तूट्योड़ा सुपनां री संभाळ / डॉ. नीरज दइया
दूजो दाखलो-
- क्यूं? जूण मांय जे सुपनां नीं रैवै तो बा रीती-जिंदगानी एक मोटो भार बणनै रैय जावै।
-ना। सुपनां लेवणियां री जूण ई भार बण जावै है! जिका किणी भांत रा सुपनां नीं लेवै, बै घणा सुखी रैवै। पण जिका सुपनां लेवै अर बै पूरा नीं होवै तो बां री आखी जूण ई आंसुवां मांय गळ जावै।
- पण कोई मिनख सुपनां नीं लेवै, आ कियां होवण सकै।
‘लालड़ी एक फेरूं गमगी’ अर ‘कुण समझै चंवरी रा कौल’ असल मांय मिनख रै इणी कीं सुपनां रो बहीखातो खोल’र दिखावै। उपन्यासकार सीताराम महर्षि आं दोनूं उपन्यासां रै मारफत मिनखा जूण रै इणी तूट्योड़ा सुपनां री संभाळ करता निजर आवै। सूरज अर नंदा री मुलाकात सिमला मांय हुवै अर बां री जूनी सैंध रै सागै केई-केई कहाणियां निकळै। अठै आधुनिकता आ कै दोय खुलै विचारां रा मिनख-लुगाई सूरज-नंदा आपरै अंतस नै खोल’र एक दूजै साम्हीं राखै जद बै जाणै चकवै-चकवी दांई आपू-आप री घरबीती मांड’र सुणावै। ओ कथा नै कैवण अर कथा नै खोलण रो भाव उपन्यासकार भासा मांय रचै कै बांचणियां नै सोचणो पड़ै आगै कांई हुवैला। केई वेळा कथा रो अंजाम ई आपां नै मालम हुवै पण उण रै कैवणगत मांय बिचाळै इण ढाळै री केई बातां हुवै जिण नै छोड़ी नीं जाय सकै। बुणगट री आ झीणी कारीगरी कविता भेळै नूंवै विचारां रा धारा सूं केई सवालां कानी लेय’र जावै। ऐ बै बातां अर सवाल है जिण सूं मिनख बचणो चावै।
बा छिणेक चुप रैयनै कैयो हो : लोग कैवै है क आपां आपसरी प्रेम करां हां
- तो इण मांय झूठ भी के है? आपणै बिचाळै प्रेम रो ई तो एकलो सगारथ है। प्रेम नी होंवतो तो आपां नित-हमेस मिलता ई क्यूं?
-पण थारो तो ब्याव होयोड़ो है।
रेणु आपरी आंख्यां नै खोल लीनी ही अर म्हारै मूंडै कानी जोंवती बा कैयो हो : लोगां रै प्रेम रो बो मतलब कोनी है, जिको थे कर राख्यो है। लोगां रै प्रेम रो अरथ आपणा डीलां सूं है।
दूजो दाखलो : जिकी पवित्रताई री बात समाज करै है, बा तो सरीर री है अर सरीर तो दोवां रै ईज होवै है। फेरूं एकली लुगाई रो ईज सरीर क्यूं अपवित्र बण जावै?
