाणियां रै मारफत लढा इंटरनेट री क्रांति रो एक दीठाव रंजकता साथै राखै तो आपरी सगळी कहाणियां री भाषा में तार तार हुवतै साच नै साम्हीं लावण रा जतन करै।
बगत री सींव मांय कीं बातां अठै राखी, कीं बातां रैयगी। रैयगी जिकी किणी आलेख रूप आप नै किणी पत्रिका में का म्हारी आवती पोथी मांय बांचण नै मिलैला। अबार इत्तो ई’ज। आप सगळा रो मोकळो आभार। 

 (साहित्य अकादेमी अर मुक्ति कानी सूं 27-09-2015 नै बीकानेर में हुयै कार्यक्रम खातर पत्रवाचन)








Monday, September 14, 2015

आसावादी सुर, नाटकीय बंतळ अर बेजोड़ पात्र नै रंग

आंख्यां मांय सुपनो (कहाणी संग्रै), आडा-तिरछा लोग (उपन्यास) रै लोकार्पण-समारोह रो पत्र-वाचन
डॉ. नीरज दइया
     
राजस्थानी उपन्यास का कहाणी विकास जातरा री बात करां तो बीकानेर सदा सूं ई अगाड़ी गिणीजै। आगै ई बीकानेर नै अगाड़ी बणायो राखण रो जस जिण रचनाकारां नै जावैला वां मांय मधु आचार्य ‘आशावादी’ रो नांव हरावळ। आ म्हारी कोई अग्गमवाणी नीं, परतख-साच जाणो कै ‘गवाड़’, ‘अवधूत’ पछै तीजो राजस्थानी उपन्यास ‘आडा-तिरछा लोग’ हुवो का ‘उग्यो चांद, ढ्ळ्यो जद सूरज’ पछै दूजो राजस्थानी कहाणी संग्रै ‘आंख्यां मांय सुपनो’ बांच्यां रचनाकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ गद्य लेखक रूप आपरी सांवठी ओळखण करावै।
      उपन्यास अर कहाणी दोनां पेटै जे अेकठ बात करणी चावां तो ‘कथा’ सबद बरत सकां। आज ओ जूनो सबद ‘कथा’ घणो जूनो अर घसीज्योड़ो लाखावै। म्हनै लागै कै अबै इण सबद मांय बो अरथ कोनी रैयो जिको बरसां पैली हो। जिका सबद बरसां सूं बरतीजै बै आवण वाळै बगत जाणै होळै-होळै घसीजता-घसीजता सागण अरथ बिसराय देवै। ‘कथा’ सबद बोलां जद इयां लखावै जाणै कोई जूनी कहाणी जियां सत्यनारायण भगवान री का दूजी किणी बरत-कथा री बात कर रैयां हां। आ साव खरी बात आगूंच ठाह है कै बरसां लोककथा सबद आपां रै अठै घणो-घणो चलस में रैयो। कैवणिया कैवै कै लोककथा रै काळजै सूं आधुनिक कहाणी अर उपन्यास रो विगसाव हुयो। केई जाणीकारां रो मानणो इण सूं साव जुदा ई देख सकां। आं दोनूं बातां बिचाळै तीजी बात उपन्यास रो नांव नवल-कथा थरपण री ई राखीजी, पण अकारथ गई।
