सांवर दइया सूं बात-बतळावण करता कन्हैयालाल भाटी
बगत रै सागै भाषा परिष्कृत होवै : सांवर दइया
• राजस्थानी गद्य री मौजूदा हालत कांई है? लोग रेखाचितराम तो घणाई लिख्या, पण चोखी कहाणियां अर उपन्यासां री कमी है। थांरी कांई राय है?
- आज रै दिन राजस्थानी गद्य में जिको कीं लिखीज रैयो है, वो कोई माड़ो कोनी। अनेकूं लोग कहाणियां लिख रैया है अर सांतरी कहाणियां लिख रैया है। उपन्यास री बात करतां ई सुदामाजी री नांव चेतै आवै। कहाणी रै क्षेत्र में आदरजोग बिज्जी (श्री विजयदान देथा) रो नाम सिरै। दूजै कथाकारां में नृसिह जी राजपुरोहित, श्री. न. जोशी, रामेश्वर दयाळ श्रीमाली पर भ्रमर तांई अअछी कहाणियां लाधै।
अबै रेखाचितरामां री बात करां। रेखाचितराम खूब लिखीज्या। आ तो लेखकां रै जुड़ाव री बात है के बै कांई लिखै। हो सके, आं लोगां नै आपरै नेड़ै रैवणियां में कीं खास बातां निजर आई हुवैला, बांरै व्यक्तित्व री खासियतां ई लेखकां रै मन-मगज में ऊंडै तांई रही हुवैला अर बांनै दूजां तक संप्रेषित करण री बाध्यता लखाई हुवैली।
• आज राजस्थानी नै भाषा रो दरजो दिरावण सारू अेक आंदोलन से जरूरत है। राजस्थानी नै ओ दरजी दिरावण सारू आधुनिक स्तर रो साहित्य सिरजल करणो पड़सी, इण बाबत आपरा, विचार कांई है?
- देखो सा, इस रै लारै जे सिरफ राजनैतिक स्तर रै आंदोलन री बात है तो म्हैं इण नै फालतू बात समझूं। अैड़ा आंदोलन पांच सात लोगां रा नाम उछाळ’र पूरा हो जावै। इण सारू तो अेक बात समझ में आवै कै राजस्थानी में कै राजस्थानी में खूब खूब लिख्यो जावै... इण रै प्रचार-प्रसार रै माध्यमां री सुविधा पांगरै... हर अेक आदमी रै आपरी रुचि रै मुजब बांचण नै मिळै... अेकर आपां नै अेकदम उत्कृष्ट री बात अेक्कानी राखणी पड़सी। अबार तो अेक ई लक्ष्य हुवणो चाइज कै आ जन-जन तांई कियां पूगै।
• केई वळा ओ आरोप लगाइजै कै राजस्थानी आधुनिक संवेदनावां व्यक्त नीं कर सकै। इण भाषा री मूळ आत्मा सामंती है?
- राजस्थानी में आज रै जुग री उळझ्योड़ी बातां भी कथीज सकै अर साव नुंवै ढंग सू कथीज सकै। श्री नारायण सिंह भाटी, सत्यप्रकाश जोशी, सेठिया जी, कल्याणसिंह राजावत री कवितावां देखो.... पछै तेजसिंह जोधा, पारस परोड़ा, चन्द्रप्रकाश देवळ, प्रेमजी प्रेम री कवितावां देखो... आपनै खुद ई लखावैला कै आधुनिक परिपेख में संवेदनावां अभिव्यक्ति करण में ई राजस्थानी कित्ती जबरदस्त अर सिमरिध भाषा है।
राजस्थानी री मूळ आत्मा नै सामंती कैवण लारै थांरी कांई मनस्या है? किणी भाषा री आत्मा आपणी आत्मा दांई’ज अजर-अमर हुवै? जुग री बधती अबखयां सागै बींरो रूप कोनी बदळै कांई! डिंगळ री शब्दावली अर आज री राजस्थानी कवितावां री शब्दावली अेक सरखी लखावै थांनै? म्हनै तो जूनै कवियां री अर आज रै कवियां री अनुभूति में साफ छेती लखावै... आज आं कवियां री भाषा अर शिल्प री पड़ताळ करियां लखावै कै बदळतै जीवण रूप अर जटिल हुबती जिंदगाणी नै अै लोग सबळै ढंग सूं सामै लावरण में लाग्योड़ा है। थांरी बात नै इण ढंग सू उलट’र पूछ- अंगरेजी रा भगत कह सकै कै हिंदी री आत्मा गुलामां री है... अबै थे कांई कैवोला? म्हैं तो आ मानूं कै बगत रै सागै-सागै भाषा रो परिष्कार हुवै.... आदमी री जिंदगाणी ज्यूं-ज्यूं उळझती जावै बींरी अवखायां बधती जावै, त्यूं-त्यूं अभिव्यक्ति रा रूप ई बदळै अर भाषा ई बदळै...
