Saturday, March 28, 2020

परभात रै बगत परभात क्यूं नीं हुयो / नीरज दइया

    संतोष चौधरी रो पैलो उपन्यास ‘रात पछै परभात’ घणी उमीद दरसावै। रात पछै परभात हुवती ई आई है, इण मांय नूंवी बात कांई? उपन्यासकार लुगाई जूण री अबखयां नै बखाणै कै ‘अबखयां’ सबद ई छोटो लागण लागै। रात अर परभात बियां तो दोनूं प्रतीक जाण्या-पिछाण्या अर कथा ई जाणी-पिछाणी। लुगाई जूण री अबखयां माथै केई रचनावां आगूंच आयोड़ी अर फेर ई आवैला। हरेक कथा आपारै बगत नैं अंवेरै। उपन्यास नैं रात अर परभात प्रतीक नैं परोटै पण आं दोनूं प्रतीकां बिचाळै जूझती लुगाई-जूण रै बखाण मांय नुबी भासा, रचाव अर बुणगट जीव जमावै जैड़ो। अठै असरदार बात आ कै लेखिका रात मांय जाणै रात रै रंगां नैं कीं बेसी सजावै। नायिका रै दुखां नै दरसावतां संतोष चौधरी आ सोचण नै मजबूर कर देवै कै लुगाई री जूण मांय रिस्ता नै निभावण खातर इत्तो धीरज कांई ठीक कैयो जावैला। असल में ओ उपन्यास एक रात पछै परभात रो संतरो दीठाव आपरी बुणगट रै मारफत राखै। सवाल अठै ओ पण करियो जाय सकै कै नायिका रै भाग मांय लेखिका उण री आखी जूण पछै सेवट क्यूं लिख्यो। जूण मांय जद खेलण खावण रा दिन हा का कैवां कै परभात रै बगत परभात क्यूं नीं हुयो? इण रो एक पडूत्तर ओ पण दियो जाय सकै कै लेखिका इण उपन्यास रै मारफत लुगायां नै आपरै परभात नै परभात रै बगत संवारण रो संदेस देवै, बा अठै ओ कैवणो चावै कै कृष्णा दांई जूण जीवणी ठीक कोनी। उपन्यास री अठै सफलता आ कैयी जावैला कै बा आपरो संदेस खुद नीं कैय’र खुद बांचणियां रै हियै आ बात ढूकती करै।
    रात फगत रात हुवै, काळी नागण रात रा किसा रंग-रूप हुवै। लेखिका जूण रै बिखै नै सबदां मांय ढाळती एक ऐड़ी रात रचै जिण मांय केई-केई रातां रळियोड़ी है। काळो रंग तो सगळै रंगा रो अंत मानीजै, सगळै रंगां नै जाणै काळो रंग गिटक जावै। काळो रंग तो सदीव सगळै रंगां माथै भारी पड़ै, बो रंग हुवता थका ई रंगां माथै पड़दो न्हाख दिया करै। काळै रंग मांय सगळा रंग ढकीज जावै, अठै काळै रंग नै राजस्थानी लुगायां रै बां संस्कारां नै आपां ओळख सकां जिण रै पाण बै मूढ़ै हरफ नीं काढ़ै। उपन्यास री नायिका रो नांव कृष्णा राखण रै लारै लेखिक रो स्यात ओ पण कारण हुय सकै कै उण री जूण मांय अणथाग अंधारै सूं भरियोड़ी रातां की बेसी लिखीजगी। लोक मानै कै बेमाता लेख लिख्या करै पण इण उपन्यास नैं तो लेखिका संतोष चौदरी रचियो है। आ लेखिका री चतराई हुय