Sunday, November 20, 2011

समाजिक-चेतना रै संजोरा सुरां री कहाणियां

राजस्थानी साहित्य मांय मनोज कुमार स्वामी एक ओळखीजतौ नांव है। काचो सूतकहाणी-संग्रै रै अलावा आपरी बाल-कहाणियां री पोथी- तातड़ै रा आंसू”, कविता संग्रै- बेटीअर लघुनाटक री पोथी- रि-चार्जछप्योड़ी। आप री ओळखाण रा दोय बीजा महतावू पख भळै है कै आप घणै बरसां सूं सूरतगढ़ टाईम्सपखवाड़ियै छापै रै मारफत राजस्थानी रौ डंकौ बजावता रैया है, अर भासा री मान्यता खातर ई दीवानगी री हद तांई भावुकता राखै। जन-चेतना खातर लांबी जातरावां करी, अर पत्रकारिता रै लांठै अनुभव रै पाण काळजौ हिलावै जैड़ा सांच सूं सैंध नित सवाई हुवै। स्यात ऐ ई कारण रैया है कै आपरी रचनावां मांय किणी गोड़ै घड़ियै सांच री ठौड़ खरोखरी देख्यै-भोग्यै अर परखियौ सांच सामीं आवै।
कोई एक लेखक जद न्यारी न्यारी विधावां मांय रचनावां लिखै तद ई उण रचानकार री पण एक विधा मूळ हुया करै। अठै फगत इत्तौ कैयां सरै कोनी कै लेखक मनोज कुमार स्वामी मूल मांय कहाणीकार है। सो बांरै इण कहाणी संग्रै किंयारै मारफत आ पड़ताळ जरूरी लखावै।
रचनाकार जद किणी रचना नै लिखै तद उण री रचना रै मूळ मांय कोई न कोई कारण जरूर हुवै। बिना किणी कारण रै जिकौ कीं रचीजै बा रचना कोनी हुवै। मनोज कुमार स्वामी पत्रकार है सो बां नै नित लिखणौ पड़ै, पण बो लिखणौ अर ओ लिखणौ घणौ दोनूं एक कोनी। तौ कांई पत्रकारिता मांय जिकौ कीं नीं लिखज सकै का जिकौ बठै लिखण मांय छूट जावै...लिखज नीं सकै बो सिरजणा रौ बीज बणै। जिकै नै लिख्यां बिना निरायती नीं मिलै, बो ई कीं किणी रचना री जलमभौम हुय सकै। कोई खबर कहाणी कोनी हुवै पण कहाणी मांय कोई खबर हुय सकै अर असल मांय रचना रै मूळ मकसद मांय एक मकसद आपां नै खबरदार करणौ ई हुया करै। खबरदार करण नै ई दूजै सबदां मांय कैया करां कै- रचना समय अर समाज नै संस्कारित करै।
आपां रै आखती-पाखती रा केई-केई चितराम दीठावां रै रूप किंयाकहाणी-संग्रै री कहाणियां मांय ढाळिया है। मनोज कुमार स्वामी री कहाणी-कला री सब सूं मोटी अर उल्लेखजोग खासियत आ है कै बै आपरै आसै-पासै री घटनावां नै कहाणियां मांय ढाळाती बगत खुद एक खास सामाजिक चेतना रै आगीवाण लेखक री इमेज मांय ढळता जावै। इण बात रौ खुलासौ इण ढाळै समझ सकां कै फिल्मां मांय जिंया अभिनेता मनोज कुमार री छवि भारत नांव अर देस-भगत रै रूप मांय चावी-ठावी हुयगी, ठीक बिंया ई कहाणीकार मनोज कुमार स्वामी ई समाजिक-चेतना रा चावा-ठावा कथाकार हुयग्या है। गांव अर नगरीय जीवण रौ जिकौ रूप बांरी लगैटगै सगळी कहाणियां सामीं आवै, उण मांय मूळ चिंता आधुनिकता अर बदळाव री आंधी सूं लोप हुवतां आपां रा संस्कार दीसै। आं संस्कारां री संभाळ सारू कहाणीकार बारम्बार इण लोक मानस रै सामीं केई कहाणियां मांय ऊभौ हुवतौ दीसै।
