कापा-कापा जीवै लुगाई आपरी जूण / नीरज दइया
डॉ. अनुश्री राठौड आपरै उपन्यास- ‘जीवाजूंण रा कापा’ नै सामाजिक उपन्यास रूप राख्यो है। किणी रचना रो समाज सूं जुड़ाव हुवणो लाजमी है, अर अंत-पंत कोई पण रचना रा सामाजिक सरोकार हुवै। कैवणो चाइजै कै रचना समाज सारू ई हुवै। भारतीय समाज रै संदर्भ में बात करां तो राजस्थानी समाज हिंदी उपन्यास खातर समाजिक हुवतां थकां ई जे किणी खास अंचल री संस्कृति, लोक भासा अर लोक व्यवहार रो बखाण करै, तो बो उपन्यास सामाजिक सूं बेसी आंचलिक कैयो जावैला। किणी पण भासा मंय सामाजिक उपन्यास तो घणा मिलैला पण आंचलिक उपन्यास तुलना में कमती मिलै। राजस्थानी रै सीगै बात करां तो अठै उपन्यास ई कमती मिलै उण मांय आंचलिक तो साव ई कमती मिलैला। आ घणी सरावणजोग बात मानीजैला कै डॉ. राठौड आपरै सामजिक उपन्यास ‘जीवाजूंण रा कापा’ मांय जिण समाज रो चितराम, रीत-रिवाज, सांस्कृति अर लोक व्यवहार साथै सांवठै रूप मांय रचै, बो आपरी सहजता-मार्मिकता सूं आखै राजस्थानी समाज रो प्रतिनिधित्व नीं कर’र अंचल विसेस रो बखाण करै। इण सारू इण उपन्यास नै आंचलिक कैयो जावणो ठीक रैवैला। अठै ओ पण कैवणो ई ठीक रैवैला कै किणी अंचल विसेस री संस्कृतिक, रीत-रिवाज, लोक व्यवहार अर स्सौ कीं सेवट मिलमिला’र प्रांत अर देस रै स्तर री सामाजिकता सूं ई कूंतीजै। ओ स्सौ कीं केई अरथा मांय किणी खास वरग का किणी खास चरित्र सूं जुड़’र ई प्रमाणिक बणै अर उण री ओळ कीं दूजै वरगां अर चरित्रां मांय ई देखी जाय सकै। खराखरी ‘जीवाजूंण रा कापा’ एक असाधारण-अद्वितीय औपन्यासिक रचना है, जिण नै बांचता आपां नै रांगेय राघव अर ‘कब तक पुकारूं’ चेतै आवै। स्यात ओ ई कारण रैयो हुवैला कै आ पोथी कमला गोइन्का फाउन्डेशन रै किशोर कल्पनाकांत राजस्थानी युवा साहित्यकार पुरस्कार अर दूजा पुरस्कारां सूं सम्मानित करीजी।
उपन्यास ‘जीवाजूंण रा कापा’ नायिका री जीवाजूण री कथा नै परोटै। उण री जूण रो अणलिख्यो इतिहास का कैवां साच राखै। इण बात सूं ई मोटी बात इण उपन्यास रा दोय केंद्र बिंदु दोय परिवार है। एक वो परिवार का वरग जिको सामाजिक रूप सूं साव निम्न मानीजै। दूजो परिवार एक ठाकुर परिवार (सोणागढ़ी ठिकाणा रा फौजदार साब रो), जिको राजपूती संस्कृति रै आपरै रंग-ढंग अर दबदबै साथै आपरी परंपरावां सूं बंध्योड़ो है। उपन्यास इण अंचल विसेस री घणी परंपरावां नै दरसावतो आपरै पैलै पानै सूं छेहलै पानै तांई उणी परंपरावां मांय समैसार जूझ अर विगसाव री बात मांड’र राखै। सगळा सूं रूपाळी अर जसजोग बात आ है कै बिना किणी नारा, जूलूस, फतवा, घरणा का आंदोलनां रै लेखिका आपरै इण उपन्यास मांय नुवै समाज री थरपणा सारू कीं नुंवी बातां राखै साथै ई बदळावां रो स्वागत करण रो संदेस ई देवै।
उपन्यास री सरुआत आ ओळ्यां सूं हुवै- ‘हरदयाल अर सुमित्रा री खाटलियां (अर्थियां) उठता ही, घर में कुकारौळो मच ग्यो। हाथ-हाथ भर लाम्बा घूँघटा रै पाछै छिप्या मूंडा नै गोडा पै टिका’र धाड़ा मार-मार’र रोवती लुगाइयां नै देख’र सुगणा रो मन कडू़सो व्है ग्यो। क्यूंकै वा जाणती ही कै उणामें सूं कोई’क ई असी व्हेला, जिणरी आँख्यां भी आली व्ही व्हेला, वा भी स्यात विण तीन म्हीना री बाळकी रै दुख सूं, जिणरै माथै सूं माँ-बाप दोयां रो हाथ एक लारै उठ ग्यो हो।’ (पेज- 7) इण उपन्यास मांय केई केई आंचलिक सबद अर भासा भेळै रीत-रिवाज लोक व्यवहार हाको कर’र कैवै कै ओ एक आंचलिक उपन्यास है।
