सब सूं पैली राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादेमी, बीकानेर अर सरस्वती साहित्यिक संस्था, परलीका रो इण मंच सूं आभार कै म्हनै “आधुनिक काहणी : शिल्प अर संवेदना” माथै परचो बांचण रो मौको दियो । राजस्थानी में आपां जिण नै आधुनिक कहाणी कैवां असल में बा आधुनिक काल री ही विधा है अर प्राचीन, मध्यकाल में जिण ढाळै री कहाणियां है उण रो अठै कोई सीधो सरोकार कोनी । कैयो जावै कै सब सूं लूंठी कला बठै हुवै जठै बा अदीठ रैवै । कहाणी मांय शिल्प सूं बेसी महतावूं पख संवेदना रो मन्यो जावै, पण शिल्प ही बा कला है जिण रै पण संवेदना रो विगसाव हुवै । केई बार कहाणी में शिल्प री खामियां सूं सांतरी कहाणी री दुरगत हुय जावै । शिल्प संवेदना नै साधण रो औजार है । शिल्प ई बा कारीगरी है जिण रै पाण संवेदना री बुणगट बुणीजै । संवेदना री बुणगट रो नांव शिल्प है । किणी भी आधुनिक कहाणी री सफलता शिल्प अर संवेदना दोनूं रै ओपतै मेळ सूं ही साधी जाय सकै । शिल्प सूं संवेदना पोखीजै अर संवेदना रै रूप सूं ही शिल्प रो चुनाव कहाणीकार करिया करै ।
साहित्य सूं समाज रै जुड़ाव री बात करणियां आपां जाणा कै कहाणी तो समाज सूं घणी-घणी जुड़ियोड़ी हुया करै । कहाणी मांय समाज री ही बात हुया करै अर कहाणी या कोई पण रचना अंतपंत पाठक खातर हुवै । पाठक समाज री इकाई है अर कहाणीकार आपरी कहाणी में इण इकाई नै भूल कोनी सकै । कोई बात-घटना जिकी मिनख रै आसै-पासै री का उण रै हियै मांयली बारैली हुवै, बा जिण घड़त सूं रंग-रूप लेय’र कहाणी रै कथ में ढाळिजै उणी रो नांव संवेदना है । बीसवै सइकै सूं इक्कीसवै सइकै में आयां राजस्थानी कहाणी आपरै रंग-रूप, आकार-प्रकार, भाषा-शिल्प अर संवेदना रै हिसाब सूं बदळी-बदळी सी देखी जाय सकै । कैय सकां कै आज राजस्थानी कहाणी पुख्ता अर जसजोग मुकाम माथै पूगी है जिण रो जस आपां रै कहाणीकारां नै है । आधुनिक कहाणी आपरै शिल्प अर संवेदना रै बूतै मिनख रै साव नजीक पूगगी है । मन मांयली नुवी अबोट बातां में मिनख री मनगत, सोचा-विचारी, अळूझाड अर दोघाचींत रा अंधारा जिका दरसाव अर चितराम माथै चिलका न्हाखै बै अंजसजोग है । अबै कहाणी में शिल्प अर संवेदना रा केई केई नुवा पख सामीं आवण लागया है, जिका आज री कहाणी नै आधुनिक कहाणी बणावता थका भारतीय मंच माथै जोड़ाजोड़ ऊभी हुवण री सगती देवै ।कहाणी रचना नै लेय’र एक सवाल है कै कहाणी री रचना करण सूं पैली कहाणीकार खन्नै बा कांई चीज हुवै या कैवां बा किसी मनगत, विचारधार, या सोच हुवै कै कहाणीकार कहाणी लिखण खातर कलम उठावै ? जे काहणीकार पाखती आगूंच कहाणी हुवै, उण रो आदि-अंत हुवै तो पछै कहाणी में पात्रां नै कित्ती कांई आजादी हुवै ? म्हारो मानणो है कै कथाकार जे आगूंच तै-सुदा कहाणी लिखै तद बा किणी खास मकसद रा भरणा तो भर देवै जियां लोककथा नै लिखणो हो, पण आधुनिक कहाणी किणी खास मकसद नै बखाणती कोई तै-सुदा रचना कोनी । कहाणी तो एक रचाव है जिण में कहाणीकार फगत निमित हुवै । जूनी कहाणियां अवस इण ढाळै री हुया करती कै कथाकार सोचा-विचारी कर’र कहाणी मांड दी- वेल प्लान्ड हैप्पी ऐंड वाळी कहाणियां । आधुनिक कहाणी एक रचाव है जिण मांय आगूंच कोई पण कहाणी रो आदि-अंत तै-सुदा कोनी हुवै । कहाणीकार नै कलम लिया पछै ई ठाह कोनी हुवै कै आ कहाणी बणसी का कोनी बणै । बो तो बस एक बीज दिख्यां उण नै फलापै, बीज मांयाली माया तो बगत परवाण कलम मांय सूं ही जाणै सामीं आवै । आ रचाव पीड़ री सावळ आधुनिक कहाणीकार ई जाण अर बणाख सकै । कैवण रो मतलब आज री आधुनिक कहाणी मांय कहाणीकार री दखल कम सूं कम हुयगी है, सो कहाणी आपरी संवेदना में सांवठी निगै आवै । कहाणी में खुद कहाणीकार नीं बोल’र आपरी बात उण जमीन सूं ही उपजावै अर इणी खातर किणी संवेदना खातर नुवी घटत का बुणगट री जरूरत परवाण कहाणी में शिल्प रा प्रयोग हुया है ।संवेदना अर शिल्प री दीठ सूं लोककथावां में ठहराव एकरसता रै रूप में निगै आवै पण आधुनिक कहाणी मांय तो हरेक कहाणीकार री आपरी निजू शैल्पिक खेचळ संवेदना नै परोटण पेटै देख सकां । कहाणी री परंपरा में लोककथा री बात कैवण वाळा खातर आपां कह सकां कै उण परंपरा रो विकास हुय’र राजस्थानी कहाणी आज जिण सरूप में पूगी है उणी रो नांव आधुनिक कहाणी है । आ बात जुदा है कै आधुनिक कहाणी उण परंपरा सूं निकळी है या बगत री मांग स्वीकारतां भारतीय भाषावां रै जोड़ मांय आधुनिक बणावण खातर कहाणीकारां इण नै नुवै सरूप में ऊभी करी है । बीसवै सइकै रै उतराध मांय केई लेखकां कहाणी री परख दसकवार करी है, कहाणी नै काल-खंड मांय बांट’र देखणो एक तरीको है । दसकवार कहाणीकारां, काहाणियां अर कहाणी-संग्रै री विगत री गिणती करावातां शिल्प अर संवेदना री बात करणी म्हनै बोदो तरीको लखावै । राजस्थानी कहाणी जातरा मांय किणी कथाकार रै नांव नै जुग रो नांव दिया केई सवाल ऊभा हुवैला अर किणी कथाकार नै इत्तो सम्मान देवणो पखापखी ई हुय सकै सो नेठाव राखां बो बगत ई आवैला जद कथाकारां रै नांव सूं कहाणी नै काल-खंडां में बांटता थकां परख करालां । पंदरै-पदरै बरसां रो काल-खंड जे 1955 सूं लगोलग करां तो आधुनिक कहाणी पूरी म्हारै सामी पैंताळीस बरसां री जातरा लियां तीन टुकड़ा मांय आपरी साख दरसावै ।
