Friday, November 13, 2015

राजस्थानी कहाणी संग्रै 'अगाड़ी' (राजेंद्र जोशी)



पत्र वाचन / डॉ. नीरज दइया

     
      राजस्थानी कहाणी विकास जातरा मांय बीकानेर सदा सूं अगाड़ी रैयो है। अठै रा कहाणीकारां रो पूरी परंपरा में खास रुतबो रैयो। मुरलीधर व्यास ‘राजस्थानी’ सूं लेय’र राजेन्द्र जोशी तांई री कहाणी जातरा मांय केई-केई मुकाम निजर आवै। कहाणी नै कीरत देवणियां कहाणीकारां मांय सर्वश्री श्रीलाल नथमल जोशी, यादवेंद्र शर्मा ‘चन्द्र’, अन्नाराम ‘सुदामा’, मूलचंद ‘प्राणेश’, सांवर दइया, भंवर लाल ‘भ्रमर’, बुलाकी शर्मा, श्रीलाल जोशी, मदन सैनी, मधु आचार्य ‘आशावादी’, नवनीत पाण्डे आद केई नांव गिणाया जाय सकै। हरख री बात कै गद्यकार यादवेंद्र शर्मा ‘चंद्र’, मूलचंद ‘प्राणेश’ अर सांवर दइया नै तो साहित्य अकादेमी सम्मान कहाणी-संग्रै माथै मिल्यो। बीकानेर सूं पैली कहाणी पत्रिका ‘मरवण’ निकळी, तो उल्लेखजोग संपादित कहाणी-संग्रै ‘उकरास’ ई बीकानेर री देन मान्यो जावै। इणी ओळ मांय ‘कथा-रंग’ नै गिणां तो बीकानेर कहाणी लेखन रो मोटो गढ कैयो जाय सकै। आ खासियत अठै री धरती री रैयी कै आधुनिक कहाणी नै लोककथा रै साम्हीं ऊभी करणियां कहाणीकार अठै जमलिया। आ जे कोई खरोखरी जाणकारी चावै कै लोककथा अर सामंती व्यवस्था सूं आधुनिक कहाणी अर आज रो समाज कियां बण्यो, तो उण नै बीकानेर रै काहणीकारां री कहाणियां बांचणी चाइजै। राजेन्द्र जोशी आपरै पैलै कहाणी संग्रै ‘अगाड़ी’ रै मारफत कहाणी विकास-जातरा मांय जुड़ै।
      आज लोकार्पण-उछब री बेळा आपां आ कामना करां कै ‘अगाड़ी’ रो कहाणीकार कहाणी विकास जातरा मांय ई अगाड़ी रैवै। जठै आगूंच लांठी परंपरा रैयी हुवै, उण मांय अगाड़ी बणणो, साव सौरो काम कोनी। पण आ जरूर है कै आज जिका अगाड़ी कैया जावै बां एक पूरी जातरा पछै ओ मुकाम हासिल करियो है। कैय सकां कै इण मुकाम खातर राजेन्द्र जोशी आपरै कहाणी संग्रै ‘अगाड़ी’ सूं सरुवात करी है। किणी रचनाकार नै किणी विधा मांय कीं लिखण सूं पैली खुद सूं ओ सवाल करणो चाइजै कै म्हैं क्यूं लिखूं? अठै कहाणी री बात करां तो सीधो सवाल ओ कै कोई कहाणी क्यूं लिखै? कांई कहाणी रै मारफत कहाणीकार खुद नै रचिया करै। किणी कहाणीकार नै जद दूजां री कहाणियां बिचाळै, खुद री कहाणी न्यारी लखावै तद बो कहाणी लिखण री सोचै। कहाणी लिखण री सोचण अर कहाणी लिखणी दोय न्यारी न्यारी बात हुवै। बियां आगूंच सोच’र कोई कहाणी कदैई लिखीजी कोनी, कहाणी तो खुद रचीजै। कहाणी रै मारफत कहाणीकार खुद नै सिरजै। सिरजक तो दोय लांठा मानीजै- एक अदीठ ऊपर बैठो आपां रो सिरजक कहाणियां रचै। जिकी कहाणियां आपां देखां-सुणा-भोगा। दूजो- कोई रचनाकार जिको कहाणी रचण री हूंस पाळै।
