जोशी जी री आज आठवीं पुण्यतिथि माथै खास
डॉ. नीरज दइया
श्रीलाल नथमल जोशी (1922-2010) रा दोय कहाणी-संग्रै प्रकाशित हुया। पैलो- परण्योड़ी-कंवारी (1973) राजस्थान साहित्य अकादमी सूं अर दूजो- मैंदी, कनीर अर गुलाब (1997) अकादमी री इमदाद सूं। जोशी जी राजस्थानी कहाणी री पैली पीढी रा नायब कहाणीकार है अर आप राजस्थानी कहाणी रै पैलै पांवड़ै फगत अर फगत कहाणियां लिखी। दूजै संग्रै री कहाणियां ई पैलै संग्रै रै आसै-पासै लिख्योड़ी लखावै। कहाणी-जातरा माथै विचार करां तो जोशी जी रा पगल्या पूजणजोग है। कहाणीकार अन्नाराम सुदामा, नृसिंह राजपुरोहित, विजयदान देथा, नानूराम संस्कर्ता, यादवेंद्र शर्मा चंद्र, करणीदान बारहठ अर मूलचंद प्राणेस सरीखै कहाणीकारां भेळै आधुनिक कहाणी नैं परवाण चढावण मांय आपरी कहाणियां नै उण बगत मुजब केई केई बातां मांय सिरै मान सकां।
श्रीलाल नथमल जोशी री कहाणियां री खासियत है कै कम सबदां मांय आपरी बात कैवै। आकार मांय छोटी आं कहाणियां मांय पात्रां रो चरित्र-चित्रण अर नाटकीय संवादां मांय गजब रो नाप-तौल देख सकां। लोककथावां री बुणगट साव आंतरो राखती आं कहाणियां रो सीधै आपरै मरम तांई बिना किणी विषयांतर रै जावणो देखां तो लखावै कै आं कहाणियां री चरचा हुवणी चाइजै ही। इण बात में कोई सक कोनी कै दोनूं संग्रै बिचाळै एक बीसी सूं बेसी आंतरो हुयां रै उपरांत ई कहाणी कला री दीठ सूं दूजै संग्रै- मैंदी, कनीर अर गुलाब री कहाणियां संग्रै- परण्योड़ी-कंवारी सूं घणी आगै री कहाणियां कोनी। दोनूं संग्रै री कहाणियां रो जोड़ 44 है, ऐ कहाणियां आपरै बगत री साख भरै। कहाणियां रै मारफत कहाणीकार रै निजू जीवण रा केई रंग अर चितराम ई सोच मांय देख सकां।
“नाटक” कहाणी री खासियत आ है कै इण मांय कोई नाटक नीं हुय’र अलसी जिंदगाणी मांय हुवण वाळै नाटक रा रंग राखण रो जसजोग काम कहाणीकार करियो है। सरल, सहज अर नुंवी बुणगट पेटै जूण नै अरथावती आ कहाणी मिनख रै रंग बदळतै मिजाज माथै सांवठो व्यंग्य करै। आजादी पछै रै पूंजीपति समाज रो सेठ मोवनलाल प्रतिनिधि पात्र है, उण रै चरित्र रै मारफत किणी रै दौगलै हुवण रो ऐसास कहाणी करावै। जाहिर है कै चावी कहाणी “किरकांटियो” अठै याद आवै। परण्योड़ी कंवारी, काळजै री कोर अर आगोतर कहाणियां मांय कागद नै कहाणी बुणगट मांय प्रयोग रूप परोटण री बानगी मिलै।