1. बरस 1955 सूं 1970,
2. बरस 1971 सूं 1985 अर
3. बरस 1985 सूं 2000 तांई
आ विगत आपांरी कहाणी री पूरी जातरा नै समझण में मददगार हुय सकै । आ विगत इण अरथ मांय ई ठीक लखावै कै 1956 मांय “बरसगांठ” अर 1960 मांय “रातवासो” जिसा नामी संग्रै छप्या जिण सूं आधुनिक कहाणी री सरुआत मानीजै । बरस 1972 मांय “तगादो” अर 1975 मांय “असवाड़ै-पसवाड़ै” छ्प्या जिका आपरै शिल्प अर संवेदना पेटै कहाणी जातरा मांय निरवाळै प्रयोग अर आधुनिक भाषा नै अंगेजै । इणी ढाळै बरस 1986 में “घडंद” रो छ्पणो अर बरस 2000 मांय “हाडाखोड़ी” काहाणी-संग्रै रो आपरो ऐतिहासिक मोल बगत बखाणैला । मुरलीधर व्यास, नृसिंह राजपुरोहित, सांवर दइया, भंवरलाल भ्रमर, मालचंद तिवाड़ी, बुलाकी शर्मा अर रामस्वरूप किसान तांई कहाणी जातरा केई-केई रंग लियां पूगी है । इण विकास जातरा में मूलचंद प्राणेश, करणीदान बारहठ,दीनदयाल ओझा, शिवराज छंगाणी, श्रीलाल जोशी, नवनीत पाण्डे, अरविंद आशिया आद रो ई उल्लेखजोग योगदान रैयो है । विकास जातरा कहाणी नै भरोसो बंधावै जैड़ी विकास जातरा है, इण में शिल्प अर संवेदना री तर-तर बधत देखी जाय सकै । आज री आधुनिक कहाणी मांय केई टाळवी कहाणियां है जिकी भारतीय कथा-परंपरा मांय गीरबै रै साथै राखी जाय सकै ।एक चोखी कहाणी री परिभाषा देंवता कवि कथाकार रमेश्वरदयाल श्रीमाली लिख्यो है- “चोखी कहाणी री एक ई परिभाषा हो सकै, एकर पढ्यां पछै बा आखी उमर भूलीजै कोनी । अर इसी कहाणि निजू अनूभौ नै घणी संवेदना सूं लिखी निजता री गंध वाळी कहाणी हो सकै ।” (जागती जोत : जनवरी-मार्च, 1976)किणी कहाणी री सफलता रो सूत्र आपां जे शिल्प अर संवेदना रै मेळ सूं उपजी मनगत नै माना तो राजस्थानी री केई कहाणियां आपरै शिल्प अर संवेदना रै अबोटपणै रै कारणै चोखी कहाणियां कही जाय सकै । रधुनंदन त्रिवेदी री कहाणी “आपरै तरै री जिंदगी” दोय पात्रां विजय अर शिव री बारी बारी सूं लिखी आत्मकथात्मक डायरी शैली मांय लिखी कहाणी हुवो या फेर भरत ओला री कहाणी “बाथ” री बात करां जिण में रूंख रै रूखाळै जीवण री बात पर्यावरण चेतना रै पुरोधा रै रूप सदीव चेतै रैवै । “जीवण आरी सूं कटतै रूंख नै बाथ भरली । - नीं-नीं ! म्हैं म्हारा टाबरां नै बाढण नीं द्यूंला । म्हारी मूकली माथै आरी नीं चलावण द्यूंला ।”बुलाकी शर्मा री “हिलोरो” री चिड़कली मालचंद तिवाड़ी री “धडंद” री ढोलकी का “सीतळी” कहाणी री नायिका का बोल कोई एकर बांच्या भूल सकैला ! केई कहाणियां है- जियां सत्यनारायण सोनी री घमसाण, विनोद सोमानी हंस री चुप्पी, चंद्रप्रकाश देवल री घासलेट री खुशबू, ओमप्रकाश भाटिया री सुर-देवता, यादवेंद्र शर्मा चंद्र री मिनखखोरी, मीठेश निर्मोही री बंधण, मोहन आलोक री बाप, माधव नागदा री नीलकंठी, मदन सैनी री फुरसत, सांवर दइया री गळी जिसी गळी, चेतन स्वामी री पुण्याई, भंवरलाल भ्रमर री अप-डाउन आद आद । केई नांव भळै जोड़ सकां । डॉ अर्जुनदेव चारण रो मानणो है- “आधुनिक राजस्थानी कहाणी री सुरुआत हूंस बधावै जैड़ी कोनी रैयी । सन 1935 सूं 1965 तांई रो ओ काल कहाणी री लीक तो मांडतो दीसै पण वो कहाणी विधा बाबत भरोसो उपजावै जैड़ी दीठ नीं देय सक्यो ।” (पेज-34) डॉ चारण इण बरसां रै कहाणीकारां री संवेदना पेटै लिखै- “आधुनिक कहाणी री सरुआती रचनाकारां कन्नै वो ही विधवा ब्यांव है- वा ई दायजै री बळण है- लिगाई रौ एकलापौ अर मिनख रो हरामीपणो ई है पण रचनाकार री ऐप्रोच में कोई फरक नीं है । जको सोच 1935 रै रचनाकार कनै हो वो ई 1960 रै रचनाकारां कनै है । इण रो समस्या रै साथै ट्रीटमेंट वो ई पुराणो है । देसकाळ रो जको बदळाव उण में बोलणो चाइजै वो नीं बोलै ।” (पेज-26 पोथी- राजस्थानी कहाणी : परंपरा विकस)डॉ गोरधनसिंह शेखावत री कहाणी “तलाक” लारलै बरस राजस्थली में छपी । तलक में दायजै री पीड़ है पण उण री नायिका आपरी अबखायां सूं लड़ रैयी है । एक दीठ रै बदळाव री बानगी कहाणी में मिलै । पुष्पलता कश्यप री कहाणी “दायजो” ई लारलै बरस राजस्थली में छ्पी है । फेर 1960 सूं 40 बरसां रै इण आंतरै में पुष्पलता कश्यप शिल्प रै ढालै नूंवी मनगत सूं बात राखै तद प्रयोग पेटै सरावणा करी जाय सकै । टेलीफोन माथै फगत संवादां सूं बणि आ कहाणी शिल्प रै स्तर माथै साव अबोट है । नवनीत पाण्डे अर बीजा केई कहाणीकारां ई कहाणी में टेलीफोन माथै हुवतै संवाद सू कहाणी मांय गति अर नूंवो रूप लावण री खेचळ करी है ।