Sunday, March 19, 2023

लारलै दो दसक रै उपन्यासां में कथ्य अर सिल्प रो सरूप/ डॉ. नीरज दइया

साहित्य री आधुनिक विधावां मांय उपन्याससिरै मानीजै। इण विधा रा बडेरा शिवचंद्र भरतिया रै कनक-सुंदर’ (1903) नैं राजस्थानी रो पैलो उपन्यास मानण पेटै अेक राय कोनी। दूजो उपन्यास श्रीनारायण अग्रवाल रो चम्पा’ (1925) छप्यो। प्रवासी राजस्थानी लेखकां रा आं दोनूं उपन्यासां पछै बीकानेर रा श्रीलाल नथमल जोशी नैं उपन्यासकार हुवण रो जस जावै। आपरो आभै पटकीबरस 1956 मांय साम्हीं आयो। असल चिंता इण बात री करीजै कै जे आभै पटकीसूं उपन्यास-जातरा री विधिवत सरुआत मानां तो आपां पचास बरस लारै हुय जावां।

      डॉ. आईदानसिंह भाटी आपरै आलेख- आज रो राजस्थानी उपन्यास लेखन : वखत सूं लारैमांय लिखै- घणा खाडा खोचरा 1903 अर 1950 रै बिच्चै। प्रारंभिक दो-तीन उपन्यासां पछै पूरै पचास बरस रौ गैपअर ऐ पैलड़ा दो-तीन उपन्यास ई राजस्थानी समाज री चेतना सूं घणा अळगा लिखिजिया।’ (जागती जोत : अगस्त, 1995) डॉ. सुखदेव राव मुजब- आज उपन्यास साहित्य आपरी 95 बरसां री जातरा पूरी करली पण 95 बरसां में फगत 58 उपन्यास ही देखण में आया। मासिक माणकरै सितंबर, ..... अंक में 34 उपन्यासां, 10 विवादित उपन्यसां अर 8 बाल-उपन्यासां रा नांव गिणाइज्या पण तीन उपन्यास उण पछै ओरू छपगा।’ (जागती जोत : सितंबर, 1998) इणी दिस डॉ. मंगत बादल री आ बात ई देखां। बै लिखै- आजादी रै इतरै बरसां पछै भी राजस्थानी उपन्यासां री संख्या अेक सैंकडै रै नेड़ै ई कोनी पूगी तो चिंता करणो सुभाविक है। इण रो पैलो अर अखारी कारण तो ओ ईज राजस्थानी नै हाल तक आठवीं अनुसूची में ई कोनी जोड़ी।’ (जागती जोत : जनवरी, 2008)

      अब ओ दीठाव बदळग्यो अर बदळतो जाय रैयो है। लारलै दोय दसकां रो अरथाव आपां जे इक्कीसवीं सदी रै दोय दसकां सूं मानां तो म्हारी जाणकारी मुजब पैलै दसक 2001 सूं 2010 तांई 28 उपन्यास अर दूजै दसक 2011 सूं 2020 तांई 36 उपन्यास साम्हीं आय चुक्या... अर अजेस 2020 पूरो हुयां उम्मीद करां कै कीं भळै उपन्यास प्रकासित हुवैला। लगैटगै बीस बरसां मांय तीन बीसी सूं बेसी उपन्यासां रो आवणो राजस्थानी खातर मोटी बात इण सारू कैयी जावैला कै बीसवीं सदी करता ओ आंकड़ो खासा गीरबैजोग लखावै। खाली संख्यात्मक रूप सूं उपन्यासां रै बेसी हुया ई बात बणै कोनी, आपां नैं देखणो पड़ैला कै कथ्य अर सिल्प री दीठ सूं उपन्यास-जातरा कित्ती सवाई-सांवठी निगै आवै।

