राजस्थान री जनता मांय राजस्थानी भासा, साहित्य अर संस्कृति खातर अणमाप हरख-हेत हियै उजास है। हेताळू मिनख न्यारै-न्यारै सीगा इण जमीन सूं जुड़ै अर आपरी परंपरावां नै धकै बधावै। इण ओळ मांय केई दाखला दिया जाय सकै, पण अठै बात करां कवि-कथाकार देवदास रांकावत (1934- 2014) री। जिणा री सिरजणा पचपन बरस लियां पछै समाज साम्हीं प्रगट हुई। बै रेलवे में नौकरी करता हा अर घणा पढ्योड़ा-लिख्योड़ा ई कोनी हा। भासाई मानता री जबर हूंस रा घणी देवदास रांकावत साहित्य समाज सूं जुड़्या। साहित्यकार माणक तिवाड़ी ‘बंधु’ रै सैयोग सूं बां री मनचींती पूरी हुई। वचनिका सैली मांय ‘जोरावर पदमा’ (1989) छ्प्यो तो घणो चावो हुयो। आ एक इतिहासू घटना कैयी जावैला कै पांचवी भण्योड़ा देवदास जी उमर रै आधेटै पछै लेखन री दुनिया मांय पगलिया करिया।
‘जोरावर-पदमा री कथा लिखती वेळा, म्हारै सामैं, कहाणी कैवणआळी अर उण में रस भरणआळी बात ही खास रैयी। सो आ कथा आज रै उपन्यासां री लीकआळी पोथी कोनी रैय सकी, अर पुराणा बातपोस जिण भंत आखी आखी रात बात सुणाय’र, सुणणिया नै रस में डुबोयां राखता, उणीज ढाळै पर कथा नै ढाळीजी। केई गांवां में अर केई जागां, आ कथा उणीज भांत, केई-केई रातां जाग’र मैं खुद सुणायी है।’ ( हियै री बात : जोरावर-पदमा)
लोक अर लोक साहित्य सूं जुड़ाव रै पाण लेखक घणी सरलता सूं खासी बड़ी बात कैय दी, जिण माथै लोक उपन्यास री बात करणियां नै कान देवणा चाइजै। निरमळ हियै रा लेखक देवदास जी इण बात भेळै साफ-साफ सबदां में आ पण लिखी- ‘आपणी इणी मातृभाषा राजस्थानी री कीरत नै, जे म्हारी आ पोथी सूई री अणी बरोबर ही बधा सकसी तो म्हारी मैनत सफळ मानसूं।’ बै चार बीसी उमर लिखा’र लाया हा अर बरस 1992 में राज री नौकरी सूं फारिग हुयां उपन्यास विधा मांय उल्लेखजोग काम करियो। बां रै सिरजण रो मूळ आधार धोरां री धरती रो रंग-रूड़ो जूनो रूप, माटी री महक, आसै-पासै री दुनिया अर बीकानेर रो लोकरंग मान सकां। ‘समै किणी रै बांध्योड़ो नीं रैवै। बो तो आवै अर ठोका मना जावै, बो ई जा, बो ई जा।’ (होम करतां हाथ बळै, पेज-102) बीकानेर री रंगत सूं रजी इण भासा रो रस पूरी उपन्यास जातरा मांय ठौड़ ठौड़ देख्यो जाय सकै।
देवदास राकांवत मुजब- ‘ख्याति अर लिछमी सगळां नै चाहीजै, आ बात भी सोळै आनां खरी है पण ऐ चीजां सास्वत नीं है। सास्वत है- रचना रो आनंद। जे इण कसौटी माथै आपां आपणै लेखन नैं कस’र देखां तो आपांनै ठा पड़ैला कै आपां कित्तोक-कांई लिख्यो है? जिण सूं आपांनै रचना रो संतोख हासल होवै।’ (अंतस रा आखर : मुळकती मौत कळपती काया) आपां देख सकां कै रांकावत जी री पैली रचना बरस 1989 मांय साम्हीं आवै अर इण पछै बै कहाणी, गीत अर कवितावां मांय रम जावै। साहित्यकार माणक तिवाड़ी ‘बंधु’ पछै शंकरसिंह राजपुरोहित लेजर सैटिंगकार रूप जुड़ै तद बरस दर बरस एक पछै एक उपन्यास आवता गया। ‘गाव! थारै नांव’ (2006), ‘मुळकती मौत कळपती काया’ (2007) ‘धरती रो सुरग (2008) ‘होम करतां हाथ बळै’ (2010) उपन्यास राजस्थानी-साहित्य री कीरत नै बधावणवाळा मानीजै। ‘जुलम री जड़’ उपन्यास अजेस अप्रकासित।
