राजस्थानी साहित्य रै गोखै सूं लारला दस बरस देखण रा दोय तरीका है । पैलो ओ कै आप साहित्य रा गुणी रसिकां सामीं दस बरस यानी बरस 2001 सूं 2010 तांई रै साहित्य में म्हैं कांई-कांई बांच अर देख-सुण सक्यो उण री विगत राखूं ; अर दूजो ओ है कै आपां उण रचनावां री बात करां जिण में आं दस बरसां रो जथारथ साहित्यकारां आखरां ढळियो है । दोनूं ही बातां आपू-आप री ठौड़ खरी है- पण किणी साहित्यिक आलेख रो अरथ फगत अर फगत किणी सूची नै मांडणो का राखणो नीं होया करै, इण सारू वाजिब बात आ ई रैवैला कै आपां उण रचनावां अर रचनाकारां री बात करा जिका इण काल-खंड मांय कीं जसजोग काम राजस्थानी साहित्य पेटै करियो है । किणी काम नै परखण खातर कीं आगूंच माप-तोल रा बाट जिंयां जरूरी हुया करै उणी ढाळै कीं खुलासो अठै करणो जरूरी समझूं । साहित्य में कविता-कहाणी टाळ कीं निगर काम जियां कै मुहावरा कोस री बात कर सकां ई घणो महतावूं हुय सकै । लारला दस बरसां मांय किणी साहित्यिक पत्रिका रो 100 वों अंक ई घणो महतावूं मानीज सकै, जियां श्री श्याम महार्षि रै संपादन में निकळै “राजस्थली” जिकी आपरा कीं विशेषांकां रै पाण सांवठी छिब में आपां सामीं जसदार काम करियो है । माणक जैड़ी पत्रिका सामीं “मरुधर ज्योति” री जोत ओ भरोसो बंधावै कै राजस्थानी में पत्रकारिका हाल तांई नुवीं तकनीक रो पूरो-पूरो फायदो उठा’र सागीड़ो काम कर सकै ।
इक्कीसवीं सदी रै पैलड़ा दस बरसां में राजस्थानी में जठै नुवा रचनाकारां रो संजीदा रूप सामीं आवै तो दूजै पासी जूनी अर पुराणी पीढ़ी रा ई केई रचनाकारां में केई घणो जोस खायोड़ा काम में रुधयोड़ा दीसै तो बीचली पीढ़ी रो ई हौसलो दूणो हुय जावै । आपां घणी बार साहित्य मांय मोटा-मोट तीन टुकड़ा मांय पूरी छिब देखण री कोसीस करां, पण आं तीन घरां में केई-केई घुमावदार मोड़ अर कित्ता ई छोटा-मोटा घर किणी महल सूं बेसी कूंत आळा ई देख सकां । बात रो अरथ साफ है कै हरेक बगत रै रचनाकारां रो आपरो दौर अर दायरो हुया करै, जिण नै आपां आलोचना री आंख सूं ई देख-परख सकां । दस बरसां री इण गाथा नै सोरै सांस समझणो कोई हंसी-खेल री बात कोनी, ओ तो बगत ई फैसलो करैला कै कुण कित्तै पाणी में है । जे आपां अठै एकठ रचानावां में दस बरसां रो बगत सोधालां तो केई बातां… बातां मांय नीं आवैला, बै बातां कीं आप सामीं राख सकूं इण खातर म्हैं दस बरसां री रचनावां बाबत अबै विधावार विगतबार बात- रचनावां अर रचनाकारां रो जस बखाणतां करूला तो बात किणी नतीजै तांई ई पूग सकैला- पूरी बात मांड’र करियां छेकड़ मांय पूरै दस बरसां री बात करियां कीं सार सामीं आवैला ।
