आधुनिक उपन्यास लेखन री थरपणा / नीरज दइया
दूजै उपन्यास पेटै संजोग इण ढाळै बण्यो कै बरस 1956 में श्रीलाल नथमलजी जोशी नै टैसीटोरी बाबत जाणकारी हुई अर बां घणी सोध-खोज पछै दूजो उपन्यास ‘धोरां रो धोरी’ बरस 1962 मांय पूरो करियो, जिको छव बरस पछै राजस्थानी साहित्य अकादमी (संगम) उदयपुर सूं छप’र बरस 1968 मांय साम्हीं आयो। राजस्थानी विद्वान टैसीटोरी खातर जोशी जी रै काळजै अणमाप सरधा ही। बै आपरी एक कहाणी ‘कमला रो बाप’ मांय एक प्रसंग पेटै लिखै- ‘एक दिन हूं कमला नै लियां इटलीवासी राजस्थानी भासा रै धुरंधर विद्वान स्व. डाक्टर टैसीटोरी री समाधी देखन नै गयो परो। पब्लिक बाग सूं निकळतै ई डावै हाथ खानी बीकानेर में टैसीटोरी री समाधी है। कमला नै म्हैं टैसीटोरी बाबत केई बातां बताई जद बीं री इटली रै विद्वान खातर घणी सरधा हुयगी।’ (श्रीलाल नथमलजी जोशी रचना संचयन : पेज-468)
जोशी जी रो मानणो हो कै राजस्थानी भासा दस हजार घोड़ा री सगती सम्पन्न भासा है। बै चावतां तो हिंदी-अंग्रेजी में लिख सकता हा पण बां आखी जूण राजस्थानी री सेवा करी। राजस्थानी पेटै बां री भावना कहाणी ‘मंगळ बेळा में आंसू’ मांय इण ढाळै प्रगट हुवै- ‘देख रामा, तूं जद जावै तो हरनाथ नै एक बात और अखरायै, म्हारै नांव सूं कै पैली तो तूं कागद राजस्थानी में लिख्या करतो अर अबै तूं कागद हिंदी अर कदेई अंग्रेजी में लिखै। गांव भूलग्यो, बाप भूलग्यो, पण अबै तूं थारी मातभासा नै ई भूलग्यो। रामा तूं साफ कैय देईजै कै मनै कागद लिखै तो राजस्थानी में लिखै, नई तो हूं बिना कागद ई सार लेसूं, तू थारै है जठै राजी खुसी रै।’ (पेज-496) इणी ढाळै जोशी जी उपन्यास ‘धोरां रो धोरी’ मांय बीकानेर रै महाराजा गंगासिंह अर टैसीटोरी रै संवाद मांय महाराज सूं कैवावै- ‘थांनै मालम है म्हारी कचेड़्यां में भी सगळो काम राजस्थानी अथवा मारवाड़ी भासा में हुवै। म्हारो इसो विचार है कै राजस्थानी री पोथ्यां त्यार हुवते पाण हूं इणां नै इस्कूलां रै कोर्स में राखदूं।’ (श्रीलाल नथमलजी जोशी रचना संचयन : पेज- 259)
‘धोरां रो धोरी’ उपन्यास पछै बां तीजो उपन्यास ‘सरणागत’ ई लिख्यो पण छपण नै चौथो उपन्यास ‘एक बीनणी दो बीन’ (1973) साम्हीं आयो। ओ एक उल्लेखजोग दाखलो है कै ‘सरणागत’ उपन्यास बरस 2004 मांय साम्हीं आयो। उपन्यासकार आपरी बात उपन्यास मांय ‘ओळखाण’ सिरैनांव सूं मांडी- ‘इयां तो आ पोथी 1964 में लिखीजगी ही अर ओजूं ताईं इणरी पांडुलिपि अलमारियां में बंध पड़ी रैयी। साहित्यकार खातर पोथी बेटी ज्यूं हुवै। चाळीस बरसां री बेटी जे घर में कंवारी बैठी हुवै तो माईतां नै नींद कियां आवै, आप सोच सको हो। दो बरसां पैली जद बीकानेर रै रामपुरिया ट्रस्ट सूं इण पांडुलिपि माथै पुरस्कार अर शब्दर्षि सम्मान मिल्यो तो सोच्यो अबै छोरी रा हाथ पीळा कर देवणा चाइजै।’