उपन्यास ‘जोरावर-पदमा’ सूं सरु हुई उपन्यासकार री सिरजण-जातरा मांय बात में रस भरण बुणगट ठेठ तांई खास रैयी। दूजै उपन्यास ‘गाव! थारै नांव’ मांय लेखक आपरी बात ‘हियै रो साच’ सिरैनांव सूं इण ढाळै राखै- ‘इणरै पछै ग्राम्य जनजीवण सूं जुड़्योड़ी आ सांवठी कथा म्हैं गांवआळा रै मूढ़ै सावळसर सुणी अर कल्पना रै सागै रळ’र मांडी जकी ‘गांव! थारै नांव’ सिरैनामै सूं उपन्यास रै रूप में सुधी पाठकां रै हाथां में है।’
‘गाय और गोरी’ नांव सूं फिल्म बणी बरस 1973 मांय अर ‘गाव! थारै नांव’ उपन्यास साम्हीं आयो बरस 2006 मांय। जया बच्चन री फिल्म देवदास जी जरूरी देखी हुवैला अर बां रै अचेतन मांय कठैई आ फिल्मी गाय घर करियोड़ी ही। फेर इण उपन्यास रा संवाद ई म्हारी इण बात री साख भरै-
‘इण बिचाळै नंदराम उणनै भळै अखराई- देख छोरी! तूं मानजा। औ थरो सोवणो अर कवळो सरीर बोली-बोली म्हनै सूंपदै। आज तूं म्हारै हाथां सूं बच को सकै नीं।
पेमल ई रीस में भांभड़ा भूत होयोड़ी दांत पीसती बोली- म्हारै जीवता थनै सपना आसी, जद तांई सांस है म्हारै में, थनै सरीर नीं सूंपूंली। मरियां पछै माटी नै भवै गंडकड़ै ज्यूं खायै।’ (गाव! थारै नांव, पेज-76)
गांव, गाय, खेत, मिंदर, हथाई, चिलम, भजन, लोकगीत भेळ नायक रूप छोरी पेमल अर खलनायक रूप कुमाणस नंदराम स्सौ की है पण इण उपन्यास मांय असल मांय गांव रै नांव सेवट कांई है... साच-कूड री बात जुदा पण आ एक जूनी ओळूं है अर लेखक आपरै सुपनां रै सरोवर मांय पाठकां नै लेय’र जावै। ‘पेमल भी उणनैं चूंगती देख’र आपरै होठां माथै जीभ फेरती। उण रो मन भी करतो कै उणरै सागै-सागै म्हैं ई इण गाय रा हांचळ चूंगूं तो किसो’क। पेमल ई बाछड़की रै मूढै कनैं आपरो मूंढो भिड़ा लियो अर साची बा तो गाय रै हांचळ रै मूंढो लगा’र आपरी जीभ रो आंटो लगायो हांचळ रै अर चसड़कै सागै खैंचण लागी हांचळ सूं दूध। गाय ई कणैई तो आपरी बाछड़की नै चाटै अर कणैई छोरी पेमल नै।’ (गाव! थारै नांव, पेज-14-15) एक हकीकत ही सो उण बगत पूग’र उपन्यास री दादी रै सुर मांय मन रमावणो चाइजै- ‘आपां नै तो राजी होवणो चाहीजै। ऐड़ी गाय अर ऐड़ी डावड़की आपणै आंगणै ऊभी है। आ तो उण द्वारकाधीश री मेहर है आपां पर।’ (पेज-15)
