जूनै दिनां रा चितराम / डॉ. नीरज दइया
कवि हरिचरण अहरवाल राजस्थानी, हिंदी, संस्कृत अर अंग्रेजी रा जाणीकार विद्वान लिखारा है। इण पोथी मांय हाड़ौती अंचल रै लोक-जीवण रा केई-केई बेजोड़ रंग उजागर हुवै। आ पोथी विधावां री सींव सूं बारै निकळ’र आपरै बांचणियां नैं एक नूंवी जातरा करावै। लेखक आपरै नूंवै-जूनै संस्मरणां मांय आपरै बगत नैं चितारै। आ घणी मेहतावू बात मानीजै कै मिनखाजूण री केई-केई मनमोवणी बातां अर विचारां री इण लांबी विगत मांय अठै बदळतै बगत री छिब साम्हीं आवै।
लेखक जूनै दिनां नैं चितारतो कदैई किणी बातपोस दांई कहाणी कैवै तो कठैई सबदां रै मारफत आखो दीठाव राखतो जाणै किणी रेखाचितराम का निबंध री सिरजणा सूं मनमोवै। राजस्थानी लोककथावां मांय चकवो-चकवी घणा चावा। लोक रै उण जूनै रूप नैं इण पोथी मांय आधुनिकता रै ढंग-ढाळै कीं घरबीती अर परबीती नै चितरतां आज रै बगत अर आपां रै आसै-पासै री छिब उकेरै। पूरी पोथी मांय होळै-होळै आंख्यां मांय जियां नींद घुळै ठीक बियां ई हाड़ौती रो मीठास अंतस मांय घुळतो जावै। ओ सबदां रो जादू हुवै कै आपां लेखक भेळै एक पछै एक अनेक जातरा करता जावां।
हरिचरण अहरवाल रै सबदां मांय आपां नैं वां रो गुरु-रूप ई मिलै जिको बदळतै बगत बिचाळै संस्कारां री अंवेर करणी चावै। हरख री बात कै मिनखाजूण री जूनी बातां नैं लांठी हेमाणी मान’र अठै बगत री अंवेर हुवै। विगत री अंवेर मांय कूड-साच सेळभेळ हुवतो ई आपां देख सकां। बियां साच अर कूड बिचाळै बस एक हळकी-सी सींव का कैवां रेख ई हुया करै। केई बातां नैं इण सींव सूं अठी-उठी करणो ई किणी जीयोड़ै बगत सूं सबदां रै मारफत हेमाणी री संभाळ हुवै।
कामना करूं कै आगै ई इण सिरजणा मांय भाई हरिचरण अहरवाल साव खरा अर साचा साबित हुवैला।
- डॉ. नीरज दइया
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