इण बदळती भाषा प्रकृति नै आप ‘बेलि किसन रुकमणी री', 'बोल भारमली' या 'मीरा' या तेजसिह अर चंद्रप्रकाश देवळ री कवितावां री भाषा नै मिला'र देखो, कांई आं में किणी भांत रो फरक नीं है?
गद्य में वचनिकावां या ख्यातां-बातां नै लेवो। पछै बिज्जी पर सुदामाजी रो गद्य सामै राखो। इण रो फरक परतख निगै आवैला।
• राजस्थान में अेकरूपता री कमी रो आरोप लगाइजै। हाड़ौती, ढूंढाणी, मेवाडी, मारवाड़ी अेक दूजा खातर आपरी है? मानक रूप नीं हुवण सूं दूजी अखबायां ई लाधै।
-थांरी आ बात किसी हद तांई साची हो सकै, पण लोग अेक दूजै री बात समझ नीं सकै, आ म्हैं कोनी मानूं। प्रेमजी प्रेम री बात करां। थारै हिसाब सूं बै हाड़ौती रा कवि है, पर लोग बानै चाव सूं सुणै-बांचै आई बात सवाईसिंहजी धमोरा बाबत कह सकां। लोग बांनै ई हरख सूं सुणै-बांचै, जद कै बै ढूंढाणी पुट देवै...
भाषा रै मानक रूप री अबखायी मेटण सारू पत्र-पत्रिकावां चाइजै... बांरो काळ है...
किणी भाषा नै मानक रूप देवण खातर गद्य लेखकां री जिम्मेदारी लूंठी हुवै। सूझ बूझ वाळा संपादकां री जरूरत हुवै। अवार 'माणक’ रै मारफत ओ काम चालू है। केई लोग बीं सूं असहमत ई है। पर अेक पुख्ता कोशिश तो चालू है। राजस्थानी प्रचार सभा जयपुर ई इण काम नै करियो। इणी प्रसंग में अेक बात भळै, हिंदी रै परिष्कार संस्कार रो काम द्विवेदी जुग में हुयो, ठीक बै ई कोशिशां राजस्थानी खातर जरूरी है। इस्या लोग कठै? अबार तो कई लोग आपरी सगळी ताकत इणी में लगावण लाग रैया है कै ऊंट रा इत्ता नांव है। धणी खातर इत्ता शब्द है। धरवाळी खातर इत्ता शब्द है। काल रै दिन जे कोई आ खोज कर लावै कै राजस्थानी में पाद खातर इत्ता नांव है तो अचंभै री बात कोनी। इस्सै कामां री जागा जे दूजी विधावां में खूब-खूब लिख्यो जावै तो राजस्थानी रो भलो हुवै।
• राजस्थानी री न्यारी लिपि कोनी। इण री लिपि नागरी है। पछै जे हिंदी में ई लिखां तो कांई हरज है? लिपि तो अेक ई है...।
- लिपि न्यारी हवै, आ बात म्हारै खातर महताऊ कोनी। राजस्थानी री लिपि नागरी है, आ मानी। पण मराठी, नेपाली नागरी लिपि में ई लिखीजै है। आ तो संस्कृत री लिपि है। तो पछै मराठी, नेपाली, हिंदी वाळां नै, सगळां नै ई संस्कृत में लिखणो चाइजै... नागरी लिपि रै गौरव री बात है नीं....कैवो बां नै आ बात।
• राजस्थानी में पत्र-पत्रिकावां री धणी कमी। दैनिक छापो है ई कोनी। आलोचना रो ई अभाव है... इण बाबत कांई कैवणी चावोला?
- राजस्थानी में रोजीना का अठवाडियै पखवाड़ियै छापां री बात करण सूं पैली थांनै ताळी बजा’र हंसणो चाइजै। देखो सा, आ ई वजह है कै आ खातर वातावरण बण्यो कोनी... जे रोजीना रो छापो छपै तो लोगां नै बांचरण रो ई अभ्यास हुवै अर अेकरूपता री समस्या ई हल हुवै।
घणखरीक तो तिमाही पत्रिकावां निकळै आंरी पूंच कठै तांई है? अै पत्रिकावां ‘टू इन वन’ रै हिसाब सूं निकळै... पैली तो पत्रिका रो अंक छपग्यो अर पछै बो ई जिल्द बंध’र पोथी बणग्यो। अैड़ी पत्रिकावां रो रूप कांई हवैला... वां रा जोड़-तोड़ कांई हो सकै, म्हैं कांई कैवूं. थे खुद समझदार हो, बात समझ सको...