मध्यकालीन राजस्थानी जनजीवण रै एक प्रसंग नै लेय देवदास रांकावत रो तीजो उपन्यास- ‘मुळकती मौत, कळपती काया’ साम्हीं आयो। लेखक नाथू नांव रै धत्तरवाळ जाट री खोज-खबर खातर ठौड़-ठौड़ भटकतो रैयो अर इणी घुमाफिरी मांय एक डोकरी सूं मुलाकात बाबत लेखक लिखै- ‘म्हैं उणनैं साची बात बताई जणा उण रो कीं जी जम्यो। फेर उण बतायो कै हां, म्हारा दादी सासूजी इण तरै री बात बताया करता हा। अठै रा ऐ बारै गांव नाथू नाम रै धत्तरवाळ जाट रै बसायोड़ा है अर उणीं री चार-पांच पीढ़ी रै पछै उणरै टाबरां इण पाणी री पूर्ति खातर खासी जगां कुंड-बावड़्यां, का’स पछै ऐ कुइयां अर छोटा-मोटा नाडी-नाडिया खिणाया। अबै तो थे खुद ई देखो हो कै आं गांवां में राम रमण लाग रैयो है।’ (अंतस रा आखर : मुळकती मौत, कळपती काया) गांव अर जूनै जन-जीवण खातर लेखक री प्रीत बेसी देख सकां। लेखक डॉ. किरण नाहटा री मुलाकात अर सीख रो जिकर ई उपन्यासकार करै। ‘किरणजी बोल्या- थे तो साव भोळा हो। रचनाकार नैं किणी प्रमाण री दरकार कोनी। थे तो थांरी कल्पना रै आधार पर ही लिख सको हो। आप जकी पाणी रै बारै में म्हनैं बताई उण बात री तो आज रै जमानै नैं दरकार है।’ ओ सूत्र ही आधुनिकता रो सूत्र है। रचना में जथारथ अर कल्पना रळ’र ई कीं सांगोपांग रचाव करिया करै। लेखक पाखती बात कैवण रो आंटो है अर किणी घटना-प्रसंग नै बातपोस दांई मठार-मठार नाथू नाम रै धत्तरवाळ जाट री सांगोपांग कथा कैवै। जूनी बातां दांई नाथू ई आपरी भाभी रै मोसै माथै घर छोड़’र निकळै अर बूकिया रै बळ सूं केई नूंवा गांव बसावै। लोकजीवण, सांस्कृतिक झलक अर रळियावणी भासा मनमोवै। इण दुखांत उपन्यास रो नायक भगती भाव वाळो। उपन्यास रो नांव उपन्यास रै छेकड़लै दरसाव सूं लियो गयो है- ‘आ सुण’र उण आंख खोली अर जोत रा दरसण कर’र थोड़ो मुळक्यो, जाणै उणरै मूढ़ै पर सांप्रत मौत मुळकती होवै पण उणरी जोड़ायत अर छोरा सागै आखै गांव रै लोगां री काया कळपै ही। मुळकती मौत अर कळपती काया रै बिचाळै नाथू रै प्राणां री जोत, मा भवानी री उण जोत रै भेळी समायगी। (मुळकती मौत, कळपती काया : पेज-104)
लेखक घरबीती अर परबीती सूं प्रेरणा लेवै। ‘धरती रो सुरग’ उपन्यास देवदास जी आपरै रेलवाई नौकरी रै संगी-साथी मेघराज रै जीवण नै परोटतां थका लिख्यो। बो इण उपन्यास रो खास पात्र है, हो सकै असल जीवण मांय उण रो कोई दूजो नांव हुवै। मेघराज रै बेटै री बहू मीरां उपन्यास री नायिका है। राकांवत जी रै उण संगी-साथी जिण रो नांव मेघराज लिख्यो है री मनोकामना रैयी कै एक दिन उण रो घर ई सरग बणसी। संजोग ई जूण मांय गजब रा खेल खेलै। सेवट असल जूण मांय जाणै मा भवानी रै रूप में उणा नै तूठण नै उपन्यास री नयिका मीरां आवै। उण सुपातर बीनणी मीरां सूं उपन्यास रचण खातर लेखक देवदास जी बंतळ ई करी। लेखक ‘मन री गिंगरथ’ मांय आ बात पूरी मांड’र कैवै- ‘म्हैं थारै मांय कीं गुण निजर आया है, जणै ई तो म्हैं अठै आयो हूं, नींतर इत्ती दूर म्हारै बडकां नैं रोवण नै आवतो कांई? म्हैं थारो नांव अर ठिकाणो कीं नीं मांडूंला, खाली थारै घर-घराणै रा चोखा संस्कार अर थारा आं सांवठा गुणां रो खुलासो ई करसूं, पण लिखसूं जरूर।’ आ लिखण री पक्की सोच रै पाण ई बै उपन्यास लिख सक्या। उपन्यास मांय असल जीवण री झलक मिलै। उपन्यास मांय देवदास राकांवत रो नांव हरियो है।
