बस एक हो पारस जिसो पारस, बाकी बेसी खीला है
नीरज दइया
म्हैं खासी ताळ
पछै मोबाइल देख्यो जद ठाह लागी दिनूगै-दिनूगै पारस जी रै नीं रैवण रो एस.एम.एस.
आयोड़ो हो। पतियारो नीं हुयो- इयां कियां हुय सकै? काल ई तो बात हुई ही। बातचीत
मांय खासा अपरंच रै नवै अंक नै लेय’र खासा उमाया हा। म्हैं गौतम नै तुरत फोन
करियो। ठाह लागी- बात तो साची है। दिनूगै चार बजी अटेक आयो अर गौतम रात ई रवाना
हुय’र जयपुर आयो अबै पाछो जोधपुर जावण लाग रैयो हो। साथियां नै समाचार मिल जावै आ
सोच’र म्हां तै करियो कै फेसबुक माथै सूचना करी जावै। म्हनै स्कूल जावण री खथावळ
ही पण फेर ई पोस्ट लिखी अर पारस जी रो फोटू लगायो-
चाव-ठावा
कवि-संपादक श्री पारस अरोड़ा नै आज चार बजी हार्ट-अटेक आयो अर बै सौ बरस ले लिया।
जोधपुर में राजस्थानी रा बडेरा परास जी री दिनूगै 11 बजी छेहली-जातरा निकळैला।
डब-डब नैणां माइत सरीखा पारस जी री ओळूं नै घणै मान निवण करूं।
सिंझ्या विचार
करियो कै पारसजी गया परा। पारसजी तो पारस हा जिण रै सबदां नै म्हैं हियै उतार
निहाल हुयो। बै घणी घरबिद बातां करिया करता। साची बस एक हो पारस जिसो पारस, बाकी बेसी
खीला है। केई मिनख तो फगत मन रै तीणा करै अर खीला खुबै जियां खुबता रैवै। अठै किणी
रो नांव लिख्या नाराजगी हुय जासी।
खीला जित्तै खावणा
है खावणा पड़सी। आज मन रै मोटो खीलो लाग्यो कै पारसजी नीं रैया। ओ मोटो खाडो कदैई
नीं भरीजैला।
- प्रणाम करूं।
- हां नीरज ! जियां कै थारै सूं बात हुई, आपां
अपरंच में वासु री कवितावां लेय रैया हां। यार म्हारै खन्नै उण रै सरगवास री तारीख
कोनी। थन्नै जाणकारी हुवै तो बता।
- हां सा है। म्हैं गौतम नै ई-मेल माथै भेज
देसूं.... ।
- ठीक। याद राखजै।
००००
- सांवर !
- म्हैं बोल रैयो हूं नीरज।
- अरे हां, गळती सूं थारै नांव री जागा थारै बाप
रो नाम लेय लियो। देख इयां है कै म्हैं सांवर री कवितावां छांट रैयो हो तो एक
कविता आ थन्नै सुणावणी चावूं।
- किसी है, सुणावो।
एक कविता सुणा’र पारस जी कैवण लाग्या, देख कविता
में सवाल है- म्हारै साथै कुण ? रे नीरज, सांवर रै साथै म्हैं हूं, थूं है अर आपां
सगळां हां। कवि कदैई एकलो कोनी हुवै। उण भेळै आखो जगत हुवै। अच्छिया जावण दे, और
बता कांई कर रैयो है?
- कांई नीं... बस बैठो हो अर आपरो फोन आयग्यो। आ
कैवतां ई बां फोट काट दियो।
- नीरज !
- हां सा, प्रणाम करूं।
- खुस रै बेटा। म्हैं थन्नै इयां कैवतो कै
लीलटांस बांची। कहाणी अंक।
- हां सा.. केई कहाणियां बांची। अच्छो अंक है।
- सतीश छीम्पा री कहाणी बांची।
- कोनी बांची सा... बताओ कांई हुयो?
- आ बा कहाणी है जिकी म्हैं पाछी भेज दी ही अर ओ
संपादक छाप दी।
- संपादक संपादक री दीठ न्यारी-न्यारी हुवै सा।
उण नै ठीक लागी हुवैला।
- बात ठीक बिना ठीक री कोनी। म्हारो थारै सूं ओ
सवाल है कै इसी कहाणियां कांई राजस्थानी में आवणी चाइजै?