उपन्यास- भरत ओळा रो उपन्यास “घुळ्गांठ” प्रयोग सारू जसजोग उपन्यास है जिण में छोटी-छोटी काहाणियां रै मारफत एक लम्बी कहाणी सूं एक मुक्कमल उपन्यास-प्रयोग करण री खेचळ दीसै । ऊमर सूं बूढ़ा पण तन-मन सूं जवान दीसण आळा देवदास रांकावत एक माथै एक उपन्यास आं बरसां राजस्थानी साहित्य नै दिया । राकांवत जी रै उपन्यासां री बुणगट मांय लोकिकता, सैली मांय लोककथात्मकता अर भाषा में ठेठ बीकानेरी ठस्को आपां सगळा रो ध्यान खेंचै । संस्कारां रो पाठ पढ़ावता आपरा उपन्यास आज रै बगत मांय एक जूनो बगत आपरै ढंग सूं आपां सामीं राखै । देवकिसन राजपुरोहित ग्रंथावली संपादक- भवानीशंकर व्यास विनोद रै मारफत राजपुरोहित जी री सगळी रचनावां एकठ सामीं आई तो लखायो कै आपां जिण लोककथा रै मीठास नै बखाता आज ई नीं थका, बो मीठास देवकिसन राजपुरोहित अर भळै नाम लेवूं देवदास रांकावत आपरी भासा में जीवतो राख्यो है । राजस्थानी रै लोककथा दाय करण आळै पाठकां नै हाल एकदम आधुनिक रचनावां दाय कोनी आवै । अतुल कनक ई आपरी हाड़ौती सैली परोटता थकां एक आधुनिक उपन्यास आपां सामीं राखियो है । मानीता भंवरसिंहजी सामौर री एक टीप उपन्यास “सीवां री पीड़” बाबत है- “सवाद इण उपन्यास नै जीवतौं करण रौ काम करै । वातावरण रौ ढाळौ भी ढंग सूं ढाळिज्यो है । चायै फोजी वातावरण अर चायै गांवांई वातावरण देखल्यौ, चितरांम सौ खड़ियौ हुय जावै । समकालीन भारतीय भासावां रै किणी भी उपन्यास सूं औ उपन्यास उगणीस कोनी इक्कीस ही है ।“
कहाणी- मोहन आलोक री कहाणियां संचै- नीरज दइया एक महतावूं पोथी इण खातर है कै मोहन आलोक एक कवि रूप घणो चावो-ठावो नांव है अर अठै आप एक पुखता काहाणीकार रूप मांय सामीं आवै । ऐ बै कहाणियां है जिकी एक लांबै आंतरै पछै सामीं आई है अर इण पोथी सूं राजस्थानी कहाणी रो जूनो इतिहास कीं बदळण री दरकार लखावै । मीठेस निरमोही की कहाणी जातरा मांय विसै री नवीनता अर आधुनिकता आपां नै खास निगै आवै तो चेतन स्वामी री कहाणियां जमीन सूं जुड़ती परंपरावां माथै चोट करती उल्लेखजोग मानी जावैला । असोक जोशी ‘क्रांत’ कहाणी नै मठार-मठार रचै अर संवाद प्रयोग मांय भासा बोलचाल री बरतै तो प्रयोग माथै ई जोर राखै । सत्यनारायण सोनी कहाणी मांय कम सूं कम सबदां में नुवीं बात कैवण री कोसीस करै । भरत ओळा री कहाणी रै विकास मांय सांवर दइया री कथा-जातरा नै आगै बधावण री खिमता निजर आवै । रामस्वरूप किसान, पूर्ण शर्मा पूरण, मनोज कुमार स्वामी, मेहर चंद धामू, रामेश्वर गोदारा ग्रामीण सूं दुलाराम सारण, उम्मेद धानिया, मदन गोपाल लढ़ा आद तांई आवता आवता कहाणी पांगरती अर आपरी सौरम में कीं बदळाव साथै ऐन इक्कीसवीं सदी रा केई रंग परोटती देखी जाय सकै । नुवां कहाणीकारां री जल्दबाजी अर भावुकता मांय कीं कसर ई आपां देख सकां पण इण कसर में जिक्को कच्चो रूप है बो बां रो खुद रो है । प्रभाव रै नांव माथै कहाणी एक दीठाव सूं आंख्या च्यार करावै ।
कविता- कवि मोहन आलोक एक दिव्य काव्यपुरुष है जिका री परख इण सदी मांय महानतम कवि रै रूप में होवैला । परंपरा, भासा अर छंद री पूरी पकड़ साथै आपरी आधुनिकता मनमोवणी है । आपा भारतीय कवियां में राजस्थानी रा जिण कवियां नै गिणा सकां बां में आलोक जी साथै चंद्रप्रकास देवळ, आईदानसिंह भाटी अर ओमपुरोहित कागद आद कवियां रा नांव ई लेय सकां । आं री पूरी जातरा कवि रै रूप में है ई साथै ई साथै आप सगळा तन अर मन सूं जाणै कवि रूप ई अवतिया है । श्रीडूंगरगढ़ सूं कवि श्याम महर्षि सूं रवि