बीसवीं सदी री केई आधुनिकतावां आज इक्कीसवीं सदी में आधुनिक कोनी मानी जावै । आधुनिकता तो बगत परवाण बदळती रैवै । कुंदन माली मुजब- “ आधुनिक रै काळ सापेक्ष अर्थ सूं ओ पतो चालै कै आधुनिकता री गति समै री गति रै साथै बधती रैवै । इण दीठ सूं देखां तो कांई ओ नीं कैयो जाय सकैला कै बीत्योड़ै समै रै आधुनिक रै साम्हीं आज रो आधुनिक बत्तौ ‘आधुनिक’ हौ, कै पछै जिको कालै आधुनिक हो बो आज आधुनिक नीं रैयो, क्यूं कै आपां ऐतिहासिक समै री धुरी माथै ऊभा व्हैय नै प्राचीन-आधुनिक माथै विचार करता व्हालां ।” (समकालीन राजस्थनी काव्य : संवेदना अर शिल्प ; पेज-7)राजस्थानी काहाणी री जोत तो शिवचंद भरतिया “विश्रांत प्रवासी” कहाणी सूं करी बतावै पण डॉ चेतन स्वामी दांई म्हारो मानणो है कै राजस्थानी कहाणी री सरुआत मुरलीधर व्यास अर नानूराम संस्कर्त्ता जैड़ै कहाणीकारां सूं मानी जावणी चाइजै क्यूं कै आपां जाणा कै व्यासजी रो कहाणी संग्रै बरसगांठ 1956 में अर संस्कर्त्ताजी रो ग्योही 1957 में छ्प्यो । इणी खातर म्हैं बरस 1955 सूं 1970 रै बगत नै कहाणी जातरा रो पैलो अध्याय मानूं जठै सूं राजस्थानी काहाणी री जमीन बणी । कवि-कथाकार सांवर दइया रो मानणो है- “कहाणी नै आपरै परिवेश अर ऐड़ै-छेड़ै री जिंदगी सूं उठावण री जिकी कोशिश 1971-75 रै लगै-टगै जोर मारण लागी ही उण री शरुआत अचण्चक ई नीं हुई । इण खातर जिकी जमीन मुरलीधर व्यास आपरी पोथी बरसगांठ (1956) सूं आपां सांम्है राखी बा आगै चाल’र मनोहर शर्मा ‘करड़ी आच’ अर श्रीलालनथमल जोशी री ‘पगोथिया’ कहाणी में ई लाधै अर बैजनाथ पंवार री ‘नैणा खूट्यो नीर’ अर ‘भटोरो’ जैड़ी कहाणियां में ई लाधै ।” (“उकरास” संकलन री भूमिका ; पेज-20)बरस 1971 रै लगै-टगै राजस्थानी कहाणी सौ-टंच आधुनिक होय नै थड़ी करती दीसै । अर्जुनदेव चारण रो ई मानणो है कै- “आधुनिक राजस्थानी कहाणी लोककथा रै दबाव सूं जठै मुगत होवती लागै बो काळ 1972-74 रौ है । विजयदान देथा, सांवर दइया, भंवरलाल भ्रमर अर रामेश्वरदयाल श्रीमाली री उण काळ री कहाणियां इण बात री साख भरै ।” (राजस्थानी कहाणी : परंपरा विकास ; पेज-35)“बणतो इतिहास” पोथी री भूमिका में मालचंद तिवाड़ी लिखै- “राजस्थानी री आधुनिक कहाणी जातरा घणी लाम्बी नीं है । जिण भाषा में वाचिक साहित्य री घणी-घणी लाम्बी अर लूंठी परंपरावां रैयोड़ी हुवै, उण रै आधुनिक साहित्य सामीं ऊभी चुनौतियां रो रूप कीं अणूती जटिलता लियोड़ो रैवै । राजस्थानी मांय बात-साहित्य कै लोककथावां रै लिखित रूप सूं सरू हुयोड़ी कहाणी री जातरा अबै आपरै आधिनिक कहाणि रै सरूप नै हासिल करती लखावै ।” इणी दूजै काल-खंड सारू कैयो जाय सकै कै लेखकां री कहाणी माथै पकड़ मजबूत हुई । कहाणी जिकी किणी समस्या नै बाखाणती ही बा अबै सुधारवादी कथानकां नै छोड़ परी आपरी जमीन सूं जुड़ी अबखायां नै मिनख री चिंतावां तकलीफां साथै मनोवैग्यानिक हुयगी । आपरी संवेदना खातर ओपतो शिल्प लेय’र कहाणियां जुगबोध अर नूंवै तेवर साथै सामीं आवै । इण दौर में अजै ई कथा अर लोककथा नै लेय’र मन में कठै न कठैई लड़त ऊभी ही । सांवर दइया रो ई मानणो है कै आपां रै मन-मगज में अजै कठै-न-कठै लोककथा अर कहाणी रो टकराब मौजूद है अर दूजै कानी केई जणा रै मन में आ बात जोर मारै कै राजस्थानी कहाणी नै दूजी भाषावां रै जोड़ा-जोड़ में देखां । इण बात री साख में डॉ गोरधनसिंह शेखावत री ऐ ओळ्यां देखी जाय सकै- “अठै ओ ई देखणो है कै राजस्थानी कहाणी रो इतिहास घणौ लाम्बौ नीं फेरू ई थोड़ै बखत में कहाणी बात-ख्यात अर लोककथा सूं मुगति पाय कहाणी रै मौलिक रूप में आई ।” (जागतीजोत फरवरी-मार्च,1994 पेज-69)शिल्प अर संवेदना मांय पैली जरूरत भाषा हुवै अर राजस्थानी कहाणी में भाषा पेटै बात करती बगत विजयदान देथा रो जस इण रूप में गिणा सकां कै “बातां री फुलवाड़ी” रै कारण भाषा री बा जमीन बणी जठै आधुनिक कहाणी ऊभी हुवै । बरस 1974 मांय ‘दीठ’ पत्रिका खातर तेजसिंह जोधा अलेखूं हिटलर, राजीनांवौ अर फाटक जैड़ी कहाणियां बिज्जी सूं लिखाई । कहाणी