छोर्‌यांकहाणी मांय कहाणीकार आपरै सामीं हुयै एक छोटै-सै घटना-प्रसंग नै काहाणी मांय ढाळ देवै। सजीव चित्रात्मक भासा रै पाण इण कहाणी मांय केई केई संकेत कहाणीकार करै, जिंया- विस्थापन रो दरद, आधुनिक हुवतै समाज रा संस्कार, लोक री भासा मांय बदळाव, कामुक दीठ, बाल श्रम, अशिक्षा, नारी असमानता, देस विकास आद। केई सवालां सूं बाथेड़ौ करतौ कहाणीकार जद कळभळीजतौ छेकड़ मांय सवाल करण ढूकै तद आपां रा कान खूसर हाथां मांय आय जावै। इत्तै रसीलै कथा-प्रसंगां पछै इण ढाळै री फंफेड़ी राजस्थानी कहाणी मांय साव नूंवी कही जाय सकै। जे नेठाव सूं विचारां तौ अठै लखावै कै ओ पत्रकार मनोज कुमार स्वामी रौ सामाजिक-चेतना रौ संजोरो सुर है जिण नै उगेरियां बांनै निरायती मिलै।
समाज मांय हुवण आळा छळ-छंदां नै एक पत्रकार किणी रचनाकार सूं बेसी जाणै-समझै-पिछाणै, कारण साफ है कै उण री सदीव भेंटा बां सूं ईज हुवै। आं छळ-छंदां मांय सूं खबर रै असवाड़ै-पसवाड़ै रौ जिकौ सांच खबर मांय ढळणौ चाइजै हौ, पण नीं ढाळीज सकै तद मनोजजी कहाणीकार बणर कहाणी रचै। अर इण रचाव मांय कमती सूं कमती सबदां मांय एक सांच राखणौ ई बां रौ मूळ मकसद लखावतौ रैवै। बै कठैई सबदां नै खेलण कोनी देवै, ना ई सबदां सूं खेलै। कहाणी चालू करतां ई परिवेस अर घटना-संवाद मांय थोड़ै सबदां सूं तुरत किणी साच सामीं पाठक नै ऊभौ कर’र उण जातरा खातर टोर लेवै।
अट्टो-सट्टोका ठाकर कहाणी री बात करां तौ आं मांय कमती सबदां सूं जिण नागै सांच नै कहाणीकार रचै, बो सांच चुभतौ हुय सकै पण बो एक जरूरी सांच है। अठै बाल-विवाह अर जोर-जबरदस्ती जैड़ी सामाजिक कुरीत साथै बो सांच है जिण सूं समाज छिपला खावै, लुकतौ फिरै। ऐड़ै मांय कहाणीकार जाणै कोई आरसी लिया फगत चिलको ई नीं न्हाखै, पण बांचणियां नै दीठाव रै ऐन सामीं ऊभौ कर देवै। कहाणीकार रौ मकसद आपां री आंख्यां खोलण रौ है। पण ओ फैसलौ आपां रौ है कै आपां इण दीठाव सामीं जायर आंख्यां मींच लेवां का आंख्यां खोल सावचेत होय जावां। अठै फगत सावचेत करणौ ई कहाणीकार रौ मकसद कोनी, कहाणीकार री चावना है कै सामाजिक चेतना रै इण सुर नै आपां सुणा अर बगतसर कीं करां।