श्रीलाल नथमल जोशी री कहाणियां मांय बां रो बीकानेर अर राजस्थानी भाषा खातर अपणायत देखी जाय सकै। कहाणी “कमला रो बाप” री ऐ ओळ्यां देखो- “एक दिन हूं कमला नै लियां लियां इटलीवासी, राजस्थानी भासा रै धुंरधर विद्वान स्व. डाक्टर टैसीटोरी री समाधी देखण नै गयो परो। पब्लिक बाग सूं निकळतै ई डावै हाथ खानी बीकानेर में टैसीटोरी री समाधी है। कमला नै म्हैं टैसीटोरी बाबत केई बातां बताई जद बींरी इटली रै विद्वान खातर घणी सरधा हुयगी।” (पेज-61) दूजो दाखलो कहाणी “बधण री बेळा” सूं- “बीकानेर नगर रै उतराद खानी जस्सूसर रो दरवाजो है। रियासती जमानै में परकोटै रा दरवाजा रात नै दस बजी रै अड़ै-गड़ै ढकीज जावता अर झांझरकै च्यार बजी पाछा खुलता। देस आजाद हुआं पछै दरवाजा अस्टपौर खुला ई रैवै अर विग्यान री बढोतरी रै इण जुग में अबै बांनै ढकण में भी कीं सार कोनी।” (पेज-79) कहाणी मांय परिवेश रो ओ बखाण कहाणीकार री निजू ओळखाण अर बीजी केई बातां नैं खोलै।
राजस्थानी कहाणी-जातरा मांय बुणगत अर कथानक नै परोटण री दीठ सूं “बधण री बेळा” कहाणी नैं बेजोड़ कैयी जावैला। इण कहाणी मांय पात्र खेजड़ो अर बोरड़ी कम उमर रै प्रेम माथै सखरी टीप करै अर बगतसर सही उमर आयां प्रेम नै पोखण री बात समझावै। कहाणी री सांकेतिक अर सूक्ष्मता देखणजोग है- “खेजड़ै कैयो- घबरावण री जरूरत कोनी। म्हारी बात सुण। अबार आपांरै बधण री बेळा है, अळूझण री नईं। तूं खूब बध, अर हूं ई खूब बधूं। जित्ता आपं ऊंचा चढ सकां बित्ता चढो। फेर तूं म्हारै खानी लुळ हूं थारै खानी लुळूं। आपां रा अंग आपस मएं रमर एकजीव बण जासी। फेर आपां किणी रै अटकां कोनी, खटकां कोनी। आपांरो मेळ जद मारग बैवतां नै छैयां देसी, तो पछै आपां नै कोई क्यूं अळगा करसी, क्यूं न्यारा करसी?” (पेज-84)
जूनी पीढी रै कहाणीकारां मांय जोशी जी री कहाणियां मांय विषयगत नवीनता अर आगाऊ सोच कीं बेसी लाधै। “मैंदी कनीर अर गुलाब” अर “मोलायोड़ी लाडी” जिसी कहाणियां घणी-लुगाई रै संबंधां नै अरथावै। कहाणी मांय ओ नुंवो प्रयोग बुणगट री दीठ सूं कैयो जावैला कै प्रेम अर नर-नारी रै आदू रिस्ता नै न्यारी दीठ सूं ऐ कहाणियां समझावै। प्रेम रो सरूप घणो झींणो हुवै अर उण मांय जरा-सी’क बात सूं ठबक लाग जावै। मैंदी, कनीर अर गुलाब रै मारफत प्रेम रै त्रिकोणीय भेद नै खोलती कहाणी मांय जाणै प्रकृति पाठ पढ़ाय रैयी है। मोलायड़ी लाड़ी साव नाटकीय कहाणी है अर बेमेळ ब्यांव भेळै जनसंख्या री बात ई लेय’र चालै पण इण मांय सगळा सूं बेसी अचरज आळी बात कै जोशी जी री कमल सूं उण बगत एक लुगाई आपरै आदमी सांम्ही बोल रैयी है- “हूं थां में तीन लाख नूवे हजार नईं , तो खाली नूवे हजार रुपिया मांगूं। इण च्यार टाबरां मांय सूं थे खाली तीन रा ई बाप हो। दस हजार काटर चौथे टाबर रा नूवे हजार म्हारै हवालै करो।” (पेज32) किणी परणी रो च्यार टाबरा मांय एक टाबर खातर इण ढाळै री बात कहाणी मांय पैली बार आवै। इण बात री परख कियां हुवै? पण इण सूं अलगाव उपजै अर दस बरसां पछै ओ सळ निकळै कै घणी नै खुद सूं दूर राखण खातर आ कूड़ी ओळी कैयी ही।
