समाजू व्यवस्था मांय बदळाव रो सपनो
हिंदी-राजस्थानी मांय लांबै बगत सूं प्रमोद कुमार शर्मा न्यारी-न्यारी विधावां मांय सिरजण करता रैया है। आ हरख री बात कै कीं नवो रचण अर करण री बै हूंस राखै। बांरी आ हूंस ‘गोटी’ उपन्यास मांय देखी जाय सकै। पैली इण ढाळै रो प्रयोग हिंदी उपन्यास ‘क्लॉ ड ईथरली’ मांय बै कर चुक्या। अठै प्रयोग ओ कै हरेक रचना जीवन सूं जमीनी जुड़ाव राखणी चाइजै। खुल’र कैवां तो जिको आपारै आसै-पासै आपां जीवां जिण मांय आपां सगळा हुवा बो स्सौ कीं रचना मांय हुवणो चाइजै। सांतेकिकता अर सूक्ष्मता की ठौड़ जो कीं खरो खरी च्यारूमेर साच दीखै उण नै दिखावां उपन्यास मांय का किणी कूड़ नै ई भेळ-सेळ कर’र साच दांई राखां। कैवणिया आ पण कैवै ओ समूळो संसार ई कूड़ो है। आ जूण सपनो। किणी पण रचना मांय लेखक सपनां नै लेय’र चालै। ‘गोटी’ उपन्यास रा ई खुद रा सपना भेळै उपन्यासकार का ई सपना अठै देख सकां। उपन्यास रै सपना अर संकेतां री बात करां उण सूं पैली उपन्यास री छेहली ओळ्यां देखो- ‘मयंक टैक्सी नैं अडीकतो आपरै उपन्यास मुजब सोचण लाग्यो। अवस ही स्वामी जी वीं रो उपन्यास छपवासी। अर देस में वीं री कथा एक क्षेपक बण’र समाजू व्यवस्था मांया बदळाव ल्यासी। वीं री आंख्यां साम्हीं छापै स्यूं धड़ाधड़ निसरती ‘गोटी’ री प्रतियां अर जिग्या-जिग्या पढ़ता ढेरूं पाठक- आप री गर्दन उठावता मानखै स्यूं सुवाल करता, रेत री एक नदी बणता जा रैया हा।’ (पेज 96)
प्रमोद कुमार शर्मा ‘गोटी’ उपन्यास री कथा नै नवै ढंग-ढाळै इकतीस दरसावां सूं दरसावै। उपन्यास मांय किणी फिल्म दांई दरसावां नै रचती बगत भासा री चतराई अर चित्रात्मकता सरावणजोग कैयी जाय सकै। लोक री भासा नै ठेठ बोलचाल अर लहजै नै अंवेरण री कोसीस करतो ओ उपन्यास जूण रा केई केई भेद खोलै। मयंक रो ‘गोटी’ नांव रो उपन्यास जेळ मांय लिखणो अर उण रै छपण रा सपना देखण रै दरसाव माथै उपन्यास पूरो हुवै। कांई ओ उपन्यास मयंक रो लिख्योड़ो गोटी उपन्यास है जिण नै प्रमोद कुमार शर्मा आपरै नांव सूं प्रकासित करायो का ओ एक लांबो सपनो है जिको उपन्यासकार कथा नायक रै रूप मांय जीवै। उपन्यास मांय राजस्थानी भासा मान्यता आंदोलन री बात करणी इण बात रो दूजो पुखता परमाण मान सकां कै ओ उपन्यास ठेठ जमीन सूं जोड़ण री कोई कसर लेखक कोनी छोड़ै।
