Wednesday, October 17, 2012

’’साखीणी कथावां’’ साथै संपादकीय व्यथावां


राजस्थानी कहाणी री जड़ां मांय कठैई लोककथा परंपरा है का कोनी, इण सवाल सूं जुदा सवाल ओ है कै कांई राजस्थानी कहाणी खातर ‘‘राजस्थानी-कथा‘‘ पद काम में लियौ जाय सकै है या कोनी ? आधुनिक कहाणी रूप मांय कांई औ वाजिब होवैला कै ’’कथा’’ पद मांय जिकौ जूनौ अरथ बरत-कथावां री ढाळ माथै लियौ जावै वौ अंगेजां। कहाणी अर उपन्यास दोनूं विधावां री जे बात करां तौ ‘‘कथा-साहित्य’’ पद रौ प्रयोग राजस्थानी-हिंदी दोनूं भासावां मांय देखण नै मिलै। किणी रचनाकार रै नांव आगै कथाकार लिखण रौ अरथ औ पण होया करै कै रचनाकार कहाणी अर उपन्यास दोनूं विधावां मांय लेखन करै। चावा-ठावा कथाकार मालचंद तिवाड़ी अर भरत ओळा दोनूं ई साहित्य अकादेमी सूं पुरस्क्रत रचनाकार है। मालचंद तिवाड़ी नै कविता खातर अर भरत ओळा नै कहाणी खातर साहित्य अकादेमी इनाम मिल्यौ। घणै हरख री बात कै साहित्य अकादेमी, नवी दिल्ली आं रचनाकारां नै कहाणी-संकलन रै संपादन री जिम्मेदारी सूंपी।   
लगै-टगै तीन सौ पानां रै कहाणी-संकलन “साखीणी कथावां“ नै देख‘र हरख हुवै, पण साथै सवाल उपजै कै इण संकलन रौ नांव “साखीणी कहाणियां“ क्यूं नीं राखीज्यौ ? जद कै इण संग्रै मांय घणखरी तौ आधुनिक कहाणियां ई संकलित करीजी है ? पोथी रौ नांव राखण रौ काम संपादकां रै जिम्मै होवै, वै जिकौ राख दियौ वौ ठीक। अठै सबद-प्रयोग “कथावां“, संपादकां री मनसा नै दरसावै कै वै स्यात कहाणी नै “लोककथावां“ सूं जोड़ण रा जतन करता दीसै। कहाणी अर लोककथा रै रिस्तै बाबत इण संग्रै री भूमिका मांय कठैई खुलासौ कोनी मिलै। ओ जरूर है कै संपादक रचना री दीठ सूं लोककथा अर कहाणी नै जुदा-जुदा मानै। इण संग्रै रा संपादकां साखीणी कथावां रै मिस राजस्थानी री प्रतिनिधि कहाणियां नै संकलित करण रौ जसजोग काम करîौ है।
“साखीणी कथावां” रा संपादक मालचंद तिवाड़ी अर भरत ओळा रौ मानणौ है- “कुल मिलायनै राजस्थांनी कथा री जातरा अेक ठावकै मुकाम माथै पूगी थकी धकली मजलां री सोय में है। लारलै दोय-तीन दसकां री इण उल्लेख जोग सिरजणा नैं अंवेरता थकां अेक प्रतिनिधि कथा-संग्रै री जरूरत मजसूस करी जाय रैयी है। पाठकां री जरूरत रै अलावा राजस्थांन रा जिका विश्वविद्यालय में स्नातक अर स्नातकोत्तर स्तरां माथै राजस्थांनी साहित्य पढाईजै, वांरा पढेसरîां सारू ई अेड़ै संग्रै री मांग बगत-बगत पर करीजती रैयी है।” (पेज-13)
भूमिका रूप संपादकां री लिखी आं तीन ओळ्यां बाबत चरचा करां-
1.         जद संपादकां रौ मानणौ है कै कथा री जातरा अेक ठावकै मुकाम माथै पूगी थकी धकली मजलां री सोय में है तद इण संग्रै री भूमिका मांय संपादकां रौ घणौ हेत फगत अर फगत विजयदान देथा अर सांवर दइया बाबत ई क्यूं दीसै ?
2.         औ संग्रै बरस 2011 मांय प्रकाशित हुयौ है, अर इण दीठ सूं लारलै दोय-तीन दसकां रौ अरथाव- इण संचै मांय बरस 1981-1990, 1991-2000 अर 2001-2010 री सिरजणा री अंवेर संपादकां करी हुवैला, तद केई कहाणियां बरस 1981 सूं घणी पैली री संग्रै मांय क्यूं सामिल करीजी है ?
3.         विश्वविद्यालय में स्नातक अर स्नातकोत्तर स्तरां माथै राजस्थांनी साहित्य पेटै आगूंच जिका संग्रै पाठ्यक्रम मांय है, वां नै हटा परा इण पोथी नै सामिल करण खातर संपादकां री आ अणचाइजती मांग कांई अरथ मांय ली जावणी चाइजै।
अबै विगतवार बात करां, संपादकां रौ औ मानणौ है- “जिण वेळा विजयदांन देथा आपरी ‘बातां री फुलवाड़ी’ रै सिरजण में लाग्योड़ा हा, उणी वेळा राजस्थांनी रा कीं लेखक कथा री हटौटी वस में करण में खपै हा। अठै आप परंपरा रै मनोवैग्यानिक दबाव री सोय विजयदान देथा कांनी सूं आपरी ‘फुलवाड़ी’ नैं दिरीज्यै थकै सिरैनांवै में देखौ- बातां री फुलवाड़ी। बिज्जी इणनैं कथावां री फुलवाड़ी नीं कैयौ है, पण इणीं दिनां नृसिंह राजपुरोहित, अन्नाराम सुदामा, मूलचंद ‘प्राणेस’, करणीदांन बारहठ, बैजनाथ पंवार, यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’, श्रीलाल नथमल जोशी आद बाकायदा कथावां लिखै हा।” (पेज-9)
कांई कारण रैया होवैला कै संपादकां रै मुजब बाकायदा कथावां लिखण वाळा लेखकां मांय मूलचंद ‘प्राणेस’ अर श्रीलाल नथमल जोशी री कहाणियां संकलित कोनी करीज सकी ? संपादकां आप री सफाई मांय लिख्यौ है- ‘‘साखीणी कथावां’ में संकलित कथावां रौ क्रम कथाकारां री वरिष्ठता रै आधार माथै नीं राखनै उणां रै नामानुक्रम (एल्फाबेट) मुजब राखीज्यौ है।” (पेज-13) पण उल्लेखजोग है कै संचै मांय संकलित कथावां रौ क्रम नीं, कथाकारां रौ क्रम वर्णानुक्रम सूं राख्यौ है। स्यात संपादकां री इण ओळी रौ औ मायनौ ई होवैला। सवाल ओ है कै कांई राजस्थानी रा आं दोय कथाकारां मांय औ हौसलौ कोनी हौ कै वै राजस्थानी रै कथाकारां रौ क्रम, आपरी दीठ सूं वरिष्ठता रै आधार माथै राख सकता ! वरिष्ठता रै आधार माथै जे राखता तौ श्रीलाल नथमल जोशी अर मूलचंद ‘प्राणेस’ आद नै लारै राखता का आगै। अठै लिखण री जरूरत है कै कथा साहित्य मांय उपन्यास विधा रौ श्रीगणेश “आभै पटकी” सूं श्रीलाल नथमल जोशी करîौ अर कहाणी विधा री पोथी “मेंहदी, कनीर अर गुलाब” माथै सूर्यमल्ल मीसण पुरस्कार ई आपनै मिल्यौ। संपादकां री इण भूमिका मांय इनाम अर इनामां री विगत री भरमार देखी जाय सकै। किणी रचनाकारा री परख फगत इण दीठ सूं कोनी हो सकै। सवाल अठै ओ पण है कै कांई संपादकां रै मुजब परंपरा रै मनोवैग्यानिक दबाव मांय बिज्जी बातां सबद बरत’र कोई गळती करी ? कांई संपादकां मुजब बातां री फुलवाड़ी मांय कथावां रौ सिरजण बिज्जी करयौ है का लोककथावां रौ संकलन करयौ है ?
संपादकां री पैली अर छेहली पसंद बिज्जी है। छौ होवै, अठै संपादकां री पसंद-नापसंद माथै सवाल कोनी। सवाल ओ है कै आखै देस मांय जाणीजता मानीता कथाकार यादवेंद्र शर्मा बाबत संपादकां रौ ओ सोच विचारणजोग लखावै- “यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ हिंदी में ई राजस्थांन सूं उभरिया थका अेक चावा-ठावा कथाकार गिणीजता अर वांरौ घणौ कांम ई हिंदी में साम्हीं आयौ। अेक तरै सूं आपां कैय सकां के आंरा प्रतिमान हिंदी रा रैया अर राजस्थांनी में वै आपरी मदरी जबान रै रिण सूं उऋण होवणै रै भाव सूं ई लिख्यौ। आ गौर करण री बात है कै चंद्रजी नैं राजस्थांनी कथा-संग्रै ‘जमारो’ माथै साहित्य अकादेमी रौ इनांम मिळयौ जियां के हिंदी रा लेखक मणि मधुकर नैं आपरै अेक मात्र राजस्थांनी कविता-संग्रै ‘पगफेरौ’ माथै साहित्य अकादेमी इनांम हासिल होयौ।”(पेज-10)
कांई संपादकां रै मन रौ काळौ अठै उजागर कोनी हुवै ? यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ हिंदी में ई राजस्थांन सूं उभरिया राजस्थानी कथाकार मानीजै जिका हिंदी जगत मांय राजस्थान रै रूप री ओळखाण कराई। ठाह नी संपादकां क्यूं यादवेंद्र शर्मा चंद्र अर मणि मघुकर री अकारथ तुलना अठै पोळावै। किणी नै किणी सूं सवायौ साबित करण खातर दोय तरीका होया करै, अर आं दोनूं तरीका रौ प्रयोग बतौर संपादक मालचंद तिवाड़ी अर भरत ओळा करîौ ई’ज है पण तीजौ तरीकौ ई अठै ईजाद करीज्यौ है।
विजयदान देथा रै काम मांय ‘‘कथावां री फुलवाड़ी’’ सामिल कोनी, वां री फुलवाड़ी रौ नांव ‘‘बातां री फुलवाड़ी’’ हैै। संपादकां तौ ई वां रौ जस गावण मांय आपरौ गळौ बैठा लियौ, अर इण सूं ई वां नै संतोस कोनी हुयौ तौ बिज्जी रै चोळै रै गूंजै नै खासौ बड़ौ कर’र उण मांय सूं निकळणौ कबूल कर लियौ। अठै आं संपादकां आप-आपरी मा, भासा का भौम बाबत दर ई सोच्यौ कोनी। संपादकां री अै ओळîां किणी नै सवायौ साबित करणौ रौ तीजौ तरीकौ कैयौ जाय सकै-‘‘लारलै दिनां जोधपुर में किणी कथा-पोथी रै लोकार्पण रै टांणै अेक नांमी राजस्थांनी कथाकार साच ई कैयौ के जिण तरै दोस्तोयव्स्की आ कबूल करी के म्हारै समेत म्हारी पीढी रा सगळा लेखक गोगोल रै ‘ओवर कोट’ रै गूंजै मांय सूं निकळîोड़ा हां, बियां ई म्हे आ कबूल करणी चावां के कम सूं कम म्हे तो विजयदांन देथा उर्फ बिज्जी रै चोळै रै गूंजै मांय सूं निकळयोड़ा हां।‘‘(पेज-6) संपादक जोधपुर मांय होयै लोकार्पण रै टांणै उण नांमी राजस्थांनी लेखक रै साच बाबत तौ बतावै पण उण नांमी राजस्थानी लेखक रौ नांव लुको’र राखणौ चावै। कांई वौ नांमी लेखक कहाणियां कोनी लिखै ? वौ महान लेखक फेर कदैई किणी टांणै कोई दूजी बात कैवैला अर आपां रा संपादक फेर कोई साच कबूल करैला। आ तौ चोखी बात होई कै मालचंद तिवाड़ी अर भरत ओळा फगत खुदो खुद नै ई गूंजै सूं जलमिया बताया नींतर दोस्तोयव्स्की री होड़ा-होड़ वै आपरै समेत पूरी पीढी बाबत ई आ बात कैय सकता हा।
