कूड़ी कहाणी / डॉ. मौसुमी परिड़ा
काळो मूंड़ो अर मैली आंख्यां सूं केंचुआ जिसा तांबाई केसां नै हटा’र सात साल री छोरी हाथ पसारियो- ‘बाबू जी! घणी भूख लाग्योड़ी है, पइसा दो नीं।’ दया दिखावता उण मिनख उण छोरी नै बुला’र उण रै हिसाब मुजब भर-पेट जीमा दी। जीम्यां पछै उण री कोझियै चैरै सूं पळपळाट करती हंसी छूटण लागगी। तद उण भलै मिनख कैयो- ‘म्हनै ई घणी भूख लाग्योड़ी है।’
छोरी ऊजळी हंसी हंसता कैयो- ‘दुकान मांय कित्ती चीजां है! समोसा, दहीबड़ा , कचोड़ियां , कित्ती कित्ती मिठाइयां भळै अठै तो दाळ-चावळ ई तैयार है। जियां जचै बियां खा सको, आपरै म्हां गरीबां जिसी कोई कमी तो कोनी। थे तो अमीर हो बाबूजी!’
बाबू जी दांत काढ़ता बोल्या- ‘ना. म्हारै पसंद री चीज अठै कठै?’
- ‘किसी चीज कोनी अठै?’
बाबू जी कैयो- ‘तू’
छोरी री आंख्यां फाटी री फाटी रैयगी। बा भोळपणै सूं बोली- ‘आदमखोर राखस हो कांई थे, जिका म्हनै खासो?’ बाबू जी काळो चश्मो काढ’र बोल्या- ‘म्हैं थन्नै जीमण जीमावणियो एक देवता हूं, दो मिंट मांय म्हारो उपकार ई भूलगी।’
छोरी कैयो- ‘भूलूं कियां आ बात। थे कैवो कै थांरै पसंद री चीज म्हैं हूं, पण म्हनै खासो तद तो म्हैं मर जासूं। कोई देवता कांई मिनखां रो भख लेवै है कांई? देवता तो भला हुया करै है।’
- ‘डर मती, चाल बठीनै उण घर मांय चालां।’
- ‘बठै तो अंधारधुप्प है।’
- ‘अंधारो ई तो थां जिसां रो रूखाळो हुया करै, थन्नै कोई बतायो कोनी कांई?’
छोरी आंसुड़ा ढळकावती कैयो- ‘दोय दिन सूं भूखै म्हारै मांदै बाप नै दवाई देवण मांय मोड़ो हुय जासी। उल्टियां करतो करतो बिछाड़ै पड़ियो है, सरधा कोनी उण री। जे बो मर जासी तो म्हैं साव एकली होय जासूं।’
- ‘कूड़ी कठैई री! कूड़ क्यूं बोलै?’ उण बाबू उण नै कैयो।
- ‘देख लेवो, दवा रै भेळै सावूदाणा ई लेय नै जाय रैयी हूं’ कैवतां बा आपरी डावड़ै हाथ री हथाळी खोल दी अर कमर सूं साबूदाणा रो पूड़ियो ई काढ़ता आपरै साच नै साम्हीं करियो। आं री हथाळी कित्ती छोटी सी’क हुवै- उण अमीर मिनख विचार करियो। उण री मजबूरी नै विचारता बोल्यो- ‘ठीक है, तू ऐ सब थारै बाबा नै देय’र आय जा। पाछी आवै तद तांई म्हैं थन्नै उडीकूं। छोरी तावळी तावळी पग लिया तो लारै सूं हेलो सुणियो- ‘पाछी आसी नीं। म्हैं थन्नै भर पेट जीमण जीमायो है। भळै ई जीमासूं। देख धोखो मत करजै। अठै पाछी बेगी आवजै।’
- ‘ठीख है, आ जासूं।’ कैवती उण छोरी रै जाणै पांख्यां लागगी अर उड़ती गई। इयां लखायो जाणै उण रै डील रै दो आंख्यां निकळगी अर बा चीलख रो भख हुवण सूं मुगत हुयगी।
अबै बा पाछी कोनी आवैला। बा ओळख लियो उण देवता मिनख रै मांयलै राखस नै। बो क्यूं उण नै उण सूनै घर मांय लेय जावणो चावतो हो। इसा मिनख जाणै तिरसाया हुवै- बै पाणी री जागा लोगां रो रगत पीया करै। मिनखां रो भख लेवणो एक राखस, जरा सी देर रै खेल मांय जाणै जूण रो सगळो इमरत चूस लेवै।
कहाणी मांय तो गाय आपरै कौल मुजब सिंघ पाखती पाछी आवै आपरै बाछा नै दूध पायां पछै पण सिंघ उण नै उण रै साच नै जाण’र बगस देवै! कारण कै फेर बाछा रो कांई हुसी? सिंघ रै मांय तो दया रो भाव हो। ।
पण ओ सेरियो इण नै कोनी छोड़ैल, खुड़च-खुड़च’र खा जासी... हुय सकै आपरै बेलियां नै ई बुला लेवै। राखसां रो कांई भरोसो?
छोरी रै घरै पूगतां ई जीसा पूछ्यो- ‘इत्ती देर कठै कर दी। म्हनै घणी चिंता हुवै ही।’
छोरी कैयो- ‘सिंघ सूं बचणो सोरो हैं कांई जीसा? घणी दौरी उण रै चुंगल सूं बच’र आई हूं। अबै फटाफट कीं बणा देवूं, उण नै अरोग’र दवा खाओ। बेगा ई निरोगा हुय जासो।
जीसा सोचै हा कै बेटी सदा दांई आज ई कूड़ी कहाणी कैवण री भळै धार ली है। ठाह ई कोनी पड़ियो कै इत्ती बड़ी कियां अर कद हुयगी म्हारी छोटी सी गुड़की!!
अनुवाद : डॉ. नीरज दइया
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