Sunday, November 20, 2011

आलोचना रै आंगणै / पोथी परख : पारस अरोड़ा

माणक (मासिक) जोधपुर ; अक्टूबर, 2011 अंक

आलोचना रै आंगणै / पोथी परख : पारस अरोड़ा

समाजिक-चेतना रै संजोरा सुरां री कहाणियां

राजस्थानी साहित्य मांय मनोज कुमार स्वामी एक ओळखीजतौ नांव है। काचो सूतकहाणी-संग्रै रै अलावा आपरी बाल-कहाणियां री पोथी- तातड़ै रा आंसू”, कविता संग्रै- बेटीअर लघुनाटक री पोथी- रि-चार्जछप्योड़ी। आप री ओळखाण रा दोय बीजा महतावू पख भळै है कै आप घणै बरसां सूं सूरतगढ़ टाईम्सपखवाड़ियै छापै रै मारफत राजस्थानी रौ डंकौ बजावता रैया है, अर भासा री मान्यता खातर ई दीवानगी री हद तांई भावुकता राखै। जन-चेतना खातर लांबी जातरावां करी, अर पत्रकारिता रै लांठै अनुभव रै पाण काळजौ हिलावै जैड़ा सांच सूं सैंध नित सवाई हुवै। स्यात ऐ ई कारण रैया है कै आपरी रचनावां मांय किणी गोड़ै घड़ियै सांच री ठौड़ खरोखरी देख्यै-भोग्यै अर परखियौ सांच सामीं आवै।
कोई एक लेखक जद न्यारी न्यारी विधावां मांय रचनावां लिखै तद ई उण रचानकार री पण एक विधा मूळ हुया करै। अठै फगत इत्तौ कैयां सरै कोनी कै लेखक मनोज कुमार स्वामी मूल मांय कहाणीकार है। सो बांरै इण कहाणी संग्रै किंयारै मारफत आ पड़ताळ जरूरी लखावै।
रचनाकार जद किणी रचना नै लिखै तद उण री रचना रै मूळ मांय कोई न कोई कारण जरूर हुवै। बिना किणी कारण रै जिकौ कीं रचीजै बा रचना कोनी हुवै। मनोज कुमार स्वामी पत्रकार है सो बां नै नित लिखणौ पड़ै, पण बो लिखणौ अर ओ लिखणौ घणौ दोनूं एक कोनी। तौ कांई पत्रकारिता मांय जिकौ कीं नीं लिखज सकै का जिकौ बठै लिखण मांय छूट जावै...लिखज नीं सकै बो सिरजणा रौ बीज बणै। जिकै नै लिख्यां बिना निरायती नीं मिलै, बो ई कीं किणी रचना री जलमभौम हुय सकै। कोई खबर कहाणी कोनी हुवै पण कहाणी मांय कोई खबर हुय सकै अर असल मांय रचना रै मूळ मकसद मांय एक मकसद आपां नै खबरदार करणौ ई हुया करै। खबरदार करण नै ई दूजै सबदां मांय कैया करां कै- रचना समय अर समाज नै संस्कारित करै।
आपां रै आखती-पाखती रा केई-केई चितराम दीठावां रै रूप किंयाकहाणी-संग्रै री कहाणियां मांय ढाळिया है। मनोज कुमार स्वामी री कहाणी-कला री सब सूं मोटी अर उल्लेखजोग खासियत आ है कै बै आपरै आसै-पासै री घटनावां नै कहाणियां मांय ढाळाती बगत खुद एक खास सामाजिक चेतना रै आगीवाण लेखक री इमेज मांय ढळता जावै। इण बात रौ खुलासौ इण ढाळै समझ सकां कै फिल्मां मांय जिंया अभिनेता मनोज कुमार री छवि भारत नांव अर देस-भगत रै रूप मांय चावी-ठावी हुयगी, ठीक बिंया ई कहाणीकार मनोज कुमार स्वामी ई समाजिक-चेतना रा चावा-ठावा कथाकार हुयग्या है। गांव अर नगरीय जीवण रौ जिकौ रूप बांरी लगैटगै सगळी कहाणियां सामीं आवै, उण मांय मूळ चिंता आधुनिकता अर बदळाव री आंधी सूं लोप हुवतां आपां रा संस्कार दीसै। आं संस्कारां री संभाळ सारू कहाणीकार बारम्बार इण लोक मानस रै सामीं केई कहाणियां मांय ऊभौ हुवतौ दीसै।
छोर्‌यांकहाणी मांय कहाणीकार आपरै सामीं हुयै एक छोटै-सै घटना-प्रसंग नै काहाणी मांय ढाळ देवै। सजीव चित्रात्मक भासा रै पाण इण कहाणी मांय केई केई संकेत कहाणीकार करै, जिंया- विस्थापन रो दरद, आधुनिक हुवतै समाज रा संस्कार, लोक री भासा मांय बदळाव, कामुक दीठ, बाल श्रम, अशिक्षा, नारी असमानता, देस विकास आद। केई सवालां सूं बाथेड़ौ करतौ कहाणीकार जद कळभळीजतौ छेकड़ मांय सवाल करण ढूकै तद आपां रा कान खूसर हाथां मांय आय जावै। इत्तै रसीलै कथा-प्रसंगां पछै इण ढाळै री फंफेड़ी राजस्थानी कहाणी मांय साव नूंवी कही जाय सकै। जे नेठाव सूं विचारां तौ अठै लखावै कै ओ पत्रकार मनोज कुमार स्वामी रौ सामाजिक-चेतना रौ संजोरो सुर है जिण नै उगेरियां बांनै निरायती मिलै।