 नामी कथाकार मालचंद तिवाड़ी अर भरत ओळा रा साहित्य मांय पग हाल इत्ता काचा है कै वै आपरी पसंद रा लेखकां रा परचम हेठा राखै ई कोनी। आं री पसंद रा लेखकां बाबत भूमिका मांय मंगळ-आरत्यां रा बेजोड़ तीन दाखला देखण जोग है- “ओ वो दौर है जिणमें मुरलीधर व्यास ‘राजस्थांनी’ ‘बरसगांठ’ अर नानूराम संस्कर्ता ‘ग्योही’ री कथावां लिख रैया हा। म्हारी दीठ में अै दोनूं राजस्थांनी कथा रा वै कारीगर है जिकां री लगायोड़ी नींव माथै आज विजयदान देथा आपरौ बेजोड़ भारतीय कथाकार रौ वाजिंदौ जस लियां ऊभा है।”(पेज-6) “चंद्रप्रकास देवल राजस्थांनी रा सिरैनांव कवि है, पण बिचाळै-बिचाळै कीं कथावां ई मांडता रैया है। वांरी ‘बस में रोझ’ कथा नै ‘कथा’ संस्था रौ इनांम मिळîौ अर वा राजस्थांनी री घणी सराईजी थकी कथावां में सामिल है।”(पेज-11) “ओ संजोग मात्र नीं है के डिंगळ रै छंद-रूप नैं बरतनै आजादी रै परभातै जन-क्रांति रौ गीत रचण वाळा रेंवतदांन चारण रा जाया-जलम्या अर्जुनदेव चारण आधुनिक राजस्थांनी रंगमंच रै पर्याय-रूप देस-भर में ओळखीजै अर वां रा नाटकां रौ मुख्य स्वर है लुगाई रै अस्तित्वगत सवालां सूं उपज्योड़ी पीड़।”(पेज-9)
            मुरलीधर व्यास ‘राजस्थांनी’ अर नानूराम संस्कर्ता नै राजस्थांनी कथा री नींव रा कारीगर तौ संपादक स्वीकारै, पण बात फगत कंगूरा री करै अर वां री ‘‘बातां‘‘ नै कथा मानै ! राजस्थांनी रा सिरैनांव कवि चंद्रप्रकास देवल ‘कथा’ संस्था सूं पुरस्क्रत आद री विगत पोथी रै छेकड़ला पानां कहाणीकारां रा परिचै खातर अंवेर राखणा हा, पण पोथी मांय संकलित कहाणीकारां बाबत परिचौ, पोथ्यां, पुरस्कारां अर संपर्क बाबत जाणकारी छेकड़ रा पानां माथै कोनी। साहित्य अकादेमी नै चाइजतौ कै आपरै पैलड़ै राजस्थानी रै संपादित कहाणी संग्रै दांई इण संचै मांय कहाणीकारां रा परिचै आद दिया जावणा री आगूंच भोळावण संपादन सूं पैली संपादकां नै पूगती होवती। पोथी ‘‘साखीणी कथावां’ अन्नाराम सुदामा री कहाणी ‘‘बेटी रौ बाप’’ सूं चालू होवै अर हरमन चौहान री कहाणी ’’लांबा फाबा वाळौ आदमी’’ माथै पूरी होवै। तीजै दाखलै पेटै कैवणौ है कै कहाणी ना तौ रेंवतदांन चारण लिखी ना वां रा जाया-जलम्या अर्जुनदेव चारण। हां, अर्जुन री कहाणी आलोचना पोथी जरूरी छप्योड़ी है, अर उण मांय सूं कीं दाखला संपदकां नै इण पोथी मांय लेवणा हा जिका वां लिया कोनी।
पूरी भूमिका मांय फगत अर फगत सांवर दइया बाबत ई संपादकां रौ आकलन कै वांरी पसम मगसी पड़ती गई सामीं आवै, बाकी रचनाकारां री परख खातर संपादकां चसमौ क्यूं उतार दियौ ? “साखीणी कथावां” रा संपादक मालचंद तिवाड़ी अर भरत ओळा रौ मानणौ है- “सांवर दइया री कथा ‘गळी जिसी गळी’ छपतां ई राजस्थांनी कथा रै आभै में अेक नुंवौ इजाफौ होंवतौ लखावै। सांवरजी रै ‘अेक दुनिया म्हारी’ कथा-संग्रै माथै साहित्य अकादेमी इनांम घोसित होयौ। निस्चौ ई राजस्थांनी कथा रौ ओ अेक अपूर्व अर निरवाळौ दीठाव हौ। आ और बात है के सांवरजी आपरी केई कथा-रूढियां रा सिकार होंवता गया अर बेहिसाब दुसराव रै कारण वांरी पसम मगसी पड़ती गई। सांवरजी रौ असमय काल-कवलित होवणौ राजस्थांनी कथा रै सीगै अेक लूंठौ नुकसांण हो। वै अेक ऊरमावांन लेखक हा अर जीवता रैवता रो अवस आपरी रूढ परिपाटी नै तोड़नै कीं नुंवौ रचण में खपता।” (पेज-10) अर इण पछै संपादकां री आ ओळी- “सांवर दइया रै सागै अेक पूरी ऊरमावांन कथा-पीढी लिखणौ सरू कर चुकी ही।” (पेज-10) अर इण ओळी री साख मांय पंद्रा कथाकारां रा नांव देख’र लखावै कै संपादकां नै कोई टीखळ सूझी है। सांवर दइया रै साथै लिखण वाळा रा नांवां मांय साव नुंवा कथाकारां रा नांव है। जद सांवर दइया अेक कथाकार रूप चावौ-ठावौ मुकाम हासल कर चुक्या हा, उण बगत तांई आं मांय सूं केई कथाकार जियां कै माधव नागदा, मदन सैनी, बुलाकी शर्मा, ओमप्रकाश भाटिया, दिनेश पांचल, माधोसिंह इंदा, रामेश्वर गोदारा, सत्यनारायण सोनी, रामसरूप किसान आद कथा-दीठाव में कठैई कोनी हा। अठै तांई कै इण संचै रा संपादकां मालचंद तिवाड़ी अर भरत ओळा री कथा-जातरा सांवर दइया सूं खासी पछै चालू होवै।
भूमिका मांय संपादकां रौ घणौ हेत फगत अर फगत विजयदान देथा अर सांवर दइया बाबत ई दीसै, अेक री वै अणथाग जयजयकार करै अर दूजै री भरी-पूरी कथा-जातरा नै नकरण री कोसिस। संपादकां नै सूचना देवणौ धरम है कै संचै मांय सामिल ‘गळी जिसी गळी’ (सांवर दइया) कहाणी ‘‘धरती कद तांईं घूमैली‘‘ बरस 1980 सूं संकलित करी है, बा जागती जोत मांय डॉ. तेजसिंह जोधा रै संपादन मांय बरस 1974 में छपी अर ‘अलेखूं हिटलर’ बातां रौ गुटकौ बरस 1984 मांय। संपादक आपरी भूमिका मांय इण ‘बात’ रौ खुलासौ कोनी करîौ कै जिण नै बिज्जी कथावां री फुलवाड़ी नीं कैयौ अर ‘‘अलेखूं हिटलर‘‘ नै ई बिज्जी बातां रौ गुटकौ कैयौ, तौ कांई बातां ई कथावां है ? लोककथा अर कथा बिचाळै कीं ग्यान देवण री दरकार हुवतां संपादकां मून राख्यौ। संपादकां री ठौड़ अठै संपादक सबद बरतां तौ ठीक रैवैला, क्यूं कै अेक संपादक ई भूमिका लिखी है अर दूजै संपादक तौ मून रैय घांटकी हिलाई होवैला।
लारलै दोय-तीन दसकां रै सिरजण री अंवेर करण री बात तौ संपादक करै पण बरस 1981 सूं पैली री केई कहाणियां संग्रै मांय सामिल करीजी है। तगादौ (1972) भंवरलाल ‘भ्रमर’, बुद्धिजीवी (1974) मोहन आलोक अर ‘गळी जिसी गळी’ (1974) सांवर दइया आद कहाणियां री ठौड़ आं रचनाकारां री इण पछै री साखीणी कहाणियां संकलन मांय ली जाय सकै ही।
जे संपादक खुद री कथावां लेवण रौ मोह त्याग’र आं कहाणीकारां मांय सूं कथावां रौ चयन करता तौ साखीणी बात होवती- मुरलीधर व्यास ‘राजस्थांनी’, नानूराम संस्कर्ता, लक्ष्मीकुमारी, मूलचंद प्राणेश, श्रीलाल नथमल जोशी, जनकराज पारीक, मेहरचंद धामू, विनोद सोमानी ‘हंस’, हनुमान दीक्षित, राम कुमार ओझा, कृष्ण कुमार कौशिक, निशांत, आनंदकौर व्यास, मनोज कुमार स्वामी, कन्हैयालाल भाटी, रतन जांगिड़, मदन गोपाल लढ़ा, दुलाराम सारण, श्याम जांगिड़ आद।
संचै मांय कथाकारां री पूरी कथा-पीढियां री अंवेर नीं करीज सकी है। पूरी कथा जातरा री चरचा री ठौड़ बीजी-बीजी गंगरथ भूमिका मांय बेसी मिलै। अेक ठौड़ तौ संपादक बिसादै दांई आपरी कहाणी ‘‘सुपनौ’’ री गंगरथ गावण ढूकै तौ थमै ई कोनी ! फेर समझवान संपादक इण री चरचा मांय लिखै-’’आज देस में अनिवार्य पढाई अर उणरै मातृभासा में होवण रौ कानूंन री चरचा है। राजस्थांन सरकार साम्हीं ओ सवाल है कै वै राजस्थांन रै लोगां री मातृभासा किणनै मानै ? राजस्थांन रा पढाई-लिखाई मंत्री मातृभासा बाबत आपरै अेक निहायत ना-समझ बयान रै कारण मीडिया रै मारफत पूरै राजस्थांन रै लोगां री भूंड झेल रैया है।‘‘ (पेज-8) कांई इण संकलन री इण ढाळै री ओळîां थकां संपादकां री चावना मुजब राजस्थान सरकार आपरी कॉलेजां रै राजस्थानी पाठ्यक्रम मांय आ पोथी राखैला ? राजस्थानी री पूरी-पूरी हिमायत करतां थकां अठै पूरजोर सबदां मांय लिखणौ पड़ैला कै संपादकां री आ निहायत ना-समझी है कै इण ढाळै री चरचा कथा-पोथी री भूमिका मांय करै। संपादक री ओळ्यां मामूली बदलाव साथै लिखणी चावूं- मालचंद तिवाड़ी हिंदी में राजस्थांन सूं उभरिया थका अेक चावा-ठावा कथाकार गिणीजै अर वांरौ घणौ कांम हिंदी में साम्हीं आयौ। अेक तरै सूं आपां कैय सकां के आंरा प्रतिमान हिंदी रा रैया अर राजस्थांनी में वै आपरी मदरी जबान रै रिण सूं उऋण होवणै रै भाव सूं ई लिख्यौ।
छेकड़ मांय अेक गैर वाजिब सवाल पाठकां रै हित मांय साहित्य अकादेमी सूं करणै चावूंला- जे पोथी मांय फोंट टाइप छोटौ कर कीं पानां कम कर दिया जावता तौ स्यात कीमत ई दो सौ पचास रिपिया कम हो सकती ही। इण संचौ मांय 38 कहाणियां है अर बोधि प्रकाशन सू छपी राजस्थानी री आधुनिक 35 कहाणियां री कीमत फगत पचास रिपिया है। कांई पोथी मांय पानां बेसी होयां संपादकां नै साहित्य अकादेमी सूं मानदेय बेसी मिल्या करै है का बिक्री बेसी होया करै ? 


