दोय ओडिया लघुकथावां / मूल लेखिका : डॉ. मौसुमी परिडा
हिंदी सूं राजस्थानी अनुवाद / डॉ. नीरज दइया
साच रो मोल
‘चावळ मांय कांकरा है।’ अनाथालय मांय रैवणियो गौतम बोल्यो। सारै बैठ्या सगळा टाबर उण नै देखण लाग्या। ‘दोय दिन हुया है उण नै अठै आयां नै अर नखरा तो देखो।’ एक होळै सूं बोल्यो। दूजो कैयो- ‘काल रात नै ई कैवतो हो कै रोट्यां चीढी है, सावळ सेकीजी कोनी।’
‘इण नै कांई ठाह कै अठै आपां री मरजी सूं रोटी कोनी मिलै, कमावणो पड़ै बारली दुनिया दांई!’
गौतम रा रंग-ढंग देख’र एक मोटो छोरो निगम कैयो- ‘किणी नै कांकरो कोनी दिख्यो, थन्नै दिखग्यो?’
गौतम बेखोफ बोल्यो- ‘पैलो गासियो लेवतां ई दांतां हेठै कांकरो आयग्यो...।’
‘अच्छिया म्हैं देखूं देखाण..।’ कैवतो निगम गौतम री थाळी अरोगण लाग्यो। थाळी साफ कर’र बोल्यो- ‘कांकरो तो कठैई कोनी... म्हैं खा’र देख्यो है। तू कूड़ो है।’
उण दिन रात नै ई रोटी-साग देख’र गौतम फेर कैयो- ‘अठै खाणो चोखो कोनी मिलै। साग बासी हुवै, ठाह कोनी कठै सूं लावै।’
फेर निगम आयो अर उण री थाळी चट कर’र मारग लियो। आखै दिन भूखो रैयो गौतम...। आखी रात नींद कोनी आई भूखा मरतै नै। आंसु आवै हा। अठै साच बोल्या सजा मिलै। बारै काम करां तो दिन मांय एक बार तो सावळ जीम तो सकां।
आगलै दिन दिनूगै सगळा नै जीमण पुरस दियो फगत गौतम रै। भूखां मरतो बो बोल्यो- ‘म्हनै ई जीमण देवो।’ निगम कैयो- ‘थन्नै तो रोटी चोखी कोनी लागै, जे रोटी री कदर नीं करसी तो खासी कांई?’
‘तो म्हनै बारै जावण दो। म्हनै अठै कोनी रैवणो। म्हैं भूखो हूं।’ तद सूं उण रा हाथ-पग बांध दिया। रोटी नै तरसतो गौतम तद सूं एक ई रट तोतै दांई लगा राखी है- ‘रोटी भोत चोखी है अर लोग ई घणा ई चोखा है अठै रा।’
दोय दिनां पछै अनाथालय नै पुरस्कार मिल्यो। कूड़ बोल’र अठै रोकड़ा अर माण कमा सकां। खरो मिनख कमरै मांय बंद है, कूड़ा अर फरेबी मौज उड़ावै, जूण जीवै।
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लडाकू भगवान
दादीसा बोल्या- ‘जिको कीं हुवै उण मांय सगळा री भलाई हुया करै अर भगवान री मरजी हुवै बियां ई हुवै। पेड़ सूं पानड़ा खिरै का डूंगर सूं भाखर बिना भगवान री मरजी कीं नीं हुवै।’ महेश रै मगज मांय बैठगी आ बात- ‘जिको कीं हुवै बो भगवान री मरजी सूं हुवै।’
दादोसा अखबार बांचै हा। जुध रै बारै मांय जाणकारी सूं घणा दुखी हा। जीसा सूं इण बाबत बातां करै हा।
महेश बूझ्यो- ‘जुध क्यूं हुवै?’
‘अहंकार अर जिद्द नै सिध करण नै।’ दादो सा कैयो।
‘जुध मांय कांई हुवै?’
‘फगत बरबादी भळै दूजो कीं नीं हुवै।’
महेश रै ठसक लागी। मनां विचारण लाग्यो- ‘भगवान आपरी मरजी सूं आ दुनिया उजाड़ै क्यूं?’
दादो सा आगै बांचै हा- ‘चुनावी हिंसा के लिए तीन लोग मारे गए और कई घायल हुए हैं। ये हिंसा हर गली में, परिवारों में भी फैल गई है! किसी गांव में एक बेटे ने सम्पत्ति के लिए अपनी मां का खून कर दिया!’
अबै महेश मून नीं रैय सक्यो, बोल्यो- ‘कांई भगवान लड़ाकू अर हत्यारो है? कांई अशांति फैला’र बो राजी हुवै?’
दादो सा अचरज सूं पूछ्यो- ‘ओ थन्नै कुण कैयो?’
‘दादीसा हमेस कैवै- जिको हुवै बो भलाई खातर हुवै अर जिको कीं हुवै बो भगवान री मरजी सूं ई हुवै।’
दादोसा कीं नीं बोल्या...। जीसा रो उणियारो ई फीको फीको निजर आवै हो।
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