छेहली बंतळ / लू शुन/ अनुवाद- डॉ. नीरज दइया
छेहली बंतळ / लू शुन
जीसा घणी दौराई सूं सांस लेय रैया हा। अठै तांई कै बां री छाती सूं धक-धक री आवाज म्हनै सुणीज रैयी ही। पण अबै स्यात ही कोई उणा री कीं मदद कर सकैला। म्हैं लगौलग ओ सोचै हो कै चोखो रैवै बै इणी ढाळै आराम सूं सरगलोक जावै परा। पण तद ई चाणचकै म्हनै लखायो कै इण ढाळै री बातां म्हनैं नीं विचारणी चाइजै। म्हनैं इयां लागण लाग्यो जाणै म्हैं इण ढाळै री बातां दिमाग मांय लाय’र मोटो गुनो कर दियो हुवै। पण तद ठाह नीं क्यूं म्हनै इयां लागतो कै मरतकाळ मांय जीसा री सावळ-सोरी मौत की कामना करणो कोई बेजा बात ई कोनी। आज ई म्हनै आ बात ठीक लखावै।
उण दिन दिनूगै-दिनूगै म्हारै घरै म्हारी पाडोसण येन बैनजी आया अर जीसा री हालत देख’र बां पूछ्यो कै अबै म्हे किण बात नै उडीक रैया हां। अबै बगत बरबाद करण सूं कांई फायदो। येन बैनजी रै कैयां म्हां जीसा रा कपड़ा बदळिया। उण पछै नोट अर कायांग-सूत्र बाळ’र बां री आत्मा री शांति सारू अरदास करी। फेर उण राख नै एक कागद री लपेट’र पुड़ी बणा’र बां रै हाथ मांय झला दी।
- उणां सूं कीं बात करो। येन बैनजी कैयो- थारै जीसा रो छेहलो बगत आयग्यो। बेगो सा उण सूं बोल-बतळा लो।
- बाबूजी! बाबूजी! म्हैं बां नै हेलो करियो।
- जोर सूं बोलो। बां नै थारी आवाज सुणीज कोनी रैयी। अरे बीरा, बेगा करो, थे जोर सूं कोनी बोल सको हो कांई?
- बाबूजी! बाबूजी! म्हैं फेर कैयो। अबकी कीं बेसी जोर लगा’र कैयो।
बां रै उणियारै पैली जिकी निरायंत दीसै ही बा गायब हुयगी ही। अबै फेर उणा रै उणियारै मांय पीड़ रा बादळ छायग्या। बेचैनी मांय उणा रै भंवराटां होळै-होळै हिलण लाग्या।
- बां सूं बात करो। येन बैनजी फेर कैयो- बेगा करो... अबै बगत कोनी।
- बाबूजी! घणी बेचैनी सूं म्हारा हरफ निकळिया।
- कांई बात है? ... रोळा क्यूं मचा रैयो है?
आ बां री आवाज ही। साव होळी अर सुस्त। बै फेर तड़फण लाग्या हा। बै भळै सांस लेवण री तजबीज करै हा। कीं बगत पछै बै फेर पैला दांई मून हुयग्या।
- बाबूजी!!! अबकी म्हैं बां नै तद तांई बुलावतो रैयो, जद तांई कै बां छेहली सांस नीं लेय ली।
खुद री बा ढीली अर मरियोड़ी आवाज म्हैं आज ई बियां री बियां सुण सकूं। अर जद ई म्हैं बै म्हारी चीसाळियां सुणु, म्हैं लखावै कै बै म्हारै जीवण री स्यात सगळा सूं मोटी गळती ही।
अनुवाद- डॉ. नीरज दइया
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