मासिक पत्रिका रो नाव लेवां तो आगै-लारै ‘माणक’ है। ‘माणक’ रै ढंगढाळै री अनेक पत्रिकावां निकळै तो पाठक तैयार हुवै...
• इण रो तो ओ अरथ हुयो कै राजस्थानी साहित्यकार अकादमी का पछै राजकीय दया लारै जीवै?
- देखो सा, आ बात कैवण सूं पैली अकादमी रै कामां रो लेखो कर लेवां तो ठीक रैसी। बीकानेर में बण्योड़ी अकादमी कांई करै आ कैवण री जरूत है कांई? ‘जागती जोत’ मासिक सूं त्रैमासिक होगी। बाई बगतसर कोनी छपै। अकादमी पोथ्यां छापणी बंद कर दी बतावै। अबै रही प्रकाशन सहायता अर पुरस्कार री बात। इण नै जे थे सरकारी दया माथै जीवणो कैवो तो कैवो भलाई। कुण बरजै थांनै। बाकी म्हैं तो आा कोनी मानूं के राजस्थानी साहित्यकार राजकीय दया लारै जीव....
दूजै प्रांतां रो अकादमियां कांई ठाह कित्तो-कित्तो काम करण में लाग्योड़ी है अर अेक आ घराघर अकादमी है... कांई ठाह किण रो शाप लाग्योडो है इण नै....
• राजस्थानी साहित्यकारों री तुलना जे बंगला या हिंदी साहित्यकारां सूं करां तो...
- भाई इस्सी बातां ना करो तो ठीक है। बंगला या हिंदी रो साहित्यकार लेखन रै बलबूतै सूं आपरो काम चला सकै, पण राजस्थानी में लिख’र तो थां अवार चाय-कॉफी रो खरचो ई कोनो काढ सको। राजस्थानी में पारिश्रमिक कोनी मिलै, हां, कदै कदास पुरस्कार मिल जावै।
बंगला में कोई अेक लेखक जित्तो लिखै, खाली आकार री दीठ सूं बात करां, उत्तो तो अठै रै केई लेखकां री पोथ्यां भेळी करियां ई बात कोनी बैठै।
• राजस्थानी लेखकां री कोई प्यारी निरवाळी ओळखाण बणी है? महैं तो घा मानूं कै डिंगल में काम ज्यादा हुयो?
- राजस्थानी लेखकां री कोई न्यारी निरवाळी ओळखाण बणी है! भाषा अर मुहावरै री दीठ सूं न्यारी ओळखाण री बात करतां ई देथा जी अर सुदामा जी रा नांव चट याद आवै....
डिंगळ में काम हुयो, ना कुण करै। पुराणी पीढी रो काम सिर माथै। बांरी तबीयत बां कामां में रमै। पण आदमी अतीत जीवी हुवै। भूतकाल हमेशा सोवणो लागै। गुलामी में रैयोड़ा आदमी आज रै दिन ई आपरै जमानै री तारीफ करता लाधै।
आधुनिक लेखक बावना लखावै, म्हैं कोनी मानूं। आज रै लेखकां आदमी नै बीं रै साचै रूप में चित्रित करण री जोखम झेली है। जूनै साहित्य में जुझारू लोगां रा किस्सा हा, सिणगार री चासणी ही। आज जिको कीं तिखीज रैयो है, वो विश्वसनीय भी लागै। हो सके थांरी निजर में आ खास नीं हुवै, पण म्हैं तो ईमानदारी अर विश्वनीयता नै बड़ी बात मानूं।
• थांरी कहाणियां वांच्या लखावै कै अेक सरीसी कहालियां लिखो... इण सूं हट’र कोनी लिखो, इस बाबत कीं कैवोला?
