आत्मकथा अर आत्मकथात्मक उपन्यास रो आंटो / नीरज दइया
लेखक खुद नै खुद री जूण जतरा पेटै ‘करड़कूं’ समझै। ओ लेखक रो मानणो है पण आत्मकथा अर ‘करड़कूं’ नैं बांच्या पाठक ओ फैसलो करैला कै लेखक रो खुद नै ‘करड़कूं’ मानणो कित्तो वाजिब है। मनोज कुमार स्वामी सूं घणी अपणायत अर हेत साथै अठै ओ लिखणो जरूरी लखावै लखावै कै भाई ‘करड़कूं’ नै उपन्यास कैयो बो असल में आत्मकथा रो ई दूजो भाग कैयो जावै तो ठीक रैवैला। उपन्यास अर आत्मकथा पेटै आपां जाणा कै दोनूं मांय जीवण री विगत बेसी हुया करै अर उपन्यास रा केई प्रकार हुवै जिण मांय ‘आत्मकथात्मक उपन्यास’ रो ई घणो रुतबो रैयो है। केई विद्बानां रो मानणो है कै लेखक उपन्यास रै नांव माथै खुद री आत्मकथा अर उण रा केई केई खांचा उजागर करिया करै। जूण रो जथारथ ही रचना मांय साम्हीं आवै। ‘करड़कूं’ मांय लेखक मनोज कुमार स्वामी री जूण जातरा रो जथारथ मिलै फेर इण नै उपन्यास का आत्मकथात्मक उपन्यास क्यूं नीं कैयो जाय सकै। अठै मोटो सवाल ओ कै आत्मकथा अर आत्मकथात्मक उपन्यास रो आंटो लेखक कित्तो जाणै। पत्रकार-लेखक साहित्य री केई विधावां मांय बरसां सूं सक्रिय रैया है अर भासा आंदोलन सूं ई गैरो जुड़ाव रैयो है। जाणकार आ बात ई जाणै कै लेखक रै हियै भासा अर साहित्य नै लेय घणी तकलीफ है। तकलीफां तो बां री निजू जिंदगी मांय घणी ई रैयी जिण रो पूरो पूरो विगतवार खुलासो आ दोनूं रचनावां सूं अणजाण ई जाण सकै।
राजस्थानी मांय आत्मकथाव साव कमती लिखीजी अर उपन्यास विधा पेटै ई अजेस आपां उमीद करां कै घणो काम हुवणो बाकी। हरख-कोड री बात आ पण कै मनोज कुमार स्वामी आ दोनूं विधावां मांय रचण री खेचळ करी। अठै आ बात पण विचारणी पड़ैला कै बै आपरी आत्मकथा रै दूजै भाग नै उपन्यास नांव क्यूं दियो? आत्मकथा ‘खेचळ अर खेचळ’ री भूमिका लिखता पत्रकार करणीदान सिंह राजपूत लिखै- ‘मनोज कुमार स्वामी अबखाइयां भरी बात सुणावै बतावै, लिखै जणा लागै आपणै सामी कोई साची-साची फिल्म चाल’री है। हो सकै लिखणै, बोलणै अर बतावणै री आ ताकत पत्रकार लेखक बण जावण रै कारण आई होवै।’ अर उपन्यास ‘करड़कूं’ री भूमिका लिखता डॉ. रमेश मंयक लिखै- ‘म्हारी दीठ मांय आपणी कलम रै पांण घर-गिरस्ती री गाड़ी खेंचण रो बयान करतो, मरूभोम मांय ऊकळती जिंदगाणी रो मंडाण करतो ओ आंचलिक उपन्यास आप री छाप छोड़ैगो। जिण सूं मायड़ भासा रो मांन बधसी।’ हरेक विधा रा खुद रा मानक हुया करै जिण नै पूरा करणा हुवै। सवाल ओ है कै किणी आत्मकथा नै लेखक उपन्यास रो रूप कियां देय सकै अर अठै ‘करड़कूं’ पेटै लेखक सूं इस्सो कांई-कांई छूटग्यो जिण सूं आ रचना विधा रै मानका नै पूरा नीं करै।