पुरोहित तांई री कविता री पूरी पीढ़ी राजस्थानी लोकरंग सूं रंगी कवितावां खातर अलग सूं ओळखी जावै । जूना चरित्रां नै लेयर आधुनिक जुग अर जूण संदर्भां सूं जोड़ता कवि अर्जुनदेव चारण री कवितावां इण सदी मांय एक नुवो सुर सोधै । कवि मंगत बादल मांय किणी चरित-नायक नै छंदां री छटा मांय ऊभो करण री खिमता देखी जाय सकै तो एकदम नुवां कवि मदनगोपाल लढ़ा आपां सामीं की चिंतावां नै लेय’र इण सदी रा केई-केई सांच सामीं लावण खातर खिमतावान कवि रै रूप में आपरो असर राखै । आपरी छोटी-छोटी कवितावां सूं जीवण अर जूण नै बखाणती संतोष मायामोहन री कविता री आपरी न्यारी दुनिया है । राजस्थानी में सांवर दइया हाईकू रो प्रयोग करियो उणी परंपरा मांय केसरीकांत शर्मा ‘केसरी’ री पोथी कठै तो सोचो !’ देखी जाय सकै तो लक्ष्मी नारायण रंगा अर दूजा कवियां ई इण बुणगट मांय केई प्रयोग करिया है ।
नाटक- अर्जुनदेव चारण री नाटकीय प्रतिभा सूं आज कुण अणजाण है । जातरा मांय अर झुरावौ कविता संग्रह मांय राजस्थानी साथै हिंदी अनुवाद ई भेळै देवणो घणो सरावण जोग काम रै रूप में गिणां सकां । बीकानेर रा लक्ष्मीनारायण रंगा अर निर्मोही व्यास रा नाटक ई घणा नामी अर सरावणजोग रैया है ।
दूजी विधावां री बात करां तो आलोचना में कुंदन माली, निबंध-साहित्य पेटै किरण नाहटा अर मदन सैनी तो बाल साहित्य-सिरजण में दुलाराम सारण, दीनदयाल शर्मा जैड़ा नांव सामीं है । आं लेखकां रै कारण ई समूळो दीठाव बण सक्यो है । अनुवाद रै काम खातर सत्यनारायण स्वामी, रामनरेश सोनी, जेठमल मारू, नवनीत पांडे, शंकरसिंह राजपुरोहित अर कमल रंगा जिंयां केई कवि-लेखक पूरी ताकत साथै आपां री भासाई खिमता नै उजागर करण में कोई कोर कसर कोनी छोड़ राखी । केई रचनाकारां ई फुटकर रचनावां सूं आपां आ बात पिछाण सकां कै राजस्थानी मांय क्रांति जरूर हुवैला ।
मान-सम्मान सूं किणी रचना अर रचनाकार रो रुतबो बधै, तो कणाई फजीती आळी बात ई हुय जाया करै । आज सगळा नै आपरी बात कैवण रो पूरो पूरो अधिकार है । फेर ई कोई बेराजी ना हुवै तो घणी नरमाई अर पूरै लेखकीय मान-सम्मान सूं कैवणो चावूंला कै राजस्थानी कहाणी री आपरी एक परंपरा रैयी है, जिण नै आपां आगूंच अर्जुनदेव चारण री आलोचना पोथी “राजस्थानी कहाणी परंपरा विकास” सूं जाण चुक्या… फेर ई इण विकास में जद चलतावूं रचनावां ई किणी नामी ठौड़ सूं विकास रो तुगमो मिलै तद म्हारै जैड़ै पाठकां रै मन में अफसोच हुव तो कोई बेजा बात कोनी । आज जद आपां नै आपां री भासाई मान्यता रो संकट दुखी कर राख्यो है तद घणो संभळ’र लेखन करणो चाइजै । राजस्थानी नै जद-कद मान्यता मिलैला तद आपरै सखरै राजस्थानी लेखन रै ताण ई मिलैला । संत कवि सेठिया जी नै याद करां कै बै छेकड़ली सांस तांई जिण भासा री मान्यता री उड़ीक करी बा हाल तांई आपरी संवैधानिक मुद्दै माथै झुरै पण राजस्थानी साहित्य रै गोखै सूं लारला दस बरस री सुध लेवां तो ओ बगत आपां री उजळी परंपरा में जस रो बखाण करतो लखावै ।
* नीरज दइया
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