उपन्यास मांय कवि रो प्रलाप / नीरज दइया
कोई रचनाकार आपरी भासा रै विगसाव सारू कांई कर सकै? कैवणिया कैयग्या कै किणी पण भासा रै विगसाव सारू जरूरी हुवै लगोलग उण नै बरतणो अर आपरै बगत नै अरथावणो। अतुल कनक भासा मांय सबद-प्रयोग अर सबद-रूपां नै लेय’र सावचेत लखावै। वै रै मारग सूं कथा तांई पूगै, इण खातर वां रो गद्य ई काव्यात्मक है। बियां किणी पण कवि खातर आ बात कैवणी जाबक सरल छै। भासा मांय ‘छै’ अर ‘है’ नै सुभीतै सूं बरत सकां, पण हरेक रचनाकार री आपरी बाण हुवै अर भासा री समरूपता पेटै उण नै विचार करतो रैवणो चाइजै।
हरेक भासा री आपरी परंपरा हुवै पण उण रै विगसाव सारू आधुनिकत नै अंगेजणो जरूरी मानीजै। परंपरा-विगासाव पेटै आधुनिकता री अखबायां नै अतुल कनक रा उपन्यास- ‘जूण-जातरा’ (2009) ‘छेकड़लो रास’ (2013) अंगेजै। दोनूं उपन्यास खास दीठ सूं अर घणी मैनत सूं लिख्योड़ा है। असल मांय आ दीठ अर मैनत आपरी भासा अर साहित्य पेटै लेखक रो हेत रो पाठ मान सकां, जिण रै पाण वै समकालीन गद्य री भासाई चुनौतियां रै साम्हीं छाती करै। बरसां-बरस सूं चालती इण मिनखाजूण माथै ‘जगत-जुध’ रो संकट मंडरावै।
‘सुणू छूं तो सिहर ज्याऊं छूं। दाणां-स्याणां क्है छै के जे अब जगतजुद्व होयो तो ऊ जर, जोरू अर जमीन के बेई न्हं होवैगो, फाणी के बेई होवैगो। चाहे सिन्धु होवे के दजला- फरात, मनख ई जूण का तड़काव में ही र्हैबा का काण-कायदा सिखाबा हाळी म्हां सगळी नद्दयाँ मनख की ये बातां सुणां छां तो म्हांकी ल्हैरां में जश्याँ बरफ ब्याप जावै छै। जगत को दो तिहाई सूँ बत्तो हिस्सो फाणी छै, फेरूँ भी फाणी बेई जुद्ब? बात कोय के गळे उतर सकै छै कांई?’ (जूण-जातरा, पेज-85) अतुल कनक पाणी नै लोक भासा रै कारण आंचलिक रूप बरतता ‘फाणी’ लिखै अर पूरै उपन्यास मांय सबद पेटै समरूपता राखै। चंबल जरूर व्यक्तिवाचक संज्ञा छै पण लोक भासा रै नांव माथै ‘ल’ रो ‘ळ’ करण री जागा ‘चंबळ’ नीं लिख’र ‘चामळ’ लिखणो ठीक लखावै। हाड़ौती ई नीं आखै राजस्थान मांय ‘बल’ अर ‘बळ’ नै इकसार जाणबा हाळा घणा छै। हरेक री आपरी दीठ हुवै- ‘जुध’ खातर अतुल कनक रै सबद- ‘जुद्व’ अर ‘नदी’ खातर ‘नद्दी’ सूं किणी नै एतराज का कोई ‘स्वाल’ (सवाल) ई हुय सकै। आं सगळी बातां थकां म्हारो मानणो है कै अतुल कनक रै आं दोनूं उपन्यासां रै मारफत उपन्यास-परंपरा अर भासा-विगसाव पेटै लूंठो काम बोलै।
