बसंती पंवार रा दोनूं उपन्यास ‘सौगन’ (1997) अर ‘अैड़ौ क्यूं?’ (2012) लुगाई जात री अबखयां नै अरथावै। दोनूं उपन्यासां मांय ओ अरथावणो न्यारै-न्यारै रंग-ढंग अर भासा-बुणगट सूं साम्हीं आवै। आ जुदा बात है कै आज रै जुग मांय सौगन नै कुण-कित्ती मानै, पण राजस्थानी संस्कृति री खासियत है- कोल निभावणो। सौगनां नै मानण अर निभावण वाळा रो निरवाळो कथानक उपन्यास मांय लेखिका परोटै। साथै ई प्रेम रो अेक निरवाळो रूप ‘सौगन’ री नायिका मंजू रै मारफत पाठकां साम्हीं राखीज्यो है। नायक और नायिका बिचाळै अेक इसो प्रेम हुवै अर सेवट तांई बै निभावै जिण नै समाज री दीठ सूं कोई खरो नांव नीं देय सकां। कैवणिया कैय सकै कै जूना भाइला-भाइली। अनाम प्रेम नैं ताजिंदगी निभावणो हरेक रै बस री बात कोनी हुवै। नायिका मंजू असंभव नै संभव कर’र अेक दाखलो राखै।
उपन्यास री सरुआत मांय पैली तो मंजू अर मदन रो संयम पाठकां नै प्रभावित करै। बै दोनूं प्रेम रै झीणा तारां सूं बंधै। बै सुनील रै घरै घणी वेळा अेकला मिलै अर बां रो प्रेम ई हिया मांय चरम तांई पूगै। बै आपरी अर समाज री मरजावां रो ध्यान राखै। अठै तांई कै मदन मंजू री मांग ई भर देवै पण दोनूं भावनावां मांय बैवै कोनी। ओ प्रेम देहिक नीं होय’र लेखिका अदेहिक और अलौकिक बताण सूं अभरोसो ई हुवै। जवान छोरा-छोरी मांय इण नै प्रेम री विराटता कैय सकां। बेमाता रा लेख निरवाळा। दोनूं ब्यांव नीं कर सकै। बां री दुनिया सूं लड़ाई करण री हिम्मत कोनी हुवै। जथारथ अर गोड़ै घड़ी किणी कहाणी दांई उपन्यास चालै। उपन्यास री वुणगट रो फूटरापो कै अठै पूरो कथानक फ्लैस बैक मांय राखीजै। मंजू आपरी खास सहेली सीता रै मारफत आपरै मन री गांठां नै खोलती जावै।
मदन रै ब्यांव री टैम मंजू उण नै समझावै अर बो कथानायक घरवाळा री मरजी मुजब प्रेमिका रै कैयां सूं खुद री इंछावां रो त्याग करै। बै ना विरोध करै अर ना घरां री काण राखता कठैई भागै। ना बै कूवो-खाड करै। जीवण सूं बां रो जूझ मांडणो प्रभावित करै। मदन रो ब्यांव जिण छोरी सूं हुवै संजोग सूं उण मांय घोखो निकळै। बा पागल ही अर दुनिया री रीत है कै घरवाळा बात नै लुका’र राखै। तलाक हुयां पछै ई मदन अर मंजू रो रिस्तो कोनी हुवै। मंजू नै ई घरवाळा री इंछा मुजब स्याम सूं परणीजणो पड़ै अर बै अबै आपसरी मांय सौगन लेवै कै आपां दस बरसां तांई कोनी मिलैला। अर आ मोटी सौगन बै अंत तांई निभावै। जूण जे राजी खुसी चालती तो हुय सकतो कै मंजू लारली बातां भूल ई जावती। सोची-विचारी कीं कोनी हुवै अर मंजू नै आपरी जूण मांय अणमाप दुख-दरद पांती आवै। उपन्यास रो सवाल उठावै कै आखी जूण खातर पति रै प्रति समरपित होयां ई किणी लुगाई रै भाग मांय तुस जित्तो ई सुख क्यूं कोनी आवै। जूण मांय ओ किसो दंड हो जिको मंजू आखी जूण भुगतती रैयी। कांई सगळी बातां किसमत सूं हुवै? मिनख रै हाथां कीं नीं, बस सगळो खेल लकीरां रो है। जूण मांय अलेखू सावाल विचरती मंजू अबखायां माथै अबखायां झेलती जूण काटै। नायिका रो राजस्थानी संस्कृति नै पोखणो अर सेवट तांई प्रयास करणो कै कियां ई घर-संसार रो जाचो जच जवै किणी फिल्मी कथा दांई लागै।
