Sunday, January 05, 2020

एक उल्लेखनीय कहानी-संग्रह : ‘मुर्दे इतिहास नहीं लिखते...’/ डॉ. नीरज दइया

हिंदी कहानी के विकास में अनेक कहानीकारों का योगदान रहा है। अनेक कहानीकारों ने अपने समय के विविध रंगों से कहानियों की दुनिया को सजाया। समय की दो विशेषाताएं कहानीकारों की कहानियों में देखी जा सकती है कि एक तो बहुत तेजी से समय बदलता है, किंतु इस बदलाव में भी बहुत सी बातें बहुत सी यादें जैसे ठहर सी जाती है। दूसरा बदलता हुआ समय धीरे-धीरे एक ऐसा इतिहास भी रचता है जिसे इतिहास अपने में दर्ज करता है किंतु इसी इतिहास के बहुत से पन्ने जो इतिहास में दर्ज नहीं होते वे साहित्य में दर्ज किए जाते हैं।
    ‘मुर्दे इतिहास नहीं लिखते...’ अलका अग्रवाल सिग्तिया का कहानी संग्रह है। अलका ने कहानियां बहुत पहले लिखी किंतु वे संग्रह के रूप में बहुत बाद में आईं। यह संग्रह भी 2015 में प्रकाशित हुआ, किंतु मेरे हाथों बहुत बाद में दूसरा संस्करण 2016 लगा। ज्ञानरंजन जी ने भूमिका में लिखा है- ‘इन कहानियों को 10-20 वर्ष पहले अपने युग में ही छप जाना चाहिए था तब इनमें समकालीनता बेहतर मिलती, पर ये कहानियां तब छप रही हैं जब अलका का दूसरा संग्रह आ जाना चाहिए था।’
    यह कहानी संग्रह आधुनिकता की आंधी में मुर्दा होते लोगों के बीच जिंदा लोगों की खासकर स्त्रियों के जीवन संघर्ष का एक ऐसा जीवंत दस्तावेज है, जो अपने आप में एक इतिहास है। शीर्षक कहानी- ‘मुर्दे इतिहास नहीं लिखते...’ के अलावा संग्रह में अन्य कहानियां हैं किंतु उन सभी में केंद्रीय संवेदना का कोई सिरा शीर्षक कहानी से भी जुड़ता है। अलका मुंबई में रहती है और विभिन्न कला माध्यमओं से सक्रिया के साथ जुड़ी हुई है इसलिए फिल्मी दुनिया के लिए युवाओं के आकर्षण के साथ उन्हें इतिहास में दफन होते हुए भी देखा है। यह कहानी दो युवाओं के संघर्ष की कहानी है जिनमें जोश, जुनून और जिद्द है कुछ कर गुजरने के सपने हैं। उनके सपने टूटते हैं संघर्ष में वे हारकर भी हार नहीं मानते हैं। उन्हें क्या अलका की किसी भी कहानी के स्त्री-पुरुष पात्रों में जीवन के साथ समझौते कर मुर्दा बनकर जिंदगी गुजराना उन्हें गवारा नहीं है। वे सभी अंततः संघर्ष करते हुए एक इतिहास रचते हैं जो भले इतिहास में दर्ज ना हो किंतु पाठकों के हृदयों में जरूर अंकित होगा। युवा संघर्ष और जिद्दो-जहद के साथ एक आदर्श को रचती यह कहानी आधुनिकता की त्रासदी पर करारा व्यंग्य भी है।
    भाषा के स्तर पर अलका अग्रवाल बेहद सजग हैं। वे अपनी कहानियों की भाषा के माध्यम से परिवेश को ऐसे जीवंत बनाती है कि पात्र अपनी जमीन से जुड़े नजर आते हैं। उन्हें बनावटी और आयातित भाषा में रचा ही नहीं जा सकता है। उदाहरण के लिए कहानी ‘टिकुली’ को देखेंगे तो बाल-मनोविज्ञान के साथ-साथ अपनी भाषिक संरचना में आर्थिक विभेदों को उजागर करती संघर्ष की ऐसी दुनिया हमारे समाने खोलती है जिसमें मां-बेटे का समानांतर एक संसार चलता है। पत्नी को पति की और पुत्र को पिता की अभिलाषा और इंतजार में यह कहानी एक ऐसे वितान को प्रस्तुत करती है जहां से सब कुछ साफ-साफ देखा और महसूस किया जा सकता है। कहानी में एक स्त्री और सिंदूर के रिस्ते को जिस गहराई से परिभाषित करने का प्रयास है वह इतना बेजोड़ है कि इस कहानी के एक पाठ के बाद कोई उसे विस्मृत नहीं कर सकता है। मुंबई के जीवन को यहां भी जैसे किसी कैमरे की आंख से कहानीकार ने बहुत हुनर के साथ कहानी में पिराया है। कहानी संवेदना के स्तर पर पाठक के मर्म को छूती है। सूर्यबाला जी ने फ्लैप पर लिखा है- ‘समाज के हर तबके की समस्याएं और स्थितियां तो इन कहानियों की पूजी है हीं मनुष्य-मन के गहन प्रकोष्ठों में भी इनका संवेदित प्रवेश है। उनका यही संतुलन इनके संतर्जगत और बर्हिजगत के बीच भी विद्यामान है।’