नुवी चेतना सारू ‘जीवाजूंण रा कापा’ उपन्यास री सुगणा जिकी नयिका री सासू मा है, बा ई आगीवाण बणै। उपन्यास री नायिका जिकी तीन म्हीना री बाळकी है, उण रो दुख-दरद तो समझै ई समझै पण खुद रै घर-परिवार अर समाज मांय एक नुवीं सरुआत ई करै। परंपरावां री माना तो नायिका सुखी जिकी साव छोटी है उणनै सुगणा आपरै घरै नीं राख सकै। क्यूं कै बा उणरै बेटै ओम री परणी छोरी है। ‘भलां ही आज लोग तुलसी विवाह, सत्यनारायण भगवान री कथा, कुलदेवी माँ री हवनपूजा या अस्या ई कणी धारमिक अनुष्ठानां री आड़ में छानै-चुपकै छोरा-छोरी नै फेरा देवाई देवै, पण आणा-गुणां (विवाह रै पछै बहू नै पेली दाण सासरै लावा री रीत) तो वणारै थोड़ा स्याणा व्हीया पछै ई कराया जावै है। हाल तो ओम सूं आठ बरस मोटा हीरा री लाड़ी रो आणो भी नीं व्हीयो, फेर इण चार म्हीना री छोरी नै आपां किस्तर सासरै लै जा सकां हा? कणी पुलिस में शिकायत कर दीधी तो अंजाम जाणै है.....।’ (पेज- 12)
सामाजिक असूलां सूं बारै निकळ’र सुगणा किणी बाळकी री जीवाजूण खातर खुद रो दाखलो साम्हीं राखै। किणी जूण रा संस्कार जलम सूं मिलै जिका तो मिलै ई पण बां सूं ई मिलै जिका उण नै पाळै-पोसै अर समझ रो आभो सूंपै। नायिका सुखी ई आपरै जीवण सूं केई-केई नुंवी बातां आपां साम्हीं राखै। बाल विवाह, बेमेल विवाह, अट्टा-सट्टा (घर री छोरी देय’र बेटै खातर बिनणी लावण री प्रथा), नाता प्रथा अर लुगाई-खरीद जैड़ी केई बातां बिचाळै स्त्री संघर्ष ई उपन्यास मांय बखाणीजै। सुखी री पढाई पेटै हूंस अर सुगणा रै परिवार खातर उण रो समरपण ई जसजोग है। खुद लेखिका डॉ. अनुश्री राठौड रो कैवणो है- ‘जीवाजूंण रा कापा उपन्यास कुरीतां अर थोथी मानतावां सूं मिनखाजूंण में पैदा व्ही अबखायां अर वणासूं जुंझता बाल अर युवा मन रै संघर्षां रो चितराम है।’
सगळी कथा उपन्यास फ्लैस बैक सूं कैवै- ‘अरै क्यूं बचाई म्हनै, म्हारै नीं जीवणो है। छोड़ दो म्हनै, म्हनै मर जावा दो.....। जद सूं विणनै होश आयो, वा लगोलग यूं ई चिरळायां जाय री ही। एक दाण तो वा सगळा नै धक्को देयर बालकनी तक पौंच भी गी ही, नीचै पड़वा वास्तै।’ (पेज-13) आ नायिका सुख्खी है जिण रो नांव नांव ई सुखी है पण जूण मांय सुख कमती ई लिखीज्या। जीवण सूं हार मान’र मरण खातर आगै बधण नै मजबूर करीजी सुखी नै डॉक्टर रुद्र बचावै। वो उण रो बाळपणै रो संगी-साथी है। उपन्यास उण रै मारफत आ बात कैवण मांय सफल रैवै कै लाख विपदावां आवै पण जूण रो मारग मरण नीं हुय सकै- ‘सुख्खी, मौत जीवन रो सबसूं बड़ो सांच है अर जिण छण विणरो आवणो तै है, विणरै आगै मिनख लाख जतन करवा रै माथै भी एक सांस री मोहलत नीं पा सकै, पण समै सूं पैल्या अर जाणबूझ’र मौत रै मूंडा में जावणो कणी भी समस्या रो अंत नीं व्हे, बल्कै वो पाछै छूटवा वाळा आपणां रै वास्तै कैई अबखायां पैदा करवा रो कारण बण जावै है। मान्यो कै आपरा जीवन माथै सबसूं पेहलो हक आपरो खुद रो है, पण सोचो इण सूं जुड़्या दूजां लोगां रो, जो अबार कतरा परेशान व्है र्या व्हेगा आपरी गुमशुदगी सूं। आपरै जीवन रा देवाळ मायत, उमर भर साथ रेवा री आस लिया जीवनसा......।’ (पेज- 14)
