तकरीबन तीन दशक से अधिक समय से हिंदी और राजस्थानी साहित्य क्षेत्र में अपनी धमक बनाए रखने वाले डॉक्टर नीरज दइया का 'बिना हासलपाई' किया जा रहा सृजन उन्हें दूसरों से जुदा खड़ा करता है। साहित्य में निरंतरता बहुत कम रचनाधर्मियों में देखने को मिलती हैं। गत कई वर्षों से नियमित लिखने वालों में डॉ.दइया खास तौर से शामिल हैं। साहित्य अकादेमी के मुख्य पुरस्कार से नवाजे जाने के बाद तो डॉ.दइया अपनी जिम्मेदारियों को लेकर और अधिक सचेत एवं सक्रिय नजर आते हैं। राजस्थानी साहित्य की विभिन्न विधाओं में अपनी कलम चलाने वाले नीरज दइया का नाम आधुनिक राजस्थानी साहित्यकारों की फेहरिस्त में अग्रणी पंक्ति में शुमार हैं। उनके लेखन में राजस्थानी समाज का बहुवर्णी अंकन नज़र आता है। भाषा, भाव एवं बुनगट (रचाव) उनके रचनाकर्म को अलहदा बनाता है।
राजस्थानी के चर्चित कवि, कहानीकार सांवर दइया के लाडले पुत्र से ख्यातनाम कवि, आलोचक के रूप में अपने कलम कर्म से खुद को स्थापित करने में सफल रहे नीरज दइया ने लेखन का ककहरा अपने पिता से सीखा। पहली राजस्थानी कहानी 1987 में 'माणक' पत्रिका में प्रकाशित हुई तब वे बी.एससी. अंतिम वर्ष के विद्यार्थी थे। 1989 में पहला लघुकथा संग्रह 'भोर सूं आथण तांई' छपकर आया तो उनके रचनाकर्म को हवा मिली। वे लिखते गए और पिता उन्हें ठीक रास्ता दिखाते गए।
1992 में अपने पिता सांवर दइया के निधन के वक्त उनकी उम्र महज़ 24 वर्ष थी। महाकवि कन्हैयालाल सेठिया ने उन्हें 1993 में आशीर्वाद स्वरूप लिखा कि ‘नीरज तू शतदल बणी आ म्हारी आशीष, करूं कामना तू हुई सगळां सूं इक्कीस।’ सचमुच सेठिया जी की आशीष फलीभूत होती गई। साहित्य महोपाध्याय नानूराम संस्कर्ता का मिला सानिध्य भी उन्हें सम्बल प्रदान करने वाला साबित हुआ।
दो-तीन वर्ष पहले डॉ.दइया का साक्षात्कार लेते हुए मैनें उनसे पूछा था कि आप आलोचक, अनुवादक, कवि, कहाणीकार, व्यंग्यकार में से मूल रूप से खुद को क्या मानते हैं? तो उन्होंने बड़ी संजीदगी से जो जवाब दिया, बेहद प्रभावित करने वाला था कि 'मूल रूप से मैं खुद को राजस्थानी भाषा का एक सिपाही मात्र मानता हूँ, क्यों कि राजस्थानी मेरे रक्त में घूली-मिली भाषा है। इस लिहाज़ से मैं राजस्थानी की विभिन्न विधाओं में लिखते हुए बस राजस्थानी के लिए जीना चाहता हूँ। जिस प्रकार मोर नाचता तो है पर अपने पैरों की ओर देखकर रोता भी है। वैसे ही विभिन्न विधाओं का लेखन ही मेरा नाचना है, लेकिन इस रंग-रूप और मिठास के साथ समृद्ध इतिहास के बावजूद राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता नहीं मिलना मेरे रोने का बड़ा कारण भी है।'
लेखन में भाषा एवं विधा चयन पर कविता की ओर अपने झुकाव को प्रकट करते हुए डॉ. दइया मानते हैं कि मेरे हाथ में हो तो मैं फ़क़त और फ़क़त कविताएं लिखना चाहूंगा, मगर कविताएं तो बे-मौसम के फूल की तरह है, जाने कब मन में खिलें.! समय रहते शब्दों को साँचे में न ढाला जाए तो कब डाली से खिर पड़े! दइया कविता के आंगन पहला कदम धरते हुए 1997 में अपने राजस्थानी कविता संग्रह 'साख' के मार्फ़त पाठकों से रूबरू हुए। लम्बी कविता को साधते हुए वर्ष 2000 में बतौर 'देसूंटो' दूसरा कविता संग्रह लेकर आए। राजस्थानी कविता के सफर में साख सवाई करने का काम उनके काव्य संग्रह 'पाछो कुण आसी' ने किया। वहीं 2013 में हिंदी कविता पट्टी में 'उचटी हुई नींद' के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाई।