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गंगानगर जिलै रौ राजस्थानी साहित्य


राजस्थानी साहित्य नै जाणण खातर आपां पाखती अेक मारग है कै राजस्थान रै जिलावार साहित्य नै जाणां, प्रवासी राजस्थानी साहित्यकारां नै जाणां। साहित्य नै जिला रै आधार माथै बांटण मांय जठै अेक सुभीतौ निगै आवै, बठै अेक मोटी अबखाई आ हुवै कै किणी साहित्य नै जिलै, संभाग अर देस री सींव मांय बांधणौ बेजा बात है। जिकौ किणी सींव मांय बंध जावै बो साहित्य नीं हुवै। साहित्य तौ सदीव सीवां नै उळांध’र आगै बधण-बधावण रौ काम करै। गंगानगर जिलै रै राजस्थानी साहित्य पेटै असल मांय आपां उण साहित्यकारां अर साहित्य री चरचा करलां जिका आपरी कलम रै पाण गंगानगर जिलै री सीवां रौ बंधण छोड़’र राजस्थानी साहित्य री साख बधावण पेटै लगोलग काम करियौ है। अैे लेखक कवि रचनाकार आखै राजस्थानी साहित्य मांय गंगानगर जिलै रौ नांव कर रैया है।
बीकानेर रै महाराजा गंगासिंहजी रै नांव माथै गंगानगर बण्यौ अर अबै साहित्य रै सीगै कवि-कथाकार श्री मोहन आलोक रै नांव सूं राजस्थान मांय ई नीं आखै देस मांय गंगानगर आज जाणीजै। अेक बगत हौ जद इतवारी पत्रिका मांय छपण आळा डांखळां सूं गंगानगर अर मोहन आलोक री घणी चरचा रैयी। राजस्थानी पत्र-पत्रिकावां री बात करां तौ ‘‘गोरबंद‘‘ पत्रिका रै पाण गंगानगर चरचा में रैयौ। इण ओळी में दर ई अतिश्योक्ति अंलकार कोनी कै गंगानगर जिलै री कीरत साहित्य रै इतिहास मांय सॉनेट अर वनदेव अमृता महाकाव्य लिखण आळा महाकवि मोहन आलोक रै पाण मानीजैै। ग-गीत (मोहन आलोक), सिमरण (संतोष मायामोहन) अर मीरां (मंगत बादल) काव्य पोथ्यां नै साहित्य अकादेमी पुरस्कार मिलणौ गंगानगर जिलै रै खातै ओळख रा थिर अैनाण है। ’’दसमेस’’ महाकाव्य रा महाकवि श्री मंगत बादल रायसिंह नगर रौ नांव चमकायौ। इण हलकै मांय राजस्थानी भाषा साहित्य अेवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर रौ सूर्यमल्ल मीसण सिखर पुरस्कार इण पोथी नै मिल्यौ। पुरस्कार तौ केई बीजा ई है जिका इण हलकै रै रचनाकारां नै मिल्या। अठै रा रचनाकार राजस्थानी, हिंदी अर पंजाबी आद भासावां मांय अेकठ समान गति सूं साहित्य सिरजण कर रैया है।   
कह सका कै इण धरती नै ओ वरदान है- कै अठै लूंठा साहित्यकार हुया। आखै मुलक मांय इणी भौम री ओळख इतिहास मांय रचण पेटै अेक नांव आपां घणै-घणै आदर सूं लेवां मानीता श्री चंद्रसिंगजी बिरकाळी रौ। साहित्य मांय लू अर बादळी जैड़ै रितु काव्य रा जनक चंद्रसिंह बिरकाळी जी री आ भौम है। कांई राजस्थानी साहित्य रौ इतिहास मानीता कथाकार श्री करणीदान जी बारहठ अर रामकुमार ओझा नै कदैई बिसराय सकैला? अठै रा कवियां मांय सत्यनारायण अमन रौ नांव घणै मान सूं लियौ जावै, आप आकाशवाणी मांय हा अर मंचयी कविता अर साहित्य सूं जन जुड़ाव पेटै लांठौ काम करियौ। कहाणी री बात करां तौ परलीका गांव रै कथाकारां री विगत अर कविता री बात करां तौ श्री ओम पुरोहित कागद री काव्य-जातरा जगजाणी है। श्री दीनदायल शर्मा री टाबर-टोळी सीरीज री पोथ्यां असल मांय बाल साहित्य रौ आं रौ अेक टोळौ है। पीळीबंगा री ओळख निशांत जी सूं है। अबै तौ गंगानगर अर हनुमानगढ़ दोय न्यारा-न्यारा जिला है, अर खरै खरी बात कैवां तौ बीकानेर संभाग मांय आं दोनूं जिला रौ आपरौ न्यारौ-न्यारौ रूतबौ है।
सियाळै मांय अठै सरदी बेसी पड़ै अर ऊनाळै मांय गरमी। अठै रा रैवासी सगळा सूं बेसी लूवां झेलै। जिलावार साहित्य री बात करां तद आपां री दीठ अठै री खासियता माथै रैवणी चाइजै। लेखक रै आसै-पासै रौ लोक-जीवण अर पर्यावरण ई मेहताऊ हुया करै। लोकरंग री बात साहित्य मांय घणी महताऊ मानीजै। जे आपां पंजाब रै नजीक हां तौ पंजाबी भासा रै नजीक हां। राजस्थानी भासा रै ठस्कै साथै पंजाबी भासा री खुसबू अठै लोक जीवण मांय आपां देख सकां। दाखलै रूप अठै कथा-संग्रै ‘‘मोहन आलोक री कहाणियां’’ री अेक कहाणी रिक्सै आळौ री चरचा करां। इण कहाणी मांय दो-तीन पंजाबी संवाद है, जिका इण इलाकै रै रंग अर खुसबू नै जाणै आपां री आंख्यां सामीं ऊभी कर देवै। इण कहाणी मांय जिकौ लोकरंग है बो ई इण कहाणी नै अेकर बांच्या आपां री ओळूं मांय आ सदीव खातर जीवती रैवै। साहित्यकार पाखती आपरौ खुद रौ कांई हुवै, उण री भासा अर विचार। फगत बुणगट रै कारण कोई रचना मौलिक नीं हुया करै। मौलिक हुवै उण बुणगट मांयलौ चिंतन, विचार, भासा अर बगत बगत री आपरी आधुनिकता। इण दीठ सूं श्री जनकराज पारीक री सिकार कहाणी उल्लेखजोग मानीजी। कोई रचनाकार कम लिखै अर कोई बेसी, पण जे रचना मांय जान हुवै तौ कम लिखण आळौ इतिहास मांय अपारौ नांव मांड सकै, इण ढाळै अठै रै साहित्य रा इतिहास पुरुस है श्री जनकराज पारीक। मोहन आलोक री काव्य जातरा री मेहतावू पोथी बानगी मांय पारीक जी री आपां आलोचना दीठ देख सका। 
इण जिलै माथै आलोचना री निजर कमती हुवण रै कारण ई मोहन आलोक अर डॉ. मंगत बादल आद लेखक कवियां रौ समग्रता अर संपूर्णता मांय पूरौ मूल्यांकन ई कोनी हुयौ। राजस्थानी रा चावा ठावा रचनाकार डॉ. मंगत बादल गद्य अर पद्य में समान गति सूं लिखै। महाकाव्य जिकौ कवि लिखै बो ई महाकवि बाज,ै तौ इण जिलै मांय दोय महाकवि है। श्री मोहन आलोक री बात आप करी अबै महाकवि डॉ. मंगत बादल री बात करां। महाकवि बादल री काव्य-पोथी मीरां मांय जिकी सहजता, सरलता अर बुणगट री आधुनिकता है बा उणा री खुद री मौलिकता है। मीरां नै अेक नवै रंग रूप मांय देखण-समझण री तजबीज अर भासा मांय सरलता-सहजता साथै आधुनिकता आपां देख सकां। कवि अेक आंख आपरै पाठ मांय इण ढाळै रचै का कैवां बांचणियां नै बा आंख सूंपै जिण रै पाण अेक लोकचावी नायिका मीरां नूवै रंग-रूप मांय दीसै। इणी ढालै महाकवि मंगत बादल रौ गुरु गोविंदसिंह जी रै जीवण-चरित माथै आधारित महाकाव्य ’’दसमेस’’ मांय आपां नै छंद री विविधता, भासा री नवीनता अर लोकचावै कथ्य रौ सांगोपांग निभाव देखण नै मिलै।
साहित्य अकादेमी सूं सम्मानित कवयित्री श्रीमती संतोष मायामोहन री काव्य पोथ्यां सिमरण अर जळ-विरह री छोटी-छोटी कवितावां मांय जिकौ चिंतन अर नारीवादी सुर सामीं आवै बो समूळै राजस्थानी साहित्य सारू साव नूवौ है। आपरै आखती-पाखती री दुनिया नै अेक नूवै नजरियै अर अंदाज सूं देखण-परखण-समझण री कवितावां मांय जोरदार तजबीज संतोष री कवितावां मांय देखी जाय सकै।
गंगानगर जिलै मांय घुमता-फिरता साहित्यकारां का प्रवासी पखेरूवां दांई आवण-जावण आळा री लेखकां री बात करां। श्री प्रमोद कुमार शर्मा अर डॉ. नीरज दइया आद रै साहित्य री पेटै आ बात तौ कैयी जाय सकै कै अठै रैय परा जिकौ काम आं लेखक-कवियां रै हाथां हुयौ बो इणी जिलै रै खातै मांडणौ चाइजै। आं रचनाकारां रौ जिकौ कवितावां, कहाणियां, आलोचना अर संपादन पेटै जिकौ काम सामीं आयौ उण री परख हुवणी चाइजै। कोई इण धरती माथै आय’र जिकी सिरजण-साधना करै उण रौ जस तौ इण धरती रौ ई है। प्रमोद कुमार शर्मा राजस्थानी कविता अर कहाणी पेटै अेक भरोसैमंद नांव है अर सूरतगढ री धरती माथै रैवतां थकां आप केई रचनावां लिखी। मोहन आलोक री काहाणियां (संचै नीरज दइया), आलोचना रै आंगणै, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां (संचै नीरज दइया), देवां री घाटी (भोला भाई पटेल, उल्थौ नीरज दइया) सबद-नाद (संचै-उल्थौ नीरज दइया) अर कविता कोश आद पेटै हुयै काम री विगत बाबत खुद रौ खुद ई कीं कैवणौ बेजा बात हुवैला।
भासा आंदोलन सूं जुड़िया श्री मनोज कुमार स्वामी विविध विधावां मांय लेखन करियौ है। पत्रकारिता, बाल साहित्य, कहाणियां, कवितावां, नाटक अर उल्थै पेटै मनोज कुमार स्वामी आपरी पीढी मांय सगळा सूं बेसी संजीदा अर जूझारू रचनाकार मानीजै। काचौ सूत, बेटी, रिचार्ज आद पोथ्यां रै पाण सूरतगढ़ री साख बधावण रौ काम स्वामी करियौ है।
इण हलकै रै केई रचनाकारां री पोथ्यां राजस्थानी भाषा साहित्य अेवं संस्कृति अकादमी बीकानेर रै आंशिक आर्थिक सैयोग सूं छपी है। नंदकिशोर सोमानी रौ व्यंग्य संग्रह फाईल री आत्मकथा अर हरिमोहन सारस्वत रौ कविता संग्रै ’’गम्योड़ा सबद’’ साहित्य मांय आपरी ठावी ठौड़ राखै। आं दोनूं रचनाकारां री भासा अर बुणगट घणी असरदार कैयी जाय सकै। आं री पोथ्यां सूं भरोसौ अर आस जागै कै आवण आळै बगत मांय अै साहित्य रै सीगै लगोलग काम करैला, आं रौ जस इतिहास लिखैला।
इणी बरस ’’राजस्थानी री आधुनिक कहाणियां’’ संग्रै रौ संपादन श्याम जांगिड़ करियौ है उण मांय केई नामी रचनाकारां बिच्चै नंदकिशोर सोमानी री कहाणी ’’अळगाव’’ देखी जाय सकै अर आपरी पोथी पाईल री आत्मकथा मांय परिचय देखां तौ अप्रकाशित पोथ्यां मांय ’’अळगाव अर दूजी कहाणियां’’ रौ नांव दियौ है। बरस 2004 मांय पछै हाल तांई सोमानी रौ कहाणी संग्रै नीं आवणौ, आं रै धीरज नै आपां सामीं खोलै। रचना मांय रचनाकार रौ धीरज घणौ जरूरी हुया करै। रचना सारूं प्रेरणा अर प्रोत्साहन ई जरूरी हुया करै। रचना अर रचनाकार री किणी ढाळै री खथावळ रचना रै असर नै कमती करै।
’’मुकनौ मेघवाळ अर दूजी कहाणियां’’ रा कथाकार रामेश्वर ’गोदारा’ ग्रामीण री आ पोथी साहित्य अकादेमी, दिल्ली सूं प्रकासित हुई अर घणी चरचा मांय रैयी। इण संग्रै री कहाणी ’’मछली’’ माथै घणी चरचा हुई अर आ आप री प्रतिनिधि कहाणी मानीजै। आं रौ दूजौ कहाणी संग्रै ई छप चुक्यौ है अर राजस्थानी कथा री परलीका स्कूल रै इण कहाणीकार सूं घणी उम्मीदां है। इणी हलकै रै कवि दुष्यंत री कविता-पोथी उठै है रेत राग मांय घणी संभावनाचां देखी जाय सकै पण आ जातरा लगोलग चालू रैवै तद ई कवि कविता जातरा मांय आपरी पेठ थापित कर सकैला। राजस्थान मांय आधुनिकता रै साथै हुयै बदळावां रौ असर इण संग्रै री केई कवितावां मांय आप खास तौर सूं देख-परख सकां।
लघुकथा री बात करां तौ  रामधन अनुज री मांय पोथी ’’काळी कनेर’’ उल्लेखजोग है, तौ नंदलाल वर्मा सूं लघुकथा विधा नै घणी उम्मीद है। उम्मीद री बात करां तौ युवा कविता पेटै कृष्ण बृहस्पति सूं घणी उम्मीद करी जाय सकै। पोथी ’’डांडी सूं अणजाण’’ रै कवि सतीश छीम्पा री बेगी आवण वाळी पोथी सूं घणी उम्मीदां अर आसावां है। जोगासिंह कैत, भागीरथ रेवाड अर बीरूराम चांवरिया रौ राजस्थानी सूं प्रेम इणी सूरतगढ़ मांय आपां देख सकां। युवा कवि विष्णु शर्मा री कवितावां आवणी बाकी है।
अठै श्री करणीदान सिंह राजपूत जिसा राजस्थानी रा धीर गंभीर पाठक अर लेखक है जिका रौ कहाणी अर कविता संग्रै आवणौ है, तौ कृष्ण कुमार ’आशु’ जिसा लेखक है जिका किणी संकोच रै रैवता कमती लिखै। अलीमोहम्मद परिहाड़ जिसा संपादक अर पृथ्वीराज गुप्ता जिसा अनुवाद है, जिका रौ साहित्य पेटै घणौ समरपण भाव देख्यौ जाय सकै। राजेश चढ्ढा जिसा दमदार आवाज रा घणी है जिका नै खुद री राजस्थानी मांय संकौ रैवै कै आ म्हैं अर म्हारै आसवाड़ै-पसवाड़ै बोलै जिकी राजस्थानी है का कोनी। आज आपां री भासा अर साहित्य जिण मुकाम माथै है अर आपां जिण मजल रै साव नजीक हा, इण बगत मांय राजस्थानी पेटै सगळा रौ जुड़ाव घणौ-घणौ जरूरी है।  
  