सुखी रै घरवाळै ओम रो बाळपणै रो भायलो है रुद्र। रुद्र ठाकुर परिवार रो हुवतां थकां ई न्यरै विचारां वाळो है। ‘यूं सामाजिक ऊंच-नीच रै भेद री सोच रै चालता रावळा परिवार नै रुद्र रो ओम सूं दोस्ताणों खास दाय नीं आवतो हो, पण कैवै है कै प्रीत अर मित्रता जात-पांत अर अमीर-गरीब री रेख में बंधी व्हेती तो कृष्ण-सुदामा अर राम-सुग्रीव री मित्रता जग प्रसिद्ध नीं व्हेती।’ (पेज- 16) आं दोनां भायला री प्रेम कहाणियां उपन्यास नै गति देवै। रुद्र-मारू अर ओम-सुख्खी री इण कथा मांय घरवाळा ई खलनायका रो काम साजै। कैवणो चाइजै कै उपन्यास मांय प्रेम, रहस्य, रोमांच, जबरजिन्ना, गाणो-बजाणो स्सौ कीं है अर पूरो उपन्यास किणी फिल्म दांई आगै बधतो जावै। उपन्यास मांय सुख्खी आपरी कथा रुद्र नै सुणावै अर रुद्र आपारी कथा सुखी नै। मारु अर सुख्खी दोनूं लुगायां साथै जबरजिन्ना हुवै। एक आपरा प्राण देय देवै अर दूजी ई देवै पण बा बचा ली जावै। उपन्यास रा केई प्रसंग हियै नै झकझौरै अर सवाल पूछै कै लुगाई सागै ई इण ढाळै क्यूं हुवै? नायिका सुखी री बाळपणै मांय मा-बाप सागो छोड़ग्या अर उण नै सुगणा पाळी-पोसी, क्यूं कै सुगणा सुखी री मा री सहेली ही। उणी ढाळै सुखी री सहेली मारु नीं रैयी तो उण री बेटि प्रीत नै पाळण रो संकळप उपन्यास रै सेवट मांय सुखी करै अर उपन्यास पूरो हुवै।
‘सुख्खी पांच-सात मिन्ट तक आपणी जगां माथै ऊभी-ऊभी ई प्रीत नै देखती री। मारू रै ज्यूं प्रीत रै गाल माथै भी एक गोळ गैहरी काळी टीकी जस्यो निशाण हो, जिणनै देख वा अक्सर मारू नै कैवती ही कै जीजी भगवान आपनै काळो टीको लगा’र भेज्या है, नजर सूं बचावा स़ारू। विणनै लागो कै मारू दोई बावां फैला’र विणनै आपणै नैड़े बुला री है अर वंडा पग प्रीत आड़ी बढ़ ग्या।’ (पेज- 88)
इण पछै लेखिका री ओळी- ‘कापो-कापो व्ही आपणी जीवाजूंण री पोथी रा सगळा पाना समेट, एक नवी पोथी माथै कोई नवी कहाणी लिखवा, कुछ नवा चितराम उकेरवा।’ सुखी री जूण नै विस्तार देवै। इण ढाळै री ई नीं आखी लुगाई जात नै सलाम कै वां रै कारणै ई आ धरती इत्तै मिनखां रो भार झैलै। उपन्यास ‘जीवाजूंण रा कापा’ परंपरावां नै नुवीं वणावण री एक सांवठी जातरा कैयी जावैला। भारत री असली आजाद तद ई मानीजैला जद आपां री आंचलिकतावां अर परंपरावां विकास रै साथै-साथै आगै बधैला, प्रासंगिक अर समसामयिक बणैला। आपरी भासा, भावबोध अर बुणगट रै पाण ओ उपन्यास महिला राजस्थानी उपन्यास ई नीं समूळै भारतीय उपन्यास मांय एक दाखलै रूप राखीज सकै।
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जीवाजूंण रा कापा (उपन्यास) डॉ. अनुश्री राठौड़
सौगन(उपन्यास) बसंती पंवार
संस्करण-2018, पाना-88, मोल-200/-
प्रकासक- अनुविंद पब्लिकेशन, उदयपुर
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