जोशी जी री आं कहाणियां री बोल्डनेस है कै “पोतै नै सांभो” जिसी कहाणी मांय भ्रूण-हत्या री खिलाफत करता कंवारी कन्या बेटै नै जलम देवै। भरी सभा मांय नाजायज टाबर माथै चरचा करी जावै। कहाणी संकेत करै कै किणी पण बात माथै मौकैसर बोलणो उण रै पख-विपख मांय बोलणो सरल नीं हुवै। मिनख री फितरत है कै रूप-रंग रै चक्कर मांय बो कांई रो कांई कर जावै। कहाणी “फिकर ना करो” रै मारफत मिनख री आदम भूख नै बखाणै। सेक्स साइकॉलोजी माथै पीएच.डी. कर रैयी डॉ. उर्मिला सूं कथानयक रात री एक रेल-जातरा मांय मिलै। पूरै सफर मांय नायक रो झूठ माथै झूठ बोलणो मिनख रै मन मांय बस्योड़ो लुगाई रै रूप रो लगाव है। कहाणी कैवै कै मिनख किण हद तांई लुगाई खातर आपरी आत्मा नै मार सकै पण खुद आ सहन नीं कर सकै कै उण री लुगाई किणी दूजै आदमी सूं मेळ-मुळाकात राखै या कदैई राखती ही। इणी विषय नै कहाणी- “आपरो सरूप” मांय कहाणीकार नुंवी उकरास सूं चवड़ै करै। कहाणी रो ओ अंश विचारणजोग है- “सिंझ्या पड़ी जद कमरै में गोपाल बाबू एकला हा, तो काच नै उठाय’र देखण लाग्या। एकाएक विचार में पड़ग्या। ब्याव पछै आं दस बरसां में बारै-तेरै छोरियां-लुगायां गोपाळ बाबू रै जीवण में आई अर बां मांय सूं च्यार-पांच नै बां कागद लिख’र दिया जिण में ऊमर भर बंधण रो बैण करियोड़ो हो। आंरै सागै जिकी-जिकी लीलावां करी ही, बै सगळी मुद्रावां गोपाल बाबू नैं एक-एक करनै दीसण लागगी। आज पैली जिकी लीला माथै बां कदेई गौर नईं करियो, बा अबै एक गंभीर चीज लागण लागगी। मन में तोल-जोख करण लागग्या- “म्हारो कसूर बड़ो’क प्रेमा रो?” काच में जाणै बांनै दोनूं चैरा अबै दीसण लागग्या- एक आप रो- काळो, तवै जिसो ; दूजो प्रेमा रो जिको साव निरमळ, गोरो निछोर, बाळपणै रो कागद जाणै एक काळो तिल बणनै उणरै मुखमंडळ री सोभा में बिरधी करतो हो।” (आपरो सरूप : पेज-39)
लोक-रंग अर सामाजिक काण-कायदा ई आं कहाणियां मांय खूब मिलै। बुणगट री दीठ सूं जीवण सूं जुड़्या घटना-प्रसगां रै मारफत कहाणी लिखणो कोई जोशी जी सूं सीखै। “भाड़ेती” कहाणी रै मारफत कहाणीकार अरथावै कै विपदा मांय आदमी कांई कांई नीं कर जावै। जात-पात रै बंधनां नै तोड़ती कहाणी- “प्रेम री मनवार” है तो गरीब नै सतावण री कहाणी “काल ले जाए” है। “कुंवारो चौधरी” मांय ठगां सूं बचाव री बात है तो “छतर –छैंया” अर “घरणी अर भरणी” धन सूं जुड़ी कहाणियां है। जोशी जी री कहाणियां रै नांवां नै लेय’र कैयो जाय सकै कै केई कहाणियां रा नांव साव जूनै ढाळै रा है।