हुय सकै दूजी भासा मांय आ बात सावळ कैयीजै का कोनी कैयजी पण राजस्थानी मांय अेक ओळी मांय कैवां तो आत्मकथा मांय फगत खुद रो दळियो दळीजै अर उपन्यास मांय उण दळियै मांय सगळा रो पख भेळो राखीजै। ‘करड़कूं’ मांय लेखक मनोज कुमार स्वामी ‘खेचळ अर खेचळ’ रै दळियै नै आगै बधावै। दळियो दळण सूं म्हारो मायनो खुद री गिंगरथ गावण सूं मानजो। लेखक खातर घणै आदर अर प्रेम मांय कोई कमी कोनी, पण बै खुद री जूण रै इण बखाण मांय बाळपणै सूं लेय’र जवानी तांई कठैई लेखक का पत्रकार रूप सावळ ऊभा कोनी दीसै। ‘लगै टगै सगळा साहित्यकारा री पोथ्यां रा आयोजन म्हारै सैहर मांय करवाया अर बै भी टणकवां। मोकळा दरसकां रै बीचाळै। अभिभूत हुयोड़ा अै साहित्यकार कैवता कै ‘अठै तो म्हारो घर है जाणै।’ पण जद अठै रै लिखारां री पोथ्यां छप छपगै आवण लागी तो आ लूंठा साहित्य कारा अेक भी पोथी रो पाठक मंच आपरै गांव, सैहर मांय करावण री भूल कोनी करी। म्हैं घणी बर सोचूं कै- ‘का तो आपणी पोथ्यां मांय धांस ई कोनी। का बोळी धांस है जिण सूं अै लोग डरै है।’ (करड़कूं : पेज 88)
पोथी मांय लेखन अर पत्रकरिता सूं जुड़िया केई घटना प्रसंग लेखक बतावै। इण बतावण मांय लेखक रो पत्रकार रूप हावी दीखै कै बै हरेक सांच नै कैवण री जुगत करै पण उण किणी साच लारै कांई मनगत हुय सकै उण री विगत साव कमती अठै मिलै। दाखलै रूप बात करां तो लेखक री जूण मांय आरथ री इत्ती जबरदस्त मार रैयी कै बै उण सूं मुगत हुय ई नीं सक्या। केई ठौड़ बांचता दया आवण लागै कै जलम सूं लेय अबार तांई दिन पटलता थकां ई लेखक नै खुद रै रचाव माथै का किणी दूजै रै रचाव माथै मोहमाया क्यूं कोनी। भरत ओळा रै साहित्य अकादेमी पुरस्कार अर भासा मान्यता आंदोलन रै अध्यक्ष बदळण रा प्रसंग हुवै भलाई रथ जातरा री बात सगळी ठौड़ भासा अर कैवणगत मांय लेखक खुदोखुद री बात बतावै। सगळी जाणकारी कै घटनावां इयां इयां हुई। लेखक री याददास्त गजब री कैयी जाय सकै कै बां नै स्सौ कीं विगतवार चेतै आवै अर जूण नै आं पोथ्यां रै मिस जाणै दूसर घाव मांय घोबा करै। ओ काम सरल कोनी हो जिको मनोज कुमार स्वामी कर दिखायो है। पत्रकार करणीदान सिंह राजपूत ‘खेचळ अर खेचळ’ री भूमिका रो सिरैनांव- ‘बाप दूजी परणै तो औलादां गुलामी भौगे’ खरो दियो है। आं रचनावां नै लिखणो घणो हिम्मत री बात मानीजैला अर आ हिम्मत दिखावणो लेखक ‘करड़कूं’ नीं हुय सकै। ओ उण रै मन रो कूडो वैम है कै खुद नै अलग थलग विचारै जद कै बै इण बगत समय अर समाज रै साथै रळमिल’र आगै आगै बधता जाय रैया है।
