उपन्यास री सींव अर लोककथावां री पीड़ / नीरज दइया
जावर फौज मांय हुवै अर बो पाकिस्तान पूग जावै। बठै सुलताना सूं ब्यांव हुवै। बेटो गुल हुवै। पण बरसां पछै उण रो चेतो बावड़ै। उण नै याद आवै कै बो हिंदुस्तानी फौज रो सिपाही हो। उण रै तो बेगम फरीदा अर बेटै मंसूर ई है। आ पूरी कथा होयां पछै सुलताना अर गुल साथै बो पाकिस्तान री सींव लांघ’र हिंदुस्तान री सींव मांय आवै। जठै उण नै हिंदुस्तानी फौजी पकड़ लेवै। इकोहत्तर री लड़ाई सूं गायब राजपूत रेजीमेंट रै जवार अली री सगळी कथा लेखक फ्लैस-बैक मांय खोलै। कथनायक बैरक मांय बंदी हुय जावै अर लेखक नै उणरो विगत कैवण रो मौको मिल जावै। उपन्यास इण ढाळै चालू हुवै- ‘ज्यूं-ज्यूं हिंदुस्तान री सींव नेड़ै आय’री ही गुल घणै जोर सूं रोवण लागग्यौ हौ। पाकिस्तान अर हिंदुस्तान री सींव (सरहद) रै फौजिया रा कान खड़िया होवण लागग्या हा। पण गुल बां बातां सूं अणजाण, बस एक ई बात बोलतौ जायरियौ हौ- अब्बू, थे म्हानै छोड़’र मत जाऔ।’ (पेज- 9)
इण उपन्यास माथै विगतवार बात करण सूं पैली ओ जाण लेवां कै लेखक रो दूजो उपन्यास है- ‘सींवां री पीड़’। इण सूं पैली आपरो उपन्यास ‘फूली देवी’ छप्योड़ो। उणनै लेखक एक ‘परेम कथा’ कैवतां साम्हीं राख्यो। बाळपणै मांय लेखक एक कथा आपरी दादीसा सूं सुण्यां करता हा- ‘फूली देवी’ री। दादीसा आ कथा आपरै हाळी तुळसा सूं सुणी ही। लेखक नै इण कथा मांय ठाडो रस हो तद ई बो उमर परवाण आपरी घरआळी सागै हाळी तुळसा रै गांव जावै अर कथा री विगतवार जाणकारी लेवै। उपन्यास मांय कथा बातपोसी रूप मांय देख सकां। राजस्थानी मांय केई-केई लोककथावां मिलै अर बा लांबी कथावां नै उपन्यास अर लोक-उपन्यास कैवण री भूल ई घणी बार करीजी।
लोक मांय केई केई कहाणियां मिलै। ‘सींवां री पीड़’ मांय कोई लोककथा तो नीं है पण लोक मांय चावो किस्सो का कैवां लेखक री सुणियोड़ी किणी कथा नै उपन्यास रूप राखण री आफळ है। इण खेचळ नै आपां उपन्यास री सींव अर लोककथा री पीड़ मान सकां। बुणगट री दीठ सूं देखा तो लेखक आधुनिक कहाणी रै असूलां नै अजमावै। लेखक फौज मांय अफसर रैया अर देस खातर लूंठो कारज संभाळियो उण सारू तो घणी-घणी सरावणा। लेखक रै रूप मांय रतन जांगिड़ उण फौज जावर रो काळजो खोल’र राखण रा जतन ई करै। किणी फौजी रै लखाव नै सबदां मांय ढाळण पेटै राजस्थानी उपन्यास सूं ई दाखलो लेवां तो बरस 2000 मांय छप्यो- ‘एक शहीद फौजी’ देख सकां जिण मांग गोरधन सिंह शेखावत कारगिल जुध रै अमरू नै सहीद करै, मतलब उण सहीद रो सहीद हुवणो उपन्यास मांय इण ढाळै रच देवै कै बो सहीद हो जावै।