    आजादी के बाद भी हमारे समाज के वर्गों में अर्थिक आधार पर बेहद दूरियां हैं। इन दूरियों के बाद भी मन तो मन के करीब आते हैं, आना चाहते हैं किंतु उन्हें फिर-फिर अपने घेरों और बंधनों में जकड़े जाने की त्रासदी को ‘अमसा’ कहानी में प्रस्तुत किया गया है। गरीबी ने स्त्रियों के जीवन में कैसे कैसे प्रहार किए हैं कि वे चाहकर भी स्वाभिमान से इस निर्दय समाज में गुजार-बसर कैसे करे। उन्हें केवल देह समझे और भोगे जाने की दारुण त्रासदी कब तक हमारे समाज में रहेगी ऐसे अनेक सूक्ष्म सवालों को अपने में समेटे इस कहानी में विनी और अमसा का जीवन जैसे इतिहास बनता जाता है और वह फिर फिर दोहराया जाता है, भुलाए नहीं भूलता।
    संग्रह की कुछ कहानियों में जैसे ‘सिलवटें जिंदगी की’ में जीवन की सच्चाइयां इस कदर अभिव्यक्त हुई हैं कि वे स्वयं लेखिका के जीवन-अध्ययन और पसंद का खुलासा भी करती हैं। कहानी में कविता, कात्यायनी, किरन देसाई आदि के संदर्भों से बदलते जीवन में साहित्य के संबंध को व्यंजित किया गया है, वहीं अकेली स्त्री और पुरुष के बीच देह के गणित को भी कहानी बहुत सुंदर ढंग से रेखांकित करती है। अलका संबंधों के बीच स्त्री के उलझते मन को शब्द देती हुई एक ऐसी स्त्री का चरित्र रचती है जो अपने पैरों पर खड़े होकर समाज में बराबरी का स्थान पाना चाहती है। ‘जब अरूषि कहेगी’ कहानी में सिया के माध्यम से नारी के जीवन में बदलते समय और समाज में भी वही पुराने घिसे-पिटे पुराने राग के यहां तक चले आने की व्यथा है। पहली स्त्री और दूसरी स्त्री के बीच स्व-चेतना और अधिकार की लड़ाई में यहां स्त्री को ‘मुर्दा’ बनकर जीवन नहीं जीने का संदेश भी है। ‘नदी अभी सूखी नहीं’ कहानी अपने अनेक संदर्भों के माध्यम से अपने समय के सच को प्रस्तुत करती हुई धार्मिक समन्वय और सद्भाव की दिशा में उल्लेखनीय कही जा सकती है। ‘बुलू दी’ दो बहनों और दो सहेलियों के अंतर्द्वंद्व को रेखांकित करती है। स्त्री के स्वाभिमान, त्याग, बलिदान और स्त्री-मन के अनेक तंतुओं को रेसा-रेसा खोलती या उन्हें फिर फिर जीवंत करती अलका अग्रवाल की कहानियों में बीसवीं शताब्दी के ढलान को ऐसे शब्द-बद्ध किया गया है कि उससे गुजतरे हुए थोड़ा ठहर कर कुछ सोचने का अवकाश हम तलाश करते हैं। ‘बेटी’ कहानी में मां-बेटी का संबंध जिस तरलता के साथ सांकेतिक ढंग से व्यंजित हुआ है वह उल्लेखनीय है, वहीं ‘बुलबुला’ कहानी में कहानी के समानांतर जीवन की कल्पना एक प्रयोग के रूप में प्रस्तुत हुआ है।
    इन कहानियों को यदि एक वाक्य में बांधा जाए तो कहानीकार अलका अग्रवाल का यह हम सब से यह सवाल है- क्या यह स्त्रियों की नियति है वे नए समय में भी अपने पुराने धिसे-पिटे जीवन को दोहराती रहेगी अथवा इक्कीसवीं शताब्दी में कुछ नए संकल्पों के साथ सामने आएंगी? इस सवाल को समय रहते हल किया जाना जरूरी है।
    अंत में अलका अग्रवाल की काव्य-पंक्तियां आज की स्त्रियों के लिए-
उस किसी के होंठ हिले
कुछ कहने को,
न कहना अब घिसी-पिटी सी बाते तुम
अब लिखो नई कहानी तुम।
मैं हूं बयार, मैं हूं आसमां में उड़ता बादल,
तुम भी लिखो, जैसे मैं लिख रही हूं।
नया एक कल।
--------
पुस्तक का नाम- मुर्दे इतिहास नहीं लिखते * (कहानी संग्रह)
लेखिका- अलका अग्रवाल
संस्करण : 2016 ; पृष्ठ- 160 ; मूल्य- 295 रुपये
प्रकाशक- यूनिस्टार बुक्स, चंडीगढ़