उपन्यास ‘धरती रो सुरग’ में नायिका मीरां रै चरित्र रो विगसाव एक खास तरै सूं हुवै। जाणै उण पाखती मा भगवती रो कोई जादू का सगती है। उण रै चलायां ई उण रै आसै-पासै री दुनिया चालै। एक कंवारी छोरी जिण रो बाप दुकानदार है बा नामी सेठ अर नामी डाक्टर री कीं बेसी ई लाडली उपन्यासकार दरसावै। इत्तो ई नीं उण रै ब्यांव पछै ई उपन्यास मांय केई-केई बातां असलियत सूं जुदा लखावै। कैय सकां कै असल जूण मांय नायिका मीरा जैड़ी कोई नायिका रैयी हुवैला पण उपन्यास सूं जिकी छिब साम्हीं आवै उण सूं तो बा अवतारी का जादूगरणी लखावै। बा एक मोटै परिवार नै ई गळी-गवाड़ अर खल पात्र नैं ई आपरै बस मांय कर लेवै, जिण घरै भूवाजी भूख सूं बाथेडा करता हा उण घरै जाणै लिछमी अर सम्मपत रो अखूट बासो कर देवै। एक ठौड़ करनल सा’ब कैवै- ‘अरे म्हैं तो तनैं भिड़तलै भचकै ई एक बात साफ कैय दी ही नीं कै आपां कनैं पईसां री कमी कोनी। तूं डर ना, ओ भी होय जासी, बो ई फेर साव मुफत में। ऐड़ा घणा ई डॉक्टर म्हां दोनूं रा संगळिया है, जका आज आपरी सेवा मुफत में देवण नै त्यार बैठ्या है।’ (धरती रो सुरग, 136) नायिका रो चरित्र अमानवीय इण खातर कैयो जावैला कै बा एक इसी छोरी अर लुगाई रै रूप में साम्हीं राखीजै जाणै कोई बा जादूगारी हुवै। बा सगळी बातां नै आपरै ढंग-ढाळै सूं परोटै अर आगै आगै बधती जावै। पैली बाप रै घरै खुद रै आसै-पासै री दुनिया नै सरग बणावै अर ब्यांव पछै सासरै नै अर सासरै रै आसै-पासै री दुनिया नै सरग बणावै।
देवदास रांकावत जिण उमर मांय हा बै बडेरा हा। बां री दीठ मांय भूडो अर भलै रो झौड़ आज जित्तो उळझाड़ लियोड़ो कोनी हो। जूनै बगत सबदां रो मोल हुया करतो। आदमी कैयी दी जिकी बात भाटै माथै लकीर हुवती आजकाळै तो मिनख कैवै कांई अर करै कांई। चामड़ी री जीभ ठाह नीं कित्ता पलटा खावै अर कांई कांई कैवै। आज ई राजस्थानी अखबार साव कमती छपै अर छपै जिको घर-घर कोनी पूगै। ओ लेखक राकांवत जी रो राजस्थानी रै खातै अणमाप प्रेम रैयो कै उपन्यास मांय बै राजस्थानी खबर नै अखबार रै फ्रंट पेज माथै इण ढाळै दरसावै- ‘‘रामू तो न्हा-धोय’र अखबार बांचण नैं बैठग्यो, तो ऊपरलै पानै पर एक जाग्यां नूंवी खबर छप्योड़ी ही, ‘नबाबां रै स्हैर में एक औरूं मीरां’। आपरी बेटी मीरां रै नांव सूं जुड़्योड़ी खबर रामू नीं पढ़ै, आ किंया हो सकै। खबर इण भांत ही, ‘लखनऊ, 6 अप्रैल। डॉक्टर स्नेहलता राजपूत री रविवार री रात अठै भगवान श्रीकृष्ण सागै सगाई संपन्न होयगी। स्नेहलता री योजना नंवर में ब्याव करण री है।’ आ खबर पढ़तां ई रामू सोच्यो कांई कृष्णजी पाछा अवतार लेय लियो?’ (धरती रो सुरग, पेज-47)