उपन्यासकार किणी साच नै जद उपन्यास मांय कैवै तद उण साच नै खरोखरी सबदां रै पाण बांचणियां रै साम्हीं ऊभो करै। रेंजर सींव रै दोनूं पासी हुवै। जावर दोय देसां री सींव लांघ चुक्यो हो पण उपन्यास उणी रात मांय खतम हुय जावै। जावर नै पाछो उण री सागण दुनिया मांय लेखक लाय’र ऊभो कोनी करै जियां कै ‘हूं गौरी किण पीव री’ उपन्यास मांय यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ करै। आधुनिक उपन्यास री असल पीड़ तो उण मरद नै आपरी पैली लुगाई साम्हीं पूग्यां ई परवाण चढ़ती। ‘सींवां री पीड़’ मांय ‘सींव’ सबद नै लेखक आपरै उपन्यास री सरुआती ओळ्यां मांय ई सींव मांय बांध देवै। ‘सींव’ रो मायनो ‘सरहद’ मांड’र इण उपन्यास नै देस री सींव रै असवाड़ै-पसवाड़ै खूंटी लगा’र बांध देवै। जद कै असली सींवां री पीड़ तो बेगम फरीदा अर बेगम सुलताना रै हिया तांई पूगणी चाइजै। लुगाई रै हियै री सींवां माथै कोई देस रैंजर ऊभा कोनी कर सकै। हियो तो मिनख रो ई अठै साम्हीं आवै कै बो पाकिस्तान रै एक परिवार नै तबाह कर’र आय जावै।
लारलै बरसां एक फिल्म बणी ‘गजनी’ (2008) जिण मांय शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस री कहाणी ही। ‘सींवां री पीड़’ (2009) मांय मेमोरी लॉस ई कथा रो मरम है। ‘हूणी मिनख नै आपरै गेलै चलावै। आ तौ ऊपराआळै री लीला है अर ईं लीला सागै हूणी भी है। कांई हुवणौ चाइजै अर कांई हुयज्या। केई बूडा-बडेरा कैवै है’क, जैड़ी रात लिखी है बेमाता, बीं जगां बात अवस ई पैदा कर देवै। कठै रौ जुध अर कठै रौ जावर। जे जुध खतम हुयग्यौ अर जावर बच गयौ तौ घरां आवणूं है, पण अठै हूणी आपरी बळ बींनै चलायौ। टैंक रौ धमाकौ हुयौ तौ जावर फेर क्यूं बेहोस हुयौ? बठै रा बाकी बचेड़ै जवानां रौ कांई हुयौ? कै तौ बै बेमौत मारिया गया अर बच्यौ एकलौ जावर अर बौ भी चेतै मांय नीं हौ। धमाकै सूं अवस ई बीं रै दिमाग मांय असर हुयौ। ऊपरआळै री लीला चेतै तौ आई कै बौ बचग्यौ। जे बौ बचग्यौ तौ किण हालत मांय। आज पांचवूं दिन है अर बौ मोरचै सूं निकळ’र जाणै किन्नै बड़ग्यौ है। मोरचै माथै एक दिन, दोय दिन कै तीन दिन पड़ियौ रैयौ व्हैला, पण अबै बौ चालतौ जाय रैयौ है। बींनै तौ अंधारौ ई अंधारौ दिखै। नीं तौ बींनै ठंड लागै अर नीं ठंडी धूर रौ पतौ। सूरज री रोसणी मांय तौ बींनै नींद आय जावै। बौ कीं नाकै जाय रैयौ है, बींनै ठा नीं। कुदरत भी बीं रै सागै। नीं तौ पाकिस्तान रा फौजी दिख्या अर नीं हिन्दुसतान रा। नाक री सीध मांय चाल्यौ जायरियौ हौ।’ (पेज- 48) आ कैवणगत उपन्यास री सींव सूं बारै लोककथावां री पीड़ जियां भासा मांय पसरती जावै।