------
* इस पुस्तक को महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी का प्रथम पुरस्कार प्रेमचंद सम्मान स्वर्ण पुरस्कार मिला है।

0 टिप्पणियाँ:

Post a Comment

डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
© Dr. Neeraj Daiya. Powered by Blogger.

आंगळी-सीध

आलोचना रै आंगणै

Labels

101 राजस्थानी कहानियां 2011 2020 JIPL 2021 अकादमी पुरस्कार अगनसिनान अंग्रेजी अनुवाद अतिथि संपादक अतुल कनक अनिरुद्ध उमट अनुवाद अनुवाद पुरस्कार अनुश्री राठौड़ अन्नाराम सुदामा अपरंच अब्दुल वहीद 'कमल' अम्बिकादत्त अरविन्द सिंह आशिया अर्जुनदेव चारण आईदान सिंह भाटी आईदानसिंह भाटी आकाशवाणी बीकानेर आत्मकथ्य आपणी भाषा आलेख आलोचना आलोचना रै आंगणै उचटी हुई नींद उचटी हुई नींद. नीरज दइया उड़िया लघुकथा उपन्यास ऊंडै अंधारै कठैई ओम एक्सप्रेस ओम पुरोहित 'कागद' ओळूं री अंवेर कथारंग कन्हैयालाल भाटी कन्हैयालाल भाटी कहाणियां कविता कविता कोश योगदानकर्ता सम्मान 2011 कविता पोस्टर कविता महोत्सव कविता-पाठ कविताएं कहाणी-जातरा कहाणीकार कहानी काव्य-पाठ किताब भेंट कुँअर रवीन्द्र कुंदन माली कुंवर रवीन्द्र कृति ओर कृति-भेंट खारा पानी गणतंत्रता दिवस गद्य कविता गली हसनपुरा गवाड़ गोपाल राजगोपाल घिर घिर चेतै आवूंला म्हैं घोषणा चित्र चीनी कहाणी चेखव की बंदूक छगनलाल व्यास जागती जोत जादू रो पेन जितेन्द्र निर्मोही जै जै राजस्थान डा. नीरज दइया डायरी डेली न्यूज डॉ. अजय जोशी डॉ. तैस्सितोरी जयंती डॉ. नीरज दइया डॉ. राजेश व्यास डॉ. लालित्य ललित डॉ. संजीव कुमार तहलका तेजसिंह जोधा तैस्सीतोरी अवार्ड 2015 थार-सप्तक दिल्ली दिवाली दीनदयाल शर्मा दुनिया इन दिनों दुलाराम सहारण दुलाराम सारण दुष्यंत जोशी दूरदर्शन दूरदर्शन जयपुर देवकिशन राजपुरोहित देवदास रांकावत देशनोक करणी मंदिर दैनिक भास्कर दैनिक हाईलाईन सूरतगढ़ नगर निगम बीकानेर नगर विरासत सम्मान नंद भारद्वाज नन्‍द भारद्वाज नमामीशंकर आचार्य नवनीत पाण्डे नवलेखन नागराज शर्मा नानूराम संस्कर्ता निर्मल वर्मा निवेदिता भावसार निशांत नीरज दइया नेगचार नेगचार पत्रिका पठक पीठ पत्र वाचन पत्र-वाचन पत्रकारिता पुरस्कार पद्मजा शर्मा परख पाछो कुण आसी पाठक पीठ पारस अरोड़ा पुण्यतिथि पुरस्कार पुस्तक समीक्षा पुस्तक-समीक्षा पूरन सरमा पूर्ण शर्मा ‘पूरण’ पोथी परख प्रज्ञालय