Thursday, April 02, 2020

माइक टेस्टिंग बिना माइक रै / नीरज दइया

हरेक सजग लेखक आपरी भासा मांय वर्तनी री अबखायां सूं जूझै। मानकीकरण अर समरूपता सारू लेखकां री सजगता ई एक दिन रंग लासी। कहाणी संग्रै ‘मुकनौ मेघवाळ अर दूजी कहाणियां’ रा लेखक रामेश्वर गोदारा ‘ग्रामीण’ आपरो नांव उपन्यास ‘टूण्डौ मूण्डी’ में रमेसर गोदारा कर लियो। कोई पण लेखक रो नांव एक ई रैवणो चाइजै। जियां फ्लैप लेखक चन्द्रप्रकाश देवल रो नांव चंद्रप्रकास देवळ कोनी करियो। म्हारो विचार है कै किणी सबद नै बिगाड़’र नीं लिखणो अर जे लिखा तो सदीव उण नै उणी रूप मांय बरतणो चाइजै। उपन्यास रो सिरै नांव ई ‘टूंडौ मूंडी’ अनुस्वार रूप बरतता तो बेसी सावचेती बाजती। आ कोई घणी मोटो बात कोनी, पण बात भासा री समरूपता पेटै करां तो आपां नै इण ढाळै सोचण-समझण री दरकार है। बियां पंचमाक्षरा बाबत इण ढाळै री केई बातां हिंदी मानकीकरण नै देख’र ई आपां सीख सकां।
लेखक उपन्यास ‘टूण्डौ मूण्डी’ री सरुवात मांय नायक रै मारफत कथा अर सिरै नांव रो खुलासो करै- ‘म्हैं चोखी तरियां जाणू, जणा थे तीनूं हाथ धोय मेरै गैल गंडक दांई पड़ग्या तद साची बात बतावणी पड़सी। हां, आ अळ्गी बात है कै म्हैं अजै ताणी मेरै काळजै नै टाळ किणी नै ई साची बात कोनी बताई। थे जाणौ, साची बात माणस मारणी होवै पण म्हैं तौ मिनख मरतौ ई कणा ई को संक्यौ नीं। माणस मारणौ मेरै सारू माछर मारणै बरोबर है। थे तीनां माछर मरियौ है? म्हैं जाणू, इण दुनियां मांय ऐड़ौ कोई मिनख कोनी, जिकै कणा ई माछर न मारियौ होवै, पण इण धरती माथै ऐड़ौ कुण-सो माणस है जिकै नै माछर मारतां हया-दया आई होवै कै फेर सोसकौ होयौ होवै? है कोई थां रै ध्यान मांय? कोनी।’ (पेज- 5)
कथा नै कैवण-सुणण री बाण आपां रै अठै सदीव सूं रैयी है। सो आ घर-बीती कथा जिकी नै स्याणो कथा नायक जिको मिनख मरतौ ई कणा ई को संक्यौ नीं, आपरै तीनूं बेलियां नै जद बै हाथ धोय गंडक दांई गैल पड़ग्या तद साची बात रूप सुणा रैयो है। अठै कथा नै कैवण-सुणण री उंतावळ बिचाळै चतराई ई देख सकां- ‘तीन छटांक छांटौ देय आ सोचौ कै म्हैं दारू मांय चूंच होयग्यौ अर थांनै म्हारी सगळी घरबीती-परबीती बताय द्यूंला। आ थांरी भूल है। जे गोड़ौ गिटनै म्हैं इयां ई रेहळौ-बावळौ होय बकतौ-झकतौ तौ लोग अबै ताणी कदैनौ ई मेरौ सिकार कर लेवता। म्हैं थांनै बताऊंला तौ मेरी मनसा सूं अर लुकाऊं-छिपाऊंला तौ मेरी मरजी सूं।’ (पेज- 5)
उपन्यास ‘टूण्डौ मूण्डी’ रो कथा नायक दारूबाज अर बेजा खतरनाक ई नीं है, बो लंपट, चोर-उच्चको, रंडीबाज, थाणा-कचेड़ी, झौड़-डपाटा, लूट-हत्या आद सगळै अवगुणां री खान है। उण रा सगळा कारनामा जाण्या उण नै किणी दीठ सूं कोई नायक कोनी कैय सकै। इण मिस उपन्यासकार आ थरपणा करै ओ जुग खलनायकां रो है। जठै खलनायक ई नायक रै आसण बिरज रैया है। खलनायक नै नायक बणा’र राजस्थानी उपन्यास जातरा मांय रामेसर