Saturday, April 11, 2020

उपन्यास री सींव अर लोककथावां री पीड़ / नीरज दइया

लेखक रतन जांगिड़ सेना मांय बरसां अफसर रैया। भारत-पाकिस्तान री सींवां सूं जुड़ी एक कथा बै आपरै दूजै उपन्यास ‘सींवां री पीड़’ मांय कैवै। कथानायक जावर री इण कथा नैं बांचता दो चावा उपन्यास चेतै आवै। पैलो- श्रीलाल नथमल जोशी रो उपन्यास ‘एक बीनणी दो बीन’ चेतै आवै, जिको टेनीसन री कविता-पोथी ‘ईनक आरडन’ माथै आधारित हो। दूजो- यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ रो ‘हूं गोरी किण पीव री’। ‘सींवां री पीड़’ री कथा आं दोनू सूं उलट है। अठै गोरी दोय अर पीव एक है। मतलब- ‘हूं पीव किण गौरी रो’ अर ‘दोय बीनणी एक बीन’। त्रिकोणय प्रेम अर फौजी माहौल नूंवी बात कोनी पण हरेक रचना मांय नूंवो हुवै नजरियो।
जावर फौज मांय हुवै अर बो पाकिस्तान पूग जावै। बठै सुलताना सूं ब्यांव हुवै। बेटो गुल हुवै। पण बरसां पछै उण रो चेतो बावड़ै। उण नै याद आवै कै बो हिंदुस्तानी फौज रो सिपाही हो। उण रै तो बेगम फरीदा अर बेटै मंसूर ई है। आ पूरी कथा होयां पछै सुलताना अर गुल साथै बो पाकिस्तान री सींव लांघ’र हिंदुस्तान री सींव मांय आवै। जठै उण नै हिंदुस्तानी फौजी पकड़ लेवै। इकोहत्तर री लड़ाई सूं गायब राजपूत रेजीमेंट रै जवार अली री सगळी कथा लेखक फ्लैस-बैक मांय खोलै। कथनायक बैरक मांय बंदी हुय जावै अर लेखक नै उणरो विगत कैवण रो मौको मिल जावै। उपन्यास इण ढाळै चालू हुवै- ‘ज्यूं-ज्यूं हिंदुस्तान री सींव नेड़ै आय’री ही गुल घणै जोर सूं रोवण लागग्यौ हौ। पाकिस्तान अर हिंदुस्तान री सींव (सरहद) रै फौजिया रा कान खड़िया होवण लागग्या हा। पण गुल बां बातां सूं अणजाण, बस एक ई बात बोलतौ जायरियौ हौ- अब्बू, थे म्हानै छोड़’र मत जाऔ।’ (पेज- 9)
इण उपन्यास माथै विगतवार बात करण सूं पैली ओ जाण लेवां कै लेखक रो दूजो उपन्यास है- ‘सींवां री पीड़’। इण सूं पैली आपरो उपन्यास ‘फूली देवी’ छप्योड़ो। उणनै लेखक एक ‘परेम कथा’ कैवतां साम्हीं राख्यो। बाळपणै मांय लेखक एक कथा आपरी दादीसा सूं सुण्यां करता हा- ‘फूली देवी’ री। दादीसा आ कथा आपरै हाळी तुळसा सूं सुणी ही। लेखक नै इण कथा मांय ठाडो रस हो तद ई बो उमर परवाण आपरी घरआळी सागै हाळी तुळसा रै गांव जावै अर कथा री विगतवार जाणकारी लेवै। उपन्यास मांय कथा बातपोसी रूप मांय देख सकां। राजस्थानी मांय केई-केई लोककथावां मिलै अर बा लांबी कथावां नै उपन्यास अर लोक-उपन्यास कैवण री भूल ई घणी बार करीजी।