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आधुनिक कहाणियां संपादन रै नांव माथै फगत संचै


राजस्थानी मांय जे कोई लेखक सिरजण साथै संपादन रौ काम संभाळै तौ उण रै जस रौ कांई कैणौ। सिरजण करणौ अर दूजां रै सिरजण री अंवेर संपादक बण’र करणौ दोय जुदा-जुदा काम है। संपादक री जिम्मेदारी अर जबाबदारी कीं बेसी मानीजै। राजस्थानी कहाणी पेटै रावत सारस्वत, प्रेमजी प्रेम, कल्याणसिंह शेखावत, श्याम महर्षि, भंवरलाल ‘भ्रमर’, सांवर दइया, नंद भारद्वाज, दुलाराम सारण, मधुकर गौड़, मालचंद तिवाड़ी, भरत ओळा आद रचनाकारां कहाणी संपादन रौ काम करियौ है। कोई लेखक जे किणी अकादमी का संस्था खातर संपादन रौ काम करै तौ समझ में आवै, पण जे कोई रचनाकार बिना किणी अकादमी अर संस्था रै खुद चाल’र संपादन रौ काम संभाळै तद उण नै लखदाद तौ देवणी ई चाइजै।
संपादन रौ अरथाव फगत रचनावां नै भेळी करणी कोनी हुया करै। संपादक नै रचनावां रौ चुनाव किणी दीठ नै चेतै राखता थका करणौ हुया करै। किणी विधा रै संकलन मांय हरेक रचनाकार नै सामिल करणा संभव कोनी हुवै, पण संपादक री समझ अर दीठ इण सीगै ई परखीजै। किणी मेहतावू रचनाकार नै छोड़’र, जे उण सूं कम मेहतावू रचनाकार नै संकलन में सामिल करै तौ सवाल ऊभा हुवै। किणी खास विधा मांय खास-खास रचनाकारां रौ ध्यान राखणौ घणौ जरूरी हुया करै, इण सूं संकलन री साख बधै।
“राजस्थानी री आधुनिक कहाणियां” संकलन मांय 35 कहाणीकारां री आधुनिक कहाणियां सामिल करीजी है। उण पछै ई केई घणा मेहतावूं अर संभावनावाळा कहाणीकार इण संचौ मांय छूटग्या, जियां- लक्ष्मीकुमारी, अन्नाराम सुदामा, मूलचंद प्राणेश, बैजनाथ पंवार, करणीदान बारहठ, हनुमान दीक्षित, राम कुमार ओझा, बुलाकी शर्मा, मदन सैनी, मीठेश निर्माेही, कृष्ण कुमार कौशिक, मंगत बादल, प्रमोद कुमार शर्मा, निशांत, आनंद कौर व्यास, अरविंद आसिया, रतन जांगिड़, कन्हैयालाल भाटी, मदन गोपाल लढ़ा, दुलाराम सारण, सतीश छींपा आद। संकलन मांय सामिल केई कहाणीकार इसा सामिल है जिणा नै इण आधुनिक कहाणी जातरा मांय छोड़’र आं कहाणीकारां मांय सूं केई कहाणीकारां नै सामिल करीजणा हा।
श्याम जांगिड़ रौ खुद री कहाणी लेवण रौ मोह ई आपां अठै देख सकां। घणी जरूरी बात कै किणी पण संकलन मांय छेकड़ मांय सामिल कहाणीकारां री विगतवार जाणकारी परिचै रै तौर माथै दी जावणी जरूरी हुया करै, बां इण संचै मांय कोनी मिलै। साथै ई संकलन मांय भासा अर वर्तनीगत विविधता देख’र लखावै कै इण पेटै काम करीजणौ हौ। “राजस्थानी री आधुनिक कहाणियां” संचै मांय रचनाकारां नै जिण विगत मांय राख्या है उण मांय कोई दीठ समझ में कोनी आवै। जूना अर नुवां रौ का किणी ढंग ढाळै री विगत सूं बिध बैठै बा अठै कोनी। यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ रौ नांव पैल पोत राख’र विजयदान देथा नै दूसरै नंबर माथै राखणौ अर उण पछै नरसिंघ राजपुरोहित अर सीधो नांव रामस्वरूप किसान रौ विगत मांय घपचोळो दरसावै। इण विगत पेटै संपादक आपरी भूमिका मांय कोई खुलासौ कोनी करै।
अबै सगळा सूं जरूरी बात माथै आवां- “राजस्थानी री आधुनिक कहाणियां” कहाणी-संकलन मांय ‘आधुनिक’ सबद रौ अरथाव श्याम जांगिड़ री इण ओळ्यां सूं आपां जाण सकां- “कहाणी रौ आधुनिक काल 1990 रै बाद रौ ई मान्यौ जावै। क्यूं कै ‘सांवर दइया काल’ री विगास जात्रा कहाणी नै आधुनिक संदर्भां सूं जोड़ी। 1990 अर इण रै आसै-पासै कैई-कैई रचनाकार सांमी आवै। खासकर बीकानेर अर गंगानगर संभाग में कथा लेखण री अेक लहर-सी चालै। विषय-वस्तु अर शिल्प री विविधता रै पाण कहाणी बीजी भारतीय भासावां सूं होड़ करती लखावै।” (पेज-15)
आं ओळ्यां रै उजास मांय कीं बातां रौ खुलासौ करां-
1. “राजस्थानी री आधुनिक कहाणियां” संकलन मांय कहाणियां बरस 1990 रै पछै री संचै करीजी हुवैला, क्यूं कै श्याम जांगिड़ मुजब कहाणी रौ आधुनिक काल 1990 रै बाद रौ ई मान्यौ जावै।
2. ’सांवर दइया काल’ री विकास जात्रा कहाणी नै आधुनिक संदर्भां सूं जोड़ी पण ओ काल बरस 1992 तांई ई मान्यौ जाय सकै। सांवर दइया 30 जुलाई, 1992 नै सौ बरस लिया।
3. बरस 1990 अर इण रै आसै-पासै नै ई जे खुलासै रूप लिखां तौ बरस 1990 सूं संकलन रै प्रकाशन बरस दिसम्बर, 2011 तांई (पण श्याम जांगिड़ रौ बयान ‘जागती जोत’ रै अप्रैल-सितम्बर, 2011 अंक पेज-19 माथै छप्यौ है- “चौथो संकलन इण ओळियां रो लेखक पांच बरसां पैली ‘राजस्थानी री आधुनिक कहाणियां’ नांव सूं संपादित करîौ।) इण रौ अरथाव हुयौ कै संकलनकर्त्ता ओ संचै बरस 2005 तांई पांडुलिपि रूप कर लियौ हौ। इण संचै मांय बरस 1990 सूं 2005 तांई री प्रकाशित-अप्रकाशित कहाणियां संकलित हुवणी चाइजै।
4. आपां जे आ ओळी दूसर देखां कै- बरस 1990 रै आसै-पासै मांय बरस 1973-74 नै ई भेळै मान सकां हां कांई? जे इण सवाल रौ जबाव ‘हां’ हुवै तौ कान खूस’र हाथ मांय आय जावैला! पण माफ करजौ इण सवाल रौ जबाब ‘हां’ ई’ज है।
ओ संकलन दोय रचनाकारां विजयदान देथा ‘बिज्जी’ अर मोहन आलोक नै समरपित है। संकलन मांय सामिल आं री कहाणियां री बात करां- ‘बिज्जी’ री ‘अलेखूं हिटलर’ कहाणी सामिल है। आ कहाणी पैली बार डॉ. तेजसिंह जोधा रै संपादन में ‘दीठ’ पत्रिका में बरस 1974 मांय छपी अर ‘अलेखूं हिटलर’ (1984) संकलन में सामिल हुई। मोहन आलोक री कहाणी ’कुंभीपाक’ डॉ. मेघराज रै संपदन में ‘हेलो’ पत्रिका में बरस 1973 मांय छपी। जे आं कहाणियां नै श्याम आधुनिक मानै तौ आ ओळी अकारथ लखावै- “कहाणी रौ आधुनिक काल 1990 रै बाद रौ ई मान्यौ जावै।”
 श्याम जांगिड़ इण संकलन मांय केई कहाणियां तौ जूना संपादित कथा संकलनां सूं ली है, जियां भंवरलाल ‘भ्रमर’ री कहाणी ‘बातां’ री बात करां। आ कहाणी ‘भ्रमर’ रै कहाणी संकलन ‘तगादो’ (1972) सूं सांवर दइया ‘उकरास’ में ली ही, अर जे इण कहाणी नै राजस्थानी री आधुनिक कहाणियां मांय संपादक श्याम जांगिड़ सामिल करै तौ आधुनिक कहाणी नै 1990 रै बाद नीं मान’र ‘सांवर दइया काल’ बरस 1970 सूं मान लेवणी चाइजै।
राजस्थानी आंदोलन रा लांठा पेरौकार राजेंद्र बारहठ मुजब राजस्थानी खातर च्यार “सस्सा” घणा जरूरी है- सिरजण, सम्मेलन, संघर्ष अर संपादन। आं च्यार सस्सा में संकलन नै सामिल करणौ चाइजै कांई? स्यात् नीं। संकलन रौ काम तौ साव सरल हुवै, पण संपादन रौ काम जिम्मेदारी अर जबाबदारी रौ हुया करै। इण कहाणी-संकलन पेटै मोटौ सवाल ओ है कै ओ संपादन है का फगत संकलन?
बकौल श्याम जांगिड़- “गिणती रा साहित्यकार हुवणै सूं आपसदारी रै लिहाज रै चालतै आलोचक नैं कीं टेडी ओळी लिखणै सूं रोकतौ रैयौ। तद आलोचना साहित्य कठै सूं आवै? आज तो वा इज आलोचनां पणप रैयई है, कै म्हैं थारी बडाई करूं थूं म्हारी कर.... अहो रूपम! अहो गायन! ऐड़ीथिती में- आचार्य रामचंद्र शुक्ल या रामविलास शर्मा पैदा हुवणां तो दूर, इंद्रनाथ मदान अ’र शुक्रदेव सिंह भी पैदा को हुवै नीं।” (बिणजारो-2011 ; पेज-240)
