विराट हृदय के महामानव डॉ. संजीव कुमार / डॉ. नीरज दइया
एक सरप्राइज के साथ डॉ. संजीव कुमार जी से मैं पहली बार फरवरी 2018 में मिला। साहित्य अकादेमी मुख्य पुरस्कार राजस्थानी भाषा के अंतर्गत मुझे दिल्ली में मिलना था और यह भी तय था कि उनसे मुलाकात होगी। मैंने नहीं सोचा था कि जिस दिन साहित्य अकादेमी सम्मान मिलेगा उसी दिन श्रीमती रजनी छाबड़ा जी और वे मिलकर मुझे सरप्राइज देने वाले हैं। मेरे लिए सरप्राइज तो यह भी था कि जब बंगलौर में मुझे साहित्य अकादेमी का बाल साहित्य पुरस्कार मिला, तब अंकशास्त्री रजनी जी ने कहा था कि जब आपको दिल्ली में सम्मान मिलेगा तब भी मैं वहां पहुंच जाऊंगी। तब मैंने इसे अतिरेक समझा और यह विचार नहीं किया था कि भविष्य में ऐसा हो भी सकता है। रजनी जी आंखों में एक चमक और उत्साह मैं देख रहा था और पुरस्कार-समारोह के बाद रजनी जी ने बताया कि संजीव कुमार जी आने वाले हैं। वे समारोह में आ रहे थे, पर शायद उन्हें कहीं देर हो गई है। उन्होंने बताया कि जब संजीव ने कहा तो वे पक्का आएंगे।
मेरे साथ बीकानेर से मित्र नवनीत पाण्डे आए थे इसलिए अब होटल पहुंच कर चाय पीने वाले हम तीन हो गए। संजीव जी आने वाले हैं इसलिए रजनी जी भी हमारे साथ जहां हमें ठहराया गया था उसी होटल साथ आ गई थी। चाय अभी पूरी भी नहीं हुई थी कि रजनी जी का फोन बजा और पता चला कि संजीव जी होटल पहुंच गए हैं। उनके आने पर पता चला कि मेरे लिए यह एक बड़ा सरप्राइज था कि मेरी राजस्थानी कविताओं के अंग्रेजी अनुवाद की प्रतियां साथ लाए हैं। संजीव जी बधाई तो फोन पर भी दे सकते थे किंतु बहुत बीजी होते हुए भी लंबी दूर तय कर के केवल इसलिए आए हैं कि आज खुशी के दिन की खुशी चौगुनी कर दी जाए। इसके बड़ी बात भला क्या हो सकती है कि रजनी छाबड़ा जी ने मेरे राजस्थानी कविता संग्रह ‘पाछो कुण आसी’ की कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद किया जो बेहद सुंदर और आकर्षक ढंग से इंडिया नेटबुक ने प्रकाशित किया है। हम चार मित्रों ने वहीं उस पुस्तक का लोकार्पण किया और एक साथ रात्रिकालीन भोजन का आनंद भी लिया।
इस अविस्मरणीय मुलाकात में डॉ. संजीव कुमार ने अपनी दस से अधिक किताबें मुझे बेहद विनम्रता से भेंट की। उनकी यह भेंट मुझे आश्चर्यचकित करने वाली थी क्योंकि मैं यह तो जानता था कि संजीव जी कवि है, किंतु नहीं जानता था कि इतनी किताबें आपकी प्रकाशित हो चुकी हैं। यहां यह लिखना बेहद जरूरी है कि हमारे साहित्य संसार में बहुत कम रचनाकार मित्र हैं जिनके समग्र अवदान को हम ठीक से जान पाते हैं। यह कोरा उपदेश नहीं है इस में मैं स्वयं भी शामिल हूं और प्रयास करता हूं कि अधिक से अधिक पढ़ने जानने के अवसर प्राप्त कर सकूं। अब डॉ. संजीव कुमार जी के कवि को ठीक-ठीक जानने का सिलसिला आरंभ हुआ और मैं उनके प्रदत्त कविता-संग्रहों से गुजरते हुए कहीं सहमत और कहीं असहमत होते हुए भी कवि-मन से प्रभावित होता जा रहा था। इसी बीच एक पुराने विद्यार्थी से मेरी मुलाकात हुई जो मुझे अकादेमी पुरस्कार की बधाई के साथ उपालंभ भी दे रहा था कि मुझे किताब छापने का अवसर नहीं देते हैं। मैंने कहा- क्या कविताओं के राजस्थानी अनुवाद प्रकाशित करने में रुचि है तुम्हारी? उसकी सहमति से मुझे बल मिला और मैंने सोचा कि सरप्राइज का बदला सरप्राइज। मुझे मिली किताबों में से मैंने कविता संग्रह ‘मधूलिका’ (2016), ‘टूटते सपने, मरता शहर’ (2016), ‘अपराजिता’ (2017), ‘मुक्तिबोध’ (2017), ‘अंतरंगिनी’ (2017), ‘यकीन नहीं होता’ (2017), ‘समय की बात’ (2017) और ‘थोड़ा-सा सूर्योदय’ (2018) आठ संग्रहों की कुछ चयनित कविताओं का राजस्थानी अनुवाद करने की ठान ली। संग्रह का नाम रखा ‘घिर घिर चेतै आवूंला म्हैं’ अर्थात बार बार स्मरण किया जाऊंगा मैं।
