Sunday, July 04, 2021

राजस्थानी साहित्य का व्यापक परिदृश्य : सृजन संवाद / डॉ. मंगत बादल

नीरज दइया की नई पुस्तक आई है ‘सृजन संवाद। इस पुस्तक में उनके द्वारा लिए गए कुल दस राजस्थानी साहित्यकारों के साक्षात्कार हैं जो केंद्रीय साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा पुरस्कृत हो चुके हैं। श्री कन्हैया लाल सेठिया, श्री मोहन आलोक, श्री यादवेंद्र शर्मा चंद्र’, अर्जुनदेव चारण, डॉ. कुंदन माली, मंगल बादल, श्री अतुल कनक, डॉ. आईदान सिंह भाटी, श्री मधु आचार्य, श्री बुलाकी शर्मा के साक्षात्कार समाहित हैसाथ ही सात रचनाकारों द्वारा समय-समय पर लिए गए डॉ. नीरज दइया के साक्षात्कार एवं उनका आत्मकथा भी प्रकाशित है जिससे पुस्तक की उपादेयता कुछ और बढ़ जाती है।

साक्षात्कार विधा का विकास हिंदी भाषा में अंग्रेजी भाषा से हुआ है। हालांकि संस्कृत में गुरु-शिष्य संवाद, शुक-शुकी संवाद, रामचरित मानस में की राम कथा चार वक्ताओं और चार श्रोताओं के माध्यम से आगे बढ़ती है किंतु इससे पाठक को रचनाकार के विषय में कुछ भी मालूम नहीं पड़ता जबकि साक्षात्कार के माध्यम से साक्षात्कार कर्ता रचनाकार की उन सच्चाइयों से भी रू--रू कराता है जो रचना एवं रचनाकार की पृष्ठभूमि में रह जाती है। साक्षात्कार कर्ता अपने बेधडक प्रश्नों के माध्यम से उन धुंधलके को प्रकाश में परिवर्तित कर देता है जो रचनाकार के व्यक्तित्व एवं रचना पर छाया होता है। वह अपनी बेबाक टिप्पणियों एवं निर्मम प्रश्नों के माध्यम से लेखक के भीतर उसी भांति गहरे उतर कर सत्य को तलाश कर लेता है जिस प्रकार कोई गोताखोर समुद्र से मोती। अन्य विधाओं की अपेक्षाकृत यह विधा राजस्थानी भाषा के लिए नई है। यद्यपि पत्र-पत्रिकाओं में राजस्थानी भाषा के साहित्यकारों के साक्षात्कार प्रकाशित होते रहे हैं किंतु पुस्तक रूप में यह पहला प्रयास है। यहां यह भी ध्यातव्य है कि यह पुस्तक राजस्थानी भाषा में ना होकर हिंदी में क्यों है? इसका सीधा सा मतलब है जो पाठक राजस्थानी नहीं पढ़ समझ सकते उन तक इन लेखकों का अवदान पहुंचाने का प्रयास किया गया है। कम से कम हिंदी भाषा भाषी क्षेत्रों तक इन रचनाकारों के साहित्य की जानकारी तो पहुंचे। इस दृष्टि से इस प्रयास को स्तुत्य कहा जा सकता है।

साक्षात्कार करती बार डॉ. नीरज दइया इस बात का पूरा ध्यान रखा है कि रचनाकार अपनी रचनाओं के विषय में खुलकर बतला सके तथा अपनी रचना-प्रक्रिया पर प्रकाश डाल सके। कन्हैया लाल सेठिया हों या मोहन आलोक, कुंदन माली हों या अर्जुन देव चारण सभी से बेबाकी से प्रश्न पूछे हैं। सेठिया जी से तो पुरस्कार ग्रहण न करने और फिर ग्रहण करने के प्रश्न बड़ी निर्ममता से पूछ कर यह जता दिया कि जो आलोचक संबंधों को मध्य नजर रखकर समीक्षा या आलोचना करेगा वह सफल नहीं हो सकता। हां एक बार वाह-वाही अवश्य प्राप्त कर लेता है। इसी प्रकार राजस्थानी भाषा का रचनाकार राजस्थानी के अतिरिक्त हिंदी अथवा किसी इत भाषा में भी लेखन करता है इसके प्रत्युत्तर में प्रायः सभी रचनाकारों ने प्रकाशन की अपनी-अपनी चिंता की है राजस्थानी भाषा की मान्यता को लेकर भी सवाल पूछे गए हैं तथा मान्यता मिलने के बाद की संभावनाओं पर विचार किया गया है इस प्रकार इन साक्षात्कारों से जो एक दृष्टि बनती है, वह यही कि आज राजस्थानी का रचनाकार रचना करने और भाषा की मान्यता संबंधी दो मर्चों पर एक साथ लड़ रहा है। राजस्थानी का रचनाकार अपने अस्तित्व की इस लड़ाई में साहित्य के प्रत्येक क्षेत्र की न्यूनता को पूर्णता में बदलने के लिए कटिबद्ध है तथा इसके लिए अपनी जेब से पैसे खर्च करके पुस्तकें पुस्तकें प्रकाशित करता है तथा पाठकों तक मुफ्त पहुंचाता है।

पुस्तक का प्रथम भाग अपने आस-पास शीर्षक से प्रकाशित है जबकि दूसरा भाग भीतर-बाहर और तीसरा भाग आत्मकथ्य शीर्षक से। दूसरे भाग में डॉ. नीरज दइया के सात साक्षात्कार हैं जो समय-समय पर वरिष्ठ लेखकों यथा सर्वश्री देवकिशन राजपुरोहित, नवनीत पांडे, डॉ. लालित्य ललित, राजेंद्र जोशी, डॉ. मदन गोपाल लढ़ा, डॉ. लहरी राम मीणा और राजू राम बिजारणिया द्वारा लिए गए हैं इन साक्षात्कारों में डॉ. नीरज दइया ने केवल अपने रचना-कर्म पर प्रकाश डाला है बल्कि अपने आलोचकीय दृष्टिकोण को भी साफ कर दिया है उन्होंने जता दिया है कि आलोचना कर्म में अपने-पराए की बात जो लोग करते हैं, वे बकवास करते हैं यदि आप वास्तव में साहित्यकार हैं तो आपकी नजर में साहित्य ही रहेगा, पारस्परिक संबंध नहीं आत्मकथ्य के अंतर्गत उन्होंने अपने उन दो भाषणों को प्रकाशित किया है जो बाल साहित्य की पुस्तक ‘जादू रो पेन’ और आलोचना की पुस्तक बिना हासिलपाई पर पुरस्कार ग्रहण करते हुए दिए थे इनमें उनकी ईमानदारी और मेहनत तो झलकती ही है साथ ही साथ ही अपने साहित्यकार पिता श्री सांवर दइया के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव भी छलक-छलक पड़ता है सृजन-संवाद के लिए डॉ. नीरज दइया को शुभकामनाएं

पुस्तक का नाम : सृजन संवाद

विधा – साक्षात्कार ; संस्करण – 2020 पृष्ठ संख्या – 128 ; मूल्य – 300/- रुपए

प्रकाशक – किताबगंज प्रकाशन, सवाई माधोपुर

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डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
© Dr. Neeraj Daiya. Powered by Blogger.

आंगळी-सीध

आलोचना रै आंगणै

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