पिता के अनकहे को सुनने-सुनाने की कविता / डॉ. नीरज दइया
‘पिता मेरे’ एक लंबी कविता है जिसमें कवि के व्यक्तिगत जीवन की अभिव्यक्ति अंश दर अंश विभिन्न छवियों के रूप में सामने आती है। जीवन में माता-पिता का महत्त्व होता है और इसको कोई रचनाकार अथवा कहे कवि-मन अधिक संवेदनशीलता के साथ ग्रहण करता है। जो चीजें हमारे बेहद करीब होती है उन पर लिखना बेहद कठिन होता है। पिता के साथ जीवन में आगे बढ़ते हुए उनकी उपस्थिति का अहसास होता है किंतु यही अहसास उनके ना रहने पर सांद्र हो जाता है। पिता की रिक्ति में उनकी अनुपस्थिति को एक कवि हृदय जब पूर्व दीप्ति में हमें होले होले अपने साथ लेकर जाता है तो हम उसके शोक में शामिल होते जाते हैं। ‘पिता मेरे’ का पाठ असल में एक यात्रा है जिसे हम कवि संतोष के साथ कविता को पढ़ते हुए निकलते हैं। यहां किसी का शोर नहीं है और शोक में भी कोई किसी प्रकार की कोई आवाज नहीं है। रोना-चीखना-चिल्लाना-कोसना कोई सामान्य नहीं है। ‘पिता का रोना/ यूं संभव नहीं होता/ पिता चिल्लाएंगे/ रोएंगे नहीं/ पिता का रोना/ उनकी कमजोरी नहीं/ ताकत है/ इसलिए पिता का स्थानापन्न/ केवल पिता ही है।’
‘पिता मेरे’ कविता के आरंभ में समर्पण पृष्ठ पर कवयित्री गगन गिल की पंक्तियां हैं- ‘पिता ने कहा-/ मैंने तुझे अभी तक/ विदा नहीं किया/ तू मेरे भीतर है/ शोक की जगह पर।’ बेशक यह पिता-पुत्री के संदर्भ से जुड़ी कविता है किंतु इसमें जो कहा-अनकहा सत्य है उसका एक दूसरा रूप संतोष अलेक्स की कविता में मिलता है। पिता अपने अंतिम समय से पहले पुत्र संतोष को कुछ कहना चाहते थे किंतु वे कह नहीं सके अथवा उन्होंने कहा किंतु संप्रेषित नहीं हुआ अस्तु यह कविता पिता के अनकहे को सुनने-सुनाने की कविता कही जा सकती है। पिता अपने पूरे परिवार जिसमें पुत्र भी शामिल है को जीवन भर अपने कार्यों और व्यवहार से बहुत कुछ कहते रहे, इसका अहसास इस कविता में मिलता है। ‘काफी बातें समझाई/ लगा कि मेरे साथी हैं/ बड़े भाई हैं/ शुभचिंतक हैं/ गुरु हैं/ पिता मेरे।’
कवि अपने आत्मकथ्य में लिखता है- ‘मेरे लिए पिता जी की मृत्यु स्वाभाविक नहीं आकस्मिक थी। वे मेरी ताकत थे। जीवन में उन्होंने कई चुनौतियों का सामना किया। अपनी सुख-सुविधाओं को त्याग कर हमें अच्छी तालीम दी।’ इसी क्रम में उनकी इच्छा के रहते संतोष अलेक्स हिंदी अध्यापक नहीं हिंदी अधिकारी बने तो वे खुश हुए और उनके ना रहने पर मां के आग्रह पर जब उनका सूटकेस खोला गया तो उसमें दिखाई दिया कि एक पिता अपने पुत्र के लेखक और अनुवादक जीवन को सहेज रहा था। ऐसा क्यों? कवि इसे समझ नहीं पाता और उसे यह पहेली लगती है। यह जीवन है और यही कुछ ‘पिता मेरे’ कविता में रूपांतरित हुआ है। जीवन, आत्मकथा अथवा दैनिक डायरी को जब हम कविता के प्रांगण में ले जाते हैं तब पहला प्रश्न यही कि यह कविता क्यों? इसके समानांतर यह भी कि कविता क्यों नहीं? आत्मकथा, डायरी अथवा अन्य कोई भी विधा में कविता जैसा वितान अथवा फलक नहीं हो सकता है। कविता अनकहे को भी कहते हैं और अनदेखे को भी देखती-दिखाती है। इसलिए भी ‘पिता मेरे’ को पिता के अनकहे को सुनने-सुनाने की कविता कहा जा सकता है।
जीवन में जो घटित हुआ जो अनसुना अथवा समझ की परिधि से बाहर रह गया वह कविता के ग्राफ में उतरते हुए होले होले उस परिधि में समाहित होता जाता है। संतोष बिना किसी काव्य-उक्तियों और वक्रोतियों के बेहद सरल सहज ढंग से अपने मौन में अंतर्निहित अवसाद को शब्द देते हैं कि मेरे जैसे किसी पाठक जो जिसने असल जीवन में पिता को खोन का दुख दबाए रखा है वह द्रवित होने लगता है। ‘पिता मेरे’ कविता एक अहसास की कविता है जिसमें पिता के अद्वितीय अहसास को सहेजने का काव्यात्मक उपक्रम हुआ है। कवि का इस कविता में छोटी-छोटी स्मृतियों के तंतुजाल को खोलना असल में एक बड़ा रूपक रचना है। जिसमें पिता का सान्निध्य है और संबंधों की ऊष्मा में व्यष्टि का समष्टि में रूपांतरण भी। कोई भी पिता अपनी संतान को मुक्त नहीं करता अथवा यह कहें कि वह स्वयं मुक्त होता ही नहीं है। इस संसार में नहीं होकर भी वह अपनी पीढ़ियों में खुद को जिंदा रखता है। उसका चेहरा नाम और रंग-रूप बेशक बदल जाए किंतु पिता ही है पालनहार। वह अपने सृजन के अंश में सजृन को सृजनरत रहने की आकांक्षा और क्षमता भी देता है। ‘खुशी इस बात की है/ कि परिवार के सदस्यों की/ यादों में, सांसों में/ जीते हैं वह आज भी।’
भूमिका में प्रख्यात कवि लीलाधर जगूड़ी लिखते हैं- ‘किसी एक विषय पर लंबी कविता कवि को संकटापन्न स्थिति में डाल देती है। लेकिन छोटी-छोटी चिंगारियों से ही यह आग जलती है जो एक लंबे समय तक सूर्य की तरह प्रकाश देने का काम करती है।’ असल में किसी भी पाठक के मन में दबी ऐसी ही कुछ चिंगारियों को ‘पिता मेरे’ कविता हवा देने का काम करती है। ‘मेरे लिए/ दो पैरों पर चलते/ ईश्वर का नाम है पिता।’
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पिता मेरे (लंबी कविता) संतोष अलेक्स Santosh Alex
संस्करण : 2020 मूल्य : 100/- (पेपर बैक) पृष्ठ- 52
प्रकाशक : इंडिया नेटबुक्स India Netbooks, सी-122, सेक्टर-19, नोएडा- 201301 गौतमबुद्ध नगर (एन.सी.आर. दिल्ली) DrSanjeev Kumar
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