      ‘आडा-तिरछा लोग’ अर ‘आंख्यां मांय सुपनो’ मांय आपां रै आसै-पासै री दुनिया मिलै। हरेक रचना रो मूळ आधार अंतपंत लोक ई हुवै, लोक सूं कोई पण रचना जुदा नीं हुवै। कैयो जाय सकै कै किणी पण रचना रो जलम रचनाकार रै मांयलै-बारलै लोक रै सिरोळै-मेळ सूं ई हुया करै। इक्कीसवी सदी मांय आज जद आपां री मांयली-बारली दुनिया तर-तर बंतळ-बिहूणी हुवती लखावै। इण अबखी वेळा भागा-दौड़ी इत्ती बेसी हुयगी है कै अबै खुल’र बंतळ खातर बगत अर निरायंत ई कोनी मिलै। च्यारूंमेर पसरियो अर पसरतो मून आपां री आपसी बंतळ रा मारग ई बंद कर न्हाख्या। आखती-पाखती पसरी सूनवाड मांय ओ कारज रचनाकार रूप मधु आचार्य ‘आशावादी’ संभाळै, बै जाणै आपां नै बंतळ सारू हेलो करै। लेखक रो नाटककार हुवणो इण हुनर मांय इजाफो करै। आपां जाणा कै नाटक विधा मांय अंतस री आखी दुनियां नै बंतळ रै सीगै सिरजणी पड़ै। मधु आचार्य आशावादीरै रचना-संसार मांय साहित्य री न्यारी-न्यारी विधावां घणी-घणी नैड़ी आयर मेळ-मिलाप करती दिसै। न्यारा-न्यारा पात्रां री बंतळ सूं भांत-भांत रा लोग होळै-होळै अंतस रै आंगणै आप रो रूप संभाळता खुद री ओळखाण करावै।
      मधु आचार्य ‘आशावादी’ रै हिंदी अर राजस्थानी लेखन मांय घाळमेळ कोनी कै किणी अेक रचना नै कणाई हिंदी रचना रूप राख देवै अर कणाई राजस्थानी रचना रूप। आप दोनूं भाषावां मांय न्यारी-न्यारी रचनावां सिरजै। ‘कावड़’ पोथी री भूमिका कागद रूप लिखतां चावा-ठावा लोककथा लेखक विजयदान देथा लिखै कै असली लेखक बो हुवै जिको कै रोज कीं न कीं रचै। जे कोई कवि होळी-दियाळी कविता लिखै तो बो कवि कियां हुयो? लेखक री गत तो नित लेखण मांय। बिज्जी री दीठ सूं मधु आचार्य ‘आशावादी’ रै लेखन नै देखां तो नौ उपन्यास री, छह कहाणी-संग्रै अर छह कविता-संग्रै, आपां साम्हीं आयाड़ो अर अजेस केई-केई आवण री आस-उम्मेद अर पक्को पतियारो। नाटक अर बीजी विधावां मांय ई केई पोथ्यां प्रकाशित।
      केई लिखारा ओ सवाल करै कै मधु आचार्य ‘आशावादी’ इत्तो कद अर कियां लिखै? इण रो जबाब तो लेखक खुद राखैला, म्हारो मानणो है कै कद अर कियां लिखै री ठौड़ जरूरी सवाल ओ मानीजै कै जिको लिख्योड़ो है बो कियां अर किसो’क है? परख रै सीगै किणी रचना अर रचनाकार नै परंपरा मांय देखणो-परखणो जरूरी मानीजै। म्हारो मानणो है कि किणी अेक रचना माथै न्यरी-न्यारी दीठ सूं चरचा करी जाय सकै तद इत्तो लिख्योड़ो साम्हीं है तो चरचा खातर केई कोण देख सकां। साची बात तो आ है कै ‘आशावादी’ रै रचनाकर अर रचनावां पेटै घणी-घणी बातां करी जाय सकै, पण आज बात करां राजस्थानी उपन्यास ‘आडा-तिरछा लोग’ अर कहाणी संग्रै ‘आंख्यां मांय सुपनो’ माथै।