- म्हारो
मानणो है कै कहाणी रै विगसाव खातर केई प्रयोग करीज्या करै अर सतीश कीं न्यारै ढंग
सूं कहाणियां लिखी है।
- छोड़ आ बात अठैई छोड़। पैली बा कहाणी बांच अर पछै
आपां बात करसा। ओके। राखूं।
- ठीक म्हैं कहाणी बांच’र आप सूं बात करूंला।
आज पारसजी रो फोन आयो। कोई तारीफ करणी पारस जी
सूं सीखै। पाछो कुण आसी संग्रै री कवितावां पेटै बात करता-करता कैवण लाग्या- ”नीरज
थारी केई कवितावां तो इसी है कै म्हनै लागै म्हैं लिखी है अर म्हैं साची कैयो रैयो
हूं- वाकैई भोत बढिया संग्रै आयो है।”
पारसजी कैयो कै संग्रै री पांच प्रतियां खरीदणी
चावूं। म्हैं कैयो कै म्हैं भेज देसूं। बोल्या- “इयां नीं हुय सकै। थूं किताब
म्हनै समरपित कर दी है। बस।” म्हैं तुरत दाव चलायो कै ना री हां हुयगी। म्हैं
कैयो- “फेर इयां क्यूं कैवो कै थूं म्हारो बेटो है।” वै चुप हुयग्या अर हंकरग्या-
“तो ठीक म्हैं बताऊंला, थूं भेज दियै।”
- नीरज। थारी किताब बांच रैयो हूं। आनंद आय रैयो है। थूं म्हनै आ किताब
समरपित करी है। इण रै लारै थारी कांई भावना रैयी है?
- भावना नीं, आ भगती है सा। पैली बात तो आप
म्हारै जीसा सांवर दइया रा करीबी रैया। दूजी बात कै बां पछै जिकी जिकी बातां आप
कैयो दूजै किणी नीं कैयी। तीजी बात कै आपरी कविता-जातरा नै म्हैं राजस्थानी रै
सीगै घणी मेहतावूं मानू। चौथी बात कीं कैवतो कै बिचाळै पारस जी बोलग्या- वा वा
रैवण दे। थारै सूं म्हैं जीत कोनी सकूं।
- हार जीत री कांई बात हुयग्यी?
- चल छोड़ जावण दे। म्हैं फोन राखूं।
पारस जी असपताळ में भरती है। बां रै तकलीफ बेसी
है। जे कठैई कोई भगवान है अर बै आपरै हाथ सुख-दुख सांभ राख्या है तो म्हैं उण सूं
अरज करूं कै पारसजी नै निरोग राखै। कम सूं कम बां रो नवो कविता-संग्रै आवै जित्तै
तो निरोग राखै कै बै संग्रै तैयार कर सकै। घणै हरख री बात कै भाई गौतम बेगो ई
कविता संग्रै साम्हीं लावण री हामळ भरी है।
ढोला-मारू होटल
में “अपरंच” रै बीकानेर अंक लोकार्पण रो सांतरो आयोजन हुयो। पारसजी नीं आय सक्या
गौतम आयग्यो हो। अखबारां में कवरेज ई सांतरो रैयो। किणी पण पत्रिका रै अंक री अर
संपादक री एक सींव हुया करै। बीकानेर रा केई रचनाकारां री रचनावां नीं छपण रो मलाल
ई रैयो, पण न्हाया जित्तो ई पुन्न। हरीश बी. शर्मा रो पूरो नाटक छपणो राजस्थानी
पत्रिकावां रै आं दिनां रै दौर मांय साव नवी बात रूप जाणीजैला।
आज पारसजी रो जलम
दिन है। म्हैं बधाई देय’र बां सूं इजाजद लेय’र एक सवाल करियो कै आपरो नवो कविता
संग्रै छपग्यो या छपैला? बां रै सुर मांय अचरज हो- क्यूं कांई हुयो? कांई बात करै
है? म्हारो कविता संग्रै छपैला अर थन्नै ठाह नीं पड़ैला आ कदैई हुय सकै है कांई?
