Saturday, June 27, 2015

साख अर सीख कार्यक्रम में लघुकथा-पाठ


च्यार लघुकथावां / डॉ. नीरज दइया

नौकर
- अरे सुणै है कांई, पाणी रो लोटो तो झिला।
रामलाल आपरी लुगाई सूं बोल्यो तो बा सूती-सूती पडूत्तर दियो- आज तो डागळै पाणी लावणो ई भूलगी। फेर बा अपारै बड़ै छोरै नै कैयो- अरे टीकूड़ा, हेठै जाय’र पाणी भर’र लाव देखाण।
टीकूड़ो आपरै छोटियै भाई कानी काम सिरकायो- खेमला ! जीसा खातर हेठै जाय’र पाणी भर’र लाव रे लाडी। खेमलो ई कुणकैयो हो, हाथूहाथ जबाब दियो- म्हनै तो डर लागै.  ओ काम तो मुकनी करसी।
अर बैन ई भायां रै माथै बांधै जिसी ही, बोली- म्हनै तो नींद आयगी, भाई थन्नै कैयो थन्नै ई भर’र लावणो पड़सी।
आ गंगरथ सुण’र रामलाल नै रीस आयगी। बो हड़ देणी खुद उठियो अर पगोथियां उतरतो बडबडावण लाग्यो- ओ घर कदैई तरक्की कोनी कर सकै। सगळा रा हाड हराम हुयग्या। सगळा नै बैठा-बैठा खावण नै चाइजै... राम जाणै इण घर रो आगै कांई हुसी...।
इत्तै रामलाल रै कानां में बडगर रा बोल पूग्या- जीसा... मा कैवै- थे उठ तो गिया ई हो तो आवतां जग ई भर’र लाया।
रामलाल पाणी पी परो जग भरियो। पैलो पगोथियो चढ़’र पाछो हेठै उतरियो अर गाळ काढतो जग पाछो ऊंधो कर दियो- म्हैं आं रै बाप रो नौकर थोड़ी लागग्योड़ो हूं...।
०००

आंतरो
म्हैं जियां ई हैडमास्टर साब रै कमरै सूं बारै निकळियो निजरां साम्हीं एक नुवो चैरो आयग्यो। धोळी धोती-चोळै अर मुरकिया पैरियां एक गबरू जवान मुळकै हो। इण स्कूल में आज म्हारो पैलो दिन हो। सगळा सूं मेल-मुलाकात अर सैंध करण रो दिन। म्हैं म्हारो हाथ उण सूं मिलावण नै आगै करियो- म्हैं मास्टर मगनीराम। आज ई अठै जोइन करियो है।
बो गबरू दोय पग लारै खिसकग्यो अर म्हारै साम्हीं हाथ जोड़’र की हरफ मूढै सूं बारै काढै ई हो कै इत्तै में एक बीजो मास्टर जिको म्हारै लारै ई ऊभो हो, बोल्यो- ओ आपणै अठै फोर्थ क्लास है, तोळाराम।
म्हैं मनां ऊंडै मांय रो मांय घसग्यो। च्यारू कानी निजरां कर’र जायजो लियो कै उण दीठाव नै कुण कुण देख्यो। कांई बा म्हारी मूरखता ही जिण रो फगत एक चसमदीठ गवाह हो? म्हारै मांय एक पढियो-लिख्यो मास्टर हो जिको म्हनै कैवै हो- कित्तो मूरख है थूं कै आदमी री सावळ ओळख ई नीं कर सकै। बिना जाणिया-समझिया जणै-जणै साम्हीं हाथ आगै करण री कांई दरकार है? म्हनैं ठाह ई नीं लाग्यो कै कद म्हैं तोळाराम नै कैय दियो हो कै अबै अठै घोड़ै दांई कांई ऊभो है, जाय’र पाणी रो लोटो भर’र लाव।
०००