समाज मांय हुवण आळा छळ-छंदां नै एक पत्रकार किणी रचनाकार सूं बेसी जाणै-समझै-पिछाणै, कारण साफ है कै उण री सदीव भेंटा बां सूं ईज हुवै। आं छळ-छंदां मांय सूं खबर रै असवाड़ै-पसवाड़ै रौ जिकौ सांच खबर मांय ढळणौ चाइजै हौ, पण नीं ढाळीज सकै तद मनोजजी कहाणीकार बणर कहाणी रचै। अर इण रचाव मांय कमती सूं कमती सबदां मांय एक सांच राखणौ ई बां रौ मूळ मकसद लखावतौ रैवै। बै कठैई सबदां नै खेलण कोनी देवै, ना ई सबदां सूं खेलै। कहाणी चालू करतां ई परिवेस अर घटना-संवाद मांय थोड़ै सबदां सूं तुरत किणी साच सामीं पाठक नै ऊभौ कर’र उण जातरा खातर टोर लेवै।
अट्टो-सट्टोका ठाकर कहाणी री बात करां तौ आं मांय कमती सबदां सूं जिण नागै सांच नै कहाणीकार रचै, बो सांच चुभतौ हुय सकै पण बो एक जरूरी सांच है। अठै बाल-विवाह अर जोर-जबरदस्ती जैड़ी सामाजिक कुरीत साथै बो सांच है जिण सूं समाज छिपला खावै, लुकतौ फिरै। ऐड़ै मांय कहाणीकार जाणै कोई आरसी लिया फगत चिलको ई नीं न्हाखै, पण बांचणियां नै दीठाव रै ऐन सामीं ऊभौ कर देवै। कहाणीकार रौ मकसद आपां री आंख्यां खोलण रौ है। पण ओ फैसलौ आपां रौ है कै आपां इण दीठाव सामीं जायर आंख्यां मींच लेवां का आंख्यां खोल सावचेत होय जावां। अठै फगत सावचेत करणौ ई कहाणीकार रौ मकसद कोनी, कहाणीकार री चावना है कै सामाजिक चेतना रै इण सुर नै आपां सुणा अर बगतसर कीं करां।
आंख्यां खोलण अर कीं करण पेटै दोय कहाणियां माथै भळै बात करां। संग्रै री चान्दाअर किंयाकहाणी री कथा-वस्तु मांय जिण ढाळै री बोल्डनेस देखण नै मिलै, बा आधुनिक कहाणी री एक खास धारा कही जाय सकै। चान्दा री नायिका रै मारफत कहाणीकार बाल-ब्यांव रौ संकेत करै, पण असल मांय आ कहाणी समाजिक-चेतना मांय मूल्यां रै पतन रौ परचम लहरावै। कहाणीकार री आ दुविधा कैय सकां है कै बौ किणी अनीत नै स्वीकार करै का नीं करै रै सोच भेळै आपां नै सरीक तौ करै ई करै अर छेकड़ मांय उण नै मनचायौ मोड़ देवै। चान्दा कहाणी बांचता थकां ओळी-ओळी लखावै कै नायिका नै बचण खातर कोई घर कोनी लाधैला। पण नायिका रौ आतमधात नाटकीय अंत सौ लखावै। इणी ढाळै किंयारौ कथा-नायक जिण मनगत अर सोच नै सामीं लावै बौ उत्तर आधुनिक तौ है ईज साथै ई साथै सामाजिक पतन अर अमूल्यन कानीं सागीड़ौ संकेत पण है।
आपांरा ख्यातनांव कथाकार श्रीलाल नथमल जोशी बरसां पैली जिण सामाजिक चेतना खातर बिगुल बजायौ उणी परंपरा आं कहाणियां नै राख सकां। पारटी, जागण, बिरजौआद कहाणियां इणी परंपरा नै पोखै। कहाणीकार उणी बुणगट मांय कहाणी मांडै पण आपरी भासा अर मौलिक सोच रै पाण आधुनिक कहाणी सूं जुड़ै। अठै कहाणीकार समाज री अबखायां सूं मूंड़ौ लुकर किणी फैसनाऊ का चलताऊ बातां नै कहाणी मांय कोनी परोटै। लोग जद जागण का पारटी रै नांव माथै दिखावौ करण लागै तद कहाणीकर आपां नै चेतावै। ओ जागण भगती रै सुख री ठौड़ दुख उपजावण रौ जरियौ बणै का हियै सूं हुवण आळै हेत-मनवार री ठौड़ पारटी मांय दिखावै अर पईसा रौ खोगाळ करीजै तद कहाणी लिखीजै। बिरजौ जद सुख री उडीक मांय तर-तर दुख मांय डूबतौ जावै तद उण री कहाणी मनोजजी नै मांडै पड़ै। आ कहाणीकार री मजबूरी है कै बो जिण घटना-प्रसंगां अर सांच सूं बाथेड़ौ करै तद खुद री निरायती खातर काहणी रै आंगणै बारंबार ढूकै।
सरल-सीधी अर सारआळी बात तौ आ है कै आं कहाणियां री सरलता-सहजता ई सगळा सूं मोटी खासियत बणर सामीं आवै। बिना किणी लाग-लपेट रै कहाणीकार आपां री लौकिक कथा-परंपरा नै परोटतौ थकौ किणी बातेरी दांई जद कहाणी रचण लागै तद बौ आपरी भासा, संवादां रै पाण चरित्र-चित्रण करतौ-करतौ बिना किणी उळझाव रै पाठकां रै हियै तांई मरम आळी बात पूगावण मांय सफल रैवै।
किंयारी इण पड़ताळ पछै आ बात पुखता हुवै कै मनोज कुमार स्वामी रै लेखन री केंद्रीय विधा कहाणी है। बां री दूजी विधावां- कविता, नाटक आद रै लेखन मांय आपां देख सकां कै कथात्मता रौ पलड़ौ भारी रैवै। इण कहाणी-संग्रै री केई कहाणियां सूं राजस्थानी कहाणी जातरा मांय बधापौ हुवैला अर बरसां तांई बै पढेसरियां नै याद रैवैला। उम्मीद करूं कै किंयारौ कोई उथळौ कहाणियां बांच कहाणीकार नै आप ई लिखोला।
नीरज दइया
20 नवम्बर, 2011
टीपू सुल्तान रौ जलमदिन