नै भाषा रा नूंवा रंग देवणा अर बगत परवाण बगत रै जोड़ा-जोड़ ऊभणो लेखन री सफतला मानीजै । आधुनिक कहाणी में शिल्प अर संवेदना रै विगसाव री चिंता करता संपादक कहाणीकार भंवरलाल भ्रमर ‘मनवार’ अर ‘मरवण’ जैड़ी कथा-पत्रिकावां निकाळी । विजयदान देथा, यादवेंद्र शर्मा चंद्र, सांवर दइया, मालचंद तिवाड़ी आद कहाणीकारा री परंपरा नै आधुनिक सूं आधुनिक बणावण सारू तीजी पीढी रामस्वरूप किसान, भरत ओळा, कमल रंगा, सत्यनारायण सोनी, नवनीत पाण्डे, श्रीभगवान सैनी आद कहाणीकार लगोलग कहाणियां लिख रैया है । आं कथाकारां आपरी लारली पीढी री कथा संवेदना अर शिल्प नै अंगेजता थका, उण में नूंवो प्रयोग करिया । नूंवो रूप ही उणा री ओळख नै अलायदी करै अर बै ओळखीजै । असल में आपरी परंपरा नै नूंवै रूप मांय लेय जावणो अर उण नै बंधण मुगत करणो ई आधुनिक हुवणो है । आज री आधुनिकता काल री परंपरा बणैला । जियां पैली पीढी अर दूजी पीढी मांय आपां बरस 1970 सूं पैली अर पछै री बात आजादी सूं पैली अर पछै जायी-जलमी पीढी रै रूप मांय भी कर सकां । नूंवी पीढी कहाणी में संवेदना अर शिल्प रै साथै साथै भाषा अर आम जन-जीवण री दीठ में हुवण वाळै बदळाव नै समझण रो काम करियो, बां मन रै मांयला खुणां में सुख-दुख री परख कर उण नै कहाणी री संवेदना सूं साझी करी ।बरस 1970-75 रै लगै-टगै री कहाणी माथै डॉ गोरधनसिंह शेखावत टीप करता लिखै- “इण पीढी सूं जुगबोध रै नूंवा संदर्भां री शुरुआत हुई- कथ्य अर शिल्प रै नुवै रूप नै ऐ कहाणीकार आपरै ढंग सूं देख्यो परख्यो । इण सूं लागै कै एक नजरियो बदळियो । सांवर दइया युवा पीढी मांय सगळा सूं पैली आपरी ओळख कराई ।” साहित्य रो इतिहास लिखण वाळा कहाणीकार बी एल माली अशांत रो मानणो है कै कहाणी जगत में यादवेंद्र शर्मा चंद्र, सांवर दइया, अमोलकचंद जांगिड़, बी एल माली अशांत, मालचंद तिवाड़ी, मनोहरसिंह राठौड़ रा नांव जुड़यां पछै कहाणी आधुनिकत्म शिल्प अर कथा-वस्तु रै साथै-साथै भारतीय कहाणी कानी पगलिया भरण लागै ।साठोत्तरी कहाणी 1970-75 रै दौर में आपरो निरवाळो रंग रूप लिया आपो सांभै । अबै आपां शिल्प अर संवेदना री बात प्रमुख कहाणीकारां री काहाणियां नै लेय’र करां । अन्नाराम सुदामा लूंठा कहाणीकार रूप आपरी कहाणियां में मिनख रै उजळै पख री हिमायत करी है । आपरा तीन संग्रै आंधै नै आंख्यां (1971), गळत इलाज (1984) अर माया रो रंग (1996) छ्प्या । ‘ओळमो’ पत्रिका बरस 2001 रै अंक में आपरी कहाणी ‘मनचींती’ छ्पी जिकी असल में कहाणी ‘गळत इलाज’ रो नूंवो ड्राफ्ट है । जे ‘गलत इलाज’ कथा रो आगलो पड़ाव ‘मनचींती’ नै मानां तो शिल्प अर संवेदना री केई बातां खुलैला । कांई कारण अर दबाब रैया हुवैला कै कहाणीकार नै एक संवेदना अर शिल्प नै दूसर परोटण रो कथा में सागण कथ्य नै ढाळण रो मोह हुवै । आं कहाणियां माथै विगतवार बात करण सूं पैली आपां गोरधनसिंह शेखावत अर रामेश्वर दयाल श्रीमाळी री टीप कहाणीकार सुदामा बाबत जाण लेवां ।गोरधनसिंह शेखावत लिखै- “अन्नाराम सुदामा री कहाणियां री सब सूं बड़ी कमजोरी उणा रो प्रभावहीण शिल्प है । उणां रै शिल्प में काव्य अर अलंकार बिरती रो ऐड़ो लगाव है कै कहाणी री संवेदना आपरो प्रभाव खो देवै ।” (जागती जोत फरवरी-अप्रैल, 1990 पेज-147) रामेश्वर दयाल श्रीमाळी मुजब- “बीच-बीच में इसै प्रसंग बिहूणै बरणाव सूं कथा री दिस घड़ी-घड़ी बदळती दीसै । चितरामां रै बखाण रै बरणाव री झीणि कारीगरी कहाणी रै रस नै बधावै पण गैर जरूरी चितरामां रै अणूतै विस्तार सूं कहाणी रो असर फीको पड़ै ।” (जागती जोत फरवरी- अप्रैल, 1990 पेज-45) सुदामाजी री कहाणियां में भाषा तो रसदार है, बै बात नै एक न्यारै निरवाळै अंदाज में मसखरी करता रचै । उणा री मसखरी में कठैई हास्य है तो कठैई व्यंग्य पण कहाणीकार नै समै साथै बदळाव करणा पड़ै बै हाल तांई अन्नाराम सुदामा नै स्वीकार कोनी । आपां नै जाण लेवणो चाइजै कै नानूराम संस्कर्ता पैली पंगत रा कहाणीकार आज होवता थकां ई आधुनिक कहाणी में टाळीजै अर विजयदान देथा आपरी सवेदना-शिल्प में बदळाव लायां आज च्यार कहाणियां रै पाण याद करीजै । आपरी आधुनिकता बगत मुजब नी राखणो कहाणीकार री निजू कमी ई मानीजैला । दो चावा ठावा लेखकां रै बयान सूं म्हैं जिकी बात खातर संकेत कर रैयो हूं उण रै खुलासै खातर सुदमाजी री कहाणी री एक ओळी देखां- “गोपी म्हाराज री उम्र पचास सूं एकाध ही कम हुसी तो ही सिर धोळो हुयै नै दस बरस हुयग्या हुसी, अबार तो केस ही रिपियै में आठाना बच्या है अर बत्तीसी तो बापड़ी च्यारानी ही मुश्किल सूं ।” (गळत