डॉ.दइया सिर्फ अपने काव्य संसार में रमकर नहीं रह जाते बल्कि कविता की अगली पीढी के प्रति अपनी जिम्मेदारियां बखूबी समझते हैं। इसी के चलते 2012 में राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर का एक महत्वपूर्ण काम उनके जिम्मे आया। राजस्थानी भाषा के 55 युवा कवियों की रचनाओं का चयन कर अपने संपादन में 'मंडाण' के रूप में सामने लाना किसी चुनौती से कम नहीं था। 'मंडाण' ने कई बेहतरीन युवा कवियों को मुकम्मल पहचान दिलवाई। एक बेहतर संपादक के सारे गुण नीरज दइया में देखने को मिलते हैं। राजस्थानी साहित्य में 'नेगचार' पत्रिका की गरिमा किसी से छुपी नहीं है। इसके साथ ही उन्होंने नेशनल बिब्लियोग्राफी ऑफ इंडियन लिटरेचर, बिणजारो (बरस 2000), जागती जोत (सितम्बर,02 से सितम्बर,03 तक), राजस्थानी पद्य संग्रह (कक्षा- 12 के लिए), अपरंच (बीकाने-अंक), कविता कोश (राजस्थानी-विभाग) का भी संपादन बखूबी किया। 2010 में 'मोहन आलोक री कहाणियां', 2011 में 'कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां', 2017 में 'आधुनिक लघुकथाएं' और 'देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां' पाठकों के समक्ष लाने की बड़ी पहल की। वहीं 2019 में राजस्थान के कहानीकारों को एक संग्रह में समेटते हुए '101 राजस्थानी कहानियां' का संपादन अपने आप में अनूठा काम है। 2012 में आए संग्रह 'जादू रो पेन' ने डॉ.नीरज दइया को बतौर बाल साहित्यकार स्थापित किया। इसी संग्रह पर साहित्य अकादेमी ने बाल साहित्य पुरस्कार अर्पित किया।
बीकानेर और आसपास के क्षेत्र को सरस्वती नदी के प्रवाह वाला क्षेत्र माना जाता रहा है, जिसके किनारे बैठकर युगों पहले वेदों के रचाव की बात भी कही जाती है। इस लिहाज़ से यह जमीं साहित्य की दृष्टि से काफी उर्वर है। हरेक विधा में यहां के साहित्यकारों ने कलम चलाई है। डॉ.नीरज दइया को भी विभिन्न विधाओं में लेखन की महारत हासिल है। उनके 2017 में आए 'पंच काका के जेबी-बच्चे' और 'टांय टांय फिस्स' नामक व्यंग्य संग्रह अपनी विशेष छाप छोड़ते हुए उनके भीतर के व्यंग्यकार को पाठकों के समक्ष ला खड़ा करने में सफल होते हैं।
अनुवाद महज शब्दों को रूपांतरित करना भर नहीं है, वरन ऐसा पुनर्लेखन है जहाँ एक भाषा का रचना संसार दूसरी भाषा के पाठकों को सहजता से जोड़ता है। अनुसृजन को परकाया(किसी दूसरे शरीर में) प्रवेश करने जैसा मानने वाले डॉ.दइया ने मूल सृजन के साथ-साथ अनुवाद के क्षेत्र में महत्वपूर्ण काम किया है। जिसकी बानगी कुछ इस प्रकार है- कागद अर कैनवास (अमृता प्रीतम की काव्य-कृति-2000); कागला अर काळो पाणी (निर्मल वर्मा का कहाणी संग्रह-2000) ; कागद अर कैनवास (अमृता प्रीतम की पंजाबी काव्य-कृति-2000) ; ग-गीत (मोहन आलोक का कविता संग्रह-2004) ; सबद नाद (भारतीय कविताएं-2012) ; देवां री घाटी (भोलाभाई पटेल के गुजराती यात्रा-वृत-2013) ; अजेस ई रातो है अगूण (सुधीर सक्सेना की कविताएं-2016) ; ऊंडै अंधारै कठैई (डॉ. नन्दकिशोर आचार्य की कविताएं-2016) ; घिर घिर चेतै आवूंला म्हैं (डॉ. संजीव कुमार की कविताएं-2018) ; गवाड़ (मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास-2018) ; रेत में नहाया है मन (राजस्थानी कवियों की कविताओं का हिंदी अनुवाद-2019) ; सोनै री चिड़ी (ओम गोस्वामी का डोगरी कहानी-संग्रह-2019) ; कोई कोनी बैठो ठालो (जयप्रकाश मानस की चयनित कविताएं-2019) ; 2021 ईस्वर : हां, नीं… तो(सुधीर सक्सेना के कविता-संग्रह का राजस्थानी अनुवाद-2020) आदि।