      कहाणीकार फगत खुद रै भोग्योड़ै साच नै ई कहाणियां मांय नीं ढाळै, बो देखी-सुणी-समझी केई-केई कहाणियां अर कीं गोड़ा-घड़ी कहाणियां नै ई साव साच दांई कहाणी मांय रचण नै खपै। कहाणी साच नै घड़ण री खिमता राखै। अठै सवाल ओ है कै आपां किणी कहाणी में कांई जोवां- कोई कोई साच जोवां का किणी कूड़ री उडीक करां? म्हैं कहाणी मांय बदळतै बगत रा रंग जोवूं, बदरंग हुवती जूण री जातरा रा रंग जोवूं, जीवण रो मरम समझण री हूंस जोवूं अर हरेक कहाणी नै उण री पूरी परंपरा में जोवूं कै इण मांय नवो कांई है? राजेन्द्र जोशी री कहाणियां माथै विगतवार बात करां, उण सूं पैली कैवणी चावूं कै अगाड़ी री कहाणियां आपां री परंपरा नै पोखणवाळी कहाणियां है।
      संग्रै री पैली कहाणी “अगाड़ी” जिण माथै संग्रै रो नांव राख्यो है, पैली ओळी है- “अबै कित्ता’क दिनां री बात है मा’जी देवउठणी इग्यारस सूं मौरत तो निकळणो ई है।” कहाणी मांय आ ओळी बतावै कै आज रै जुग मांय संस्कारां अर संस्कृति री संभाळ करणियां लोग आपां रै समाज मांय है। आ पण हुय सकै कै खुद कहाणीकार इणी विचारधारा रो हुवै। का इण ढाळै री बातां समाज मांय बो पोखणी चावै। हुय तो आ ई सकै कै कहाणीकार आं बातां सूं समाज नै दूर राखणो चावै। नवै जुग मांय लेय’र जावण रो सोच ई हुय सकै, जठै देव अर इग्यारस सूं जूण मुगत रैवै। म्हैं कहाणीकार राजेन्द्र जोशी नै बरसां सूं जाणूं। अठै म्हैं बां री घरू का कोई निजू मनगत रो खुलासो नीं करणो चावूं। बात उण कहाणीकार री है जिको अगाड़ी री कहाणियां लिखी। आलोचना नै रचनाकार सूं मुगत हुय’र फगत इण बात सूं सरोकार राखणो चाइजै कै कहाणियां में कांई लिख्यो है। किणी पण कहाणी मांय उण री हरेक ओळी अर हरेक सबद जिण सूं बा ओळी रचीजै, लिखती बेळा भेळो एक अरथ रचीजै। आपां जाणां कै किणी एक ओळी सूं कहाणी मांय कोई पूरो अरथ कोनी बणै। आलोचना उण पूरै अरथ तांई पूगण रा जतन करै।
      पूरी कहाणी री बात करां तो मूळ मांय अगाड़ी कहाणी घणै जूनै विसय दायजै माथै लिख्योड़ी नवी कहाणी है। नवी इण अरथ मांय कै आज रै जुग मुजब कहाणी दायजो नीं लेवण रो सीख सीखावै। कहाणीकार राजेन्द्र जोशी री खासियत अर सावचेती कै बै कहाणी रचती बेळा किणी पाठ दांई कोई पाठ नीं पढावै। कहाणी में कुल च्यार पात्र मिलै। एक पात्र कपिल री मा नै ई गिण सकां। पण खास पात्र है- बाप-बेटो अर सासू-बहू। सुमेर आपरै बेटै रो ब्यांव बिना दायजै करण री मनगत आपरी लुगाई नै आ सोच’र नीं बतावै कै बा मानैला का नीं मानैला। आ बात बेटो अर बाप दोया दोय तांई राखै, पण इसी बातां कद तांई लुकाया लुकै। कहाणी मांय च्यार पात्रां रै मारफत तीन पीढियां साम्हीं आवै। मुसकल पुराणी पीढी सूं हुवणी है, क्यूं कै बा देव अर ग्यारस सूं जुड़ी पीढी है। दायजो नीं लेवण री बात आज ई झट देणी मानणै मांय कोनी आवै। पण घरधणी अर बेटै री भावनावां नै समझती अगाड़ी री नायिका ई सेवट बां भेळै रळ जावै। आ बीचली कड़ी है जिण मांय पैली अर तीजी पीढी नै जोड़ण अर जोड़िया राखण री जिम्मेदारी समझ सकां। अबखाई आ कै बींद री दादी मतलब जूनी पीढी नै कुण समझावै, तद अगाड़ी बणै घर री बींनणी मतलब बींद री मा।