हिंदी साहित्य मांय कीरत कमावणियां रामचंद्र शुक्ल, रामविलास शर्मा, इंद्रनाथ मदान अर शुक्रदेव सिंह नै दूसर राजस्थानी मांय पैदा हुवण री आसा आपां क्यूं पाळा? पण तौ ई आ उम्मीद करां कै आलोचना पेटै गंभीर श्याम जांगिड़ खरी-खरी बात कैवैला।  
पोथी री भूमिका रै ‘उपसंहार’ री ओळ्यां है- “राजस्थानी कहाणी री आजलग कोई सुतंतर पत्रिका नीं हुवता थकां भी आधुनिक कहाणी रौ जिकौ सरूप आपां रै सांमी है, वौ गीरबैजोग कैयौ जा सकै।” पण आपां जाणां कै कथाकार भंवरलाल ‘भ्रमर’ ‘मनवार’ अर ‘मरवण’ नांव सूं कहाणी री सुतंतर दोय पत्रिकावां निकाळी, अर ‘मरवण’ रा तौ केई अंक निकळ्या। ‘मरवण’ रै पैलै अर दूजौ अंक री कहाणियां सूं बण्यै संपादित संकलन “पगडांडी” री घणी सरावणा ई हुई।
इण ओळी सूं आगै श्याम जांगिड़ लिखै- “आज री राजस्थानी कहाणी किणी भी भारतीय भासावां री कथावां सूं उगणीस नंई है।” पण दूजै पासी खुद जांगिड़ राजस्थानी आलोचना मांय जिकौ समालोचना भाव रैयौ है, उण नै भांडता पूरी आलोचना-परंपरा नै खारिज करता लिखै- “राजस्थानी भासा में सदीव सूं एक आपसरी री सहानुभूति अर लिहाजू वातावरण रैयौड़ो है। थे तो लिख-दो सौं की चलसी। न वर्तनी रो झंझट, न विषय री कोई टोक। जद ही अमूमन बोदा अर पड़तल विषयां री कहाण्यां सांमी आवै।” (‘राजस्थानी री आधुनिक कहाणी - भाषा शिल्प अर गद्य’ जागती जोत,  अप्रैल-सितम्बर, 2011  पेज- 23)
भारतीय भासावां मांय जठै मुलका बायरौ लेखन होय रैयौ है तौ दूजै पासी प्रयोग अर विमर्श रै इण दौर मांय राजस्थानी कहाणी मांय गिणती रा कहाणीकार है, जिका रै सिरजण सूं कहाणी भारतीय परिवेस मांय ऊभी है। फगत संपादक बण’र राजस्थानी कहणी माथै ग्यान देवण री कोसिस में अमूमन बोदा अर पड़तल विषयां री कहाण्यां मांय सूं कीं ढंग री कहाणियां श्याम जांगिड़ भेळी करण री मेहबानी करी है। संकलन मांय संपादक लिख्यौ है- “राजस्थानी कहाणी विधा नै चुकता रूप सूं लोककथा सूं मुगत करणै रौ श्रेय सांवर दइया नै ई जावै। अतः 1970 सूं 1990  रौ काल राजस्थानी कहाणी रौ ‘सांवर दइया काल’ मानीजै। सांवर दइया रौ ओ काल फगत कहाणी रै लेखै ई नीं, समचौ राजस्थानी साहित्य तांई भी सुनेरौकाल कैयौ जा सकै।” (पेज-14) पण सवाल ओ है कै कांई इण ‘सुनेरौकाल’ पछै आधुनिक काल आयौ?
कांई कारण रैया हुवैला कै संपादक श्याम जांगिड़ किणी हिंदी कथा-संकलन री खोड़ खुड़ावता आधुनिक कहाणियां री इण पोथी मांय ‘पाथर जुग’ सूं भूमिका चालू करण री खेचळ करी। स्यात् परंपरा रौ पुरसारौ करण री मंछा रैयी हुवैला, पण “आधुनिक कहाणी: परंपरा विकास” (अर्जुनदेव चारण) पोथी री कठैई अेक ओळी कोनी बरती।
            बकौल श्याम जांगिड़- “जदि कोई आलोचनां माथै काम करणौ भी चावै, तो किताबां हाथ लागणी अबखी हुवै। राजस्थानी री किताबां ले-दे नै तीन सौ कॉपी छपै। जकी दोय-च्यार साल बाद खुद साहितकार कनै भी ल्हादै नीं ल्हादै। कैयो नी जा सकैं सो, किताबां री नदारदगी सही मूल्यांकन नै प्रभावित करै। आप कनै जदि पोथी नीं है तो आप पोथ्यां रा नांव भलांई गिणवा दो, रचना रै ‘काटेंट’ माथै तो कीं लिख कोनी सकौ?” (बिणजारो-2011 ; पेज-240)
आं ओळ्यां रै सांच हुवण री साख भरतौ म्हैं घणै सम्मान साथै लिखणौ चावूं कै किणी डॉक्टर थोड़ी कैयौ है कै आप आलोचना माथै काम कर’र माथौ खराब करौ। जदि (हिंदी रै यदि सबद सूं श्याम जांगिड़ सबद लिखै जदि, जद कै राजस्थानी मांय यदि खातर ‘जे’ सबद रूप बरतीजै।) श्याम जांगिड़ नै जाण लेवणौ चाइजै कै कोई आलोचनां माथै नीं, कोई आलोचना पेटै काम करणौ चावै तौ केई अबखा काम पार घालणा पड़ै।
इण संचै री भूमिका बांच’र आ बात सरतिया तौर माथै कैयी जाय सकै कै किताबां री नदारदगी सूं सही मूल्यांकन प्रभावित हुयौ है। उम्मीद करूं कै संकलनकर्त्ता जिण उमाव मांय ‘सांवर दइया काल’ री थरपणा करै, तौ कम सूं कम सांवर दइया रै सगळै कहाणी संग्रै री खोज-खबर करसी अर वां नै बांचण रा जतन करैला।
जिण रचनाकारां नै पोथी सरपण करी है वां मांय अेक बिज्जी है, जिण बाबत श्याम जांगिड़ रौ बयान जागती जोत मांय है- “विजयदान देथा रै अतूट लोक-कथा लेखन रै बाद जद वां रो आधुनिक कथा रो संग्रह ‘अलेखूं हिटलर’ आयौ तद कथा-जगत मांय एक अचूंभै भरियै वातावरण बणियो।.. सायत अैे बी लोक कथा ई हुली- दूजा लिखारा सोची। पण ‘अलेखूं हिटलर’ सारौ भरम तोड़ नाख्यौ।” इण पेटै म्हारौ कैवणौ है कै जांगिड़ खुद पोथी ‘अलेखूं हिटलर’ (राजकलम प्रकाशन सूं छपी) आंख्यां मांय कर काढ’र पैली खुद ई खुद रौ भरम भांगण रौ जतन करैला। पोथी बांच’र श्याम जाणैला कै आं मांय केई कथावां नै छोड़’र बाकी री लोककथावां ई हुली नीं, साच मांय लोककथावां ही है।
श्याम जांगिड़ मुजब- “आलोचक रा खुद रा मानदंड पैली सूं तय हुवणा जरूरी है।” (बिणजारो-2011 ; पेज-241) सवाल है कै कांई आलोचक नै आगूंच सींव मांय बंध जावणौ चाइजै? का किणी पुरस्कार मान-सम्मान री लालसा राखणी चाइजै? कांई कारण रैया कै कहाणी रै घेर-घुमेर दीठाव नै जांगिड़ सावळ देख-परख नीं सक्या। आलोचना मांय किणी विधा-परंपरा रौ पूरी जाणकारी नीं हुयां चूक हुया करै। दाखलै रूप बात करां तौ श्याम जांगिड़ री इण ओळ्यां नै देखां- “नोहर रै पासै एक गांव है परलीका, वठै अेकै साथै आठ ठावा कहाणीकार है, जिका लगोलग इण विधा माथै काम कर रैया है। रामस्वरूप किसान रो ओ गांव- कहाणीकारां रो गांव गिणीजै।” (जागती जोत, अंक- अप्रैल-सितम्बर, 2011; पेज-16) इण संकलन में परलीका रा आठूं ठावा कहाणीकारां नै सामिल कोनी करीज्या। परलीका मांय कहाणी-साहित्य री आ चेतना कहाणीकार सत्यनारायण सोनी रै चेतन करियौड़ी है। गांव तौ खैर सगळै रैवासियां रौ है, पण अठै जिकौ अरथ-संदर्भ है उण मांय रामस्वरूप किसान री जागा सत्यनारायण सोनी रौ नांव लिख्यौ जावणौ चाइजै।
छेकड़ मांय पूरै मान-सम्मान साथै श्याम जांगिड़ नै वां री खुद री ओळ्यां चेतै करावणी चावूं जिकी वां मधुकर गौड़ खातर मांडी है- “हिंदी सूं राजस्थानी माथै किरपा करण नै आयौड़ा गौड़ सा’ब दे-दनादन पोथी छपवा रैया है। कथा री समझ भलांई मत हुवौ पण अै दो पोथी संपादित कर नाखी। फेरूं बी अै ‘सोळा जोड़ी आंख’ संकलन छपवा’र अेक नवो अर पैलौ काम कर्यौ है। इण संकलन में अै राजस्थानी री सोळा महिला लेखिकावां नै पैली बार सामल कीनी है। इण कारज रै खातर धन्यवाद रा पातर है।” (जागती जोत, अंक- अप्रैल-सितम्बर, 2011; पेज-20)
            धन्यवाद रा ‘पातर’ तौ श्याम जांगिड़ खुद है। जिकां रौ मानणौ है कै राजस्थानी भासा में सदीव सूं अेक आपसरी री सहानुभूति अर लिहाजू वातावरण रैयौड़ो है, पण अठै आप श्याम जांगिड़ खुद ई इण वातावरण रै रंग रंगीजग्या। वां मधुकर गौड़ नै धन्यवाद रा ‘पातर’ समझ’र आपरी समझ दरसा दीवी। (बांचणियां, माफ करजौ श्याम नै ठाह कोनी कै राजस्थानी मांय वेश्या  खातर पातर सबद बरतीजै।) संपादक री भूमिका भलाई साव अकारथ हुवै, पण ओ संचै पचास रिपिया मांय घणौ घणौ रंगधारी है। बोधि प्रकाशन नै घणा घणा रंग कै कम कीमत मांय सांतरै गेट-अप मांय बै लगोलग राजस्थानी री पोथ्यां प्रकाशित कर रैया है।