राजस्थानी कहाणी मांय नुंवी भावधारा रा मंडाण

सायद वैमाता लेख लिखती बगत कोई सिक्कौ उछाळै, कै चित तौ कथाकार अर पट तौ उल्थाकार। कोई जादू तौ जरूर है कै बगत परवाण आपां रा केई रचनाकारां माथै कोई एक छिब चेंठ जावै। आपां आगूंच ई तै कर’र किणी साहित्यकार सारू सोच री सींव बांध लेवां। कदास औ इज कारण है कै ‘राजस्थानी कहाणी आलोचना’ राजस्थानी कथाकार अर उल्थाकार कन्हैयालालजी भाटी री कहाणियां री अंवेर नीं कर सकी। आखै देस मांय नांमी उल्थाकार रै रूप में ओळख कमावणिया भाटीजी लारलै बीस-बाईस बरसां सूं बगत-बगत माथै आपरी मौलिक कहाणियां-कवितावां आद लिखता रैया है। ऐ रचनावां जागती-जोत, बिणजारो, नैणसी आद पत्र-पत्रिकावां मांय प्रकासित हुय’र चरचा मांय ई रैयी पण आप ख्यातनांव उल्थाकार रै रूप मांय ई हुया।
गुजराती साहित्य रै हिंदी अर राजस्थानी उल्थै पेटै लूंठौ काम करणियां मांय एक सिरै नांव कन्हैयालालजी भाटी रौ मानीजै। बरसां लग आप हिंदी-राजस्थानी री पत्र-पत्रिकावां मांय उल्थाकार रै रूप छपता रैया। राजस्थानी उल्थै री केई पोथ्यां ई आपरी साम्हीं आई, पण मूळ मांय बां रौ औ पैलौ कहाणी-संग्रै आपरै हाथां मांय है। उल्थै रौ काम करतां-करतां रचनाकार खुद रै मूळ लेखन नैं कमती आंकण लागै, जदकै उल्थाकार नैं एक रचनाकार करतां घणौ लूंठौ अनुभव अर साहित्य री बेसी समझ हुवै। अठै बां रै इणी अनुभव अर आधुनिक कहाणी री समझ आपां इण कहाणी-संग्रै मांय परतख देख सकां। अफसोस री बात फगत अठै आ इज है कै आ पोथी उण बगत साम्हीं आय रैयी है जदकै वैमाता सिक्कौ लियां उछाळण नै त्यार ऊभी है अर आपां बां री कैंसर सूं मुगती री उडीक मांय ऊभा हा। कैंसर आज घणी लूंठी बीमारी कोनी रैयी। आज मेडिकल साइंस मांय इणरा मोकळा इलाज है। भळै एक साहित्यकार री जीजीविसा रै साम्हीं अंतपंत उणनैं झुकणौ ई पड़ैला। बै राजी खुसी निरोग हुवैला। दवावां जे काम नीं करैला तौ आपां सगळा री दुआवां तौ बां रै साथै है इज।
आं कहाणियां मांय जीवण रा अलेखूं चितराम मूंडै बोलता दीसै। लोकचेतना नैं आं कहाणियां मांय कहाणीकार इण ढाळै परोटै कै बौ आपांरी परंपरा अर आधुनिकता नैं आम्हीं-साम्हीं कर देवै। पण खासियत आ है कै अठै कहाणीकार किणी ढाळै रौ खुद रौ फैसलौ पढण वाळां माथै कोनी लादै। भलां ई आपां आज इक्कीसवीं सदी मांय जीवां, पण लोकविस्वास, जियां कै- ‘जिसा करै बिसा भरै’, ‘जलम-मरण रा चक्कर’, ‘जोग-संजोग’, ‘सनी-वनी’, ‘आतमा-परमातमा’ अर ‘दूसर जलम’ जैड़ी बातां कांई आपां सूं अळघी हो सकी है? इसा केई लोकविस्वास आं कहाणियां मांय सहज भाव सूं परोटीज्या है। आपरै बीत्यै काल सूं किणी गत मुगती पावणौ मिनखां सूं संभव कोनी हुया करै। उणां रौ मन-मगज बीत्यै काल अर आवण आळै काल रै अळूझाड़ मांय उळझ्यौ रैवै। केई वेळा किणी जूनै बेली, रिस्तैदार का बात मांय सूं निकळी बात आपां नैं इणी मनगत मांय लाय ऊभा करै कै आपां कोई फैसलौ ई नीं कर सकां। भाटीजी री कहाणी ‘जीवण रौ जथारथ’ मांय जतन मासी रै मारफत सरला आपरै बीत्यै काल सूं इण भांत आम्हीं-साम्हीं हुवै, जाणै दरद रा दरियाव उफण’र उणरै अंतस नैं पाणी-पाणी कर रैया है। इण कहाणी मांय आपां नैं केई नाटकीय घटनावां रै मारफत कहाणीकार समय अर समाज रै उण साच नैं दरसावणौ चावै कै कोई पण बात जद बिगड़ै तद बा कियां बिगड़ती चली जावै। किणी खास बात नैं आगूंच मन मांय राख्यां ई कदैई कोई सावळ सोच नीं सकै। इण कहाणी री खास बात आ है कै छेकड़ मांय सरला आपरी मासी री बातां नैं अणसुणी कर’र टैक्सी मांय बैठ रवाना होय जावै। जे आ कहाणी परंपराऊ कहाणी हुवती कै लोककथा दांई लिखी जावती तौ छेकड़ मांय कहाणीकार जतन मासी सूं सरला रौ राजीपौ अवस करावतौ। अठै आपां कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां मांय आधुनिक कहाणी री संवेदना, बणगट अर सावचेती नैं देख सकां। 
भाटीजी री कहाणी ‘संजोग’ जागती जोत मांय छपी। आ सागण कहाणी बिणजारो मांय ‘बाईचांस’ नांव सूं छपी। कहाणी ‘बाईचांस’ अर ‘संजोग’ मांयला कीं फरक सूं आपां जाण सकां कै कहाणीकार आपरी दुविधा पाठकां साम्हीं प्रगटै। कहाणी किणी जादू कै किणी खेल नै साम्हीं राखती थकी एक अणसुळझ्यै सवाल नैं सुळझावती दीसै। कहाणी री नायिका रतनी रै ब्यांव रै बरसां पछै ई कोई औलाद कोनी हुई, तौ बा आपरी छोटी बैन मनोहरी रै छोरै बबलूड़ै सूं घणौ हेत राखै। पण घणै हेत मांय रेत पड़ जावै। बबलूड़ौ चालतौ रैवै। पण संजोग औ कै बबलूड़ौ पाछौ रतनी री कोख सूं जलमै! बौ ई फेर मौत रै दस महीनां पछै। अठै लोकविस्वास रौ अळूझाड़ कथाकार समझावै कोनी, फगत मां रै मारफत प्रगटै-दूजै कमरै में बैठी मां आं सब बातां नै सुण रैयी ही। बीं रै मन में एक सवाल उठ्यौ, किणरौ गुड्डौ गमियौ? किण लुकायौ? किण रै हाथ लाग्यौ। आ सगळी भगवान री माया है कै साचाणी कोई संजोग है?
