सांवर दइया री कथा-दीठ / डॉ. जगदीश गिरी
हिंदी री नवी कहाणी री ओळखाण करता थकां चावा आलोचक डॉ. नामवरसिंह लिखै, ‘‘नया कहानीकार कभी-कभी इतना अंतर्गूढ़ हो जाता है कि आदि से अंत तक केवल एक बात से बातें निकलती चली जाती हैं और बातों में से बात का यह निकलते जाना ही इतना मनोरंजक होता है कि एक कहानी बन जाती है।
परंतु यह कौशल वही दिखा सकता है, जिसके पास बातचीत की उत्कृट कला हो और साथ ही भाषा की बारीकियां भी।’’ (कहानी : नयी कहानी, पृ. 14) इणनै पढता थकां इयां लागै जाणै बै राजस्थानी रा चावा-ठावा कहाणीकार सांवर दइया री कहाणी कला री बात कर रिया है। क्यूंकै बातां में सूं बात निकाळ-निकाळनै कहाणी कैवण रो जको आंटो सांवरजी कनै हो, किणी बीजै कहाणीकार कनै आज लग नीं है। सांवर दइया आपरी पैली कहाणी पोथी ‘असवाड़ै-पसवाड़ै’ सूं राजस्थानी कहाणी नै अेक नवी दिसा दी। कहाणी रै कथ्य अर सिल्प दोनूं स्तरां माथै इण संग्रै री कहाणियां साव नवै ढंगढाळै साम्हीं आवै। ओ फगत संजोग नीं है कै ‘असवाड़ैपसवाड़ै’ री पैली ई कहाणी री पैली ई ओळी पाठक नै झिंझोड़नै उणरी कहाणी बांचण-समझण री लकब नै चुनौती देवै- ‘‘कांई ओ जरूरी है कै मैं थांनै ई पूरी कहाणी सुणावूं?’’ (पृ. 7) अेकदम सपाट ढंग सूं बै बताय देवै है कै अबै फगत कहाणी सुणावणो कहाणीकार रो काम नीं है। ना ईज नवी कहाणी नै पुराणै ढंगढाळै सूं समझी जाय सकैला। कहाणी रो नांव भी ‘पैरवी’ स्यात सोच-समझनै ई राखीज्यो है। कहाणीकार इण बात री ‘पैरवी’ ई पाठकां री कचैड़ी में कर रियो है कै कहाणी री चाली आ रैयी परिपाटी नै तोड़णी क्यूं जरूरी है? ओ भी फगत संजोग नीं मानणो चाइजै कै रचनाकार कहाणी रै साथै-साथै समाज री सड़ी-गळी मानतावां नै तोडऩै आधुनिक सोच री भी पैरवी करै है- ‘‘मैं थांनै कित्ती दफै कैयो है कै सोगन ना दिराया करो! सोगन-फोगन में म्हारो रत्तीभर ई विस्वास कोनी - जियां कै सुगनां में कोनी। देवी-देवतावां में कोनी। भूत-पलीत में कोनी। आत्मा-परमात्मा में कोनी।’’ (पृ. 8)
ठीक इणी भांत दूजै कहाणी संग्रै ‘धरती कद तांई घूमैली’ री भी पैली ई कहाणी ‘सुगन’ है, जिण मांय गणेस रै सुगन देख’र चालण री आदत सूं कथा नायक सुरेन्द्र नै चिड़तो दिखायो गयो है- ‘‘सुरेन्द्र सोचण लाग्यो- दुनिया आळा तो चांद माथै पूगग्या। पण अठै रा लोग हाल तांई गोबर में हीरो सोधै। सुगनां नै उडीकै।’’ (पृ. 10)
सांवरजी री हाल तांई प्रकासित पांचूं कथा पोथ्यां री कहाणियां इण बात री साख भरै है कै वां राजस्थानी कहाणी रै सिल्प अर संवेदना रै चलताऊ ढंगढाळै नै बदळनै रो महाताऊ काम करियो। बात में सूं बात निकळनै फगत संवादां सूं कहाणी कैवण री उणारी री हथौटी अर खिमता नै कोई बीजो कहाणीकार छूय भी नीं सक्यो है। लांबै-चौड़ै कथानक री दरकार वांनै कदैई नीं पड़ी। छोटै-छोटै जीवण-प्रसंगां नै लेय’र रचीज्योड़ी वांरी कहाणियां मिनख री मनगत, अंतर्द्वन्द्व अर मन री परतां नै उघाड़ण रो काम करै।