डॉ. नीरज दइया


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Wednesday, October 10, 2012

कविता रै आभै मंडाण

                युवा कवियां री कवितावां बाबत बात करण सूं पैली आगूंच कीं खुलासा जरूरी लखावै। रचनावां मांय रचनाकार न्यारा-न्यारा खोळिया पैरै, उतारै अर बदळै। वो आप रै रचना-संसार मांय आप री ऊमर सूं ओछो अर मोटो होवण रो हुनर पाळै। किणी रचना री बात करां जणै ऊमर री बात बिरथा होया करै। इण पोसाळ मांय ऊमर ढळियां नवो दाखलो लेवण वाळां नैं कांई युवा रचनाकार कैवांला? कोई जवान कै ऊमरवान कवि पगलिया करतो-करतो आपरी ठावी ठौड़ पूग सकै, अर किणी नैं बरसां रा बरस लियां ई कलम नीं तूठै।
 
                कोई युवा कवि पण जूनी बात कर सकै अर किणी प्रौढ़ कवि री कविता सूं युवा-सौरम आय सकै। आपां जद कोई काम किणी खास दीठ सूं पोळावां कै अंगेजां तद आगूंच कीं पुख्ता काण-कायदा राखणा पड़ै। सींव ई बांधणी पड़ै। अठै युवा कवियां सूं मायनो बरस 1971 पछै जलमिया कवियां सूं तै राखीज्यो है। इण संकलन मांय देस री आजादी रै लगैटगै पचीस बरसां पछै बरस 1972 अर उण पछै जलमिया कवियां री कवितावां एकठ करीजी है। इण युवा पीढी खातर आधुनिक सोच अर संस्कारां री बात इण रूप मांय स्वीकारी जाय सकै कै माईत आजाद भारत मांय नवा संस्कारां साथै आं नैं जवान करिया।
                हिंदी साहित्य इतिहास रै आदिकालीन राजस्थानी कीरत-ग्रंथां अर आजादी रै आंदोलन मांय अठै रै कवियां री भूमिका नैं कदैई कोई नीं बिसराय सकैला! दूजै कानी आपणी कविता रो ओ पण सौभाग रैयो है कै हाल तांई राज-काज री इत्ती अबखायां रै रैवतां ई आ जातरा लगोलग चालू है। अठै आ चरचा करणी बे-ओपती कोनी लखावै कै बिना प्रेरणा अर प्रोत्साहन रै केई-केई रचनाकारां रो बगत परवाण पूरो विगसाव नीं होय सक्यो। कोई कवि-लेखक लिखतो-लिखतो बूढो-अधबूढो होय जावै, तद उणरी सरावणा कै मान-सम्मान में कांई सार है! रचनाकारां रा मंडाण देखर संभाळ अर अंवेर तो बगतसर ई होवणी चाहीजै।
                नवै जुग अर नवी कविता रै पक्कै आंगणै पांख्यां खोलणिया आं कवियां रै मंडाणसूं पचपन कवियां रै इण संकलन मांय बरस 1972 सूं 1995 तांई जलमियां युवा-मनां री कवितावां सूं आपरी ओळख होवैला। लगैटगै चाळीस बरसां तांई रा राजस्थानी रा सगळा कवियां री रचनावां इण जिल्द में कोनी। जिका कवि छूटग्या उणां पेटै किणी ढाळै रो अवमानना-भाव नीं समझ्यो जावै। हो सकै किणी सींव रै रैवतां कोई ऊरमावान रचनाकार अठै सामिल नीं होय सक्यो होवै।
                नवी कविता रा वै कवि जिकां रा निजू कविता-संग्रै छप्योड़ा है कै वै कवि जिका आपरी सखरी हाजरी पत्र-पत्रिकावां रै जरियै मांडता रैवै, वां नैं अठै सामिल करण री तजबीज करीजी है। युवा कवियां रै इण संकलन रा केई कवि जियां- संतोष मायामोहन, शिवराज भारतीय, राजेश कुमार व्यास, मदन गोपाल लढ़ा, ओम नागर, विनोद स्वामी, हरीश बी. शर्मा, शिवदान सिंह जोलावास आद साहित्य पेटै लांबै बगत सूं जुड़ाव राखणिया संजीदा अर ओळखीजता कवि है। इण संकलन रा केई दूजा युवा कवि ई ओळख बणावण में लाग्योड़ा दीसै अर कैवणो पड़ैला कै इण मंडाणमांय आं कवियां री पळपळाट करती ऊरमा परखी जाय सकै।
                हरेक कवि अर कविता रो आप-आप रो न्यारो-न्यारो ढंग-ढाळो होया करै। आं सगळा कवियां नैं एक जाजम माथै जचावतां किणी ढाळै रो कोई फरक संपादन रै ओळावै कोनी कर्यो है। कवितावां री बानगी खातर सगळा कवियां वास्तै च्यार पानां री सींव राखतां थकां, विगत ऊमर रै हिसाब सूं अर परिचै अकारादि क्रम में राखीज्यो है। अठै ओ दावो कोनी कै ओ प्रतिनिधि युवा कवियां कै प्रतिनिधि कवितावां रो संकलन है। हां, इत्तो जरूर कैयो जाय सकै कै इण संकलन मांय केई प्रतिनिधि युवा कवि अर प्रतिनिधि कवितावां आप नैं अवस मिलैला।
                कविता परंपरा रो विगसाव है आज री आधुनिक कविता। जूनै काव्य-रूपां अर मंच नैं बिसारती आ लांठी जातरा बगत-बगत री युवा कविता सूं राती-माती होयी। इयां कैयो जाय सकै कै कविता जातरा नैं युवा कवि नवा रंग सूंपै। बरस इक्कोत्तर में राजस्थानी-एकरै मारफत कवि तेजसिंह जोधा आधुनिक कविता नै बंधी-बंधाई सींव अर बुणगट सूं न्यारी करर साम्हीं लाया। नवी कविता रै इण रूप-रंग अर बानगी रो हाको घणो करीज्यो। इण धमाकै पछै युवा बरस रै टाणै एक बीजो सुर घणै नेठाव साथै 1985 में तिमाही पत्रिका राजस्थलीई साम्हीं राख्यो। राजस्थलीरै च्यार अर राजस्थानी-एकरै पांच कवियां री कविता-जातरा री सावळ अंवेर नीं होयी। आं मांय सूं केई कवि कविता सूं लांबो जुड़ाव नीं राख सक्या। अठै कवि जोधा रै सबदां मांय बस इत्तो ई कैयो जाय सकै कै अठै केई-केई हांफळा है। कवि ओम पुरोहित कागदपोथी रूप अणछपिया कवियां नैं साम्हीं लावणै रो जतन थार सप्तकरै मारफत कर रैया है।
                किणी दौर रै ऊरमावान युवा कवियां रै थापित होवण कै नीं होवण रै कारणां माथै विचार होवणो चाहीजै। थापित होवणो का नीं होवणो बगत रै हाथां, पण कविता जातरा नैं अणथक चालू राखणी कवि रै हाथां होवै। अठै महताऊ बात आ है कै किणी पण विधा मांय बगतसर युवा रचनाकारां नैं ठौड़ मिलै। लगोलग वै इण मारग आगै बध कविता री नवी ओप दरसावैला।
                आप री भासा अर कविता नै अंगेजणो-अंवेरणो ई मोटी बात होया करै। केई भाई-बीरा तो राजस्थानी कविता री फगत गरीबी रो रोवणो रोवै अर विचारै कै आ गरीबी कूक्यां सूं कमती होय जासी। कविता रचण खातर कठैई विदेस जावण री दरकार कोनी। खुद कवि नैं आप रो आसो-पासो भाळणो है। घर, परिवार, समाज सूं सजी आ दुनिया ई कविता री जमीन होया करै। राजस्थानी कविता री जातरा मांय आज रा युवा कवि जे विचारैला कै आज कविता नैं कांई करणो है? कविता नैं जिको कीं करणो है उण में आडी कुण लगावै? आज कविता क्यूं लिखा? किण खातर लिखां? किसी बातां कविता में आवै कै आवणी चाहीजै? किसी बातां रै मांय-बारै कविता आवै? केई-केई सवाल है जिकां रा जबाब युवा कवियां नैं सोधणा पड़ैला।
                कवि अर कविता री कोई हद कोनी होवै। जठै-जठै सबदां रै मारफत पूगीज सकै, उण हरेक ठौड़ नंै कागद माथै कियां उतारां? कीं अैनाण-सैनाण मांडर बताया जाय सकै। कवि अर सामाजिक कविता सुण-बांचर उण हद-अणहद तांई पूग सकै। आ सींव जाणता थकां आं दोनुवां बाबत बात फगत सबदां री हद मांय करीजै।
                विग्यान दावै जितरी तरक्की कर लेवै पण कविता बणावण री कोई मसीन कोनी बणा सकै। कविता रो कोई फरमो का संचो ई नीं थरप्यो जाय सकै। कवि कविता रै रूप मांय आप रो रचाव राखै । रचाव खातर पीड़ जरूरी होवै। कांई बिना पीड़ रै रचाव कोनी होवै? कांई रचाव सूं पैली पीड़ ई होया करै? कांई रचाव किणी सुख रो नांव कोनी? रचाव पैली अर पछै रै सुख-दुख नैं रचाव करणियां ई जाण सकै। आपां सुख-दुख झेलता, मिनखा-जूण मांय जूझता, रचाव रा रंग निरखता-परखता आगै बधता आया हां। हरेक नवै बगत में कविता रै आंगणै पगलिया मांडती युवा पीढी न्यारै-न्यारै सुरां नैं सोधती-साधती बगत परवाण सेवट किणी खास राग नैं हासल करै। कविता रै मारग निकळ्या मंडाणरा अै कवि अठै री आखी जूण नैं अरथावै-बिड़दावै। आपरै आसै-पासै री दुनिया री हलगल बाबत आपरी बात कविता रै मारफत राखै।