मैंने डॉ. संजीव कुमार से पूछा आपने तो कमाल कर दिया है एक ही वर्ष में एक साथ इतनी कविताओं की किताबें कैसे? उन्होंने बताया कि लिखता तो मैं लंबे समय से रहा किंतु प्रकाशन का सिलसिला अब आरंभ किया है। मेरे क्या किसी भी रचनाकार के लिए यह कम आश्चर्य की बात नहीं होगी कि एक ही वर्ष में एक साथ इतनी पुस्तकें प्रकाशित हो और वह भी कविता की। वर्ष 2017 की पांच किताबें तो महज एक उदाहरण है यदि आप कवि डॉ. संजीव कुमार का परिचय देखेंगे तो आश्चर्य होगा।
आश्चर्य कोई एक हो तो उसे व्यक्त भी किया जाए अब तो उनके यहां आश्चर्यों की पूरी दुनिया है और एलिस इन वंडरलैंड की तर्ज पर आप और हम उनको जानने वाले वंडरलैंड में पहुंच जाते हैं। यह सहज सवाल है कि वाणिज्य वर्ग का एक अच्छा भला भरपूर कमाने खाने वाला आदमी कविता और प्रकाशन में कैसे आ गया है? जिस व्यक्ति ने लगभग चालीस वर्षों तक विभिन्न कंपनियों में बड़े पदों पर रहते हुए कानून और न्याय की दुनिया को बेहद नजदीक से देखा-परखा उसे साहित्य में क्या खास लगा कि एक के बाद एक लगातार किताबें विभिन्न प्रकाशकों के यहां से प्रकाशित होती रही और बाद में स्वयं का प्रकाशन प्रतिष्ठान स्थापित कर लिया। यहां तक भी ठीक था किंतु उन्होंने लिखने पढ़ने की उसी सक्रिया के साथ अपने मित्रों को साथ लेकर अपने प्रकाशन संस्थान और व्यक्तित्व को विराटता की दिशा में जैसे प्रक्षेपित कर दिया।
हिंदी साहित्य में डॉ. संजीव कुमार विगत वर्षों में धूमकेतु की भांति पूरे परिदृश्य पर छा गए हैं। तकनीक की दुनिया की बात करेंगे तो कोरोना काल में उन्होंने जहां अनेक किताबें रची और कृतियां उनकी सामने आती चली गई उसी के साथ-साथ अनेक रचनाकारों से उनके साक्षात्कार का लंबा सिलसिला चला। रचनाकारों को सम्मान देना और संबंधों में दूर तक चलते चले जाना उनकी विशेषता है। उनकी अनेक रचनाओं का विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ है। उन पर विश्वविद्यालयों में शोध हुए हैं और भविष्य में भी होंगे। वे जीवन के साठ से अधिक वसंत देख चुके हैं किंतु जैसे हर वसंत पर वे खिल खिल उठते हैं। नए विषयों और नई रचनात्मकता के साथ कभी प्रबंध काव्य रचते हैं और ऐतिहासिक-पौराणिक चरित्रों को नए ढंग से देखने-परखने का आह्वान करते हैं। जो उनके परिचय हैं उन सबको ऐसा प्रतीत होता है कि वे उनके बहुत करीब हैं। कोई काम हो अथवा कोई योजना हो हमेशा डॉ. संजीव कुमार जी उत्साहित होकर मित्रों के साथ जुट जाते हैं। व्यंग्य संग्रह अनेक प्रकाशित हुए हैं किंतु इंडिया नेटबुक द्वारा 251 व्यंग्यकारों का विशाल संग्रह और इस संख्या तक आने से पहले के संग्रह भी अद्वितीय हैं।
बहुत बार मुझे ऐसा लगता है कि डॉ. संजीव कुमार जी ने अपने शब्दकोष से ‘नहीं’ और ‘ना’ जैसे शब्दों को निकाल कर बाहर कर दिया है। जैसे वे नहीं और ना बोलना जानते ही नहीं है, मैंने उन्हें सदैव ‘हां’ बोलते हुए सुना है। बेहद सरलता के यह भी सरलीकृत हो सकता कि यह उनका मेरा लेना-देना है, किंतु इसे यदि गंभीरता और धैर्य के साथ परख करेंगे तो पाएंगे कि उनका उद्देश्य महान है। व्यापकता के साथ कार्य करना और सबको साथ लेकर चलने की भावना बहुत कम देखने को मिलेगी जो उनमें विद्यमान है। वे क्षुद्र सोच के छोटे इंसान नहीं, वरन विराट हृदय के महामानव हैं। परिचय उसका दिया जाता है जो अपरिचित होता है, डॉ. संजीव कुमार जी तो सुपरिचित हैं। अंत में बस यही कहना है कि उन्होंने आंगारों से भरे पथ पर चलकर हमें बहुत कुछ कर दिखाया है। यह कहानी अभी पूरी नहीं होती, वे अभी थमें नहीं हैं अनवरत गतिमान हैं। उनके बहुआयामी व्यक्तित्व के अनेक रंग अभी समय के साथ आने शेष है। उनसे बातें और मुलाकातें होती रहेंगी और उनका रंग गाढ़ा होता जाएगा।
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· डॉ. नीरज दइया
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