धूप आई, हाथ छूने के लिए
संग्रह में विषयागत नवीनता देख सकते हैं। उदाहरण के लिए पहली ही कहानी ‘खत प्यारे सान्ता बाबा को’ में क्रिसमस के साथ ही एक मासूम बच्चे की कहानी में भीतर तक भीगते हैं। कहानी में बच्चे यह भी सीख सकते हैं कि उन्हें समय रहते समझ लेना है कि कुछ अटल सत्य होते हैं। कुछ ऐसी स्थितियां होती हैं जिन्हें बदला नहीं जा सकता। जैसे मयंक के पिता यदि शहीद हो गए हैं तो लौट कर नहीं आएंगे। डॉ. शील कौशिक की कहानियों की बुनावट बच्चों और उनके जीवन, व्यवहार और आचरण से गहरे तक जुड़ी होती हैं। वे बाल मन को बांचना जानती है कि अपनी कहानियों में मनोवैज्ञानिक आधार रचते हुए उन्हें कुछ न कुछ स्वत सीख मिलती है। ‘मिष्ठी का सवाल’ जैसी कहानियों में शिक्षा को बच्चों पर आरोपित नहीं किया जाना उनका विशेष कौशल है। इसी कौशल के रहते वे अन्य बाल कहानीकारों से अलग हैं और अपनी पहचान-विश्वास बना रही हैं। ‘आन्या की गुड़िया’ कहानी में दो सहेलियां आन्या और श्रेया के माध्यम से धैर्य-त्याग-समर्पण के भाव को अपनाने की शिक्षा है। इसके साथ ही बुरी आदत चोरी से बचने की प्रेरणा भी कहानी देती है। इसी भांति ‘हार-जीत’ कहानी में कनक और विभा के माध्यम से बच्चों में प्रत्येक स्थिति से मुकाबला करने के साथ खेल के बाद परस्पर प्रेम और भाईचारे का संदेश बड़ी बात है।
‘लौट आई मुस्कान’ कहानी में प्रसिद्ध धारावाहिक ‘रजनी’ के गुण प्रकट होते हैं। बच्चों की समस्या के प्रति प्रिंसिपल से मिलकर समस्या को हल करना हमारी जिम्मेदारी और जबाबदेही को दर्शाती है। इसी भांति ‘पानी अनमोल’ में पानी को बचाने का संदेश है। इस कहानी के अंत में लेखिका का विषय के प्रति मोह प्रकट होता है जहां वह सारा से काव्य पंक्तियां लिखवा कर गुनगुनाने का जिक्र करती हैं तथा पानी बचाने के अभियान के जारी रहने की आशा प्रकट करती है। स्वभाविक रूप से कहानी जहां पूरी होती है उसे वहीं छोड़ दिया जाना चाहिए। सारा ने पानी का जैसे ही महत्त्व समझ लिया तो लेखिका को भरोसा होना चाहिए कि उसके पाठक भी महत्त्व समझ चुके हैं। ‘जल्दबाजी और ‘उपचार से रोकथाम भली’ ऐसी ही कहानियां हैं जिसे सप्रयास शिक्षा देने के लिए लिखा गया है।
‘जुनून के चलते’ कहानी बच्चों की तुलना में उनके अभिभावकों के लिए हैं जो बच्चों के अतिरिक्त प्यार में सब कुछ भूलकर उनकी अनावश्यक मांगों को पूरी करते हैं। समय पर सब कुछ होना चाहिए, बहुत सी बातें समय पर ही ठीक लगती है। दादा-दादी और नाना-नानी के प्रति बच्चों में लगाव हो उन्हें जीव-जंतुओं से प्रेम हो ऐसे ही विषयों को संग्रह की अन्य कहानियों में पिरोया गया है।
बदलते समय और परिवेश में बच्चों को बाल पत्र-पत्रिकाओं और किताबों से जोड़ा जाना चाहिए इसी उद्देश्य से बच्चों का एक अभियान कहानी ‘सपना बच्चों का’ में अभिव्यक्त हुआ है। यह हम सभी शिक्षित अभिभावकों को जिम्मेदारी है कि बच्चों को शब्दों के जादू से समय रहते परिचित कराएं। ज्ञान का विशाल भंडार और जीवनोपयोगी अनेक बातें बच्चे पढ़ते-लिखते साथ साथ इतर साहित्य के माध्यम से सीख सकते हैं ऐसी अभिलाषा के लिए डॉ. शील कौशिक बधाई की पात्र हैं।
समीक्षक : डॉ. नीरज दइया
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पुस्तक : धूप का जादू (बाल कथा-संग्रह); कहानीकार : डॉ. शील कौशिक ; प्रकाशक : आयुष बुक्स, डी-3-ए, विश्वविद्यालयपुरी, गोपालपुरा बाईपास, जयपुर-302 018 ; संस्करण : 2018 ; पृष्ठ : 80 ; मूल्य : 150
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बालवाटिका (जनवरी, 2019) में प्रकाशित। आभार : सं. डॉ.भैरूंलाल गर्ग
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