प्रेम मांय बंधण कोनी होवै, पण जद मिनख खुद ई खुद नैं बंधण मांय बांध लेवै तद कोई कांई करै। इण गत रै बंधणां सूं मुगती घणी ओखी हुया करै। इणी साच री साख भरै संग्रै री दोय कहाणियां- ‘छळावौ’ अर ‘मन रौ सळ’। 
‘छळावौ’ मांय जठै सपना अर त्रिलोक आपरी असलियत लुकोवता अणजाणै ई प्रेम रै उण सुख नैं गमाय देवै। आ कहाणी प्रेम बिचाळै पसरतै आंतरै नैं जोरदार दोघाचींती साथै अरथावै। दूजी कहाणी मांय प्रेम अर समाज रै बंधणां रौ खुलासौ हुयौ है कै तीस बरसां पछै पाछौ जे किणी रौ प्रेम साम्हीं आवै, तौ कांई हुवै? प्रेम रै लखाव पछै ई औ कैवणौ- थे पाछा जावौ, एक परंपरा मांय बंधी लुगाई रै दरद नैं दरसावै। प्रेम मांय बगत कठैई आडौ नीं आवै। आ बात आपां मंगळै अर किसतूरी री प्रेमकथा सूं ई जाण सका। कहाणी ‘मुखड़ा अर दरपण’ आपरी बणगट मांय साव नुंवी अबोट संवेदना लियां घणी चतराई सूं लिखीजी है। अठै कथ्य अर भासागत प्रयोग ई उल्लेखजोग है। 
‘लाडेसर’ कहाणी मांय नौकरी करती मां री पीड़ अर टाबर सूं हेत रा हबोळा दीसै। जीवण अर बगत री मजबूरियां ई अठै उजागर हुवै। मां रै मन रौ एक रूप आपां अठै देख सकां। बौ रूप जिकौ टाबर खातर स्सौ कीं त्याग करण रै उपरांत ई ममता रै अणथाग भाव नैं प्रगट करै।
कहाणी ‘ममता री पीड़ा’ राजस्थानी समाज रै रीत-रिवाज अर लोकसंस्कृति नै सांवठै रूप मांय दरसावै। कहाणी मांय कहाणीकार पराई धीवड़ी पेटै जिकी एक मां री ममता दरसावै, बा गीरबैजोग है। आज जद कै प्रीत अर अपणायत जिसा सबद सूकता जाय रैया है अैड़ै बगत मांय पाड़ोसी री छोरी सूं इतरी ममता पाळणी मोटी बात है। कहाणी मांय छेकड़ मोह-ममता रौ जिकौ अंत हुयौ है बौ असल मांय जीवण अर जगत कानीं एक लूंठौ संकेत देवै। आ मोह-माया सूं मुगती अनुभव बिना कोनी हुवै।
‘सांकळ’ कहाणी मांय ई मां-बेटी रै रिस्तै रा केई रंग देखण नै मिलै। अठै आ पण उल्लेखजोग है कै कहाणीकार भासा अर बणगट सूं आधुनिक जीवन-सैली रा ठौड़-ठौड़ घणा सांतरा दीठाव दरसावै। आधुनिकता रै पाण जीवण-सैली मांय आयै बदळावां री पड़ताळ करण पेटै ई आ कहाणी घणी महताऊ है। ‘पगफेरौ’ कहाणी मांय जोग-संजोग अर सनि-वनी री माया साम्हीं आवै। राजस्थानी कहाणी मांय साव नुंवी भावभोम माथै लिखीजी आ कहाणी सदीव याद करीजैला। इण कहाणी री बणगट अर भावभोम तौ नुंवी है ई, पण जिकौ व्यंग्य रौ घणौ-घणौ झीणौ सुर सधतौ निगै आवै बौ साव अबोट अर बेजोड़ कैयौ जाय सकै। आज नारी-अस्मिता री जिकी बात हिंदी अर बीजी भारतीय भासावां री कहाणियां मांय आपां नैं देखण नै मिलै बां रै जोड़ री आ कहाणी है। मिनख कांई-कांई अर कियां बातां री बातां मांय सूं मारग काढै, उणरी एक बानगी ई आपां नैं अठै देखण नै मिलै। 
सार रूप मांय कैवां तौ कन्हैयालालजी भाटी किणी दानै मिनख दांई आं कहाणियां रै मारफत बांचणियां नैं आ सीख देवै कै किणी रै कैणै मांय आय’र कोई काम नीं करणौ। मिनख अक्कल सूं ई सगळा काम करै अर बा जद कोई काढ लेवै कै बा साथ नीं देवै तौ सगळा काम बिगड़ जावै। 
इण कहाणी संग्रै री केई कहाणियां बांचती बगत राजस्थानी घर-परिवार अर समाज री बातां री बणगट मांय गुजराती नवलकथावां रौ रस ई म्हनैं लखावतौ रैयौ। आं कहाणियां मांय गुजरात अर महारास्ट्र रौ परिवेसगत-रंग ई आपां देख सकां। छेकड़ मांय जे एक ओळी मांय कैवां तौ राजस्थानी कहाणी मांय नुंवी भावधारा कन्हैयालालजी भाटी री आं कहाणियां रै मारफत साम्हीं आवती दीसै।
कन्हैयालालजी भाटी आखी ऊमर मास्टरी करी पण स्कूली जीवण-जथारथ माथै कोई कहाणी कोनी लिखी। आप ‘सिविरा’ दफतर मांय रैया, तौ ई दफतरी-जूण बाबत इण संग्रै री कहाणियां मांय कठैई कोई खास दाखलौ कोनी मिलै। खुद रै निजू जीवण-प्रसंगां माथै ई अजेस आप कलम कोनी चलाई। आं सगळी बातां रौ अरथाव फगत औ ई है कै अजै बां रै कनै लिखण सारू खासौ कीं बाकी है। म्हनैं पतियारौ है कै इण कहाणी-संग्रै रौ राजस्थानी साहित्य जगत मांय जोरदार स्वागत होवैला।
-नीरज दइया
11-11-11
(पोथी "कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां" री भूमिका)