लेखक मनोज कुमार स्वामी री भासा अर कैवणगत मांय लोककथावां दांई रस है पण अेक पत्रकार-लेखक री भासा मांय भास विकास, समरूपता अर मानकीकरण रो सोच निजर नीं आवै। अठै ‘करड़कूं’ मांय लेखक आपरै अनुभवां नै जिण खातर चोट करै जिसी ओळी है कै दळियो दळती बगत फगत अेक दीठ सूं चीजां नै देखै। बां रै साथै जूण मांय घर-परिवार अर मित्रां सूं जुड़ी केई केई अबखाया रैयी अर बां नै सदीव चोट ई चोट मिली। आं चोटां बिचाळै बां रै मांयलो मिनख केई बार केई बातां विचारै पण फेर जद कोई मौको आवै तद बां बातां नै बिसर देवै अर नवी चोट खावण नै बै स्सौ कीं भूल’र निरमळ मन सूं निकळ पडै। कैवणो चाइजै कै बां री लेखनी सूं घर-परिवार री केई केई अबखी बातां साम्हीं आवै जिण माथै रोवणो ई आवै साथै ई पत्रकार-लेखक री चमचमावती दुनिया रा अंधारा अठै आपां नै उल्लेखजोग रूप मांय देखण नै मिलै। समाज रै न्यारै न्यारै वर्गां री त्रासदियां रो बखाण आं दोनूं पोथ्यां मांय मिलै।
‘लिखण पढ़ण रो थोड़ो सौंक म्हरै ई चढ़ग्यो हो बा दिना में। पैंटिंग करणै रो कोड भी हो। केई फोटूवा बणाई ही। कीं कहाणी का कविता लिखतो तो बां दिनां हड़मानगढ़ स्यूं तेजकेसरी में भेज देंवतो। सूरतगढ़ स्यूं कृष्ण सोनी आअजाद रो सीमा की ललकार, अर मुरलीधर उपध्याय रो हिन्द ज्योति, नेमीचंद छींपा रो कन्ट्रीब्यूसन अखबार छपता हा। आं मैं लिखेड़ो भेज देंवतो। छप ज्यांवतो जणां वै अखबार भेजता डाक स्यूं। नाम छपेड़ो अर पतै पर अखबार आयोड़ो देख’र राजी हुंवतो।’ (खेचळ अर खेचळ : पेज 105) लेखक रै परणियां पछै टाबर-टींगर हुयां पछै री आ सगळी विगत सूं लगती बात सूरतगढ़ मांय शिव गर्ग आळी बरतणाळी दुकान आगै री लेखक बतावै जठै कृष्ण सोनी आजाद अर शिव गर्ग ई बैठा हा कै बां आजाद जी री जेव मांय सूं राजस्थान सरकार रै अधिस्वीकृत पत्रकार रो कार्ड जिको बां री जेब सूं मूढो काढै हो बिना पूछै काढ़ियो अर देख्यो तद बां कारड खोस लियो अर बोल्या- ‘ओ सरकारी कार्ड है, इणनै हर कोई, कोनी हाथ लगा सकै। ओ म्हारै पत्रकारा रो हुवै समझयो के?’ अर आ ओळी लेखक रै लागगी बां संकळप करियो कै अेक दिन इस्सो कार्ड खुद री जेब मांय घालैला। इणी दीठ अखबार निकाळण लाग्या अर अंक दीठ खरचो तीन च्यार सौ करणो पांच सौ प्रतियां छापणी लेखक री जूझ नै दरसावै। अबखै बगत मांय कोई बात धार लेवणी अर उण नै पार घालणी सरावणजोग बात मानीजै। लेखक री इण जूझ रो सम्मान। देस मांय इण ढाळै रा छोटा-छोटा प्रयास ई पूरै कारज पेटै भलाई गिणीजो ना गिणीजो पण जे आ असली लड़ाई ना हुवै तो कोई किणी मुकाम माथै कोनी पूग सकै।
