प्रख्यात साहित्यकार सांवर दइया की 70 वीं जयंती
कार्यक्रम के आरंभ में सांवर दइया के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उनका स्मरण किया गया। मुख्य अतिथि डॉ. आईदान सिंह भाटी ने कहा कि मुझे बेहद खुशी है कि स्व. सांवर दइया ने लोकभाषा में आधुनिकता का प्रवेश करवा समृद्ध किया उनकी कहानी-यात्रा में आज एक नया कहानी संग्रह ‘छोटा-छोटा सुख-दुख’ जुड़ रहा है। राजस्थनी कहानी में सांवर दइया ने आधुनिक युगबोध और नवीता का सूत्रपात किया उनके साहित्य में समाज और जीवन का अविस्मरणीय रूप झलका है। हम अगर व्यक्तिपरक लिखेंगे त़ो हमारा नाम बहुत दूर तक नहीं जाएगा। जबकि सांवरजी लोक-मन के कवि-कथाकार थे। डॉ. नीरज दइया ने युवा साहित्यकारों के सामने ‘राजस्थानी कहानी का वर्तमान’ देकर एक प्रतिमान प्रस्तुत किया है।
कार्यक्रम में प्रख्यात रंगकर्मी और साहित्यकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा कि सांवर दइया ने कहानी में नाटक के अनेक तत्वों का प्रयोग करते हुए कहानी की रूढ़ता को निरंतर दूर करते हुए संवेदनशील रचनाकार होने का परिचय दिया। डॉ. नीरज दइया की राजस्थानी भाषा में गहरी पकड़ को इस अनूदीत कृति में देखा जा सकता है, उन्होंने कविता को ठेठ राजस्थानी भाषा के मुहावरे में ढालने में सफलता अर्जित की है। आलोचना के क्षेत्र में डॉ. नीरज के कार्यों की सराहना करते हुए उन्होंने कहा कि वे पूरी समझ, सूझबूझ और दृष्टि के साथ कार्य कर रहे हैं।
वरिष्ठ कहानीकार-संपादक डॉ. मदन सैनी ने कहा कि सांवर दइया आधुनिक गद्य साहित्य की धूरी थे। उनकी कहानियां अपने आप में एक मिशाल है। वे समाज के केंद्र में रखकर लिखते थे इसलिए आधुनिक साहित्य में अग्रिम पंक्ति के रचनाकार कहे जाते हैं। उनकी कहानी को लेकर सूक्ष्म दृष्टि अनुकरणीय है। नीरज दइया अपने पिता के पद्चिह्नों पर चलते हुए राजस्थानी-हिंदी साहित्य में ख्यातिप्राप्त रचनाकार के रूप में पहचाने जाने लगे हैं। उनकी दोनों भाषाओं में समान अधिकार के चलते डॉ. संजीव कुमार की कविताओं का उन्होंने बेहद पठनीय और उपयुक्त अनुवाद किया है। आलोचना के क्षेत्र में जो कमी है उसे डॉ. नीरज निरंतर अपने सृजन से पूरा कर रहे हैं। बुलाकी शर्मा ने सांवर दइया की दस अप्रकाशित कहानियों को प्रस्तुत कर सराहनीय कार्य किया है।
व्यंग्यकार कहानीकार बुलाकी शर्मा ने अपने उद्बोधन में कहा कि सांवर दइया की कहानी कला अपने आरंभिक काल से युवाओं के लिए प्रेरक और प्रतिमान के रूप में पहचानी जाने लगी थी। उन्होंने राजस्थानी कहानी को आगे बढ़ाते हुए अनेक शैल्पिक प्रयोग किए। डॉ. नीरज दइया विविध विधाओं में लिखते हुए राजस्थनी के गौरव में अभिवृद्धि करने वाले युवा साहित्यकार है। शर्मा के कहा कि राजस्थानी कहानी का वर्तमान जैसी पुस्तक से राजस्थानी कहानी का यश दूर दूर तक फैलेगा।
इस अवसर पर कवि डॉ. संजीव कुमार ने अपनी चयनित बोलते पत्थर, कौन कहता है, चुक जाता है एक दिन इत्यादि कविताएं सुनाकर दाद बटोरी तो वहीं मन के सूनेपन पर कविता ने सोचने के लिए विवश किया। डॉ. नीरज दइया ने संग्रह से अनूदीत कविताओं का पाठ किया तथा अपनी रचना-प्रक्रिया पर प्रकाश डाला। संस्था द्वारा कवि डॉ. संजीव कुमार, डॉ. आईदानसिंह भाटी, मधु आचार्य आशावादी, अनंगपाल सिंह चौहान, मनमोहन कल्याणी, सरल विशारद, मयंक पारीक आदि अतिथियों का संस्था द्वारा शॉल ओढ़ाकर सम्मान किया गया। इस अवसर पर डॉ. नीरज दइया ने अपने परिजनों और साहित्यकारों को पुस्तकें भेंट की।
लोकार्पण समारोह में साहित्यकार हरदर्शन सहगल, सरदार अली परिहार, सरल विशारद, अनंगपाल सिंह चौहान, विद्यासागर आचार्य, डॉ. मुरारी शर्मा, ओम प्रकाश सारस्वत, चंद्र शेखर जोशी, सरजीत सिंह, अनिरूद्ध उमट, मंदाकिनी जोशी, मोनिका गौड़, लोकेश आचार्य, राकेश टी. कांतिवाल, सन्नू हर्ष, जाकिर अदीब, प्रो. अजय जोशी, सरल विशारद, मोनिका गौड़, मयंक पारीक, नंदलाल दइया, जेठमल सोलंकी, रवींद्र यादव, नगेंद्र किराडू, विनोद सारस्वत, हरीश बी. शर्मा, प्रमोद शर्मा, योगेंद्र पुरोहित, डॉ. नमामीशंकर आचार्य, डॉ. गौरीशंकर आचार्य आदि उपस्थित थे।
स्वागत भाषण में कवि-कहानीकार राजाराम स्वर्णकार ने आगंतुकों का स्वागत करते हुए सांवर दइया को आधुनिक साहित्य का पुरोधा बताया। उन्होंने कहा कि बीकानेर में राजस्थानी लेखकों और किताबों की संख्या बढ़ती जा रही है। अंत में आभार कवि-कहानीकार नवनीत पाण्डे ने ज्ञापित किया तथा कार्यक्रम का संचालन कवि-कहानीकार राजेंद्र जोशी ने किया।
राजेंद्र जोशी
सचिव- मुक्ति
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