Saturday, May 28, 2022

साहित्य अकादेमी की नजर ‘रेत समाधि’ पर नहीं गयी / डॉ. नीरज दइया


 गीतांजलि श्री को उनके उपन्यास ‘रेत समाधि’ के लिए अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार की बधाई और ढेरों शुभकामनाएं देते समय हमें यह भी विचार करना चाहिए कि साहित्य अकादेमी द्वारा उन्हें वर्ष 2020 अथवा 2021 पुरस्कार अर्पित क्यों नहीं किया गया है। इस सवाल का यहां यह किंचित भी अभिप्राय नहीं है कि अनामिका के कविता संग्रह ‘टोकरी में दिगन्त’ अथवा दया प्रकाश सिन्हा के ‘सम्राट अशोक’ पर पुरस्कार सही नहीं दिया गया अथवा उन्हें क्यों दिया गया है। मेरा यह मानना है कि इस अवसर पर हमें यह विचार करना चाहिए कि प्रतिष्ठित बुकर सम्मान से पुरस्कृत  गीतांजलि श्री का उपन्यास ' रेत समाधि ' साहित्य अकादेमी से उपेक्षित कैसे रहा?  बुकर पुरस्कार के बहाने हम साहित्य अकादेमी पुरस्कारों के लिए विचारणीय पुस्तकों के वहां तक पहुंचने अथवा नहीं पहुंचने के कारणों की तलाश करें। साहित्य अकादेमी पुरस्कार सवालों के घेरे में इसलिए है कि ऐसे क्या कारण रहे कि हमारे देश में ‘रेत समाधि’ जैसे महत्त्वपूर्ण उपन्यास को दोनों वर्षों में अकादेमी पुरस्कार के लिए विचारणीय़ पुस्तकों की सूची में शामिल ही नहीं किया गया है। ऐसे कौनसे कारण है कि यह किताब वहां तक नहीं पहुंच सकी है। ‘रेत समाधि’ नई भाषा और शिल्प में हिंदी का एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास है जिसमें निराला कहन अंदाज है और साथ ही साथ स्त्रियों के एक बड़े तबके की बात को स्थानीय रंगों के साथ उठाया गया है। साहित्य अकादेमी की पत्रिका ‘समकालीन भारतीय साहित्य’ में रेत समाधि की समीक्षा के प्रकाशन और बड़े प्रकाशक द्वारा प्रकाशित होने पर भी यदि कोई किताब साहित्य अकादेमी के पुरस्कारों की सूची में शामिल नहीं हो पाती है तो यह विचारणीय मुद्दा जरूर है। इसका अभिप्राय यह भी है कि देश के अनेक अपरिचित और कम पहचान वाले प्रकाशकों योग्य लेखकों की किताबों का वहां पहुंचना फिर कैसे संभव होगा? इस बात पर खासकर साहित्य अकादेमी से जुड़े हमारे विद्वान साहित्यकार समाज को विचार-मंथन करना ही चाहिए।
    पूरे देशवासियों और खासकर साहित्य समाज में आज जिस बात से हम उत्साहित होकर खुशी का अनुभव कर रहे हैं वह किसी भी मायने में गलत अथवा असंगत नहीं है। यह पुरस्कार भारत ही नहीं समूचे एशिया महाद्वीप के लिए गर्व का विषय है। उल्लेखनीय है कि इस रचना को वैश्विक पहचान अंग्रेजी अनुवाद के कारण मिली। इसका अंग्रेजी में वैश्विक समाज द्वारा स्वागत हर्षित करने वाला है किंतु वहीं हमारा हिंदी समाज क्या इसे हिंदी में पढ़कर इसके महत्त्व से अवगत नहीं हो सका है। मुक्तिबोध, मोहन राकेश, धर्मवीर भारती, राजेंद्र यादव जैसे अनेक नाम हिंदी साहित्य में हैं, जिन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार नहीं मिला है। वहीं बाबा नागार्जुन को हिंदी में नहीं, उनकी मातृभाषा मैथिली में बाद में पुरस्कार मिला तो रामदरश मिश्र जैसे हमारे वरिष्ठ रचनाकार उम्र के लंबे पड़ाव के बाद ही साहित्य अकादेमी पुरस्कार के दर्शन कर सके। जिसे रचनाकार को जिस समय सम्मान मिलना चाहिए वह समय पर नहीं मिलता है। अब गीतांजलि श्री के संदर्भ में यह भी संभव है कि जैसे विष्णु प्रभाकर को साहित्य अकादेमी ने ‘आवारा महीसा’ पर साहित्य अकादेमी पुरस्कार प्रदान नहीं कर ‘अर्द्धनारीश्वर’ पर अर्पित किया वैसे ही अगले वर्ष इसी पुस्तक ‘रेत समाधि’ पर अथवा भविष्य में उन्हें अन्य पुस्तक पर यह सम्मान प्रादन करे।