हरेक लेखक रो आपरो मोह हुया करै अर देवदास राकांवत रो मोह आपरी दुनिया सूं हुवणो वाजिब है। राजस्थान री रळियावणी संस्कृति जूनै टैम मांय जित्ती अर जिण ढाळै ही बा आज बित्ती उण रूप मांय नीं मिलै। इण खातर ओ घनो जरूरी है कै जूनी बातां अर यादां नै किणी नै किणी रूप मांय सबदां सूं अंवेर लेवां। जूनै मिनख पखती जूनी बातां री पोटळी बेसी हुवै अर उण नै खुद रै बगत री हर ई आवै। ‘बां दिनां सस्तीवाड़ो हो। एक रुपयै री ढाई सेर कणक मिलती। तीस-पैंतीस रुपियां भरी सोनो हो।’ (पेज-110) बीकानेर रै पुराणै बगत अर जीया-जूण नै साकार करती पोथी ‘होम करतां हाथ बळै’ है जिण मांय जूनी बातां अर यादां री हेमाणी मिलै। इण पोथी लेखक आपरी बात कैवतां लिखै- ‘बात आयां जद बां दादीजी रै कीरत रा कमठाण म्हैं बास-गळी अर जाण-पिछाण रा मिनख-लुगायां अर टाबर-मोट्यारां रै आगै बणावतो-बतावतो तो बां मांय सूं घणकरां री आ ई मनसा रैयी कै आं सगळी बातां नै एकठ कर’र बांरी ओळूं में एक पोथी लिखो, जिणसूं ऐड़ै बडेरां रा ओपता उणियारां कदैई अलोप नीं हुवैला अर बै आवण वाळी पीढ़ी सारू प्रेरणा रा स्रोत बण जावैला। आं सुभचिंतकां री मनसा अर दादी री चितार तो नितार है- होम करता हाथ बळै।’ (अंतस री दो ओळ्यां : होम करतां हाथ बळै)
होम करतां हाथ बळै पोथी रो सिरै नांव पूरै कथानक सूं मेळ नीं खावै। उपन्यासकार आपरी बात मांय तो खास चरित्र दादीसा रो कैवता थका उपन्यास रचण री बात कैवै। पण सिरैनांव सार बात करां तो बो जिण होम री बात उपन्यास री छेहली ओळ्यां मांय संकेत रूप करै बो अकारथ मान सकां। उपन्यास तो इण ओळी माथै ई पूरो हुय जावै- ‘लै बैन, म्हैं थारै जीव री सौगन खाय’र कैऊं हूं, थारो कैवणो जीवूंला जित्तै नीं लोपूंला।’ (पेज-159) इण पछै री आं ओळ्यां नै फगत सिरैनांव नै साचो करण खातर लेखक मांडै- ‘इण पछै बं दोनां एक सागै कैयो- प्रेम! देख, म्हां तनै कैयो हो नीं होम करतां हाथ बळ जावैल। बळग्या नीं हाथ।/ आ बात सुण्यां प्रेम नैं थोड़ो चेतो बापरियो। बा थोड़ी मुळक’र कैयो- हाथ बळता रैसी, ऐड़ा होम होवतां आया है अर आगै ही होवता रैसी।... ऐ होम होता रैसी, हाथ बळता रैसी.... कैंवती थकी प्रेम आपरी आंख्यां मींचली।’ (पेज-160)
अठै सवाल ओ पण साम्हीं आवै कै उण उपन्यास रो नायक कुण है तो मोटै रूप मांय दादी रो चरित्र साम्हीं आवै पण उण नै नायक नीं कैय सकां। गवाड़ी मांय दादी खूब चावी ही अर उण नै करता-धरता तो कैय सकां, जिण सूं उपन्यास रो नायक हरियो अर नायिका प्रेम नै सगती मिलै। ओ होम असल मांय एक बांझड़ी नै बीजदान रो है। इण बात री सरावणा करी जावणी चाइजै कै घणै फूटरै तरीकै सूं लेखक इण काम नै ‘नियोग’ प्रथा दांई उपन्यास मांय दरसावै। नायक हरियै रो बाळपणै रो प्रेम गोरकी नांव री छोरी सूं हुवै अर उण कथा नै ई फिल्मी अंदाज मांय लेखक दरसावै। लेखक गोरकी रै ब्याव री टैम उण अर हरियो रै पावन प्रेम रो दरसाव जिण ढाळै राखै बो पाछै हरियै रै ब्याव पछै भळै राखै। जाणै गोरकी री आत्मा हरियै री नूंवी परणी प्रेम मांय रळ जावै। आदमी अर लुगाई खातर समाज रै दोगलै बरताव पेटै हरियै नै प्रेम उण सुहागण रात री एकर भळै उपन्यास मांय हर करावै। होम करतां हाथ बळै रो नारी चरित्र प्रेम जाणै धरती रो सुरग री मीरा दांई सवायो है।
