Saturday, January 16, 2021

पुस्तक समीक्षा / डॉ. नीरज दइया

राजस्थानियां खातर भाणाई रो मारग राजस्थानी

            इक्कीसवीं सदी रै लेखै साहित्य मांय केई ऊरमावान रचनाकार अर अनुवादक साम्हीं आया उणा मांय डॉ. जितेंद्र कुमार सोनी रो खास नांव जाणीजै। आपरै कविता संग्रै ‘रणखार’ नै साहित्य अकादेमी नई दिल्ली रो युवा पुरस्कार मिलण साथै मोटी बात राजकाज रै लूंठै कारज मांय हुवता थकां ई लगोलग सिरजण अर अनुसिरजण नै पोखणो मान सकां। नामी पंजाबी कवि हरिभजन सिंह रैणू रै कविता संग्रै, डॉ. मनमोहन सिंह रै पंजाबी उपन्यास अर रस्किन बांड री अंग्रेजी कहाणी-संग्रै रै अनुसिरजण पछै ‘भणाई रो मारग’ जसजोग पोथी कैय सकां। राजस्थान सरकार राजस्थानी भासा री मानता खातर बहुमत सूं प्रस्ताव पास कर’र केंद्र सरकार नै भेज राख्यो है अर अजेस प्रस्ताव विच्याराधीन है।

            आखै देस मांय आज जे किणी रै बिच्यारां रो डंको बाजै तो फगत गांधी जी रो नांव लेय सकां। गांधी जी रै लिखित साहित मांय ठौड़-ठौड़ गुजराती, अंग्रेजी अर हिंदी मांय मातभासा रै पख मांय दाखला मिलै। राजस्थानी रा हेताळू अर ऊरमावान अनुसिरजक डॉ. जितेंद्र कुमार सोनी घणी खमचाई सूं गांधी जी रा भणाई पेटै विचारां नै अंवेरण रो काम कर’र घणी सूझ-बूझ साथै आ पोथी आपां साम्हीं लाया है। इण संचै अर उल्थै बाबत कवि-कथाकार रामस्वरूप किसान मिनख सरीर रा पांच तत्त्वां भेळै छठै तत्त्व भणाई नै जोड़ता अखरावै- ‘इण लेखै भणाई नै छठो तत्त्व ई कैयो जा सकै। तो अबार सवाल उठै कै इण छठै तत्त्व नै हासल करबा रो सैंग सूं सबखो मारग कुणसो है? इण सवाल रो सांचो अर सटीक पड़ूत्तर है आ पोथी। इण रो राजस्थानी मांय आवणो अणमोल्यै धन रो आवणो है।’

            अनुसिरजक डॉ. जितेंद्र कुमार सोनी घणै जतन सूं गांधी जी रै बिच्यारां री अंवेर कर’र बां नै आठ पाठां मांय जचाया है। पोथी मांय गांधी जी रो खुद रो तजरबो जिको ‘हरिजनसेवक’ मांय 09-07-1938 मांय छप्यो उण रो राजस्थानी उल्थो बांचतां लखावै जाणै खुद गांधी जी राजस्थानी मांय बोलता थकां आपां नै समझावण देय रैया है। किणी पोथी री सगळा सूं लांठी बात उल्थै लेखै इण सूं बेसी भळै कांई हुवैला कै इण री भासा मांय गांधी जी रो लटको ठौड़ ठौड़ मैसूस हुवै। इण पोथी परख नै बांचणियां जिका फिल्म मांय मुन्नाभाई नै देख्योड़ा है, बै आ पोथी बांचता मैसूस करैला जाणै आखरां रची इण पोथी सूं गांधी जी बारै आय’र आपां साम्हीं ऊभ जावै अर बै मातभासा बाबत बंतळ करण ढूकै। गांधी जी मुजब बाळकां री भणाई उणां री मातभासा मांय हुवणी जरूरी है, जे मातभासा मांय उणा री सिख्या हुवैला तो बां रो टैम बचैला अर देस आगै बधैला। अठै गांधी जी खुद रै जीवण री निजू केई बातां रै हवालै आ बात साबित करै कै भणाई खुद री भासा मांय ई हुवणी चाइजै। इण पोथी नै प्रामाणिक बणावण खातर हरेक बात पछै उण रो दाखलो तारीख समेत मिलै कै कुण सा बिच्यार कठै सूं लियोड़ा है अर किण तारीख नै बै छप्योड़ा है। 