प्रेम अर अपारै संबंधां री इण गाथा मांय सिमला रै हिंदू होटल मांय रतनगढ़ रो सूरज अर दिल्ली री नंदा दोनू आपरा विगत बखाणै। सूरज आपरी घर-गिरथसी अर रेणु सूं हुयै प्रेम नै मांड’र कैवै। नंदा ई जयगोपाल सूं हुयै प्रेम री कहाणी सुणावै। बा कैवै- ‘सुण जमना, जे एकर जयगोपाल नै म्हारी प्रीत परस लेसी तो बो कदै भूल’र भी सुरसती रो नांव मूंडै नीं घासली। मनै बांध’र राखणो आवै है।’ आ बांध’र राखणो आवै री बात कैवण वाळी नंद ही है जिकी आपरी प्रीत री लालड़ी गम्यां पछै ओ ने’चो करै कै बा कदैई ब्याव नीं करैला। उपन्यासकार कैवणी चावै कै प्रेम सूं इनकार करणो अर एकर तूट्यां पछै फेर इण मारग नीं चालण रो फैसलो करिया पछै ई ओ मारग मिनख-लुगाई नै हेला देय देय’र बुला लेवै। ‘प्रीत नी तो सुख जाणै अर नीं जाणै दुख। प्रीत रा पगां तो हर छिण उछाव री रिमझोळां बाजती रैवै। प्रीत री चाल मांय नंदियां रो वेग र झरणां री चंचलताई किलोळां करै। उणरै कोई बांधणो बंधीज जावै तो दरद पळण लागै। प्रीत नै पालतू बणावण रो अरथ होवै उणरी हित्या। प्रीत तो एक आजाद पंछी होवै, अर उणरी आजाद-उडारां मांय ईज उणरै हियै री सांच रा सुर गुंजारै।’
उपन्यास मांय किणी फिल्म री भांत स्सौ कीं है अर नायिका नंदा सेवट एक ठौड़ सूरज नै भाभी सूं मिलण री बात कैवै। प्रेम अर मन रै साम्हीं समाज री मरजावां जद नंदा सूरज रै प्रेम मांय झिल जावै। ओ बो टैम है जद किणी लेखक सूं भगवान रा भजन लिखण री उमीद रो समाज हो। नंदा रै पिता जी अर सूरज री बंतळ देखो-
- ऐ ई गीत-कवितावां, कहाणी-उपन्यास अर छोटा-मोटा मोटा लेख।
- भगवान रा भजन भी लिखो हो के?
- ना, भजन आद तो कदे कोनी लिख्या।
- आ तो ठीक कोनी। थानै भगवान रा भजन तो लिखणा ई चाइजै। भगवान री किरपा सूं ईज आ धरती इत्ती चोखी अर फूटरी दीसै है।
लखावै सीताराम महर्षि जी री असल जिंदगी मांय बां नै उपन्यास लिखण खातर बिडदावणियो कोई कोनी हो, इणी खातर बां रा फगत दोय उपन्यास साम्हीं आया। विसय अर उण रो पसराव बोल्ड हुवतै थकै घणै ध्यान सूं करीज्यो है। अठै एक बात भळै कै घणाखर राजस्थानी लेखकां नै राजस्थानी सूं अणमाप हेत है कै बै भूल जावै कै ‘राजस्थानी’ अजेस राज-काज री भासा कोनी। हुय सकै कोई अंग्रेजी रो प्रोफसर आपरै कॉलेज मांय अंग्रेजी पढ़ावतो राजस्थानी बोलतो हुवै, पण इण उपन्यास मांय अंग्रेजी प्रोफेसर डॉ. गांगुली रो आपरी क्लास मांय छोरा-छोरियां सूं राजस्थानी बोलणो-बतळावणो सवाल ऊभा करै।
दूजो उपन्यास ‘कुण समझै चंवरी रा कौल’ नायिका प्रधान सामाजिक उपन्यास है। इण मांय गांव रै चौधरी खेताराम री छोरी लाडां अर पुजारी परसाराम रो छोरो चन्नण बाळपणै रा साथी। उपन्यास री नायिका लाडां रो ब्यांव सुगनाराम सूं हुवै अर बो पैली रात सूं ई लाडां अर चन्नण रै संबंधां माथै सक करै। उपन्यास एक छोरी री ब्यांव पछै री जूझ नै जबरदस्त तरीकै सूं साम्हीं राखै। अठै लुगाई री खिमता अर धीजै रो रूप प्रगट हुवै। सीताराम महर्षि री उपन्यास कला मांय बुणगट अर दीठ दोनूं उपन्यास मांय एक ई जोड़ री कैयी जाय सकै। अठै विगत जूण