सकै कै बै नाटक विधा दांई घटनावां नै कीं बेसी प्रभावित करण खातर काळै रंग नै बेसी काळो दरसावै। असल में कृष्णा री जूण रै बेसी अंधारै नैं नाटकीयता मान सकां जिण सूं बांचणिया प्रभावित हुवै। राजस्थानी समाज मांय लुगाई री अबखयां-अंवळायां उण रै मरजादावां सूं कीं बेसी बंध्योड़ो रैवण रै कारण हुय सकै। इक्कीसवीं सदी तांई पूग्यां पछै ई अठै बंध्यग्या सो बंध्यग्या री मानसिकता हावी रैवै। आधुनिकता अर नवै जुगबोध पछै ई लुगाई अजेस आपरी आजादी तांई पूग नीं सकी। फेर आजादी हुवै कांई? कांई आपां रै आज रै जिण नै इक्कीसवीं सदी कैवतां आपां मोदीजा कांई आपां लुगाई जूण नै आजादी देय सक्या हां। उण नै मिनख रै बरोबरो रो दरजो ओ समाज हाल तांई कोनी देय सक्यो। झूठी अर कागजी बातां सूं साच कोनी लुको सकां। राजस्थानी समाज मांय लुगायां आपरी जूण मांय अंधारो ई अंधारो भोग्यो है। उण री जूण मांय दिन अर रात खुद उण रा हुवै ई कोनी। इण खातर अठै ओ कैवणो खरी बात मानीजैला कै उण री काळी रातां रो परभात अजेस बाकी अर उणी परभात री मांग ओ उपन्यास करै।
    उपन्यासकार संतोष चौधरी आपरै उपन्यास ‘रात पछै परभात’ मांय नायिका कृष्णा री आखी जूण-जातरा नै फ्लैस बैक मांय बरतता थका एक रात मांय जिका जिका दरसाव किणी फिल्म रै दरसावां दांई दरसावै बै प्रभावित करै। उपन्यास जूण री केई-केई मरम री बातां साम्हीं राखै। उपन्यास मांय संस्कारवान नायिका नै बगत री लाय मांय धुकती दरसाणो असल मांय संस्कारा अर सामाजिक सोच नै एक दीठ देवै। आ दीठ कठैई आरोपित कोनी करै। आ इण उपन्यास री सफलता मानीजैला कै बांचणियां नैं बांचता बांचता जाणै एक लांपो-सो लागण लाग जावै। ओ भासा-बुणगट सूं किणी लाय मांय सिकणो कैयो जाय सकै। लेखिका आपरै बांचणियां नै काळी रात अर काळै रंग मांय इसा डूबावै कै उणा रो आं रंगां सूं आम्हीं-साम्हीं हुयां काळजो कळपण लागै। गौर करण री बात आ भळै कै अठै ठौड़-ठौड़ लखावै कै ऐ रंग तो आपां रै देख्या-समझ्या हा पण चिंता आ हुवै कै अजेस आं नै इण ढंग-ढाळै देख्या-परख्या क्यूं कोनी। आपां उडीकण लागां कै नायिका विद्रोह करैला पण बा ठीमर बणी धीजो राखै। अर इणी बात सूं असल मांय ओ उपन्यास लुगाई-जूण नै देखण-समझण-परोटण री नवी दीठ दुनिया नैं देवै। ओ संसार मिनख अर लुगाई दोनां रै बरोबर रळियां चाल्या करै। बगत रै साथै आगै बधण अर नवै समाज री थरपणा खातर जद हाल ई जूनी दीठ अर दरसावां मांय घणो फरक कोनी आयो है तो कद आसी?