Saturday, November 19, 2011

री-चार्ज (राजस्थानी लघुनाटक)

 मूल : मनोज कुमार स्वामी
अनुवाद : नीरज दइया

पात्र
अशोक      : दुकान का मालिक
                                    हरीश       : दुकान पर काम करने वाला
अनिल      : दुकान का सेल्स मेन
भगवान     : भगवान
नारदजी     : नारद मुनि
एक आदमी : मरीज का पुत्र
ॉक्टर                  :  डॉक्टर
दूसरा आदमी      : दूसरे बीमार का पुत्र
तीसरा आदमी : नेता जी का चमचा
मोबाइल कंप्यूटर की आवाज
औरत


दृश्य : एक
(दुकान का दृश्य, मोबाइल की दुकान, अशोक, हरीश, अनिल बातचीत कर रहे हैं)

अशोक -
लाईफ टाइम हो गए अधिकतर कनेक्शन, अब अपना काम कैसे चलेगा ?
अनिल -

काम कैसे नहीं चलेगा, अभी तो लोग-बाग आ रहे हैं । दस-बीस का री-चार्ज करवाने के लिए ।
अशोक -
दस-बीस रुपए से शो-रूम का खरचा निकलेगा क्या ? बिजली के मीटर की चकरी घूमती है तब, एक यूनिट के सात रुपए आते हैं ।
हरीश -
हमने चतुराई तो बहुत की, लेकिन ग्राहक तो हमसे भी होशियार है । अपना काम मिस कॉल से ही निकाल लेता है ।
अनिल -
बात करेंगे तो भी, तुम चिंता मत करना, मैं मिस कॉल कर दूंगा ठीक । और रोटी बनाते ही तू मिस कॉल कर देना । चिंतावाली बात हुई तो मैं तीन-चार मिस कॉल कर दूंगी तब आप समझ जाना । और मुफ्त वाले से बात कर लेना ।
आशोक-
तो अब क्या करें ? इस तरह अपना निर्वाह कैसे होगा ? (सभी एक साथ बोलते हैं) सोचो-सोचो, हां-हां, सोचो-सोचो…… ।
अनिल -
अरे। सुनो सुनो, मेरे दिमाक में एक आइडिया आया है ।
अशोक -
बता बता, जल्दी से बता दे वर्ना भूल जाएगा ।
अनिल -
यदि आदमी की उम्र री-चार्ज का ठेका हमें मिल जाए तो कैसा रहे ?
हरीश -
फिर तो आनंद ही आनंद है, लेकिन यह होगा कैसे ?
अनिल -
मैं बता दूं …?
हरीश -
बता-बता ।
अनिल -
हम भगवान की तपस्या करेंगे ।
अशोक -
हें… तपस्या करेंगे ? तपस्या क्या ऐसे ही बातों से होती है ?
अनिल -
हम भगवान को खुश कर लेंगे ।
हरीश -
भगवान भी क्या आराम से खुश थोड़े ही हो जाते हैं ! इस के लिए तपस्या करनी होगी । और तपस्या के लिए निर्मल मन चाहिए, हमारे मन तो कालिख से भरे पड़े हैं ।
अनिल -
लिजिए, यही तो तुम्हें मालूम नहीं ।
अशोक -
क्या नहीं मालूम ?
अनिल -
भगवान होते हैं भोलेनाथ- उन्हें क्या पता कि हमारे मनों में क्या है ? और हम बेहतरीन चढ़ावे बोलेंगे, पैदल यात्राएं बोलेंगे…।
अशोक -
फिर वे चढ़ावे और यात्राएं पूरी भी करनी होगी तब …?
अनिल -
हुं… पूरी किस लिए करनी होगी ! भगवान तो भूल जाएंगे … इतने में किसी दूसरे भक्त की तरफ वे ध्यान लगा देंगे… ।
हरीश -
तब ठीक है । पर मांगना क्या है ?
अनिल -
मांगना है लाईफ टाईम री-चार्ज !
अशोक -
तो फिर तपस्या किस लिए कर रहे हैं ! लाईफ टाईम री-चार्ज तो अपने पास बहुत ही रखें हैं … और फिर रोना भी किस बात है !
अनिल -
अरे चतुराई की दुम यह लाईफ टाईम री-चार्ज नहीं ।
हरीश -
तो फिर… ?
अनिल -
हम मांगेंगे आदमी की उम्र का लाईफ टाईम री-चार्ज करने का वरदान ।
अशोक -
तो ऐसे कहना था पहले साफ-साफ ।
हरीश -
फिर तो हमारे व्यारे न्यारे हो जाएंगे ।
अशोक -
एक बढ़िया शो-रूम खोल लेंगे ।
अनिल -
फिर शुभ काम में देर किस बात की, जल्दी करो ।
तीनों -
(तीनों तपस्या करते हैं) हे भगवान हम पर खुश हो जाओ । ऐसे घोर कलयुग में देखिए हम आपके भक्त खा-पी कर आपकी तपस्या कर रहे हैं । (काफी देर बाद) देखिए भगवान हमने हमारे टेलीविजनों पर तरह-तरह के चैनलों पर सुंदर-सुंदर सीन चला रखें हैं । अच्छे-अच्छे कार्यक्रम आपको अर्पित है… हे भगवान जी ! आप हम पर खुश हो जाओ ।
अशोक -
खुश हो जाओ भगवान । खुश हो जाओ ।
(पटाखा फूटने की आवाज के साथ ही भगवान का प्रकट होना )
भगवान -
भक्त जनो ! मैं तुम पर बड़ा प्रसन्न हूं । मांगिए क्या मांगते हैं ?
अनिल,
अशोक -

