‘श्रीलाल नथमलजी जोशी : रचना संचयन’ लोकार्पण
बीकानेर/ 23 अक्टूबर/ श्रीलाल नथमलजी जोशी ने राजस्थानी कथा साहित्य के पायोनियर रचनाकार थे जिन्होंने प्रवाहमयी भाषा द्वारा जटिल से जटिल भावों को सहजता से अभिव्यक्त किया। उक्त उद्गार प्रसिद्ध कवि-चिंतक डॉ. नन्दकिशोर आचार्य ने श्रीलाल नथमलजी जोशी की आठवीं पुण्य तिथि पर आयोजित लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए व्यक्त किए। मुक्ति संस्था महाराजा नरेन्द्रसिंह ओडिटोरियम में डॉ. आचार्य ने राजस्थानी के मुद्दे पर बोलते हुए कहा कि मैं सैद्धांतिक रूप से मानता हूं कि शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होना चाहिए, यह भाषिक मानवाधिकार की श्रेणी में आता है कि जिनकी मातृभाषा राजस्थानी है उन्हें आरंभिक शिक्षा राजस्थानी में मिले। उन्होंने श्रीलाल नथमलजी जोशी के अनेक संस्मरणों को बताते कहा कि ‘धोरां रा धोरी’ जैसे जीवनीपरक उपन्यास की परंपरा आगे विकसित होनी चाहिए थी। नए लेखकों को अपने पूर्ववर्ती लेखकों से सृजनात्मक रिश्ता उनकी भाषा में तलाशना चाहिए।
मुख्य अतिथि ख्यातनाम कवि-संपादक भवानीशंकर व्यास ‘विनोद’ ने कहा कि श्रीलाल नथमलजी जोशी ने राजस्थानी के लिए बेजोड़ काम किया। अग्रजों के लिए उनमें श्रद्धा भाव था। व्यास ने कहा कि उनका उपन्यास ‘आभै पटकी’ राजस्थानी का पहला उपन्यास है जिसे शुद्ध सामाजिक उपन्यास कहा जा सकता है। जोशी के कार्यों पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि राजस्थानी गद्य के विकास में उनका अविस्मरणीय योगदान रहा है।
लोकार्पित कृति ‘श्रीलाल नथमलजी जोशी : रचना संचयन’ पर अपने पत्रवाचन में कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया ने जोशी की पांच पुस्तकों के संकलन को पंचामृत की संज्ञा देते हुए उन्हें कालजयी गद्य लेखक बताया। डॉ. दइया ने कहा कि जोशी जी के हॄदय में मातृभाषा राजस्थानी के अपरिमित लगाव था जिसके रहते वे गद्य साहित्य को अपने जीवनकाल में विविध कथा-प्रयोगों से समृद्ध करते रहे।
लोकार्पण समारोह के आरंभ में ठा.रामसिंह द्वारा लिखित और श्रीलाल नथमलजी जोशी को अतिप्रिय राजस्थानी वंदना का गायन प्रसन्ना पारीक और शिवानी पारीक ने प्रस्तुत किया। आगंतुकों का स्वागत करते हुए कवि-कहानीकार मालचंद तिवाड़ी ने श्रीलाल नथमल जोशी से जुड़े संस्मरण साझा करते हुए उन्हें राजस्थानी का अद्वितीय रचनाकार बताया और संचयन के प्रकाशन को निजी हर्ष का विषय कहा।
रचना संचयन के संपादक द्वय श्रीमती कांता पारीक और श्रीमती प्रभा पारीक में से श्रीमती प्रभा ने अपनी बात रखते हुए बाऊजी के लेखन की विचार भूमि पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा उन्हें लिखित दो पत्रों का भी वाचन किया। इस अवसर पर श्रीमती शशिकांता जोशी और साहित्यकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ को संपादक द्वय द्वारा रचना-संचयन भेंट किया गया।
व्यंग्यकार-कहानीकार बुलाकी शर्मा ने पुस्तक प्रकाशन की रूपरेखा पर प्रकाश डालते हुए बाऊजी से जुड़े अनेक संस्मरण साझा करते हुए कहा कि हमें श्रीलाल नथमलजी जोशी के कार्यों से प्रेरणा लेते हुए निरंतर राजस्थानी सृजन करना चाहिए। राजस्थानी उनके और हमारे मन से जुड़ी भाषा है। समारोह का संचालन बुलाकी शर्मा ने किया तथा अंत में वाचस्पति जोशी ने आभार ज्ञाप्ति किया। कार्यक्रम में साहित्यकार सरल विशारद, डॉ. श्रीलाल मोहता, लक्ष्मीनारायण रंगा, राजाराम स्वर्णकार, भंवर लाल भ्रमर, प्रमिला गंगल,राम प्रकाश मन्नू, बैजनाथ पारीक, कमला कोचर, ओमप्रकाश सारस्वत, प्रीति पारीक, शुभा पारीक, विश्वासिनी, किशन गोपाल पांडिया, गिरधर गोपाल व्यास, पी आर लील, नवनीत पाण्डे, पृथ्वीराज रतनू, प्रो. अजय जोशी, डॉ. मेधराज शर्मा, अविनाश व्यास, मुकेश व्यास, प्रमोद कुमार चमोली, दीपचंद सांख्ला, नदीम अहमद नदीम, गौरीशंकर प्रजापत आदि उपस्थित थे।
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