लोक मांय केई केई कहाणियां मिलै। ‘सींवां री पीड़’ मांय कोई लोककथा तो नीं है पण लोक मांय चावो किस्सो का कैवां लेखक री सुणियोड़ी किणी कथा नै उपन्यास रूप राखण री आफळ है। इण खेचळ नै आपां उपन्यास री सींव अर लोककथा री पीड़ मान सकां। बुणगट री दीठ सूं देखा तो लेखक आधुनिक कहाणी रै असूलां नै अजमावै। लेखक फौज मांय अफसर रैया अर देस खातर लूंठो कारज संभाळियो उण सारू तो घणी-घणी सरावणा। लेखक रै रूप मांय रतन जांगिड़ उण फौज जावर रो काळजो खोल’र राखण रा जतन ई करै। किणी फौजी रै लखाव नै सबदां मांय ढाळण पेटै राजस्थानी उपन्यास सूं ई दाखलो लेवां तो बरस 2000 मांय छप्यो- ‘एक शहीद फौजी’ देख सकां जिण मांग गोरधन सिंह शेखावत कारगिल जुध रै अमरू नै सहीद करै, मतलब उण सहीद रो सहीद हुवणो उपन्यास मांय इण ढाळै रच देवै कै बो सहीद हो जावै।
उपन्यासकार किणी साच नै जद उपन्यास मांय कैवै तद उण साच नै खरोखरी सबदां रै पाण बांचणियां रै साम्हीं ऊभो करै। रेंजर सींव रै दोनूं पासी हुवै। जावर दोय देसां री सींव लांघ चुक्यो हो पण उपन्यास उणी रात मांय खतम हुय जावै। जावर नै पाछो उण री सागण दुनिया मांय लेखक लाय’र ऊभो कोनी करै जियां कै ‘हूं गौरी किण पीव री’ उपन्यास मांय यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ करै। आधुनिक उपन्यास री असल पीड़ तो उण मरद नै आपरी पैली लुगाई साम्हीं पूग्यां ई परवाण चढ़ती। ‘सींवां री पीड़’ मांय ‘सींव’ सबद नै लेखक आपरै उपन्यास री सरुआती ओळ्यां मांय ई सींव मांय बांध देवै। ‘सींव’ रो मायनो ‘सरहद’ मांड’र इण उपन्यास नै देस री सींव रै असवाड़ै-पसवाड़ै खूंटी लगा’र बांध देवै। जद कै असली सींवां री पीड़ तो बेगम फरीदा अर बेगम सुलताना रै हिया तांई पूगणी चाइजै। लुगाई रै हियै री सींवां माथै कोई देस रैंजर ऊभा कोनी कर सकै। हियो तो मिनख रो ई अठै साम्हीं आवै कै बो पाकिस्तान रै एक परिवार नै तबाह कर’र आय जावै।
लारलै बरसां एक फिल्म बणी ‘गजनी’ (2008) जिण मांय शॉर्ट टर्म मेमोरी लॉस री कहाणी ही। ‘सींवां री पीड़’ (2009) मांय मेमोरी लॉस ई कथा रो मरम है। ‘हूणी मिनख नै आपरै गेलै चलावै। आ तौ ऊपराआळै री लीला है अर ईं लीला सागै हूणी भी है। कांई हुवणौ चाइजै अर कांई हुयज्या। केई बूडा-बडेरा कैवै है’क, जैड़ी रात लिखी है बेमाता, बीं जगां बात अवस ई पैदा कर देवै। कठै रौ जुध अर कठै रौ जावर। जे जुध खतम हुयग्यौ अर जावर बच गयौ तौ घरां आवणूं है, पण अठै हूणी आपरी बळ बींनै चलायौ। टैंक रौ धमाकौ हुयौ तौ जावर फेर क्यूं बेहोस हुयौ? बठै रा बाकी बचेड़ै जवानां रौ कांई हुयौ? कै तौ बै बेमौत मारिया गया अर बच्यौ एकलौ जावर अर बौ भी चेतै मांय नीं हौ। धमाकै सूं अवस ई बीं रै दिमाग मांय असर हुयौ। ऊपरआळै री लीला चेतै तौ आई कै बौ बचग्यौ। जे बौ बचग्यौ तौ किण हालत मांय। आज पांचवूं दिन है अर बौ मोरचै सूं निकळ’र जाणै किन्नै बड़ग्यौ है। मोरचै माथै एक दिन, दोय दिन कै तीन दिन पड़ियौ रैयौ व्हैला, पण अबै बौ चालतौ जाय रैयौ है। बींनै तौ अंधारौ ई अंधारौ दिखै। नीं तौ बींनै ठंड लागै अर नीं ठंडी धूर रौ पतौ। सूरज री रोसणी मांय तौ बींनै नींद आय जावै। बौ कीं नाकै जाय रैयौ है, बींनै ठा नीं। कुदरत भी बीं रै सागै। नीं तौ पाकिस्तान रा फौजी दिख्या अर नीं हिन्दुसतान रा। नाक री सीध मांय चाल्यौ जायरियौ हौ।’ (पेज- 48) आ कैवणगत उपन्यास री सींव सूं बारै लोककथावां री पीड़ जियां भासा मांय पसरती जावै।