म्हैं कैयो- कै
आपरो लारलै प्रकाशनां री विगत बतावै कै 2014 में आपरो नवो कविता संग्रै
आवैला। बै बेसी अचरज सूं बोल्या- कीकर? तदा म्हैं खुलासो करियो कै सुणो आपरा तीन
काव्य-संगै छपियोड़ा है अर तीनूं ई दस-दस बरस रै आंतरै सूं। ‘झळ’(1974), ‘जुड़ाव’ (1984) अर ‘काळजै में कलम लागी आग री’ (1994) तो अबै आ बताओ कै
बरस 2014 में आवणियै कविता संग्रै रो नांव कांई है? बै ठीमर
सुर में बोल्या- आवैला, आवैला। गौतम अर म्हैं प्लानिंग कर रैया हां। थूं तो जाणै
म्हैं कवितावां कम लिखूं पण अबै संग्रै जित्ती हुयगी है। थेंक्यू थन्नै। जीवतो
रैव। अच्छिया म्हैं फोन राखूं। फेर बात करालां।
होळी रै मौकै गौतम
गौतम फेसबुक माथै पारसजी री जोड़ैसर फोटू लगाई है। कवि पारसजी री कवितावां सूं म्हैं
घणो प्रभावित रैयो हूं। म्हैं पारसजी पेटै लिखी टीप री आं ओळ्यां नै पाछी लिखूं-
पारस अरोड़ा एक सिमरध कवि रै रूप में ओळखीजै। आपरी कविता एक न्यारी काव्य भासा अर
मुहावरो हासिल कर चुकी है अर भासा में संप्रेषण अर निजू काव्यात्मक सुर रै पाण आप
आपरी पुखता कवि-ओळख राखता थकां राजस्थानी पाठकां सामीं सांवठो भरोसो दरसायो है। (
लिखी बात नै पाछी लिखणी मतलब कै दूसर उतारणो अबखो लागै। सो अठै इत्ती सूं ई काम
चलाओ, बाकी री जे किणी रै जीव में आवै तो पोथी “आलोचना रै आंगणै” रै आलेख आधुनिक
कविता रा साठ बरस में बांच लेवै।)
गौतम री फेसबुक
सूं ठाह पड़ै कै आज पारसजी रै ब्यांव री 55वीं बरसगांठ है। म्हैं बधाई दी तो पारसजी
सवाल करियो कै थन्नै कियां ठाह लागी? म्हैं जद गौतम अर फेसबुक री बात कैयी तो
बोल्या। आजकाळै थां लोगां री दुनियां घणी नजीक नजीक हुयगी है। अठै री बात बठै अर
बठै री बात अठै। गजब दुनिया हुयगी है। म्हनै हरख है कै थे भाई-भाई प्रेम राखो। देख
थूं मोटो भाई है अर गौतम छोटो, उण रो ध्यान राखजै। आं दिनां बो ई लिखा पढी कर रैयो
है। अपरंच उण रै भरोसै ई है। आं थां सगळा री है अर इण नै थां सगळा नै ई देखणी है।
ठीक अबै राखूं। थे नवा लोग कैया करो जियां कैवूं- गुड नाइट।
2 अगस्त / पारस जी सदा फोन
उठावतां ई “नीरज !” बोलै अर म्हैं ”हां सा प्रणाम करूं, नीरज बोल रैयो हूं” कैय’र
बात करूं। बै सवाल करै- थारै पाखती म्हारी कोई किताब है?
- किसी किताब?
- म्हारी कोई
किताब ले अर उण रै लारै देख.. म्हनै आ बता कै अबार तुरत कोई किताब म्हारी देख सकै।
म्हैं हां कैय’र
पारसजी री पोथ्यां मांय सूं एक हाथ में लेय’र देखूं। म्हनै हरख हुवै कै आज राखी है
अर पारसजी रो जलमदिन है।
बै डांटण रै लहजै
में कैवै- हां म्हारो परिचै बांच। म्हैं कैवूं- बांच लियो। बै भळै पूछै- कांई
बांच्यो। तद म्हैं मुळकतो कैवूं- लिख्योड़ो है हैपी बर्थ डे। बै भोळावण रै सुर में
कैवै- भला आदमियां थे जलम दिन माथै तो फोन कर लिया करो। देख नीरज इयां है कै आपां
नै राजस्थानी रै सगळै लेखकां-कवियां रै जलम अर निरवाण री तारीखां लिख’र राखणी
चाइजै। जे आपां ई आं बाबत बात की करालां तो कुण करैला? बस बात खतम। म्हैं राखूं।
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