बरस 2018 में वांरी अणछपी कहाणियां री पोथी ‘छोटा-छोटा सुख-दुख’ सिरैनांव सूं साम्हीं आई है। राजस्थानी-हिंदी रा चावा-ठावा साहितकार बुलाकी शर्मा रै संपादन मांय आ पोथी कलासन प्रकाशन बीकानेर सूं छपी है। इण मांय वांरी दस कहाणियां, दो इंटरव्यू, साहित्य अकादेमी में दियोड़ो भासण अर वांरी कहाणियां माथै डॉ. अर्जुनदेव चारण रो अेक आलोचनात्मक लेख सामल है। संग्रै री भूमिका में बुलाकी शर्मा वांरी कथा-जातरा री अेक पड़ताळ पण प्रस्तुत कीवी है।
सांवरजी रा सुपुत्र डॉ. नीरज दइया मुजब आ पोथी वांरी छेहली कथा-पोथी है। आलोचना पोथी ‘बिना हासलपाई’ में वै लिखै- ‘‘कहाणीकार सांवर दइया रै जीवण-काल मांय च्यार कहाणी-संग्रै अर बां रै सौ बरस पूग्यां अेक संग्रै प्रकासित हुयो। अेक संग्रै प्रकासित हुवैला- ‘छोटा-छोटा सुख-दुख’। आं छव संग्रां री विगत जोड़िया ठाह लागै कै कुल बासठ कहाणियां रै इण रचना-संसार मांय असवाड़ै-पसवाड़ै रा छोटा-छोटा सुख- दुख प्रगट हुया है।’’ (पृ. 67)
तो कैयो जा सकै है अबै स्यात सांवर दइया री सगळी अणछपी कहाणियां साम्हीं आय चुकी है। इण संग्रै री कहाणियां नै पढता थकां वांरी मुकम्मल कथा-दीठ री पिछाण करी जा सकै। अै कहाणियां भी निम्न मध्यमवर्गीय वर्ग री पीड़ अर मनगत नै प्रगट करै। खुद सांवर दइया मुजब ‘बदळाव री नवी हवा सूं अळघा रैवणिया अर घर री घाणी में आपरी जूण पूरी करणिया मिनख’ आं कहाणियां में देख्या जा सकै। मोटै तौर पर ओ मान्यो जावै कै गांव रा लोग भला हुवै अर वां में त्याग री भावना घणी हुवै। पढ्यो-लिख्यो अर स्हैरी बरग थोड़ो मतलबी हुवै। पण सांवरजी री दीठ घणी गैरी है। वै इण भांत रा आदरसवादी खांचां में बांटनै समाज नै नीं ओळखै। वै मिनख री मनगत री ऊंडी पड़ताळ करै अनै वांनै आपरै जथारथ रूप साम्हीं लावै। इणी वास्तै आं कहाणियां में पढ्यै-लिख्यै नौकरी-पेसा लोगां री पीड़ा अर गांव रै लोगां रो स्वारथी बैवार बेसी दिखाइज्यो है। घणखरी कहाणियां स्कूल मास्टरां रै सुपनां अर जथारथ रै द्वंद्व नै ईमानदारी सूं उघाड़ै। रचनाकार पूरी सहानुभूति सूं इण नौकरियै बरग रै लोगां री अबखायां नै ओळखै। गरीबी अर तंगहाली सूं आंथड़ता अै लोग समाज री जोगती-अणजोगती रीत निभावता थकां जूण री गाडी नै धक्का मारै। अेक कानी कंगाली है तो दूजी कानी झूठी मरजादा। आं दोनुवां रै बिचाळै पीसीजतो नौकरियो आदमी मिनखपणै नै भी बचावण री आफळ करै।