नुवो काम करियो है जिण सूं किणी नै कोई सीख मिलण री बात ई छोड़ो उण सूं ई डर लागण लाग जावै। मतलब अठै ओ कै पूरी कथा में नायक तो कठैई है कोनी अर खलनायक रै साम्हीं जिका बीजा पात्र का खलनायक है वै सगळा उण साम्हीं छोटा पड़ जावै। कांई इण रो मूळ कारण किणी रो खुद री जात छोड़’र दूजी जात मांय रळणो हुय सकै- ‘हां तौ भायलौ! आ बात चालै म्हारै बाप री, इण गांव रै हीणजातां नै दरकार ही एक नाई री, इण खातर मेरौ बाबौ मनसुख सूं मनसौ नाई बणग्यौ। ‘माया तेरा तीन नाम’ वाळी बात अठै ई लागू ही। मूंहडै माथै कीं अर पीठ पीछै कीं, म्हैं आ बात सोळा आना साची कैय सकूं कै गैण्ड गैल लोग-बाग मेरै बाप नै मनसियौ मूण्डी कैवता, पण इणसूं म्हारी कांई फीत उतरै ही?’ (पेज- 10)
उपन्यास आपरै कलेवर में आ बात कैवै कै अबै घिरणा अर अपराध बोध रो जाणै बगत रैयो ई कोनी। मिनखां मांयली सगळी संवेदनावां मरगी अर बो माणक सूं जिनावर का किणी मसीन रो रूप धारण कर लियो है। राजस्थानी संस्कृति, घर-परिवार, काण-कायदा, मा-बैण-भाभी लोग-लुगाई सगळा इण घाणी मांय किचरीज रैया है। नुवी सदी मांय आधुनिकता री आंधी आखै जगत नै बदळ रैयी है इण सूं पैली गांव कीं बच्योड़ा हा पण अबै आखी दुनिया जाणै फेट मांय आयगी का कैवा कै आखी दुनिया नै फेट मांय लेय ली। इण जुग मांय बोलै जिको बेच खावै अर टूण्डौ मूण्डी नै जाणै हरेक जागा पोल-पट्टी मिलै अर बो लीलो-सूखो मिलै जिकै नै ई चरतो जावै- ‘लुगाई वां लोगां सारू दो आंगळ री जाग्यां सूं फालतू कदी कीं कोनी ही अर फेर बा ऐन झोटौ जिसी लुगाई। कैवण नै वा दो टाबरां री मा जरूर ही, पण देखणियौ दो घड़ी देवतौ रैय जावै। डील पर बैठै तौ माक्खी तिसळै अर देखै तौ निजर फिसळै। चालै तौ चालती री डगमग हालती पीठ लसकारा मारै। इसी पांच हाथ लांबी गोरी-चिटी लुगाई रौ कारू-कमेरुवां रै घरां कांई काम। देखणियै रै लाळ पड़ै। सगळै चौधरियाअं री आंख्यां मांय वा रेत रड़कै ज्यूं रड़कै। आ ई रड़क निकाळन खातर जणा गांव मांय तीस रुपिया मजूरी चालै तद लोग बींनै पचास देवण नै त्यार। सगळौ गांव बींनै मजूरणी ले जावणौ चावै। दिनूगै-आथण मूळै रै घरे लोगां री लैण लाग जावै- यार मूळा, बीन्दणी नै एक दो-दिन सहारौ लगावण घाल।’ (पेज-15) आं अर इण ढाळै री केई केई बातां-घटनावां सूं कैयो जाय सकै कै टूण्डौ मूण्डी साइकिक पेसेंट है।
उपन्यासकार टूण्डौ मूण्डी में बुणगट रै पाण खुद उण रै मूंडै सूं ई चरित्रां नै होळै होळै साम्हीं राखै। बात कैवण मांय अठै लौकिक लहजो किणी नै अखर सकै। पण जिण भासा अर बुणगट रै पाण आ कथा रचीजै बो साच ई है। गांवां मांय जिण ढाळै री मानसिकता अर भासा बोध मोकळै विकास पछै चालै उण री साख भरै ओ उपन्यास। पढ़ाई-लिखाई अर भासाई संस्कार रो विकास राजस्थान रै हवालै सूं देखा तो ठेठ राजस्थानी रो देसी रूप अर उण माथै हिंदी रो असर दोय न्यारा न्यारा रूप मान सकां। जूण रा केई रंग