भासा रा दोय-तीन दाखला भळै अठै देख लेवणा चाइजै क्यूं कै हिंदुस्तान-पाकिस्तान मांय भासा पेटै लेखक रो मानणो है- ‘माणसां री बोली राजस्थानी सूं कीं मिलती-जुलती, माड़ौ सो फरक भी।’ अर ओ माड़ौ सो फरक रो माड़ौ सबद इण ढाळै ई बरतीजै- ‘अफसर एक ई सांस मांय आप रौ आदेस सुणाय दियौ। फेर बौ माड़ौ सो संखारियौ अर थूक गिट’र जावर कानी देखण लाग्यौ। माड़ी-सी देर बीं कानी देख’र बोलण लाग्यौ- देख भाया, जे थूं सही माणस निसरियौ तौ थनै दिल्ली भिजवाय देवूंला अर पछै थूं सिरकार रै हाथां मांय। पण जे थूं कीं गळत मिनख निसरियौ तौ म्हैं थारा हाड तौड़’र पाछै थनै पुळस नै सूंप देवूंला। फेर थारी कांई गति व्हैला... थूं जाण लेयजै।’ (पेज- 17)
‘पैली तो अब्बू रौ औळमौ आवतौ पण सनै-सनै बौ भी बंद हुयग्यौ।’ (पेज-28), ‘फरीदा अर बेटै नै देख’र बीं रै सरीर मांय खून दुगणी गति सूं दौड़ण लाग्यौ।’ (पेज- 37) ‘बियां तौ मां-बेटी री बोलचाल राजस्थानी सूं मिलती-जुलती ई बोली ही, पण फेर भी बेलाखातून नै उरदू रौ माड़ौ सौ ग्यान हौ। सुलताना निरी अणपढ ही, पण मां री तरिया ग्यांन बींनै भी हौ।’ (पेज-56) पाणी अर बोली रै फरक री बात लेखक साफ कर देवै। क्यूं कै ‘परेमियां’ (प्रेमियां) री इण कथा रा ‘गाबा’ (गाभा) सुणियोड़ी लोककथा दांई दीसै।
‘सींवां री पीड़’ री कथा माथै केई सवाल करिया जाय सकै पण ‘सुलतान रौ निकाह सैयद सूं होवण पछै नईम रै पेट पर सांस लोटण लागग्या’ (पेज- 91) तो माड़ी सी ‘मसकत’ (पेज- 99) करणी जरूरी नीं लखावै क्यूं कै ‘सैयद खड़ियौ हुयग्यौ अर फेर सुलताना बीं सूं लिपट’र रोवण लागगी।’(पेज- 103) उपन्यास मांय भासा रो पग केई जागा ‘फिसळग्यौ’ अर लेखक राजस्थानी सूं हिंदी भासा मांय ‘नीचै गिर पड़ियौ है।’(पेज-116) लेखक मेडिकल साइंस रै सागै कुदरत रौ खेल ‘सींवां री पीड़’ मांय दिखावै जिण रो नाट्यरूपांतरण ई हुयो। राजस्थान भर मांय केई जागावां मंचित क्यूं कै ‘सागै ई बींनै औ भी ठा हौ’क पाकिस्तान रै रेजरां रौ कोई भरोसौ नीं है, पण हिन्दुसतान रै फौजियां मांय तौ हिवड़ौ है।’ री तरज माथै ‘बींनै औ भी ठा हौ’क हिंदी रै पाठकां रौ कोई भरोसौ नीं है, पण राजस्थानी आळा मांय तौ हिवड़ौ है।’ भंवरसिंह सामौर साब पोथी रै फ्लैप मांय कैवै- ‘समकालीन भारतीय भासावां रै किणी भी उपन्यास सूं औ उपन्यास उगणीस कोनी इक्कीस ही है।’ कांई ठाह कांई सोच’र आ ओळी सामौर साब लिखी हुवैला।
---------