                आज नवी कविता छंद नैं राम-राम कर दिया लखावै अर रस-अलंकार री अटकळां ई अकारथ होयगी। आज री युवा कविता रो समूळो दीठाव जूनी आलोचना-दीठ रै ताबै आवै जैड़ी बात कोनी। वयण सगाई, छंद, ओपमा रा रसिया नैं नवा सबदां अर भावां री आ बुणगट सावळ संभाळणी पड़ैला। आं मांयली रचाव री पीड़ नैं परखणी पड़ैला। नवा कवि किणी जूनी रीत कै परंपरा माथै कलम सांभै तद वां रा सवाल आज सूं जुड्योड़ा होवै। नवी कवितावां में इण नैं आज मोटी खासियत रूप इण मंडाणमांय ओळख सकां।
                कविता हंसी-खेल कोनी अर कविता रचाव-विधि आगूंच कवि नंै ठाह कोनी होया करै। किणी कविता री कोई विधि जाणर दूजी कविता कोनी लिखीजै। कविता में कोई सीधी सपाट इकसार बुणगट कोनी। दावै जियां ओळ्यां लिखण सूं कोई कविता कोनी बणै। नवी कविता जे पग लिया है तो उण री कोई विधि है। लिखण अर रचण मांयलो आंतरो तो आपां जाणां। कांई साचाणी कविता रचणो सौरो काम है! जद हरेक ओळी आंकी-बांकी अर कीं न्यारो आंतरो लियां किणी बीजी ओळी-घर में बैठी है, तद उण री आपरी आंक-बांक रो कोई तो अरथ है। उण अरथ नैं ओळखर अरथावणो है। आं रो किणी ओळी रै भेळप में राखणो का अलायदो लिखणो समझ री बात है। 
                अबार तांई होयै राजस्थानी कविता रै काम नैं देख्यां जाण सकां कै आधुनिक कविता-जातरा री बात करणियां अजेस आ बात करी ई कोनी।  संकलन रा केई कवियां री कवितावां देख्यां ठाह लाग सकै कै आज री युवा कविता रो रंग-रूप, भासा-बिम्ब अर मिजाज आद स्सो कीं बदळग्यो है। असल मांय इण इक्कीसवैं सईकै री आं कवितावां माथै खुलर बात करण री दरकार लखावै। कैवण नैं तो कैयो जावै कै आज आखै देस नैं युवा पीढी माथै गाढो पतियारो है। सो कैयो जाय सकै कै इणी आस अर भरोसै सागै आवतै बगत में भारतीय कविता पेटै युवा कवि राजस्थानी कविता री साख ऊजळी करैला।
                जूनी अर नवी कवितावां मांय बदळाव रा कारण सोधतां आपां नैं आज आखती-पाखती रा हालात देखणा अर विचारणा पड़ैला। आज जद आखी दुनिया एक गांव बण रैयी है। दूजै पासी गांव-गांव बिचाळै आंतरो अर अलगाव पसर रैयो है। गांवां अर देस रै इण बदळाव बिचाळै मिनख-मिनख बिच्चै जुध मंडग्यो है। घर, परिवार, समाज अर देस साम्हीं वो भीड़ थकां एकलो होयग्यो है।
                जुध जे रणखेत मांय होवै तो एक दिन निवड़ जावै। नित रै इण जुद्ध सूं कियां पार पावां। आंगणै-आंगणै अर अंतस-अंतस जुध रा बीज पांगर रैया है। अंतस मांयलो अंधारो जीवण-रस नैं खाटो कर रैयो है। इण अबखै बगत मांय स्सो कीं बदळीजर नवै रंग रूप मांय आपां रै साम्हीं है। इण नैं ओळखती दीठ नवी है। इण खातर नवी दीठ रै आं युवा कवियां री रचनात्मकता लारली पीढी सूं न्यारी होवणी वाजबी है। पण नवै अर जूनै री आ सीर समझणी पड़ैला। कवयित्री किरण राजपुरोहित नितिलारी कविता ओळूं रो सूरजबानगी रूप देखां-
                                सगळी बातां
                                जद बीतगी
                                बणागी सूरज ओळूं रो
                                जिण मांय-
                                पिघळ-पिघळ
                                भरीजै फेरूं
                                झील म्हारी
                                ओळूं री।
                कविता अर जीवण दोनूं अड़ो-अड़ चालै, एक नैं समझण खातर दूजै री जरूरत है। अबै वा भारी भरकम सबदावळी, छंद रा बीड़ा अर अलंकारां री छटावां जचावण-उठावण री दरकार कोनी। खुद रो कोई एक कै केई छोटा-छोटा साच घर-परिवार रा कविता में कवि राख सकै। एक दाखलै रूप इण बात नैं कवि मदन गोपाल लढ़ा री कविता म्हारै पांती री चिंतावांसूं जाण सकां।
                                म्हनैं दिनूगै उठतां पाण
                                माचै री दावण खींचणी है।
                                पैलड़ी तारीख आडा हाल सतरह दिन बाकी है
                                पण बबलू री फीस तो भरणी ई पड़ैला।
                                जोड़ायत सागै एक मोखाण ई साजणो हुसी
                                अर कालै डिपू माथै केरोसीन भळै मिलैला।
                                म्हैं आ ई सुणी है कै
                                ताजमहल रो रंग पीळो पड़ रैयो है आं दिनां।
                                सिराणै राखी पोथी री म्हैं
                                अजै आधी कवितावां ई बांची है।
                कवियां री आं कवितावां मांय बगत री झांई देखी जाय सकै। इण दिस पड़ी नीं सुख री  झांई, राज बदळग्यो म्हानै कांई...उस्ताद री कविता आपरै बगत री कविता ही। अबै उण बगत, देस अर समाज री वै बातां अर चिंतावां  बदळगी। जूना राज-काज अर रिवाजां रै बदळियां स्सो कीं बदळ जाया करै। आज रै समाज में लुगाई री छिब अर हेत-प्रीत रो उणियारो बदळ्यो है। संसार में लुगायां है, टाबर है, घर-परिवार अर प्रेम है। आ रूपाळी दुनिया इणी प्रेम सूं है। इण प्रेम नैं बदरंग करण वाळी केई बातां होवै। प्रेम बाबत युवा कवि लिखै अर बीजा करतां बेसी लिखै। कवि ओम नागर आपरी कविता में कैवै-
                                प्रेम-
                                आंख की कोर पे
                                धरियो एक सुपनो
                                ज्ये रोज आंसू की गंगा में
                                करै छै अस्नान
                                अर निखर जावै छै
                                दूणो।
                कैयो जाय सकै कै इण जुग-समाज री सगळी बातां किणी एक कवि में कोनी लाधै। आं सगळा कवियां नंै एकठ करियां आज री पूरी कथा समझ सकां। कविता-मारग माथै चालणिया कवि किणी बंध्यै-बंधायै मारग कोनी चालै। युवा कवियां जाण लियो है कै खुद रो मारग खुद बणावणो पड़ैला। आपरै आसै-पासै रा निजू दीठाव ई कविता रै रूप ढाळता कवि आपरी सरलता-सहजता रै पाण असरदार बणै। कवि विनोद स्वामी री कविता सुपनामांय नवै बगत रा नवा सुपनां अर दीठ री एक बानगी दाखलै रूप देख सकां-
                                माटी रा मोल लियोड़ा दो मोरिया,
                                दायजै में आयोड़ी दीवार-घड़ी,
                                जेठ री दुपारी में
                                हाथां काढ्योड़ी चादर अर सिराणा,
                                गूगै री चिलकणी कोर आळी फोटू
                                बरसां सूं संदूक में पड़ी देखै
                                एक
                                कमरै नैं सजावण रा सुपना।
                केई अंवळाया अर अबखायां इण जुग री मान सकां। हरेक भासा नैं अगाड़ी-पिछाड़ी हरेक जुग मांय जूझ ई जूझ मिलै। बगत-बगत माथै इण जूझ सूं जूझता कवियां अर लेखकां आपरी सखरी हाजरी मांडी। साहित्य री केंद्रीय विधा कविता नंै पैली आपां रा कवि कंठै संभाळर राखी अर आज तो जाणै आखो आभो-जमीन आपां नैं नूंतै। आपां रा नवा काम साख सवाई करैला। नवी तकनीक अर विकास रै आयां आज कोई सबद कै अरथ एक खुणै सूं बीजै खुणै तांई देस-दुनिया तांई तुरत जातरा कर सकै। मोबाइल, ई-मेल अर इंटरनेट रै कारण आपस री बंतळ मांय तेजी आई है। हरख री बात है कै घणा-साक नवा कवि इण नवी दुनिया सूं साबको राखै।
                परंपरा-विगसाव रै इण दौर मांय नवा संस्कारां अर जीवण-मूल्यां मांय बदळाव ई आपां देख सकां। बदळतै जुग मांय कविता रा रंग अर तेवर आज री भारतीय कविता रै आंगणै कोड सूं सागो करै तो इण रो जस कवियां नैं। हरेक भासा रो कवि आप रै आखती-पाखती री बात करै। आप री जमीन अर आभै रो जस-अपजस कविता मांय गावै तद ई कैय सकां कै वो इण जूण रा सगळा राग-रंग संभाळै। कवि हरीश बी. शर्मा री ओळ्यां है-