(दोनों) हे भगवन इतने जल्दी कैसे आ गए ?
हरीश -
अरे मुझे तो लगता है कल बाजार में जो बेहरूपिया घूम रहा था, वही भगवान बन कर आ पहुंचा है ।
भगवान -
नालायकों ! भगवान को पहचानते नहीं ।
अशोक -
नहीं नहीं भगवन… ऐसी बात नहीं है, यह हरीशिया तो है ही ऐसा नीच …।
भगवान -
अरे ! पागल भक्तों … मैं सचमुच भगवान हूं । यह देखिए गले में पहना सर्प भी एकदम असली है ।
(सर्प की फुफकार)
तीनों -
(डर से घिग्गी बंघ जाती है) अरे…… नहीं… नहीं… भगवान… जी … पैर पकड़ते हैं । इस काले नाग को अपने काबू में रखिए प्लीज ।
हरीश -
और भगवान आप तो हमें जल्दी से वरदान दे दीजिए । अरे ! अशोक, अनिल यूं बेवकूफों की भांति खड़े क्यों हो…। साक्षात दंडवत प्रणाम करो भगवान को ।
(तीनों दंडवत प्रणाम करते हैं । धें की आवाज उनके नीचे गिरने की)
भगवान -
लो कर लो बात ! मैं तो खुद कब से कह रहा हूं कि जल्दी से वरदान मांग लो । चलिए उठिए, उठ जाओ तीनों… । 
तीनों -
हां, हां । बस भगवान हमें तो आदमी की उम्र का री-चार्ज करने वाली ऐजेंसी दे दीजिए बस । बस और कुछ नहीं मांगते हम ।
भगवान -
उम्र का री-चार्ज…… (सोचते हैं)…।
अशोक -
हां… भगवान जी सोच क्या रहें हैं ? आपने हमें वरदान देने का कह दिया है । अब खुश हुए हैं तो हमें यह वरदान दे ही दीजिए ।
दोनों -
हां यह वरदान तो दे ही दीजिए भगवान ।
भगवान -
दे तो दूंगा लेकिन…… ?
नारद -
(खड़ताल बजाते हुए आते हैं) क्यों भगवन… फंस गए ना, इस मोबाईल युगीन भक्तों के चक्कर में…… । नारायण-नारायण ।  
भगवान -
हें हें… हां … नारदजी ! आप ठीक समय पर आएं हैं …… । कोई उपाय बताओ … अब हम क्या करें ?
नारद -
इन्हें तो वरदान दीजिए भगवन ! नारायण-नारायण ।
भगवान -
वह तो देना ही पड़ेगा ।
नारद -
फिर देवलोक पहुंच कर सोचते हैं कोई उपाय । आप चिंता मत कीजिए भगवन, नेटवर्क तो हमारे हाथ में ही रहेगा… दे दीजिए… और जल्दी से निकल चलिए यहां से । नारायण-नारायण ।
अनिल -
भगवान किस से बातें करने लगे हो ?
भगवान -
कोई नहीं, यह तो नारद जी थे ।
तीनों -
नारदमुनी ! कहां है नादर जी ! हमें तो यहां कहीं दिखाई नहीं देते ।
भगवान -
वे तो नारायण-नारायण कहते हुए चले गए ।
तीनों -
ऐसे कैसे कहते हुए चले गए ! हम से मिले बिना ही ?
भगवान -
आपको नारद जी से क्या लेना है । आप तीनों अपना वरदान दोहराएं ।
भगवान -
(अतिनाटकीय ढंग से) हं-हं-हं, हमें तो बस भगवान …… आप इअतना कीजिए कि बस …… आदमी की उम्र री-चार्ज करने का वरदान दे दीजिए ।
भगवान -
आप हो तो बड़े ही चतुर भक्तों … लेकिन ठीक है… तथास्तु ।
तीनों -
तथास्तु । भगवान आप महान हो … भगवान जी की जय हो … भगवान जी की जय …… ।
(भगवान अंतर्ध्यान हो जाते हैं)
अशोक -
अरे ! गए । भगवान तो चले गए …… । अब जय जयकार की जरूरत नहीं । चलिए हम काम में चलते हैं । यह करना है वह करना है अब तक तो बहुत ही काम करना बाकी है ।
हरीश -
लेकिन हमें मालूम कैसे चलेगा कि किस की लाईफ टाइम खतम होने वाली है ।
अनिल -
लो इतना ही नहीं मालूम ! डॉक्टरों को कमीशन देंगे । जा कर पूछ लेंगे, वे अपने आप ही बता देंगे ।
हरीश -
घरों में भी जा सकते हैं । बूढ़े-बुजुर्गों को टंटोल सकते हैं ।
अनिल -
अरे ! बेवकूफ, बूढ़े-बुजुर्गों के पास कौनसा खजाना पड़ा है ।
हरीश -
चलो अपन प्लान बनाते हैं ।
अशोक -
यह लो अपनी दुकान तो जम गई । अब मैं बैठता हूं काउंटर पर । और आप लाओ ग्रहकों को बहला-फुसला कर ।
अनिल -
चलिए काम का बंटवारा कर लेते हैं ।
हरीश -
मैं जाता हूं अस्पताल की तरफ । और तुम जाओ किसी के घर, देख वहां कहीं कोई बूढ़ा-बुजुर्ग जो अपनी अंतिम सांस ले रहा हो ।
अनिल -
जाता तो हूं मैं पर मेरा मन कहना नहीं मान रहा । बहुत साले लोग तो बूढ़े-बुजुर्गों से तंग आए उकताए बैठे हैं । इंतजार करते हैं उनके मरने का । वे भला क्यों उनका रीचार्ज करवाएंगे ।
हरीश -
अरे तुझे कुछ मालूम नहीं ।
अनिल -
मालूम कैसे नहीं ! मैं बहुत से बुजुर्गों के लिए यही सुनता आया हूं । वे कहते रहते हैं- हे भगवान ! सभी के मां-बाप मरते हैं, पर मेरे वाले जाने कब पीछा छोड़ेंगे ?
अशोक -
अब चुप हो जा और जान ले कि काफी बूढ़े-बुजुर्ग ऐसे भी होते हैं जो अंतिम सांस तक घर वालों को अपने धन की खुशबू ही नहीं लगने देते । वे पूरी गांठ पर अपना कब्जा जमाए रहते हैं, हमें तो ऐसो को खोज निकालना है ।
दोनों -
तो चलिए, हम काम आरंभ करते हैं ।
(दोनों जाते हैं । दृश्य : एक समाप्त)
दृश्य : दो
(अस्पताल का सीन, मरीज, डॉक्टर, नर्सें आदि सभी का मिलाजुला शोर)