      आज रै उपन्यास मांय घर, परिवार, समाज, देस अर दुनिया रा केई-केई रंग बोलता दीसै। इण विधा मांय किणी उपन्यासकार री खासियत इण बात मांय मानीजै कै वो आपरै बगत नैं किण भांत अरथावै। किणी उपन्यास मांय गौर करण री बात है कै बदळती जूण-जातरा रो आखो चितराम बो किण रूप साम्हीं राखै अर आपरी परंपरा नैं किण भांत अरथावतो धकै बधावै। इक्कीसवीं सदी में देस अर दुनिया रै बदळावां नैं अंगेजता विगत बणावां कै कांई-कांई फरक आयग्यो। फरक री बात करां तो आपां नैं आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक अर सांस्कृतिक सीगा माथै गौर करणो पड़ैला। आ देखण अर विचारण री बात है कै कांई देस अर दुनिया भेळै साचाणी राजस्थान ई आं बदळावां री चपेट मांय बदळग्यो है, का स्सौ कीं पैली हो जियां रो जियां सागण है।     अठै अरविंदसिंह आशिया रै उपन्यास सिंझ्या’ (2018) री ओळ्यां काम में लेवां- ‘.........  ’ (पेज- ) बदळाव कदैई-कदैई इत्तो होळै हुवै कीं झट करतो कीं दीसै ई कोनी... अर केई बार हालत आ हुवै कै ओ बदळाव इत्ती फुरती सूं हुवै कै हालात अेक झटकै रै सागै पूरा बदळ जावै। रात नैं रोज नींद लेयर जागां तद दिनूगै नवी दुनिया सूं आपां रा भेटा हुवै। कोई भोळो मिनख आ सगळी माया कियां समझ सकै। फेर देस मांय वोटां अर नोटां री न्यारी-न्यारी पारटियां रा चक्कर। जनता भोळी अर आपणै राजस्थान री भोळप रो तो कैवणो ई कांई! खुद रै फायदै खातर आपाणै देस रा रुखाळा कियां-कियां कांई-कांई कर जावै, इण रा दाखला अर दीठाव आंख्यां सूं बुद्धू बगसै रै पड़दै माथै सगळा देखां ई हां। कानां सुणी अर आंख्यां देखी सूं नित नवी खबरां सूं भरियोड़ो अखबार जाणै घर-घर आ ई हांती बांटै। कांई साचाणी देस अर आपां री दुनिया इत्ती बदळ चुकी, भरोसो कोनी हुवै। अबै तो ओ फैसलो करणो ई ओखो हुयग्यो कै कुण साच कैवै अर कुण कूड़ बोलै।

      आपणै मोटै देस भारत माथै करजै रो मोटो भारो बतावै। आपां किणी सूं करजो लेयर जियां आखी जूण दबता रैवां, उणी भांत विदेसां सूं करजो लियां कीं तो भार भोळी अर बोळी जनता माथै ई हुवैला। देस रा करणहार बावळी जनता नैं सुपनां देखा-देखार बगत भेळै टोरियां राखै। भोळां भगतां नैं ठगण खातर बै उतर भीखा म्हारी बारीरो खेल खेलता केई-केई अचूक मंतर जाणग्या। जियां- जात-पांत अर हिंदू-मुसळमान भेळै हिंदुस्तान-पाकिस्तान रो रोळो, मंदिर-मसजिद रो झौड़, राज्यां बिचाळै सीवां अर पाणी री पांती, भासावां री बात, अपराध अर अपराधियां री दुनिया, बाबावां री करामात अर अपसंस्कृति रै चाळै मांय चूंधा हुयोड़ा लोग, किसानां रो आतमघात, अंबानी बंधुवां रो फ्री-जीयो रो चक्कर अर चसका मांय डूब्योड़ी जवान पीढी, रुजगार री अबखायां, मीडिया रो चक्कर, जर-जमीन अर जोरू सूं जुड्या बेकाबू हालात... इत्ता-कित्ता खेल है!

      कैयो जावै कै उपन्यास मांय कथाकार किणी कथा नैं उण पूरै परिवेस साथै साम्हीं राखै। आज रै उपन्यास मांय खातर बात आज रै बखाण री कैयी जावै। आज आपां साम्हीं केई-केई बातां अर चुनौतियां है। कुंदन माली रो मानणो है- मुट्ठी भर अपवाद छोड़नै कैवां तो राजस्थानी उपन्यासकार घुमाय-फिराय नै पांच-दसेक थीम सूं आगै नीं बध सक्या है अर नारी-जूण रो कथानक इण रो स्थाई भाव बणग्यो है।’ (जागती जोत : फरवरी, 2008) उपन्यास विधा मांय घणै धीजै साथै घणी खेचळ करणी पड़ै। उपन्यास लिखणो ओखो काम अर लिख दियो तो छपणो ओखो काम। अर जे छपग्यो तो उण नैं बांचैला कुण कुण? लारलै लांबै बगत सूं म्हैं उपन्यास बांच रैयो हूं अर पूरी उपन्यास-जातरा माथै आलोचना-पोथी आंगळी सीधइणी बरस छपैला।