- देखो जे थां इण बात नै म्हारी कहाणियां रो दोष समझो तो समझो भलाई म्हनै रत्तीभर ई अेतराज कोनी। म्हैं जिसै लोगां बिच्चै रैवूं जिकै लोगां नै देखूं-परखूं जे बां री बात नीं करूं तो आ म्हारी लेखकीय बेईमानी है। लोग प्रतिबद्धता रो रोळो करै... म्हनै तो बै दावा थोथा लागै। जिका लोग हवाई दुनियां में जीवै... आपरै बगत अर समाज कानी पीठ राख’र पाठकां नै चमत्कृत करण खातर नुंबा टोटका करै बो कूड़ो लेखन म्हारै सूं तो कोनी हुवै... जे आपां आपणी छोटी सच्चाई नै पेश करां तो आपणी सैंग जणा री सच्चाई मिल’र पूरी तस्वीर में हर अेक रो सीर हुवैता... म्हैं चावूं कै म्हारी सीर वाळी बात विश्वसनीयता री कसौटी पर खरी रैवै..
कीं हट’र लिखण री बात है तो जूनी कहाणियां सूं आं रो ढंग मेळ कोनी खावै। पैली री कहाणियां में कठोर पयोधरा अर विकट नितंबा नायिकावां लाधती। वां री नाक सूवै री चांच-सी, आंख्यां आम री फांक-सी, होठ गुलाब री पांखड़ी सा हुया करता... आज आ बात कोती लाधै। पैली जूझारू मिनख लाधता, अबै रोजमर्रा री जरूरता पूरी करण में ई टूटतो मिनख लाधै...
• असवाड़ै-पसवाड़ै, धरती कद तांई धूमैली, अेक दुनिया म्हारी पोथ्यां लिखी। आज रो राजस्थानी समाज जिण नुवै परिवेश में जीवै, बीं बाबत आप कांई सोचो?
- आज राजस्थानी समाज जिण परिवेश में जीवै बा आधुनिकता बीं नै झटको देय रही है। आप जाणो ई ही, उठै शिक्षा री धोर कमी रही है। घणकरा परिवार, समाज कैवां तो ई गळत नीं हुवैला, नुंवैपण नै.... अेक भूंडै रूप सूं ओढ्यो है। बंगाल, आसाम अर बम्बई में रैवणिया राजस्थानी लोग खुद नै नुंवै परिवेश में ढाळ लेवै, पण उणां रा मूळ संस्कार आपरै गांव का कस्बै वाळा ई रेवै ओ ई कारण है कै गांवां में शहरां में ई लेवो नीं, नौकरी करण वाळी लुगायां खातर लोगां री धारणा सरावण जोग कोनी। बै हर बगत दाळ में कीं काळो ई सोधता रैवै...
तकनीकी तरक्की रै कारण मिनख अर मिनख बिच्चै जिको आंतरो भावै परिवार तूटै... जूना रीति-रिवाज टूटै....स्वार्थ भावना वळवती हुई.... अै सैंग बातां शहरां में घणी अर गांवां में थोड़ी मात्रा में देखग नै लाधै...
म्हारी तीनूं पोथ्यां में थांनै आ बदळ्योड़ी धारणा.... दूजा बाबत सोचण री सूगली आदतां अरम री मार सूं तूटता परिवार लाधसी.....
• राजस्थानी में लेखण नै आज प्रकाशन खातर जूझणो पड़ै... अैडो क्यूं?
- थारी आ बात सुण’र हंसी आवै... अठै छपण खातर पूरी पत्रिकावां कोनी तो पछै व्यासायिक रूप सूं पोथी छापण रो जोखो कुण लेवै? आज राजस्थानी में घणकरा लेखक मर-पचर आपरी पोथी खुद छापै.... जे कोई प्रकाशक भायलो हुवै तो वो आपरै हिसाब सूं बरस में दो-तीन पोथ्यां छापै। उण में अेक पोथी भायलै री ई छाप लावै.... अै दो ई ढंग है छपण-छपावण रा... जे कोई तीजो ढंग हुवै तो थे बतावो परा.... दूजां रै सागै-सागै म्हनै ई कीं फायदो हुवै...
राजस्थानी रै नियमित प्रकाशना में शिक्षक दिवस प्रकासन री कड़ी में ‘शिक्षा विभाग’ अेक पोथी राजस्थानी री आयै वरम जरूर छापै। हां, अेकाध पोथी तिमाही पत्रिकावां रा संपादक छाप लेवै। पैली तो पत्रिका रो अंक विशेषांक निकाळ'र अर पछै उण रै जिल्द बांध’र पोथी रूप सामै लावै... म्हैं आ बात बां री निंदा रै रूप में नीं कैवूं.... खाली आ बताणी चावूं कै पोथी कियां छपै।
भेंटकर्त्ता- कन्हैयालाल भाटी, छीपां री गुवाड़, गंगाशहर रोड, बीकानेर- ३३४००१
( आमी-सामी साभार : माणक फरवरी, १९८६)
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