सींवां री पीड़ (उपन्यास) मेजर रतन जांगिड़
संस्करण- 2009; पाना- 144 ; मोल- 160/-
प्रकाशक- मरुधरा प्रकाशन, जयपुर
 


0 टिप्पणियाँ:

Post a Comment

डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
© Dr. Neeraj Daiya. Powered by Blogger.

आंगळी-सीध

आलोचना रै आंगणै

Labels

101 राजस्थानी कहानियां 2011 2020 JIPL 2021 अकादमी पुरस्कार अगनसिनान अंग्रेजी अनुवाद अतिथि संपादक अतुल कनक अनिरुद्ध उमट अनुवाद अनुवाद पुरस्कार अनुश्री राठौड़ अन्नाराम सुदामा अपरंच अब्दुल वहीद 'कमल' अम्बिकादत्त अरविन्द सिंह आशिया अर्जुनदेव चारण आईदान सिंह भाटी आईदानसिंह भाटी आकाशवाणी बीकानेर आत्मकथ्य आपणी भाषा आलेख आलोचना आलोचना रै आंगणै उचटी हुई नींद उचटी हुई नींद. नीरज दइया उड़िया लघुकथा उपन्यास ऊंडै अंधारै कठैई ओम एक्सप्रेस ओम पुरोहित 'कागद' ओळूं री अंवेर कथारंग कन्हैयालाल भाटी कन्हैयालाल भाटी कहाणियां कविता कविता कोश योगदानकर्ता सम्मान 2011 कविता पोस्टर कविता महोत्सव कविता-पाठ कविताएं कहाणी-जातरा कहाणीकार कहानी काव्य-पाठ किताब भेंट कुँअर रवीन्द्र कुंदन माली कुंवर रवीन्द्र कृति ओर कृति-भेंट खारा पानी गणतंत्रता दिवस गद्य कविता गली हसनपुरा गवाड़ गोपाल राजगोपाल घिर घिर चेतै आवूंला म्हैं घोषणा चित्र चीनी कहाणी चेखव की बंदूक छगनलाल व्यास जागती जोत जादू रो पेन जितेन्द्र निर्मोही जै जै राजस्थान डा. नीरज दइया डायरी डेली न्यूज डॉ. अजय जोशी डॉ. तैस्सितोरी जयंती डॉ. नीरज दइया डॉ. राजेश व्यास डॉ. लालित्य ललित डॉ. संजीव कुमार तहलका तेजसिंह जोधा तैस्सीतोरी अवार्ड 2015 थार-सप्तक दिल्ली दिवाली दीनदयाल शर्मा दुनिया इन दिनों दुलाराम सहारण दुलाराम सारण दुष्यंत जोशी दूरदर्शन दूरदर्शन जयपुर देवकिशन राजपुरोहित देवदास रांकावत देशनोक करणी मंदिर दैनिक भास्कर दैनिक हाईलाईन सूरतगढ़ नगर निगम बीकानेर नगर विरासत सम्मान नंद भारद्वाज नन्‍द भारद्वाज नमामीशंकर आचार्य नवनीत पाण्डे नवलेखन नागराज शर्मा नानूराम संस्कर्ता निर्मल वर्मा निवेदिता भावसार निशांत नीरज दइया नेगचार नेगचार पत्रिका पठक पीठ पत्र वाचन पत्र-वाचन पत्रकारिता पुरस्कार पद्मजा शर्मा परख पाछो कुण आसी पाठक पीठ पारस अरोड़ा पुण्यतिथि पुरस्कार पुस्तक समीक्षा पुस्तक-समीक्षा पूरन सरमा पूर्ण शर्मा ‘पूरण’ पोथी परख प्रज्ञालय संस्थान प्रमोद