      इण भूमिका पछै म्हैं मूळ मुद्दै माथै आवूं। ओ अजब संजोग कैयो जावैला कै बरस 2001 मांय नंद भारद्वाज रै उपन्यास रो नांव साम्हीं खुलतौ मारगहै। असल मांय इणी बरस सूं राजस्थानी उपन्यासां रो मारग खुलै। इण उपन्यास नैं बरस 2004 रो साहित्य अकादेमी पुरस्कार अरपित करीज्यो। अठै ओ अखरावणो जरूरी लागै कै बरस 1974 सूं 2018 तांई रै 45 साहित्य अकादेमी पुरस्कारां मांय फगत छव उपन्यासकारां नै सम्मान मिल्यो। उपन्यासकार अन्नाराम सुदामा, शांति भारद्वाज राकेशअर अब्दुल वहीद कमलनै बीसवीं सदी मांय माना तो लारलै बीस बरसां री इण जातरा रा फगत तीन नांव आपां साम्हीं रैवै- नंद भारद्वाज, अतुल कनक अर मधु आचार्य आशावादी। अब्दुल वहीद कमलनैं साहित्य अकादेमी घराणोउपन्यास खातर अरपित करीज्यो अर उण पछै बांरो रूपाळीउपन्यास बरस 2003 मांय साम्हीं आयो। उपन्यासकार कमल री सगळां सूं लांठी खासियत आ है कै बां आपरै समाज रो जिको सांतरो चितराम सबदां रै मारफत राख्यो बो मुसळमान समाज रै जुदा-जुदा रूप-रंग नै राखै साथै ई उण मांयला दुख-दरद अर सांच नैं पुखता ढंग सूं अंवेरै। राजस्थानी उपन्यास-जातरा मांय अे. वी. कमल सूं पैली किणी रचनाकार इण ढाळै री रचनावां कोनी लिखी अर इण नैं राजस्थानी उपन्यासां रै कथ्य रो विस्तार मान सकां।

      उपन्यासकार नंद भारद्वाज सांम्ही खुलतो मारगरै मारफत राजस्थान रै लोक-जीवण नैं घणै ठीमर रूप मांय साम्हीं राखै। उपन्यास री कथा रो मूळ मसकद जूण रै अरथ नैं आंख्यां सांम्ही करणो है। जाणकारी रै रूप तो आ बात सगळा जाणै कै कथा-नायिका सत्यवती दांई हरेक रै जीवण मांय अबखा हालात आवै अर हालातां सूं बारै आवण रो मारग खुद नैं आपरी आफळ अर सूझ-बूझ सूं सोधणो पड़ै। भारद्वाज रो ओ उपन्यास आपरी रळियावणी भास-सैली, महागाथात्मक कथानक, नवी बुणगट अर केई खास चरित्रां रै पाण आखै राजस्थान नैं अेक सफीट बदळाव साथै साकार करतो अठै रै विकास अर आधुनिक हुवतै समाज री लांबी कहाणी कैवै। इण उपन्यास बाबत साहित्य अकादेमी पुरस्कार रै मौकै दियै अभिभाषण में उपन्यासकार कैयो- कीं ठावा चरितां रै जीवण-संघर्ष अर वांरी जीवण-दीठ रै बुनियादी फरक नै दरसावण वाळा घटणा-परसंगां री मारफत वांरै अंतस री पीड़, मनोभाव अर मांयली अमूंज नैं तौ सांम्ही लावै ई, आं बदळता हालात में जिनगाणी री डोर आपरै हाथ में राखण री मनगत वाळा माईतां अर समाज रा आगीवाणां रै सांम्ही कीं अैड़ा अबखा अर आकरा सवाल ई ऊभा करै के वांरौ आपौ अर आमूळ आचरण खुद वांरी निजरां में ई अेक लूंठौ सवाल बण जावै।

      अतुल कनक आपरै दोय उपन्यासां- जूणजातराअर छेकड़लो रासरै मारफत राजस्थानी उपन्यास-जातरा नै नवै कथ्य अर सिल्प सूं आगै बधावै। पुरस्कृत उपन्यास जूण जातरअबोट कथानक नै अंवेरै तो आज री सगळा सूं लांठी जरूरत पाणी खातर आपरै पाठकां नैं सावचेत ई करै। छेकड़लो रासमांय प्रेम त्याग अर समरण नैं नवी बानगी रूप देख सकां। अतुल कनक रा उपन्यास कथ्य र सिल्प दोनू दीठ सूं उल्लेखजोग कैया जावै। कोटा अंचल महक लियां गिरधारी लाल मालव रो ओर एक भगीरथ उपन्यास ई उल्लेखजोग कैयो जाय सकै इण मांय लोकजीवण रो सांगोपांग चितराम मिलै।