आधुनिक दीठ अर नुवा विचारां रा लेखक-पाठक ‘सौगन’ री नायिका मंजू सूं ओ सवाल कर सकै कै बा पुरस प्रधान परिवार अर समाज री व्यवस्थावां नै बदळण खातर साम्हीं ऊभी क्यूं नीं हुवै? बा आपरो पूरो जीवण किण खातर होम करै। कांई प्रेम कर परा घुट-घुट जीवण जीवणो ई जूण रो साच हुवै? नायिका आपरै मनचींती क्यूं नीं करै। बा इत्तै बंधणा मांय क्यूं बंध्योड़ी रैवणी चावै। आं सगळी बातां नै लेखिका बसंती पंवार चेलेंज रै रूप मांय ‘अैड़ौ क्यूं?’ उपन्यास री नायिका सीता रै मारफत आपां साम्हीं राखै। इयां लगै कै ‘सौगन’ री सीता जिकी मंजू सूं उण री आखी कथा सुणी अठै ‘अैड़ौ क्यूं?’ मांय उणी सवालां साम्हीं ऊभी हुवण लाग रैयी है। घर-परिवार अर समाज मांय केई रीत-रिवाज हुवता है जिण बाबत नायिका रो अैड़ौ क्यूं? अैड़ौ क्यूं? ओ सवाल उपन्यास मांय इत्तो साम्हीं आवै कै उण नायिका रो नांव ई ‘अैड़ौ क्यूं’ राखीज जावै।
विधवा ब्यांव सूं चालू हुई अर नारी जूण माथै केंद्रीत रैयी राजस्थानी उपन्यास जातरा अर बसंती पंवार रा दोनूं उपन्यास उण परंपरा मांय कीं नुवो रचण री कोसीस कैयी जा सकै। मानवीय मूल्यां रै आधार पर दोनूं उपन्यास समाज मांय लुगाई खातर नुवी दीठ सूं सोचण नै मजबूर करै। ‘अैड़ौ क्यूं?’ मांय विधवां पेटै समाज रै दोगलै बरताव सूं दुखी अेक छोटी बैन रै मारफत लेखिका आपरी बात सरु करै। सुभ कारज मांय विधवां अर बांझ नै दूर राखीजै। दोनूं ई बातां रो विरोध उपन्यास मांय हुयो है। नायिका सीता नै घर मांय घी पावण री रिवाज मांय जीजी नै टाळणो अखरै। छोटै मूंडै मोटी बात कैवावण री खेचळ ई सीता रै मारफत लेखिका करै। अठै ओ पण देख सकां कै जिकी नायिका बाळपणै सूं ई ओ धार लेवै कै समाज रै सुगलै काण-कायदा नै बदळ’र कीं नुवो अर ओपतो करणो है तो बा कीं कर सकै। लेखिका आज रै जुग री स्त्री विमर्श री सगळी बातां नायिका सीता रै जीवण सूं जोड़तै थकै साम्हीं लावै। उपन्यास मांय सगळी बातां प्रगट करण खातर अेक जुगती लेखिका काम मांय लेवै। बा अभि नांव रै छोरै अर सीता री बंतळ करावै, जिण सूं बै दोनूं समाज री भूंडी बातां अर रीत-रिवाज माथै लेखिका री बात कैवण लागै अर उपन्यास रै अंत तांई नाटकीय ढंग सूं इण कथा नै इण ढाळै विकसित करै कै स्सौ कीं सहजता सूं संभव हुय जावै।
