कहाणी री काया मांय उपन्यास / नीरज दइया
उपन्यास री सरुपोत री ओळ्यां देखां- ‘म्हैं नौरंगजी अर नानकंवर री समाध रै बारै में कतई अणजाण हो। फेर भी म्हैं होटल मैनेजर मि. दत्ता रै साम्हीं हां-हूं करतौ रयौ। आसामी रै आगी आपणौ पोत कियाअं देवतौ? बल्कै म्हैं म्हारी अणजाणता नैं ल्हुकोवतौ असल मुद्दै नैं समझण री चेस्टा करै हौ। असल मुद्दौ म्हारै तांई रोकड़ा कमाबा री गुंजास टटोळणौ हौ।... दखां तौ, इण असामी सूं कितरी’क आमद होय सकै।’ (पेज- 7) लेखक रो अर पूरी कथा रै सूत्रधार रो ओ आसामी रै ‘आगी’ (आगै/ साम्हीं) एक कबूलनामो है। बो नौरंगजी अर नानकंवर रै बारै में ‘साव’ अणजाण नीं, ‘बल्कै’ ‘कतई’ अणजाण बतायो गयो है। बो आपरी ‘अणजाणता’ नै ‘ल्हुकोवतौ’ (लुकोवतो) गुंजास (गुंजाइस) नै ‘टटोळ’ रैयो हो कै ‘दखां’ (देखां)। भासा अर इण ढाळै रै सबद-प्रयोग री इण बात भेळै अठै ओ बतावणो ई जरूरी लखावै कै कथा रो सूत्रधार ‘चिनेक’ परिचै आपरो ई लिख्यो है। जिण मुजब सूत्रधार गणपति सहाय पाठक बनाम जी.एस. पाठक अर पाठक जी मोटा मिनख है। बै राजस्थान री लोक-संस्क्रति माथै काम करै अर कदी किणी अखबार में लेख ई लिखै, कदै जलसा करावावै तो कदी (कदैई) किणी घूमंतू लोगां नैं लेय’र लोक रा दरसण ई करवा लावै। ‘मतलब कोई ठायौ-ठावकौ कांम या नौकरी कोनी। बस आ समझौ कै म्हारौ रुजगार एक आकास-बिरती जैड़ौ है, जिणनैं आजकाल री नवी भासा में फ्रीलांसिंग कैवै- लोक-संस्क्रति री फ्रीलांसिंग!’ (पेज-9)
लोक-संस्क्रति रा फ्रीलांसिंग साब नै होटल सूं बुलावो आवै कै बै मिस्टर जैक (जैकलीन) अर कुमारी ऐनी (ऐनी मोरिया) जिका लिव इन रिलेशन मांय है बां री शेखावाटी अंचळ री ‘दिव्य प्रेमकथा’ (डिवाइन लव स्टोरी) शोध मांय सागो देवै। ओ ‘सागो’ पाठक जी पच्चीस हजार मांय पक्को करै। इण सूं पैली पाठक जी नै उण अंग्रेज छोरी नै देख’र पंकज उधास रो गाणो याद आवै- ‘चांदी जैसा रूप है तेरा सोने जैसे बाल’ स्यात ओ ई कारण है कै सूत्रधार आगै जठै कठै मौको मिलै इण अंग्रेज छोरी रै रूप माथै कुण कियां लट्टू हुवै बतावणो नीं भूलै। प्रेमकथावां तो राजस्थान मांय घणी मिलै पण गूगल माथै सर्च कर’र आयो ओ जोड़ो नौरंगजी अर नानकंवर री समाध देखणी अर पूरी विगतवार जाणकारी लेवणी चावै। ‘दिव्य’ (डिवाइन) रो अरथाव करां तो आपां प्रेमकथा रै आगै विसेसण लगा सका- अनोखी, उत्तम, जगमगवती, पवित्र, सांतरी, चोखी, अलौकिक, चमत्कारी आद आद। पूरी कथा मांय प्रेम नीं हुय राजस्थानी संस्कृति मुजब कौल सूं बंध्योड़ा दोय आदमी लुगाई