Sunday, November 20, 2011

राजस्थानी कहाणी मांय नुंवी भावधारा रा मंडाण

सायद वैमाता लेख लिखती बगत कोई सिक्कौ उछाळै, कै चित तौ कथाकार अर पट तौ उल्थाकार। कोई जादू तौ जरूर है कै बगत परवाण आपां रा केई रचनाकारां माथै कोई एक छिब चेंठ जावै। आपां आगूंच ई तै कर’र किणी साहित्यकार सारू सोच री सींव बांध लेवां। कदास औ इज कारण है कै ‘राजस्थानी कहाणी आलोचना’ राजस्थानी कथाकार अर उल्थाकार कन्हैयालालजी भाटी री कहाणियां री अंवेर नीं कर सकी। आखै देस मांय नांमी उल्थाकार रै रूप में ओळख कमावणिया भाटीजी लारलै बीस-बाईस बरसां सूं बगत-बगत माथै आपरी मौलिक कहाणियां-कवितावां आद लिखता रैया है। ऐ रचनावां जागती-जोत, बिणजारो, नैणसी आद पत्र-पत्रिकावां मांय प्रकासित हुय’र चरचा मांय ई रैयी पण आप ख्यातनांव उल्थाकार रै रूप मांय ई हुया।
गुजराती साहित्य रै हिंदी अर राजस्थानी उल्थै पेटै लूंठौ काम करणियां मांय एक सिरै नांव कन्हैयालालजी भाटी रौ मानीजै। बरसां लग आप हिंदी-राजस्थानी री पत्र-पत्रिकावां मांय उल्थाकार रै रूप छपता रैया। राजस्थानी उल्थै री केई पोथ्यां ई आपरी साम्हीं आई, पण मूळ मांय बां रौ औ पैलौ कहाणी-संग्रै आपरै हाथां मांय है। उल्थै रौ काम करतां-करतां रचनाकार खुद रै मूळ लेखन नैं कमती आंकण लागै, जदकै उल्थाकार नैं एक रचनाकार करतां घणौ लूंठौ अनुभव अर साहित्य री बेसी समझ हुवै। अठै बां रै इणी अनुभव अर आधुनिक कहाणी री समझ आपां इण कहाणी-संग्रै मांय परतख देख सकां। अफसोस री बात फगत अठै आ इज है कै आ पोथी उण बगत साम्हीं आय रैयी है जदकै वैमाता सिक्कौ लियां उछाळण नै त्यार ऊभी है अर आपां बां री कैंसर सूं मुगती री उडीक मांय ऊभा हा। कैंसर आज घणी लूंठी बीमारी कोनी रैयी। आज मेडिकल साइंस मांय इणरा मोकळा इलाज है। भळै एक साहित्यकार री जीजीविसा रै साम्हीं अंतपंत उणनैं झुकणौ ई पड़ैला। बै राजी खुसी निरोग हुवैला। दवावां जे काम नीं करैला तौ आपां सगळा री दुआवां तौ बां रै साथै है इज।
आं कहाणियां मांय जीवण रा अलेखूं चितराम मूंडै बोलता दीसै। लोकचेतना नैं आं कहाणियां मांय कहाणीकार इण ढाळै परोटै कै बौ आपांरी परंपरा अर आधुनिकता नैं आम्हीं-साम्हीं कर देवै। पण खासियत आ है कै अठै कहाणीकार किणी ढाळै रौ खुद रौ फैसलौ पढण वाळां माथै कोनी लादै। भलां ई आपां आज इक्कीसवीं सदी मांय जीवां, पण लोकविस्वास, जियां कै- ‘जिसा करै बिसा भरै’, ‘जलम-मरण रा चक्कर’, ‘जोग-संजोग’, ‘सनी-वनी’, ‘आतमा-परमातमा’ अर ‘दूसर जलम’ जैड़ी बातां कांई आपां सूं अळघी हो सकी है? इसा केई लोकविस्वास आं कहाणियां मांय सहज भाव सूं परोटीज्या है। आपरै बीत्यै काल सूं किणी गत मुगती पावणौ मिनखां सूं संभव कोनी हुया करै। उणां रौ मन-मगज बीत्यै काल अर आवण आळै काल रै अळूझाड़ मांय उळझ्यौ रैवै। केई वेळा किणी जूनै बेली, रिस्तैदार का बात मांय सूं निकळी बात आपां नैं इणी मनगत मांय लाय ऊभा करै कै आपां कोई फैसलौ ई नीं कर सकां। भाटीजी री कहाणी ‘जीवण रौ जथारथ’ मांय जतन मासी रै मारफत सरला आपरै बीत्यै काल सूं इण