      मधु आचार्य आशावादीनैं साहित्य अकादेमी पुरस्कार गवाड़उपन्यास खातर अरपित करीज्यो जिको उत्तर आधुनिकता रो पैलो उपन्यास मान्यो जावै। घणी जसजोग बात कै आशावादी लगोलग उपन्यास विधा मांय सक्रिय है अर अबार तांई अपारा छव राजस्थानी उपन्यास साम्हीं आ चुक्या- भूत भूत रो गळो मोसै, अवधूत, आडा-तिरछा लोग, आस री अमावस, डोकरी। छोटी-छोटी ओळ्यां मांय उपन्यासकार जाणै जीवण रा केई केई अरथां नैं आपां साम्हीं खोलर राखै। गवाड़रै मोटै फलक माथै जाणै उपन्यासकार साव नजीक सूं इणी सूं किणी अवधूत री कथा आपां साम्हीं रचै। भूत सबद रो नवो मायनो भूत भूत रो गळो मोसै उपन्यास मांय मिलै तो इण दुनिया रा आडा-तिरछा लोग उणी उत्तर आधुनिक समाज सूं जुड़ियोड़ा चरित्र है। आ उपन्यासां मांय बदळतै समाज रो असली चैरो मिलै। उपन्यासकार आपरी कथा मांय बात मांय सूं बात निकाळतो संवाद सूं केई मारग निकाळै जिण री परख बगत करैला। समाज री सजगता आं उपन्यासां मांय हरेक रो ध्यान खींचै। 

      वरिष्ठ उपन्यासकार श्रीलाल नथमल जोशी रो सरणागतउपन्यास बियां तो घणो पैली लिखीज्यो पण छप्यो 2004 मांय। श्रीलाल नथमल जोशी, अन्नाराम सुदामा, यादवेंद्र शर्मा चंद्रआद पछै जिण उपन्यासकारां उपन्यास विधा मांय पूरै मनोयोग सूं काम करियो उण मांय जसजोग नांव देवकिशन राजपुरोहित अर देवदास रांकावत रो मानीजै। देवकिशन राजपुरोहित राजस्थानी रा मानीता उपन्यास मानीजै अर लारलै दोय दसक मांय आपरी ग्रंथावळी अर अभिनंदन ग्रंथ रै मारफत पांच उपन्यास साम्हीं आया- किरण’, ‘किसन’, ‘गवरी’, ‘संथारोअर खेजड़ी। उण पछै `बैकुंठीउपन्यास आयो। सिल्प पेटै बात करां तो राजपुरोहित आपरी बाण मुजब उपन्यास रो नांव तीन आखरां रो राख्या करै, अर बै होटल मांय हत्या सूं जुड़ियै कथानक नैं पैली बार राजस्थानी मांय किरण उपन्यास मांय परोटै। पांच उपन्यासां मांय सूं संथारोरी बात करणी चावूं। धरम रै नांव माथै बडेरा अर मायतां री जिण ढाळै घर-परिवार मांय गत बिगड़ रैयी है उण रो काळजो हिलावै जिसो चितराम इण उपन्यास मांय घणो जसजोग कैयो जावैला। `बैकुंठीउपन्यासा री आ खायिसत कैवां कै ग्रंथावली मांय एक व्यंग्य छ्प्यो इणी नांव सूं, इणी व्यंग्य नैं उपन्यास रो पैलो अध्याय बणार ओ उपन्यास लिखणो एक प्रयोग कैयो जावैला। ओ व्यंग्य उपन्यास बण सकतो हो पण भासा मांय बातपोसी रो अंदाज अर सिल्प सूं ओ एक सामाजिक उपन्यास री गिणती बधावै। खेजड़ीउपन्यास इतिहास नैं परोटै।