घणै रचनाकारां साथै इण ढाळै रा बात देख सकां कै उणां री रचनावां रो टैमसर प्रकासन नीं हुयो। प्रकासन हुवै तो कूंत कोनी हुवै। हुवणो ओ चाइजै कै चावा-ठावा रचनाकारां री जूनी पोथ्यां दूसर छपणी चाइजै, बां री ग्रंथावली साम्हीं आवणी चाइजै। श्रीलाल नथमलजी जोशी रो सौभाग कै बां रै कांता पारीक अर प्रभा पारीक सरीखी बेटियां है। दोनां नै घणो-घणो जस अर रंग कै वां रै हुयां ‘श्रीलाल नथमलजी जोशी रचना-संचयन’ रै मारफत पांच पोथ्यां पाठकां तांई दूसर पूगी। इण संचयन मांय जोशी जी रा तीन उपन्यास, एक रेखाचित्र संगै ‘सबड़का’ अर एक कहाणी संग्रै ‘परण्योड़ी-कंवारी’ आपां एकठ देख सकां। इण आलेख मांय उपन्यास पेटै दाखला इणी रचना-संचयन सूं लिया है।
एक वाजिब सवाल- ‘श्रीलाल नथमलजी जोशी फगत चार उपन्यास ई क्यूं लिख्या?’ रो उथलो-‘राजस्थानी मांय उपन्यास छपण रो सुभीतो कोनी।’ दूजो- ‘कूंत-आलोचना री कमी।’ स्यात इणी कारण जोशी जी रो उपन्यास लेखन सूं मोहभंग हुयग्यो। नतीजो- बां ऊमर रा लारला लगैटगै चाळीस बरसां तांई कोई उपन्यास नीं लिख्यो। लेखक रै सबदां मांय- ‘सरणागत उपन्यास रो आधार हम्मीरायण है। जे हम्मीर महाकाव्य नै आधार बणावतो तो उपन्यास रो कलेवर टणको बण जावतो अर राजस्थानी में मोटी पोथ्यां सारू ओजूं वातावरण त्यार हुयो कोनी। हम्मीरायण में प्रसंग तो एक ई है, फेर भी अनेक विषयां रो सांगोपांग चित्रण हुयो है।’
मुरलीधर व्यास री भोळावण सूं उपन्यास लिखणो चालू करणिया जोशी जी रा च्यार उपन्यास असल मांय च्यार औपन्यासिक धारावां का कैवां च्यार न्यारा-न्यारा रूपाळा रंग है। विधवा ब्यांव नै लेय’र सामाजिक, ‘हम्मीरायण’ काव्य-ग्रंथ नै आधार बणा’र ऐतिहासिक, डॉ. टैसीटोरी रै जीवण माथै जीवनीपरक अर महाकवि टेनीसन री जगचावी कविता ‘ईनक आरडन’ बाबत कलात्मक उपन्यास लिखणो एक बेजोड़ इतिहास रचणो है। अबै ओ पण सवाल कै उपन्यास ‘सरणागत’ जद पैली लिखीजग्यो फेर उण सूं पैली जोशी जी ‘एक बीनणी दो बीन’ उपन्यास साम्हीं क्यूं लाया? विचार करिया ठाह लागै कै ओ इण बात रो परतख प्रमाण मानीजैला कै बै आपरै टैम मांय राजस्थानी पेटै घणै आगै री सोच राखणिया हा। जोशी जी मुजब- ‘ईनक आरडन री आं विसेसतावां अर राजस्थानी में विदेसी साहित्य-कथा नै लावण रै ख्याल सूं एक बीनणी दो बीन रो राजस्थानी में जलम हुयो अर आ पोथी आपरै हाथ में आई।’ (एक बीनणी दो बीन : घर विध री)