है जिका किणी खास बगत एक’र कंवळा जरूर पड़ै पण बै ठेठ तांई भळै संभळियोड़ा रैवै। म्हारी इण बात भेळै डॉ. कृष्णा जाखड़ री आ ओळ्यां री साख ई जरूरी लखावै- ‘ओ उपन्यास जिकी कथा कैवै लेखक उण नै एक प्रेमकथा बतावै, पण एक पाठक री दीठ सूं आ प्रेमकथा तो नीं लागै। ब्रिटिशकालीन भारत रै एक छोटै-सै गांव ‘सैदानगर’ री कहाणी, जिकी में दास भाव सूं त्याग और समपरण री लूंठी मिसाल मांय नौरंगजी रै जीवण री विडंबना व्यक्त हुई है।’ (जागती जोत : अप्रैल-मई, 2018)
लेखक जिण दिव्य प्रेम नै अलौकिक रूप मांय दरसावण री जुगत करै बा किणी लोककथा दांई घणी रूपाळी लखावै। इण उपन्यास रो रूपास ओ पण कैयो जाय सकै कै नूंवी कहाणी री काया मांय जूनी लोककथा परोटै। प्रेम मांय मान्यो कै मिलणो जरूरी कोनी पण इण नै प्रेम इण खातर ई नीं कैय सकां कै जद लोक मांय ठाकर सूगली बातां करतो उपन्यास रै दीठाव मांय राखीजै उण टैम नौरंगजी जिण ढाळै चौफाळिया हुवै उण सूं ठाह पड़ै कै उण नै ओ प्रेम-प्रसंग किणी भूंडी गाळ रै रूप मांय लाग रैयो है। उपन्यास सूं पैली लेखक लिख्यो है- ‘इण उपन्यास री कथा किणी भी इतिहासू घटना माथै आधारित नीं है। जदि कोई पात्र या घटना किणी सूं मेळ खावै तौ औ फगत संजोग मान्यौ जावै। आ कथा, लेखक रौ फगत काल्पनिक सिरजण है।’ काल्पनिक मतलब गोड़ै घड़ी कथा का कोरी मोरी गप। बियां गप तो छोटी हुवै अर मोटो हुवै- गपोड़, तो ओ पण कैयो जाय सकै कै लेखक श्याम जांगिड़ गोड़ै घड़ी कथा नै किणी जथारथ मांय गपोड़ रचता थका घणी खिमता राखै। अठै शेखावाटी अंचल री जूनी सांस्कृतिक छिब भेळै केई-केई बातां ठावै ढंग-ढाळै अर रूप-रंग मांय साम्हीं आवै। ओ लेखक रो हुनर कैयो जावैला कै बै उपन्यास विधा री बुणगट नै पूरो बदळ’र नूंवी दीठ सूं आधुनिकता अर परंपरावां रो मेळ करावै। आज गूगल बाबा री क्रांति आयगी अर पैली राजावां रै राज मांय जूण जातरा किण ढाळै री हुया करती ही वा इण उपन्यास रै केई प्रसंगां सूं साम्हीं आवै। असल मांय ओ उपन्यास आपां नै नूंवै अर जूनै बगत रै बदळावां नै परखण पेटै दीठ देवै।
कथा अर प्रेमकथा बिचाळै गपचोळो हुवण सूं ई लेखक इण रो नांव ‘नौरंगजी री अमर कहाणी’ राखै। प्रेम री बात साथै हेत री बात आ कै लेखक रो राजस्थानी भासा अर संस्क्रति सूं अणथाग हेत है। बो अंग्रेज जोड़ै सूं हुयै संवाद नै आपां नै आपां री भासा मांय अर बांनै बां री भासा मांय बतावै-समझावै। ‘अतरी अंग्रेजी तो म्हैं भी जाणूं हूं।’ (पेज-9) जठै सूं चालू हुवै एक जातरा जिकी इण उपन्यास री आगूंच कहाणी का कैवां भूमिका है। सूत्रधार आपरै भायलै री मदद सूं इण अंग्रेज जोड़ै नै समाध तांई लेय जावै दरसण करावै अर लोक मानतावां सूं अठै री संस्क्रति रीत-रिवाज मांड’र विगतवार बतावै। मूळ कथा सूं पैली इण कथा मांय नौरंगजी री अमर कहाणी री शोध है अर सेवट एक पोथी मिलै जिकी डिंगळ रा जाणीकार प्रो. नवलसिंह चारण बीस हजार रिपियां मांय अंग्रेजी उल्थो उण कथा रो कर’र देवै। सूत्रधार उण नै ई-मेल सूं उण अंग्रेजणी नै भेजै। आ भूमिका है मूळ कथा सूं पैली।
इण बात मांय दर ई संका नीं कै सूत्रधार ‘नौरंगजी री अमर कहाणी’ रचण रो एक मोटो काम करै। उण री माना तो- ‘म्हैं अंग्रेजी सूं राजस्थानी में इण कथा नैं अंगेजी हूं। कांई करूं, डिंगळ नीं जाणण सूं अंग्रेजी रो सायरौ लेवणौ पड़ियौ। इण काव्य-कथा में केई गैर जरूरी चीजां भी ही, जिको म्हैं छोड दीनी। जियां सरुआत में सुरसत-गणेश सिमरण। सौदानगर रौ इतिहास-बंसबेल। बिचाळै केई जग्यां देव-दानव जुद्ध रा मोकळा पद। लागै कवि रौ उदेस देव विरती री दानव विरती माथै विजै दरसावणौ रैयोड़ौ है।’ (पेज-64) डॉ. कृष्णा जाखड़ मुजब- ‘उपन्यास नैं रोचक बणावण वास्तै उपन्यासकार जिकी भूमिका बांधी है वा कीं बेसी लांबी हुय जावै अर बठै पाठक रौ धीजो टूटै।’ (जागती जोत : अप्रैल-मई, 2018)
डॉ. चेतन स्वामी मुजब- ‘श्यामजी रै इण नैनै उपन्यास नै आपां महाकाव्यात्मक उपन्यास जैड़ी ओपमा तो नीं बगस सकां, पण ओ भरोसो जरूर दिरवा सकां कै इण मांय एकदम टटकैपण सागै नूंवो कथानक आपां रै मुंडागै राख्यो है, जिको राजस्थानी पाठकां नै ऊब सूं परियां लेजाय’र रोचकता री रळियावणी गळियां री सैल करावै।’ (फ्लैप सूं) रोचकता री रळियावणी गळियां री सैल बिचाळै लेखक आपरी एक भासा बणावण रा जतन ई करै पण इण उपन्यास रो भासा-रूप मूळ मांय हिंदी सूं करियोड़ो उल्थै जैड़ो लखावै। अथ स्री मूळ कथा रै पैलै अध्याय रो नांव ‘खड़जंत्र’ राख्यो है। लेखक री जूनी आदत रैयी है ‘यदि’ नै ‘जदि’ उल्थो कर’र बरतणो। इणी ढाळै ‘स्कूल’ नै ‘इस्कूल’ लिखां तो ‘अंडा’ नै ‘इंडा’ क्यूं नीं लिखा जैड़ा केई सवाल है। लेखक नै आं सगळा सवालां अर बातां पछै ई इण औपन्यासिक प्रयोग है सारू बधाई कै वां अबखै टैम जिण हूंस सूं ओ काम करियो बो सरावजोग है।
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नौरंगजी री अमर कहाणी (उपन्यास) श्याम जांगिड़
संस्करण- 2018 ; पाना- 120 ; मोल- 250/-
प्रकाशक- बोधि प्रकाशन, जयपुर
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