नायिका ‘सौगन’ उपन्यास मांय अेक आदमी-लुगाई रै नांव बिहूणा रिस्तै री बात करी अर उण सूं आगै अठै फेर ‘अैड़ौ क्यूं?’ मांय नायिका अर अभि रै रिस्तै नै लेय’र उणी ढाळै रा केई सवाल अठै राखै। जूनै जुग मांय गांव री छोरी सगळा री बैन-बेटी हुया करती। धरम भाई अर धरम बैन जिसा सोवणा रूप-संकळप ई नुवै जुग री हवा सूं हेठा पड़ण लागग्या। देह राग अर नुवी दुनिया री इण क्रांति मांय रिस्ता मांय ओछोपणो घर करग्यो। बाळपणै रो निरळम नेह, प्रीत कैवां कै पाड़ौसी रो हेत, समाज अबै आं सगळी बातां नै किण रूप मांय देखै इण रो दाखलो ‘अैड़ौ क्यूं?’ मांय मिलै। भाइला-भायली अर यारी-दोस्ती नै समाज किण ढालै लेवै किण सूं छानो नीं है। अठै ‘अैड़ौ क्यूं?’ मांय ‘सौगन’ दांई आदर्श स्थिति राखण री कोसीस करीजी है। संघर्ष आपरी ठौड़ पण दोनूं उपान्यासा रै अंत मांय लेखिका जिण ढाळै नायिकावां रो अंत बखाणै बो नीं हुया ई उपन्यासां री मूळ बात मांय अंतर नीं आवतो।
‘अैड़ौ क्यूं?’ मांय लुगाई जूण सूं जुड़िया घणा सवाला-बातां नै परोटण री तजबीज करीजी है अर लेखिका सगळी बातां नै नाटकीय ढंग सूं संवादां रै मारफत उजागर करै। जूण रो मरम अरथावण वाळी केई-केई ओळ्यां ई ‘अैड़ौ क्यूं?’ मांय जबरदस्त है। उपन्यास री टाळवीं ओळ्यां फ्लैप माथै ई देखी जाअे सकै। जियां- ‘रिस्ता तौ वै ई साचा है, जिणां में मन मिलै’ का ‘प्यार-सनेव तौ अेक अैसास है, सुवास है, आत्मा री अनुभूति है। सनेव नै कदैई कोई देख्यौ है? उणनै तो सिरफ मैसूस कियौ जाय सकै।’ अर ‘आदमी अर औरत री दोस्ती नै समाज चोखी निरज सूं नीं देखै, नीं ई इणनै मान्यता देवै। पछै इण रिस्तै रौ कांई नाम व्है।’ आद।
सतजुग रा सीता-राम ई समाज सूं नीं बच सक्या फेर ‘अैड़ौ क्यूं?’ रा सीता-राम तो कळजुग मांय कीं सांवठा बदळाव करण री धारै तद बै समाज सूं कियां बचैला। नायिका सीता रा भाग कै उण नै राम जैड़ो जीवण-साथी मिल्यो। बरात ढूकाव माथै ऊभ्या पछै कार री अणूती मांग अर झट नायिका रो आपरै बळपणै रै साथी अभि सूं अेक अणचाण रिस्तै नै दूसर नूंतणो अर उण रो स्वीकार करणो सगळी बातां-घटनावां नाटकीय हुया पछै ई प्रभावित करै। उपन्यास री संवाद-सैली मनमोवणी अर भासा-बुणगट इण ढाळै री कै अेकर जे कोई बांचण लागै तो ठेठ तांई उण नै पूगणो पड़ै। आ इण दोनूं उपन्यासां री सफलता है। ‘अैड़ौ क्यूं?’ उपन्यास री सीता अर ‘सौगन’ री मंजू राजस्थानी उपन्यास जातरा रा इण ढाळै रा यादगार नारी-पात्र कैया जावैला जिका आपरै जूण री जूझ सूं केई केई बातां आपरै पाठकां साम्हीं राखै। ‘अैड़ौ क्यूं?’ रै मारफत जे नुवी पीढी रै मनां हूंस जागै अर बै समाजू रीत-रायता मांय कीं बदळाव करण री विचारै तो इण उपन्यास री सफलता कैयी जावैला। मंजू अर सीता पेटै अैड़ौ क्यूं रो मायनो अजेस बाकी है।
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