      कहाणीकार री सफलता है कै पूरी कहाणी मांय स्सौ कीं अगाड़ी हुवता थकां ई कहाणी रो मरम छेकड़ री ओळ्यां मांय उजागर हुवै। एक पीढी साम्हीं दूजी अर तीजी पीढी रै रळ’र अगाड़ी हुवण री आ कहाणी है। असल मांय अगाड़ी कहाणी एक घर-परिवार नै नीं पूरै समाज नै अगाड़ी लावण री कहाणी है। राजेन्द्र जोशी री इण कहाणी री खासियत आ कै इण काहणी मांय समस्या फगत दायजै री तो संकेत रूप मांय कहाणीकार उठावै, असल मांय बो पूरै सामाजिक सोच नै बदळ’र नवै सोच नै बिड़दावण रो मोटो काम आपरी इण कहाणी मांय करै।
      इत्ता चावळिया पछै कीं बात रावळियां री, इण कहाणी री कीं खासियतां बिचाळै लखावै कै कहाणीकार नै कहाणी कैवण रो कोड ई रैयो, अर हरखायो-कोड़ायो एक-दो जागा चेखव री बंदूक तो दिखावै, पण गोळी आगै कठैई छूटै कोनी। दाखलै रूप बात करां तो ‘अगाड़ी’ कहाणी री पांचवी ओळी देखां- ‘तीजै नंबर आळै बेटै री बीनणी मा’जी नै नैहचो बंधावती-बंधावती बां रा पग दाबावण लागी।’ इण ओळी मांय माइतां री सेवा तो ठीक है, पण सुमेर पेटै तीजै नंबर आळी जाणकारी चेखव री बंदूक है, जिकी कहाणी मांय आगै कठैई काम कोनी आवै। सवाल ओ है कै कांई कोई तीजै नंबर रो बेटो साचाणी अगाड़ी बण्यो अर राजेन्द्र जोशी उण रै सांच नै अंगेजता थका आ कहाणी रची। कहाणीकार साची घटना माथै कहाणी रचै तद किणी खिण एक बो क्यूं बिसर जावै कै आ साची घटना कोनी कूडी-साची कहाणी है। कहाणी मांय हरेक दाखलै पेटै सावचेती री दरकार हुया करै। सावचेती आ कै राजेन्द्र जोशी री काहणियां मांय कहाणी कैवण रो भाव कीं बेसी मिलै।  
      असल मांय कहाणी आपरै कैवण रो ओ भाव लोककथा सूं अंगेजती आवै। आधुनिक कहाणी मांय बेसी कैवण री जागा, अबै सांकेतिकता अर सूक्ष्मता रै भाव नै लेय’र कहाणी आगै बधती दीसै। आपां कहाणी परंपरा रो दूजो मोटो गुण का दोस “संजोग” नै मान सकां। असल मांय संजोग खुद मांय कोई गुण का दोस कोनी, अर सरु सूं लेय’र आज तांई री पूरी कहाणी खुद संजोग कैयी जाय सकै। हरेक घटना खुदोखुद मांय एक संजोग हुया करै। जियां आज ओ संजोग कै राजेन्द्र जोशी रै कहाणी संग्रै रो लोकार्पण अर आपां रै मिलण रो संजोग। इणी खातर कैयो कै खुद संजोग कोई बाण-कुबाण कोनी। मोटी बात आ हुवै कै कोई संजोग कहाणी में कहाणीकार किण ढाळै रचै। कहाणीकार संजोग नै रचती वेळा साच रै भेस मांय रचण री खिमता राखै।
      आपां संग्रै री दूजी कहाणी ‘अबै माफी नीं’ में संजोग रै रचाव नै देख सकां। कहाणी री बात सूं पैली कहाणियां रै सिरैनांवां री बात करां तो कैवणो पड़ैला कै संग्रै ‘अगाड़ी’ री केई कहाणियां रा सिरै नांव राखण मांय घणी सावचेती निजर आवै। ‘अबै माफी नीं’ तीन सबदां सूं रचीज्यो। इण सिरै नांव नै बांचता हियै उमाव जागै कै किण बात री माफी नीं? कांई आ ओळी कहाणी मांय कोई पात्र बंतळ करता बोलै। इण नै बोलण रै भाव मांय ई कहाणी हुय सकै। एक सौरै सांस बोलां- अबै माफी नीं, दूजो रीस मांय बोला- अबै माफी नीं, कोई ओळी कियां बोलीजी इण सूं कहाणी मांय घणो फरक पड़ै। अबै माफी नीं रो अरथाव देखां- पैला किणी बगत कोई माफी मिली अर अबै नीं? जद पैला माफी मिली तो अबै क्यूं नी? कांई पैली जिकी माफी मिली बा वाजिब ही या कोनी ही। एक सिरैनांव सूं बांचणियां री मनगत मांय केई-केई सवाल-जबाब जुड़ जाया करै।