जूनी रीत अर रिवाज सूं झिल परा ई देवदास राकांवत रै उपन्यासां मांय केई क्रांतिकारी विचार मिलै। जियां होम करतां हाथ बळै मांय किणी लुगाई रो आपरै आदमी सूं किणी दूजी लुगाई खातर ‘बीजदान’ करणो अर उण जमानै मांय बिना दायजै रै व्याव री आ बात देखो- ‘मारजा थोड़ी ताळ सोच्यो- मांग तो सैं सूं सैंठी आई है कै दायजो लेवां कोनी। म्हैं तो बीनणी नै खाली एक बेस में ई लेय’र आवांला। जांन में आदमी सौ सूं बत्ता एक भी नीं आवैला अर बेस-बागा री रीत ई हटा दो। आपां नैं तो ब्याव साव सादै ढालै सूं करणो है सा।’ (पेज-111)
देवदास राकांवत री उपन्यास कला मांय सवळ पख भासा नै मान सकां। बै लोककथा रै अंदाज नै ठेठ तांई निभावै अर बडेरै दांई बात नै मांड’र विगतवार उपन्यासां मांय बतावै। बुणगट मांय कथा रो रस अर संजोग सूं चरित्रां रो विकास देखणजोग कैयो जाय सकै। परंपरा मांय जिको सवायो है उण नै बै बचावण रा जतन करै अर सळयै-गळयै नै समाज सूं बारै करै। अठै आधुनिकता नै अंगेजण री बात तो है पण चोखै संस्कारां अर सवाई सीख भेळै। इण बात री खुलै मन सूं सरावणा हुवणी चाइजै कै देवदास राकांवत रा केई-केई चरित्र बेजोड़ है। बै उपन्यास साहित्य नैं जोरावर, पदमा, गाय-चंवरा, छोरी पेमल, नाथू जाट, मीरां, दादीसा, हरियो, प्रेम, पूजा, सेठजी जैड़ा ठाह नीं कित्ता-कित्ता सांठवा चरित्र दिया, जिका सूं एकर जे आपां अरू-भरू हुय जावां तो बिसराया बै कोनी बिसरै। आ केई खासियतां रै पाण उपन्यास-साहित्य मांय उपन्यास री लीकआळी पोथ्यां रै बरोबर आ पोथ्यां रो जस जमानो बखाणैला।
• जोरावर-पदमा (उपन्यास) देवदास राकांवत
संस्करण- 1989, 2006; पाना- 160 ; मोल- 125/-
प्रकाशक- श्री भैंरूंदान छलानी स्मृति प्रन्यास, दियातरा (कोलायत, बीकानेर)
• गाव! थारै नांव’ (उपन्यास) देवदास राकांवत
संस्करण- 2006; पाना- 80 ; मोल- 75/-
प्रकाशक- प्रख्यात प्रकाशन, बीकानेर
• मुळकती मौत कळपती काया (उपन्यास) देवदास राकांवत
संस्करण- 2007; पाना- 104 ; मोल- 50/-
प्रकाशक- राजस्थानी साहित्य एवं संस्कृति जनहित प्रन्यास, बीकानेर
• धरती रो सुरग (उपन्यास) देवदास राकांवत
संस्करण- 2008; पाना- 200 ; मोल- 150/-
प्रकाशक- स्वामी रांकावत युवा मंच, बीकानेर
• होम करतां हाथ बळै (उपन्यास) देवदास राकांवत
संस्करण- 2010; पाना- 160 ; मोल- 150/-
प्रकाशक- राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर
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