    वर्ष 2018 में प्रकाशित इस उपन्यास के विषय में अब यह कहा जाएगा कि घर का जोगी जोगड़ा आन गांव का सिद्ध वाली बात है। यह निर्विवादित सत्य है कि उपन्यास ‘रेत समाधि’ एक महत्त्वपूर्ण उपन्यास है जिसे वैश्विक परिदृश्य में बड़ी स्वीकृति मिली है तो अब घर के लोग भी इसे सिद्ध मान रहे हैं। यह सच में बड़े आश्चर्य की बात का है कि इस कृति को हिंदी साहित्य समाज अब भले कितना ही श्रेष्ठ और उच्च कोटि का कहे किंतु यह एक अपराध बोध जगाने जैसा भी है। साहित्य अकादेमी नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2020 और 2021 के अकादेमी पुरस्कार के लिए विचारणीय पुस्तकों में इसका शामिल नहीं होने के कारणों पर की विवेचना की जानी चाहिए। हिंदी साहित्य में साहित्य अकादेमी द्वारा किसी कृति को पुरस्कार मिलने अथवा नहीं मिलने के अनेक नियम बने हुए हैं, साथ ही नियमों से इतर जो बातें कही-सुनी जाती है वह भी अपना कुछ अस्थित्व रखती है। साहित्य अकादेमी और उससे जुड़े हमारे साहित्य समाज के बुद्धिजीवियों के लिए बुकर पुरस्कार प्रसंग अनेक सवाल खड़े कर रहा है।
    साहित्य अकादेमी के एक लाख राशि के प्रतिष्ठित मुख्य पुरस्कार हेतु वर्ष 2020 के लिए 1 जनवरी, 2014 से 31 दिसम्बर, 2018 तक प्रकाशित पुस्तकों पर विचार किया गया है। इसके लिए जो विचारणीय पुस्तकों की सूची अकादेमी द्वारा जारी की गई है उसमें अनामिका की पुरस्कृत कृति के अलावा 12 पुस्तकें पुष्पा भारती, सूर्यवाला, ममता कालिया, श्रीप्रकाश मिश्र, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’, ज्ञान चतुर्वेदी, दयाप्रकाश सिन्हा, जानकीप्रसाद शर्मा, नीरजा माधव, विजय बहादुर सिंह, मदन कश्यप रचित शामिल हैं। इसी प्रकार अगले वर्ष 2021 पुरस्कार हेतु 1 जनवरी, 2015 से 31 दिसम्बर, 2019 तक प्रकाशित पुस्तकों पर विचार किया गया है। गत वर्ष पुरस्कारों की दौड़ में शामिल कृति ‘सम्राट अशोक’ (दया प्रकाश सिन्हा) को इस बार बहुमत से यह पुरस्कार घोषित किया गया है। इस बार विचारणीय कृतियों के लेखकों के नाम सामने आए हैं-  मेनेजर पाण्डे, बद्री नारायण, ज्ञान चतुर्वेदी, सूर्यनाथ सिंह, गगन गिल, अष्टभुजा शुक्ल, श्योराज सिंह बेचैन, सूर्यबाला, ओम निश्चल, श्रीराम परिहार और नीरजा माधव। दोनों वर्ष की कृतियों में ‘रेत समाधि’ का नाम नहीं होना अथवा गीतांजलि श्री को हिंदी साहित्य समाज द्वारा साहित्य अकादेमी द्वारा नामित तक नहीं करना निसंदेह इस प्रक्रिया पर बहुत संदेह के साथ खेद प्रकट करने वाला है।   
    यहां यह भी उल्लेखनीय है कि केंद्रीय साहित्य अकादेमी में नियम है कि अध्यक्ष द्वारा तीन स्वतंत्र निर्णायक निश्चित किए जाते हैं, उनके साथ मूक भूमिका में भाषा परामर्श समिति का संयोजक भी बैठक में विराजित रहता है। अनामिका को जिस पैनल ने सर्वसम्मिति से पुरस्कार निश्चित किया उसमें चित्रा मुद्गल, प्रो. के एल. वर्मा और डॉ. रामावचन रॉय शामिल रहें हैं। इसी प्रकार जो पुरस्कार दया प्रकाश सिन्हा को अर्पित किया गया है उसमें प्रो. चमनलाल गुप्त, प्रो. (डॉ.) दिविक रमेश और प्रो. जयप्रकाश शामिल रहे। यहां यह भी स्पष्ट कर देना उचित होगा कि इस पुरस्कार में दो निर्णयाकों की सहमति के साथ एक निर्णायक की अहसमति साहित्य अकादेमी में अंकित है। साहित्य अकादेमी से जुड़े साहित्य समाज के लिए यह बड़ा सवाल है कि गीतांजलि श्री का नाम दोनों वर्षों की विचारणीय पुस्तकों में शामिल क्यों नहीं है?