इलाज ; पेज-20) ‘गळत इलाज’ (1984) कहाणी-संग्रै री इणी नांव री कहाणी जातरा कर कहाणी ‘मनचींती’ नांव सूं ‘ओळमो’(बरस-2001 ; पेज-25) पत्रिका में छपै जद आपरो रूप बदळै, जिण में एक ओळी माथै शिल्प रो भाषिक-पसराव बानगी रूप अठै राखूं- “गोपी बामण री ऊमर पचास सूं एकाध बरस ही कम होसी, पण सिर बां रो ओळो-सो धोळो होयां, एक दसक सूं साल-छ्व महीनां जादा ही होया है अबार तो केस बींरा रिपैयै में आठाना ही नीठ बच्या है । बै ही लूखा अर बूर रै बोदै बूजै पर तिणकला-सा हवा में हालता । वां बिचारां रो कांई कसूर ? बो आंनै बरस रा बरस निकळग्या साबण अर तेल दिनां सूं आंरी जड़ा में बच-बच करी, एक चळू खाटी छाछ एकर जरूर रगड़ै । बींनै बीं रो सैम्पू समझो चावै साबण । बत्तीसी बीं री कदैई तो ओपती अर इकसार ही अबार तो च्यारानी ही मुश्किल सूं बची है । बां मांय सूं ई केई हालै । बै न बीं नै रोटी ही चिगळण दै अर न सावळ कुरलो-दांतण ही करण दै ।” (ओळमो/संपादक- चेतन स्वामी ; पेज-25)कैवण री जरूरत कोनी कै इण पसराव में लेखक री संवेदना अर शिल्प री करामात फगत अर फगत हास्य उपजावण में दीसै । बातां नै मठार-मठार कैवण रो ओ जूनो ढंग-ढाळो काहाणीकार क्यूं अंगेजै ? आधुनिक कहाणी री संवेदना में ओ भाषिक खेल ओपतो कोनी लागै । आधुनिक कहणी आपरी संवेदना में घणी-घणी चतर है अर बा बात री धार तर-तर बधावती बधै । पाठक नै आपरी भाषिक संरचना सूं कैद में कसती कहाणी ठेठ तांई नीं छोड़ण रा गुण आगूंच ई प्रगट करै जियां मालचंद तिवाड़ी री कहाणी ‘सेलिब्रेशन’ री बात करां । पैली ओळी है- “मिसेज सोहनी किचन में हा, हां वा ‘किचन’ ई ही, रसोई नीं ही ।” इण ओळी मांय कहाणीकार किचन अर रसोई एक होय नै ई दोय हुवण रो लखाव क्यूं करावै ? कांई कारण है कै मिसेज सोहनी री किचन रसोई नीं ही ? बांचण वाळो पैली ओळी सूं ई कहाणीकार री बखड़ी चढ जावै सो आगै बांचण रो चाव उमड़ै । छोटी-छोटी ओळ्यां सूं आपरी बात नै नूंवै शिल्प में राखणो जाणै आधुनिक कहाणी रो निजू असूल हुवै । रामस्वरूप किसान री ‘दलाल’ कहाणी री सरुआत इण ढाळै हुवै- “म्हैं पसु-बोपारी रौ नामी दलाल । सिर पर झूठ री मोटी-सारी पांड । जबान पर इमरत रौ बासौ । गायां रा भैंस्यां तलै अर भैंस्यां रा गायां तळै करतो फिरूं । आखै इलाकै रा बोपारी म्हारी कदर करै । मिलतां ई ढाबै पर ले जावै । ओडर मारै- दो चा बणाई रै ढाबाळा ।” कथाकार किसान अठै उण पसु-बोपारी रै भेस मांय खुद दलाल रो भेस बदळ’र पाठक सूं जुड़ जावै । आधुनिक कहाणी मांय संवेदना रो कोरो-मोरो फगत बखाण कोनी, अठै तो खुद कथाकार उण नै अंगेजतो थको पात्र बण उण नै भोगै । उण रै सुख-दुख में जाणै खुद ई आपरै भाग में बां रा सगळा सुख-दुख लिखै अर बांनै अनुभव करै । कल्पना अर सुण्योड़ै जथारथ नै खुद भोगणो अर ऊंडो-ऊंडो कथ्य में उतरणो मतलब हजारू बातां सोचण-विचारणी । बकौल मालचंद तिवाड़ी- “कहाणी एक ऐड़ी विधा है जिण में लेखक नै कांई लिखणो है इण सूं बत्ती समझ इण री हुवणी जरूरी है कै कांई नीं लिखणो है ।“ (बणतो इतिहास पोथी री भूमिका)कहाणी मांय प्रमाणिता सूं आम आदमी री भूमिका रखण री बात करता थकां डॉ मदन केवलिया लिखै- “म्हैं ओ कोनी कैवूं कै जिंदगाणी रै अंधारै पख नै ही उकेरणो चाइजै उण रो उजळो पख ई राखणो चाइजै पण इणां में प्रमाणिक अंकन री मोकळी जरूत है । जद म्हैं राजस्थानी रै ठावा चावा कहाणिकार री कहाणी री सरुआत इण भांत पढ़ूं- ‘काती रै पहलै पख एक कुतड़ी ब्याई’ तो म्हनै राजस्थानी कहाणी रै भविष्य माथै चिंत्या होवण लागै ।” (जागती जोत फरवरी-अप्रैल, 1991 पेज- 153) आज री आधुनिक कहाणी धकै बधती थकी कथाकारां रो ध्यान क्राफ्ट्मैनशिप यानि शिल्प पख माथै पैला करता बेसी ध्यान देवण री जरूरत है । संवेदना अर शिल्प पख रा दाखला नूंवी कहाणियां मांय सोधण री जगां पैली आगीवाण कहाणीकार नृसिंह रापुरोहित री कहाणी-कला री बात करां । राजपुरोहितजी रा पांच कहाणी संग्रै छ्प्योड़ा है- रातवासौ(1961), अमर चूंनड़ी(1969), माऊ चाली मालवै(1973), परभातियो तारो(1983) अर अधूरा सुपना(1992) । इण कथा-जतरा में आपां रजस्थानी कहाणी रा उतार-चढाव ई देख सकां- लोककथा सूं कहाणी अर कहाणी सूं आधुनिक कहाणी रो पूरो बगत आं री जातरा में दीसै । कथा जतरा में पैली तो आदर्शां रै धरातल माथै ऊभै पात्रां री मनगत सूं ठाह लागै कै कथाकार भावुकता मांय है पण आगै री जातरा मांय भारत भाग्य विधाता, गिरजड़ा, नागपूजा अर विदाई जैड़ी कहाणियां देवणियां नृसिंह राजपुरोहित आधुनिक कहाणी री साख बधी । उकरास रा संपादक कहाणीकार सांवर दइया