अगीवाण रचनाकार श्रीलाल नथमलजी जोशी रै मन मांय राजस्थानी भासा अर साहित्य रै बधापै नै लेय’र घणो लगाव हो। बै हिंदी-अंग्रेजी रै अलावा गुजराती, बंगाली, असमिया आद केई भारतीय अर विदेसी भाषावां रै आधुनिक साहित्य सूं जुड़ाव राखता थका लूंठो सोच राख्यो कै राजस्थानी गद्य साहित्य रो विगसाव हुवै। ‘सरणागत’ री भूमिका में बां लिख्यो- ‘वास्तविक कविता कोरणी रो सोरो काम कोनी, पण फेर भी गद्य री तुलना में पद्य लिखण कानी साहित्यकारां रो ध्यान बेसी है। आ बात राजस्थानी नईं, सगळी भासावां माथै लागै। हकीकत आ है कै जे आपां किणी भासा रै साहित्य नै समृद्ध बणावणो चावां तो आपांनै उणरै गद्य रो भंडार भरणो पड़सी।’ बां रो मानणो हो सवधानी सूं किणी सबद रो प्रयोग करणो चाइजै। इणी खातर जोशी जी लोककथात्मक भासा-सैली रै साम्हीं आधुनिक जीवण-सैली सूं जुड़ी भासा नै ओळख परा उण रै विगसाव सारू घणो काम करियो। इणी भासा रो रूप आगै पांगरतो अर आवतै साहित्य नै प्रभावित करतो निजर आवै।
‘आभै पटकी’ पछै जोशी जी रै रेखाचितरामां री पोथी- ‘सबड़का’ साम्हीं आवै। पण बां रो व्यंग्यकार अर रेखाचितराम लेखक रो रूप उपन्यास मांय खास तौर सूं देख-परख सकां। किसना अर मोवन री इण कथा मांय खास पात्र रामचंदजी, समाज सुधारक, तीजां आद रा चरित्रां नै किणी रेखाचितराम दांई रचता थका जाणै बांचणिया रै साम्हीं ऊभा कर देवै। ठौड़ ठौड़ सामाजिक पाखंड-ढोंग मांय व्यंग्य रा सांतरा सुर ई ओळख सकां। आजादी पछै रै समाज मांय तो घणी रूढियां ही। उण बगत समाज मांय विधवा-व्यांव कोई सरल काम कोनी हो अर आज ई कोनी। ओ बो टैम हो जद सिरपंचां रा विचार हा- ‘आपां री जात में इसो ब्याव आज तईं नईं हुयो। ओ धाप’र हळको काम है अर सासतरां रै विरूद्ध है।’ ’ (आभै पटकी : पेज-86) उण दौर मांय नूंवी पीढी रा विचारा सरावणजोग हा। बात रो काट बात सूं हुवै, सावळ पैरवी बिना कोई बात आगै नीं बध सकै। किसगोपाल रा जसजोग विचार उपन्यास मांय मिलै- ‘एक आदमी री जद लुगाई मर जावै है तद कांई आपां आ बात मान’र धीरज राखां कै करमां में रंडवो रैवणो लिख्योड़ो है अबै ब्याव ना करो। या आ भी कोई जरूरी कोनी कै जिको दूसर ब्याव करै उण री दूसरी लुगाई भी मर जावै। इसा घणा ई दूजवर है जिका आणंद सूं आपरो जीवण बिता रया है। फेर कांई कारण कै लुगाई नै ओ अधकार नईं।’ (आभै पटकी : पेज-82)
उपन्यास केई रूढियां रो खंडन करतो थको विधवा-ब्यांव रा अलेखू पंपाळ बखाणै। ‘देवीलालजी घोर दुखी हुयग्या। पिरथम तो बै किसना रै दूसर ब्याव सूं ई सैमत नईं हा, श्रीवल्लभ रै घणै समझावणै सूं, खंच करण सूं, हंकारो भर लियो। अबै भतमालजी रो रुख सुण’र तो उणां रो विचार पाछो फुरण लागग्यो- क्यूं फालतू ब्याव रो टंटो कर’र भूंड रो ठीकरो माथै ऊपर धरूं, अर जणै जणै सूं माथो लगावणो पड़ै जिको पाखती में।’ (आभै पटकी : पेज-85) लेखक उपन्यास री नायिका किसना रै मामलै मांय बाबो जी री अग्गमवाणी नै बिचाळै बखाणै अर सेवट उण नै सांच बता’र जाणै ‘हस्तरेखा-विज्ञान’ माथै खुद री आस्था दरसावै। बखाण मांय भावुकता ई केई ठौड़ देख सकां। एक ठौड़ किसना तुळछी नै रोवती-रोवती कैवै- ‘काढलो, जचै जित्ती गाळ्यां। विधवायां देराण्यां-जेठाण्यां री गाळ्यां सुणन खातर ई हुवै। आभै पटकी अर धरती झाली कोनी। बारै थकां कदेई होट रो फटकारो ई दियो हुसी, पण जिकै रो धणी धोरी नईं हुवै उण पर सगळा सेर हुय जावै। एक खसम नई हुवै जद सैंस खसम हुय जावै।’ (आभै पटकी : पेज-67) ऐ ओळ्यां विधवा-जूण रो साच है जिण मांय लुगाई री लाचारी भेळै लोकाचार ई खास उल्लेखजोग कैयो जाय सकै। कैयो जाय सकै कै ‘आभै पटकी’ उपन्यास आपरै जुग मुजब घणै आगै री सोच राखणियो उपन्यास हो।
दूजै उपन्यास ‘धोरां रो धोरी’ रै सिरैनांव री बात करां तो इण पोथी मांय खुद टैसीटोरी री आत्मा री आवाज बोल’र लेखक लिखै- ‘राजस्थान रै धोरां री धरती में बूरियोड़ै अमोलख रतनां नै बारै काढर प्ररकास में लावणियो तूं है, तूं है, तूं रात-दिन काम कर। जे तैं ओ काम अधूरो छोड़ दियो, तो फेर पाछो कद सरू करियो जासी, आ अनिस्चित है। तूं राजस्थान रै धोरां रो धोरी है, तूं धोरां रो धोरी है।’ (धोरां रो धोरी : पेज-285) टैसीटोरी रै चरित्र नै उपन्यास रो विसय बणावणो लेखक री आस्था नै उजागर करै। लेखक श्रीलाल नथमलजी जोशी टैसीटोरी रै मिस राजस्थानी री खिमता अर अणमोल खजानै रो बखाण करै। उपन्यास मांय एक ठौड़ टैसीटोरी कैवै- ‘डोरोथी! सुण, हूं तनै समझाऊं- हूं आपेई कैवतो तो कोझो लागूं, पण फेर भी कैवणो पड़ै- भगवान मनै दूर देखणी निजर दी है। मनै अठै बैठै नै, हथाळी में आंवळो दीसै ज्यूं, साफ-साफ दीसै है कै भारत रै राजस्थान प्रांत में डिंगळ-भासा में अणगिणती रा ग्रंथ-रतन धरती रै गरभ में पड़्या है, अथवा रेत में रगदोळीजै है। एक लिखार अथवा कवि रै हाथ-लिख्यै ग्रंथ री रिच्छया करणी कवि नै मरण सूं बचावण रै बराबर है, अर मालम हुवतां थकां ग्रंथ रो नास हुवण देवणो कवि री हित्या बराबर है।’ (धोरां रो धोरी : पेज- 245) आ सगळी बातां मांय टैसीटोरी रै मारफत राजस्थानी रो बखाण हुवै।
‘धोरां रो धोरी’ उपन्यास मांय लेखक ठेठ तांई खुद रो उपन्यासकार रूप बणायो राखण रा जतन करै फेर ई कठैई-कठैई भासा-बुणगट मांय जीवनी-लेखक री मिलीभगत निजर अवै- ‘जोधपुर रै देवकरणजी बारठ नै टैसीटोरी आपरै कनै काम करण सारू राख्या, पण टैसीटोरी कनै आदमी बौत कम टिकता। देवकरण जी भी छोड़नै गया परा। उणां नै फेर बुलावण री बात लिखतै टैसीटोरी लारै जावते लिख्यो है- मनै जित्तो प्रेम म्हारी देस-भासा इटलियन सूं है, उण सूं भी इधको मारवाड़ी सूं है। अण में बळ नै तेज है, अर बोहळै परवार री तथा मीठी है।’ (धोरां रो धोरी : पेज- 255), ‘पब्लिक बाग सूं अगूणै छेड़ै जठै पैली धोळै दुपारै रोही रा जिनावर टैल्या करता, बठै माथां ऊपर रंग-रंगीला, भांत-भांत सूं बांध्योड़ा फैंटा अर बगलबद्यां तथा अचकनां पेरै, डागां लियां, खांधां माथै बंदूकां सजायां, ऊंठां नै अनेक भांत सिणगारे, गैणा पैराये च्यारूंमेर रा राजपूत सिरदार बीकानेर पूग्या भाई कठै ई इसी नईं हुवै कै रजपूत घराणै री डावड़ी जाटड़ो ले जावै।’ (धोरां रो धोरी : पेज-276) अर ‘1919 रे 27 सितम्बर नै टैसीटोरी भारत खातर पाछो टुरग्यो। उदासी छायोड़ै टैसीटोरी सूं समुद्री-जात्रा रो भार झल्यो कोनी, अर बो जाज में ई, बेमार पड़ग्यो। 5 नवम्बर नै बीकानेर पूग्यो जित्तै डाक्टर री हालत खासा खराब हुयगी। गळै में पीड़ बधगी अर फेफड़ां में पाणी भरीजग्यो। फेर भी इसी हालत में डाक्टर आपरी डायरी में लिख्यो- इण कमरै में बित्योड़ा थोड़ा-सा’क क्षण म्हारै खातर बरस बण जावै।’ (धोरां रो धोरी : पेज-305)
ओ उपन्यास आपरै घटना-प्रसंगां रै पाण आ बात पण बतावै कै इटली रा धुरंधर विद्वान टैसीटोरी राजस्थानी रीत-रिवाज अर संस्कारां री लूंठी जाणकारी अर समझ रखता हा। बै दयावान अर कंवळै हियै रा मिनखपणै सूं भरियोड़ा बेजोड़ विदेसी मानवी जरूर हा, पण एक संकळप पेटै आखी जूण होम दीवी। ऊमर कम लिखा’र लाया अर बीकानेर मांय ई छेकड़ली सांस लीवी। टैसीटोरी री समाधी रो जिकर जोशी आपरै कथा-साहित्य मांय ठौड़-ठौड़ करियो है। उपन्यास री छेहली ओळ्यां है- ‘इण मौकै 15-15 बरसां रा तीन टाबर हाजर हा। बै एक-दूजै रै सामा झाक्या। मन में संकळप लियो कै आपांनै ओ काम करणो चाईजै। फेर टैसीटोरी री समाधी मथै जायर माथो टेक्यो। काम री सगती अर खिमता मांगी, अर चौगड़दै राजस्थानी री जोत जगावण रो व्रत लेयर बारै आयग्या।’ (धोरां रो धोरी : पेज-306) अठै इण ओळी मांय जोशी जी रो अरथाव 15-15 बरसां री किणी गणित सूं नीं हुय’र इयां लखावै कै राजस्थानी रै कामां मांय आगीवाणी जिका तीन नांव गिणाइजै, उण त्रिमूति सूं हुय सकै। ओ एक संकेत ई मान सकां कै नूंवी पीढी नै इण ढाळै रै कामां नै संभाळणा चाइजै।
उपन्यास ‘एक बीनणी दो बीन’ री केई खासियतां ही। पैली तो आ ई कै किणी विदेसी कविता री तरज माथै उपन्यास लिखणो। हरेक अध्याय रो न्यारो-न्यारो सिरैनांव राखणो। राजस्थानी समाज हुवै भलै देस दुनिया रो कोई पण समाज हुवो सगळी ठौड़ मिनख अर लुगाई जात रो मन कंवळो हुवै अर उण मांय प्रेम किण ढाळै आपरा रंग उजागर करै। छोरी किणी पण देस री हुवो बा कीं संस्कारां सूं बंध्योड़ी हुवै। इणी ढाळै कोई लुगाई भलाई बा कठैई री हुवो उण खातर आपरै पैलै प्रेम नै भूलणो संभव कोनी हुवै। जैड़ी केई-केई बातां इण उपन्यास सूं घणै सांतरै रूप मांय साम्हीं आवै। ‘.... पण हूं एक बात पूछूं- एक लुगाई दूसर प्यार कर सकै? तूं आ सोचै कै म्हैं ईनक नै प्यार करियो, ज्यूं ई हूं तनै प्यार कर सकूंली?’ (एक बीनणी दो बीन : पेज- 375) ऐनी अर फिलिप बिचाळै इण ढाळै री बात केई केई बातां अर सवालां नै आपां साम्हीं राखै। ऐनी ईनक री उडीक करती करती थकै कोनी अर दूजै पासी फिलिप ई आखी जूण उडीक ई तो करतो रैयो है। बाळपणै रो खेल जाणै जूण मांय फेर फेर बां नै दोधाचींती मांय घाल देवै। ऐनी फिलिप सूं ब्याव करण री मियाद बधावती जावै। साल पछै ई उण महीनां रा कोल करिया अर फेर ई लगोलग बा दोधाचींत मांय रैयी। आ इण बात री साख मान सकां कै बा ईनक सूं अणथाग प्रेम तो करै ई करै, पण एक लुगाई खातर असल मांय दूजै प्रेम नै स्वीकार पेटै काया नै रोसणो ई दरसावै। साथै ई साथै इण कथा मांय तकदीर रो हाथ ई केई जागा देख सकां।
उपन्यास मांय राजस्थानी समाज साम्हीं विदेस संस्कार-विचारां रो खुलोपण दरसावण रो ई एक जतन है। ऐनी आपरी मा नै कैवै- ‘म्हां आपस में गळबाखड़ी घालर चूमा लिया।’ तद मा कैवै- ‘आ तो साधारण बात है बेटी। इण सूं कोई ईनक सूं थारो ब्याव थोड़ी ई हुयग्यो।’ (एक बीनणी दो बीन : पेज- 336) कथारस सूं भरपूर जोशी जी रै हरेक उपन्यास मांय बांचणियां नै बांधण री खिमता है। इंग्लैंड रा ईनक, आर्डन अर फिलिप री प्रेम-तिकड़ी नै राजस्थानी रंग देवणो कालजयी बात मान सकां। सगळा पात्र अर आखो वातावरण इसाई परिवार हो दरसावतां थकां इण उपन्यास मांय केई ठौड़ चर्च मांय बिराज्या गॉड (ईसा मसीह) नै ‘भगवान’ सबद सूं प्रगट करण री बात ठीक कोनी लखावै। ‘भगवान’ सबद मांय हिंदू समाज अर लेखक रो उणियारो आवै जद कै सेवट मांय ईनक जिण रो बदळियोड़ो नांव नेटिव हो, बो मरियम नै उणरी बात गुपत राखण खातर ‘बाइबिल’ री सौगन दिरावै। इण ढाळै बात केई सबदां पेटै ई करी जाय सकै।
‘सरणागत’ रो मूळ कथा तो बस इत्ती-सी’क है कै दिल्ली रै बादस्या अलाउद्दीन अर रणथंभोर रै राजा हम्मीर बिचाळै जबरो जुध हुयो। इण जुध रो कारण हो मुगल सिरदार मोहम्मद साह अर मीर कामरू जिका बादस्या रा कोप-भाजन हा, उणां नै हमीर रो सरण देवणो। ओ उपन्यास लिखीज्यो जद छप जावतो तो बात न्यारी हुवती। उण बगत गिणती रा उपन्यास अर उपन्यासकार हा। इतिहास नै विसय बणा’र उपन्यास लिखणो बगत री मांग ही। पण होणी नै नमस्कार, ओ संजोग कोनीं बैठ्यो। अठै अबै ओ सवाल ई करीजै सकै कै इण उपन्यास नै चाळीस बरसां पैली री दीठ सूं देख्यो-परख्यो जावै का इक्कीसवीं सईकै मांय राखता थकां। बियां जोशी जी री उपन्यास-जातरा नै जाणण-समझण पेटै ओ एक महतावू उपन्यास मान सकां। इण मांय मध्यकालीन गद्य री ओळ आवै तो साथै ई चाळीस बरसां पैली री आधुनिक गद्य री जमीन।