      देवदास रांकावत आपरै जोरावर पदमा सूं नांव कमायो अर उण पछै बै उपन्यास विधा में पूरै समरण सूं जसजोग काम करियो। गांव ! थारै नांव, मुळकती मौत कळपती काया, धरती रो सुरग आद सूं समाज मांय अलोप हुवतै संस्कारां री बात बै उठावै। बातपोस दांई बै रंजकता साथै कथा कैवै। बी.अेल.माली अशांतरो अबोली अर ताऊ शेखावाटी रो बिदामी मौसी नारी जूण री अबखायां नैं ऊंडै तांई अंगेजै। साहित्य अकादेमी सूं सम्मानित रचनाकारां मांय कहाणीकार मेजर रतन जांगिड़ रो नांव ई अठै लियो जावणो जरूरी समझूं, कारण कै लारलै दोय दसक मांय आपरा दोय उपन्यास- फूली देवीअर सींवां री पीड़साम्हीं आया। चरित्र प्रधान उपन्यास री आफळ मांय फौजी जूण री मनगत सींवां री मांय घणै मारमिक रूप मांय साम्हीं आवै। नवनीत पाण्डे रै दोय उपन्यासां माटी जूणअर दूजो छैड़ोरी नायिकावां आधुनिकता अर परंपरा रा केई सांधां नै अेकैसाथै देखण रा जतन करै। कलेक्टर महिला चरित्र री कथा सूं राजस्थानी उपन्यासां रो मूळ कथ्य नारी जूण मांय की नुंवा रंग जुड़ जावै।

      उपन्यास रै पेटै अबै कीं भरोसैमंद नुवा नांवा मांय भरत ओळा, रामेसर गोदारा, प्रमोद कुमार शर्मा, अरविंद सिंह आशिया, जितेन्द्र निर्मोही, श्याम जांगिड़ आद रा नांव मान सकां। भरत रै दोनूं उपन्यासां- घुळगांठअर घुळगांठ माथै घुळगांठमांय कहाणियां रै कोलाज सूं उपन्यास नै साधण री खेचळ हुई। उपन्यास मांय न्यारै-न्यारै अध्ययां रा सिरैनांव राखण री दीठ सूं गवाड अर मधु आचार्य रा बीजा उपन्यास ई सिरै कैया जाय सकै। न्यारै न्यारै अध्यायां मांय घुळगांठ रो कथानक नवै जमानै री हवा नै सबदां मांय बांधै। तीन भाइल्यां- प्रतिभा अग्रवाल, प्रीति आडवाणी अर मनीषा मेघवाळ अर च्यार भायला- इण्डू चौधरी, किसन मेघवंसी, पंकज भारद्वाज अर विपिन गुप्ता री सींव मांय रचीजी घुळगांठ री कथा मांय भाषण, कविता अर गीत रो पूरो-पूरो पाठ देवणो सिल्प री कमजोरी मान सकां। सवाल ओ पण करियो जासी कै कांई युवा पीढी रै हुवतै नैतिक पतन नैं दरसाण खातर भरत ओळा सामाजिक सद्भाव रै नांव माथै च्यार जणा नैं छांटर माडाणी भाइला बणा दिया है? घुळगांठ असल मांय नवजवानां रै खूटतै लूण-लखण री घंटी बाजावै। आ रचना बगत रैवतां सावचेत करण री रचना है। लेखक री आ दमदार कोसिस है, सो इण नैं जातिय गांठ रूप नीं दोस्ती रै गंठजोड़ै रूप संबंधां नैं बणावण अर निभावण री जसजोग कथा जाणा तो ठीक रैवैला।

      दूजै उपन्यास घुळगांठ माथै घुळगांठमांय ई युवा वर्ग री लापरवाही, दारू री लत भेळै मौज-मस्ती री जूण नैं ले डूबण री चिंता है। घुळगांठ हाल ई समाज मांय अंधविश्वास अर साधु-मोड़ा रा झाडा-झपेटा री बानगी है। कानून-कायदा रै मिस समाज मांय गांठां अर घुळगांठ प्रेम अर पतियारै नैं खांडो करण री करुण-कहाणी ओ उपन्यास आपां साम्हीं ओ सवाल साम्हीं राखै कै कांई अंत सदीव पूरो कथ्य रो खातमो हुवै का जठै कोई कहाणी-उपन्यास संपूर्ण हुवै, बठै ई उण रै नवै जलम रो सुपनो जलमै।