रै सबदां में-“नृसिंह राजपुरोहित आपरी कहाणियां सूं आज री कहाणी खातर जमीन तैयार करी । बै आगै आवण वाळा लेखकां खातर वर्तमान सूं जुड़ण रो रास्तो खोलै । समाज में आंवतै बदळाव नै कूंतण री दीठ देवै । मिनख री बारली अर मंयली दुनिय नै उजगर करण खातर भासा नै परोटण री कला सीखावै ।” डॉ गोरधनसिंह शेखावत मुजब- “जीं दीठ अर परिपेख में नृसिंह रजपुरोहित री कहाण्यां री संवेदना प्रगट हुई, बा राजस्थनी कहाणी रीसरुआत सारु साव नुवीं ही । अठै ओ कैवण में ई संकोच नीं लगै कै रतवसौ री संवेदना सूं आगौ नृसिंह रजपुरोहित री दूजी कहाणियां नीं बध सकी । बै आज ई कहाणियां लिखै पण बा निजर परिवेश अर संदर्भ सूं चुक्योड़ी लागै ।” नृसिंह राजपुरोहित री पैली कहाणी ही- ‘पुन्न रो काम’ जिकी बरस 1951 में ज्वाला साप्ताहिक जोधपुर सूं छपी । पचास सूं बेसी बरसां री आपरी साधना रो सम्मान करूं । बरस 1992 में छप्यै कहाणी संग्रै ‘अधूरा सुपना’ री एक कहाणी है- ‘अफसरी’ अर आ ई सागण संवेदना दूसर सागी शिल्प में लिखीजी जिण नै जागती जोत रै जुलाई,1993 में आपां देख सकां । इण कहाणी रो दाखलो इण खातर देवण चावूं कै एक कहणीकार संवेदना अर शिल्प रै कारण जठै कहाणी नै उकचूक री कर देवै बठै ई नृसिंह राजपुरोहित कहाणी री धार तीखी कर नै जसजोग काम करै । आधुनिक कहाणीकार विस्तार सूं बचतो थको मध्यम मारग रो जातरी घणो निगै आवै । बात करां कहाणी ‘अफसरी’ री जिण में घणी लिगाई री बंतळ सूं कहाणी चालू हुवै । लुगाई रात सूवती बखत धणी नै कैवै कै बीनणी रै आस मंडगी है अर ओ तीजो महीनौ चढ रैह्यो है । इण पछै कथाकार लिखै- “सुणतां ई रामलाल रै जणै बिजळी रौ करंट सो लाग्यो । वो भच्च करतो बैठो होयग्यो अर बांगौ होवै ज्यूं उण रै मूंडै कानी देखण लगग्यो । सीता ई हाक-बाक हुयगी । उण नै ओ तो अंदाज हो कै वो बात सुण’र डिस्टर्ब हुय जासी । उण नै ओ तो अंदाज हो के वो बात सुण’र उदास होय जासी । उण नै लारलै च्यार-पांच साल सूं बी पी री शिकायत है । डाक्टर री सलाह प्रमाणै उण नै ‘नॉरमोडेट’ री एक गोळी रोज गिटणी पड़ै । छतां पण कई बार बी पी हाई होय जावै । इण वास्तै सीता बणती कोशिश उण नै कोई इसी बत करै ई कोनी कै जिण सूं उणा री परेशानी बढै । वा जणै कै उण रो सुभाव चिंताळु है । राई जितरी बात नै भाखर रै उनमान बणाय लेवै अर पछै चिंता अर पछै चिंता करबो करै । पण वा जकोई कैवण जोग बात नीं कैवै तो ई जीव नै गिटै । लारै सूं मालूम हुयां वो टरणाट करबो करै । इण सूं उणा रो टेंशन बढ जवै अर जीव नै गिरै होय जावै । इण वास्तै आ बात ई कैवणी जरूरी ही । नीं तो पछै घर में गोधम मचतो- थारा हिया फूटौड़ा हा ! कम सूं कम म्हनै बात तो करती । अठै तो रोवता-झींकता कियां ई कर नै नीठ गिरस्थी री गाडी खांचां अर फेर नुंवी गिरै पैदा हुयगी ।” सीता सोचण लागी पै’ला तो यां रो सुभाव इसौ नीं हो । अबार इण बरसां में तो घणौ इज चिड़चिड़ो होयग्यो । बात-बात में छेह देय देवै । पै’ली तो सुभाव घणौ ठीमर हो । कोई पण अबखाई आवती तो उण माथै नेहचै सूं विचार करनै उण नै सुळझावण री कोशिश करता । पण अबै तो जाणै खापटौ हर बखत म्यान सूं बारै ई रैवै ।” (अधूरा सुपना पेज-22)“सुणतां ई रामलाल रै जणै बिजळी रौ करंट लाग्यो । वो भच्च करतौ बैठौ होयनै उण रै मूंडै कानी देखण लग्यो । सीता ई हाक-बाक हुयगी । उण नै अंदाज नीं हो कै वो सुण’र इतरौ डिस्टर्ब हुय जासी । वा सोचण लागी- पै’ली तो यांरौ सुभाव इसौ नीं हो । घणो ठीमर अर गाढआळौ हौ । अबै तो जाणै हर बखत खापटौ म्यान बारै ई रैवै ।” (जागती जोत जुलाई,1993 पेज-7) कहाणी अर लोकजीवण माथै किणी बीजै प्रंसग में डॉ चेतन स्वामी री आ टीप अठै साव खरी लखावै- “भाषा में आवतां बदळाव ई बां हूंस साथै अंगेज्या ।” नृसिंह राजपुरोहित री कहाणी ‘विदाई’ अर भरत ओळा री कहाणी ‘फरक’ एक ई संवेदना री न्यारी-न्यरी कहाणियां है । एक भाव-भौम माथै ऊभी है पण प्रवीण कुमार अर डोकरी रो रिस्तो, थाणेदार फूलसिंह अर उण री माऊ रै रिस्तै सूं मेळ कोनी खावै । विदाई में जठै एक डोकरी रै गांव सूं कटण री पीड़ा है तो दूजै पासी फरक कहाणी में माऊ जिकी डोकरी ई है जिकी नै खुद रै बेटै सूं रिस्तै रै लोप हुवण रो दरद है । ओ रिस्तो आधुनिक समाज रै बदळाव रै रूप में लोप होवतो जावै । जूनी चीजां रै साथै माइत ई उण आधुनिकता में मिसफिट सा लागै, ऐड़ौ पतियरो नासमझ लोगां कर लियो है । आपांरा संस्कारां रै चूळियां उतरण री आ कथा केई केई फरक दरसावै । मा गांव में है, बा दोय रूपां में है । एक तो गांव सूं निकळणो चावै अर दूजी मा गांव में ई’ज