     मधु आचार्य ‘आशावादी’ प्रयोगधर्मी गद्यकार मानीजै। आप रै उपन्यास अर कहाणी-कला री बात करां तो कैयो जा सकै कै आप रा उपन्यास, उपन्यास जिसा उपन्यास कोनी हुवै अर कहाणियां ई इणी ढाळै। मतलब कै आपरी कहाणी, कहाणी जिसी कहाणी कोनी हुवै। विधावां रा बण्योड़ा अर चलत रा चलतऊ खांचा सूं न्यारो-निरवाळो रूप लेवती आप री रचनावां मांय केई प्रयोग ओळख सकां। ‘आडा-तिरछा लोग’ उपन्यास रो सूत्र अेक कहाणी दांई है। ओछै काल-खंड री दीठ सूं छोटै-सै बगत मांय मोटी बात नै परोटण री खेचळ मिलै। उपन्यास रो खास पात्र पटवारी काण-कायदै आळो अर बडेरा री सीख माथै लैण सूं चालण वाळो पात्र धुरी रूप मिलै।
      उपन्यास रा च्यारूं भाग जाणै च्यारा न्यारी-न्यारी कहाणियां कैवै। आं नै असल मांय च्यार बिंब का कथ्य-रूपक ई मान सकां। च्यारू कहाणियां आपस मांय रळ परी जिण दुनिया री सिरजणा करै उण मांय आडा-तिरछा लोगां नै सीधा-सट्ट करण री कामना तो दीसै ई दीसै, साथै-साथै उपन्यास केई-केई सवाल साम्हीं राखै। किणी पण जातरा का जूण खातर हरेक नै खुद रै मारग री पिछाण पण जरूरी हुवै। मारग केई हुवै अर अेकठ केई मारग साम्हीं आयां हरेक नै खुद रै मारग रो वरण करणो पड़ै। आडा-तिरछा लोगां रा मारग सेवट खूट जावै अर वा नै कोई मजल नीं मिलै। आडा-तिरछा लोगां री बानगी फगत संकेत रूप निजर आवै। अै चरित्र अर पात्र अेक पूरै वर्ग नै अरथावै।
      आ इण उपन्यास अर उपन्यासकार री आ सफलता मानीजैला कै बो जिण दुनिया नै रचै, उण रचाव मांय अेकठ जिका केई-केई रंग भेळा करै, वै रंग जुड़ता-जुड़ता रंगां रो अेक कोलाज बणावै अर उण सूं जिको पूरो अेक चितराम साम्हीं आवै। इण चितराम मांय आपां रै आसै-पासै री दुनियां रा उणियारा चिलकै। आकारा री दीठ सूं ‘आडा-तिरछा लोग’ लघुउपन्यास-सो दिखै पण इण नै महाकाव्यात्मक-उपन्यास बणावै इण मांयला केई-केई घटना-प्रसंग अर संकेत-संदर्भ। जूण रा जिका चितराम इण महाकाव्यात्मक उपन्यास रै मारफत साम्हीं आवै वै आज रै बगत नै अरथावतां चीलै चालती मिनखाजूण नै बिडदावै अर रंग सूंपै।  
      उपन्यास रै पैलै भाग मांय सासू-बहू री बंतळ जिण नाटकीयता सूं खुलती जावै वा असल मांय गूंगै हुवतै संबंधां नै सूत्र देवै कै किणी पण समस्या रो समाधान सेवट बतंळ सूं ई संभव हुय सकै। उपन्यास मांय खुद उपन्यासकार बिना कीं कैयां ओ लाखीणो साच थरप देवै। जे बगतसर आडा-तिरछा लोगां री ओळख नीं करीज सकैला तो कमला, राधा अर उण री छोरी जिसी अबलावां नै आत्महत्या करणी पड़ैला। उपन्यासकार रो मिनखां पेटै ओ सोच आं ओळ्यां मांय देखां- “दो हाथ, दो पग, आंख्यां अर सरीर री दूजी सगळी चीजां ही, इण खातर मिनख तो हा ई सरीर सूं। पण जद उणां रै विचार अर वैवार माथै सोचूं तो मिनख आळी बातां नीं दीसै।” (पेज-59) मधु आचार्य ‘आशावादी’ मिनख री परख विचार अर वैवार सूं करण रा हिमायती कैया जा सकै। चावा-ठावा उपन्यासकार देवकिशन राजपुरोहित उपन्यास रो फ्लैप मांडता लिखै- “उपन्यासकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ आपरी सोझीवान दीठ सूं कथापात्रां रो चरित्र-चित्रण करता थकां भ्रष्टाचार अर बेईमानी नै ठौड़-ठौड़ै भांडै, तो सागै ईमानदारी री सरावणा करण सूं ई नीं चूकै। भूड़ै अर भलै रो भेद भी ओ उपन्यास आछी तरै अरथावै।”
      ‘आंख्यां मांय सुपनो’ संग्रै री कहाणियां मांय केई-केई यादगार पात्र मिलै। दूजै सबदां मांय आ पण कैय सकां कै मधु आचार्य ‘आशावादी’ रै लेखन रो मूळ आधार ई यादगार पात्र है। वै वा यादगार पात्रां री ओळख नै थरपण पेटै ई स्यात सिरजण करै। आपरी हरेक कहाणी अर उपन्यास मांय केई केई यादगार चरित्र आपां रै अंतस मांय घर कर लेवै। मधु आचार्य ‘आशावादी’ री आ कला अर सावचेती मानीजैला कै वै घणै सहज अर सीधै रूप जटिल अर बेजोड़ चरित्रां री सिरजणा करण रो हुनर जाणै। आसावादी सुर, नाटकीय बंतळ अर बेजोड़ पात्र आपरी लेखन री तीन मोटी खासियता मानी जाय सकै।