कुमार शर्मा फोटो फ्लैप मैटर बंतळ बलाकी शर्मा बसंती पंवार बातचीत बाल कहानी बाल साहित्य बाल साहित्य पुरस्कार बाल साहित्य समीक्षा बाल साहित्य सम्मेलन बिणजारो बिना हासलपाई बीकानेर अंक बीकानेर उत्सव बीकानेर कला एवं साहित्य उत्सव बुलाकी शर्मा बुलाकीदास "बावरा" भंवरलाल ‘भ्रमर’ भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’ भारत स्काउट व गाइड भारतीय कविता प्रसंग भाषण भूमिका मंगत बादल मंडाण मदन गोपाल लढ़ा मदन सैनी मधु आचार्य मधु आचार्य ‘आशावादी’ मनोज कुमार स्वामी मराठी में कविताएं महेन्द्र खड़गावत माणक माणक : जून मीठेस निरमोही मुकेश पोपली मुक्ति मुक्ति संस्था मुरलीधर व्यास ‘राजस्थानी’ मुलाकात मोनिका गौड़ मोहन आलोक मौन से बतकही युगपक्ष युवा कविता रक्त में घुली हुई भाषा रजनी छाबड़ा रजनी मोरवाल रतन जांगिड़ रमेसर गोदारा रवि पुरोहित रवींद्र कुमार यादव राज हीरामन राजकोट राजस्थली राजस्थान पत्रिका राजस्थान सम्राट राजस्थानी राजस्थानी अकादमी बीकनेर राजस्थानी कविता राजस्थानी कविता में लोक राजस्थानी कविताएं राजस्थानी कवितावां राजस्थानी कहाणी राजस्थानी कहानी राजस्थानी भाषा राजस्थानी भाषा का सवाल राजस्थानी युवा लेखक संघ राजस्थानी साहित्यकार राजेंद्र जोशी राजेन्द्र जोशी राजेन्द्र शर्मा रामपालसिंह राजपुरोहित रीना मेनारिया रेत में नहाया है मन लघुकथा लघुकथा-पाठ लालित्य ललित लोक विरासत लोकार्पण लोकार्पण समारोह विचार-विमर्श विजय शंकर आचार्य वेद व्यास व्यंग्य व्यंग्य-यात्रा शंकरसिंह राजपुरोहित शतदल शिक्षक दिवस प्रकाशन श्याम जांगिड़ श्रद्धांजलि-सभा श्रीलाल नथमल जोशी श्रीलाल नथमलजी जोशी संजय पुरोहित संजू श्रीमाली सतीश छिम्पा संतोष अलेक्स संतोष चौधरी सत्यदेव सवितेंद्र सत्यनारायण सत्यनारायण सोनी समाचार समापन समारोह सम्मान सम्मान-पुरस्कार सम्मान-समारोह सरदार अली पडि़हार संवाद सवालों में जिंदगी साक्षात्कार साख अर सीख सांझी विरासत सावण बीकानेर सांवर दइया सांवर दइया जयंति सांवर दइया जयंती सांवर दइया पुण्यतिथि सांवर दैया साहित्य अकादेमी साहित्य अकादेमी पुरस्कार साहित्य सम्मान सीताराम महर्षि सुधीर सक्सेना सूरतगढ़ सृजन कुंज सृजन संवाद सृजन साक्षात्कार हम लोग हरदर्शन सहगल हरिचरण अहरवाल हरीश बी. शर्मा हिंदी अनुवाद हिंदी कविताएं हिंदी कार्यशाला होकर भी नहीं है जो