    उपन्यास मांय लेखिका ठेठ तांई नायिका रै पति रो नांव लेखिका सुरेश नीं लिख’र सुरेशजी लिख्यो है, जिण नैं आपां राजस्थानी भासा अर समाज रा संस्कार कैय सकां। कठैई-कठैई तो ओ ठीक है पण केई जगा ओ  जीकारै रो संस्कार अणखावणो लगै। इण रो कारण खुद सुरेशजी री हद दरजै री नीचतावां नै मान सकां। बो नवै समाज अर पढ़-लिख’र ई अणपढ़ां जैड़ो बरताव करै। कैवण नै तो अफसर है पण आपरै घरू कामां सूं बो ठेठ गंवार जट्टू कैयो जाय सकै। उण नै बस खुद री ई खुद री ठेठ तांई चिंता है। बो लुगाई-टाबरां थकां बारै भटकण मांय पाछ कोनी राखै। लगण लागै कै सुरेश मिनख नीं हुय’र कोई जिनवर का राखस जूण मांय जीवै। सुरेशजी पूरै उपन्यास रा नायक (क्यूं कै बै नायिका रा पति है) हुवता थका ई ठेठ तांई खलनायक रूप मांय साम्हीं आवै, जद कै नायिका अर अजयसिंह बिचाळै हेत-प्रीत, रिस्तै सूं बै सहनायक की भूमिका में हुवता थका नायक रूप ऊभा हुया है। उपन्यास आपरी जटिलतावां सूक्ष्मतावां रै कारण प्रभावित करै। एक ई बात नै इत्तै विगतवार खोल’र दरसावणो एक प्रयोग मानीज सकै। कैयो जाय सकै कै इण उपन्यास मांय केई घटनावां प्रसंग जे नीं हुवता तो ई मूळ बात मांय कोई फरक कोनी आवतो। अठै लेखिका रो पैलो उपन्यास हुयां केई बातां मांय छूट देय देवां तो खरोखरी ओ उपन्यास राजस्थानी महिला उपन्यास री साख बधावै जैड़ो मानीजैला।
    उपन्यास मांय सहज अर सरल भासा मांय ठेठ सूं लेय सेवट तांई नायिका री जूण रो लेखो-जोखो देख्या बेबी हालदार रो ‘आलो आंधारि’ चेतै आवै। उपन्यास री नायिका रो लेखिका बण’र पुरस्कार पावणो अर खुद री जूण मांय संतोष कै टाबरां नै मजल तांई पूगा दिया मोटी बात बेबी सूं जुड़ै। बेबी नै तातुस मिलै अर कृष्णा नै अजयसिंह। दुखां अर ठौड़-ठौड़ तकलीफां रो भंडार आखी दुनियां जाणै एक जैड़ो ई भोगै बो भलाई राजस्थान हुवै का बंगाल या कोई दूजी ठौड़। आ लुगाई जूण री त्रासदी कैयी जावैला कै राजस्थान बियां ई इण मामलै मांय लारै रैयो अर अजेस ई आपां लुगाई नै नवी हवा सूं लुकोय’र राखण मांय समझादारी गिणा। आ असलियत उपन्यास री नयिका कृष्णा जैड़ी केई केई कृष्णा पेटै हुय सकै। उपन्यास बांचणियां नै लगातार लखावै कै नायिका मून क्यूं झाल्योड़ी बैठी है। नायिका रो अबोलोपण ठेठ तांई अखरणो अर सेवट मांय बां रो बरसां न्यारा-न्यारा रैया अर तलाक रो मुकदमो चाल्या पछै ई कृष्णा रो दयिरादिल दरसावणो कै बा आपरै पति रै कार एक्सीडेंट पछै उण री सेवा अर देखरेख करण मांय जूण रो मारग पावै। इणी खातर म्हैं लिख्यो कै परभात रै बगत परभात क्यूं नीं हुयो। अबै सवाल ओ पण इण परभात नै कांई परभात मान लेवां? देस-दुनिया री जिकी कोई कृष्णा जठै कठैई हुवै का हुवैला कांई उण नै ओ मारग रुचैला? कित्ता कित्ता सुपना पछै बाप आपरो काळजो काढ़’र छोरी नै दूजै घर सूंप’र धीजो धारै। छोरी ई कित्ता-कित्ता सुपना लियां एक घर सूं दूजै घर टुरै। जे दूजै घर आपां रै घर री छोरी नैं रात पछै ओ परभात मिलै तो मून राखण मांय सार कोनी। छोरी जे कीं नीं कैवै तो उण रै माइत अर बडेरा री जिम्मेदारी अर जबाबदेही बेसी मानीजैला। आ सगळा सूं बेसी कांई आपां रो समाज आं सगळी विगत कृष्णा री जाण्यां पछै ई घर घर बैठी कृष्णावां खातर कीं नीं करैला।   
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रात पछै परभात (उपन्यास) संतोष चौधरी
संस्करण 2019 ; पानां 176 ; मोल 250/-
प्रकासक- राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, श्रीडूंगरगढ़

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