जिकी जूण इत्ती अलूणी हुवै उण मांय हरख प्रीत का रंग रो सोच ई कियां कर सकां। अगन मांय तप’र सोनो खरो हुवै अर मनोज कुमार स्वामी खरा मिनख बाजै। ‘करड़कूं’ ई असल मांय खेचळ अर खेचळ री विगत रो विस्तार है अर इण सारू उण पोथी रो ओ दूजो भाग है, जिण सूं बां री जूण-जातरा री कथा साम्हीं आवै। अबै सवाल ओ पण हुय सकै कै लेखक री जूण ‘करड़कूं’ ज्यूं क्यूं कोनी? इण रा केई कारण दिया जाय सकै। पैलो अर मोटो कारण तो ओ ई कै बां रो आज पत्रकारिता अर साहित्य जगत मांय खासो नांव जाणीजै। कांई जे बै पत्रकार का साहित्यकार नीं हुवता तो दुनिया मांय बै जाणीजता। बां रा सागी भाई ओम जी पत्रकार अर लेखक कोनी तद उण रा जाणकार मनोज जी रै जाणकारां री तुलना मांय साव कमती। घर-गिरस्ती रो गाडो हरेक नै आपरी जूण मांय खांचणो पड़ै। किसमत रै लेख साथै करम री बात ई मोटी। मनोज कुमार स्वामी आपरी जूण नै भाग भरोसै कोनी छोड़ी बै आं दोनूं पोथ्यां रै पाण बगत सूं जुध करता नित आगै बधणवाळा सिरै मिनख रूप साम्हीं आवै। बां री जूण इण ढाळै सगळै मानखै नै सीख देवै कै जे भाग रै भरोसै बैठालां तो कांई नीं हुवैला। जूण मांय करम करियां सूं ई भाग बदळीज सकै। किणी पण टाबर रो जलमणो उण रै खुद रै हाथ मांय कोनी हुवै। दुनिया रो कोई पण टाबर जिण किणी चाकी मतलब पेट सूं बारै आवै उण मा नै नमन कै उण सूं जूण री बेल बधी। सिरजण ई मोटी बात मानीजै। अेक मा रो सिरजण टाबर हुवै तो सावचेत मिनखां रो सिरजण इण दुनिया नै नेम कायदा सूं आगै बधावणो। पत्रकारां अर लेखकां-कवियां री जिम्मेदारी दूजा करता कीं बेसी।
बगत री ऊंखळी मांय धमीड़ खाया पछै कोई साबत बचैला का नीं बचैला ओ खेल बगत अर किसमत रो। मिनख री मोटी हेमाणी उण रा दोय हाथ हुया करै जिण रै ताण बो कदैई निरभागी कोनी कैयो जाय सकै। जे राम नैं माना तो उण रै घरै किणी खातर कोई भेदभाव का कमती-बेसी री बात कुण स्वीकारैला। देवणियो दियो जिको आगलै-लारलै जलमां रै करमां रो फल मानीजै अर आगे ई आ बात चालैला। जूण मांय अलेखू बातां रो निवेड़ो इण जूण मांय नीं हुय सकै। हरेक जूण तो बस खेचळ अर खेचळ ई हुया करै सो ‘करड़कूं’ करता सिरैनांव ‘खेचळ अर खेचळ’ घणो अरथावू लखावै।
हिंदी मांय ‘बाणभट्ट की आत्मकथा’ अर ‘शेखर एक जीवनी’ घणी चावी पोथ्यां दोनूं ई उपन्यास विधा री टाळ्वी पोथ्यां मानीजै। बगत कैवां का किसमत री त्रासदी लेखक मनोज कुमार स्वामी साथै आ रैयी कै बै जिण परिवार सूं आवै उण मांय बां री पढ़ाई-लिखाई पूरी अर सावळ कोनी हुई। बां रै जोस अर ऊरमा री दाद देवणी पड़ैला कै बां पाखती जोरदार भास अर खुद री बात बतावण री जोरदार अटकळ सिरै जरूर पण आत्मकथात्मक उपन्यास रो आंटो अठै कोनी मिलै। छतापण ओ कैवणो पड़ैला कै अै दोनूं पोथ्यां राजस्थानी आत्मकथा रै विगसाव अर विकास पेटै घणै गीरबैजोग काम गिणीजैला।
--------
0 टिप्पणियाँ:
Post a Comment