पैलो उपन्यास ‘जूण-जातरा’ जगत साम्हीं आवण वाळै पाणी रै संकट पेटै चेतावै तो दूजो उपन्यास ‘छेकड़लो रास’ ई लीलाधारी किसन री आंख सूं दुनिया रै सार नै गुणतो निजर आवै। दोनूं उपन्यास मांय मूळ कथा जिसी कोई कथा कोनी, पण सगळी गाथा कथा बायरी ई कोनी। केई केई कथावां रा दाखला सूं ई लेखक एक कथा रचण री खेचळ करै जिकी असल मांय है। कथा मांय एक दांई रिदम उपन्यासकार बणावै। आ दोनूं उपन्यासां री बुणगट इण ढाळै री कैया सकां कै उपन्यासकार नै खासी छूट मिल जवै। नद्दी रो आपरी बात कैवणो का कैवां विचारणो अर दूजो लीलाधारी किसन रो छेहलै बगत रो वरण करणो दोनूं इण ढाळै री घटनावां है जठै किणी ढाळै रै बंधण री गुंजाइस कोनी। इण नै आपां उपन्यास मांय कवि रो प्रलाप कैय सकां।
‘जुध सूं कुण को हित सध्यो छै, जे किसन कुरूखेतर में जुध ई साधबा की जुगत करतो? ऊ तो जगत के तांई हेत को पाठ पढ़ाबा आयो छो। गुरू सांदीपनी ने जद जोग ज्ञान की भोळावण दी छी, तद किसन ने ही वां सूं कही छी के- प्रेम भी तो जोग ही छै। जे प्रेम मनख के तांई मनख सूं जोड़ै छै, ऊं सूं लोठो जोग कश्यो? प्रेम को जोग सधै तो जूण का घणकरा जोग आपूं आप ई मुजरो करता सा सध ज्यावै छै।’ (छेकड़लो रास, पेज-83) नदी अर किसन दोनूं ई जगत नै प्रेम दियो अर इणी नै जोग मान’र स्सौ की साधण री तजबीज करी। छेकड़लै बगत किसन आपरै विगत नै चेतै करता कठै कठै पूग जावै अर घिर-घिर चेतै करै तद केई केई रंग आपां रै साम्हीं आवै। दोनूं उपन्यास आपसरी मांय रळ जावै अर बांचणियां साम्हीं जाणै छेकड़ली जातरा रै मारफत जूण-रास राखै।
‘जूण-जातर’ मांय लेखक आगूंच आपरी - ‘नदी सूं पूछ’र देखो’ राखै अर ‘म्हूं अर नद्दी’ नांव सूं खुद री बात ई मांडै। कवि लिखै- ‘नदी का/ मन में कांई छै/ के ऊं की पीर कांई छै/ कोय दन डूब’र देखो....’ कवि रो उपन्यासकार रूप नदी रै मन री बातां मांय डूब’र राखण रो जतन ओ उपन्यास है। साफ पाणी रै आवतै संकट री चिंता वाजिब चिंता है। चामळ नदी रो उपन्यास एक काव्यात्मक-प्रलाप है। इण नै चामळ नदी रै मिस पाणी री आत्मकथा का आत्मकथ्य ई कैय सकां।
‘जूण-जातरा’ उपन्यास विधा रा परंपरागत मानकां अर असूलां सूं अळघो एक प्रयोग है। ओ प्रयोग कवि रै जीव मांय कियां ढूक्यो इण पेटै उपन्यासकार आपरी बात मांय लिखै- ‘आज पिताजी ई रामशरण होयां पूरा सात बरस बीत ग्या, पण अबार भी जश्यां हूं नरबदा जी की ऊं डुबकी सूं ही भीज र्यो छूं, जे डुबकी म्हंनै औंकारेश्बर सूं सिद्ववरकूट पूग्या पाछै दैवदरस सूं सैं प्हैली लगाई छी।’ (जूण-जातरा, पेज-5) बगत रै आर-पार आवण-जावण री खिमता कवि री कै बो चामळ रै कांठै पूग’र लगोलग उण सूं बंतळ करै। कवि रै पाखती एक न्यारी कवि-दीठ हुवै, जिण सूं बो नदी री आंख्यां देख सकै। अर बो देख सकै उण नदी री आंख्यां मांय दो खारी बूंदां। कवि लिखै- ‘म्हूं ईं पोथी के तांई नद्दी का दरस को प्रसाद मानूं छूँ। नद्दी ने तो देबा में कोय कसर न्हं राखणी, पण नद्दी का महत्त ई झेलबा बेई गंगाधर जशी छिमता हूं कठी सूं लातो जतनी सी म्हारी सामर्थ छी, वतनो पुन्न अंगेज’र आपकै सामै घरूँ छूँ।’ (जूण-जातरा, पेज-7) कैवणो चाइजै कै ओ नद्दी री ई खिमता कै आपरी बात जूण-जातरा रै मारफत आपां नै कैवै।
जूण-जातरा चालू हुवै- इण ओळी सूं- ‘म्हूँ चामळ छूँ’ अर छेकड़ली ओळ्यां है- ‘चालूँ। नरी जेज होगी। आपको मन मिल्यो तो अतनी बतिया भी ली। न्हं तो म्हाँ नद्दयां की जूण में अतनी थरता कठी छै? ळगौळग चालबो ही तो म्हां की जूण जातरा छै।’ (जूण-जातरा, पेज-104) सबद- ‘ळगौळग’ (लगौलग) पेटै बात नीं कर’र, अठै म्हैं आ अरज करणी चावूं कै ‘चामळ’ नै पूरै लगैटगै सौ पानां मांय बोलावणो कोई हंसी-खेल बात कोनी। ओ राजस्थानी ई भारतीय साहित्य रै गद्य रो डार्क जोन का कैवां कै धोरां री धरती रा बै लांठां धोरियां है जठै एक-एक पावंडो का सांस लेवणो ई भारी हुय जावै । अतुल कनक ‘जूण-जातरा’ पेटै खूब काम करियो लखावै। उपन्यास मांय ‘चामळ’ अर ‘लेखक’ नै आपां बातपोसी रै रूप मांय ओळख सकां। एक कैवणियो है अर सुणणवाळो। फाणी (पाणी) पेटै उपन्यास सूं जिकी ‘घरबीती’ अर ‘परबीती’ भेळै देस-दुनिया रै दरियाव रो पसराव देखण नै मिलै, उण नै जाण’र घणो अचरज हुवै। ख्याणी (कहाणी) अर दूजी-दूजी ख्याणियां नै रळावतां उपन्यास मांय केई-केई नूंवी जाणकारियां ई लेखक देवै। उपन्यास मांय इतिहास, पुराण अर लौकिक साहित्य री घणी जाणकारियां भेळै जाणै आवतै उपन्यास ‘छेकड़लो रास’ री जमीन ई देख सकां।
‘बतावै छै के एक बेर स्री किसन की पटरानी रूक्मणि जी ईं यो डमस हो ग्यो के वै तो पटरानी छै। म्हैलाँ में किसन जी सागै वास करै छै- फेर राधा जी का प्रेम की काअंई बिसात? किसन जी सूँ कांई छिप्यो छो। वै मुळक’र र्है ग्या। रात नै किसन जी म्हैल में पोढ्या होया छा। रूक्मणि जी कमरा में पधार्या तो वांई यो देख’र घणो अचरज होयो के पोढ्या पोढ्या किसन जी के पगाँ में अचाणचक बड़ा बड़ा छाळा हो ग्या? या कशी मोहणी छी मनमोहन?....’ (जूण-जातरा, पेज-38) ‘रूक्मणि के तांई डमस होग्यो के गाबा हाळा लाख गुण गावै राधा किसन का प्रेम का, पण पतराणी तो रूक्मणि ही छै। पटराणी सूँ बद’र द्वारकाधीश सूँ कुण प्रेम कर सकै छै अर द्वारकाधीश को प्रेम भी कोय के बेई आपणीं पटराणी सूँ बद के थोड़े ही हो सकै छै। ऊँ ही रात पलंग पे पोढ्या किसन का पगाँ पे अचाणचक छाळा फूट्याया। न्हँ कोय बात, न्हँ कोय झिकाळ। -तो कांई कोय ने काळो जादू कर्यो छै मुरलीधर पे? किसन का पगां पे चाला देख’र महाराणी रूक्मणि को म्हैड़लो काळम्यावाँ सूं भर ग्यो।' (छेकड़लो रास, पेज-53) पैलै उपन्यास मांय नदी अर दूजै उपन्यास मांय भगवान किसन रै मिस सागी प्रसंग नै साम्हीं राखणो का उपन्यास मांय कैयोड़ी किणी बात नै पाछी कैवणी प्रलाप मांय जायज कैय सकां। ‘छेकड़लो बगत आवै छै, तो ओळ्यूँ सूँ रच्या-पग्या कतना ही चतराम आँख्यां के सामै रम्मत करबा लागै छै। कोय की ओळ्यूँ म्हैड़ला का आडा पे खटखटाती न्हँ तो किसन आज सागळी बाताँ कीं लेखै बच्यारतो?’ (छेकड़लो रास, पेज-91) राजस्थानी मांय इण ढाळै रा दूजा कोई उपन्यास का उपन्यासकार कोनी इण खातर इण नै नूंवी अर न्यारी धारा कैय सकां।
बीजी भारतीय भासावां मांय इतिहास अर पौराणिक चरित्रां माथै न्यारी न्यारी विधावां मांय केई रचनावां रा दाखला मिलै। राजस्थानी मांय किणी बांची का सुणी कथा नै भासा मांय ढाळणो अबखो काम। किसन अर सुदामा री कथा सूं आपां अणजाण कोनी। ‘म्हैल के बारणै ऊब्या दरबानाँ सूँ बोल्यो- किसन को भाएलो छूँ। मिलबो चाहूँ छूँ। सुणबा हाळाँ ई मसखरी सूझी। कठी फाट्या लत्ता प्हैर्यो यो सकीम बामण, अर कठी देवतान् को वैभव भी जीं की संपत के सामै फाणी भरता दीखे- ऊ द्वारकाधीस किसन? दूँक’र भगा द्याँ, के कोय ओळावे खळका द्याँ ई बामण के तांई? पण किसन को हुकुम छो, के म्हैल का बारणै कोय भी मिलबा की हूँस ले’र आवै तो म्हारै तांई समचौ जरूर पुगाजो। कारू-चाकर काँई करता? समचौ पुगा द्यो- कौय बगनायो बामण लागै छै। नाँव सुदामा बतावै छै अर आपणै तांई दाता-होकम को बेली बतावै छै।’ (छेकड़लो रास, पेज-70-71) इणी बात मांय पूरै उपन्यास रो असूल इण रूप देख सकां कै खुद सुदामा कांई कैयो अर किसन रा दरबारी उणी बात नै किसन रै साम्हीं किण रूप मांय राखी। इणी ढाळै जूण री छेहली रास छोड़ती बगत किसन खुद कांई सोचता रैया अर उपन्यासकार उण नै किण ढाळै भासा मांय राखण रा जतन करै, आ खेचळ ई जसजोग बात है। सेवट मांय सगळा सूं लांठी बात कै अतुल कनक जिण सवालां नै आपरी रचनात्मकता रै पाण आपां साम्हीं राखै, बै बगत रा महतावू अर जरूरी सवाल है। बगत रैवता आं सवालां माथै विचार सारू जे आपां संभ जावलां तो आ सगळा री सफलता।
--------
0 टिप्पणियाँ:
Post a Comment