भांत आम्हीं-साम्हीं हुवै, जाणै दरद रा दरियाव उफण’र उणरै अंतस नैं पाणी-पाणी कर रैया है। इण कहाणी मांय आपां नैं केई नाटकीय घटनावां रै मारफत कहाणीकार समय अर समाज रै उण साच नैं दरसावणौ चावै कै कोई पण बात जद बिगड़ै तद बा कियां बिगड़ती चली जावै। किणी खास बात नैं आगूंच मन मांय राख्यां ई कदैई कोई सावळ सोच नीं सकै। इण कहाणी री खास बात आ है कै छेकड़ मांय सरला आपरी मासी री बातां नैं अणसुणी कर’र टैक्सी मांय बैठ रवाना होय जावै। जे आ कहाणी परंपराऊ कहाणी हुवती कै लोककथा दांई लिखी जावती तौ छेकड़ मांय कहाणीकार जतन मासी सूं सरला रौ राजीपौ अवस करावतौ। अठै आपां कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां मांय आधुनिक कहाणी री संवेदना, बणगट अर सावचेती नैं देख सकां। 
भाटीजी री कहाणी ‘संजोग’ जागती जोत मांय छपी। आ सागण कहाणी बिणजारो मांय ‘बाईचांस’ नांव सूं छपी। कहाणी ‘बाईचांस’ अर ‘संजोग’ मांयला कीं फरक सूं आपां जाण सकां कै कहाणीकार आपरी दुविधा पाठकां साम्हीं प्रगटै। कहाणी किणी जादू कै किणी खेल नै साम्हीं राखती थकी एक अणसुळझ्यै सवाल नैं सुळझावती दीसै। कहाणी री नायिका रतनी रै ब्यांव रै बरसां पछै ई कोई औलाद कोनी हुई, तौ बा आपरी छोटी बैन मनोहरी रै छोरै बबलूड़ै सूं घणौ हेत राखै। पण घणै हेत मांय रेत पड़ जावै। बबलूड़ौ चालतौ रैवै। पण संजोग औ कै बबलूड़ौ पाछौ रतनी री कोख सूं जलमै! बौ ई फेर मौत रै दस महीनां पछै। अठै लोकविस्वास रौ अळूझाड़ कथाकार समझावै कोनी, फगत मां रै मारफत प्रगटै-दूजै कमरै में बैठी मां आं सब बातां नै सुण रैयी ही। बीं रै मन में एक सवाल उठ्यौ, किणरौ गुड्डौ गमियौ? किण लुकायौ? किण रै हाथ लाग्यौ। आ सगळी भगवान री माया है कै साचाणी कोई संजोग है?
प्रेम मांय बंधण कोनी होवै, पण जद मिनख खुद ई खुद नैं बंधण मांय बांध लेवै तद कोई कांई करै। इण गत रै बंधणां सूं मुगती घणी ओखी हुया करै। इणी साच री साख भरै संग्रै री दोय कहाणियां- ‘छळावौ’ अर ‘मन रौ सळ’। 
‘छळावौ’ मांय जठै सपना अर त्रिलोक आपरी असलियत लुकोवता अणजाणै ई प्रेम रै उण सुख नैं गमाय देवै। आ कहाणी प्रेम बिचाळै पसरतै आंतरै नैं जोरदार दोघाचींती साथै अरथावै। दूजी कहाणी मांय प्रेम अर समाज रै बंधणां रौ खुलासौ हुयौ है कै तीस बरसां पछै पाछौ जे किणी रौ प्रेम साम्हीं आवै, तौ कांई हुवै? प्रेम रै लखाव पछै ई औ कैवणौ- थे पाछा जावौ, एक परंपरा मांय बंधी लुगाई रै दरद नैं दरसावै। प्रेम मांय बगत कठैई आडौ नीं आवै। आ बात आपां मंगळै अर किसतूरी री प्रेमकथा सूं ई जाण सका। कहाणी ‘मुखड़ा अर दरपण’ आपरी बणगट मांय साव नुंवी अबोट संवेदना लियां घणी चतराई सूं लिखीजी है। अठै कथ्य अर भासागत प्रयोग ई उल्लेखजोग है। 
‘लाडेसर’ कहाणी मांय नौकरी करती मां री पीड़ अर टाबर सूं हेत रा हबोळा दीसै। जीवण अर बगत री मजबूरियां ई अठै उजागर हुवै। मां रै मन रौ एक रूप आपां अठै देख सकां। बौ रूप जिकौ टाबर खातर स्सौ कीं त्याग करण रै उपरांत ई ममता रै अणथाग भाव नैं प्रगट करै।