संस्थान प्रमोद कुमार शर्मा फोटो फ्लैप मैटर बंतळ बलाकी शर्मा बसंती पंवार बातचीत बाल कहानी बाल साहित्य बाल साहित्य पुरस्कार बाल साहित्य समीक्षा बाल साहित्य सम्मेलन बिणजारो बिना हासलपाई बीकानेर अंक बीकानेर उत्सव बीकानेर कला एवं साहित्य उत्सव बुलाकी शर्मा बुलाकीदास "बावरा" भंवरलाल ‘भ्रमर’ भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’ भारत स्काउट व गाइड भारतीय कविता प्रसंग भाषण भूमिका मंगत बादल मंडाण मदन गोपाल लढ़ा मदन सैनी मधु आचार्य मधु आचार्य ‘आशावादी’ मनोज कुमार स्वामी मराठी में कविताएं महेन्द्र खड़गावत माणक माणक : जून मीठेस निरमोही मुकेश पोपली मुक्ति मुक्ति संस्था मुरलीधर व्यास ‘राजस्थानी’ मुलाकात मोनिका गौड़ मोहन आलोक मौन से बतकही युगपक्ष युवा कविता रक्त में घुली हुई भाषा रजनी छाबड़ा रजनी मोरवाल रतन जांगिड़ रमेसर गोदारा रवि पुरोहित रवींद्र कुमार यादव राज हीरामन राजकोट राजस्थली राजस्थान पत्रिका राजस्थान सम्राट राजस्थानी राजस्थानी अकादमी बीकनेर राजस्थानी कविता राजस्थानी कविता में लोक राजस्थानी कविताएं राजस्थानी कवितावां राजस्थानी कहाणी राजस्थानी कहानी राजस्थानी भाषा राजस्थानी भाषा का सवाल राजस्थानी युवा लेखक संघ राजस्थानी साहित्यकार राजेंद्र जोशी राजेन्द्र जोशी राजेन्द्र शर्मा रामपालसिंह राजपुरोहित रीना मेनारिया रेत में नहाया है मन लघुकथा लघुकथा-पाठ लालित्य ललित लोक विरासत लोकार्पण लोकार्पण समारोह विचार-विमर्श विजय शंकर आचार्य वेद व्यास व्यंग्य व्यंग्य-यात्रा शंकरसिंह राजपुरोहित शतदल शिक्षक दिवस प्रकाशन श्याम जांगिड़ श्रद्धांजलि-सभा श्रीलाल नथमल जोशी श्रीलाल नथमलजी जोशी संजय पुरोहित संजू श्रीमाली सतीश छिम्पा संतोष अलेक्स संतोष चौधरी सत्यदेव सवितेंद्र सत्यनारायण सत्यनारायण सोनी समाचार समापन समारोह सम्मान सम्मान-पुरस्कार सम्मान-समारोह सरदार अली पडि़हार संवाद सवालों में जिंदगी साक्षात्कार साख अर सीख सांझी विरासत सावण बीकानेर सांवर दइया सांवर दइया जयंति सांवर दइया जयंती सांवर दइया पुण्यतिथि सांवर दैया साहित्य अकादेमी साहित्य अकादेमी पुरस्कार साहित्य सम्मान सीताराम महर्षि सुधीर सक्सेना सूरतगढ़ सृजन कुंज सृजन संवाद सृजन साक्षात्कार हम लोग हरदर्शन सहगल हरिचरण अहरवाल हरीश बी. शर्मा हिंदी अनुवाद हिंदी कविताएं हिंदी कार्यशाला होकर भी नहीं है जो