हुवै, मिनख जद बेलियां मांय बैठै अर खुद री सुणावै तद बो कीं बेसी चौड़ो हुय जावै। इण खातर ओ पण कैयो जाय सकै कै टूण्डौ मूण्डी मांय अतिश्योक्तियां भरी पड़ी है। उण री जूण-जतरा रा कांटा ई अठै फूल बण’र साम्हीं आवै। घणी वेळा उण री भासा अर कारनामा सुण’र लागै कै लेखक जाणै खुद इण समूळै घटनाक्रम रो चसमदीठ गवाह रैयो है। इक्कीसवीं सदी मांय राजस्थान रो बदळतो उत्तर आधुनिक स्वरूप जठै आभै उडार भरै उणी सागी बगत बो बठै ई पाताळ पूग रैयो है। ओ सामाजिक विरोधाभास रचतो गोदारा विडरूप चरित्र सूं समाज री नाक हेठै चालतै इण ढाळै रै गोरखधंधै नै उजागर करै कै सूग आवण लागै। चन्द्रप्रकाश देवल इणी सारू लिख्यो- ‘आपरी इण रचना में गोदारा समाज री ऐड़ी जथारथी छिब एकदम कोरी छै जिणमें आपरी आब सूं पळकता समाज री छिब एकदम कूड़ी व्है जावै। असल में आपरी पसम सूंपळकता समाज रा फींफरा लगैटगै सड़ग्या छै।’  
            टूण्डौ मूण्डी आपरी बातां चटखारा लेय’र सुणावै इण खातर अठै मिनख-लुगाई रै संबंधां रा केई स्थूल चितराम साम्हीं आवै। किणी फिल्म दांई ओ उपन्यास चालै अर इण मांय एक दीठ आ पण हुय सकै कै राजस्थानी नै बांचणिया कमती है सो कीं इण ढाळै रो हुवै कै बांचण मांय रस आवै। बरसां पैली श्रीमंत कुमार व्यास इणी दीठ सूं केई कहाणियां लिखी अर ‘करंट’ सूं बांचणिया नै साहित्य सूं एक एकर तो चेपण रा जतन करिया। आ साहित्यिक दीठ कोनी पण भासा विगसाव पेटै एक निरवाळो जतन जरूर कैयो जाय सकै। आ तो भली हुई कै अठै लेखक टूण्डौ मूण्डी रो हलफिया बयान खुद सूं विगतवार मांड’र कैवा रैयो है। आज तांई रो लेखो ओ है कै साहित्य मांय सूक्ष्मता अर सांकेतिकता सूं घणी अणकही बातां कथीजी अर कथीजैला।
            आपरी भास अर बुणगट साथै इण नुवी कथा सूं मानोविकारां री जबरी पड़ताळ हुई है। गळी-सडी सड़ांध मारती लाइलाज मांदगी सूं जकड़ीज्योड़ो अर सूगलवाड़ै रो घर ओ चरित्र आपां साम्हीं आवै अर सवाल करै कै है कोई ईलाज। आपरी कथा टूण्डौ मूण्डी किणी माइक का भोंपू सूं गांव विचाळै जाय’र कोनी कैयी। अठै ओ पण कैयो जाय सकै कै आ पूरी कथा माइक टेस्टिंग बिना माइक रै रामेसर गोदारा कैवावै। अबै विचार ओ करणो पड़ैला कै जे माइक चालू हुवै तो टूण्डौ मूण्डी रै कित्ता जूता पड़ैला। कांई आज रै समाज अर कानून मांय इत्तो पाणी है कै बो जूता मार सकैला? घर-समाज नै बचावण खातर ओ जरूरी है कै इसै मूण्डियां रो कीं पक्को इलाज बगत माथै हुवै नींतर ऐ पूरै घर-परिवार-समाज नै भदर कर सकै।
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टूण्डौ मूण्डी (उपन्यास) रामेसर गोदारा
संस्करण- 2015 ; पाना-112 ; मोल-150/-
प्रकासक- एकता प्रकाशन, चूरू राजस्थान

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अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

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