    वर्तमान में साहित्य अकादेमी जैसे बड़ी संस्था में पुरस्कारों और विभिन्न कार्यक्रमों को लेकर अनेक विवादास्पद प्रकरण सामने आ रहे हैं। साहित्य अकादेमी द्वारा बहुत व्यवस्थित ढंग से सभी पुरस्कारों के नियम निर्धारित है, किंतु इस अकादेमी में जो हिंदी भाषा परामर्श मंडल है उसमें लगता है बहुत खामियां हैं। अकादेमी द्वारा परामर्श मंडल के संयोजक को न्याय का देवता मानते हुए सब कुछ उसी के हाथों सौंप दिया गया है। जिसके रहते अनेक हिंदी में पुरस्कारों के लिए प्रक्रिया निर्धारित मानकों के अनुरूप पूर्ण ही नहीं हो रही है, तब हमारी प्रांतीय भाषाओं में तो क्या कुछ गलत नहीं हो रहा होगा। जानकार सूत्रों के अनुसार ग्राउंड लिस्ट और पैनल के लिए जो नाम भाषा समिति द्वारा मनमाने ढंग से दिए जाते हैं, अकादेमी की सीमा है कि उन्हें उनमें से चयन करना होता है। यहां यह त्रासदी भी देखी जा सकती है कि पुरस्कारों के निर्णय हेतु पहुंचने वाले विद्वान लेखक स्वयं इस योग्य नहीं हैं कि वे निर्णयक की भूमिका निभा सके। पुरस्कारों के लिए चयनित पुस्तकों और लेखकों में ऐसे अनेक बड़े नाम है। विभिन्न विधाओं में किसी एक सर्वश्रेष्ठ कृति का चयन सच में बेहद श्रमसाध्य जटिल कार्य है। हिंदी विषय और साहित्य को पढ़ना-पढ़ाना अलग बात है किंतु जो निर्णायक है वह यदि सृजनात्मक साहित्य से पूर्णतय परिचित नहीं है तो निर्णय कैसे होगा हम सहज अंदाजा लगा सकते हैं। निर्णायक यह सोचता है कि उसे संयोजक ने निमंत्रण दिया है किंतु सच तो यह है कि स्वयं संयोजक को अकादेमी पता नहीं लगने देती है कि कौन-कौन निर्णायक है। संयोजक और परामर्श मंडल द्वारा जो दस-दस नाम पुरस्कारों के लिए दिए जाते हैं उसमें से अध्यक्ष स्वयं गोपनीय ढंग से चयन करता है। किंतु जब पहुंचे हुए नामों में ऐसे नाम पहुंच गए हैं जो विश्वविद्यालयों और संस्थानों में सेवारत आदरणीय बंधु हैं, तब कोई क्या करे। साहित्य अकादेमी के पुरस्कारों में पहुंचने वाले निर्णायक अथवा उनके पूर्व में रहे निर्णायकों में कहीं कोई दोष अथवा त्रुटियां अवश्य है। जिनका स्वयं का कोई साहित्य सृजन और साहित्य समाज में कोई विशेष अवदान नहीं है वे पुरस्कार का निर्णय कैसे करेंगे और क्या करेंगे।
    अकादेमी द्वारा अंतिम रूप से चयनित पुस्तकों को अकादेमी क्रय कर अपने अंतिम तीन निर्णायकों को गोपनीय ढंग से भेजती हैं और फिर उनकी बैठक होती है, जिसमें अंतिम निर्णय होता है। यहां यह भी देखा गया है कि निर्णायक महोदय जिनको पुरस्कृत करने पधार रहे हैं वे स्वयं न केवल इतने अपरिचित होते हैं वरन उनसे स्वयं भी साहित्य अपरिचित होता है। किसी व्यक्ति विशेष का नामोल्लेख नहीं करते हुए यहां केवल इस बात पर चिंता भर है कि साहित्य अकादेमी एक गरिमामय संस्था है और उसके पुरस्कारों की गरिमा बनी रहनी चाहिए। अकादेमी से जुड़े हमारे मित्रों के लिए यह बुकर पुरस्कार आत्मचिंतन और विश्लेषण का एक अवसर उपलब्ध करा रहा है। हमें विचार करना चाहिए कि क्यों साहित्य अकादेमी की कार्यप्रणाली इतनी लचर और ढीलीढाली है कि इसमें असाहित्यिक बंधुओं का प्रवेश जमावड़ा हो रहा है। अकादेमी में चाहिए कि जिस किसी को जो भी कार्य सौंपा जाए, उसका साहित्यिक विवरण, योग्यता और अवदान अपने कार्यालय स्तर पर जांच-परख ले। यह अकादेमी का उत्तरदायित्व है कि वह कुछ ऐसे जांच बिंदु, मानक और मानदंड निर्धारित करें जिससे इस प्रकार की स्थितियों को भविष्य में टाला जा सके। 