      कहाणीकार राजेन्द्र जोशी री कहाणी ‘अबै माफी नीं’ में तीन पात्र है। इण कहाणी बाबत कीं कैवण सूं पैली कैवणी चावूं कै कहाणीकार आपरी काहणियां मांय साव कमती पात्रां रै मारफत सरल, सहज अर सरस कहाणियां रचै। आं कहाणियां री सगळा सूं मोटी खासियत आं री पठनीयता मानी जावैला। राजेन्द्र जोशी सफल गद्यकार रूप आपरी कहाणियां नै पढावण री खूबी राखै, अर एक बात भळै कै आं कहाणियां मांय केई अंस अर भाव बांचणियां रै चेतै मांय घर कर लेवण री खूबी ई राखै।
      चावा-ठावा कहाणीकार बुलाकी शर्मा संग्रै अगाड़ी रै फ्लैप माथै लिख्यो है- “अगाड़ी री कहाणियां सूं राजेन्द्र जोशी री ओळखाण लुगाई मन रै साचै चितैरै कहाणीकार रूप हुवैला। आं कहाणियां मांय आज री लुगाई री केई-केई छवियां मिलै, जिण में खूबियां-खामियां दरसावती ऐ आपरी ओळख-आपो संभाळती-संवारती आधुनिक हुवती दीसै।”
      ‘अबै माफी नीं’ मा अर बेटी राधा रै ठगीजण री कहाणी है। आ ठगी दोनां साथै जिको आदमी करै बो एक ई आदमी है। बो आदमी मिनख कोनी, आदमी रै भेस मांय जिनावर है। ओ जिनावर मोटो अफसर है। जिको लुगायां नै न्यारै-न्यारै ढंग सूं ठगै। इण रै चकारियै जिको चढै, बो बचै कोनी। ओ ठगण रा नवा नवा तरीका जाणै। जिकी घटना कहाणी मांय मा साथै घटै, बा सागण पाछी जद बेटी साथै घटण नै आवै तद संजोग सूं बिचाळै मा आवै अर नवा-जुना सगळा बदळा काढ लेवै।
      कहाणी री छेकड़ली ओळ्यां बानगी रूप देखां-
      - “चाल थाणै चालां।” बा राधा नैं कैयो।
      - “रैवण दे नीं मा...।” राधा मा नैं समझावण लागी, “बो कीं गड़बड़ नीं कर सक्यो... थूं सांतरी जंतराई कर दीनी...। थाणै चालणो रैवण दे मा...। लोग धिंगाणै ई बात रो बतंगड़ बणासी।”
      - “ना... ना।” बीं रै सुर मांय दृढता ही, “इसै राखसां री ठौड़ जेळ ई है। जिको लुगाई साथै दगो करै, उण री आबरू लूटणी चावै, बीं नै कदैई माफ कोनी करूं।... चाल थाणै, आपां रपट लिखावां।” राधा रो बांवड़ियो पकड़्यां बा थाणै कानी जावै ही।
      राजेन्द्र जोशी कहाणी संग्रै रो नांव अगाड़ी इण खातर राख्यो हुवैल कै समाज मांय अबै हरेक नै आप आप री जागा बदळाव खातर अगाड़ी आवणो पड़ैला। कहाणी ‘अबै माफी नीं’ मांय सेवट लोगां रै धिंगाणै बात रो बतंगड़ बणावण री परवा छोड़’र राधा री मा अगाड़ी आवण रो फैसलो लेवै, इण नै आपां मोटी सफलता मान सकां, काहणी ओ संकेत करै कै आबै आगै आवै। अगाड़ी हुयां ई काम सरैला।
      इणी कथ्य रै जोड़ रो कथ्य पूर्ण शर्मा ‘पूरण’ आपरी कहाणी ‘ओढणियो’ में बरतै। दोनूं कहाणियां न्यारी-न्यारी जमीन माथै ऊभी है, एक गांव री कहाणी है तो एक शहर री। गांव अर शहर दोनूं जगावां लुगाई-जात नै आपरो आपो संभाळण री बात दोनूं कहाणीकार करै। एक मोटो फरक आ दोनूं कहाणियां मांय सूक्ष्मता अर स्थूलता रो है। पूर्ण शर्मा ‘पूरण’ बेसी सांकेकिता में आपरी बात कैवै, जद कै राजेन्द्र जोशी कहाणी ‘अबै माफी नीं’ मांय स्थूलता बरतै।