‘छोटा-छोटा सुख-दुख’ रा मास्टर अेक-अेक पइसो बचावण री जुगत में ठंडीबासी रोटी खावण सूं ई गुरेज नीं करै अर आंगळ्यां बाळता थकां ई हाथै रोटी पकावै। रोज नवी सब्जी ई नीं खा सकै क्यूंकै ‘‘इयां तो बजट ऊंचो जासी रे- सोच सूं दूबळा होय’र पाछा सिंझ्या नै सागी आलू रो साग खावण लागा।’’ (पृ. 18) बै मान’र चालै कै ‘‘आपणै भाग में तो आंटी-बाडी अर काची-पाकी रोट्यां ई लिख्योड़ी है।’’ (पृ. 19)
रचनाकार री पकायत मानता है कै आं लोगां में लाख बुरायां होय सकै पण मौकौ आयां अै लोग सांच माथै आंच कोनी आवण देवै। ‘उजास’ कहाणी रा हैडमास्टर साहब, सेठ सुगनचंद नै खरो जवाब देवता थका कैय देवै- ‘‘म्हैं अंधारै रो कारोबार कोनी करूं। म्हैं शिक्षक हूं। उजास री रुखाळी म्हारो धरम है।’’ (पृ. 23) तो ‘ऊजळी दीठ’ रो मास्टर सत्येन्द्र कितरै ई लाळच रै बावजूद अन्याव रो साथ देवण सूं साफ नट ज्यावै- ‘‘म्हैं जरासी क मदद सूं किणी रो भविस्य बणा तो सकूं, पण किणी रै दबाव में आय’र किणी रो गळो नीं रोस सकूं। अै टाबर म्हारो काळजो है। काळजै में चक्कू नीं मारूं।’’ (पृ. 29)
‘हाडी’ कहाणी रा गोपीराम अर ‘धंवर छंटगी’ कहाणी रा जगन्नाथ नौकरी करण रै
कारण आपरै गांव सूं स्हैर आवै। किरायै रै मकानां में रैवै, पण पुस्तैनी घर-जमीन माथै वांरा सागी भाई ई कब्जो कर लेवै। वांनै पांती नीं मिळै। पण वै आपरी माण-मुरजाद नै देखतां चुप ई रैवणो ठीक समझै। ‘अठै ई ठीक है’ कहाणी रो मास्टर बनवारी दो पइसा बचावण री जुगत में सस्तो, सुंदर, टिकाऊ मकान किरायै माथै लेवण सारू ताफड़ा तोड़ै। छेकड़ सुंदर नै छोड़नै सस्तै पर ई आयनै धीजो कर लेवै।
‘अठै सुख कठै’ रो कथा-नायक बैंन रै ब्याव खातर सात हजार रुपिया साहूकार सूं
ब्याज माथै लेवै अर ब्याज चुकावण रै चक्कर में खुद रो घर किरायै चढावणो पड़ै। तिणखा इत्ती कोनी कै करजो चुकाय सकै, पण लोक-लाज रै चक्कर में करजो लेवणो ई पडिय़ो। नौकरियै मिनख री अबखायां नै उजागर करणवाळी आ सांवठी कहाणी है। अेक सस्तै किरायै रै मकान मांय रैवण री पीड़ अर जीवण री जरूरतां नै दाब-मोसनै राखण री किरतब करता मध्यवर्गीय मिनखां रो अेक जीवतो-जागतो चितराम इण कहाणी रै मिस देख्यो जा सकै है। मिनख-लुगाई री प्राकृतिक सैक्स री जरूरत पूरी करण सारू ई ‘प्राइवेसी’ नीं होवण रै बावजूद ई अैड़ै मकान में रैवण री मजबूरी गैरी टीस पैदा करै। कथा-नायक रो ओ मनगत कथन है- ‘‘समाज री बां रिवाजां नै गाळ्यां काढूं जिकां रै कारण रीत रा स्सै रायता करणा पड़्या। घर रो घर छोड़’र इण टापरियै में बळ्यो। अठै तीन मिनट रो सुख ई करमां में कोनी।’’ (पृ. 60)