आंख्यां खोलण अर कीं करण पेटै दोय कहाणियां माथै भळै बात करां। संग्रै री चान्दाअर किंयाकहाणी री कथा-वस्तु मांय जिण ढाळै री बोल्डनेस देखण नै मिलै, बा आधुनिक कहाणी री एक खास धारा कही जाय सकै। चान्दा री नायिका रै मारफत कहाणीकार बाल-ब्यांव रौ संकेत करै, पण असल मांय आ कहाणी समाजिक-चेतना मांय मूल्यां रै पतन रौ परचम लहरावै। कहाणीकार री आ दुविधा कैय सकां है कै बौ किणी अनीत नै स्वीकार करै का नीं करै रै सोच भेळै आपां नै सरीक तौ करै ई करै अर छेकड़ मांय उण नै मनचायौ मोड़ देवै। चान्दा कहाणी बांचता थकां ओळी-ओळी लखावै कै नायिका नै बचण खातर कोई घर कोनी लाधैला। पण नायिका रौ आतमधात नाटकीय अंत सौ लखावै। इणी ढाळै किंयारौ कथा-नायक जिण मनगत अर सोच नै सामीं लावै बौ उत्तर आधुनिक तौ है ईज साथै ई साथै सामाजिक पतन अर अमूल्यन कानीं सागीड़ौ संकेत पण है।
आपांरा ख्यातनांव कथाकार श्रीलाल नथमल जोशी बरसां पैली जिण सामाजिक चेतना खातर बिगुल बजायौ उणी परंपरा आं कहाणियां नै राख सकां। पारटी, जागण, बिरजौआद कहाणियां इणी परंपरा नै पोखै। कहाणीकार उणी बुणगट मांय कहाणी मांडै पण आपरी भासा अर मौलिक सोच रै पाण आधुनिक कहाणी सूं जुड़ै। अठै कहाणीकार समाज री अबखायां सूं मूंड़ौ लुकर किणी फैसनाऊ का चलताऊ बातां नै कहाणी मांय कोनी परोटै। लोग जद जागण का पारटी रै नांव माथै दिखावौ करण लागै तद कहाणीकर आपां नै चेतावै। ओ जागण भगती रै सुख री ठौड़ दुख उपजावण रौ जरियौ बणै का हियै सूं हुवण आळै हेत-मनवार री ठौड़ पारटी मांय दिखावै अर पईसा रौ खोगाळ करीजै तद कहाणी लिखीजै। बिरजौ जद सुख री उडीक मांय तर-तर दुख मांय डूबतौ जावै तद उण री कहाणी मनोजजी नै मांडै पड़ै। आ कहाणीकार री मजबूरी है कै बो जिण घटना-प्रसंगां अर सांच सूं बाथेड़ौ करै तद खुद री निरायती खातर काहणी रै आंगणै बारंबार ढूकै।
सरल-सीधी अर सारआळी बात तौ आ है कै आं कहाणियां री सरलता-सहजता ई सगळा सूं मोटी खासियत बणर सामीं आवै। बिना किणी लाग-लपेट रै कहाणीकार आपां री लौकिक कथा-परंपरा नै परोटतौ थकौ किणी बातेरी दांई जद कहाणी रचण लागै तद बौ आपरी भासा, संवादां रै पाण चरित्र-चित्रण करतौ-करतौ बिना किणी उळझाव रै पाठकां रै हियै तांई मरम आळी बात पूगावण मांय सफल रैवै।
किंयारी इण पड़ताळ पछै आ बात पुखता हुवै कै मनोज कुमार स्वामी रै लेखन री केंद्रीय विधा कहाणी है। बां री दूजी विधावां- कविता, नाटक आद रै लेखन मांय आपां देख सकां कै कथात्मता रौ पलड़ौ भारी रैवै। इण कहाणी-संग्रै री केई कहाणियां सूं राजस्थानी कहाणी जातरा मांय बधापौ हुवैला अर बरसां तांई बै पढेसरियां नै याद रैवैला। उम्मीद करूं कै किंयारौ कोई उथळौ कहाणियां बांच कहाणीकार नै आप ई लिखोला।
नीरज दइया
20 नवम्बर, 2011
टीपू सुल्तान रौ जलमदिन

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डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

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