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डॉ. नीरज दइया की प्रकाशित पुस्तकें :

हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
व्यंग्य संग्रह : पंच काका के जेबी बच्चे (2017), टांय-टांय फिस्स (2017)
आलोचना पुस्तकें : बुलाकी शर्मा के सृजन-सरोकार (2017), मधु आचार्य ‘आशावादी’ के सृजन-सरोकार (2017), कागद की कविताई (2018), राजस्थानी साहित्य का समकाल (2020)
संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
अंग्रेजी में : Language Fused In Blood (Dr. Neeraj Daiya) Translated by Rajni Chhabra 2018

राजस्थानी में-

कविता संग्रह : साख (1997), देसूंटो (2000), पाछो कुण आसी (2015)
आलोचना पुस्तकें : आलोचना रै आंगणै(2011) , बिना हासलपाई (2014), आंगळी-सीध (2020)
लघुकथा संग्रह : भोर सूं आथण तांई (1989)
बालकथा संग्रह : जादू रो पेन (2012)
संपादित पुस्तकें : मंडाण (51 युवा कवियों की कविताएं), मोहन आलोक री कहाणियां, कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां, देवकिशन राजपुरोहित री टाळवीं कहाणियां
अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

नेगचार 48

नेगचार 48
संपादक - नीरज दइया

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"

स्मृति में यह संचयन "नेगचार"
श्री सांवर दइया; 10 अक्टूबर,1948 - 30 जुलाई,1992

डॉ. नीरज दइया (1968)
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