      दाखलै रूप बात करां तो संग्रै री पैली कहाणी ‘सीर री जूण’ रा मोहन भा आखी जूण बिना किणी रुजगार करियां आखी जूण काढ देवै, सेवट बां रै अंतस माथै अेक टाबर रा बोल जाणै कोई कांकरो बण’र आखी अमूझ नै बारै काढै तो वै दुनिया नै ई छोड़’र जावै परा। दूजी कहाणी ’लाल गोटी’ रा गफूर चाचा आपरै दुख नै आपरै आसै-पसै री दुनिया मांय टाबरा भेळै रम्मता-रम्मता जाणै भुळा’र राखण री अटकळ सीखावै। तो कहाणी ‘आंख्यां मांय सुपनो’ री पार्वती काकी आपरै बेटै री उडीक मांय जीवता-जीव जाणै पाखाण-पूतळी हुय’र खुद अेक कहाणी बण जावै।
      कहाणीकार किणी पात्र का घटना मांय घणखरी बार उमाव रो जिको भाव अेक पेटै दूजै रो दरसावै अर कहाणी नै कहाणी सुणवण-सुणावण री परंपरा सूं जोड़ै। इण बुणगट नै आं कहाणियां री खासियत मान सकां, तो इण नै आपां सींव रूप ई देख सकां। जूनी अर नवी कहाणी मांय मोटो आंतरो परखां तो आज री कहाणी जूण री अबखायां नै अरथावण माथै खास ध्यान देवै। चावा-ठावा कहाणीकार अर संपादक भंवरलाल ‘भ्रमर’ इण संग्रै रो फ्लैप लिखतां लिखै- “आं कहाणियां मांय कहाणीकार रो किणी ढाळै री सीख देवण रो भाव कोनी, बो तो बस आं चरित्रां रै मारफत जीवण रा राग-रंग अर जूझ मांडै जिण सूं कै बांचणियां रै हियै उजास पसरतो जावै।”
      हियै उजास री बात करां तो आं कहाणियां मांय सांप्रदायिक सदभाव, अेकता-अखंडता अर भाईचारो ई उल्लेखजोग मान्यो जावैला। कहाणी ‘धरम री धजा’ मांय मिंदर-मस्जिद नै अेक करण रो सांवठो संदेस देख सकां। अचरज हुवैला कै इण जुग मांय शब्बीर अर जगदीश जिसा मिनख ई हुया। जिण विगत सूं किणी घटना अर चरित्र नै मधु आचार्य ‘आशावादी’ होळै-होळै बखाणै बो कहाणी बांचता-बांचता बांचणियां रै हियै ढूकै। अंतस मांय आपरो रंग-रूप उजागर करिणियां आं बेजोड़ पात्रां माथै पूरो पक्को पतियारो करण रो भाव जागै तो कहाणी ‘सरपंची रो साच’ जिसी रचना सूं दुनिया मांय छळ-छंद करणिया पेटै भूंड रो भाव ई हियै जागै। नवी दुनिया अर इंटरनेट रै चोळका नै कहाणी ‘हेत री सूळ’ बखाणै तो कहणी ‘सेवा रा मेवा’ मांय आधुनिक हुयै समाज रो विरोधाभास अर द्वंद्व उजागर करीज्यो है। कहाणी ‘गोमती री गांगा’ घर-परिवार अर अेक पागल छोरी रै मनोविज्ञान नै सांवठै ढंग सूं साम्हीं राखै।
      कहाणी अर उपन्यास विधा रै तत्विक आधार माथै बात करां तो अकादमिक ढंग सूं बीसूं बातां बखाणीज सकै। अबार इत्तो ई कै बात बीकानेर रै साहित्य जगत मांय अगाडी हुवण सूं चालू करी तो सेवट मांय कैवणो चावूं कै मधु आचार्य ‘आशावादी’ नै बांचता चावा-ठावा उपन्यासकार-कहाणीकार यादवेंद्र शर्मा ‘चन्द्र’ चेतै आवै जिका रै सिरजण मांय केई-केई बेजोड़ पात्र मिलै अर चावा-ठावा कहाणीकार सांवर दइया याद आवै जिका केई संवाद-कहाणियां लिखी। कांई अठै ओ कैवणो वाजिब हुवैला कै आं दोनूं लेखकां री सिरजण-जातरा रो विगसाव मधु आचार्य ‘आशावादी’ रै लेखन मांय देख सकां। मधु आचार्य रो लेखन जथा नांव तथा गुण सूं भरपूर कैयो जाय सकै। आज लोकर्पण री मंगळ-वेळा म्हैं कामना करूं कै आपरी जस-बेल नित सवाई-सांवठी हुवै। आसावादी सुर, नाटकीय बंतळ अर बेजोड़ पात्र नै घणा-घणा रंग। म्हरै ऊपर पतियारो राखता बात कैवण रो अबकी फेर मौको दियो, इण खातर आयोजक संस्था रो जस मानूं। इत्तै नेठाव सूं आप पूरी बात कान मांड’र सुणी, आप रो घणो-घणो आभार। रंग आपनै।
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1.   आडा-तिरछा लोग (उपन्यास) मधु आचार्य आशावादी / प्रकाशन वर्ष : 2015 / पृष्ठ : 96 / मूल्य : 150 /- प्रकाशक : ऋचा (इंडिया) पब्लिशर्स, बिस्सां रो चौक, बीकानेर
2.   आंख्यां मांय सुपनो (कहाणी संग्रै) मधु आचार्य आशावादी / प्रकाशन वर्ष : 2015 / पृष्ठ : 88 / मूल्य : 150 /- प्रकाशक : ऋचा (इंडिया) पब्लिशर्स, बिस्सां रो चौक, बीकानेर