            पोथी मांय विदेसी मध्यम रो असर, अंग्रेजी बनाम मातभासा, जापान री मिसाल आद केई विसयां पेटै गांधी जी रा विच्यार अंवेरता थकां अनुसिरजक जाणै राजस्थान रै रैवासियां साम्हीं अमोलक हेमाणी सूंपै कारण कै जद सरकारू नवी शिक्षा नीति मांय भणाई री बात मातभासा मांय करावण री बात खास रूप सूं राखीज चुकी है। ‘भणाई रो मारग’ पोथी मांय अंग्रेजी का किणी भासा रो कोई विरोध कोनी बस आपां रै हक री बात करणियां साम्हीं अनुसिरजक सोनी अहिंसा रा पुजारी गांधी जी री लाठी हाथां झलावण रो काम करै। आज री बात करां तो गांधी जी बातां साब साची लखावै, अंग्रेजी हरेक भारतवासी खातर जरूरी कोनी बस कीं टाळवां मिनखां खातर जरूरी हुय सकै है। मिनख नै देस-दुनिया री सगळी बातां-जाणकारियां खुद री भासा मांय मिलण री बात गांधी जी कैयग्या। भास ग्यान रै विगसाव खातर हुवै जद कै मातभासा सूं कटियोड़ा मिनख मिनखाजूण मांय कीं नीं कर सकै अर इण नै इयां पण कैय सकां नै बै जित्तो कीं करण री खिमता राखै बो उत्तो नीं कर सकै। गांधी जी बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी पेटै ई आ बात कैयी- ‘म्हैं आस करूं कै आ यूनीवर्सिटी इण बात रो इंतजाम करैली कै जका जवान छोरा-छोरी अठै भणबा आवै, बांनै बांरी मातभासा रै मरग सिख्या मिलै। आपणी भासा आपणो पड़बिंब हुवै है, अर जे आप कैवो कै आपणी भासावां सांवठै बिच्यारां नै परगट करण मांय असमरथ है, तो म्हैं कैबूंला कै जित्ती बेगी इण दुनिया सूं आपणी हस्ती मिट जावै, बित्ती ई चोखी है।’ (पेज-24) असल मांय आ पोथी राजस्थानियां री बिना राजस्थानी भासा रै जिकी हस्ती मिटती जाय रैयी है का मिटावण री साजिस चाल रैयी है उण पेटै आपां नै सावचेत करै। 

            भारत री न्यारी न्यारी भासावां री लिपि अर रोमन लिपि पेटै ई बिच्यार छेहलै पाठ ‘लिपि री बात’ मांय मिलै। जिका चावै कै रोमन लिपि हुवणी चाइजै बां साम्हीं ओ ‘हरिजन सेवक’ रै दोय अंकां मांय गांधी जी री आं बातां सूं खुलासो हुवै कै देवनागरी लिपि देसभगती अर देसप्रेम रो प्रतीक है।

इण पोथी नै ‘भणाई रो मारग’ नीं कैय’र राजस्थानी रा हेताळूं जे ‘गांधी री लाठी’ कैवै तो ई बेओपती बात नीं हुवैला, क्यूं कै आ ई बा लांठी लाठी है जिकी आपांरै आवतै बगत भासा मानता रै काम मांय काम आवैला। गांधी जी रै इत्तो कैयां पछै अर आं प्रमाणां रै हुवता थका ई जे कोई कानां ठेठी राखै तो कोई कांई कर सकै। इण पोथी रो दूजो महतावू पख आवरण चितराम अर न्यारै-न्यारै चितरामां सूं सजावण वाळा चावा-ठावा चित्रकार रामकिशन अडिग री दीठ अर बोधि प्रकाशन री छपाई नै ई मान सकां जिण सूं पोथी मनमोवणी अर संग्रैजोग बणी है।

पोथी : भणाई रो मारग (अनुवाद) / मूल : महात्मा गांधी / संचै अर उल्थो : डॉ. जितेंद्र कुमार सोनी / प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर / संस्करण : सितम्बर, 2020 / पेज : 32 / मोल : 50/-

डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
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आंगळी-सीध

आलोचना रै आंगणै

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