      कहाणी ठीमर सुर में आ बात मांड’र कैवै कै कोई आदमी किणी लुगाई नै कियां आपरै जाळ मांय लेवै। कहाणी मांय पेंट रो जिकर एक तरकीब रूप आवै। म्हारो मानणो है कै जे आप आ पेंट-तरकीब-गाथा आंख्यां मांय सूं काढ लेवो तो इण पेंट-प्रकरण नै भूल कोनी सको। कहाणी मांय पेंट राधा री भोळी मा री टांग्यां मांय फसै अर बा चकारी चढ जावै। कैयो जावणो चाइजै कै राजेन्द्र जोशी जिकी पेंट सबदां रै मारफत कहाणी मांय बरतै बा बांचणियां रै दिमाग मांय घर कर लेवै। रामनिवास शर्मा अर श्रीमंत कुमार व्यास इण ढाळै री केई सरस कहाणियां लिखी।  
      कहाणी ‘अनाम रिस्तो’ री नायिका सुधा सुधीर नै कैवै- “एक बात बताओ सुधीरजी, अबार इण घर रो माहौल कित्तो चोखो है। आपां दोनूं सागै भेळै रैवां। लाडो भी अबै थांरै बिना नीं रैय सकै। कोई फेरा खावणा ई तो जरूरी कोनी। प्रेम हुवणो चाईजै। आपां बिना ब्यांव करियां ई लारलै एक साल सूं साथै रैय रैया हां। आपां बिचाळै बै ई रिस्ता बणग्या है, ... जिका ब्यांव करियां पछै हुया करै। सगळी दुनिया इण बात नैं जाणै अर आपां लारै बातां ई करै। फेर ब्यांव करण री जरूरत कांई है?”
      इण बात माथै सुधीर आ जरूर कैवै कै ब्यांव सामाजिक पट्टो हुवै पण सुधा ‘लिव इन रिलेशन’ में रैवणी चावै। राजस्थानी साहित्य में सुधा रो ओ सोच अगाड़ी कैयो जावैला। "अबै माफी नीं" री नायिका ई दुनियां री चिंता छोड़ रैयी है, अर सुधा ई इण चिंता सूं मुगत लखावै। दुनिया री चिंता छोड़’र खुद खातर जीवण मांय बगत मुजब बदळाव जरूरी हुवै। आं लुगायां रो सोच बदळ’र अगाड़ी आवणो सरावणजोग। इणी ढाळै कहाणी ‘ममता’ मांय आपां देखां कै परदेस सूं पढ-लिख’र ई कुंवर साब आपरी जड़ा अर जमीन सूं प्रीत पाळै अर घर री नौकराणी ममता नै ब्यांव सारू दाय करै। संग्रै अगाड़ी मांय ग्यारा कहाणियां है। आं कहाणियां मांय समाज री अबखायां अर नवै सोच नै दरसावती केई कहाणियां मिलै। कहाणियां री मूळ चेतना का केंद्रीय भाव सदा अगाड़ी हुवण अर अगाड़ी रैवण नै मान सकां। जूनी बातां नै छोड़’र बगत मुजब नवी रीत नै परोटणी अर अंगेजणी आं कहाणियां री खासियत मानीजैला।
      करण नै तो सगळी कहाणियां माथै विगतवार खूब बात करी जाय सकै, पण मंच माथै बिराजियां राजस्थानी रा लूंठा साहित्यकार ई आपरी बात राखैला। सेवट एक घणी जरूरी बात संकेत रूप कैवणी चावूं कै राजस्थानी भाषा रै साहित्य नै बांचण मांय आपां आगाड़ी बणा। भाई प्रशांत बिस्सा पोथ्यां माथै डिस्काउंट ई घणो देवै, अर साथै-साथै अबार म्हनै सुणीज रैयो है कै बै मन ई मन कैय रैया है कै जे म्हैं इण मंच माथै पोथी बाबत पूरी विगतवार बात मांड’र कैय दी तो पोथी बांचलै कुण। अबै बगत आयग्यो है कै आपां भासा खातर आ जिम्मेदारी समझ’र अगाड़ी बणा। जोशी नै एकर भळै बधाई। आयोजक संस्था रो आभार कै म्हनै म्हारी बात कैवण रो मौको दियो।
      जय राजस्थान। जय राजस्थानी। 





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डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
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