उपन्यास मांय मूळ संवेदना भेळै लेखक केई केई बातां परोटै। गोटी री मूळ संवेदना का विसय आज रै युवा नै केंद्र मांय राखता थका राख्यो है। उपन्यास रै कथा-नायक नै एक इसै जोध जवान नायक री छवि मांय दिखायो है जिको घर-परिवार-समाज खातर कीं करणो चावै। बो जगत रै पाखंड नै धार्मिक अर राजनैतिक दीठ सूं जाणणो-समझणो चावै। एक युवा जिण री अक्कल काढ’र उण नै उपन्यास मांय गोटी बण लियो जावै कै उण नै समझ ई कोनी अवै कै ओ खेल कांई चाल रैयो है। भासा अर बुणगट सूं प्रभावित करै करतो ‘गोटी’ राजस्थानी उपन्यासां मांय संवाद कला अर दरसाव पुरसण रो बेजोड़ दाखलो कैयो जाय सकै। सगळी बातां कट टू कट है पण सगळी घटनावां स्थितियां मांय लेखक पात्रां नै कठपुलियां दांई इसा नाच नचावै कै किणी कमर्शियल सिनेमा दांई ऑल इन वन वाळी बात हुय जावै।
पैलै दरसाव रो नांव ‘मंगळ कारज’ राखण लारै लेखक री दोय मनगत- पैली तो ओ दरसाव मंगळाचरण रो कांटो काढ़ै, दूजी घर मांय महीना दोय पछै बेटी रो ब्याव मंगळ कारज कैयो जाय सकै। शिवदत्त अर पार्बती रै चार टाबर- सीमा, मयंक, लता अर वनीता। ‘पार्बती होळै-सी पैर दबाणा छोड्या अर शिवदत्त रै पसवाड़ै आ’र सोगी। वण आंधारै मांय आंख्यां झपकाई... वींरी आंख्यां मांय बीजळी रा पळकारा-सा पड़ण लाग्या..., सीमा रो ब्याव वींरी आंख्यां साम्हीं भाज्यो आवै। बा देखो... वा भाजी फिरै पार्बती। कठै अठै। कठै वठै। कदै गीत गांवती तो कदै लाडुवां रो धामो लियां कोठ्यार मांय जांवती। हाय रामजी... कित्ती फूटरी लागै सीमा! लाल जोड़ै मांय सजी-धजी सीमा नै देख पार्बती हरख उठी।’ (पेज- 4)
दूजै दरसाव रो नांव ‘सुपनो’ जरूर राख्योड़ो है पण उण मांय सुपनां रै तूटण री विगत निजर आवै। मयंक रै हाथ माथै ‘हिंदू जिंदाबाद’ लिख्योड़ो है तो परणीजण वाळी छोरी ओलै-छानै प्रेमी सुरेश नै कागद लिख रैयी है। उपन्यास रै कथा नायक नै राम मंदिर अर हिंदू धरम सूं जोड़’र धरम री ठेकैदारी उपन्यासकार दरसावै तो सीमा अर उण री बैनां रै मारफत नुंवी हवा री फेट मांय आयोड़ी छोरियां नै देख सकां। स्त्री विमर्श खातर पेटै ई केई मुद्दा ‘गोटी’ पुरसै। भानुभाई जैड़ा केई पात्र आपां रा टाबरां नै गुमराह करै। ‘मित्रों! पित्तल को रंग देने से, वो स्वर्ण नहीं बनता। अपितु अपना शुद्ध स्वरूप भी खो देता है। इसी प्रकार अपनी जाति, अपना धर्म परिवर्तित करके कोई भी सच्चा प्राणी धार्मिक नहीं हो सकता। बताइये कितना- पुराना है इनका धर्म और कितना हमारा। फिर भी हम अपने ही देश में मारे-मारे फिर रहे हैं। पूरी दुनिया में केवल एक हिंदू राष्ट्र है, कैसी विडंबना है, अपने ही घर में हमारी पहचान नहीं। जो काम 15 अगस्त, 1947 को हो जाना था। वह आज तक नहीं हुआ। इसलिए मित्रो, अपना धर्म पहचानों। उसे ताकतवर बनाओ। प्रश्न उठाओ। संघर्ष करो, लेकिन अनीश्वरवादी ताकतों और संकीर्ण धर्मों के सामने घुटने मत टेको। गर्व से कहो- हिंदू जिंदाबाद....। हिंदू जिंदाबाद...। हिंदू जिंदाबाद...।’ (पेज-11)