कहाणी ‘ममता री पीड़ा’ राजस्थानी समाज रै रीत-रिवाज अर लोकसंस्कृति नै सांवठै रूप मांय दरसावै। कहाणी मांय कहाणीकार पराई धीवड़ी पेटै जिकी एक मां री ममता दरसावै, बा गीरबैजोग है। आज जद कै प्रीत अर अपणायत जिसा सबद सूकता जाय रैया है अैड़ै बगत मांय पाड़ोसी री छोरी सूं इतरी ममता पाळणी मोटी बात है। कहाणी मांय छेकड़ मोह-ममता रौ जिकौ अंत हुयौ है बौ असल मांय जीवण अर जगत कानीं एक लूंठौ संकेत देवै। आ मोह-माया सूं मुगती अनुभव बिना कोनी हुवै।
‘सांकळ’ कहाणी मांय ई मां-बेटी रै रिस्तै रा केई रंग देखण नै मिलै। अठै आ पण उल्लेखजोग है कै कहाणीकार भासा अर बणगट सूं आधुनिक जीवन-सैली रा ठौड़-ठौड़ घणा सांतरा दीठाव दरसावै। आधुनिकता रै पाण जीवण-सैली मांय आयै बदळावां री पड़ताळ करण पेटै ई आ कहाणी घणी महताऊ है। ‘पगफेरौ’ कहाणी मांय जोग-संजोग अर सनि-वनी री माया साम्हीं आवै। राजस्थानी कहाणी मांय साव नुंवी भावभोम माथै लिखीजी आ कहाणी सदीव याद करीजैला। इण कहाणी री बणगट अर भावभोम तौ नुंवी है ई, पण जिकौ व्यंग्य रौ घणौ-घणौ झीणौ सुर सधतौ निगै आवै बौ साव अबोट अर बेजोड़ कैयौ जाय सकै। आज नारी-अस्मिता री जिकी बात हिंदी अर बीजी भारतीय भासावां री कहाणियां मांय आपां नैं देखण नै मिलै बां रै जोड़ री आ कहाणी है। मिनख कांई-कांई अर कियां बातां री बातां मांय सूं मारग काढै, उणरी एक बानगी ई आपां नैं अठै देखण नै मिलै। 
सार रूप मांय कैवां तौ कन्हैयालालजी भाटी किणी दानै मिनख दांई आं कहाणियां रै मारफत बांचणियां नैं आ सीख देवै कै किणी रै कैणै मांय आय’र कोई काम नीं करणौ। मिनख अक्कल सूं ई सगळा काम करै अर बा जद कोई काढ लेवै कै बा साथ नीं देवै तौ सगळा काम बिगड़ जावै। 
इण कहाणी संग्रै री केई कहाणियां बांचती बगत राजस्थानी घर-परिवार अर समाज री बातां री बणगट मांय गुजराती नवलकथावां रौ रस ई म्हनैं लखावतौ रैयौ। आं कहाणियां मांय गुजरात अर महारास्ट्र रौ परिवेसगत-रंग ई आपां देख सकां। छेकड़ मांय जे एक ओळी मांय कैवां तौ राजस्थानी कहाणी मांय नुंवी भावधारा कन्हैयालालजी भाटी री आं कहाणियां रै मारफत साम्हीं आवती दीसै।
कन्हैयालालजी भाटी आखी ऊमर मास्टरी करी पण स्कूली जीवण-जथारथ माथै कोई कहाणी कोनी लिखी। आप ‘सिविरा’ दफतर मांय रैया, तौ ई दफतरी-जूण बाबत इण संग्रै री कहाणियां मांय कठैई कोई खास दाखलौ कोनी मिलै। खुद रै निजू जीवण-प्रसंगां माथै ई अजेस आप कलम कोनी चलाई। आं सगळी बातां रौ अरथाव फगत औ ई है कै अजै बां रै कनै लिखण सारू खासौ कीं बाकी है। म्हनैं पतियारौ है कै इण कहाणी-संग्रै रौ राजस्थानी साहित्य जगत मांय जोरदार स्वागत होवैला।
-नीरज दइया
11-11-11
(पोथी "कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां" री भूमिका)

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डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

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संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
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