राजस्थानी कवितावां / डॉ. नीरज दइया
(आदरणीय भाई श्री रविदत्त मोहता के साथ)
ऊमर रा धोरिया
(१.)
टाबर खुद रै मूढै
मांडै मूंछ्यां
करै कोड
फदाकणा चावै-
ऊमर रा धोरिया।
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(२.)
लागै सगळा नैं
घणो व्हालो
रूपाळो हुवणो
बैन थथेड़ै पोडर,
कोई कोनी पोतै-
काळख।
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(३.)
धोळै केसां माथै
लगावै खिजाब
बड़ोडा भाइसा
देखै- मूछां
कठैई रैय नीं जावै-
चांदी।
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(४.)
कुण चढणो चावै
बूढ़ापै मांय घाटी
एक औसथा पछै-
ना चढनो सोखो
ना उरणो
थमणो ई ओखो....
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(५.)
हाथ मांय हुवै
ऊमर री रेखा
पण
हाथ मांय
हुवै कोनी-
ऊमर !
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(६.)
ऊमर रा धोरिया
लंघता-लंघता
जाणै जूण रमै
कोई रम्मत
मिल सकै कदैई
थांनैं-म्हांनैं
का उणनैं-
खो !
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(७.)
आभै मांय-
आवै सूरज
आवै चांद
आवै नौलख तारा
अर
नित गुड़कता दीसै...
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(८.)
जूण रो
जूगा जूनो साच-
ऊगै जिको आथमै
रंग है थनैं-
सूरज नैं आथमता देख्यां ई
कोनी बापरै चेत !
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(९.)
लीर -लीर हुयां पछै ई
कारी-कुरपी
कीं जाचो जचा सकै...
आधो का चौथाई
भरियां ई पेट
कीं धाको धिक सकै...
पण जद सांस सांस नैं
देवण लागै धोखो
कोई पण जूण
धोरिया मांय धस जावै।
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(१०.)
‘थूं कैवतीं ही नीं’
‘कांई कैवतीं ही’
‘थनै याद कोनी’
‘कै कैवण-सुणण रो कांई,
कोई टैम हुवै...’
‘वा इण मांय
टेम कांई
अर बेटेम कांई’
‘कूड़ी-साची करता-करता
कटगी घणखरी तो जूण’
‘बाकी री कट जासी’
‘इसो कुण है
जिको ऊमर रै धोरिया
चढण सूं नट जासी?’
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(११.)
ऊमर रा धोरिया
जद ढळ जावै
मोरिया नाचै कोनी
हम्बै, मोरिया
अर कोनी नाचै !
आ कदैई हुया करै के !
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(आकाशवाणी, बीकानेर से दिनांक 22-01-2019 को प्रसारित)
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