                                थारै खुद रा सबदां नैं
                                परोटतां
                                थारै दिखायोड़ै
                                दरसावां माथै
                                नाड़ हिलावतां ई जे
                                म्हारा जलमदिन निकळना हा
                                फेरूं क्यूं दीन्ही
                                म्हनैं रचण री ऊरमा?
                ओ सवाल करण रो भाव युवा कविता री खासियत रूप आं कवितावां में निजर आवै। कविता रै इण सवाल भेळै आलोचना री बात करणी पड़ैला। आलोचना री आपरी जिम्मेदारी अर जबाबदेही होया करै पण राजस्थानी मांय आलोचना, पत्र-पत्रिकावां, मंच, प्रकासन आद सुभीतै सूं कोनी! आं अबखायां रै चालतां रचनाकारां री रचनावां बगतसर साम्हीं नीं आवै। किणी संग्रै-संकलन मांय कवितावां आयां सूं कवि री ओळख नैं अरथावण मांय सुभीतो होवै। आ बात तो सगळा सूं लांठी मानीजैला कै आज जद राजस्थानी मांय पत्र-पत्रिकावां साव कमती है अर पोथी प्रकासण पेटै ई आपां रा सगळा प्रकाशकां रो हाथ एकदम काठो है, तो ई रचनाकार सिरजण-धरम पोख रैया है!
                राजस्थानी साहित्य खातर बीसवीं सदी जावतां-जावतां एक मोटो आडो महिला लेखिकावां खातर खोल्यो। कवयित्री संतोष मायामोहन रै कविता-संग्रै सिमरण’ (1999) माथै केंद्रीय साहित्य अकादेमी पुरस्कार-2003 मिलणो चरचा मांय रैयो। भारतीय भासावां री अंवेर करतां साहित्य अकादेमी रै इतिहास मांय आ पैली घटना ही कै तीस बरसां सूं ई कमती ऊमर री कवयित्री नैं ओ सम्मान मिल्यो। इण सूं पैली साहित्य अकादेमी पुरस्कार पेटै डोगरी भासा री लेखिका पद्मा सचदेव रो नांव कमती उमर री कवयित्री पेटै गिणीजतो हो। आ बात भळै अठै गीरबै सूं बखाण सकां कै साहित्य अकादेमी, दिल्ली कानी सूं राजस्थानी साहित्य पेटै युवा कवयित्री संतोष सूं पैली कदैई किणी लेखिका नैं कोई पुरस्कार कोनी मिल्यो।
                अठै संकलित कवयित्रियां री कवितावां मांय समूची लुगाईजात री मुगती रो सपनो अर विकास री पोल-पट्टी बाबत कीं बातां घणै असरदार ढंग सूं कविता रै मारफत साम्हीं आवै। आं री कवितावां में एकै कानी तो प्रकृति रो रूप आपां साम्हीं आवै, दूजै कानी कविता आदमी अर लुगाईजात रै अंतरंग संबंधां नैं बखाणै। कविता-काया मांय उण अदीठ-निराकार नंै ई रचै। प्रीत जठै आदमी-लुगाई रै मांय आपरो वासो करै। इण प्रीत नैं रूप देवण मांय आ देही मददगार बणै। प्रीत-राग रा रंग देह मांय खिलै अर आ हियै री उपज अर उण गूंग नैं खोलण सारू युवा कवयित्रियां कमती सबदां नंै काम मांय लेयर घणी बातां कैय देवै। अठै दाखलै सारू कवयित्री मोनिका गौड़ री कविता ओळखदेखां-
                                थूं है
                                कुण?
                                आरसी ज्यूं
                                साम्हीं ऊभो
                                म्हनैं इज
                                बतळावै
                                म्हारा ई सैनाण
                                अर ओळखाण
                                गम्योड़ो म्हारो म्हैं
                                थूं कठै सूं
                                ढूंढ लायो है बावळा....।
                मीरां नैं तो आखो जगत मान दियो। मीरां री ओळ मांय मध्यकालीन साहित्य मांय केई-केई महिला रचनाकारां री पद्य-रचनावां आपां री परंपरा मांय मिलै। आधुनिक साहित्य पेटै राणी लक्ष्मीकुमारी चूंडावत रो कारज किणी सूं छानो कोनी। आज तांई जिका संपादित कविता-संकलन प्रकाशित होया है वां मांय फगत अर फगत कवि ई संकलित होवता रैया है। इक्की-दुक्की ठौड़ फगत एक संतोष मायामोहन री कवितावां संकलित मिलै। इण संकलन मांय किरण राजपुरोहित नितिला’, मोनिका गौड़, गीता सामौर, रचना शेखावत, सिया चौधरी, अंकिता पुरोहित, रीना मेनारिया अर कृष्णा सिन्हा री कवितावां मिलैला। आ ऊजळी ओळ बगत परवाण न्यारी ओळखीजैला। 
                इण संकलन मांय सामिल केई कवियां रा कविता-संग्रै आगूंच छप्योड़ा है, अर भळै ई छपैला। जिकां कवियां रा संकलन साम्हीं आयां वां पछै री कविता-जातरा मांय आपां फरक इण रूप में देख सकां कै आं कवियां री पैली री अर आज री कवितावां मांय संवेदना नैं साधण री भासा-बुणगट अर सावचेती रो विगसाव होयो है। पैली आळी भावुकता अर विस्तार री जागा अबै कविता री समझ, कमती सबदां में रचण लकब आं री कमाई कैयी जावैला। लगोलग कविता माथै काम करण सूं युवा कवि आज कविता रै जिण आंटै नैं परखण-पिछाणण लाग्या है, वो आंटो घणी साधना सूं पकड़ मांय आवै।
                संकलन रै कवियां खातर किणी एकल बंधेज री घणी बात नीं कथीज सकै। नवी कविता री पैली सरत है कै वा किणी एकल बखड़ी में कोनी आवै। आं कवितावां रो ढाळो आज री भारतीय भासावां री नवी कविता रै जोड़ रो मिलैला, तो कठैई आप नैं आं कवितावां मांय ठेठ अठै री माटी री न्यारी-निरवाळी सौरम आवैला। मिनखाजूण अर अठै रै लोक रा गीत गावती आं कवितावां मांय न्यारा-न्यारा रंग लाधैला। आज बो टैम कोनी जद दीठाव बेजां साफ होया करता हा। अबै तो अबखाई आ है कै दीठाव मांय केई-केई भेद होवै अर भेद मांयलै भेद रा ई केई आंटा कविता नैं साफ करणा होवै।
                अठै आ बात ई लिखणी जरूरी लखावै कै कोई कवि जद नवो-नवो कविता रै मारग निकळै तद उणनैं आपरी लिखी सगळी ओळियां मांय कविता लखावै। होळै-होळै इण मारग रै हेवा होयां वो समझ पकड़ लेवै। समझ आवै कै कोई ओळी कद कविता री ओळी होवै अर कठै कांई सुधार री गुंजाइस है। अठै  म्हारी निजरां साम्हीं एक दीठाव मंडाण रै रूप मांय है।
                आखै राजस्थान मांय लिखण-बांचण अर साहित्य-सिरजकां री पूरी एक नवी पीढी ऊभी होयगी है। जरूरत है इण नैं देखण-परखण अर आगै अंवेरण री। ख्यातनाम कवि-संपादक अर अकादमी अध्यक्ष श्याम महर्षि री साधना रो ओ प्रताप कै आखै मुलक मांय साहित्य-गढ़ रूप श्रीडूंगरगढ़ ओळखीजै। साहित्य री हरेक विधावां मांय रचण-खपण वाळा केई-केई रचनाकारां नैं वै ऊभा करिया। युवा कवियां री कवितावां रै इण मंडाण नै जे वै आगूंच नीं ओळखता तो इण ढाळै रो काम नीं होय सकतो हो। ओ निरवाळो संकलन साम्हीं लावण खातर महर्षिजी रो घणो-घणो आभार मानूं जिकां इण युवा-संकलन री जाझी जरूरत समझी अर म्हनैं संपादन कारज सूंप्यो।
                सेवट मांय कैवणो चावूं कै अै युवा रचनाकार केई-केई ओळ्यां में नवी दीठ सूं आप री बात साम्हीं राखै। अै कवितावां सरलता, सहजता अर भासा री चतर बुगटण नै नवी दीठ रै पाण आप री न्यारी ओळख थापित करै। अै ऊरमावान रचनाकार जिका आप री भासा अर कविता नैं माथै ऊंचणियां है, आं रो जुड़ाव अर साधना आस उपजावै। कामना करूं कै आं रो जोस, उमाव अर ऊरमा ई कविता नैं आगै बधावैला।  इण आस री जस-बेल सदीव हरी रैवै।
                                                                                               
नीरज दइया
बीकानेर, 10 अक्टूबर, 2012

डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
© Dr. Neeraj Daiya. Powered by Blogger.

आंगळी-सीध

आलोचना रै आंगणै

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