      नौरंगजी री अमर कहाणी में श्याम जांगिड़ नवै सिल्प मांय प्रयोग करै। कथ्य मांय नायक नायिका रै प्रेम री ठौड स्वामी भक्ति है जिण नै नवीं आंख्यां देख नीं सकै। टूण्डौ मूण्डी मांय रामेसर गोदारा आपां साम्हीं एक नवो चरित्र राखै तो गोटी मांय प्रमोद कुमार शर्मा आज रै बेकाबू हलातां रा केई जसजोग चितराम राखै। अरविंद सिंह आशिया सिंझ्या रै मारफत नवी भासा अर सिल्प सूं नायिका रै जूण री सिंझ्या रो जसजोग चितराम राखै। जितेन्द्र निर्मोही रै नुगरी मांय लुगाई जूण री न्यारी निरवाळी कथा मिलै जिकी आज रै बदळतै बगत नैं बखाणै। गिरिजा शंकर शर्मा रै क्रांति रा जोरावर मांय ऐतिहासिकता प्रभावित करै तो मनमोहन सिंह यादव रै उपन्यास कुदरत सूं कुचमाद मांय ग्रामीण जूण रा मनमोवणा चितराम मिलै साथै ई बदळतै ग्रामीण समाज री बानगी सूं आज रै मोटै सवाल नै उपन्यासकार राखै। शहीद री जिया जूण माथै अर कारगिल नैं केंद्र मांय राखता उपन्यासकार गोरधनसिंह शेखावत रो एक शहीद फौजी उपन्यास नवै कथ्य सारू अठै याद कर सकां।

      उपन्यास जातरा मांय सरदार अली पड़िहार रा उपन्यास- सोनल अर उडग्या पंख पसार समाज मांय शिक्षा रै महतम नैं बतावै। मोहन थानवी रा उपन्यास कैलेंडर सूं बारै अर कुसुम संतो धार्मिक पाखंडा माथै चोट करै तो भंवरलाल महरिया रा दोय उपन्यास- लीरां लीरां है जमारो अर बिणजारो लोकरंग मांय न्यारी न्यारी छिब राखता राजस्थान रै मिनखां री जूझ नैं उजागर करै। माणक तुलसीराम गौड़ रा जीत रो सेवरो, पीड़ री पांती अर हेत रो हेलो तीनूं उपन्यासां मांय घर परिवार अर समाज रा बदळावां नैं संस्कारां री दीठ सूं देखण-परखण रो प्रयास है। करड़कू नांव सूं मनोज कुमार स्वामी रो उपन्यास आयो जिण नैं बां री आत्मकथा रो दूजो खंड मान सकां। जूण री जूझ रै इण चितराम मांय मिनख री बणती बिगडती साख साम्हीं आवै। विधावां मांय आंतरो साव कमती रैयग्यो है। आत्मकथात्मक उपन्यासां री दीठ सूं ओ जसजोग काम कैयो जावैला।

      महिला उपन्यासकारां री बात करां तो मून रा चितराम (आनंदकौर व्यास), राधा (कमला कमलेश’), नेह रौ नातौ (जेबा रशीद), कितरी दूर पड़ाव, मिट्ठू (सुखदा कछवाह) अर अैड़ो क्यूं ? (बसंती पंवार) री कलमां पाखती जिया-जूण रा लांबा नैं लूंठा अनुभव रैया, जिण सूं आं उपन्यासां मांय लुगाई जूण री अबखायां-अवळायां नैं सबद मिल्या। दूजै पासी नवी कलमां रा उपन्यास- पोतीवाड़ (रीना मेनारिया), जीवाजूंण रा कापा (अनुश्री राठौड़), आठवीं कुण? (मनीषा आर्य सोनी), (सन्तोष चौधरी) अर हेत री हूंस (सीमा भाटी) इणी परंपरा नैं आगै बधावै।

म्हैं म्हारी बात भवानी शंकर व्यास विनोदरै सबदां सूं पूरी करूं, बै लिखै- उपन्यासां रो भविष्य ऊजळो है काळ रा झपेटा खायर उपन्यासां रै नांव माथै टिकायोड़ा केई काचा, मामूली अर गैर जरूरी उपन्यास आपौआप झड़ जासी अर काळ सूं बंतळ करण वाळा काळ री सींव लांघणवाळा अर काळ माथै छाप छोडणिया उपन्यास ई कायम रैसी।’ (राजस्थली : मार्च, 2009)  

 

डॉ. नीरज दइया

28 जुलाई, 2019 रायसिंहनगर में साहित्य अकादेमी परिसंवाद में पठित आलेख- डॉ. नीरज दइया

रायसिंहनगर में साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली द्वारा आयोजित परिसंवाद- ‘पिछले दो दशक में राजस्थानी उपन्यास’ के दूसरे सत्र में वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मंगत बादल और डॉ. सत्यनारायण सोनी के साथ मुझे भी अपनी बात साझा करने का अवसर मिला। 

 

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डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
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आंगळी-सीध

आलोचना रै आंगणै

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