उतर-पातर
बो जियां ई घरै पूग्यो, देख्यो- जीसा भदर हुयोड़ा है। उण रो काळजो बैठण लाग्यो। बो साव होळै सी’क पूछियो- कुण चालतो रैयो...?
- रामू काका..।
- कांई रामू काका कोनी रैया... ? उण नै अचरज हुयो पण अचरज राम काका रै जावण रो नीं हो। जीसा सूं बात पुखता हुयां उण रै मांय झाल रो गोट उठियो। काल तांई जिकै आदमी सूं राम-राम ई कोनी ही, उण सूं एका-एक इत्ती प्रीत कियां उपजगी..!
उण रै सुर में तेजी ही- गजब करो, जद आपां होळी-दियाळी अर रामा-स्यामां ई तोड़ राख्या हा तद आज पाछी सांधण रो कांई तुक... थांरै भदर हुवण री अर बठै जावण री बात म्हारै समझ कोनी आई। थानै कीं करणो हो तो पैली घरै बात तो करता...
उण रै जीसा नै ई तेजी आयगी, पण तो ई बां नरमाई सूं कैयो- थन्नै ठाह है कै थारै दादोसा रै लारै कुण कुण भदर हुया..?
जवान खून अर नवी हवा रो टाबर आ बात सुण’र भड़कग्यो- आ ई कोई उधारी हांती है, जिकी आपां चूकत करां। ओ लोक देखापो म्हनै फालतू अर अणखावणो लागै।
जीसा समझावणी रै सुर में बोल्या- जे आज रै दिन म्हैं माथै राख न्हाख लेवतो तो लोगां साम्हीं कांई इज्जत रैवती... सामूंडै नीं तो परपूठ बातां बणती...
जीसा बोल्यां जावै हा अर उण रै कानां रै जाणै डाटा लागग्य हा। बो ठाह नीं किसै हिसाब-किताब में लगोलग भुसळीजतो जावै हो।
०००

लाडू

जिण बस सूं म्हनैं मुसाफिरी करणी ही सेवट उडीकतां-उडीकतां बा आई। संजोग कै बस भरियोड़ी ही। म्हैं बस में चढियां खाली सीट खातर निजर दौड़ाई। सीटो-सीट लोग बैठा हा अर केई जणा ऊभा हा। म्हैं सोच्यो इण भरी बस मांय लारै कोई आधी-पड़दी सीट खाली मिल जावैला। मारग ऊभी भीड मांय पजतो म्हैं लारै पासी निकळयो। म्हारो अंदाजो ठीक निकळियो, लारै एक सीट खाली दीसगी। म्हैं पूग’र उण सीट माथै कबजो करूं कै पाडौसी बोल्यो- “रुध्योड़ी है, आवै।“ अर उण सीट माथै राख्योड़ै रूमाल कानी आंगळी करी।
म्हैं बोल्यो- “वा सा..” अर पसवाड़ै ऊभग्यो। सोच्यो फालतू फोडा देख्या। ऊभण नै तो आगै ई सावळ जागा ही। उण सीट खातर एक-दो बीजा जातरियां रै ई राळा पड़ी, पण बो मिनख पोरैदार पक्को हो। कैवतो रैयो- “रुध्योड़ी है, आवै।“ इत्तै म्हैं देख्यो कै एक रूपाळी छोरी उणी सीट खातर उणी मिनख नै पूछियो- “सीट खाली है क्या?” बो उण नै देखतां मधरो मधरो मुळतां कैयो- “हां, आओ रा...। खाली है।“ बा छोरी आपरै बाबोसा नै हेलो करियो- “बाबोसा ! लारै आओ रा, सीट मिलगी।“ बो मिनख बाको फाड़िया बस में सवार ऊपराथळी रै असवारियां मांय उण छोरी रै बाबोसा नै ओळखण री कोसीस करण लाग्यो।
म्हनै लाग्यो उण मिनख रा सुपना तूटण सूं उण रो बाको फाटियो अर जाणै कोई लाडू बाकै में आवतो-आवतो रैयग्यो हुवै। बो बाको फाडियां उण छोरी रै बाबोसा नै देखतो-देखतो जियां ई म्हारै पासी देख्यो तो तुरत बाको बंद कर लियो। म्हैं मन ई मन कैयो- “लाडी, लेले लाडू।“
०००


 


(फोटो : श्री हरीश बी. शर्मा, श्री राजाराम स्वर्णकार)

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हिंदी में-

कविता संग्रह : उचटी हुई नींद (2013), रक्त में घुली हुई भाषा (चयन और भाषांतरण- डॉ. मदन गोपाल लढ़ा) 2020
साक्षात्कर : सृजन-संवाद (2020)
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संपादित पुस्तकें : आधुनिक लघुकथाएं, राजस्थानी कहानी का वर्तमान, 101 राजस्थानी कहानियां, नन्द जी से हथाई (साक्षात्कार)
अनूदित पुस्तकें : मोहन आलोक का कविता संग्रह ग-गीत और मधु आचार्य ‘आशावादी’ का उपन्यास, रेत में नहाया है मन (राजस्थानी के 51 कवियों की चयनित कविताओं का अनुवाद)
शोध-ग्रंथ : निर्मल वर्मा के कथा साहित्य में आधुनिकता बोध
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अनूदित पुस्तकें : निर्मल वर्मा और ओम गोस्वामी के कहानी संग्रह ; भोलाभाई पटेल का यात्रा-वृतांत ; अमृता प्रीतम का कविता संग्रह ; नंदकिशोर आचार्य, सुधीर सक्सेना और संजीव कुमार की चयनित कविताओं का संचयन-अनुवाद और ‘सबद नाद’ (भारतीय भाषाओं की कविताओं का संग्रह)

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