मधु आचार्य ‘आशावादी’
जलम : 27 मार्च, 1960 (विश्व रंगमंच दिवस)
शिक्षा : अेम. अे. (राजनीति विज्ञान), अेलअेल.बी.
कारज : पत्रकारिता अर संपादन
दैनिक भास्कर (बीकानेर) रा कार्यकारी संपादक
सिरजणा : 1990 सूं राजस्थानी अर हिंदी री विविध विधावां मांय लगोलग लेखन। ‘स्वतंत्रता आंदोलन में बीकानेर का योगदान’ विसय माथै सोध।
प्रकाशन : राजस्थानी साहित्य : ‘अंतस उजास’ (नाटक), ‘गवाड़’, ‘अवधूत’, ‘आडा-तिरछा लोग’ (उपन्यास) ‘ऊग्यो चांद ढळ्यो जद सूरज’, ‘आंख्यां मांय सुपनो’ (कहाणी-संग्रै), ‘अमर उडीक’ (कविता-संग्रै), ‘सबद साख’ (राजस्थानी विविधा) रो शिक्षा विभाग, राजस्थान सारू संपादन।
हिन्दी साहित्य : ‘हे मनु!’, ‘खारा पानी’, ‘मेरा शहर’, ‘इन्सानों की मंडी’ @24 घंटे (उपन्यास), ‘सवालों में जिंदगी’, ‘अघोरी’, ‘सुन पगली’ (कहानी-संग्रह), ‘चेहरे से परे’, ‘अनंत इच्छाएं’, ‘मत छीनो आकाश’, ‘आकाश के पार’, ‘नेह से नेह तक’ (कविता-संग्रह), ‘रास्ते हैं, चलें तो सही’ (प्रेरक निबंध), ‘रंगकर्मी रणवीर सिंह’ (मोनोग्राफ)
पुरस्कार : उपन्यास ‘गवाड़’ माथै राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर कानी सूं ‘मुरलीधर व्यास राजस्थानी कथा-पुरस्कार’, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, जोधपुर कानी सूं ‘राज्य स्तरीय नाट्य निर्देशक अवार्ड’,‘शंभू-शेखर सक्सेना विशिष्ट पत्राकारिता पुरस्कार’
जुड़ाव : साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली रै राजस्थानी भासा परामर्श मंडळ रा सदस्य, लगैटगै 75 नाटकां रो निरदेसन अर 200 सूं बेसी नाटकां मांय अभिनय, कई रचनावां रो बीजी भारतीय भासावां मांय अनुवाद। विश्वविद्यालयां कानी सूं रचनावां माथै शोध।
ठावो ठिकाणो : कलकत्तिया भवन, आचार्यां रो चौक, बीकानेर (राजस्थान)
ई मेल : ashawaadi@gmail.com  मो. 9672869385



डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
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आंगळी-सीध

आलोचना रै आंगणै

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