री बात लाडां मांड’र चन्नण नै कथै। ओ कथा-कथण रो भाव ठीमर है। पैलै उपन्यास मांय नायक नायिका दिल्ली हा अर अबै गांव मांय फेर ई बां री बातां अर सवालां मांय मिनखाजूण रा केई केई सवाल महर्षि जी री कलम सूं घणै आगै रा साम्हीं आया। कैवण रो अरथ ओ कै बरस 1971-72 रै पछै जिको कथा-साहित्य मांय बदळाव अर आधुनिकता री रंगत नै स्वीकार करण री बात साम्हीं आवै, उण परंपरा मांय आं दोनूं उपन्यासां नै ई राख्या जाय सकै।
‘कुण समझै चंवरी रा कौल’ मतलब ब्यांव रा बचन लाडां रो परण्यो सुगनाराम नीं समझै। बीं रा विचार है- ‘लुगाई पग री जूती होवै। एक फाटी तो दूजी नूंवी आयगी।’ अर साची ई बो लाडां नै छोड़’र कनक सूं ब्यांव कर लेवै।’ उपन्यासकार चन्नण रै मारफत नायिका नै आगै बधण रो मारग देवै। लाडां अर चन्नण विचाळै अंतस रो मेळ ग्यान रै कारण है। बा चन्नण सूं सवाल करै- ‘नैण जका सुपनां पाळै, काया उण रो साथ क्यूं नीं निभावण सकै! सुपना अर काया नै अळगै गैलां क्यूं चालणो पड़ै?’ सीताराम महर्षि रै उपन्यासां मांय गैरा संवादां सूं आपां साम्हीं जूण रा केई-केई रंग अर सवालां प्रगट हुवै। जियां-
- रोटी री भूख विचारां सूं मिट जवै के?
- रोटी री भूख रोटी सूं तो मिट जावै कै?
- हां, मिट जावै।
- फेरूं लोग भरियै पेट थकां दूजां री रोटी क्यूं खोसै?
- आ खोसण री बात थां जिसी गांव री गंवार रै समझ मांय नीं आसी।
- गांव री गंवार कैय नै चुप करण री मनस्या सहर री चतराई है म्हारी समझ मांय।
लाडां नै सूरज री सीख जरूर मिलै पण संकळप री बा पक्की है। लाडो कैवै- ‘भावै सूरज आथूणो उग जावै, बा जीवण नै सांच रै गेलै उपरां राखसी’ सेवट बा आठवी पास कर नरस बण जावै। इत्तो ई नीं लाडां कंपाउंडर राजाराम सूं हेत करण लगै। प्रेम पेटै जिकी भावनावां अर विचार लेखक का पैलै उपन्यास मांय हा, बां रो विगसाव इण उपन्यास तांई देख सकां। चन्नण ई खेतै काकै नै मनावै क्यूं कै बां रो मानणो हो इण ब्यांव सूं ‘गिंगरथ’ हुसी। सेवट खेतै काका रा ठाडा बोल- ‘लाडां खातर मैं सगळी दुनिया सूं लड़ण खातर त्यार हूं।’ अठै कथा रै बिचाळै उपन्यास ‘आभै पटकी’ याद आवै। उपन्यास बांचतां कणाई-कणाई इयां पण लखावै कै सेवट मांय चन्नण अर लाडां रो मेळ हुय जावैला। पण आ बात गळत साबत हुवै अर हुवणी ई चाइजै क्यूं कै जे ओ मेळ हुवै तो सुगनाराम रो सक पोखीज जावै। उपन्यासकार इणी खातर लाडां री जिंदगानी नै नूंवो मोड़ राजाराम सूं मेळ सूं देवै। इण छोटै सै उपन्यास रा लाडां अर चन्नण दोनूं यादगार पात्र है। आधुनिक विचार-संवेदना पेटै संवाद-पख अर भासा री समरूपता दोनूं उपन्यासां री खासियत। उपन्यास री विकास-जातरा मांय श्रीलाल नथमलजी जोशी, यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’ अर अन्नाराम ‘सुदामा’ भेळै सीताराम महर्षि ई आगीवाण मानीजैला।
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श्री सीताराम महर्षि - रतनगढ़ (23 जुलाई 1932- 08 मई 2017)
लालड़ी एक फेरूं गमगी 1974
कुण समझै चंवरी रा कौल 1975
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