भासा रा दोय-तीन दाखला भळै अठै देख लेवणा चाइजै क्यूं कै हिंदुस्तान-पाकिस्तान मांय भासा पेटै लेखक रो मानणो है- ‘माणसां री बोली राजस्थानी सूं कीं मिलती-जुलती, माड़ौ सो फरक भी।’ अर ओ माड़ौ सो फरक रो माड़ौ सबद इण ढाळै ई बरतीजै- ‘अफसर एक ई सांस मांय आप रौ आदेस सुणाय दियौ। फेर बौ माड़ौ सो संखारियौ अर थूक गिट’र जावर कानी देखण लाग्यौ। माड़ी-सी देर बीं कानी देख’र बोलण लाग्यौ- देख भाया, जे थूं सही माणस निसरियौ तौ थनै दिल्ली भिजवाय देवूंला अर पछै थूं सिरकार रै हाथां मांय। पण जे थूं कीं गळत मिनख निसरियौ तौ म्हैं थारा हाड तौड़’र पाछै थनै पुळस नै सूंप देवूंला। फेर थारी कांई गति व्हैला... थूं जाण लेयजै।’ (पेज- 17)
‘पैली तो अब्बू रौ औळमौ आवतौ पण सनै-सनै बौ भी बंद हुयग्यौ।’ (पेज-28), ‘फरीदा अर बेटै नै देख’र बीं रै सरीर मांय खून दुगणी गति सूं दौड़ण लाग्यौ।’ (पेज- 37) ‘बियां तौ मां-बेटी री बोलचाल राजस्थानी सूं मिलती-जुलती ई बोली ही, पण फेर भी बेलाखातून नै उरदू रौ माड़ौ सौ ग्यान हौ। सुलताना निरी अणपढ ही, पण मां री तरिया ग्यांन बींनै भी हौ।’ (पेज-56) पाणी अर बोली रै फरक री बात लेखक साफ कर देवै। क्यूं कै ‘परेमियां’ (प्रेमियां) री इण कथा रा ‘गाबा’ (गाभा) सुणियोड़ी लोककथा दांई दीसै।
‘सींवां री पीड़’ री कथा माथै केई सवाल करिया जाय सकै पण ‘सुलतान रौ निकाह सैयद सूं होवण पछै नईम रै पेट पर सांस लोटण लागग्या’ (पेज- 91) तो माड़ी सी ‘मसकत’ (पेज- 99) करणी जरूरी नीं लखावै क्यूं कै ‘सैयद खड़ियौ हुयग्यौ अर फेर सुलताना बीं सूं लिपट’र रोवण लागगी।’(पेज- 103) उपन्यास मांय भासा रो पग केई जागा ‘फिसळग्यौ’ अर लेखक राजस्थानी सूं हिंदी भासा मांय ‘नीचै गिर पड़ियौ है।’(पेज-116) लेखक मेडिकल साइंस रै सागै कुदरत रौ खेल ‘सींवां री पीड़’ मांय दिखावै जिण रो नाट्यरूपांतरण ई हुयो। राजस्थान भर मांय केई जागावां मंचित क्यूं कै ‘सागै ई बींनै औ भी ठा हौ’क पाकिस्तान रै रेजरां रौ कोई भरोसौ नीं है, पण हिन्दुसतान रै फौजियां मांय तौ हिवड़ौ है।’ री तरज माथै ‘बींनै औ भी ठा हौ’क हिंदी रै पाठकां रौ कोई भरोसौ नीं है, पण राजस्थानी आळा मांय तौ हिवड़ौ है।’ भंवरसिंह सामौर साब पोथी रै फ्लैप मांय कैवै- ‘समकालीन भारतीय भासावां रै किणी भी उपन्यास सूं औ उपन्यास उगणीस कोनी इक्कीस ही है।’ कांई ठाह कांई सोच’र आ ओळी सामौर साब लिखी हुवैला।
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