आलोचना को लेकर डॉ.भगीरथ मिश्र की माने तो आलोचना का कार्य कवि और उसकी कृति का यथार्थ मूल्य प्रकट करना है। वहीं आलोचक की भूमिका का निर्वाह करने वाले डॉ.नीरज दइया किसी बंधे-बधाये वाद और बनी-बनाई धारणा से रचनाओं की परख करने के पक्ष में नहीं है। उनका मानना है कि हरेक नई रचना एक नई खोज लिए होती है, इसीलिए आलोचना को भी नित नए पैमाने खोजने चाहिए।
दइया के आलोचनात्मक लेखन का दायरा सीमित नहीं है। 2011 में आलोचना रै आंगणै (आलोचनात्मक निबंध) के बाद 2014 में बिना हासलपाई (आधुनिक कहाणी आलोचना), 2017 में बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार एवं मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार' के बाद 2018 में 'राजस्थानी कहानी का वर्तमान' के रूप में सांगोपांग काम किया है।
दइया द्वारा लिखित राजस्थानी लोक जीवन और प्रकृति के चितेरे कवि ओम पुरोहित 'कागद' के सृजन से जुड़े काव्य-विमर्श 'कागद की कविताई' ने खूब सराहना पाई वहीं 'निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध' नामक शोध प्रबंध भी एक बेहद महत्वपूर्ण काम साबित होगा। डॉ.दइया का मूल सृजन भी अनुवाद होकर अन्य भाषाओं तक पहुंचा है। मदन गोपाल लढ़ा ने उनकी कविताओं को 'रक्त में घुली हुई भाषा' और रजनी छाबड़ा ने 'लेंग्वेज फ़्यूज्ड इन ब्लड' शीर्षक से अनुवाद किया है। 'राजस्थानी म्हारै रगत रळियोड़ी भासा है' की बात बड़े गर्व से कहने वाले नीरज दइया का साहित्यिक काम समंदर की गहराई में गोते लगाकर अनमोल रत्न चुनने जैसा है, इसमें कोई दोराय नहीं।
◆ सम्मान अर पुरस्कार-
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• साहित्य अकादेमी मुख्य पुरस्कार 2017
• साहित्य अकादेमी नई दिल्ली से राजस्थानी बाल साहित्य पुरस्कार 2014
• राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं सस्कृति अकादेमी, बीकानेर से भत्तमाल जोशी पुरस्कार
• राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं सस्कृति अकादेमी, बीकानेर से “बावजी चतुरसिंहजी अनुवाद पुरस्कार”
• नगर विकास निगम से “पीथळ पुरस्कार” ।
• नगर निगम बीकानेर से वर्ष 2014 में सम्मान
• अखिल भारतीय पीपा क्षत्रिय महासभा युवा प्रकोष्ठ बीकानेर द्वारा सम्मान- 2014
• सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट, बीकानेर से तैस्सितोरी अवार्ड- 2015
• रोटरी क्लब, बीकानेर द्वारा “खींव राज मुन्नीलाल सोनी” पुरस्कार-2016
• कालू (लूणकरणसर) द्वारा नानूराम संस्कर्ता राजस्थानी साहित्य सम्मान-2016
• कांकरोली उदयपुर द्वारा मनोहर मेवाड़ राजस्थानी साहित्य सम्मान-2016
• फ्रेंड्स एकता संस्थान बीकानेर द्वारा साहित्य सम्मान-2016
• दैनिक भास्कर बीकानेर द्वारा शिक्षक सम्मान- 2016
• सृजन साहित्य संस्थान, श्रीगंगानगर द्वारा सुरजाराम जालीवाला सृजन पुरस्कार-2017
• राजस्थानी रत्नाकर, दिल्ली द्वारा श्री दीपचंद जैन साहित्य पुरस्कार’- 2017
• ओम पुरोहित ‘कागद’ फाउण्डेशन हनुमानगढ़ द्वारा कागद सम्मान- 2017
• साहित्य कला एवं संस्कृति संस्थान नाथद्वारा द्वारा हल्दीघाटी में साहित्य रत्न सम्मान- 2017
• जिला लोक शिक्षा समिति, बीकानेर द्वारा साक्षरता दिवस पर सम्मान- 2017
• मावली प्रसाद श्रीवास्तव सम्मान 2017 अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन द्वारा
• अखिल भारतवर्षीय मारवाड़ी सम्मेलन द्वारा सीताराम रूंगटा सीताराम रूंगटा राजस्थानी साहित्य पुरस्कार- 2017
• केवीएस रीजनल इंसेटिव अवार्ड- 2017
• गौरीशंकर कमलेश स्मृति राजस्थानी भाषा पुरस्कार- 2017
• डॉ. नारायणसिंह भाटी अनुवाद सम्मान 2018
• पारसमल पांडया स्मृति राजस्थानी साहित्य पुरस्कार 2019
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