राजस्थानी भाषा अपणायत रा केई दाखल जोशी जी कहाणियां मांय देख सकां। जियां- “देख रामा, तूं जद जावै तो हरनाथ नै एक बात और अखराये, म्हारै नांव सूं, कै पैली तो तूं कागद राजस्थानी में लिख्या करतो अर अबै तूं कदेई हिंदी अर कदेई अंगरेजी में लिखै। गांव नै भूलग्यो, बाप नै भूलग्यो, पण तूं थारी मातभासा नै ई भूलग्यो। रामा तूं साफ कैय देईजै कै मनै कागद लिखै तो राजस्थानी में लिखै, नईं तो हूं बिना कागद ई सार लेसूं ; तू थारै है जठै राजी-खुसी रै।” (मंगळ बेळा में आंसू : पेज-103)
“म्हारै हाथ में राजस्थानी भासा रो काणी-संग्रै। काण्यां तो हूं भी लिख्या करूं, पण इण लिखार री सूझबूझम कळपना, भासा माथै इधकार कहावतां-मुहावरां रो प्रयोग तथा दुनिया रो अनुभव देखर तो इयां लागण लाग्यो कै मनै म्हारी काण्यां छपण खातर भेजणी ई नईं चाईजै। एक-एक वाक्य नई, एक-एक सबद इण तरै जचायोड़ो कै थोड़ी-सीक छेड़छाड़ सूं सगळो ढांचो ई खिखर-बिखर हुजावै।” (कथणी अर करणी : पेज- 125)
इण दूजै दाखलै मांय भाषा-प्रेम भेळै कहाणी पेटै आत्म-मंथन अर असूलां री बातां कहाणीकार कैयी है। आं बातां नै जोशी जी आपरै सांम्ही राख’र कहाणियां लिखी। अध्यात्म, दर्शन, चिंतन आद केई बातां सूं सजी आं कहाणियां रो लोक जोशी जी री खुद री दुनिया सूं जुड़्योड़ो है। लेखकीय दुनिया कीं दरसाव देखणा हुवै तो कहाणियां- “छेकड़ली बात”, “अमर मिनख” अर “कचरो, कादो, कमल” देखी जाय सकै।
तुर्गनेव, चेखव आद लिखारां नै कहाणी मांय याद करण रै मिस श्रीलाल नथमल जोशी राजस्थानी कहाणी नै घणी ऊंची जागा देखण रो सपनो देख रैया हा। “साधना नैं तो साधना री मां जाई है। इण साधना रा परताप है कै जे म्हारै इण उपन्यास “अमर मिनख” नै जूनै कागद माथै बोदी रोसनाई सूं रूसी भासा में मांडर तुर्गनेव री अलमारी में राख देवै तो लोग तुर्गनेव री सगळी रचनावां नै भूल जावै, अर “अमर मिनख” उणरी सरब-श्रेष्ठ कृति गिणीजण लाग जावै, अर दस लाख कापी इण री हाथोहाथ बिक जावै। अर जे तुर्गनेव कायम हुवै, अर इण उपन्यास नै रूसी में छप्योड़ो देख लेवै, तो बो सगळा काम धंधा छोड़नै उपन्यास-कळा सीखण खातर पक्कायत म्हारै कनै आवै। विदेसी लोग कला रा पारखी हुवै।“ (अमर मिनख : पेज - 136) आ बात भलाई व्यंग्य मांय कैयी गई हुवै पण इण नैं म्हैं सपनो मानूं। ओ सपनो आपरै बगत मांय जोशी जी री आंख मांय पळतो हो।
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