आपरी जड़ा में ई’ज रैवणी चावै पण दोनां री मनचींती कद हुवै । कहाणी मांय एक बेटो सपूत है तो दूजो कपूत । आं दोनूं कहाणियां रा छेहला अंस देखां-“चालौ बेटा ! कैय’र डोकरी धूजतै हाथां घर री कूंची विमला रै हाथां में पकड़ाय दी । पछै जावता एकर मुड़’र पीपळी कनी देख्यौ । पवन वेग सूं पत्ता हिलावती जाणै डोकरी नै विदाई देवै ही ।” (विदाई / नृसिंह राजपुरोहित)“राखूंडै मांय ऐंठेड़ा बरतणां कन्नै बैठती माऊ बोली- किंया बेटा, कोई मकान जचग्यो के ? फूलसिंह माऊ कानी देखतो ई रैयग्यो । क्वाटर मांय बरतण घोंवती नौकराणी अर राखूंड़ै मांय देगची रगड़ती माऊ में बीं नै दर ई फरक नीं लखायो अर बीं मूड़ै सूं आपो आप ई निकळग्यो- ना मां ।” (फरक / भरत ओळा) विदाई में पूरै परिवेस सूं एक जुड़ाव लाधै तो दूजै कानी फरक में एक संकेत है कै आधुनिक हुवतै समाज री अबखाई है कै बो जड़ा सूं कटण लाग रैयो है । नृसिंह राजपुरोहित री कहाणियां में संवाद रै साथै बखाण लाधै तो आगै री कहाणी में सांवर दइया री कहाणी कला पगत संवाद माथै टिक्योड़ी मिलै । नृसिंह राजपुरोहित री कहाणियां में वर्णन घणो है तो सांवर दइया री कहाणी में संवाद एक शिल्प रै रूप में चावो हुयो । आधुनिक कहाणी री संवेदना रै खुलासै सारू जिण शिल्प नै कहाणीकारां अंगेज्यो है उण में वर्णन री ठौड़ संवाद माथै बत्तो जोर दीसै । कथ्य नै मठार-मठार कैवण री जागा आधुनिक कहाणी में कथ्य नै संकेतां अर सूक्ष्मता सूं कहाणी में राखणो ही उण री खासियत बण नै सामीं आवै । सांवर दइया रा पांच कहाणी संग्रै- असवड़ै पसवाड़ै (1975), धरती कद तांई घूमैला (1980), एक दुनिया म्हारी (1984), एक ही जिल्द में (1987) अर पोथी जिसी पोथी (1996) छ्प्योड़ा । मास्टरां रै जीवण अर संवाद-शिल्प में आपरो खास हुनर दिखावणवाळा सांवर दइया आधुनिक कहाणी रा पैला पुखता कहाणीकार है जिका कहाणी री संवेदना अर शिल्प नै नूंवो रूप दियो । आप एकै कानी तो कहाणी में जथारथ नै परोट्यो अर दूजै कानी लोककथा रै फारमेट नै तोड़ता नूंवै शिल्प में केई कहाणियां लिखी । सांवाद शैली अर मास्टर जीवण माथै इत्ती काहाणियां लिख दी कै जाणै आं माथै कोपीराइट ई करणो है । आम आदमी रै बदळतै हालातां री बात दूजा कहाणीकार ई करी पण सांवर दइया रै अठै गुणात्मक अर मात्रात्मक रूप में आ बात की बेसी लाधै । बकौल डॉ आईदानसिंह भाटी- “रजस्थानी कहाणी लेखन में आधुनिक कथाकारां इण समाज री बदळाव री धीमी गति माथै चोट करी । मनोहर शर्मा, नृसिंह राजपुरोहित, रमेश्वरदयाल श्रीमाली सूं लेय’र रामकुमार ओझा, करणीदान बरहठ, भंवरलाल भ्रमर तांई घणीकरी कलमां गिणाई जा सकै पण म्हनै लरलै दसक सूं जिका कहणीकारां में आ दाझ घणी तीखी निगै आवै उण में सांवर दइया रौ नांव सिरै है । सांवरजी राजस्थानी कथा-लेखन में शिल्पगत जका प्रयोग कीना है, बै राजस्थानी कहाणी में साव नवा प्रयोग है। मनोहरसिंह राठौड़, मालचंद तिवाड़ी, बुलाकी शर्मा, माधव नागदा, भरत ओळा, चैनसिंह परिहार, प्रमोद शर्मा, मीठेश निर्मोही, ओमप्रकश भाटिया सांवर दइया रै सोच नै आगै बधावण वाळा ।” (ओमप्रकाश भाटिया रै कहाणी संग्रै “सुरदेवता” री भूमिका सूं ; पेज-8) सांवर दइया रो कहाणी रै शिल्प माथै घणो रुतबो स्यात “असवाड़ै-पसवाड़ै” कहाणी संग्रै री कहणियां सूं बण्यो है क्यूं कै इण संग्रै री दस कहाणियां दस भांत रै शिल्प में रचीजी ही । शिल्प अर संवेदना रै कारण ही आं री ओळख युवा पीढी में सगळा सूं पैली बणी । डॉ गोरधनसिंह शेखावत मुजब- “सांवर दइया री नाटकीय सैली या संवादात्मक सैली उणा री कहाणियां री एक रूढी बणगी, बै जकै संबंधां री खटी-मीठी संवेदना नै व्यंग्य रूप में उठाई आगै चाल’र उण में एक जैड़ी स्थिति लखाण लागगी ।” (जागती जोत फरवरी मार्च, 1994) डॉ अर्जुनदेव चारण मुजब- “तै सुणो भाई बंचणियां” ओ कैवणो उणी नटकीयता रो हिस्सौ है । एक रूप में तो अठै कहाणीकार आपरी परंपरा में छिपियोड़ै उणी हंकारै वळै नै सोध रैयो है जकौ रजस्थानी लोककथावां रौ जरूरी हिस्सौ बणियोड़ो है । इण रूप सांवर दइया आपरी परंपरा नै ई’ज पाछी उथळै । आ नाटकीयता एक प्रस्तुती रो रूप घारण कर लेवै अर कहाणी नाट्य में ढळण लागै । ओ कहणीकार रौ लगायोड़ौ लास्ट स्टोक है जठै सूं कहाणी आपरा अरथ खोलण लागै अर एक पूरी समस्टि नै आपरै घेरे में लेय लेवै । अठै पूगियां पाठक नै चांणचक लागण लागै कै अबार तांई जिण नै बंतळ या हथाई जाणतौ हो वा गैरै अरथां में उण री पीड़ ईज है अर आ ई’ज कहाणियां री विसेसता है ।” (राजस्थानी काहाणी : परंपरा विकास पेज-123)नूंवी पीढी रै कहाणीकारा