देश मांय गरीब-बेरोजगारी, संस्कारां अर रीत-रिवाज मांय पीसजती जनता। निम्न अर मध्यम वर्ग मारै अर्थ री मार। धर्म रा ठेकेदार, स्वामी-मोडा, दायजै री दाझ, गुमराह युवा पीढी, फिल्मा रो नसो अर प्री मच्योर टाबरी स्सौ कीं ‘गोटी’ उपन्यास मांय मिलै। ऐकै कानी विराट हिंदू सम्मेलन है तो दूजै पासी लव-जेहाद पेटै असगर अर बिचली छोरी लता रा लफड़ा ई मिलै। लुगायां रा गीत, छोरा रा खून-खराबा, आपसी रंजिस अर मार-पीट स्सौ कीं है इण कथा मांय। पुलिस-थाणा कोरट कचेड़ी भेळै बयान राजस्थानी मांय देवण रो होसलो। ‘मयंक आंसूं पूंछतो बारै साथै भीर हुयग्यो। बीं रा पग कीं उंतावळा बगै हा। हथकड़िया वाळै हाथ नैं देखतां बो सोचे हो’क इण सारी वारदात पर इणी हाथ स्यूं एक उपन्यास लिखसी, जिण रो सिरै नांव हुयगी- गोटी...।’ (पेज- 91) मयंक री हिमत नै दाद देवां कै बो जेळ जावतो राजस्थानी मांय गोटी उपन्यास लिखण री विचारै। दूजै पासी स्त्री विमर्श पेटै सीमा रो ब्याव नीं करण रो ऐलान ई विचारणजोग कैयो जावैला। दरसाव मांय दायजै री मांग सूं पीसतो बाप शिवजी तो हाथ जोड़’र आपरी ठौड़’ई ऊभो है कै दोनूं मेहमान रै जायां उण रै उणां रै कानां सीमा री चिलकारी मोखला काडगी- ‘भाड मांय जावै इस्सो ब्याव। म्हानै कोन्नी करणो ब्याव। ईयां के म्हैं पपा नै बेचण सारू जामी हूं।’ (पेज- 29) ‘नईं-गळती तो म्हारै स्यूं होगी- जकि म्हैं थारै स्यूं प्यार कर लियो। पण सीमा रो ब्याव देखता थकां ठाअ पड़यो’क मध्यम वर्ग री छोरियां रा ब्याव कित्ता दौरा हुवै। अर फेर- बीजै धर्म मांय ब्यांव- मरणो’ई हुज्यासी सगळां रो।’ (पेज- 35)
गोटी उपन्यास युवा पीढी नै चेतावै अर साथै ई उण रै रुखाळा नै। बदळतै बगत नै सबदां मांय अंवेरण री आ खेचळ देस-दुनिया रै बदळावां नै दरसावण रै चक्कर मांय केई केई मोरचा खोलै अर उणा नै आपरै हिसाब सूं सलटावै। प्रेम अर धर्म रा झीणा तार मिनख-लुगाई रै मनां माथै किण ढाळै असर करै उण रो पूरो हिसाब दरसावण मांय उपन्यास ओ सवाल छोड़ै कै असंतुलित नायक मयंक री लेखनी इत्ती संतुलित कियां है कै बो गोटी उपन्यास लिख पावै। ओ उपन्यास कांई मयंक रो लिख्योड़ो ‘गोटी’ ई है का एक रचना रै जलम लेवण री आ पूरी कथा है। आज रै हालता मांय जद सगळा ‘गोटी’ बणता जाय रैया है का वणा दिया जावै तद इण संसार अर मानखै रो कांई होसी। सार रूप कैवां तो प्रमोद कुमार शर्मा ‘गोटी’ री कथा नै एक क्षेपक बणा’र समाजू व्यवस्था मांय बदळाव रो एक सपनो देख्यो है। बां रै मुजब आज री मोटी जरूरत मानखै सूं सवाल करणो मान सकां।
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गोटी (उपन्यास) प्रमोद कुमार शर्मा
संस्करण : 2016 ; पाना : 96 ; मोल : 100/-
प्रकासक : कलासन प्रकाशन, बीकानेर
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