पण ओ मोटो सवाल है कै ओ रीत रो बोझ अंतपंत इण नौकरियै मिनख माथै ई क्यूं आवै? चाहे मां-बाप री सेवा हो, चाहे ब्याव-भात, स्यान सारू इणी बरग नै सिर मांडणो पड़ै। ‘उळझ्योड़ी मौत’ दायजा रा लोभी समाज री नीचता नै परगट करै तो ‘चोट’ कहाणी होम करतां हाथ बळण री बात नै थरपै। ‘उजास भरी डांडी’ ई दायजा रा लोभियां री बखियां उधेड़ै।
अेक लूंठो रचनाकार आपरै जीवणकाल में जितरो साम्हीं आवै उणसूं कई गुणा ज्यादा अदीठ रैय जावै। जितरो रचनाकर्म पोथी रूप आवै लोग वींरै मार्फत ई रचनाकार री कूंत करै। घणखरी रचनावां इण वजै सूं साम्हीं नीं आ पावै है कै लेखक सोचै कै कदेई फुरसत में बैठनै वांनै कांट-छांट कर’र ठीक करनै ई छपायस्यां। इण भांत कई रचनावां खुद रै ‘ट्रीटमेंट’ री उडीक में ई रैय जावै।
किणी ई लेखक री इण भांत री अणछपी रचनावां रै प्रकासन होवणै सूं उणरी अेक
सांवठी कूंत करी जा सकै। हालांकै इणरो नुकसान ई है कै कई बार पैलै या दूजै ड्राफ्ट री कच्ची रचना ई लेखक रै नांव सूं छप ज्यावै पण बा लेखक री कीरत में बधापो नीं करै। इण सारू संपादक रो सावधान रैवणो भोत जरूरी हुवै। संपादक नै लेखक री प्रकासित रचनावां री काळ-क्रम सूं पड़ताळ करता थकां वांरो लेखन काळ सोधण री आफळ अवस करणी चाइजै। इणसूं अेक मुक्कमल छिब बण सकै। आ बात कैवण रो मेरो मतलब फगत ओ है कै इण संग्रै मांय सामल कहाणियां ‘उजास’, ‘ऊजळी दीठ’, ‘धंवर छंटगी’, ‘चोट’ अर ‘उजास भरी डांडी’ उण टेम्परामेंट री कहाणी नीं है जिको टेम्परामेंट सांवरजी री कहाणियां में अकसर हुया करै। सावंरजी घोर जथारथवादी ढंग सूं लिखणिया कहाणीकार हा। पण अै कहाणियां अंतपंत आदरसवादी ढंग सूं खतम हुय जावै। स्यात अै कहाणियां ‘ट्रीटमेंट’ री उडीक में रैयगी ही।
अै कहाणियां किणी भी दीठ सूं कमती नीं है, पण अै वांरी कहाणी जातरा नै देखता थकां थोड़ी पैलां री कहाणियां लागै। ज्यादातर रचनाकार आदरस सूं जथारथ री जातरा करता रैया है, जथारथ सूं आदरस री नीं। इण सारू जे आं कहाणियां रै काळ-क्रम रो उल्लेख होवतो तो चोखो रैवतो। भूमिका मांय आ बात ई बताई जा सकै ही कै अै कहाणियां साव अणछपी ही या कठैई किणी पत्रिका मांय छप्योड़ी मिली है। इणसूं लेखक री कथा-जातरा नै चोखी तरियां समझण में मदद मिलती।
खैर.... सांवर दइया अैड़ा रचनाकार हा जिका थोड़ै-सै जीवणकाळ में ई इतरो
सिरजण कर’र गिया परा कै वांरी कीरत कदैई खूट नीं सकैला। भाग सूं वै रचनावां ई साम्हीं आ सकी है जिकी वै आपरै जीवणकाळ मांय पोथी रूप प्रकासित नीं कराय सक्या हा। इण सारू डॉ. नीरज दइया अर बुलाकी शर्मा जी नै लखदाद देवणी चाइजै। अगली कड़ी में उम्मीद कर सकां हां कै वांरी रचनावली ई प्रकासित हुय सकैली, जिणसूं अेक लूंठै रचनाकार नै औरूं नैड़ै सूं जाणणै रो मौको मिल सकैला।
(कथेसर : जनवरी-दिसम्बर, 2019)
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