नै डॉ आईदानसिंह भाटी कैयो कै बै सांवर दइया रै सोच नै आगै बधावण वाळा है, इणी बात री साख में कुंदन माळी री ऐ ओळ्यां देखी जाय सकै जिकी बां कहाणीकार भरत ओळा री कहाणियां माथै लिखता लिखी है- “राजस्थानी कहाणी पेटै सांवर दइया कथा बुणगट में संवाद-सैली नै खासा विकसित करी ही अर इण ढाळै भरत ओळा वां री ज पगडांडी माथै चालता दीखै पण नेठाव सूं देख्या ठाह पड़ै कै आगै जाय नै भरत री कथा-सैली आपरो न्यारो ढाळो अखतियार कर लेवै । जठै सांवरजी पाठकां सूं बोलता-बतळावतां निगै आवओ तौ दूजै कानी भरत ओळा आपरी कहाणी में छेकड़ली टीप सूं गुरैज करै। तो कांई आपां आ बात मान लेवां कै भरत ओळा री कथा-सैली सांवर दइया री सैली रौ ऐक्सटेंसन कै मेडीफिकेसन है ? इण रो जे एक पड़ूत्तर जे कदास हां में व्है तौ कांई अचरज नीं क्यूं कै प्रेरणा लेवणो परगत रौ नेम है अत किणी सारथक ट्रेंड नै धकै बधावणौ मैताऊ बाजै ।” श्रीलाल नथमल जोशी री ‘कंवारौ चौधरी’ (संग्रै- परण्योड़ी कंवारी 1974), सांवर दइया री ‘बीं रो दुख’ (संग्रै- असवाड़ै-पसवाड़ै 1975) अर यादवेंद्र शर्मा चंद्र री ‘मिनखखोरी’ (संग्रै- जामारो 1987) तीनूं संवाद सैली में लिखीजी कहाणियां है । इण पछै ‘पोथी जिसी पोथी’ संग्रै री सगळी कहाणियां संवाद शिल्प में रची-बसी आपां सामी है । अर्जुनदेव चारण जिकी बात सांवर दइया बाबत लिखी बा ठीक है कै छेकड़ली टीप ‘हां सुणो भाई बांचणियां’ सूं बै आधुनिक कहाणी नै आपरी परंपरा सूं जोड़ै पण कांई कारण है कै कहाणीकार नै आपरी संवेदना रो खुलासो नूंवो शिल्प काम में लियां पछै ई करणो पड़ै ? असल में संवाद अर संवाद रै मारफत आज रै समज रै संवाद बिहूणै हुवण माथै एक व्यंग्य है अर एक खुलासो कै आपां बिचाळै संवेदना नीं फगत बात ही रैयगी है । मिनख रै मसीन हुवण री आ पीड़ा है । “ग्योही” नानूराम संस्कर्ता री कहाणी-जतरा सांवर दइया तांई अर सांवर दइया सूं आगै कहाणी नै बधावण रो काम तीसरी पीढी रै कथाकारां जियां भरत ओळा, सत्यनारायण सोनी, श्रीलाल जोशी, नवनीत पाण्डे, कमल रंगा आद करियो है । श्रीलाल जोशी तो आपरी एक शिल्पगत निजता निजू आंटै में संवाद रै कारण बणाई है जिकी कै आपा न्यारी ई ओळख सकां । ओळमो-2001 अंक में भरत ओळा री कहाणी- “टोन, मम्मा अर डोकरी” छोटी सी संवाद कहाणी है । आ कहाणी टाबरां रै बदलतै रूप नै उण कारणा साथै राखै । घर में तीनूं पीढियां- जूनी, युवा अर टाबरां री आपसरी रो मेळ गड़बड़ा रैयो है । बीचली पीढी आपरी आगली अर लारली पीढी खातर पुळ रो काम नीं कर रैयी है । अठै ओ मोटो सवाल है कै जे टाबर आपरै माइतां सूं कट जावैला तो आवणवाळो काल किण रूप में आवैला ? अठै भरत ओळा री संवेदना रो संकेत है कै दादी अर पोतै रो मेळ नीं हुवणो भाषा अर संस्कार सूं काटणो कोनी, पण मा अर मासी री आधुनिकता रो रंग जिको आपां री स्थानीयता सूं साव-साव जुदा है बो परतख नूंवी पीढी माथै थोपिज रैयो है । आधुनिक कहाणी आपरै काल-खंड अर आकार नै छोटो रखता थकां जिका संकेत करै बै घणा असरदार रूप में आपरै शिल्प रै कारण उजागर हुवै । अबै कहाणी रै समापन री बात सत्यनारायण सोनी री कहाणी ‘घमसाण’ सूं करां । ‘घमसाण’ री छेहली ओळी है- “चौथू चिलम हाथ मांय लियां कदै दूध सूं भरियोड़ी बाल्टी कानी तो कदै चंपा कनी देखै हो ।” आधुनिक कहाणी सजगता सूं किणी एक दीठाव नै अनेक बिम्ब सूं चितराम रै रूप में पाठकां सामी जाणै ऊभो कर देवै । सत्यनारायण सोनी री ई एक दूजी कहाणी “उकळती पीड़” रि छेहली ओळियां देखां- “कीडू री आंख्यां सूं ढळक’र दो मोती खीचड़ी री पाळी में आ पड़िया ।” रामस्वरूप किसान आपरी कहाणी रै ऐंड में चौंकावण वाळो कोई इसो करनामो करै कै ठाह ई कोनी पड़ै कै कहाणी कद खत्म हुई अर कद आपरी बात कथगी । जाणै एक झटकै रै समचै पाठक पठनीतया री नींद सूं पाछो जागै ।
आं आधुनिक कहानीकारां रै सागै ई केई दूजा कहाणीकारां ई संवेदना अर शिल्प रै विकास में लाग्योड़ा है, जिकां रा महतावूं कहाणी संग्रै ई छ्प्या है । जियां- निर्मोही व्यास (ऊजळी आभा), सूरजसिंह पंवार (रामली), सोनाराम विशनोई (हेत री हेमाणी), मदन केवलिया (पाणी), देवकिशन राजपुरोहित (बटीड़), देवदास रांकवत (पीड़ रो पतियारो) अर रामपाळसिंह राजपुरोहित (बिखरता चितराम) आद आद ।
* नीरज दइया
(जागतीजोत : अप्रैल, मई, जून- 2010)
नीरज भाई सा ,
ReplyDeleteप्रणाम !
एक महताऊ लेख दिनों है , जीको ज्ञान मोकलो कर सके है ,
साधुवाद
Neerajji, भौत ई चौखो लेख, जागती जोत में भी चौखो लाग्यो.......मेजर.
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