हरीश -
डॉक्टर साहब नमस्कार !
डॉक्टर -
नमस्कार, नमस्कार । बोलिए क्या काम है ?
हरीश -
डॉक्टर साहब, मैं री-चार्ज करने वाली दुकान से आया हूं ।
डॉक्टर -
भाई मैंने तो कल ही एक हजार रुपए का रीचार्ज करवाया है, अब और अधिक नहीं करवाना ।
हरीश -
नहीं-नहीं, डॉक्टर साहब ! वह रीचार्ज नहीं । हम तो उम्र का रीचार्ज करते हैं । आप के पास ऐसा कोई सीरियस मरने वाला मरीज हो तो बतला सकते हैं ।
डॉक्टर -
यहां तो सभी सीरियस ही सीरियस है । मुझे छोड़ कर जिससे मन करता हो बात कर के देख लो । वह देखो, उस बेड पर वे लोग सामान इकट्ठा कर रहे हैं । वह मरीज अंतिम सांस ले रहा है ।
हरीश -
ठीक है डॉक्टर जी । मैं देखता हूं …।
एक आदमी -
चलो सामान उठाओ । बाहर ऑटो इंतजार कर रहा है । सांस चल रही है तब तक बापू को घर ले चलते हैं डॉक्टर ने बोला है कि पांच-दस मिनिट की सांसें बाकी है । बस थोड़ी ही देर है ।
हरीश -
रुको-रुको, आप इन्हें घर मत ले कर जाएं…।
एक आदमी -
तो कहां ले जाएं ? तू कहता है तो सीधे समशान ले चले । घर नहीं ले जाएं तो क्या तेरे साथ भेज दें ? हें ! नाहक बात करता है ।
हरीश -
हां-हां, मेरे साथ ले चलिए । हमारे पास उम्र रीचार्ज करने की ऐजेंसी है । हम बाबा की उम्र बढ़ा देंगे ।
एक आदमी -
उम्र बढ़ा देंगे ! क्यों बेहूदा मजाक कर रहे हो मेरे भाई । बाबा के पास तो अब रहे ही पांच मिनिट है ।
हरीश -
आप लोग चलिए तो सही । बैठ कर ऑटो में चलना ही तो है…। चलो । अब देखो… ले चलो ।
( ऑटो की आवाज… रास्ते का शोर-शराबा- मोटर-गाड़ियों के होर्नों की पों-पों)
हरीश -
यह लीजिए यहां तो जाम लग गया है । हे भगवान जाम खोलो… मुझे उम्र का रीचार्ज करना है । अरे कोई तो खुलवाओ… (पों…पों…पों…) अरे पांच मिनिट तो यहीं पूरे हो गए…… ।
एक आदमी -
बाबा तो स्वर्ग सिधार गए । चलो अब तो घर ही ले चलते हैं । आया बहुत तीस मार खां, उम्र का रीचार्ज करने वाला । चल बहुत हुआ… अब उतर जा ऑटो से …चल निकल ।
हरीश -
अरे ! धक्का तो मर दीजिए । मैं उतर ही रहा हूं …… ।
( ऑटो स्टार्ट होने की ध्वनि… घर जाता हुआ)
(हरीश दुकान पर आता है ।)
अशोक -
अरे, ऐसे कैसे सुस्त सुस्त सा कहां से चला आ रहा है …। बता तो सही आखिर हुआ क्या ? किसी से मार-पीट हुई क्या ?
हरीश -
मार-पीट तो क्या होती… लेकिन एक ग्राहक ला रहा था । पांच मिनिट ही बचे थे उसके पास !
अशोक -
फिर क्या हुआ ?
हरीश -
होना क्या था … हम लोग आ ही रहे थे । मरने में पांच मिनिट ही बाकी थे ।
अशोक -
फिर हुआ क्या ?
हरीश -
होना क्या था… आ तो रहे थे कि चौक पर जाम लग गया । जाम में फंसे क्या कि पांच मिनिट पूरे हो गए । बूढ़े ने विदाई ले ली ।
अशोक -
ले यह अनिल भी आ गया । अरे, कैसे ? कोई ग्राहक लाया क्या ?
अनिल -
ग्राहक तो भला ही था पर निकले कि कार पंचर हो गई और हवा निकल गई । उसकी उम्र के पंद्रहा मिनिट ही शेष थे । पंचर निकलवाते वक्त ही सेठ पिछली सीट पर लम्बा हो गया ।
तीनों -
अब क्या करें … ऐसे तो हम बरबाद हो जाएंगे । सोचो… कुछ तो सोचो (सोचते हैं……। फिर चुटकी बजाते हुए) हूं SS……। 
अशोक -
अरे मूर्खों सुनो ! एक आईडिया आया है मेरे दिमाग में । आप क्या है कि डेमू रखो पास । हाथोंहाथ रीचार्ज कर दिया करना । और वहीं पेमैंट ले लिया करना ।
अनिल,
हरीश -

(दोनों) हां… हां…। यह ठीक रहेगा । लाओ हमे एक एक डेमू सिम दे दो । अर हजार हजार मिनिट की सांसों का री-चार्ज भी डाल देना ।  
अशोक -
 यह लो……तैयार ।
(दोनों जाते हैं । दृश्य : दो समाप्त)