उपन्यास मांय ‘सरणागत’ रै घरम रो सांगोपांग बखाण मिलै, साथै-साथै हिंदू-मुसळमान समन्वय-सदभाव, एकता आद केई बात ई मिलै। इक्कीसवै सईकै मांय ई लुगाई री आजादी अजेस अधूरी मानीजै। बा बंधणां मांय जकड़ीज्योड़ी है। आदू असूलां री बात करां तो ओ उपन्यास जोहर रै मारफत लुगाई जात रै मान-सम्मान अर स्वाभिमान रो दाखलो है। उपन्यास मांय बादस्या री राणी रो एक ठौड़ ओ कैवणो- ‘बादस्या म्हारै सरीर नै जीत सकै, म्हारो मन जीत सकै कोनी।’ (सरणागत : पेज-21) लुगारै रै हक अर अधिकारां पेटै घणी मोटी बात रो साम्हीं आवणो है। राणी ई अंतपंत एक लुगाई हुवै अर उपन्यास राणी रै मरफत एक लुगाई री ई नीं, आखी लुगाई-जात री बात कर रैयी है। मूळ कथा बिचाळै केई-केई संकेत अर छोटी-छोटी कथावां उपन्यासकार बिचाळै दिया करै जिण माथै बांचणियां नै सोचणो हुवै।
उपन्यास री विगतवार बात करां तो इण रै पैलै अध्याय मांय बाबो जी जिका राजा हम्मीर दे रा राजपुरोहित हा, उणा रै मारफत सरणागतां रो बचाव अर सरण जावण री सीध करीजी है। बाबो जी रो चितराम अर कथा रो विगसाव बांचणियां नै बांध लेवै। उपन्यास मांय राजा हम्मीर अर जाजदेव रो चरित्र ई प्रभावित करै। छेकड़लै आध्याय मांय सुलतान अर भाट री बंतळ जसजोग कैयी जाय सकै। पूरी कथा नै दस अध्याय मांय उपन्यासकार राखै पण पैलो, दूसरो अर सातवो अध्याय तो खासो लंबो हुयग्यो अर बाकी रा छोटा-छोटा। उपन्यास रै पेज 48 माथै उपन्यासकार लिखै- ‘इयां कैय’र राणी खाली म्यान-म्यान पेई में धरदी अर चमेली री निजर बचाय’र कटार बारै राखली। पेई री चाबी चमेली नै देय दी।’ इण पछै जद चाबी चमेली नै देय दी तो पेज 50 माथै ‘राणी कटार नै म्यान में घालदी। राणोजी बोल्या- लावो, म्हांनै ई देखाळो तो सरी कटार।’ अटपटी ओळी आवै। इण पछै- ‘चमेली बारणो खड़कयो।’ बांच’र लखाबै कै पेई राणी बिना चाबी रै कियां खोली।
किणी रचना मांय कथ्य री विविधता अर न्यारी न्यारी दीठ सूं उपन्यास रा खाना भरण पेटै श्रीलाल नथमलजी जोशी रो पूरो काम जसजोग मानीजै। कैवणो पड़ैला कै बै राजस्थानी उपन्यास री न्यारी-न्यारी धारावां नै पोखता थका नूंवी गद्य-भासा अंगेज’र उण नै नूंवा रंग देवै। बां री भासा मांय बीकानेरी लोक भासा अर हिंदी भासा रै केई सबदां नै जरूरत मुजब राजस्थानी रंग मांय ढाळण रा जतन ई देख सकां। बां रा च्यारू उपन्यास इण बात री साख भरै कै बै आपरै समकालीन रचनाकारां सूं सवाई दीठ राख्या करता हा। बां पाखती देस-दुनिया रै बदळतै साहित्य-संसार री जाणकारी ही अर बै राजस्थानी नै लेय’र खुद नै उण दौड़ मांय भेळै कर राख्यो हो। बां रो कथा-साहित्य इण बात रो प्रमाण है कै देस-दुनिया रो कोई पण रंग अर संवेदना अंगेजण-उकेरण खातर राजस्थानी एक भरी-पूरी अर सिमरध भासा है।
• श्रीलाल नथमलजी जोशी रचना संचयन
संपादक- कांता पारीक, प्रभा पारीक
संस्करण- 2018; पाना- 528 ; मोल- 900/-
प्रकाशक- केसर प्रकाशनालय, बीकानेर
• सरणागत (उपन्यास) श्रीलाल नथमलजी जोशी
संस्करण- 2004; पाना- 96; मोल- 80/-
प्रकाशक- केसर प्रकाशनालय, बीकानेर
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