दृश्य : तीन

हरीश -
आज तो हर हाल में री-चार्ज करूंगा ही । और मुंह मांगी रकम भी लूंगा । दुकान पर जा कर आधे ही कहूंगा । उसे क्या पता कि आधे रुपए तो मैं डकार गया ।
(एक घर में जाता है)
दूसरा आदमी -
पाप हिम्मत ना हारें । डॉक्टर साहब ने कहा है कि गंगानगर पहुंचने पर बात बन जाएगी । एक-डेढ़ घंटे में गंगानगर हम पहुंच जाएंगे ।
हरीश -
लीजिए चिंता की कोई बात नहीं है जी । आप कहें तो उम्र रीचार्ज कर देता हूं ।
दूसरा आदमी -
उम्र रीचार्ज ! यह कैसे संभव है ?
हरीश -
हम यही काम करते हैं । हमारे पास उम्र रीचार्ज की ऐजेंसी है ।
दूसरा आदमी -
क्या लेंगे ? कैसे करते हैं ?
हरीश -
एक हजार रुपए एक मिनिट के लगेंगे ।
दूसरा आदमी -
एक हजार रुपए एक मिनिट के ! यह कुछ अधिक नहीं मांग रहे आप । कुछ तो कम कीजिए ।
हरीश -
भाई साहब… यह तो मैंने कम ही मांगे हैं । थोड़े दिनों बाद तो ब्लेक चलेगी । बोलिए …… बोलिए कितने मिनिट का कर दूं ……।
दूसरा आदमी -
चलिए पहले तो सौ मिनिट का कर दीजिए जल्दी से । हमें जल्दी गंगानगर पहुंचना है । बाकी का बाद में देखेंगे ।
हरीश -
लीजिए अभी कर देता हूं ।
(नम्बर मिलाता है । मोबाइल नम्बर मिलाने की आवाज- लाईफ टाईम स्वर्ग-नर्क के बीच यमराज-मार्ग पर आपका स्वागत है । इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं । कृपया लाइन पर बने रहें या थोड़ी देर बाद फिर से कॉल करें । ……   )
हरीश -
क्या हुआ इसे । अभी होना था, हे भगवान … अबकी बार तो जरूर लग जाना ।
(री-डायल करता है । री-डायल की आवाज आती है ।)
दूसरा आदमी -
बापू SS … आप हमें छोड़ कर चले गए । हमने तो बहुत ही प्रयास किया । देखो आपकी उम्र का रीचार्ज करने भरसक प्रयास कर रहें हैं…। बापू… लाइनें ही व्यस्त थी … बापू…… । 
(दृश्य : तीन समाप्त)

दृश्य : चार

तीसरा आदमी -
नेताजी को पर्चा भरने जाना है और इधर हार्ट अटेक हो गया, अब क्या करें । कुछ समझ में नहीं आता ।
अनिल -
क्या बात है भाई । सभी चिंताग्रस्त क्यों दिखाई दे रहे हो ?
तीसरा आदमी -
क्या बतलाएं भाई । पर्चा भरने जाना का समय है सवा ग्यारह बजे का और नेता जी को हार्ट अटेक आ गया । क्या करें ।
अनिल -
तो डर किस बात का है । हमारे पास है उम्र रीचार्ज करने का सिम । मैं यहां बैठे-बैठे ही नेता जी की उम्र का रीचार्ज करवा देता हूं ।
तीसरा आदमी -
अच्छा यह बात है । तो फिर जल्दी से करो भाई ।
(अनिल नम्बर डायल करता है …… मोबाइल से आवाज आती है- इस रूट की सभी लाइने व्यस्त हैं , आप लाईन में हैं…। आप लाईन में हैं …। फिर मिलाता है… सुनाई देता है- …… द डायल नम्बर डज नोट एग्जिस्ट । प्लीज चैक द नम्बर ।)  
तीसरा आदमी -
अरे… भागो… डॉक्टर … अरे ऐम्बूलेंस मंगवाओ…… नेताजी का तो राम नाम सत हो गया……।
अनिल -
(मन ही मन) बेटा अब तो यहां से भाग जाने में ही भलाई है । नहीं तो यह नेताजी का चमचा कहीं मेरा ही रीचार्ज करवा देगा ।
( दृश्य : चार समाप्त)


दृश्य : पांच

अशोक -
आ जाओ, आ जाओ । जल्दी करो । लाओ दिखाओ कितना कितना रीचार्ज कर के आए हो । रुपए तो पीछे रिक्से में आ रहे होंगे । क्यों कि इतने रुपए तुम जैसे मरियल उठा के थोड़े ही चल सकते हैं ।
हरीश, अनिल -
(दोनों) कैसे रुपए ! एक भी रीचार्ज नहीं हुआ । सारी लाइनें ही खराब हैं । या फिर नेटवर्क बीजी । हम तो हमारी जान बचाकर यहां भागते हुए आएं हैं, वह भी बड़ी मुश्किल से ।
अनिल -
ऐसे कैसे हो सकता है । यह तो सरासर धोखा है भगवान । भगवान आप ही ने तो हमे उम्र रीचार्ज करने का चार्ज दिया था ।
( दृश्य : पांच समाप्त)

दृश्य : छः

(अशोक पलंग पर सोया दिखाई देता है, पास में स्टूल रखा है ।)
नींद में बोलते हुए : यह नहीं हो सकता । हम भगवान है तो क्या हुआ उपभोक्ता अदालत में खींच लेंगे । कैसा अंधेर है । वरदान दे दिया और …फिर…।
औरत -
(हाथ में चाय का गिलास ले कर आती है । कंधा पकड़ कर) अरे ! आज उठना नहीं है क्या ? दुकान नहीं जाना है क्या ? अब जल्दी से खड़े हो जाओ… । यहां चाय रखती हूं । ठंडी हो जाए तो फिर मुझे मत कहना…।
(चली जाती है ।)
अशोक -
हें……।
( दृश्य : छः समाप्त)

***

मूल : मनोज कुमार स्वामी
अनुवाद : नीरज दइया

डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

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संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
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